उत्तर प्रदेश और बिहार में मकर संक्रान्ति को खिचड़ी के नाम से पुकारा जाता है। उत्तरप्रदेश में मकर संक्रांति के दिन को दान के पर्व के रूप में देखा जाता है। इलाहाबाद में तो मकर संक्रांति के दिन से ही माघ मेले की शुरूआत होती है और माघ मेले का पहला नहान मकर संक्रांति के दिन ही किया जाता है।
यूं तो भारत वर्ष में कई त्योहार मनाए जाते हैं लेकिन मकर संक्रांति की बात ही निराली है। दरअसल, यह देश के विभिन्न राज्यों में अलग−अलग नामों और परंपराओं के साथ मनाया जाता है और इसी खूबी के कारण मकर संक्रांति का पर्व अन्य सभी त्योहारों से अलग व विशिष्ट बन जाता है। पंजाब में लोहड़ी तो तमिलनाडु में पोंगल, वहीं गुजरात में उत्तरायण के नाम से जाना जाता है मकर संक्रांति का पर्व। तो चलिए जानते हैं देश के विभिन्न हिस्सों में किस तरह सेलिब्रेट किया जाता है यह पर्व−
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पंजाब में मकर संक्रांति
पंजाब ही नहीं, बिहार व तमिलनाडु में यह समय फसल काटने का होता है। इसलिए किसानों के लिए यह पर्व एक खास महत्व रखता है। पंजाब में मकर संक्रांति के पर्व को लोहड़ी कहकर पुकारा जाता है। मकर संक्रांति की पूर्वसंध्या पर लोग खुले स्थान में आग जलाते हैं और परिवार व आस−पड़ोस के लोग अग्नि की परिक्रमा करते हुए रेवड़ी व मक्की के भुने दानों को उसमें भेंट करते हैं। साथ ही आग के चारों ओर भांगड़ा करते हैं तथा रेवड़ी, मूंगफली व मक्की के भुने दानों को खाते भी हैं।
उत्तर प्रदेश में मकर संक्रांति
उत्तर प्रदेश और बिहार में मकर संक्रान्ति को खिचड़ी के नाम से पुकारा जाता है। उत्तरप्रदेश में मकर संक्रांति के दिन को दान के पर्व के रूप में देखा जाता है। इलाहाबाद में तो मकर संक्रांति के दिन से ही माघ मेले की शुरूआत होती है और माघ मेले का पहला नहान मकर संक्रांति के दिन ही किया जाता है। इस खास दिन लोग स्नान के अतिरिक्त दान को भी महत्ता देते हैं। जिसमें खिचड़ी को मुख्य रूप से शामिल किया जाता है। इतना ही नहीं, लोग खिचड़ी को दान करने के साथ−साथ उसका सेवन भी अवश्य करते हैं।
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महाराष्ट्र में मकर−सक्रांति
महाराष्ट्र में भी मकर−संक्रांति के दिन दान अवश्य किया जाता है। खासतौर से, विवाहित महिलाएं अपनी पहली मकर संक्रांति पर कपास, तेल, नमक, गुड़, तिल, रोली आदि चीजें अन्य सुहागिन महिलाओं को दान करती हैं। महाराष्ट्र में माना जाता है कि मकर संक्रान्ति से सूर्य की गति तिल−तिल बढ़ती है और इसलिए लोग इस दिन एक दूसरे को तिल गुड़ देते हैं। इतना ही नहीं, तिल गुड़ देते समय वाणी में मधुरता व मिठास की कामना भी की जाती है ताकि संबंधों में मधुरता बनी रहे।
राजस्थान में मकर संक्रांति
राजस्थान में मकर संक्रांति का पर्व सुहागन महिलाओं के लिए विशेष महत्व रखता है। इस दिन सभी सुहागन महिलाएं अपनी सास को वायना देकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करती हैं। साथ ही इस दिन महिलाओं द्वारा किसी भी सौभाग्यसूचक वस्तु का चौदह की संख्या में पूजन व संकल्प कर चौदह ब्राह्मणों को दान देने की भी प्रथा है।
पश्चिम बंगाल में मकर−सक्रांति
