सुभाष चंद्र बोस की पत्नी कौन है * 5? - subhaash chandr bos kee patnee kaun hai * 5?

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  5. एमिली शेंकल: नेताजी सुभाष चंद्र बोस की संगिनी और पत्नी, जो ज़िंदगीभर उन्हें हीरो मानती रहीं

एमिली शेंकल: नेताजी सुभाष चंद्र बोस की संगिनी और पत्नी, जो ज़िंदगीभर उन्हें हीरो मानती रहीं

आधुनिक भारत के अनसुलझे रहस्यों में एक है नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु. 18 अगस्त 1945 के दिन विमान हादसे में नेताजी की मृत्यु की ख़बर पर न जाने कितने सवाल उठ चुके हैं. कुछ ने इसे सच माना तो कुछ ने इसे कभी नहीं माना. इस तारीख़ के बाद भी लगातार यह कयास जारी रहे कि नेताजी ज़िंदा रहे. उस विमान दुर्घटना में नेताजी की मृत्यु पर से संदेह के सारे बादलों को छांटने के लिए तीन जांच आयोग बने. अलग-अलग देशों की ख़ुफ़िया एजेंसियों ने अपने स्तर पर जांच की. तमाम किताबें लिखी गईं. पर यह रहस्य अभी भी अनसुलझा हुआ है.
लेखक-पत्रकार संजय श्रीवास्तव की संवाद प्रकाशन से प्रकाशित पुस्तक ‘सुभाष बोस की अज्ञात यात्रा’ ने इन तीनों जांच आयोगों की रिपोर्ट पर चर्चा की है. इसके साथ ही नेताजी से जुड़े उन लोगों के बारे में भी तफ़सील से लिखा है, जिनपर नेताजी की रहस्यमी मौत का सबसे अधिक असर पड़ा. प्रस्तुत है पुस्तक के 20वें अध्याय का वह हिस्सा, जिसमें लेखक ने नेताजी की पत्नी एमिली शेंकल के बारे में लिखा है. जानें कैसे, नेताजी के जाने के बाद एमिली शेंकल ने संघर्षपूर्ण और साधारण जीवन जिया. 



पुस्तक:
सुभाष बोस की अज्ञात यात्रा
लेखक: संजय श्रीवास्तव
प्रकाशक: संवाद प्रकाशन
मूल्य: रु. 300

एमिली शेंकल: नेताजी सुभाष चंद्र बोस की संगिनी और पत्नी, जो ज़िंदगीभर उन्हें हीरो मानती रहीं 
कलकता में बंगाली भद्रलोक में सुभाष चंद्र बोस बहुत वांछित बैचलर थे. उनकी शादी के लिए न जाने कितने ही प्रस्ताव उनके घर आए. सुभाष बंगाल में हीरो थे. बंगालियों के लिए ऐसे आइडियल, जिन पर उन्हें नाज़ था. यह शख़्स जिसने आईसीएस जैसी शानदार ब्रिटिश-राज की नौकरी को ठोकर मार दी थी. जिन्होंने देशबंधु चित्तरंजन के साथ मिलकर कलकत्ता नरपालिका का नक़्शा ही बदल दिया था. जो देश में कम उम्र में किसी तूफ़ान की तरह कांग्रेस के शीर्ष नेताओं की कतार में शामिल हो गए थे. देशभर के युवाओं में उनका ज़बर्दस्त क्रेज़ था. सुभाष लंबे क़द के आकर्षक युवा थे. जीनियस, भद्र और आत्मविश्वास से ओत-प्रोत.
बंगाली लड़कियों के लिए वह स्वप्नपुरुष थे. जब अंग्रेज़-सरकार ने सुभाष को 1934 में देश से निर्वासित किया तो वियना पहुंचे. वहां उनका इरादा अपनी आत्मकथा लिखने का था. अपने एक मित्र मिस्टर माथुर से उन्होंने कहा कि उन्हें एक ऐसा स्टेनो चाहिए, जो अंग्रेज़ी समझता हो और टाइपिंग में तेज़ हो, ताकि वह वियना में अपने समय का उपयोग आत्मकथा लिखने में कर सकें. मिस्टर माथुर वियना में डॉक्टर थे. वह एमिली शेंकल को जानते थे, जो जर्मन के साथ अंग्रेज़ी भाषा की जानकार थी. स्टेनोग्राफ़र का कोर्स कर चुकी थी.

