मांगुर मछली का चारा क्या है - maangur machhalee ka chaara kya hai

इसे सुनेंरोकेंमछलियों के चारे के रूप में गाय-भैंस समेत किसी भी जानवर का गोबर इस्तेमाल किया जा सकता है। गाय और भैंस के गोबर को सीधे तालाब में डाल दिया जाता है जबकि बकरी के मल का चूरन बना कर उसमें डालना पड़ता है क्योंकि कड़ा होने के कारण यह पानी में जल्द घुलता नहीं है।

मछली खाने से क्या फायदा और क्या नुकसान?

तो आइए आपको मछली खाने के फायदे और नुकसान के बारे में बताएं.

  1. दिमाग को तेज़ बनाता है मछली में ऐसे तत्व मौजूद होते हैं जिससे आपका दिमाग तेज होता है.
  2. कैंसर से बचाव में मछली में ओमेगा 3 फैटी एसिड मौजूद होता है.
  3. बालों के लिए
  4. उच्च रक्तचाप में
  5. आँखों के लिए
  6. अवसाद कम करे
  7. दिल के दौरे से बचाए
  8. एंटी एजिंग के लिए

मछली का साइड इफेक्ट क्या है?

इसे सुनेंरोकें- मछली में कई तरह के प्रदूषक तत्व सेहत को नुकसान पहुंचा सकते हैं, जैसे कि डाइऑक्‍साइन्‍स और पीसीबी कुछ प्रकार के कैंसर और प्रजनन संबंधी समस्‍याओं से जुड़े हुए पाए गए हैं. -मछली के साथ भूलकर भी कभी दूध नहीं पीना चाहिए. अगर आप ये गलती करते हैं तो सफेद दाग की शिकायत हो सकती है.

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मछली का मुंडी खाने से क्या फायदा होता है?

इसे सुनेंरोकेंयह ना सिर्फ इम्यून सिस्टम को बेहतर करता है, बल्कि इसके सेवन से आंखों का स्वास्थ्य भी बेहतर होता है. सैल्मन मछली में मौजूद ओमेगा-3 फैटी एसिड शरीर में कोलेस्‍ट्रॉल को कम करने में मदद करते हैं. इसके अलावा यह धमनियों और नसों को लचीला बनाए रखते हैं.

मांगुर मछली पर बैन क्यों लगा?

इसे सुनेंरोकेंगौलतरब है कि भारत सरकार में साल 2000 में ही थाई मांगुर नामक मछली के पालन और बिक्री पर रोक लगा दी थी, लेकिन इसकी बेखौफ बिक्री जारी है. इस मछली के सेवन से घातक बीमारी हो सकती है. इसे कैंसर का वाहक भी कहां जाता है. ये मछली मांसाहारी होती है, इसका पालन करने से स्थानीय मछलियों को भी क्षति पहुंचती है.

कौन सी मछली हवा में भी सांस ले सकती है?

इसे सुनेंरोकेंह्वेल अक्सर भीमकाय आकार के होते हैं और सभी स्तनधारियों की तरह वे सांस केवल वायु में ले सकते हैं (यानि पानी में रहकर नहीं ले सकते)। व्हेलों के सिरों पर एक सांस लेने का छेद होता है और वह समय-समय पर पानी की सतह पर आकर इस से सांस खींचते हैं।

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मांगुर खाने से क्या होता है?

इसे सुनेंरोकेंमांगुर मछलियों में प्रोटीन और लौह तत्वों की मात्रा अधिक होती है। वसा की मात्रा काफी कम होता है। खून की कमी के बीमारी से जूझ रहे लोगों के लिए यह मछली रामबाण है। इसी तरह का एक और मछली होता है जिसका नाम सिंघी है।

कतला मछली कौन सा चारा खाता है?

इसे सुनेंरोकेंभोजन की आदत 10 मिली मीटर की कतला (फाई) केवल युनीसेलुलर, एलगी, प्रोटोजोअन, रोटीफर खाती है तथा 10 से 16.5 मिली मीटर की फ्राई मुख्य रूप से जन्तुप्लवक खाती है, लेकिन इसके भोजन में यदाकदा कीड़ों के लार्वे, सूक्ष्म शैवाल तथा जलीय धास पात एवं सड़ी गली वनस्पति के छाटे टुकड़ों का भी समावेश हाते है।

अनुसंधान में पाया गया है कि पांच-छह फीट की गहराई में मछलियां सबसे अधिक तेजी से बढ़ती हैं क्योंकि सूर्य की किरणों के जल से छन-छन कर पहुंचने के कारण इस गहराई तक प्लैंक्टन पाई जाती है। पानी के अलग-अलग स्तरों पर प्लैंक्टन की मात्रा में अंतर होता है। ऊपरी स्तर पर सूर्य किरणों की अधिक उपलब्धता के कारण कुल प्लैंक्टन का लगभग 60 प्रतिशत होता है जबकि मध्य और निचले स्तर पर 20-20 प्रतिशत प्लैंक्टन होता है। सभी मछलियां अलग-अलग स्तर में भोजन तलाशती हैं। कॉमन कॉर्प और कतला ऊपरी स्तर में, ग्रासकॉर्प और रेहू मध्य स्तर में और सिल्वर कॉर्प और नैनी निचले स्तर में अधिक भोजन तलाशती हैं। तालाब के विभिन्न स्तरों के भोज्य पदार्थों का पूरा दोहन करने के लिए कंपोजिट फिश कल्चर पर जोर दिया जाता है। तीन देसी मछली कतला, रेहू और नैनी और तीन विदेशी मछली कॉमन कॉर्प, ग्रास कार्प और सिल्वर कॉर्प एक साथ मिला कर डाली जाती हैं।

