गद्य क्या है 2 गदय की प्रमुख विधाएँ लिखिए? - gady kya hai 2 gaday kee pramukh vidhaen likhie?

हिंदी गद्य की विभिन्न विधाएँ || Hindi gadya ki vidhaye

Types of prose in Hindi

नमस्कार दोस्तों स्वागत है आपका हमारी वेबसाइट   www.Bandana classes.com  पर । आज की पोस्ट में हम आपको " हिंदी गद्य की विभिन्न विधाएँ || Hindi gadya ki vidhaye" के बारे में बताएंगे तो इस पोस्ट को आप लोग पूरा पढ़िए।

Table of Contents 

👉गद्य किसे कहते हैं?

👉गद्य की कितनी विधाएं हैं?

👉निबंध किसे कहते हैं?

👉नाटक किसे कहते हैं?

👉एकांकी किसे कहते हैं?

👉उपन्यास किसे कहते हैं?

👉कहानी किसे कहते हैं?

👉जीवनी किसे कहते हैं?

👉आत्मकथा किसे कहते हैं?

👉संस्मरण  किसे कहते हैं?

👉रेखा चित्र किसे कहते हैं?

👉रिपोर्ताज किसे कहते हैं?

👉गद्य काव्य  किसे कहते हैं?

👉आलोचना  किसे कहते हैं?

👉यात्रा वृत्त किसे कहते हैं?

👉डायरी किसे कहते हैं?

👉पत्र साहित्य किसे कहते हैं?

👉भेंटवार्ता किसे कहते हैं?

👉नाटक और एकांकी में अन्तर

👉कहानी और उपन्यास में अन्तर

👉जीवनी और आत्मकथा में अन्तर

👉हिंदी गद्य की विभिन्न धाराओं से महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर

गद्य किसे कहते हैं?

भावों एवं विचारों की स्वाभाविक एवं सरल अभिव्यक्ति गद्य के द्वारा ही होती है। इसी कारण सामाजिक, साहित्यिक तथा वैज्ञानिक आदि समस्त विषयों के लिखने का माध्यम प्रायः गद्य है।

गद्य हमारी स्वाभाविक अभिव्यक्ति है। गद्य के माध्यम से ही हम अपने दैनिक जीवन में सभी कार्यों को संपन्न करते हैं। निजी जीवन पत्र, डायरी आदि साहित्य में कहानी, उपन्यास, निबंध, जीवनी आदि लेखन का माध्यम गद्य ही होता है। गद्य का क्रमिक विकास हिंदी के आधुनिक काल के आरंभ से हुआ।

गद्य का प्रयोग व्याख्या, तर्क, वर्णन एवं कथा के लिए होता है। गद्य में किसी तत्व को सहजता से, सरलता से एवं स्पष्टता से व्याख्या करने की क्षमता है। व्याकरण के नियमों का प्रयोग भी आसानी से ग्रहण किया जा सकता है।

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गद्य प्रयोग और प्रयोजन की दृष्टि से तीन प्रकार की होती है-

1- दैनिक कार्यकलाप की भाषा

2- शास्त्रीय तर्क की भाषा

3- साहित्यिक भाषा

हिंदी गद्य कितने रूपों में उपलब्ध है?

हिंदी गद्य की अनेक विधाएं (रूप) हैं जो निम्नलिखित हैं- 

1-निबंध 

2-नाटक 

3-एकांकी

 4-उपन्यास 

5-कहानी

6- जीवनी

7- आत्मकथा

 8-संस्मरण 

9-रेखा चित्र 

10-रिपोर्ताज

 11-गद्य काव्य 

12-आलोचना 

13-यात्रा वृत्त

14- डायरी 

15-पत्र 

16-भेंटवार्ता

हिन्दी गद्य की प्रमुख विधाओं के अन्तर्गत इतनी प्रचुर संख्या में साहित्य रचा गया है कि इन सभी का नामोल्लेख करना कठिन है। अत: इस तथ्य को दृष्टिगत रखते हुए हिन्दी गद्य की प्रमुख विधाओं का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत है—

नाटक किसे कहते हैं?

(1) नाटक natak -

नाटक किसे कहते हैं? नाटक के तत्व भी लिखिए।

रंगमंच पर प्रस्तुत करने के लिए किसी कथा को जब केवल पत्रों के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है , तो वह रचना नाटक कहलाती है नाटक में अभिनय का विशेष महत्व होता है।

नाटक के निम्नलिखित 6 तत्व माने जाते हैं- 

1-कथावस्तु 

2-पात्र

3- कथोपकथन (संवाद )

4-देशकाल

 5- उद्देश्य

6- रंगमंचीयता

हिंदी के प्रसिद्ध नाटककारों के नाम-

भारतेंदु हरिश्चंद्र ,जयशंकर प्रसाद ,हरिकृष्ण 'प्रेमी 'उदय शंकर भट्ट ,सेठ गोविंद दास, रामकुमार वर्मा ,लक्ष्मी नारायण मिश्र, लक्ष्मी नारायण लाल ,उपेंद्र नाथ 'अश्क' विष्णु प्रभाकर ,जगदीश चंद्र माथुर ,धर्मवीर 'भारती 'आदि में नाटक विधा को आगे बढ़ाया।

'नाटक' में पात्रों एवं घटनाओं का चित्रण किसी अन्य पात्र की अनुकृति के रूप में किया जाता है अर्थात् नाटक के पात्रों एवं घटनाओं पर किन्हीं अन्य व्यक्तियों तथा घटनाओं को आरोपित किया जाता है। 'रूप' के इस आरोप के कारण इसे 'रूपक' भी कहा जाता है। इसके अतिरिक्त 'नट' का अर्थ 'अभिनेता' होता है; अतः 'अभिनेता' से सम्बन्धित होने के कारण इस रंगमंचीय विधा को 'नाटक' भी कहा जाता है।

नाटक अत्यन्त प्राचीन विधा है। हिन्दी नाटकों का सम्यक् रूप से विकास भारतेन्दु युग में आरम्भ हुआ । यद्यपि नाटक इनके पहले भी लिखे जाते रहे। भारतेन्दु जी के पूर्ववर्ती नाटककारों में रीवाँ नरेश विश्वनाथ सिंह(1846-1911) के ब्रजभाषा में लिखे गए नाटक 'आनन्द रघुनन्दन' और गोपालचन्द्र के 'नहुष'(1841 ) को अनेक विद्वान् हिन्दी का प्रथम नाटक मानते हैं। स्वयं भारतेन्दु जी ने अनेक नाटक लिखे जिनमें 'वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति', 'भारत दुर्दशा', 'अँधेर नगरी', 'नीलदेवी' विशेष उल्लेखनीय हैं। भारतेन्दु जी के बाद नाटक के क्षेत्र में जयशंकरप्रसाद का आगमन हुआ। , उन्होंने 'चन्द्रगुप्त', 'स्कन्दगुप्त', 'अजातशत्रु', 'ध्रुवस्वामिनी' जैसे ऐतिहासिक नाटकों की रचना की । हरिशंकर प्रेमी का 'रक्षाबन्धन', गोविन्दवल्लभ पन्त का 'राजमुकुट', उदयशंकर भट्ट का 'शक- विजय' आदि इस युग के अन्य प्रमुख नाटक हैं। लक्ष्मीनारायण मिश्र ने 'राजयोग', 'सिन्दूर की होली' जैसे समस्याप्रधान नाटक लिखे। हिन्दी के नये नाटककारों में मोहन राकेश, धर्मवीर भारती, जगदीशचन्द्र माथुर, सर्वेश्वरदयाल सक्सेना, लक्ष्मीनारायण लाल, सुरेन्द्र वर्मा, भीष्म साहनी आदि ने भी अनेक सुप्रसिद्ध नाटकों की रचना करके हिन्दी नाटक-साहित्य के क्षेत्र में अपना उच्चतम स्थान बनाया है।

👉आत्मकथा तथा जीवनी में अंतर

👉मुहावरे तथा लोकोक्ति में अंतर

(2) एकांकी ekanki- 

Ekanki kise kahte h

एकांकी किसे कहते हैं? एकांकी लेखकों के नाम लिखिए।

एकांकी दृश्य काव्य की एक विधा है ।एकांकी में 1 अंक होता है। यह अंक दृश्यों में विभाजित हो सकता है कम- से -कम समय में अधिक -से -अधिक प्रभाव एकांकी का लक्ष्य होता है दो एकांकी निम्न प्रकार है-

