कुछ लोग स्त्री शिक्षा के विरोध में क्या तर्क देते हैं और क्यों? - kuchh log stree shiksha ke virodh mein kya tark dete hain aur kyon?

उत्तर: द्विवेदी जी ने पुराने जमाने के ऐसे कितने उदाहरण दिए हैं जिनमें पढ़ी लिखी स्त्रियों का उल्लेख हुआ है। इन उदाहरणों की मदद से वे इस कुतर्क को झुठलाना चाहते हैं कि पुराने जमाने में स्त्रियों को पढ़ाने की परंपरा नहीं थी। वे ये भी बताते हैं कि शायद पुराने जमाने में स्त्रियों को विधिवत शिक्षा देने की जरूरत नहीं पड़ी होगी। लेकिन जब हम जरूरत के हिसाब से हर पद्धति को बदल सकते हैं तो स्त्री शिक्षा के बारे में भी हमें अपनी मानसिकता बदलने की जरूरत है।

प्रश्न-2:स्त्रियों को पढ़ाने से अनर्थ होते हैं’ – कुतर्कवादियों की इस दलील का खंडन द्विवेदी जी ने कैसे किया है, अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर: दिववेदी जी नए बताया है कि पुरुषों ने स्त्रियों की तुलना में कहीं ज्यादा अनर्थ किए हैं। पुरुषों ने युद्ध में मार काट मचाई है, चोरी की है, डाका डाला है और अन्य कई अपराध किए हैं। इसलिए शिक्षा को अनर्थ के लिए दोष देना उचित नहीं है।

प्रश्न-3: द्विवेदी जी ने स्त्री शिक्षा विरोधी कुतर्कों का खंडन करने के लिए व्यंग्य का सहारा लिया है – जैसे ;यह सब पापी पढ़ने का अपराध है। न वे पढ़तीं, न वे पूजनीय पुरुषों का मुकाबला करतीं।‘ आप ऐसे अंशों को निबंध में से छाँटकर समझिए और लिखिए।

उत्तर:सारा दुराचार स्त्रियों को पढ़ाने का ही नतीजा है।‘ – इस व्यंग्य में उन्होंने उस मानसिकता पर प्रहार किया है जो हर गलत घटना के लिए स्त्रियों की शिक्षा को जिम्मेदार ठहराता है।स्त्रियों के लिए पढ़ना कालकूट और पुरुषों के लिए पीयूष का घूँट ।‘ – इस पंक्ति के द्वारा द्विवेदी जी स्त्री शिक्षा के विरोधियों की दोहरी मानसिकता के बारे में बता रहे हैं।

प्रश्न-4: पुराने समय में स्त्रियों द्वारा प्राकृत भाषा में बोलना क्या उनके अपढ़ होने का सबूत है – पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: पुराने जमाने में कई ग्रंथ प्राकृत में लिखे गये थे। उदाहरण के लिए बुद्ध के उपदेशों को प्राकृत में लिखा गया था। शाक्यमुनि अपने उपदेश प्राकृत में ही देते थे। इससे यह पता चलता है कि प्राकृत भाषा उस समय अत्यधिक लोगों द्वारा बोली जाती थी। इसके अलावा हमें एक खास भाषा पर महारत को शिक्षा के मुद्दे से अलग करके देखना होगा। आधुनिक भारत में अंग्रेजी बोलने में पारंगत लोगों को अधिक संभ्रांत समझा जाता है। इसका ये मतलब नहीं है कि जो व्यक्ति अंग्रेजी बोलना नहीं जानता उसे हम अशिक्षित करार दे दें।

प्रश्न-5: परंपरा के उन्हीं पक्षों को स्वीकार किया जाना चाहिए जो स्त्री पुरुष समानता को बढ़ाते हों – तर्क सहित उत्तर दीजिए।

उत्तर: परंपराएँ कभी-कभी रूढ़ि बन जाती हैं। जब ऐसी स्थिति हो जाए तो किसी खास परंपरा को तोड़ना ही सबके हित में होता है। समय बदलने के साथ पुरानी परंपराएँ टूटती हैं और नई परंपराओं का निर्माण होता है। इसलिए परंपरा के उन्हीं पक्षों को स्वीकार करना चाहिए जो स्त्री पुरुष समानता को बढ़ाते हैं।

प्रश्न-6: तब की शिक्षा प्रणाली और अब की शिक्षा प्रणाली में क्या अंतर है? स्पष्ट करें।

