ईश्वर चंद्र विद्यासागर (Ishwar Chandra Vidyasagar) ने बंगाल में महिला शिक्षा के लिए अभूतपूर्व योगदान दिया. (तस्वीर: Wikimedia Commons)
Ishwar Chandra Vidyasagar एक समाज सुधारक और बड़े शिक्षक (Educationist) थे उन्होंने महिला (Women) सशक्तिकरण से लेकर शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए अभूतपूर्व योगदान दिया था.
- News18Hindi
- Last Updated : September 26, 2021, 07:10 IST
कहा जाता है कि शिक्षक में समाज को बदल देने की क्षमता होती है. भारत में ईश्वर चंद्र विद्यासागर (, Ishwar Chandra Vidyasagar) एक बड़ी मिसाल हैं जिन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में भारत में महिला शिक्षा, विधवा विवाह कानून बनवाने जैसे कई ऐसे काम किए जिसके लिए उन्हें बंगाल में आज भी याद किया जाता है. वे19वीं सदी के महान दार्शनिक, बहुविद, शिक्षाविद, समाज सुधारक और लेखक थे जो आज भी प्रेरणा स्वरूप में याद किए जाते हैं. उनका योगदान इतना अहम और व्यापक है कि वे आज भी केवल बंगाल ही नहीं बल्कि पूरे देश के लिए प्रासंगिक हैं. 26 सिंतबर को देश उनका जन्मदिवस मना रहा है.
विद्यासागर का जन्म बंगाल के मेदिनीपुर जिले में 26 सितंबर,1820 को एक ब्राह्मण परिवार हुआ था. नौ साल की उम्र में ही वे पिता के साथ कलकत्ता आ गए थे. परिवार में आर्थिक तंगी की वजह से उन्होंने अपनी पढ़ाई स्ट्रीट लाइट के नीचे बैठकर की. लेकिन ये बाधाएं मेधावी ईश्वचंद्र की शिक्षा को रोक नहीं सकी.
ईश्वरचंद्र से विद्यासागर
उनका बचपन का नाम ईश्वरचंद्र बन्दोपाध्याय था, लेकिन संस्कृत और दर्शन में उनके विशारद होने के कारण उन्हें छात्र जीवन में ही विद्यासागर कहा जाने लगा. उन्होंने 19 साल की उम्र में कानून की शिक्षा पूरी की और 21 साल की उम्र में ही उन्होंने फोर्ट लयम कॉलेज में संस्कृत विभाग के प्रमुख के तौर पर काम शुरू किया. इसके बाद वे कलकत्ता के संस्कृत कॉलेज में संस्कृत के प्रोफेसर बने और बाद में उसी कॉलेज के प्रिंसिपल भी बन गए.
बांग्ला भाषा
के लिए योगदान
विद्यासागर को बांग्ला भाषा के गद्य का पिता कहा जाता है. उनकी ‘वर्ण परिचय’ पुस्तक 160 सालों से आज भी बंगाली बच्चों के लिए पहली पुस्तक के रूप में पहचानी जाती है. उन्होंने बांग्ला वर्णमाला के अक्षरों को सरलतम रूप दिया. बांग्ला गद्य को आधुनिक रूप देकर बांग्ला शिक्षा का प्रचार प्रसार किया.
एक बड़े अनुवादक भी
विद्यासागर ने बहुत सी संस्कृत पुस्तकों का बांग्ला अनुवाद किया जिसमें कालिदास की शकुंतला का अनुवाद प्रमुख रूप से याद किया जाता है. विधवाओं पर अत्याचारों पर उन्हों ने दो पुस्तकें लिखीं. वे कन्या शिक्षा के लिए बड़े पैरोकार थे और उन्होंने करीब 25 स्कूलों की स्थापना की.
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ईश्वर को मानते थे या नहीं
कहा जाता है कि वे ईश्वर को नहीं मानते थे, लेकिन फिर भी उन्होंने लोगों के लिए बहुत कुछ किया. लेकिन जिस तरह से संस्कृत पढ़ाया करते थ, उन्होंने संस्कृत साहित्य का अनुवाद किया था और शास्त्रीय प्रमाणों से विधवा विवाह को वैध प्रमाणित किया था, यह मानना मुश्किल है कि वे नास्तिक थे. लेकिन यह भी सच है कि वे आधुनिक शिक्षा के समर्थक और हिंदू धर्म के कर्मकांडों, परंपराओं और कुरीतियों के पक्के विरोधी थे.
विधवा विवाह के लिए
विद्यासागर ने जब विधवाओं के लिए आवाज उठानी शुरू की तो उन्हें कट्टरपंथियों का विरोध सहना पड़ा विधवा विवाह को वैध प्रमाणित करने के लिए उन्होंने शास्त्रों की छानबीन की और वे पराशर संहिता से तर्क निकालने में सफल हुए जिसके मुताबिक ‘विधवा विवाह धर्मसम्मत था.’ उन्हीं के प्रयासों से ही 1856 में विधवा-पुनर्विवाह कानून पारित हुआ.
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विधवाओं के प्रति उनके मन में भारी सहानुभूति थी. लड़कियों की शिक्षा के लिए उनके प्रयास विशेष थे और उन्होंने बाल विवाह तक का विरोध किया. विधवा-पुनर्विवाह कानून होने के बाद भी जब लोगों में इसके प्रति गंभीरता नहीं दिखी तो पहले अपने दोस्त की शादी 10 साल की विधवा से कराई और फिर अपने बेटे का विवाह भी विधवा से कराया.
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Tags: History, India, Research
FIRST PUBLISHED : September 26, 2021, 07:10 IST