1-"दीपदान" -डॉ रामकुमार वर्मा

2-"बहू की विदा"- विनोद रस्तोगी

एकांकी के कितने तत्व माने गए हैं-

एकांकी के तत्व निम्नलिखित हैं- 

1-कथावस्तु

2- कथोपकथन या संवाद 

3-पात्र या चरित्र -चित्रण

4- देशकाल - वातावरण 

5-भाषा - शैली

6- उद्देश्य

7- रंगमंचीयता

नाटक का एक अन्य रूप एकांकी है। 'एकांकी' किसी एक महत्त्वपूर्ण घटना, परिस्थिति या समस्या को आधार बनाकर लिखा जाता है और उसकी समाप्ति एक ही अंक में उस घटना के चरम क्षणों को मूर्त करते हुए कर दी जाती है। हिन्दी के एकांकी लेखकों में रामकुमार वर्मा, उपेन्द्रनाथ 'अश्क', भुवनेश्वर, विष्णु प्रभाकर, जगदीशचन्द्र माथुर, सत्येन्द्र शरत, विनोद रस्तोगी आदि के नाम उल्लेखनीय हैं।

👉नाटक तथा एकांकी में अंतर

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(3) उपन्यास upnyas-

Upnyas kise kahte hai

उपन्यास किसे कहते हैं? उपन्यासकारों के नाम लिखिए।

उपन्यास कथा का वह रूप है जिसमें जीवन का विशद् चित्रण होता है। पात्रों के जीवन की विस्तृत झांकी प्रस्तुत कर उपन्यासकार एक और तो मानव चरित्र को व्यक्त करता है और दूसरी ओर अपने समय के प्रवृत्तियों का चित्रण करते हुए हमें कुछ सोचने पर विवश कर देता है।

उपन्यासकारों के नाम- प्रेमचंद ,जयशंकर प्रसाद ,यशपाल ,मन्नू भंडारी, जैनेंद्र प्रसिद्ध उपन्यासकार हैं।

उपन्यास के कितने तत्व होते हैं- 

उपन्यास के 6 तत्व होते हैं-

1-कथावस्तु 

2-पात्र का चरित्र- चित्रण

3- संवाद

4- देशकाल -वातावरण 

5-भाषा- शैली 

6-उद्देश्य

 "उपन्यास' उस विधा को कहते हैं जिसमें मानव चरित्र एवं उसके रहस्यों की कलात्मक रूप से तथा संवादों, घटनाक्रमों एवं पात्रों के माध्यम से चित्रात्मक प्रस्तुति की जाती है।

हिन्दी उपन्यासों की विकास-परम्परा को हम तीन भागों— पूर्व- प्रेमचन्द युग, प्रेमचन्द युग तथा प्रेमचन्दोत्तर युग में विभाजित करते हैं। प्रेमचन्द के नाम से इस विकास-परम्परा को विभाजित करने का उद्देश्य सिर्फ इतना ही है कि प्रेमचन्द प्रमुख जी अपने युग के ही नहीं वरन् सम्पूर्ण हिन्दी उपन्यास साहित्य के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण सर्जक रहे हैं। सन् 1882 ई० में लाला श्रीनिवास दास द्वारा रचित 'परीक्षा गुरु' को हिन्दी का प्रथम मौलिक उपन्यास माना जाता है। यह पूर्व-प्रेमचन्द युग की रचना है। इस युग के उपन्यासों में गम्भीरता का प्रायः अभाव है तथा ये घटनाप्रधान हैं। इस युग के उपन्यासकार एवं उनकी रचनाएँ इस प्रकार हैं- बालकृष्ण भट्ट (नूतन ब्रह्मचारी); किशोरीलाल गोस्वामी ( लवंगलता, कनक कुसुम, प्रणयिनी परिणय आदि); देवकीनन्दन खत्री (चन्द्रकान्ता, चन्द्रकान्ता सन्तति, भूतनाथ आदि); गोपालराम गहमरी (अद्भुत लाख, गुप्तचर आदि); ब्रजनन्दन सहाय (राजेन्द्र मालती, सौन्दर्योपासक आदि) आदि। इन उपन्यासों के साथ-साथ इस युग में बंगला उपन्यासों के सर्वाधिक अनुवाद हिन्दी में हुए ।

प्रेमचन्द युग से पूर्व हिन्दी उपन्यास-जगत् तिलिस्म, रहस्य, रोमांच और चमत्कारप्रधान किस्सों से भरा हुआ था। प्रेमचन्द ने उसे सामाजिक, राजनैतिक तथा आर्थिक आदि समस्याओं के ठोस और यथार्थ धरातल पर खड़ा किया। ‘सेवासदन', ‘प्रेमाश्रम', ‘कर्मभूमि', 'रंगभूमि', 'गबन', 'गोदान' आदि प्रेमचन्द द्वारा रचित प्रसिद्ध उपन्यास हैं। प्रेमचन्द युग में ही जयशंकरप्रसाद, विश्वम्भरनाथ शर्मा 'कौशिक', पाण्डेय बेचन शर्मा 'उग्र' आदि ने भी अनेक प्रख्यात उपन्यासों की रचना की।

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प्रेमचन्द के बाद अर्थात् प्रेमचन्दोत्तर युग में हिन्दी उपन्यास का व्यापक एवं अबाधगति से विकास हुआ। इस युग में सामाजिक, राजनैतिक, ऐतिहासिक, मनोवैज्ञानिक, आंचलिक आदि विविध प्रकार के उपन्यास लिखे जाने लगे। ऐतिहासिक उपन्यासों के क्षेत्र में वृन्दावनलाल वर्मा का नाम विशेष उल्लेखनीय है। 'गढ़कुण्डार', 'झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई', 'मृगनयनी' आदि इनके प्रसिद्ध ऐतिहासिक उपन्यास हैं। हजारीप्रसाद द्विवेदी ने 'बाणभट्ट की आत्मकथा', 'चारु चन्द्र-लेख', 'पुनर्नवा' और 'अनामदास का पोथा', राहुल सांकृत्यायन ने 'सिंह सेनापति''जय यौधेय', रांगेय राघव ने 'मुर्दों का टीला' तथा आचार्य चतुरसेन ने 'वैशाली की नगरवधू', 'वयं रक्षामः' जैसे ऐतिहासिक उपन्यास लिखे। जैनेन्द्र कुमार ने 'सुनीता' तथा 'त्यागपत्र' जैसे मनोवैज्ञानिक उपन्यास लिखे। फ्रायड के मनोविश्लेषणवाद से प्रभावित होकर इलाचन्द्र जोशी ने 'संन्यासी', अज्ञेय ने 'शेखर एक जीवनी' तथा यशपाल ने 'झूठा सच' जैसे उपन्यासों की रचना की। फणीश्वरनाथ 'रेणु' ने 'मैला आँचल' लिखकर आंचलिक उपन्यासों की परम्परा शुरू की। नागार्जुन, शिवप्रसाद मिश्र 'रुद्र', भैरवप्रसाद गुप्त, राही मासूम रजा आदि ने भी उल्लेखनीय आंचलिक उपन्यासों की रचना की।

समकालीन हिन्दी उपन्यास - साहित्य के क्षेत्र में शिल्प और कथ्य सम्बन्धी विभिन्न प्रकार के अभिनव प्रयोग किए जाते रहे हैं। अमृतलाल नागर, भीष्म साहनी, रांगेय राघव, शिवप्रसाद सिंह, मनोहरश्याम जोशी, निर्मल वर्मा, राजेन्द्र यादव, मोहन राकेश, कृष्णा सोबती, मन्नू भण्डारी व मृदुला गर्ग जैसे सुविदित उपन्यासकारों ने हिन्दी उपन्यास - साहित्य को सम्पन्न बनाया है। आजकल भी अनेक नये पुराने कथाकार हिन्दी उपन्यास- साहित्य को अपनी लेखनी से समृद्ध कर, - रहे हैं।