चूंकि गंगा अपने अंतिम छोर में बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है। इसलिए पश्चिम बंगाल में इस दिन गंगासागर मेले के नाम से धार्मिक मेला लगता है और सभी लोग इस संगम में स्नान अवश्य करते हैं। कहा जाता है कि मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे−पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थीं और इसलिए मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन अगर इस संगम में डुबकी लगाई जाए तो इससे सारे पाप धुल जाते हैं। पश्चिम बंगाल में स्नान के साथ−साथ दान को भी महत्व दिया जाता है। इस दिन लोग तिल का दान अवश्य करते हैं।
गुजरात में मकर−सक्रांति
गुजरात में मकर संक्रांति को उत्तरायण कहकर पुकारा जाता है। गुजरात में इस दिन पतंग उड़ाने की प्रथा है। इतना ही नहीं, गुजरात में मकर संक्रांति के पर्व पर पंतगोत्सव का भी आयेाजन किया जाता है। गुजराती लोगों के लिए यह एक बेहद शुभ दिन है और इसलिए किसी भी शुभ कार्य की शुरूआत के लिए इसे सबसे उचित दिन माना जाता है।
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कर्नाटक में मकर−सक्रांति
कर्नाटक में इसे एक फसल के त्योहार के रूप में देखा जाता है। वहां पर लोग मकर संक्रांति के दिन बैलों और गायों को सजा−धजाकर शोभा यात्रा निकालते है। साथ ही खुद भी नए कपड़े पहनकर एक−दूसरे को ईख, सूखा नारियल और भुने चने का आदान−प्रदान करते हैं। इतना ही नहीं, गुजरात की ही तरह कर्नाटक में भी मकर संक्रांति के दिन पंतगबाजी का आनंद लिया जाता है।
उत्तराखंड में मकर−सक्रांति
उत्तराखंड में इस दिन जगह−जगह पर मेले लगाए जाते हैं। साथ ही लोग गंगा स्नान करके, तिल के मिष्ठान आदि को ब्राह्मणों व पूज्य व्यक्तियों को दान करते हैं।
तमिलनाडु में मकर−सक्रांति
तमिलनाडु में इस त्योहार को बेहद अलग तरीके से मनाया जाता है। यहां पर लोग इसे पोंगल के रूप में मनाते हैं। यह एक चार दिवसीय अवसर है। जिसमें पहले दिन भोगी−पोंगल, दूसरे दिन सूर्य−पोंगल, तीसरे दिन मट्टू−पोंगल अथवा केनू−पोंगल, चौथे व अंतिम दिन कन्या−पोंगल मनाया जाता है। पोंगल मनाने के लिए सबसे पहले स्नान करके खुले आंगन में मिट्टी के बर्तन में खीर बनाई जाती है, जिसे पोंगल कहा जाता है। इसके बाद सूर्य देव की पूजा की जाती है और अंत में उसी खीर को प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है।
- नई फसल के पकवान चावल के साथ गुड़, तिल और दाल से बने व्यंजन लुभाते हैं
स्पेशल डेस्क. सूर्य का मकर राशि में प्रवेश ही मकर संक्रांति कहलाता है। इसी दिन से सूर्य उत्तरायण हो जाता है। शास्त्रों में उत्तरायण की अवधि को देवताओं का दिन तथा दक्षिणायन को देवताओं की रात कहा गया है। इस दिन के बाद सारे शुभ काम शुरू हो जाते हैं। कहते हैं कि शरशैया पर लेटे भीष्म पितामह ने प्राण त्यागने के लिए सूर्य के उत्तरायण होने तक प्रतीक्षा की थी।
इस बार की संक्रांति इसलिए भी खास है कि प्रयागराज में महाकुंभ है। मकर संक्रांति का पर्व अलग-अलग नामों और तरीकों से पूरे देशभर में मनाया जाता है, जहां उत्तर में संक्रांति की धूम, दक्षिण में पोंगल की मस्ती, पूर्व में बिहू की लचक, तो पश्चिम में पतंगबाजी की होड़ है।
1) बिहार और यूपी: नदी स्नान और खिचड़ी खाने की परंपरा
मकर संक्रांति को खिचड़ी कहा जाता है। यूपी, बिहार में लोग स्नान करने के बाद खिचड़ी बनाते और बांटते हैं। कई लोग दिन में दही-चूड़ा, तिल के पकवान खाते हैं और रात में खिचड़ी बनाते हैं। आम दिन बनने वाली खिचड़ी से इस दिन की खिचड़ी खास होती है। इसमें उड़द दाल जरूर डालते हैं।