तब एमिली 24 साल की युवा थी. सुंदर, उत्साह और ऊर्जा से भरपूर. सुभाष ने तुरंत उन्हें नौकरी पर रख लिया. तब एमिली का ज़्यादातर समय सुभाष के साथ बीतने लगा. दोनों में एक ख़ास समझ-बूझ विकसित हुई. एमिली को सुभाष अच्छे लगने लगे. उन्होंने वियना के आसपास कुछ यात्राएं भी कीं. बेशक सुभाष दिलोदिमाग़ से ख़ुद को भारत की आज़ादी के नाम कर चुके थे, लेकिन ज़्यादा समय साथ गुज़ारने से उनमें और एमिली के बीच एक ख़ास भावना पैदा हो गई, जिसे प्यार कहना चाहिए.
एमिली और सुभाष की शादी कब हुई, यह असमंजस भरा सवाल है. एमिली ने सुभाष के परिवारवालों को बताया था कि उनकी शादी 1937 में हुई, लेकिन सुभाष के कुछ जीवनीकारों का मानना है कि यह शादी 1941 में तब हुई जबकि सुभाष दूसरी बार जर्मनी पहुंचे थे. हालांकि ख़ुद एमिली ने सुभाष के बड़े भाई शरत को जो पत्र लिखा, उसमें उन्होंने लिखा था कि उनकी शादी 1942 में हुई थी.