(4) कहानी kahani-

Kahani kise kahte hai

कहानी किसे कहते हैं ?प्रसिद्ध कहानीकारों के नाम लिखिए।

कहानी एक कलात्मक छोटी रचना। यह किसी घटना भाव संवेदना आज की मार्मिक व्यंजना करती है। का आरंभ और अंत बहुत कलात्मक तथा प्रभावपूर्ण होता है। घटनाएं परस्पर संबंध्द होती हैं। हर घटना लक्ष्य की ओर उन्मुख होती है। लक्ष्य पर पहुंचकर कहानी अपना विशिष्ट प्रभाव छोड़ती भी समाप्त हो जाती है।

प्रसिद्ध कहानीकारों के नाम- 

मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, अज्ञेय ,जैनेंद्र ,भगवती चरण वर्मा, कमलेश्वर ,विष्णु प्रभाकर ,धर्मवीर 'भारती', मोहन राकेश, शैलेश मटियानी, भीष्म साहनी ,निर्मल वर्मा ,शिवानी आदि प्रसिद्ध कहानीकार हैं।

कहानी के कौन-कौन से तत्व होते हैं-

कहानी के निम्नलिखित तत्व होते हैं-

1-कथावस्तु 

2-पात्र एवं चरित्र चित्रण

3- कथोपकथन या संवाद 

4-देशकाल व वातावरण

5- भाषा- शैली

6- उद्देश्य

यह आधुनिक साहित्य की सबसे अधिक लोकप्रिय विधा है। इसका लक्ष्य किसी पात्र, घटना, भाव, संवेदना आदि की मानसिक अभिव्यंजना करना होता है। इसका शीर्षक आकर्षक एवं रोचक होता है तथा कहानी के मूल भाव अथवा संवेदना की व्यंजना करने में समर्थ होता है। कहानी तथा उपन्यास एक-दूसरे से भिन्न हैं। कहानी कलात्मक छोटी रचना होती है, जो छोटी होते हुए भी बड़े से बड़े भाव की व्यंजना करने में समर्थ होती है। इसका आरम्भ तथा अन्त कलात्मक एवं प्रभावपूर्ण होता है। इसकी कथावस्तु संगठित, क्रमबद्ध एवं प्रभावपूर्ण होती है तथा इसकी प्रत्येक घटना इसके लक्ष्य से सम्बद्ध रहती है। इसमें जीवन के विभिन्न भावों, विचारों एवं पक्षों का संवेदनात्मक, मार्मिक तथा सौन्दर्यपूर्ण चित्र प्रस्तुत किया जाता है। यद्यपि इसका प्रधान लक्ष्य मनोरंजन करना होता है तथापि यह विशेष संवेदना, भाव तथा प्रभाव की कलात्मक व्यंजना भी करती है।

👉उपन्यास तथा कहानी में अंतर

👉नई कविता की विशेषताएं

भारतेन्दुजी से पूर्व हिन्दी कहानियों में इंशाअल्ला खाँ की 'रानी केतकी की कहानी' का उल्लेख आता है। विद्वान् इसे हिन्दी की प्रथम कहानी मानते हैं, परन्तु कहानी कला की दृष्टि से इसे आधुनिक कहानी की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता । भारतेन्दु युग में इस प्रकार की कोई कहानी सामने नहीं आई। द्विवेदी युग में किशोरीलाल गोस्वामी की 'इन्दुमती', बंग महिला की 'दुलाईवाली' और रामचन्द्र शुक्ल की 'ग्यारह वर्ष का समय' कहानियों को हिन्दी की प्रथम कहानी कहा गया, किन्तु इनमें 'इन्दुमती' से ही सर्वसम्मत रूप से कहानी का जन्म माना गया।

विषयवस्तु के आधार पर हिन्दी की कहानियों का विभाजन निम्न प्रकार से हो सकता है—ऐतिहासिक, सामाजिक, यथार्थवादी, दार्शनिक, प्रतीकवादी, मनोवैज्ञानिक, हास्य-व्यंग्य-प्रधान आदि। कहानी के तत्त्वों में किसी एक की प्रधानता के आधार पर इनका विभाजन घटना प्रधान, चरित्र प्रधान, भाव-प्रधान तथा वातावरण-प्रधान के रूप में किया जाता है। कहानी-लेखन में प्राय: कथात्मक आत्म-चरित्र- प्रधान, पत्रात्मक, डायरी, नाटकीय मिश्रित आदि शैलियों का प्रयोग किया जाता है। 'प्रसाद', प्रेमचन्द, जैनेन्द्र, यशपाल, 'अज्ञेय', शिवानी, कृष्णा सोबती आदि कुछ प्रसिद्ध कहानीकार हैं।

(5) निबन्ध nibandh

Nibandh kise kahte hai

निबंध किसे कहते हैं इसके कितने प्रकार होते हैं?

निबंध और गद्य रचना को कहते हैं जिसमें सीमित आकार के भीतर किसी विषय का वर्णन या प्रतिपादन एक विशेष निजीपन ,स्वच्छंदता , सौष्ठव और सजीवता तथा आवश्यक संगति और संबद्धता के साथ किया गया हो।

निबंध के निम्नलिखित प्रकार हैं- 

1-कथात्मक

2-वर्णनात्मक

3-विचारात्मक

4-भावात्मक

कथात्मक निबंधों में काल्पनिक वृत्त आत्मचरित्रात्मक एवं पौराणिक आख्यानों का प्रयोग किया जाता है।

वर्णनात्मक निबंधों में प्रकृति या मनुष्य जीवन की घटनाओं का वर्णन होता है।

विचारात्मक विचारात्मक निबंध ओं में अपने विचारों को सुसम्बध्दता से व्यक्त किया जाता है।

भावात्मक निबंधों में लेखक के हृदय से निकले भावों को एक वैचारिक  सूत्र में नियंत्रित करके लिखा जाता है।

दो निबंधकार एवं उनकी रचनाएं- 

रामधारी सिंह दिनकर -( मिट्टी की ओर)

भगवती शरण सिंह -(मानव के मूल में)

गद्य की नवीन विधाओं में निबन्ध सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण तथा विकसित विधा है। आलोचकों ने निबन्ध को वास्तव में 'गद्य की कसौटी' कहा है। निबन्ध का प्रयोग दार्शनिक तथा बौद्धिक विचारों की अभिव्यक्ति के लिए होता था, किन्तु आधुनिक हिन्दी निबन्ध संस्कृत के निबन्ध से पूर्णतया भिन्न है तथा अंग्रेजी के 'एस्से' के अधिक निकट है। गद्य की भाषा की अभिव्यंजना-शक्ति का सबसे अधिक प्रसार इसी विधा में होता है। इसके विषय की सीमा मानव जीवन के समान ही विस्तृत है। यद्यपि इसमें बुद्धि-तत्त्व की प्रधानता रहती है तथापि उसका सम्बन्ध हृदय-तत्त्व से भी बना रहता है।

निबन्ध में लेखक का व्यक्तित्व प्रमुख होता है। यह निबन्धकार के मन में उठने वाले उन विचारों का चित्र होता है जिस समय वह किसी विषय से प्रभावित होता है। इसमें लेखक किसी भी विषय का पूर्ण विवेचन, विश्लेषण, परीक्षण, व्याख्या तथा मूल्यांकन करता है, वह विषय का निर्वाह अपनी इच्छानुसार तथा अपने दृष्टिकोण के अनुसार करता है, जिसके लिए वह स्वतन्त्र रहता है। निबन्ध आत्मपरक होता है तथा इसमें आत्मीयता और भावमयता के साथ-साथ विचारों की तर्कपूर्ण अभिव्यक्ति भी होती है।

विषय तथा शैली के अनुसार इसके चार भेद होते हैं 

(i) विचारात्मक निबन्ध

विचारात्मक निबन्धों में बुद्धि-तत्त्व की प्रधानता होती है। इसमें तर्कपूर्ण विवेचन, विश्लेषण एवं गवेषणा का आधिपत्य होता है तथा विषय भी अधिकांशतः दार्शनिक, मनोवैज्ञानिक, शास्त्रीय, विवेचनात्मक आदि होते हैं। इसके लेखन के लिए चिन्तन, मनन तथा अध्ययन की अधिक अपेक्षा होती है।

 (ii) भावात्मक निबन्ध

भावात्मक निबन्धों में हृदय-तत्त्व अथवा रागात्मकता की प्रमुखता होती है। इनका लक्ष्य पाठक की बुद्धि की अपेक्षा उसके हृदय को प्रभावित करना होता है। इन निबन्धों की भाषा सरल, सुन्दर, ललित व मधुर होती है। इन निबन्धों में भावों को उत्कर्ष प्रदान करने के लिए कल्पना एवं अलंकारों का भी आवश्यकतानुसार प्रयोग किया जाता है। इनका वाक्य- विन्यास सरल तथा शैली काव्यमयी होती है।

