जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए छह असरदार तरीक़े
4 जून 2021
अपडेटेड 5 जून 2021
जलवायु परिवर्तन मानवता के सामने अब तक की सबसे बड़ी चुनौती है. ये हमारी ख़ुशकिस्मती है कि दुनिया भर में तेज़-तर्रार दिमाग़ वाले कई लोग इस समस्या के समाधान पर काम कर रहे हैं.
बीबीसी सिरीज़ 39 वेज टु सेव द प्लैनेट में हम यहाँ जलवायु परिवर्तन की समस्या के लिए छह सबसे बेहतरीन समाधानों के बारे में बताने जा रहे हैं.
लड़कियों को शिक्षित बनाना
दुनिया भर में लोगों के शैणक्षिक स्तर को सुधारने की बात पहले भी कही जाती रही है. हालांकि, लड़कियों की शिक्षा पर ध्यान देने से ना केवल सामाजिक और आर्थिक फ़ायदे होंगे बल्कि इससे जलवायु परिवर्तन से निपटने में भी मदद मिलेगी.
जब लड़कियाँ ज़्यादा समय के लिए स्कूलों में रहेंगी तो वे जल्दी माँ नहीं बनेंगी. अगर सभी लड़कियाँ अपनी स्कूली पढ़ाई पूरी करें तो साल 2050 तक जितनी आबादी होने का अनुमान है, उसकी तुलना में दुनिया में 84 करोड़ लोग कम होंगे.
ये सच है कि आबादी और जलवायु परिवर्तन की समस्या का संबंध विवादित रहा है. कई ग़रीब देशों में अमीर देशों की तुलना में कार्बन उत्सर्जन बेहद कम है. हालांकि, धरती के संसाधनों पर दबाव बढ़ता जा रहा है और ऐसे में आबादी की भूमिका अहम हो जाती है.
- दुनिया में गर्मी का रिकॉर्ड टूटने पर क्या कहती है ये नई रिपोर्ट
- शाकाहार या मांसाहार- जलवायु परिवर्तन रोकने के लिए क्या खाएं
इमेज स्रोत, Amelia Flower @ameliaflower
लड़कियों को शिक्षित करने का काम केवल जनसंख्या नियंत्रण तक सीमित नहीं है. नौकरियों, कारोबार और राजनीति में महिलाओं की हिस्सेदारी से पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा मिलेगा.
कई अध्ययन में ये कहा गया है कि महिलाएं अगर नेतृत्व करती हैं तो जलवायु परिवर्तन को लेकर ज़्यादा बेहतर तरीक़े से नीतियां बन सकती हैं.
लेकिन कैसे? महिला नेता पुरुषों की तुलना में वैज्ञानिक सुझावों को ज़्यादा अच्छे से सुनती हैं. कोरोना वायरस महामारी में भी ये बात साबित हुई है. आज की तारीख़ में, कई चैरिटीज़ शिक्षा के लिए बड़े स्तर पर फंडिंग मुहैया करा रही हैं और ये काम कर रहा है.
दुनिया भर में, स्कूलों में लड़कियों का अनुपात बढ़ रहा है. बांग्लादेश जैसे मुल्क में जहाँ 1980 के दशक में लड़कियों का माध्यमिक शिक्षा में नामांकन 30 फ़ीसदी था जो आज की तारीख़ में 70 फ़ीसदी हो गया है.
- मेन्यू से मीट हटा दें तो क्या होगा?
इमेज स्रोत, Amelia Flower @ameliaflower
बाँस: बड़े काम का
बाँस दुनिया भर में सबसे तेज़ी से बढ़ने वाला पौधा है. यह एक दिन में एक मीटर तक बढ़ सकता है और बाक़ी पेड़ों की तुलना में यह कार्बन भी ज़्यादा तेज़ी से खींचता है. इंजीनियर्ड बाँस तो इस्पात से भी ज़्यादा मज़बूत हो सकते हैं.
इन सारी क्षमताओं की बदौलत फर्नीचर और इमारतों के निर्माण में ये बेहद ख़ास हो जाता है. चीन में बाँस को ग़रीबों के लिए इमारती लकड़ी के रूप देखा जाता है लेकिन अब ये धारणा बदल रही है. बाँस के उत्पाद अब इस्पात, पीवीसी, एल्युमिनियम और कॉन्क्रीट के विकल्प बनकर सामने आए हैं.
