गरुड़ की लकड़ी कहां मिलती है - garud kee lakadee kahaan milatee hai

जानिए, भारत में कहां मिलती है संजीवनी बूटी

ईरान के बादशाह खुसरो के प्रधानमंत्री बुर्जोई राज चिकित्सक भी थे। वह नई औषधियों पर शोध करते और उन पर लिखे ग्रंथ भी पढ़ते रहते थे। एक बार उन्हें पता चला कि भारत में किसी पर्वत पर

ईरान के बादशाह खुसरो के प्रधानमंत्री बुर्जोई राज चिकित्सक भी थे। वह नई औषधियों पर शोध करते और उन पर लिखे ग्रंथ भी पढ़ते रहते थे। एक बार उन्हें पता चला कि भारत में किसी पर्वत पर संजीवनी नाम की बूटी होती है, जिससे मृत व्यक्ति जीवित हो जाता है और स्वस्थ व्यक्ति यदि उसका सेवन कर ले तो वह हमेशा स्वस्थ और जवान बना रहता है।

बुर्जोई यह सुनकर रोमांचित हो उठे। उन्होंने अपने बादशाह से भारत जाने की इजाजत ली। वह भारत आए और संजीवनी बूटी की खोज में लग गए। वह अनेक पर्वतों और जंगलों में गए लेकिन कहीं भी उन्हें संजीवनी नजर नहीं आई। एक दिन वह एक पेड़ की छांव में आराम कर रहे थे, तभी एक पंडित जी वहां पहुंचे। वह बुर्जोई को देखकर बोले-आप परदेसी मालूम होते हैं।


बुर्जोई बोले- हां भई, मैं परदेसी ही हूं। मैंने सुना है कि आपके यहां संजीवनी बूटी के रूप में अमृत मिलता है। मैंने यहां बहुत तलाश किया लेकिन वह बूटी मुझे कहीं नजर नहीं आई। यह सुनकर पंडित जी मुस्कराने लगे और बोले-संजीवनी बूटी तो केवल हनुमान ही तलाश कर पाए थे। आज के समय में तो संजीवनी बूटी शायद न मिले लेकिन अमृत अवश्य मिल सकता है। हमारे यहां अमृत पंचतंत्र नामक ग्रंथ में है। जो उस ग्रंथ को समझ-बूझ कर पढ़ लेता है, समझ लीजिए उसने अमृत ग्रहण कर लिया। वह ग्रंथ जीवन में अमृत घोल देता है और व्यक्ति जब तक जीवित रहता है सकारात्मक विचारों से भरा रहता है।

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बुर्जोई पंडित जी की बात से प्रभावित हुए। वह पंचतंत्र की एक प्रति लेकर अपने देश लौट गए।

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संजीवनी पौधे के वंश की एक प्रजाति का चित्र

संजीवनी एक वनस्पति का नाम है जिसका उपयोग चिकित्सा कार्य के लिये किया जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम सिलेजिनेला ब्रायोप्टेरिस है और इसकी उत्पत्ति लगभग तीस अरब वर्ष पहले कार्बोनिफेरस युग से मानी जाती हैं। लखनऊ स्थित वनस्पति अनुसंधान संस्थान में संजीवनी बूटी के जीन की पहचान पर कार्य कर रहे पाँच वनस्पति वैज्ञानिको में से एक डॉ॰ पी.एन. खरे के अनुसार संजीवनी का सम्बंध पौधों के टेरीडोफायटा समूह से है, जो पृथ्वी पर पैदा होने वाले संवहनी पौधे थे। उन्होंने बताया कि नमी नहीं मिलने पर संजीवनी मुरझाकर पपड़ी जैसी हो जाती है लेकिन इसके बावजूद यह जीवित रहती है और बाद में थोड़ी सी ही नमी मिलने पर यह फिर से खिल जाती है। यह पत्थरों तथा शुष्क सतह पर भी उग सकती है।[1] इसके इसी गुण के कारण वैज्ञानिक इस बात की गहराई से जाँच कर रहे है कि आखिर संजीवनी में ऐसा कौन सा जीन पाया जाता है जो इसे अन्य पौधों से अलग बनाता और इसे विषेष दर्जा प्रदान करता है। हालाँकि वैज्ञानिकों का कहना है कि इसकी असली पहचान भी काफी कठिन है क्योंकि जंगलों में इसके समान ही अनेक ऐसे पौधे और वनस्पतियाँ उगती है जिनसे आसानी से धोखा खाया जा सकता है। मगर कहा जाता है कि चार इंच के आकार वाली संजीवनी लम्बाई में बढ़ने के बजाए सतह पर फैलती है।

संजीवनी के लिये हनुमान जी ने हिमालय को ही उठा लिया और लंका लाये

यह उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड और उड़ीसा सहित भारत के लगभग सभी राज्यों में पाई जाती है। [2] संजीवनी का उल्लेख पुराणों में भी है। आयुर्वेद में इसके औषधीय लाभों के बारे में वर्णन है। यह न सिर्फ पेट के रोगों में बल्कि मानव की लंबाई बढ़ाने में भी सहायक होती है।[3]

