- पत्राचार से आप क्या समझते हैं ?
- पत्रों के प्रकार
- 1. सामाजिक पत्र
- 2. व्यापारिक पत्र
- 3. सरकारी पत्र
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पत्राचार से आप क्या समझते हैं ?
मनुष्य की भावनाओं की स्वाभाविक अभिव्यक्ति पत्राचार से ही होती है। निश्छल भावों और विचारों का आदान-प्रदान पत्रों द्वारा ही सम्भव है। पत्र लेखन दो व्यक्तियों के बीच होता है। इसके द्वारा दो हृदयों का सम्बन्ध दृढ़ होता है। अतः पत्राचार ही एक ऐसा साधन है, जो दूरस्थ व्यक्तियों को भावना की एक संगमभूमि पर ला खड़ा करता है और दोनों में आत्मीय सम्बन्ध स्थापित करता है। पति-पत्नी, भाई-बहन, पिता-पुत्र- इस प्रकार के हजारों सम्बन्धों की नींव यह सुदृढ करता है। व्यावहारिक जीवन में यह वह सेतु है, जिसमें मानवीय सम्बन्धों की परस्परता सिद्ध होती है। अतएव पत्राचार का हमारे जीवन में बड़ा महत्त्व है।
आधुनिक युग में पत्र लेखन को कला की संज्ञा दी गयी है। पत्रों में आज कलात्मक अभिव्यक्तियाँ हो रही हैं। साहित्य में भी इनका उपयोग होने लगा है। जिस पत्र में जितनी स्वाभाविकता होगी। वह उतना ही प्रभावकारी होगा। एक अच्छे पत्र के लिए कलात्मक सौन्दर्यबोध और अंतरंग भावनाओं का अभिव्यंजन आवश्यक है। एक पत्र में उसके लेखक की भावनाएँ ही व्यक्त नहीं होतीं, बल्कि उसका व्यक्तित्व भी उभरता है। इससे लेखक के चरित्र, दृष्टिकोण, संस्कार, मानसिक स्थिति, आचरण इत्यादि सभी एक साथ झलकते हैं। अतः पत्र-लेखन एक प्रकार की कलात्मक अभिव्यक्ति है।
पत्रों के प्रकार
सामान्यतः पत्र तीन प्रकार के होते हैं-
1. सामाजिक पत्र, 2. व्यापारिक पत्र, 3. सरकारी पत्र
1. सामाजिक पत्र
गैरसरकारी पत्रव्यवहार को ‘सामाजिक पत्राचार’ कहते हैं। इसके अन्तर्गत वे पत्रादि आते हैं, जिन्हें लोग अपने दैनिक जीवन के व्यवहार में लाते हैं। इस प्रकार के पत्रों के अनेक ऊपर प्रचलित हैं, जैसे 1.सम्बन्धियों के पत्र, 2. बधाई पत्र, 3. शोक पत्र, 4. परिचय पत्र, 5. निमंत्रण पत्र, 6. विविध-पत्र ।
पत्र-लेखन सभ्य समाज की एक कलात्मक देन है। मनुष्य चूँकि सामाजिक प्राणी है इसलिए वह दूसरों के साथ अपना सम्बन्ध किसी-न-किसी माध्यम से बनाये रखना चाहता है। मिलते-जुलते रहने पर पत्र लेखन की तो आवश्यकता नहीं होती, पर एक-दूसरे से दूर रहने पर एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के पास पत्र लिखता है। सरकारी पत्रों की अपेक्षा सामाजिक पत्रों में कलात्मकता अधिक रहती है, क्योंकि इनमें मनुष्य के हृदय के सहज उद्गार व्यक्त होते हैं। इन पत्रों को पढ़कर हम किसी भी व्यक्ति के अच्छे या बुरे स्वभाव या मनोवृत्ति का परिचय आसानी से पा सकते हैं। एक अच्छे सामाजिक पत्र में सौजन्य, सहृदयता और शिष्टता का होना आवश्यक है। तभी इस प्रकार के पत्रों का अभीष्ट प्रभाव हृदय पर पड़ता है।
2. व्यापारिक पत्र
आज का युग अर्थ-प्रधान है। प्रत्येक युग में अर्थ को सत्ता और व्यवसाय की महत्ता प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सर्वोपरि रही है, तदनुरूप भाषा भी उसी के अनुकूल व्यावहारिक या व्यावसायिक रही है। व्यवसायी एक दूसरे क्षेत्र या प्रदेश की यात्रा करते रहते हैं। फलस्वरूप एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र तक अपना सम्बन्ध बनाये रखने के लिए पत्र लेखन की आवश्यकता पड़ती है। व्यापार या व्यवसाय से सम्बन्धित जो पत्र लिखे जाते हैं, उसे व्यापारिक पत्र कहते हैं। व्यावसायिक पत्रों की भाषा-शैली औपचारिक हो तथा बात को एकदम नपे-तुले ढंग से कहा जाना चाहिए। सभी प्रकार के पत्र में एक बात का ध्यान रखा जाना चाहिए पत्र में जो कुछ लिखा जाय अर्थात् उसमें लिखी हुई बात पढ़ने वाले की समझ में एकदम आ जानी चाहिए।
आधुनिककाल में व्यवसाय की सफलता बहुत कुछ सफल पत्र-लेखन पर निर्भर रहती है, क्योंकि समस्त व्यवसाय, व्यापार पत्रों के माध्यम से ही चलाया जाता है। विश्वव्यापी व्यापारिक क्षेत्र में व्यक्तिगत सम्पर्क की सम्भावना बहुत कम होती है।
3. सरकारी पत्र
राष्ट्र के कार्य को सुचारू रूप से चलाने के लिए एक सुसंगठित सरकार की आवश्यकता होती है, यह सरकार कार्य संचालन की सुविधा के लिए अनेक कार्यालय खोलती है। ये कार्यालय देश के कोने-कोने में एक छोर से दूसरे छोर तक फैले होते हैं, इन सबका आपसी सम्बन्ध पत्रों द्वारा स्थापित होता है। शासकीय कर्मचारियों अथवा अधिकारियों द्वारा एक कार्यालय या विभाग से दूसरे कार्यालय अथवा विभाग को लिखे गये पत्र शासकीय अथवा सरकारी पत्र कहलाते हैं। इन पत्रों का ज्ञान सरकारी कर्मचारियों से ही नहीं अपितु व्यावसायिक संस्थाओं के कर्मचारियों के लिए भी आवश्यक होता है। प्रायः व्यावसायिक संस्थाएँ सरकारी कार्यालयों को परमिट, लाइसेन्स और ठेके आदि के लिए पत्र भेजती हैं। अतः किसी-न-किसी व्यक्ति को इसके प्रारूप तैयार करने ही पड़ते हैं। अतः प्रतिष्ठानों के लिए इस पत्र व्यवहार का ज्ञान भी उपयोगी है।
सरकारी पत्र एक विशिष्ट शैली में लिखे जाते हैं। इनमें न तो पारिवारिक पत्रों के समान आत्मीयतापूर्ण वाक्य होते हैं और न ही व्यावसायिक पत्रों की भाँति औपचारिकता। ये पत्र पूर्णतः अनौपचारिक होते हैं। अतः इन पत्रों की भाषा अपेक्षाकृत सुस्त महसूस होती है। संदेह, अनिश्चय और अतिशयोक्ति, इन पत्रों के दोष माने जाते हैं। ये पत्र यथासंभव संक्षिप्त, स्पष्ट एवं निष्पक्ष होते हैं।
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