(iii) वर्णनात्मक निबन्ध

वर्णनात्मक निबन्धों में निरीक्षण के आधार पर किसी भी वर्णनीय वस्तु, स्थान, व्यक्ति, दृश्य आदि का आकर्षक, सरस तथा रमणीय वर्णन होता है। इनकी शैली दो प्रकार की होती है—एक में यथार्थ वर्णन तथा दूसरी में अलंकृत वर्णन होता है। यथार्थ वर्णन सूक्ष्म निरीक्षण एवं निजी अनुमति के आधार पर होता है तथा अलंकृत वर्णन में कल्पना का प्रयोग होता है। इन निबन्धों में चित्रात्मकता, रोचकता, कौतूहल तथा मानसिक प्रत्यक्षीकरण कराने की क्षमता होती हैं। इनकी शैली भी प्रायः सुबोध तथा सरल होती है।

(Iv) विवरणात्मक निबन्ध

विवरणात्मक निबन्धों में प्रायः ऐतिहासिक एवं सामाजिक घटनाओं, स्थानों, दृश्यों, यात्राओं तथा जीवन के अन्य विविध कार्य-कलापों का विवरण दिया जाता है। इनमें आख्यानात्मकता का पुट रहता है तथा विषयवस्तु का विवरण रोचक, हृदयग्राही एवं क्रमबद्ध रूप में प्रस्तुत किया जाता है। इस प्रकार के निबन्धों की शैली सरल, आकर्षक, भावानुकूल, व्यावहारिक तथा चित्रात्मक होती है।

(6) आलोचना aalochana

Aalochana kise kahte hai

"आलोचना' का शाब्दिक अर्थ है— 'किसी वस्तु को भली-भाँति देखना। इस प्रकार किसी साहित्यिक रचना को भली-भाँति देखकर उसके गुण-दोषों का विश्लेषण करना; उस रचना की 'आलोचना' करना कहा जाता है। आलोचना के लिए 'समीक्षा' एवं 'समालोचना' शब्द का भी प्रयोग किया जा सकता है। साहित्यिक आलोचना का अर्थ किसी रचना के साहित्यिक, नैतिक, सैद्धान्तिक एवं शास्त्रीय मूल्यों की उसके तत्त्वों के अनुसार आलोचना करना है। हिन्दी में 'आलोचना' का प्रारम्भ भारतेन्दु युग में ही हो गया था। बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन और बालमुकुन्द गुप्त ने इसी युग में लाला श्रीनिवासदास द्वारा रचित 'संयोगिता स्वयंवर' की आलोचना करके आलोचना-विधा को जन्म दिया। द्विवेदी युग में आलोचना- विधा पर आधारित साहित्य का पर्याप्त विकास हुआ। इस युग के प्रमुख आलोचना लेखकों में पं० महावीरप्रसाद द्विवेदी, मिश्रबन्धु, डॉ० श्यामसुन्दरदास, पद्मसिंह शर्मा, लाला भगवानदीन आदि थे। पं० महावीरप्रसाद द्विवेदी उच्चकोटि के आलोचक थे। उन्होंने 'सरस्वती' पत्रिका के माध्यम से अनेक रचनाकारों और उनकी रचनाओं की निष्पक्ष रूप से आलोचना की। छायावादी युग में पं० रामचन्द्र शुक्ल सुविख्यात आलोचक सिद्ध हुए। उन्होंने अनेक गम्भीर आलोचनात्मक निबन्ध लिखे और आलोचना के क्षेत्र में हिन्दी साहित्य को नया रूप प्रदान किया। वस्तुतः उनके युग में हिन्दी-आलोचना का चरमोत्कर्ष देखने को मिला। शुक्ल जी के उपरान्त आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी, गुलाबराय पं० नन्ददुलारे वाजपेयी, डॉ० नगेन्द्र और डॉ० रामविलास शर्मा आदि ने भी हिन्दी आलोचना के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।

👉रिपोर्ताज किसे कहते हैं? रिपोतार्ज का अर्थ एवं परिभाषा

👉रेखाचित्र किसे कहते हैं ?एवं रेखाचित्र की प्रमुख विशेषताएं

7-गद्य-साहित्य की अन्य विधाएँ

आज के हिन्दी गद्य-साहित्य के अन्तर्गत अन्य अनेक विधाओं में प्रचुर मात्रा में रचनाएँ हो रही हैं। इन विधाओं का संक्षिप्त परिचय निम्न प्रकार है

(i) जीवनी jivani

Jivani kise kahte hai

जीवनी की परिभाषा -

किसी महापुरुष या प्रसिद्ध व्यक्ति के जीवन की घटनाओं, उनके कार्य-कलापों आदि का वर्णन आत्मीयता  के साथ वर्णन जिस गद्य विधा में किया जाता है उसे जीवनी कहते हैं।

जीवनी साहित्य की एक महत्त्वपूर्ण विधा है, जिसमें किसी महापुरुष या विख्यात व्यक्ति के जीवन की घटनाओं, उसके कार्य-कलापों एवं अन्य गुणों का आत्मीयता, औपचारिकता तथा गम्भीरता से व्यवस्थित रूप में वर्णन किया जाता है। इसमें व्यक्ति विशेष के जीवन की छोटी-से-छोटी बात तथा बड़ी-से-बड़ी बात का इस प्रकार वर्णन किया जाता है। कि पाठक उसके अन्तरंग जीवन से परिचित ही नहीं होता, वरन् तादात्म्य स्थापित कर लेता है। जीवनीकार जीवनी में प्रायः उन स्थलों पर विशेष बल देता है, जिनके द्वारा पाठक प्रेरणा ग्रहण कर अपने जीवन को अधिक उन्नतशील बनाने में समर्थ हो सके। जीवनी का प्रामाणिक होना आवश्यक है और यह तभी सम्भव है जब जीवनीकार को उस व्यक्ति के जीवन के विभिन्न स्वरूपों, तथ्यों तथा घटनाओं का पूर्ण ज्ञान हो। जीवनी में एक ओर तो इतिहास जैसी प्रामाणिकता एवं तथ्यपूर्णता होती है तथा दूसरी ओर वह साहित्यिकता के तत्त्वों से पूर्ण होती है। हिन्दी के जीवनी-साहित्य को समृद्ध बनानेवालों में बाबू गुलाबराय, रामनाथ 'सुमन', डॉ० रामविलास शर्मा तथा अमृतराय आदि उल्लेखनीय हैं।

👉आलोचना किसे कहते हैं? प्रमुख आलोचना लेखक

👉डायरी किसे कहते हैं?

(ii) आत्मकथा aatmkatha-

Aatmkatha kise kahte hai

आत्मकथा की परिभाषा-आत्मकथा में लेखक स्वयं अपनी जीवन- यात्रा पुरी आत्मीयता से व्यवस्थित रूप  में पाठक के सम्मुख रखता है। आत्मकथा कहलाती है।

आत्मकथा विधा भी जीवनी के समान ही लोकप्रिय है। इसका लेखक स्वयं अपने जीवन की कथा को पाठकों के समक्ष आत्मीयता के साथ रखता है। यह संस्मरणात्मक होती है। लेखक अपने जीवन की विभिन्न परिस्थितियों तथा दशाओं में अपने मानसिक एवं भावात्मक विकास की कहानी कहता है। उसका यह वर्णन उसके जीवन काल की पारिवारिक, सामाजिक, आर्थिक तथा राजनैतिक पृष्ठभूमि के सन्दर्भ में होता है। वह अपने जीवन में घटित हुई महत्त्वपूर्ण तथा मार्मिक घटनाओं का ही क्रमबद्ध विवरण प्रस्तुत नहीं करता, वरन् अपने जीवन पर पड़े हुए विभिन्न प्रभावों का भी उल्लेख करता चलता है। इसमें लेखक अपने जीवन की महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक एवं सामाजिक घटनाओं पर अपनी प्रतिक्रिया प्रकट करता है तथा यह भी बताता है कि अपने समय की विचारधारा में उसने क्या निजी योगदान किया है। महापुरुषों द्वारा लिखी हुई आत्मकथाएं पाठकों का मार्ग-प्रदर्शन करती हैं तथा उन्हें प्रेरणा देती हैं। डॉ० राजेन्द्र प्रसाद की आत्मकथा इस दृष्टि से एक महत्त्वपूर्ण कृति है। साहित्यिक आत्मकथाओं में 'बच्चन' और 'उग्र' की कृतियाँ उत्कृष्ट मानी गई है।