उत्तर: अंग्रेजों के आने से पहले तक भारत में शिक्षा की कोई नियमबद्ध प्रणाली नहीं थी। वेदों और पुराणों के जमाने में ऋषि मुनि गुरुकुलों में शिक्षा दिया करते थे। ऐसे गुरुकुलों में छात्रों को गृहस्थ जीवन के लिए हर जरूरी क्रियाकलाप में दक्षता हासिल करनी होती थी। इसके अलावा उन्हें एक अच्छे योद्धा बनने का प्रशिक्षण भी दिया जाता था। आज की शिक्षा प्रणाली अधिक परिष्कृत और नियमबद्ध है। आज नाना प्रकार के विषयों के ज्ञान दिए जाते हैं। पहले स्त्रियों की शिक्षा के लिए कोई औपचारिक व्यवस्था नहीं थी लेकिन अब ऐसी बात नहीं है।

प्रश्न-7: महावीर प्रसाद द्विवेदी का निबंध उनकी दूरगामी और खुली सोच का परिचायक है, कैसे?

उत्तर: महावीर प्रसाद द्विवेदी जिस जमाने के हैं उससे यह साफ पता चलता है कि उनकी सोच कितनी आधुनिक थी। उस जमाने में अधिकाँश लोग स्त्रियों की शिक्षा के खिलाफ थे। ऐसे में कोई स्त्री-पुरुष समानता की बात करे तो इसे दुस्साहस ही कहेंगे। महावीर प्रसाद का खुलापन इसी बात में झलता है।

प्रश्न-8: द्विवेदी जी की भाषा शैली पर एक अनुच्छेद लिखिए।

उत्तर: महावीर\ प्रसाद द्विवेदी ने खड़ी हिंदी के प्रयोग को बढ़ावा दिया। उन्होंने भाषा को और शुद्ध तथा परिष्कृत किया। लेकिन उनकी भाषा पाठकों के लिए दुरूह न हो जाए इसका भी ध्यान दिया। उन्होंने अपनी भाषा में सरलता भी लाने की कोशिश की थी। इसके अलावा व्यंग्य का उन्होंने जमकर इस्तेमाल किया है। व्यंग्य के इस्तेमाल से दो फायदे होते हैं। लेखक इससे पाठक को बाँधने में कामयाब हो जाता है। व्यंग्य के माध्यम से गंभीर से गंभीर बात भी आसानी से कही जा सकती है।

परीक्षा उपयोगी अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न-उत्तर:-

प्रश्न-1: स्त्री शिक्षा के विरोधी लोगों के क्या तर्क हैं? पाठ के आधार पर उत्तर दीजिए।

उत्तर: प्रस्तुत पाठ में स्त्री शिक्षा विरोधी लोगों ने स्त्री शिक्षा के विरोध में निम्नलिखित तर्क दिए हैं-

(1)स्त्री शिक्षा की आवश्यकता प्राचीन काल में नहीं थी, इसलिए प्राचीन काल के पुराणों व इतिहास में स्त्री शिक्षा की किसी भी प्रणाली के प्रमाण नहीं मिलते। इसलिए स्त्री शिक्षा की आज भी आवश्यकता नहीं है।

(2) स्त्री शिक्षा के विरोधियों का यह भी तर्क है कि स्त्री शिक्षा से अनर्थ होते हैं। शकुंतला ने दुष्यंत को जो कुवाक्य कहे वह स्त्री शिक्षा के अनर्थ का परिणाम है।

(3) संस्कृत के नाटकों में स्त्री पात्रों के मुख से प्राकृत भाषा बुलाई गई है। उस समय को प्राकृत को गंवार भाषा समझा जाता था। इससे पता चलता है कि उन्हें संस्कृत का ज्ञान नहीं था। वे गंवार और अनपढ़ थी। उनकी दृष्टि में तो गंवार भाषा के ज्ञान से भी अनर्थ हुआ।

प्रश्न-2:  पुरातन पंथी लोगों ने शकुंतला पर जो आरोप लगाए क्या आप उनसे सहमत हैं?

उत्तर: पुरातन पंथी लोगों ने शकुंतला पर आरोप लगाया है कि उसने अशिक्षा के कारण ही राजा दुष्यंत को कुवाक्य कहे। यदि वह शिक्षित होती तो ऐसा अनर्थ ना करती। हम पुरातन पंथियों के इस आरोप से सहमत नहीं हैं। यहां प्रश्न शिक्षा का नहीं है। यह प्रश्न है कि दुष्यंत ने शकुंतला से गंधर्व विवाह किया और जब वह उनसे मिलने आई तो उसने उसे पहचानने से ही इनकार कर दिया। ऐसी स्थिति में तो कोई भी कुवाक्य ही कहेगा। यहां शकुंतला की शिक्षा को दोष देना उचित नहीं है।

प्रश्न-3: संस्कृत और प्राकृत के संबंध पर प्रकाश डालिए?