पोंगल पर्व में बारिश, सूर्य, खेत और पशु सभी का महत्व होता है। तड़के नए कपड़े पहनकर प्रार्थना की जाती है। इस पर्व का विशेष व्यंजन पोंगल है, जिसे दूध में चावल, गुड़ और चना को उबालकर बनाया जाता है। पहले दिन भोगी पोंगल, दूसरे दिन सूर्या पोंगल, तीसरे दिन मट्टू पोंगल और चौथे दिन कानूम पोंगल मनाया जाता है। पोंगल को बनाने के दौरान जब लोग उबलते हुए दूध में चावल, गुड़ और चना डालते हैं तो जोर-जोर से 'पोंगोलो पोंगल...' चिल्लाते हैं।
बंगाली समुदाय के लोग संक्रांति की तैयारी कई दिनों पहले से शुरू कर देते हैं। चावल का पाउडर बनाना, मूड़ी, चूड़ा या लावा का मोया (लड्डू बनाना) आदि कई तरह की चीजों की तैयारी होती है। सुबह जल्दी नहाकर नए या धोए कपड़े पहनकर पकवान बनाने के लिए लोग जुट जाते हैं। नए चावल से तरह-तरह के पीठे बनाए जाते हैं। पाटीशाप्टा, पुली, पायस, दूध पुली, मूंग पुली आदि तरह-तरह के स्वाद और शेप के पीठे बनते हैं। इस दिन घर में भात नहीं बनता है।
मैथिल समुदाय के लोग इस दिन सुबह स्नान करने के बाद भगवान को तिल अर्पण करते हैं। फिर दही-चूड़ा, तिलकुट खाते हैं। दिन में ही खिचड़ी बनाई जाती है। रात में भी पकवान बनते हैं। इस दिन बुजुर्ग छोटों को तिल-गुड़ बांटते हैं। मिथिला के लोग, जिनके घर में नई शादी हुई होती है, वे एक-दूसरे के घर भार भेजते हैं।
मारवाड़ी लोग मकर संक्रांति के दिन की शुरुआत भगवान को तिल से बने व्यंजनों का भोग लगाकर करते हैं। रात 12 बजे के बाद से ही मकर संक्रांति की गतिविधियां शुरू हो जाती हैं। लोगों के घरों में दाल की पकौड़ियां और पुए बनाते हैं। मारवाड़ी समाज के लोग मकर संक्रांति के दिन 14 सुहागिनों को सुहाग से जुड़ी चीजें भेंट करते हैं।
माघी बिहू में परंपरा के अनुसार देवता की पूजा करने के बाद तरह-तरह के पकवान बनाते हैं। मुख्य रूप से भोज देने की प्रथा है, इसलिए 'भोगासी बिहू' भी कहा जाता है। युवा पुरुषों-महिलाओं द्वारा बिहू नृत्य किया जाता है।
गुजराती समुदाय संक्रांति के दिन पूजा-पाठ, तिल-गुड़ खाने के अलावा पतंगबाजी करते हैं। माना जाता है कि इस दिन पतंग उड़ाने और दूसरों की पतंग काटने से दुश्मनों का नाश होता है।
लोहड़ी को पंजाबी समुदाय के लोग पौष महीने के अंतिम दिन मनाते हैं। मकर संक्रांति के दिन से माघ महीने का आगमन होता है। लकड़ियों का अंबार लगाकर जलाया जाता है। उसमें गुड़, तिल, मूंगफली डाले जाते हैं।
उत्तराखंड में मकर संक्रांति पर 'घुघुतिया' नाम से त्योहार मनाया जाता है। इस दिन एक विशेष प्रकार का व्यंजन घुघुत बनाया जाता है। इस दिन बच्चे सुबह-सुबह उठकर कौओं को बुलाकर कई तरह के पकवान खिलाते हैं।
नेपाली समुदाय के लोग मकर संक्रांति के एक दिन पहले रात में तरुल (एक प्रकार का कंद), शकरकंद, आलू उबालकर रख लेते हैं। उसे मकर संक्रांति के दिन पूजा के बाद खाते हैं। पूस का बना माघ में खाने की परंपरा है।
महाराष्ट्र में मकर संक्रांति को हल्दी-कुमकुम पर्व के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन मराठी स्त्रियां हल्दी और कुमकुम लेकर एक-दूसरे के घर जाती हैं और तिलक लगाकर गुड़ और तिल के लड्डू आपस में बांटती हैं।
मकर संक्रांति के दिन पश्चिम बंगाल के गंगासागर में प्रति वर्ष विशाल मेला लगता है। इस दिन गंगासागर में स्नान-दान के लिए लाखों लोगों की भीड़ होती है। 14-15 जनवरी को कपिल मुनि मंदिर में खास पूजा होती है।