👉संधि और समास में अंतर

👉भारतेंदु युग की प्रमुख विशेषताएं

(iii) यात्रा - साहित्य Yatra sahitya

Yatra sahitya kaise kahte hai

यह साहित्य की एक रोचक तथा मनोरंजन-प्रधान विधा है। इसमें लेखक विशेष स्थलों की यात्रा का सरस तथा सुन्दर वर्णन इस दृष्टि से करता है कि जो पाठक उन स्थलों की यात्रा करने में समर्थ न हों वे उसका मानसिक आनन्द उठा सकें और घर बैठे ही उन स्थलों के प्राकृतिक दृश्यों, वहाँ के निवासियों के आचार-विचार, खान-पान, रहन-सहन आदि से परिचित हो सकें। इस विधा का यह लक्ष्य रहता है कि लेखक यात्रा में प्राप्त किए हुए आनन्द तथा ज्ञान को पाठकों तक पहुँचा सके। यह विधा आत्मपरक, अनौपचारिक, संस्मरणात्मक तथा मनोरंजक होती है। इसकी सफलता लेखक के निरीक्षण तथा उसकी वर्णन शैली के सौष्ठव एवं सौन्दर्य पर अधिक निर्भर रहती है। इसमें लेखक अपनी यात्रा की कठिनाई, सम्बन्धों तथा उपलब्धियों का रोचक विवरण पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करता है। यात्रावृत्त के साहित्यिक रूप का विकास भारतेन्दु जी के आविर्भाव के साथ ही हिन्दी-साहित्य में हुआ। 'कवि वचन सुधा' के 1871 ई० से 1879 ई० तक के अंकों में प्रकाशित भारतेन्दु जी के विविध यात्रावृत्त हिन्दी साहित्य की अमूल्य निधि है । भारतेन्दु जी द्वारा रचित 'सरयू पार की यात्रा'हिन्दी का प्रथम यात्रावृत्त माना जाता है। यात्रा - साहित्य की रचना की दृष्टि से राहुल सांकृत्यायन, अज्ञेय, देवेन्द्र सत्यार्थी, डॉ० नगेन्द्र, यशपाल और विनयमोहन शर्मा आदि नाम उल्लेखनीय हैं। 

(iv) संस्मरण sansmaran-

Sansmaran kise kahte hai

संस्मरण की परिभाषा- संस्मरण में लेखक अपने अनुभव की वस्तु, व्यक्ति अथवा घटना का विवरण अपनी स्मृति के आधार पर प्रस्तुत करता है। संस्मरण कहते हैं।

संस्मरण का अर्थ है 'सम्यक् स्मरण' अर्थात् संस्मरण में लेखक स्वयं अनुभव की हुई किसी वस्तु, व्यक्ति तथा घटना का आत्मीयता एवं कलात्मकता के साथ विवरण प्रस्तुत करता है। इसका सम्बन्ध प्रायः महापुरुषों से होता है। इसमें लेखक अपनी अपेक्षा उस व्यक्ति को अधिक महत्त्व देता है, जिसका वह संस्मरण लिखता है। इसमें किसी विशिष्ट व्यक्ति का स्वरूप, आकार-प्रकार, रूप-रंग, स्वभाव, भाव-भंगिमा, व्यवहार, जीवन के प्रति दृष्टिकोण और अन्य व्यक्तियों के साथ सम्बन्ध, बातचीत आदि सभी बातों का विश्वसनीय रूप से आत्मीयता के साथ वर्णन होता है। रेखाचित्र में किसी के चरित्र का कलात्मक चित्र प्रस्तुत किया जाता है; किन्तु संस्मरण में किसी के चरित्र का यथातथ्य रूप प्रदर्शित किया जाता है। सन् 1907 ई० में बाबू बालमुकुन्द गुप्त ने पं० प्रतापनारायण मिश्र के संस्मरण लिखकर इस विधा का सूत्रपात किया। हिन्दी के प्रमुख संस्मरण लेखकों में श्रीनारायण चतुर्वेदी, बनारसीदास चतुर्वेदी, पद्मसिंह शर्मा आदि हैं।

(v) रेखाचित्र Rekha Chitra-

Rekhachitra kise kahte hai

रेखाचित्र की परिभाषा - रेखा चित्र में शब्दों की कलात्मक रेखाओं द्वारा किसी व्यक्ति, वस्तु अथवा घटना के बाह्य और आंतरिक स्वरूप का शब्द चित्र अंकित किया जाता है। रेखा चित्र कहते हैं।

'रेखाचित्र' शब्द अंग्रेजी के 'स्केच' शब्द का अनुवाद है तथा दो शब्दों 'रेखा' और 'चित्र' के योग से बना है, इसमें शब्दों की कलात्मक रेखाओं के द्वारा किसी व्यक्ति, वस्तु अथवा घटना के बाह्य तथा आन्तरिक स्वरूप का शब्द-चित्र इस प्रकार प्रस्तुत किया जाता है कि पाठक के हृदय में उसका सजीव तथा यथार्थ चित्र अंकित हो जाता है रेखाचित्र में चित्रकला तथा साहित्य का सुन्दर सामंजस्य दिखाई पड़ता है। जिस प्रकार चित्रकार तूलिका तथा रंगों के माध्यम से किसी सजीव चित्र का निर्माण करता है उसी प्रकार रेखाचित्रकार शब्दों के द्वारा ऐसा भावपूर्ण चित्र करता है जो उसकी वास्तविक संवेदना को मूर्त रूप प्रदान करने में सफल होता है। रेखाचित्रकार शब्द-शिल्पी होता तथा चुने हुए शब्दों एवं विशिष्ट वाक्यों के द्वारा एक काल्पनिक, किन्तु सजीव चित्र प्रस्तुत करता है। इसमें लेखक की अनुभूति यथार्थ रूप से अभिव्यक्त होती है। सफल रेखाचित्रों की रचना के लिए सूक्ष्म पर्यवेक्षण, विचार-तत्त्व तथा भावना और कल्पना की आवश्यकता होती है। प्रस्तुत रेखाचित्र, कहानी तथा निबन्ध के बीच की विधा है; किन्तु तात्त्विक रूप में यह दोनों से भिन्न है और इसकी अपनी ही एक विशिष्ट कला है। निबन्ध तथा रेखाचित्र दोनों में कल्पना, अनुभूति, शब्द-व्यंजना, प्रतीक आदि का समावेश होता है; परन्तु इनका प्रयोग रेखाचित्रों में अधिक होता है। रेखाचित्र का आकार भी निबन्ध से प्रायः छोटा होता है। कुछ विद्वान पद्मसिंह शर्मा को रेखाचित्र का जनक मानते हैं, लेकिन स्वतन्त्र रूप से और रेखाचित्र' नाम से इसके श्रीगणेश का श्रेय श्रीराम शर्मा को है। महादेवी वर्मा, अमृतराय, प्रकाशचन्द्र गुप्त आदि ने भी अच्छे रेखाचित्रों का सृजन किया है।

 (vi) गद्य-काव्य gadya kavya-

Gaddhya kavya kise kahte hai

गद्य-काव्य गद्य तथा काव्य के बीच की विधा है। इसमें गद्य के माध्यम से किसी भावपूर्ण विषय की काव्यात्मक  अभिव्यक्ति होती है। इसका गद्य भी सामान्य गद्य से अधिक सरस, भावात्मक, अलंकृत, संवेदनात्मक तथा संगीतात्मक होता है। इसमें लेखक अपने हृदय की संवेदना की अभिव्यक्ति इस प्रकार करता है कि पाठक उसे पढ़कर रसमय हो जाता है। इसमें विचारों की अभिव्यक्ति की अपेक्षा भावों की सरस अभिव्यक्ति की ओर लेखक का अधिक ध्यान रहता है। यह निबन्ध की अपेक्षा संक्षिप्त, वैयक्तिक तथा एकतथ्यता लिये होता है। इसका ध्येय प्रायः निश्चित होता है तथा इसमें एक ही केन्द्रीय भाव की प्रधानता होती है। इसकी शैली प्राय: चमत्कारपूर्ण एवं कवित्वपूर्ण होती है तथा विचारों का समावेश भी भावों के ही रूप में होता है। रायकृष्णदास हिन्दी में गद्य-काव्य का श्रीगणेश करनेवाले कवि माने जाते हैं। 'साधना', 'छायापथ' और 'प्रवाल' इनकी लोकप्रिय गद्य काव्यात्मक रचनाएँ हैं। गद्य-काव्य के लेखकों में वियोगी हरि, रामवृक्ष बेनीपुरी, रामकुमार वर्मा, वृन्दावनलाल वर्मा तथा त्रिलोचन शास्त्री आदि के नाम उल्लेखनीय हैं।

