क्रिस्टल क्षेत्र सिद्धांत उदाहरण सहित समझाइए - kristal kshetr siddhaant udaaharan sahit samajhaie

प्रश्न 14 : अष्टफलकीय संकुलों में क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन की विवेचना कीजिए और इसकी तुलना चतुष्फलकीय संकुलों के क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन के साथ कीजिए।

उत्तर–अष्टफलकीय संकुलों में क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन– जब कोई अष्टफलकीय संकुल बन रहा होता है तो 6 लिगेण्ड एक अष्टफलक के कोनों की ओर से अर्थात् x, y व z अक्षों की ओर से केन्द्रीय धातु की ओर पहुँचते हैं।


चित्र : एक अष्टफलक के कोनों की x, y व z अक्ष में स्थिति

इस प्रकार जब अष्टफलकीय आकार में छः लिगेण्ड केन्द्रीय धातु परमाणु की ओर पहुँचते हैं तो समस्त d-कक्षकों की ऊर्जा के मान में वृद्धि हो जाती है लेकिन dx2—y2 व dz2 कक्षक जो कि x, y, z अक्षों की ओर अभिविन्यासित होते हैं तथा लिगेण्ड व अक्षों की दिशा में पड़ने के कारण अधिक प्रतिकर्षित होकर उच्च ऊर्जा स्तर में चले जाते हैं तथा शेष तीन कक्षकों (dxy, dyz, dxz) जो x,y व z अक्ष रेखाओं के मधय की ओर विन्यासित होते हैं कम प्रतिकर्षित होते हैं एवं निम्न ऊर्जा के कक्षकों में चले जाते हैं। इस प्रकार d-कक्षकों के विपाटन से प्राप्त उच्च ऊर्जा के कक्षकों [dx2—y2, dz2] को eg कक्षक कहते हैं।

जबकि निम्न ऊर्जा के कक्षक (dxy, dyz, dxz) t2g कक्षक कहलाते हैं।


इन दोनों प्रकार के 4-कक्षकों की ऊर्जा को अन्तर Δ0 या (10 Dq) द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। यहाँ eg कक्षक की ऊर्जा औसत कर्जा स्तर +0.6Δ0 ऊपर होती है जबकि t2g कक्षक की औसत ऊर्जा स्तर से -0.4Δ0 नीचे होती है।

चतुष्फलकीय तथा अष्टफलकीय क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन की तुलना—

(1) चतुष्फलकीय क्षेत्र में हुए क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन के Δt का मान अष्टफलकीय क्षेत्र में हुए क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन के Δ0 के मान की तुलना में बहुत कम होता है क्योंकि-

(i) एक अष्टफलकीय क्षेत्र में 6 लिगेण्ड धातु की ओर पहुँचते हैं जबकि एक चतुष्फलकीय क्षेत्र में केवल चार ही लिगेण्ड केन्द्रीय धातु पर पहुचेंगे। अतः अष्टफलीकय क्षेत्र की तुलना में चतुष्फलकीय क्षेत्र का विभाजन 4/6 = 2/3 ही होगा।

(ii) अष्टफलकीय लिगेण्ड क्षेत्र में लिगेण्ड eg कक्षकों के एकदम सीध में पहुँचते हैं जिससे प्रतिकर्षण अधिक होता हैं, जिससे क्रिस्टल विपाटन भी अधिक होगा। इसके विपरीत, चतुष्फलकीय क्षेत्र में लिगेण्ड किसी भी कक्षक के एकदम सीध में नहीं होते हैं फलतः प्रतिकर्षण कम होता है और इस कारक की वजह से भी क्रिस्टल फील्ड विपाटन 2/3 रह जाता है। अतः कुल मिलाकर अष्टफलकीय लिगेण्ड क्षेत्र विपाटन Δ0 की तुलना में चतुष्फलकीय लिगेण्ड क्षेत्र विपाटन Δt का मान लगभग 4/9 हो जाता है।