एमिली का जन्म ऑस्ट्रिया में 26 दिसंबर, 1910 में हुआ था. उनके पिता पशु-चिकित्सक थे जबकि बाबा यानी ग्रैंडफ़ादर शूमेकर थे. परिवार कैथलिक ईसाई था. एमिली ने देर से पढ़ाई शुरू की, उनके पिता पढ़ाई से संतुष्ट नहीं थे. लिहाज़ा उन्होंने बेटी का दाखिला धार्मिक स्कूल में चार साल के कोर्स के लिए करा दिया, जहां से वह नन बनकर निकलतीं. एमिली ने मना कर दिया. वह वापस स्कूल गई. 20 साल की उम्र में स्कूल की पढ़ाई ख़त्म की. तब यूरोप मंदी की चपेट में था. बेरोज़गारी बढ़ रही थी. तभी एमिली शेंकल को डॉक्टर माथुर ने नई नौकरी के बारे में बताया तो उन्होंने इस तुरंत क़ुबूल कर लिया.
सुभाष जो किताब लिख रहे थे, उसका नाम ‘द इंडियन स्ट्रगल’ था. जब दोनों इस दौरान क़रीब आने लगे तो एमिली के पिता को इस रिश्ते से ऐतराज़ था, वह नहीं चाहते थे कि उनकी बेटी किसी विदेशी के साथ शादी करे. जब एमिली ने अपने पिता को सुभाष से मिलाया तो वे उन्हें काफ़ी पसंद आ गए.
एमिली का कहना था कि उन्होंने हिंदू रीति-रिवाज़ से शादी की. हालांकि उसमें कोई पुजारी नहीं था. न ही इसका कोई सिविल-रिकॉर्ड रखा गया.
हालांकि हिटलर के अफ़सरों को एमिली का सुभाष के साथ रहना पसंद नहीं था. लेकिन उन्होंने कभी इस पर आपत्ति नहीं की. जर्मनी ने सुभाष के लिए स्पेशल ब्यूरो फ़ॉर इंडिया बनाया था. उन्हें शानदार बंगला, रसोइया, माली, ड्रॉइवर मिले हुए थे. लिहाज़ा जर्मनों को लगता था कि एमिली जानबूझकर बेहतर जीवन जीने के लिए उनके साथ नज़दीकियां बढ़ा रही हैं. इतिहासकार रोमियन हेज ने यह बात लिखी है. वहीं अमेरिकी इतिहासकार और सुभाष व शरत के जीवनी लेखक लियोनार्ड ए गोर्डन ने लिखा है, जर्मनी के उच्चाधिकारी और हिटलर के क़रीबी एडम वन ट्राट, एलेक्जेंडर वर्थ और फ्रेडा क्रेटरोमर एमिली को पसंद नहीं करते थे.
हालांकि सुभाष के निधन के बाद एमिली ने जिस तरह का जीवन जिया, उससे लगता है कि वह काफ़ी खुद्दार महिला थीं. वह निजी जीवन पर आमतौर पर बात करना पसंद नहीं करती थीं. न ही इस बारे में वह कभी ज़्यादा बोलीं.
दूसरे विश्व-युद्ध के बाद वियना में जीवन यक़ीनन संघर्षभरा था, लेकिन एमिली जीवट वाली महिला थीं, उन्होंने प्रतिकूल हालात के बीच भी मज़बूती से जीवन को जारी रखा. वियना दूसरे विश्व-युद्ध के बाद उजाड़ और उदास शहर में तब्दील हो चुका था. खाद्य-सामग्रियों की कमी थी. काला-बाज़ारी हो रही थी. ज़िंदगी अक्सर किसी लॉटरी की तरह लगती थी. पैसों की तंगी थी, इसीलिए एक जाड़ा ऐसा भी आया जब अनिता (एमिली और सुभाष की पुत्री) के पास जूते नहीं थे. न ही इन्हें ख़रीदने के पैसे थे. ऐसे में अनिता घर से बाहर निकली ही नहीं.
हालांकि एमिली के साथ सुभाष की शादी पर कई लोगों को यक़ीन नहीं था. उन्हें लगता था कि वह महज़ उनकी कंपेनियन थीं, जैसा कि उन दिनों जर्मनी में आमतौर पर प्रचलित भी था. ख़ुद बोस के परिवार के एक हिस्से को ऐसा ही लगा. सुभाष चंद्र बोस द्वारा स्थापित पार्टी फ़ारवर्ड ब्लॉक तो अब तक नहीं मानती कि सुभाष ने शादी की थी और उनके कोई बेटी भी है. लेकिन सुभाष के बड़े भाई शरत ने उन्हें सुभाष की पत्नी के रूप में स्वीकार किया. वह चाहते थे कि एमिली अपनी बेटी के साथ भारत आ जाएं. वह उनके लिए एक अलग मकान की व्यवस्था भी करने वाले थे. इसे पहले ही उनका निधन हो गया. 
जर्मनी में सुभाष के नंबर दो अर्थिल चेंदेत नांबियार ने एमिली और सुभाष को वहां क़रीब से देखा. वह उनके साथ 1937 में बैगस्टीन में भी थे. फिर बर्लिन में रहे. उन्होंने देग हेज को 1978 में लिखा, मैं इस बारे में पक्के तौर पर कुछ नहीं कह सकता कि उनकी शादी हुई थी. मैंने भी इसके बारे में दूसरे विश्व-युद्ध के बाद ही जाना. हो सकता है कि यह शादी बहुत सादगी से हुई हो और अनौपचारिक-सी रही हो. मुझे मालूम है कि दोनों के बीच काफ़ी अच्छी रिलेशनशिप थी और उनके एक बच्चा भी था.