 (vii) पत्र -साहित्य Patra sahitya-

Patra sahitya kaise kahte hai

पत्र -साहित्य किसे कहते हैं- रचनाशील व्यक्ति द्वारा लिखे गए पत्र जिनमें समग्र मानव समाज के हित की बात लिखी होती है, वे साहित्यिक दृष्टि से मूल्यवान हो जाते हैं, वही पत्र साहित्य की कोटि में आते हैं।

पत्रों के द्वारा किसी व्यक्ति से सम्बन्ध बनाकर किसी विषय पर जो लिपिबद्ध वार्त्तालाप प्रारम्भ किया जाता हैं। उसका सम्पूर्ण संकलित रूप 'पत्र साहित्य' कहलाता है। इसमें लेखक किसी व्यक्ति को पत्र लिखकर किसी विषय पर उसके विचारों को जानना चाहता है। उसका उत्तर प्राप्त होने पर वह उस उत्तर का विश्लेषण करता है और फिर पत्र लिखकर विभिन्न उत्पन्न शंकाओं का समाधान चाहता है। इस प्रकार एक बहस चल पड़ती है। इस बहस का रूप पत्रों में लिपिबद्ध होता जाता है और जब यह बहस पूर्ण हो जाती है तो दोनों ओर के पत्रों के उस संकलन को 'पत्र - साहित्य' कहा जाता है।

👉सर्वनाम की परिभाषा, भेद एवं उदाहरण

हिन्दी में पहला पत्र - साहित्य सन् 1904 ई० में प्रकाशित हुआ था। इसे महर्षि दयानन्द सरस्वती के शिष्य महात्मा मुंशीराम ने प्रकाशित करवाया था। यह ग्रन्थ महर्षि दयानन्द सरस्वती के पत्रों का संकलन है।

हिन्दी में अभी भी पत्र - साहित्य कम ही प्रकाशित हुए हैं। आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी ने पत्र - साहित्य की एक विशिष्ट पहचान बनाई। प्रेमचन्द, पद्मसिंह शर्मा और बनारसीदास चतुर्वेदी के कुछ पत्रों के संकलन प्रकाशित हुए हैं। रामविलास शर्मा का 'मित्र-संवाद' और नेमिचन्द जैन का 'पाया पत्र तुम्हारा' पत्र साहित्य की उल्लेखनीय कृतियाँ हैं। बालमुकुन्द गुप्त का 'शिवशम्भु का चिट्ठा' अपनी व्यंग्यपरक शैली के लिए विख्यात है। विश्वम्भरनाथ शर्मा 'कौशिक' ने भी 'दूबेजी' के नाम से 'चिट्ठा' लिखा।

(viii) रिपोर्ताज reportaaj-

Riportaj kise kahte h

रिपोर्ताज किसे कहते हैं - रिपोर्ताज फ्रांसीसी भाषा का शब्द है इसका अर्थ रोचक और भावात्मक है। यह कलात्मक साहित्यिक विधा है। आंखों देखी घटना पर ही रिपोर्ताज लिखा जा सकता है।

रिपोर्ताज मूलत: फ्रांसीसी शब्द है और अंग्रेजी के 'रिपोर्ट' शब्द का पर्यायवाची तथा साहित्यिक नाम है। रिपोर्ताज में किसी घटना का इस प्रकार वर्णन किया जाता है कि पाठक उससे प्रभावित हो जाता है। रिपोर्ताज के लेखक को अपने वर्ण्य विषय का पूर्ण ज्ञान होता है। वह इस प्रकार लिखता है कि वह जो कुछ लिख रहा है मानो उसका आंखों देखा ही हो। इसमें कुछ महत्त्वपूर्ण घटनाओं तथा पाठकों की विशिष्टताओं का निजी सूक्ष्म निरीक्षण के आधार पर मनोवैज्ञानिक विवेचन एवं विश्लेषण होता है।

रिपोर्ताज शैली विवरणात्मक तथा वर्णनात्मक होती है, जिसमें सरलता, रोचकता, आत्मीयता एवं प्रभावपूर्णता का विशेष महत्त्व होता है। इसमें लेखक प्रतिपाद्य विषय को सरसता तथा सरलता से पाठक का हृदयंगम कराने में सफल होता है। पत्रकारिता के गुणों से सम्पन्न रिपोतांज का लेखक इसमें अधिक सफल होता है। हिन्दी में इस विधा का सूत्रपात बंगाल के भयानक अकाल (1943 ई०) से माना जाता है। डॉ० रांगेय राघव स्वयं अकालग्रस्त बंगाल में गए और वहाँ से जो समाचार भेजे उन्होंने रिपोर्ताज का रूप धारण कर लिया। इनके ये रिपोर्ताज 'तूफानों के बीच' नाम से प्रकाशित हुए। कुछ विद्वान् डॉ० शिवदान सिंह चौहान विरचित 'लक्ष्मीपुरा' (1938 ई०) को हिन्दी का प्रथम रिपोर्ताज मानते हैं। बाद में विष्णु प्रभाकर, प्रकाशचन्द्र गुप्त, प्रभाकर माचवे आदि ने कुछ अच्छे रिपोर्ताज लिखे हैं। 

(ix) डायरी diary-

Dayri kise kahte hai

दैनिक जीवन में अनेक ऐसी घटनाएँ घटती रहती हैं, जो हमारे मन को प्रभावित करती हैं। कुछ घटनाएँ हमें हर्षमग्न करती हैं तो कुछ दुःखी; कुछ स्फूर्ति से भर देती हैं तो कुछ मन को खिन्न कर देती हैं। जब कोई व्यक्ति अपने मन पर पड़े इन प्रभावों को संक्षेप में लिखता है और उस पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करता है तो वह डायरी ही लिख रहा होता है। डायरी में दिनांक और स्थान का भी उल्लेख रहता है। इस प्रकार 'डायरी' वह विधा है, जिसमें लेखक अपने जीवन के महत्त्वपूर्ण प्रसंगों को प्रतिदिन अंकित करता है। हिन्दी में डायरी लेखन का प्रारम्भ लगभग सन् 1930 ई० के आस-पास माना जाता है। नरदेव शास्त्री वेदतीर्थ को प्रथम डायरी लेखक माना जाता है। इनकी डायरी 'नरदेव शास्त्री वेदतीर्थ की जेल डायरी' के प्रकाशन के साथ ही हिन्दी में डायरी लेखन कला का उदय हुआ था। हिन्दी में स्वतन्त्र रूप से डायरियाँ बहुत कम लिखी गई हैं। इस क्षेत्र में घनश्यामदास बिड़ला द्वारा लिखित 'डायरी के पन्ने', डॉ० धीरेन्द्र वर्मा द्वारा लिखित 'मेरी कॉलेज डायरी' तथा सुन्दरलाल त्रिपाठी द्वारा लिखित 'दैनन्दिनी' जैसी कुछ गिनी-चुनी रचनाएँ ही उपलब्ध हैं। नये लेखकों में लक्ष्मीकान्त वर्मा, नरेश मेहता, अजितकुमार, प्रभाकर माचवे आदि ने कलात्मक डायरियाँ लिखी हैं।

(x) भेंटवार्त्ता bhent varta

Bhetvarta kise kahte hai

व्यक्ति अपने जीवनकाल में अनेक महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों से मिला करता है। सामान्यतया महान् दार्शनिक, राजनीतिज्ञ, वैज्ञानिक, साहित्यकार, कलाकार, संगीतज्ञों आदि से जब भेंट की जाती है तो उनसे कुछ प्रश्न पूछे जाते हैं। तथा वे लोग अपने ज्ञान और विचारों के अनुसार उनके उत्तर देते हैं। जब इन प्रश्नों और उनके उत्तरों को व्यवस्थित ढंग से लिखा जाता है तो उसे 'भेटवार्ता' कहते हैं। 'भेंटवार्त्ता' वास्तविक भी होती है और काल्पनिक भी। 'भेंटवार्त्ता' में नाटकीयता आवश्यक है। सामान्यतः 'भेंटवार्त्ता' प्रश्नोत्तर शैली में लिखी जाती है। पत्रकारिता में भेंटवार्त्ता का महत्त्व दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। इसे 'साक्षात्कार' की भी संज्ञा दी जाती है। जिस व्यक्ति से भेंट की जाती है उसके स्वभाव, रुचि, कार्यकुशलता, बुद्धि तथा अपनी उत्सुकता आदि का उल्लेख करके उसके सम्पूर्ण व्यक्तित्व का अंकन इस विधा के अन्तर्गत ही किया जाता है।

हिंदी गद्य की विधाएं से महत्वपूर्ण प्रश्न- 

प्रश्न - गद्य किसे कहते हैं?