बाँस के बढ़ने से पर्यावरण के लिए अन्य फ़ायदे भी हैं. यह कीटरोधी और मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने में भी सहायक साबित होता है. यह मिट्टी के कटाव को रोकने में भी अहम भूमिका निभाता है.
इमेज स्रोत, Rohan Dahotre @rohandahotre
आरिफ़ राबिक इंडोनेशिया में एन्वायरमेंटल बैंबू फाउंडेशन चलाते हैं. आरिफ़ भूमि को फिर से प्राकृतिक रूप से संपन्न बनाने पर काम कर रहे हैं. वे कार्बन को नियंत्रित करने के लिए एक हज़ार बाँस के गाँव बनाने पर भी काम कर रहे हैं.
इन गाँवों के आसपास क़रीब 20 वर्ग किलोमीटर में बाँस के जंगल और अन्य फसलें होंगी. इन जंगलों में जानवर भी होंगे. आरिफ़ इस आइडिया को नौ अन्य देशों में भी लागू करना चाहते हैं.
आरिफ़ कहते हैं, "इससे हमें हर साल वातावरण से एक अरब टन कार्बन डाइऑक्साइड हटाने में मदद मिलेगी."
बड़े प्रदूषकों से लड़ने में क़ानून का इस्तेमाल
पर्यावरण मामलों के वकील जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए क़ानून का सहारा ले रहे हैं. यहाँ तक कि क़ानून को मज़बूत हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है ताकि प्रदूषण फैलाने वाली कंपनियों और सरकारों के ख़िलाफ़ लड़ाई को मज़बूत किया जा सके.
हाल ही में नीदरलैंड्स में एक अदालत ने कहा कि तेल कंपनी कार्बन उत्सर्जन कम करने के लिए पैरिस समझौते से बंधी हुई है. इसे एक अहम केस माना जा रहा है.
- सीमेंट पर्यावरण के लिए कितना बड़ा ख़तरा
इमेज स्रोत, Rohan Dahotre @rohandahotre
कार्बन उत्सर्जन को रोकने के लिए केवल पर्यावरण क़ानून ही अहम हथियार नहीं हैं बल्कि क़ाबिल वकील इस मामले में रचनात्मक तरीक़ों का इस्तेमाल भी कर रहे हैं. ये मानवाधिकार क़ानून, रोज़गार क़ानून और यहाँ तक कि कंपनी क़ानून का भी जलवायु परिवर्तन से लड़ने में इस्तेमाल कर रहे हैं.
2020 में केवल 35 डॉलर के शेयर रखने वाले एक निवेशक ग्रुप ने पोलैंड में बने रहे एक कोल प्लांट को रोक दिया था. आख़िर ये कैसे हुआ था?
पर्यावरण समूह क्लाइंटअर्थ ने अपने शेयर का इस्तेमाल पोलिश एनर्जी कंपनी में किया और कॉर्पोरेट क़ानून का इस्तेमाल कर कोल पावर प्लांट बनाने के फ़ैसले को चुनौती दी. इसके बाद कोर्ट ने आदेश दिया कि नया कोल प्लांट अवैध है और इसका निर्माण नहीं हो सकता.
- इस ईंधन के चलते दुनिया में मिसाल बन सकता है ये द्वीप
इमेज स्रोत, Rohan Dahotre @rohandahotre
फ्रिज और एयरकंडिशनर्स का ख़तरा
सभी फ्रिज, फ़्रीज़र और एयर कंडिशनिंग यूनिट में केमिकल रेफ़्रिजरेंट्स होते हैं- जैसे हाइड्रोफ्लोरोकार्बन्स (HFCs). लेकिन इंसुलेटिंग पावर से फ़्रिज में HFCs फैब बनती है, जो कि पर्यावरण के लिए ख़तरनाक होती है.
HFCs ग्रीनहाउस गैस है, जो CO2 की तुलना में ज़्यादा ख़तरनाक है. 2017 में दुनिया भर के नेता इसे काबू में करने पर सहमत हुए थे. अगर ऐसा होता है तो वैश्विक तापमान को 0.5 डिग्री तक कम किया जा सकता है. लेकिन पहले से ही फ्रिज और एयर कंडिशनर्स की संख्या बहुत ज़्यादा है. ज़्यादातार उपकरणों के पुराने पड़ने पर उनमें से रेफ्रिजेरेंट का उत्सर्जन बढ़ जाता है. इसलिए इनकी रीसाइकलिंग बहुत ज़रूरी है.