चारे का उपयोग है सीमित

प्रदेश के अधिकतर मछलीपालक तालाब में जियरा डाल देते हैं लेकिन पैसे की कमी के कारण चारा खरीदने की स्थिति में नहीं रहते हैें। चारा नहीं डालने के कारण मछलीपालकों को बहुत नुकसान हो रहा है। आंध्र प्रदेश में कृत्रिम चारा के बल पर 4-5 टन प्रति हेक्टेयर मछली उत्पादन होता है जबकि बिहार में मात्र 0.8-1.0 टन प्रति हेक्टेयर। नई तकनीक से यहां भी 4-5 टन प्रति हेक्टेयर का उत्पादन किया जा सकता है और वह भी बिना अतिरिक्त खर्च।

किसी भी गोबर का इस्तेमाल

मछलियों के चारे के रूप में गाय-भैंस समेत किसी भी जानवर का गोबर इस्तेमाल किया जा सकता है। गाय और भैंस के गोबर को सीधे तालाब में डाल दिया जाता है जबकि बकरी के मल का चूरन बना कर उसमें डालना पड़ता है क्योंकि कड़ा होने के कारण यह पानी में जल्द घुलता नहीं है।

अनुपम कुमार > पटना ९३३४९४०२५६

मछलियों के पानी में मिलने वाले पोषक तत्वों पर पलने की बात तो सभी जानते हैं लेकिन गोबर पर भी मछलियां पल सकती हैं। इसे मुमकिन बनाया है इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चर रिसर्च ((आईसीएआर)) के वैज्ञानिकों ने। उनके अनुसंधान से यह साबित हो गया है कि गोबर में मौजूद तत्व भी उसी तरह से मछलियों के ग्रोथ को बढ़ा सकता है। आईसीएआर ने गोबर से मछलियों का देसी खाद्य पदार्थ तैयार किया है। इस अनुसंधान का सबसे बड़ा फायदा यह है कि गरीब मछलीपालक भी इसका उपयोग कर सकता है।

बनता है प्लैंक्टन

गोबर में नाइट्रोजन की मात्रा अधिक होती है। इसका अधिकतर भाग पानी से प्रतिक्रिया कर प्लैंक्टन में परिवर्तित हो जाता है। इसे खाकर मछलियां तेजी से बड़ी होती हैं और इनका वजन भी बढ़ता है।

गोबर की मात्रा

जियरा ((छोटी मछली)) डालते समय प्रति हेक्टेयर दो हजार किलो का पहला डोज दिया जाता है। उसके बाद प्रत्येक महीने एक हजार किलो गोबर की जरूरत पड़ती है। एक भैंस से प्रतिदिन 20-22 किलो जबकि गाय से 14-18 किलो की उपलब्धता रहती है। ऐसे में एक हेक्टेयर में खेती के लिए 3-5 भैंस, 5-7 गाय या 50-60 बकरियों की जरूरत पड़ती है।

बहुत उपयोगी साबित होगी यह खोज

॥ आईसीएआर की यह खोज बहुत उपयोगी साबित होगी। इससे गरीब मछलीपालक भी मछलीपालन का अधिक से अधिक लाभ ले सकेंगे और प्रदेश में इसका तेजी से विकास होगा।

मांगुर मछली का भोजन क्या है?

यह मछली शाकाहारी और मांसाहारी दोनों होती हैं। इसे आहार के रूप में सूखी मछलियां, मछलियों का चूरा, सरसों की खली और चावल की चूनी आदि दिया जाना चाहिए। इसके आहार में 30 से 35 प्रतिशत प्रोटीन भी होना चाहिए।

मांगुर मछली कितने दिन में तैयार होते हैं?

मछली पालक अधिक मुनाफे के चक्कर में तालाबों और नदियों में प्रतिबंधित थाई मांगुर को पाल रहे है क्योंकि यह मछली चार महीने में ढाई से तीन किलो तक तैयार हो जाती है जो बाजार में करीब 30-40 रुपए किलो मिल जाती है।

मांगुर मछली को क्यों नहीं खाना चाहिए?

यहीं इसको खाने से कैंसर, डायबिटिज सहित अन्य गंभीर बीमारियां होती है। यह मछली पानी इकोसिस्टम को खाकर खत्म कर देती है। यह मछली मांसाहारी है, यह इंसानों का भी मांस खाकर बढ़ जाती है। राष्ट्रीय हरित क्रांति न्यायाधिकरण (NGT) के अनुसार, थाई मांगुर मछली पर्यावरण को नुकसान पहुंचाती है।

मछली को सबसे ज्यादा कौन सा चारा पसंद है?

मछलियों के चारे के रूप में गाय-भैंस समेत किसी भी जानवर का गोबर इस्तेमाल किया जा सकता है। गाय और भैंस के गोबर को सीधे तालाब में डाल दिया जाता है जबकि बकरी के मल का चूरन बना कर उसमें डालना पड़ता है क्योंकि कड़ा होने के कारण यह पानी में जल्द घुलता नहीं है।

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