गद्य हमारी स्वाभाविक अभिव्यक्ति है। गद्य के माध्यम से ही हम अपने दैनिक जीवन में सभी कार्यों को संपन्न करते हैं। निजी जीवन पत्र, डायरी आदि साहित्य में कहानी, उपन्यास, निबंध, जीवनी आदि लेखन का माध्यम गद्य ही होता है। गद्य का क्रमिक विकास हिंदी के आधुनिक काल के आरंभ से हुआ।

प्रश्न -हिंदी गद्य कितने रूपों में उपलब्ध है?

हिंदी गद्य की अनेक विधाएं (रूप) हैं जो निम्नलिखित हैं- 

1-निबंध 

2-नाटक 

3-एकांकी

 4-उपन्यास 

5-कहानी

6- जीवनी

7- आत्मकथा

 8-संस्मरण 

9-रेखा चित्र 

10-रिपोर्ताज

 11-गद्य काव्य 

12-आलोचना 

13-यात्रा वृत्त

14- डायरी 

15-पत्र 

16-भेंटवार्ता

प्रश्न -नाटक किसे कहते हैं? नाटक के तत्व भी लिखिए।

रंगमंच पर प्रस्तुत करने के लिए किसी कथा को जब केवल पत्रों के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है , तो वह रचना नाटक कहलाती है नाटक में अभिनय का विशेष महत्व होता है।

प्रश्न -नाटक के निम्नलिखित 6 तत्व माने जाते हैं- 

1-कथावस्तु 

2-पात्र

3- कथोपकथन (संवाद )

4-देशकाल

 5- उद्देश्य

6- रंगमंचीयता

प्रश्न -हिंदी के प्रसिद्ध नाटककारों के नाम लिखिए।

भारतेंदु हरिश्चंद्र ,जयशंकर प्रसाद ,हरिकृष्ण 'प्रेमी 'उदय शंकर भट्ट ,सेठ गोविंद दास, रामकुमार वर्मा ,लक्ष्मी नारायण मिश्र, लक्ष्मी नारायण लाल ,उपेंद्र नाथ 'अश्क' विष्णु प्रभाकर ,जगदीश चंद्र माथुर ,धर्मवीर 'भारती 'आदि में नाटक विधा को आगे बढ़ाया।

प्रश्न -एकांकी किसे कहते हैं? एकांकी लेखकों के नाम लिखिए।

एकांकी दृश्य काव्य की एक विधा है ।एकांकी में 1 अंक होता है। यह अंक दृश्यों में विभाजित हो सकता है कम- से -कम समय में अधिक -से -अधिक प्रभाव एकांकी का लक्ष्य होता है दो एकांकी निम्न प्रकार है-

1-"दीपदान" -डॉ रामकुमार वर्मा

2-"बहू की विदा"- विनोद रस्तोगी

प्रश्न -एकांकी के कितने तत्व माने गए हैं-

एकांकी के तत्व निम्नलिखित हैं- 

1-कथावस्तु

2- कथोपकथन या संवाद 

3-पात्र या चरित्र -चित्रण

4- देशकाल - वातावरण 

5-भाषा - शैली

6- उद्देश्य

7- रंगमंचीयता

प्रश्न -उपन्यास किसे कहते हैं? उपन्यासकारों के नाम लिखिए।

उपन्यास कथा का वह रूप है जिसमें जीवन का विशद् चित्रण होता है। पात्रों के जीवन की विस्तृत झांकी प्रस्तुत कर उपन्यासकार एक और तो मानव चरित्र को व्यक्त करता है और दूसरी ओर अपने समय के प्रवृत्तियों का चित्रण करते हुए हमें कुछ सोचने पर विवश कर देता है।

प्रश्न -उपन्यासकारों के नाम लिखिए।

- प्रेमचंद ,जयशंकर प्रसाद ,यशपाल ,मन्नू भंडारी, जैनेंद्र प्रसिद्ध उपन्यासकार हैं।

प्रश्न -उपन्यास के कितने तत्व होते हैं- 

उपन्यास के 6 तत्व होते हैं-

1-कथावस्तु 

2-पात्र का चरित्र- चित्रण

3- संवाद

4- देशकाल -वातावरण 

5-भाषा- शैली 

6-उद्देश्य

प्रश्न -कहानी किसे कहते हैं ?प्रसिद्ध कहानीकारों के नाम लिखिए।

कहानी एक कलात्मक छोटी रचना। यह किसी घटना भाव संवेदना आज की मार्मिक व्यंजना करती है। का आरंभ और अंत बहुत कलात्मक तथा प्रभावपूर्ण होता है। घटनाएं परस्पर संबंध्द होती हैं। हर घटना लक्ष्य की ओर उन्मुख होती है। लक्ष्य पर पहुंचकर कहानी अपना विशिष्ट प्रभाव छोड़ती भी समाप्त हो जाती है।

प्रश्न -प्रसिद्ध कहानीकारों के नाम लिखिए।

मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, अज्ञेय ,जैनेंद्र ,भगवती चरण वर्मा, कमलेश्वर ,विष्णु प्रभाकर ,धर्मवीर 'भारती', मोहन राकेश, शैलेश मटियानी, भीष्म साहनी ,निर्मल वर्मा ,शिवानी आदि प्रसिद्ध कहानीकार हैं।

प्रश्न - कहानी के कौन-कौन से तत्व होते हैं-

कहानी के निम्नलिखित तत्व होते हैं-

1-कथावस्तु 

2-पात्र एवं चरित्र चित्रण

3- कथोपकथन या संवाद 

4-देशकाल व वातावरण

5- भाषा- शैली

6- उद्देश्य

प्रश्न -निबंध किसे कहते हैं इसके कितने प्रकार होते हैं?

निबंध और गद्य रचना को कहते हैं जिसमें सीमित आकार के भीतर किसी विषय का वर्णन या प्रतिपादन एक विशेष निजीपन ,स्वच्छंदता , सौष्ठव और सजीवता तथा आवश्यक संगति और संबद्धता के साथ किया गया हो।

प्रश्न -निबंध के निम्नलिखित प्रकार हैं लिखिए।

1-कथात्मक

2-वर्णनात्मक

3-विचारात्मक

4-भावात्मक

प्रश्न - दो निबंधकार एवं उनकी रचनाएं लिखिए। 

रामधारी सिंह दिनकर -( मिट्टी की ओर)

भगवती शरण सिंह -(मानव के मूल में)

प्रश्न -जीवनी की परिभाषा दीजिए।

किसी महापुरुष या प्रसिद्ध व्यक्ति के जीवन की घटनाओं, उनके कार्य-कलापों आदि का वर्णन आत्मीयता  के साथ वर्णन जिस गद्य विधा में किया जाता है उसे जीवनी कहते हैं।

प्रश्न -आत्मकथा की परिभाषा लिखिए।

-आत्मकथा में लेखक स्वयं अपनी जीवन- यात्रा पुरी आत्मीयता से व्यवस्थित रूप  में पाठक के सम्मुख रखता है। आत्मकथा कहलाती है।

प्रश्न - संस्मरण की परिभाषा लिखिए।

संस्मरण में लेखक अपने अनुभव की वस्तु, व्यक्ति अथवा घटना का विवरण अपनी स्मृति के आधार पर प्रस्तुत करता है। संस्मरण कहते हैं।

प्रश्न -रेखाचित्र किसे कहते हैं?