उत्तर: संस्कृत प्राचीन एवं शुद्ध साहित्यिक भाषा है। इस भाषा को जानने वाले बहुत कम लोग थे। उस समय संस्कृत के साथ-साथ कुछ प्राकृत भाषाएं भी प्रचलित थी। यह सभी भाषाएं संस्कृत से

ही निकली हुई जन भाषाएं थी। मागधी, महाराष्ट्री, पाली, शौरसेनी आदि अपने समय की लोक भाषा ही थी। इन्हें प्राकृत भाषायें भी कहा जाता है। बौद्ध और जैन साहित्य इन्हीं भाषाओं में रचित साहित्य है। अतः प्राकृत भाषा गंवार या अनपढ़ों की भाषा नहीं है।

प्रश्न-4: संस्कृत में स्त्री पात्रों द्वारा संस्कृत न बोलना उनकी अनपढ़ता का प्रमाण है। पाठ के आधार पर उत्तर दीजिए।

उत्तर: संस्कृत के नाटकों में नारी पात्र संस्कृत की अपेक्षा प्राकृत बोलने का कारण यह है कि उस समय प्राकृत लोक भाषा या जन भाषा थी। किंतु लेखक इन पुरातन पंथियों के स्त्री शिक्षा विरोधी तर्कों को उचित नहीं समझता। उनके अनुसार प्राकृत बोलना अनपढ़ता का सबूत नहीं है। उस समय आम बोलचाल में प्राकृत भाषा का ही प्रयोग किया जाता था। संस्कृत भाषा का प्रचलन तो कुछ ही लोगों तक सीमित था। अतः यही कारण रहा होगा कि नाट्य शास्त्रियों ने नाट्य शास्त्र संबंधी नियम बनाते समय इस बात का ध्यान रखा होगा। क्योंकि संस्कृत को कुछ ही लोग बोल सकते थे इसलिए कुछ पात्रों को छोड़कर अन्य पात्रों से प्राकृत बुलवाने का नियम बनाया जाए। इस प्रकार स्त्री पात्रों द्वारा संस्कृत में बोलने के कारण उन्हें अनपढ़ नहीं समझना चाहिए। फिर प्राकृत में भी तो महान साहित्य रचना का निर्माण हुआ है।

प्रश्न-5: प्राचीन काल में प्राकृत भाषा का चलन था। पाठ के आधार पर इस कथन की पुष्टि कीजिए।

उत्तर: स्त्री शिक्षा विरोधियों ने प्राकृत भाषा को अनपढ़ एवं गवार लोगों की भाषा बताया है। किंतु लेखक ने प्राकृत भाषा को जनसाधारण की भाषा बताया है। उस समय की पढ़ाई लिखाई भी प्राकृत भाषा में होती थी। प्राकृत भाषा के प्रचलन का प्रमाण बौद्ध और जैन ग्रंथों में मिलता है। दोनों धर्मों के हजारों प्राकृत भाषा में रचित हैं। महात्मा बुध के अपने संदेश भी प्राकृत भाषा में दिए गए हैं। बौद्ध धर्म का महान ग्रंथ 'त्रिपिटक' प्राकृत भाषा में है। ऐसे महान ग्रंथों का प्राकृत मे लिखे जाने का कारण यही था कि उस समय जन भाषा प्राकृत ही थी। अतः प्राकृत अनपढ़ों की भाषा नहीं थी।

प्रश्न-6: लेखक के अनुसार आज के युग में स्त्रियों के शिक्षित होने की आवश्यकता प्राचीन काल की अपेक्षा अधिक क्यों है? तर्कपूर्ण उत्तर दीजिए।

उत्तर: यदि स्त्री शिक्षा विरोधियों की बात मान भी ली जाए कि प्राचीन काल में स्त्रियों को प्रशिक्षित करने का प्रचलन नहीं था, तो उस समय स्त्रियों को शिक्षा की अधिक आवश्यकता नहीं होगी। किंतु आज के युग में नारी शिक्षा की आवश्यकता एवं महत्व दोनों ही अधिक है। आज का युग भौतिकवादी और प्रतियोगिता का युग है। इस युग में अनपढ़ता देश और समाज के विकास में बाधा ही नहीं अपितु देश व समाज के लिए कलंक भी है। नारी का शिक्षित होना तो इसलिए अति आवश्यक है कि जिस परिवार में नारी शिक्षित होगी उस परिवार के बच्चों की शिक्षा व्यवस्था अच्छी हो सकेगी। शिक्षित नारी ही बच्चों का अच्छे बुरे की पहचान करने का ज्ञान देकर उन्हें अच्छे नागरिक बना सकेगी। शिक्षित नारी नौकरी करके या अन्य कार्य करके धन कमाकर परिवार के आर्थिक विकास में सहायता कर सकती है। इसलिए लेखक ने प्राचीन काल की अपेक्षा आधुनिक युग में स्त्री शिक्षा की अधिक आवश्यकता बताई है।