इसे निम्न चित्र द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है

चित्र : Δ0 व Δt में सम्बन्ध
(2) अष्टफलकीय संकुल के बनते समय यदि लिगेण्ड दुर्बल होता है तो Δ0 का मान कम होता है और लिगेण्ड के प्रबल होने की स्थिति में Δ0 को मान उच्च होता है जिससे eg व t2g कक्षकों के मध्य ऊर्जा का अन्तर अधिक हो जाता है और e— युग्मित होकर निम्न चक्रण वाले संकुल बनाते हैं। इसके विपरीत, चतुष्फलकीय संकुल के बनने से A का मान सदैव कम होता है अतः e— के युग्मन की संभावना नगण्य हो जाती है और इस कारण से चतुष्फलकीय संकुल उच्च चक्रण वाले होते हैं।

कोई भी धातु आयन चतुष्फलकीय संकुलों में अष्टफलकीय संकुल बनाने के लिए अधिक वरीयता देता है-

(i) चार बन्धों की तुलना में 6 बन्ध बनने में अधिक ऊर्जा मुक्त होती है, अतः अष्टफलकीय संकुल स्थायी होते हैं।

(ii) चतुष्फलकीय क्षेत्र की तुलना में अष्टफलकीय क्षेत्र के लिए CFSE का मान अधिक होता है।

एच० बैथे (H. Bethe, 1929) तथा वी०व्लैक (Van Vleck) द्वारा 1932 ई० में उपसहसंयोजक यौगिकों के गुणों को स्पष्ट करने हेतु एक सिद्धान्त प्रस्तुत किया गया था, जिसे क्रिस्टल क्षेत्र सिद्धान्त (CFT) कहा गया, जो 1950 में लागू हुआ। इस सिद्धान्त के मुख्य विन्दु निम्नवत् हैं – 

1. संक्रमण धातु संकुल के केन्द्रीय आयन का कार्य करती हैं। लिगण्ड एकाकी इलेक्ट्रॉन युग्म प्रदान करता है, जबकि संक्रमण धातु आयन के रिक्त कक्षक इन इलेक्ट्रॉन युग्म को ग्रहण करते हैं। 

2. लिगेण्ड (ऋणात्मक/द्विध्रुवी) बिन्दु आवेश की तरह माने जाते हैं। 

3. संकुल यौगिकों में धातु आयन व लिगेण्ड के मध्य बनने वाले आबन्ध को पूर्णतया आयनिक माना जाता , है, अर्थात धातु आयन व लिगेण्ड परस्पर स्थित विद्युत आकर्षण बल द्वारा जुड़े रहते हैं।

4. यह स्थिर विद्युत आकर्षण बल धनायन व ऋणायन के मध्य आयन-आयन आकर्षण बल हो सकता है या धनायन व उदासीन लिगेण्ड के मध्य आयन-द्विध्रुव आकर्षण बल हो सकता है।

अष्टफलकीय संकुल यौगिकों में 4-कक्षकों को विपाटन 

एक मुक्त धातु आयन में सभी पाँच कक्षक (t2g और eg) अपभ्रंश होते हैं, अर्थात् उनकी ऊर्जा समान होती है। एक अष्टफलकीय संकर [ML6]n+ पर विचार करें जिसमें धातु आयन Mn+ अष्ट्रफलक के केन्द्र पर है तथा कोनों पर एकदन्ती लिगेण्ड (L) द्वारा घिरा हुआ है।

जब x,y और z अक्ष पर समस्त छ: लिगेण्ड धातु आयन की ओर अग्रसर होते हैं, तब लिगेण्ड के ऋण छोर (इलेक्ट्रॉन द्वारा) d-कक्षकों में उपस्थित इलेक्ट्रॉनों से प्रतिकर्षित होते हैं। इस प्रतिकर्षण द्वारा पाँचों d-कक्षकों की ऊर्जाओं में परिवर्तन होता है। 

चूंकि eg, कक्षकों (dx2– y2 और dz2) की पालियाँ केन्द्रीय धातु आयन के समीप जाने वाले लिगेण्ड के मार्ग में आती हैं,