- रेखा चित्र में शब्दों की कलात्मक रेखाओं द्वारा किसी व्यक्ति, वस्तु अथवा घटना के बाह्य और आंतरिक स्वरूप का शब्द चित्र अंकित किया जाता है। रेखा चित्र कहते हैं।

प्रश्न -पत्र -साहित्य किसे कहते हैं?

 रचनाशील व्यक्ति द्वारा लिखे गए पत्र जिनमें समग्र मानव समाज के हित की बात लिखी होती है, वे साहित्यिक दृष्टि से मूल्यवान हो जाते हैं, वही पत्र साहित्य की कोटि में आते हैं।

प्रश्न - रिपोर्ताज किसे कहते हैं ? 

रिपोर्ताज फ्रांसीसी भाषा का शब्द है इसका अर्थ रोचक और भावात्मक है। यह कलात्मक साहित्यिक विधा है। आंखों देखी घटना पर ही रिपोर्ताज लिखा जा सकता है।

प्रश्न-डायरी किसे कहते हैं?

दैनिक जीवन में अनेक ऐसी घटनाएँ घटती रहती हैं, जो हमारे मन को प्रभावित करती हैं। कुछ घटनाएँ हमें हर्षमग्न करती हैं तो कुछ दुःखी; कुछ स्फूर्ति से भर देती हैं तो कुछ मन को खिन्न कर देती हैं। जब कोई व्यक्ति अपने मन पर पड़े इन प्रभावों को संक्षेप में लिखता है और उस पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करता है तो वह डायरी ही लिख रहा होता है। डायरी में दिनांक और स्थान का भी उल्लेख रहता है। इस प्रकार 'डायरी' वह विधा है, जिसमें लेखक अपने जीवन के महत्त्वपूर्ण प्रसंगों को प्रतिदिन अंकित करता है। हिन्दी में डायरी लेखन का प्रारम्भ लगभग सन् 1930 ई० के आस-पास माना जाता है।

प्रश्न- यात्रावृत किसे कहते हैं?

यात्रावृत्त वह विधा है जिसमें लेखक किसी विशेष स्थल की यात्रा का ऐसा सजीव वर्णन करता है कि पाठक पढ़कर ऐसा अनुभव करने लगे जैसे वह उसी स्थान के सारे दृश्य स्वयं देख रहा है।

प्रश्न- जीवनी और आत्मकथा में कोई चार अंतर लिखिए।

जीवनी और आत्मकथा में चार अंतर इस प्रकार है- 

1-जीवनी में लेखक किसी अन्य के जीवन वृत्त को प्रस्तुत करता है जब की आत्मकथा में लेखक स्वयं के जीवन वृत्त को प्रस्तुत करता है।

2-जीवनी प्राया महापुरुषों की लिखी जाती है जब की आत्मकथा कोई भी लिख सकता है।

3-जीवनी में तथ्यों तथा विवरण पर ध्यान रहता है जबकि आत्मकथा में अनुभूति की गहराई होती है।

4-जीवनी वर्णनात्मक शैली में लिखी जाती है जब की आत्मकथा कथात्ममक शैली में लिखी जाती है।

प्रश्न - नाटक एवं एकांकी में चार अंतर लिखिए।

क.म.

नाटक

एकांकी

1.

नाटक में अनेक अंक हो सकते हैं।

एकांकी में 1 अंकों होता है।

2.

नाटक में आधिकारिक के साथ सहायक और गौण कथाएं भी होती हैं।

एकांकी में एक ही कथा या घटना रहती है।

3.

कथानक की विकास प्रक्रिया धीमी रहती है।

कथानक आरंभ से ही चरम लक्ष्य की ओर द्रुत गति से बढ़ता है।

4.

नाटक के कथानक में फैलाव और विस्तार रहता है।


उदाहरण - 'आषाढ़ का एक दिन' (मोहन राकेश)

एकांकी के कथानक में घनत्व रहता है।

उदाहरण- 'अंधेर नगरी' (भारतेंदु हरिश्चंद्र)


* बहु-विकल्पीय प्रश्न-

1. निबन्ध रचना का प्रारम्भ माना जाता है 

(क) भारतेन्दु युग से,

(ख) शुक्ल युग से,

(ग) द्विवेदी युग से,

(घ) शुक्लोत्तर युग से।

2. प्रेमचंद किस गद्य विधा के सम्राट माने जाते हैं ?

(क) निबन्ध,

(ख) उपन्यास,

(ग) आत्मकथा।

(घ) नाटक,

3. किस पत्रिका के साथ कहानी का जन्म माना जाता है ?

(क) प्रदीप,

(ख) इन्दु,

(ग) सरस्वती,

(घ) प्रभा।

4. एकांकी में कितने अंक होते हैं ?

(क) चार,

(ख) तीन,

(ग) दो, 

(घ) एक,

5. हिन्दी की प्रथम कहानी मानी जाती है।

(क) इन्दुमती

(ख) ग्यारह वर्ष का समय

(ग) गुण्डा 

(घ) पूस की रात

6. हिन्दी में नाटक सम्राट किसे माना जाता है ?

(क) भारतेन्दु हरिश्चन्द्र,

(ख)जयशंकर प्रसाद

(ग) हरिकृष्ण प्रेमी,

(घ)उपेंद्र नाथ अश्क

7. 'सरस्वती' के प्रसिद्ध सम्पादक कौन रहे हैं ?

(क) भारतेन्दु हरिश्चन्द्र,

(ख) किशोरी लाल गोस्वामी

(ग) महावीरप्रसाद द्विवेदी,

(घ) आचार्य रामचंद्र शुक्ल

8. यदि गद्य कवियों की कसौटी है तो गद्य की कसौटी  है।

(क) निबन्ध,

(ख) उपन्यास

(ग) जीवनी,

(घ)कहानी

9. प्रसिद्ध कहानीकार हैं-

(क) महावीर प्रसाद द्विवेदी,

(ख)‌ प्रेमचंद्र,

(ग) रामविलास शर्मा,

(घ) हजारी प्रसाद द्विवेदी,

10. कहानी के तत्व होते हैं।

(क) आठ,

(ख) सात,

(ग) छ:

(घ) चार।

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गद्य क्या है गद्य की प्रमुख विधाएं लिखिए?

इसमें से पहला वर्ग प्रमुख विधाओं का है जिसमें नाटक, एकांकी, उपन्यास, कहानी, निबंध, और आलोचना को रखा जा सकता है। दूसरा वर्ग गौण या प्रकीर्ण गद्य विधाओं का है। इसके अंतर्गत जीवनी, आत्मकथा, यात्रावृत, गद्य काव्य, संस्मरण, रेखाचित्र, रिपोर्ताज, डायरी, भेंटवार्ता, पत्र साहित्य, आदि का उल्लेख किया जा सकता है।

गद्य क्या है 2 गदय की प्रमुख?

सामान्यत: मनुष्य की बोलने या लिखने पढ़ने की छंदरहित साधारण व्यवहार की भाषा को गद्य (prose) कहा जाता है। इसमें केवल आंशिक सत्य है क्योंकि इसमें गद्यकार के रचनात्मक बोध की अवहेलना है। साधारण व्यवहार की भाषा भी गद्य तभी कही जा सकती है जब यह व्यवस्थित और स्पष्ट हो।

गद्य क्या है लिखिए?

एक ऐसी रचना जो छंद, ताल, लय एवं तुकबंदी से मुक्त तथा विचारपूर्ण हो, उसे गद्य कहते हैं। गद्य शब्द गद् धातु के साथ यत प्रत्यय जोड़ने से बना है। गद का अर्थ होता है बोलना, बतलाना या कहना। सामान्यत: दैनिक जीवन में उपयोग होने वाली बोलचाल की भाषा में गद्य का ही प्रयोग किया जाता है।

गद्य कितने प्रकार के होते हैं?

गद्य प्रबन्ध के प्रकार / रामचन्द्र शुक्ल.
वर्णनात्मक प्रबन्ध.
विचारात्मक निबन्ध.
कथात्मक निबन्ध.
भावात्मक निबन्ध.

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