सौभाग्य से दुनिया भर में विशेषज्ञों की टीम ख़तरनाक रेफ्रिजेरेंट गैस को नष्ट करने में लगी हुई है. ख़तरनाक गैसों से सुरक्षा को लेकर काम करने वाली कंपनी ट्रेडवाटर में मारिया गुटिरेज़ इंटरनेशनल प्रोग्राम्स की निदेशक हैं. यह कंपनी पुराने गोदामों को खंगालती है और इनके निस्तारण पर काम करती है. मारिया कहती हैं कि कई लोग उन्हें गोस्टबस्टर कहते हैं.
- गाय-भैंस क्यों हैं पर्यावरण के लिए ख़तरनाक
इमेज स्रोत, Dandy Doodlez @dandydoodlez
पोतों को और चिकना बनाना
पोत परिवहन वैश्विक अर्थव्यस्था के लिए बेहद अहम हैं. विश्व व्यापार का 90 फ़ीसदी कारोबार पोत परिवहन के ज़रिए होता है. सभी मानव निर्मित उत्सर्जन में पोत परिवहन का हिस्सा दो फ़ीसदी के आसपास है.
आने वाले दशकों में पोत परिवहन से उत्सर्जन का ग्राफ़ बढ़ सकता है. हम इन पोत परिवहनों पर बहुत ज़्यादा निर्भर हैं. समुद्र के रास्ते सामान लाने-ले जाने वाले जहाज़ों के साथ समुद्री जीव भी आ जाते हैं. इनमें बार्नेकल भी है और इसे बड़ी समस्या के तौर पर देखा जा रहा है.
पोतों में समुद्री जीवों की वजह से 25 फ़ीसदी डीज़ल की ख़पत बढ़ सकती है. इनसे हर साल 31 अरब डॉलर के ईंधन की खपत बढ़ रही है. बार्नेकल्स जहाज़ों के साथ चिपक कर आ जाते हैं और इन्हें निकालने के लिए ईंधन का इस्तेमाल करना पड़ता है.
इमेज स्रोत, Kingsley Nebechi @kingsleynebechi
इस वजह से भी कार्बन का उत्सर्जन बढ़ रहा है. बार्नेकल्स चिपक कर ना आएं इसलिए जहाज़ों के निचले हिस्से को स्लिपरी यानी चिकना बनाने के लिए ग्रीस के अलावा दूसरे विकल्पों पर विचार किया जा रहा है.
जहाज़ों के निचले हिस्से को फिसलन भरा बनाने के लिए यूवी पेंट से लेकर इलेक्ट्रिक क्लोरिनेशन तक विकल्पों के बारे में गंभीरता से सोचा जा रहा है.
वीडियो कैप्शन,
प्लास्टिक जिससे पर्यावरण को नुकसान नहीं होता
इमेज स्रोत, Kingsley Nebechi @kingsleynebechi
सुपर राइस
आपको पता है कि चावल के उत्पादन में कार्बन का उत्सर्जन बहुत ज़्यादा होता है? यहाँ तक कि एविएशन इंडस्ट्री और चावल के उत्पादन में कार्बन का उत्सर्जन लगभग बराबर है. ऐसा इसलिए है क्योंकि ज़्यादातर चावल पानी से भरे खेतों में उगाए जाते हैं.
पानी मिट्टी तक ऑक्सीजन को जाने से रोकता है. इस वजह से जीवाणुओं को मीथेन बनाने के लिए आदर्श स्थिति मिल जाती है. मीथेन एक तरह की गैस है, जो प्रति किलोग्राम कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में 25 गुना ज़्यादा वैश्विक तापमान बढ़ा सकती है.
इमेज स्रोत, Sarina Mantle @wildsuga
इस पर्यावरण संकट से निपटने के लिए वैज्ञानिक चावल क्रांति पर काम कर रहे हैं. वैज्ञानिक ऐसे चावल का उत्पादन चाहते हैं, जिन्हें सूखी ज़मीन पर उगाया जा सके.
अगर ऐसा होता है तो किसानों के लिए भी आसान होगा और मीथेन उत्सर्जन पर भी लगाम लगेगी. उम्मीद है कि एक दशक के भीतर ही ऐसे चावल की खोज हो जाएगी.