सुभाष ने शादी की घोषणा नहीं की थी. इस बारे में शायद उन्होंने एमिली से कहा था कि कांग्रेस अध्यक्ष बनने से ठीक पहले अगर मैं शादी की घोषणा करूंगा तो मेरी इमेज पर असर पड़ेगा और सियासी स्थिति पर भी. नीरद-सी चौधरी ने लिखा, सुभाष उस समय युवाओं के बीच आदर्श छवि रखते थे. उन्हें योद्धा समझा जाता था. अगर उन्हें आसान ज़िंदगी गुज़ारनी होती तो बंगाली भद्रलोक में उनकी शादी बहुत पहले हो जाती. उनके पास शादी के बहुत से प्रस्ताव थे.
अगस्त, 1936 से अक्टूबर, 1937 के बीच एमिली और सुभाष के बीच नियमित पत्राचार चलता रहा. वह सुभाष के स्वास्थ्य और खाने को लेकर चिंतित रहती थीं. उन्हें हिदायत देती थीं कि देर रात तक मत पढ़ा करो.
शरत बोस के बेटे शिशिर बोस की पत्नी कृष्णा बोस, जो बाद में सांसद भी बनीं, उन्होंने 1972 में लोकप्रिय अंग्रेज़ी पत्रिका ‘इलेस्ट्रेटेड वीकली’ में लिखा,‘एमिली ने उनसे कहा, नाज़ी-राज में जर्मनी और विदेशियों की शादी पर अघोषित पाबंदी थी. इसे अच्छे तौर पर नहीं देखा जाता था. उन्हें ये तक कहा गया कि उन्हें सुभाष से अपने संबंध ख़त्म कर लेने चाहिए. उन्होंने इसीलिए युद्ध के बीच शादी की तो इसे गुप्त रखा.’
मिहिर बोस ने अपनी किताब ‘द लास्ट हीरो’ में लिखा,‘सुभाष ने 1934 से 1942 के बीच एमिली को 180 पत्र लिखे. यह पत्र भी बोस परिवार को 1980 में एक सफ़ाई में सुभाष के पुराने सिगार-बॉक्स में मिले. अगर सुभाष के पत्रों की शुरुआत डियर फ़ुएलिन शेंकल से होती थी तो शेंकल उन्हें हर पत्र की शुरुआत में डियर बोस के रूप में संबोधित करती थीं. यह संबोधन उनके 1934 में लिखे गए पहले लेटर से लेकर 1942 में लिखे गए आख़िरी लेटर तक नहीं बदला.’
इन पत्रों के ज़रिए एक बात तो यह पता चलती है कि अगर सुभाष अपनी ज़िंदगी के कुछ पहलुओं को लेकर रहस्यमयी और नितांत प्राइवेट पुरुष थे, लेकिन इसके उलट वह अपनी सियासी स्थिति को लेकर हमेशा मुखर और स्पष्ट रहते थे.
जब वह अपने पिता जानकीनाथ के निधन के चलते 1934 के जाड़ों में जल्दबाज़ी में भारत लौटे तो उनमें पत्रों का सिलसिला शुरू हुआ. 30 नवंबर, 1934 से लेकर 26 जनवरी, 1935 के बीच उन्होंने एमिली को 14 पत्र लिखे. 1935 में वह वापस यूरोप लौटे और एमिली के शहर वियना में. लौटते समय उन्होंने रोम से उन्हें पत्र लिखा,‘क्या तुम सोचती हो कि मैं तुम्हारा फ़ोन नंबर भूल चुका हूं?’ यह पत्र उन्होंने अपने जन्मदिन के दो दिन बाद लिखा था. इससे पहले एमिली ने उन्हें बर्थ-डे पर बधाई दी थी और जवाब में सुभाष ने इसी पत्र में लिखा,‘मेरे जन्मदिन पर तुम्हारे मैसेज के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद. वैसे मैं ख़ुद अपना जन्मदिन भूल चुका था.’
ज़ाहिर है कि सुभाष अपना जन्मदिन तो भूल चुके थे, लेकिन उस महिला का फ़ोन-नंबर उन्हें याद था. इससे अंदाज़ हो जाता है कि वह स्त्री उनके लिए क्या मायने रखती थी. 1935 के शुरुआत के ज़्यादातर हिस्से उन्होंने वियना में बिताए और तब उनकी दोस्ती रोमांस में बदल गई.
इस बीच 1936 में जब वह वहां से आयरलैंड रवाना हुए तो उन्होंने कोशिश की कि बेरोज़गार एमिली की कुछ मदद की जाए. उन्होंने कोशिश की कि एमिली भारत के अख़बार ‘द हिंदू’की स्पेशल करेसपोंटेंट बन जाएं और वियना से अपनी रिपोर्ट भेजें. उन्होंने एमिली के एजेंट के रूप में ‘द हिंदू’से बात भी कर ली. ‘द हिंदू’तैयार था कि वह हर महीने उन्हें दो आर्टिकल भेजें और वह उसके बदले दो पाउंड देंगे. लेकिन एमिली का पहला आर्टिकल ही अख़बार ने ख़ारिज कर दिया, क्योंकि उसमें बहुत कमियां थीं. उसकी अंग्रेज़ी भी बहुत ख़राब थी. सुभाष इसे देखकर ख़ुद काफ़ी विचलित रह गए, लेकिन वह एमिली के करियर को लेकर ख़ुद इतने इच्छुक थे कि उसके घोस्ट-राइटर बन गए. उन्होंने कई लेख लिखे. हालांकि बाद में यह बंद ही हो गया.