अत: t2g कक्षकों (dxy, dyz, dzx) की अपेक्षा इनमें इलेक्ट्रॉनों का प्रतिकर्षण अधिक होता है। इस कारण पाँच d-कक्षक दो ऊर्जा समूहों में विभक्त हो जाते हैं, अर्थात् eg कक्षकों की ऊर्जा में वृद्धि होती है। धातु आयन के पाँच d-कक्षकों का भिन्न ऊर्जा के दो समूहों में विभाजन, d – d विपाटन या क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन कहलाता है। t2g और eg कक्षकों की ऊर्जा के मध्य के अन्तर को Δ0 द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। (Δ = ऊर्जा में अन्तर व 0 = अष्टफलकीय) इसे 10Dq द्वारा भी दर्शाया जाता है और यह क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन ऊर्जा कहलाती है।

चतुष्फलकीय संकुल यौगिकों में d-कक्षकों का विपाटन – चतुष्फलकीय संकुलों में d- कक्षकों का विपाटन समझने के लिए कल्पना कीजिए कि एक घन में चतुष्फलक रखा हुआ है। चतुष्फलक के चार किनारे घन के एकान्तर कोनों पर स्थापित हैं जिन पर चार लिगेण्ड स्थित हैं तथा धातु आयन उसके केन्द्र पर है।

अब, हम यदि केन्द्रीय धातु परमाणु के d-कक्षकों की तुलना में चार लिगेण्डों की स्थिति को अध्ययन करें तो अक्ष (dx2– y2 और dz2 अर्थात् eg कक्षक) पर t2g कक्षकों (dxy, dxz, dyz) की अपेक्षा चार लिगण्ड और अधिक दर हो जाते हैं। अतः eg कक्षक निम्न ऊर्जा के हैं और t2g कक्षक उच्च ऊर्जा के हैं। eg और t2g कक्षकों के मध्य ऊर्जा का अन्तर चतुष्फलकीय संकुलों के लिए क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन ऊर्जा कहलाता है तथा इसको A) द्वारा दर्शाया जाता है।

क्रिस्टल क्षेत्र सिद्धांत से आप क्या समझते हैं?

इस सिद्धांत के अनुसार, धातु लिगेंड आबंध आयनित होते हैं जो धातु आयन तथा लिगेंड के मध्य स्थिर विद्युत अन्योन्य क्रिया द्वारा उत्पन्न होते हैं। जब लिगेंड केंद्रीय धातु परमाणु या आयन के संपर्क में आता है तो केंद्रीय धातु परमाणु के पांच d-कक्षक की ऊर्जा का मान बराबर होता है।

क्रिस्टल क्षेत्र सिद्धांत के अनुप्रयोग एवं सीमाएं क्या है विस्तार पूर्वक समझाइए?

VBT सिद्धांत की सीमाएं VBT में धातु आयन को अधिक महत्व दिया गया जबकि लिगेंड के महत्व की ओर उचित ध्यान नहीं दिया गया। यह सिद्धांत बाह्य कक्षक संकुल यौगिक तथा आन्तरिक कक्षक संकुल यौगिक के बनने की व्याख्या नहीं कर सका। इस सिद्धांत के द्वारा संकुल यौगिको के रंग एवं स्पेक्ट्रम की व्याख्या नहीं की जा सकती है।

क्रिस्टल क्षेत्र सिद्धांत क्या है यह संयोजकता बंध सिद्धांत से कैसे भिन्न है?

क्रिस्टल क्षेत्र सिद्धान्त ताप में वृद्धि के साथ चुम्बकीय गुणों की व्याख्या करता है। संयोजकता बंध सिद्धान्त चुम्बकीय परिवर्तन की व्याख्या नहीं करता। 2. CFT संकुलों के रंगों की व्याख्या करता है VBT संकुलों के रंग की व्याख्या नहीं करता।

क्रिस्टल क्षेत्र विभाजन क्या है?

क्रिस्टल क्षेत्र विभाजन उर्जा को प्रभावित करने वाले कारक संकुल यौगिक के निर्माण के समय धातु आयन के d कक्षकों में उपस्थित electrons एवं लिगेंड के दाता परमाणुओं के मध्य प्रतिकर्षण के कारण क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन होता है। धातु आयन के d कक्षक भिन्न उर्जा के दो सेटों में t2g एवं eg में विभाजित हो जाते है।

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