प्रश्न-7: प्राचीन ग्रंथों में स्त्रियों के लिए किस-किस शिक्षा का विधान किया गया था?

उत्तर: प्राचीन ग्रंथों में कुछ ऐसे भी प्रमाण मिलते हैं जिससे पता चलता है कि कुंवारियों के लिए विभिन्न प्रकार की शिक्षा का प्रबंध था, जैसे चित्र बनाना, नाचने, गाने, बजाने, फूल चुनने और हार गूंथने आदि । लेखक का मानना है कि उन्हें पढ़ने लिखने की शिक्षा भी निश्चित रूप से दी जाती होगी।

प्रश्न-8: "स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन" नामक पाठ का उद्देश्य अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर: इस पाठ का मुख्य उद्देश्य स्त्री शिक्षा के विरोधी लोगों के कुतर्कों का जोरदार शब्दों में खंडन करना है। लेखक ने अनेक प्रमाण प्रस्तुत करके सिद्ध करने का सफल प्रयास किया है कि प्राचीन काल में भी स्त्री शिक्षा की व्यवस्था थी और अनेक शिक्षित स्त्रियों के नाम उल्लेख भी किए गए हैं। जैसे गार्गी, अत्री-पत्नी, विश्ववरा, मंडन मिश्र की पत्नी आदि अनेक स्त्रियाँ हुई है। आज के युग में स्त्री शिक्षा नितांत आवश्यक है। शिक्षा कभी किसी का अनर्थ नहीं करती। यदि स्त्री शिक्षा में कुछ संशोधनों की आवश्यकता पड़े तो कर लेनी चाहिए। किंतु स्त्री-शिक्षा का विरोध करना कदाचित उचित नहीं है। 

स्त्री शिक्षा के विरोधी क्या कुर्ता देते हैं?

प्रश्न 3: द्विवेदी जी ने स्त्री शिक्षा विरोधी कुतर्कों का खंडन करने के लिए व्यंग्य का सहारा लिया है – जैसे ;यह सब पापी पढ़ने का अपराध है। न वे पढ़तीं, न वे पूजनीय पुरुषों का मुकाबला करतीं। ' आप ऐसे अंशों को निबंध में से छाँटकर समझिए और लिखिए। उत्तर: 'सारा दुराचार स्त्रियों को पढ़ाने का ही नतीजा है।

कुछ पुरातन पंथी लोग स्त्रियों की शिक्षा के विरोधी क्यों थे ?`?

प्राचीन युग में अनेक पदों की रचना भी स्त्री ने की है। यदि गृह कलह स्त्रियों की शिक्षा का ही परिणाम है तो मर्दों की शिक्षा पर भी प्रतिबंध लगाना चाहिए। क्योंकि चोरी, डकैती, रिश्वत लेना, हत्या जैसे दंडनीय अपराध भी मर्दों की शिक्षा का ही परिणाम है। जो लोग यह कहते हैं कि पुराने ज़माने में स्त्रियाँ नहीं पढ़ती थीं।

स्त्री शिक्षा का महत्व क्यों है?

स्वरूप और महत्व अगर महिलाएँ शिक्षित हों तो वे अपने घरों की सभी समस्याओं का समाधान कर सकती हैं। स्त्री शिक्षा राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय विकास में मदद करता है। आर्थिक विकास और एक राष्ट्र के सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि में मदद करता है। महिला शिक्षा एक अच्छे समाज के निर्माण में मदद करती है।

स्त्री शिक्षा का समाज पर क्या प्रभाव पड़ता है?

स्त्रियों की भागीदारी से देश का आर्थिक विकास और सकल घरेलू उत्पादन बढ़ जाता है। स्त्री की शिक्षा गरीबी पर नियंत्रण करने का एक प्रभावी उपाय है। इसके साथ ही घरेलू हिंसा व सामाजिक अत्याचार का शिकार होने वाली स्त्री यदि शिक्षित होगी, तो वह इस तरह की घटनाओं पर अपनी सक्षमता से नियंत्रण पा सकेगी।

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