1936 की गर्मियों में वह वापस भारत आ चुके थे. लेकिन वियना में एमिली के पास कोई नौकरी नहीं थी. वह सभी तरह की नौकरियों के लिए कोशिश कर रही थी. उस समय एमिली ने आया यानी नैनी की नौकरी भी की. संयोग से यह नौकरी भी उन्हें एक भारतीय के घर में ही मिली थी.
सुभाष फिर जेल में थे. एमिली के जो पत्र उनके पास आते थे या वह जो पत्र भेजते थे, वह जेल के अधिकारियों द्वारा पढ़े जाते या सेंसर किए जाते थे. इस बीच सुभाष की तबीयत ख़राब हो गई तो वह पुलिस की निगरानी में कलकत्ता के सबसे बड़े और सबसे पुराने अस्पताल में रखे गए. इसके बाद उन्हें घर पर नज़रबंद कर दिया गया. आख़िरकार 17 मार्च, 1937 को रिहा कर दिए गए. छह साल में यह पहला ऐसा मौक़ा था जब सुभाष भारत में मुक्त थे.
अप्रैल, 1937 में सुभाष डलहौजी गए और वहां से उन्होंने एमिली को एक ऐसा लेटर लिखा, जिसमें उन्होंने अपनी सारी भावनाएं उड़ेलकर रख दीं, आमतौर पर वे ऐसा करते नहीं थे.
‘तुम्हें पत्र लिखे हुए कुछ समय हो गया. तुम आसानी से समझ सकती हो कि कितना मुश्क़िल होता है वह लिखना, जो हम महसूस कर रहे होते हैं. मैं तुम्हें केवल यह बताना चाहता हूं कि मैं बिल्कुल वैसा ही हूं जैसा पहले था, जैसा तुम मेरे बारे में जानती हो. एक भी दिन ऐसा नहीं गुज़रता जबकि तुम्हारी याद नहीं आती. तुम हमेशा मेरे साथ होती हो. दुनिया में किसी के बारे में इतना नहीं सोचता जितना तुम्हारे बारे में. मैं तुम्हारी भावनाएं जानने को लेकर व्याकुल हूं. कृपया इसके बारे में अपने आसान अंदाज़ में मुझको एयरमेल से जल्दी लिखो. ताकि मैं इसे जान सकूं. मैं नहीं जानता कि मुझको भविष्य में क्या करना चाहिए. मैं बता नहीं सकता कि पिछले महीनों के दौरान ख़ुद को कितना अकेला महसूस करता रहा हूं और उदासी ने कितना घेरा हुआ है. केवल एक ही बात मुझे ख़ुश रख सकती है-पर मैं नहीं जानता कि वह कितना संभव है. लेकिन मैं लगातार दिन और रात इसके बारे में सोचता रहता हूं और भगवान से प्रार्थना करता हूं कि वह मुझको सही रास्ता दिखाए. जब भी मैं यह सुनता हूं कि तुम ठीक नहीं हो
तो काफ़ी दुख होता है. अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखो, तो मैं भी राहत महसूस कर पाऊंगा. हमेशा दिल और आत्मा से तुम्हारा.’
इस पत्र से ज़ाहिर है कि यह लव-लेटर है और यह बताता है कि सुभाष बोस शादी की योजना बना रहे हैं. सुभाष को महसूस होता था कि कहीं ऐसा तो नहीं उनके पत्र ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा पढ़े जा रहे हैं. उन्होंने इससे बचने के लिए कुछ पत्र जर्मन भाषा में भी लिखे. हालांकि कहना चाहिए कि सुभाष जो भी पत्र एमिली को लिखते थे, उसमें वह अपनी भाषा और भावनाओं को बहुत नियंत्रित और संयमित रखने की कोशिश करते थे.
अक्टूबर 1937 में महात्मा गांधी अपनी पलटन के साथ शरत बोस के वुडबर्न पार्क के घर पर मेहमान बने. गांधीजी कई हफ़्ते वहां रहे. अक्टूबर के मध्य तक यह तय हो गया कि सुभाष अब 1938 के लिए कांग्रेस के अध्यक्ष बनेंगे. हालांकि गांधीजी पहले इसके लिए राज़ी नहीं थे, लेकिन अचानक वह मान गए. नेहरू बेशक बोस के पक्ष में थे. उन्होंने इसमें अपनी ओर से कुछ भूमिका भी अदा की, कांग्रेस के पुराने दिग्गज ज़रूर इससे बहुत ख़ुश नहीं थे. 4 नवंबर को सुभाष ने एमिली को लेटर लिखा कि वह नवंबर के मध्य में यूरोप के लिए रवाना होंगे. वह वहां क़रीब चार से पांच हफ़्ते रहेंगे. उनका इरादा एक और किताब लिखने का है. एमिली ने इस बारे में किसी को नहीं बताया, अलबत्ता उनके पैरेंट्स को ज़रूर सुभाष के वहां आने की जानकारी थी.
गांधीजी के वुडबर्न पार्क से रवाना होने के एक दिन बाद 18 नवंबर को सुभाष विमान से यूरोप के लिए रवाना हुए. उन्होंने क्रिसमस ऑस्ट्रियाई क़स्बे तेगस्टीन में मनाया, पहाड़ों और बर्फ़ की वादियों वाला यह ख़़ूबसूरत शहर है. कहा जाता है कि उन्होंने 26 दिसंबर, 1937 को यहीं पर एमिली शेंकल से शादी रचाई. बोस के भतीजे शिशिर और पोते सुगाता ने अपनी किताबों में स्पष्ट रूप से लिखा है कि नेताजी ने एमिली से 26 दिसंबर, 1937 को गुप्त शादी की. 11 नवंबर, 1971 को एमिली ने इतिहासकार बी. आर. नंदा से कहा, हमारी शादी 1937 में हुई थी.