आजकल इस के बारे मे कूछ भ्रान्तिया फैलाई जा रही है की "गरुड़ संजीवनी बूटी के नाम से एक प्रसिद्ध बूटी का पता चला है जो पानी की दिशा से उलटी बहती है अर्थात सामान्यता वस्तुएं पानी के साथ बहती है गरुड़ संजीवनी बूटी सदैव पानी के विपरीत दिशा में बहती है जो इसकी बनावट केे या विशिष्ट आकार केेेे कारण संभव है।" जिसकी जानकारी हमे Dexter ने दी।

रामायण में संजीवनी बूटी का वर्णन[संपादित करें]

रामायण में भी संजीवनी बूटी का वर्णन देखने को मिलता है। जब रामायण में लक्ष्मण जी मुर्छित हो गये थे, उस समय उनके जीवन को बचाने के लिए हनुमान जी पूरा का पूरा पर्वत उठाकर ले आए थे। पूरा पर्वत उठाने के पीछे कारण यह था कि हनुमान जी को संजीवनी बूटी की पहचान नही थी. इसलिए उन्होंने लक्ष्मण जी की जान बचाने के लिए पूरा पर्वत ही उठा लिया था।[4]

संजीवनी बूटी का रहस्या सुषेण वैध को पता था इसलिए हनुमान जी उनको उनकी कुटिया सहित उठा लाए थे, सुषेण वैध जी ने शिव की तपस्या करके उनसे अमर होने का वरदान मांगा था लेकिन शिव ने कहा यह संभव नहीं लेकिन मैं तुम्हें संजीवनी विद्या के बारे में बता सकता हूं। तब उन्हें संजीवनी बूटी की विद्या का ज्ञान हुआ था।[5]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. Sah N K et al., 2005, Indian herb ‘Sanjeevani’ (Selaginella bryopteris) can promote growth and protect against heat shock and apoptotic activities of ultra violet and oxidative stress. Journal of Bioscience, 30, 499–505. //www.ias.ac.in/jbiosci/sep2005/499.pdf Archived 2011-05-24 at the Wayback Machine
  2. "पतंजलि पीठ का दावा, मिल गई संजीवनी बूटी". आईबीएनखबर. मूल से 30 सितंबर 2008 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि ५ मई २००९.
  3. "आज भी खड़ा है संजीवनी बूटी वाला पहाड़". आईबीएनखबर. मूल से 2 अक्तूबर 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि ५ मई २००९.
  4. "//www.jansatta.com/religion/ramayan-according-to-mythological-story-hanuman-ji-brought-sanjeevani-booti-from-dronagiri-village-even-today-the-people-of-that-village-are-angry-with-hanuman/1379429/". जनसत्ता.
  5. "संजीवनी बूटी (Sanjivani Buti) से मिला लक्ष्मण जी को जीवनदान". SA News Channel.

गरुड़ का पेड़ कैसे होता है?

यह वृक्ष पर्याप्त ऊँचा होता है, इसका तना कठोर लकड़ी वाला होता है व डण्डी पर 3 पत्तियाँ लगी होती हैं जैसे कि बेल पत्र लगे होते है...इसकी फली जो कि फल होती हैं, एक मीटर या उससे कुछ अधिक तक लम्बी होती है.. यह सर्प के समान कुछ चपटी होती है.... फली को चीरने पर इसमें गांठेदार सफेद हड्डी जैसा गूदा होता है...

गरुड़ संजीवनी औषधि क्या है?

आजकल इस के बारे मे कूछ भ्रान्तिया फैलाई जा रही है की "गरुड़ संजीवनी बूटी के नाम से एक प्रसिद्ध बूटी का पता चला है जो पानी की दिशा से उलटी बहती है अर्थात सामान्यता वस्तुएं पानी के साथ बहती है गरुड़ संजीवनी बूटी सदैव पानी के विपरीत दिशा में बहती है जो इसकी बनावट केे या विशिष्ट आकार केेेे कारण संभव है।" जिसकी जानकारी हमे ...

गरुड़ का फल क्या काम आता है?

इस पेड़ को लगाने के पीछे कारण यह है कि गरुड़ का फल घर को सुरक्षा देता है। हम जानते हैं कि बारिश के दिनों में अधिकतर गाँवों में सांप, बिच्छू जैसे जहरीले जीव खेतों से निकल कर घर के आसपास आ जाते हैं। गांववाले मानते हैं की गरुड़ का पका फल इन जहरीले जीव-जंतुओं से बचाने में काम आता है।

संजीवनी बूटी का पौधा कौन सा है?

खरे के अनुसार संजीवनी का संबंध पौधों के टेरीडोफिया समूह से है, जो पृथ्वी पर पैदा होने वाले संवहनी पौधे थे. उन्होंने बताया कि नमी नहीं मिलने पर संजीवनी मुरझाकर पपड़ी जैसी हो जाती है, लेकिन इसके बावजूद यह जीवित रहती है और बाद में थोड़ी सी ही नमी मिलने पर यह फिर खिल जाती है. यह पत्थरों तथा शुष्क सतह पर भी उग सकती है.

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