सुभाष और एमिली की शादी को लेकर बोस के परिवार में जिन लोगों को शक था, उसमें उनके भतीजे द्विजेंद्र नाथ भी थे, जिनका कहना था कि सुभाष बोस से शादी संबंधी जो पत्र एमिली ने शरत को भेजा था, वह फ़र्ज़ी था. द्विजेंद्र के साथ सुभाष के बहुत से समर्थकों का मानना था कि वह किसी से भी शादी कर सकते थे, लेकिन सफ़ेद चमड़ी वाली किसी महिला से नहीं. यह कुछ अजीब-सा है. फिर उनका पक्का इरादा था कि वह देश की आज़ादी से पहले शादी नहीं करेंगे. नीरद-सी चौधरी ने भी यह लिखने से गुरेज नहीं किया,‘बोस जिस परिवार से ताल्लुक़ रखते थे, उसमें कोई बोस बेहद मामूली परिवार की सेक्रेट्री से शादी कर ले, यह बात पचती नहीं, जबकि वह किसी भी अभिजात्य बंगाली महिला से शादी कर सकते थे.’
जनवरी, 1938 में बोस नेपल्स, एथेंस, बारसा, कराची, जोधपुर होते हुए कलकत्ता लौट आए. 23 जनवरी को वह जब कराची एयरपोर्ट पर थे. तब उन्होंने मीडिया द्वारा शादी के बारे में पूछे गए सवालों को दरकिनार कर दिया,‘मेरे पास इस बारे में सोचने का समय ही नहीं है.’ तब सुभाष ने एमिली के बारे में कोई चर्चा ही नहीं की. यह बात एकदम सीक्रेट थी. यह तय है कि सुभाष और एमिली के घनिष्ठ रिश्ते 1937 से तो शुरू हो गए थे, लेकिन उन्होंने अपने परिवारवालों को इसके बारे में नहीं बताया था.
कलकत्ता पहुंचने पर उन्हें मालूम हुआ कि एमिली के पिता का निधन हो गया है. उन्होंने तुरंत शोक-संदेश भेजा. उन्होंने साथ ही एमिली के लिए धन भेजने की व्यवस्था की. लेकिन उनकी इस संभावित शादी के बाद एमिली ने उन्हें कोई पत्र नहीं भेजा. दोनों के रिश्ते इतने गुप्त थे कि ब्रिटिश एजेंट्स को इसकी कानोंकान भनक तक नहीं हुई.
सुभाष के निधन के बाद एमिली के परिवारवालों ने उन पर दूसरी शादी करने का बहुत दबाव डाला, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया. 13 मार्च, 1996 को उनका निधन हो गया. उनके निधन के बाद अंतिम-संस्कार में भारत-सरकार ने अपने मंत्री को वहां भेजा था.

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सुभाष चंद्र की पत्नी का नाम क्या था?

इसी कड़ी में हम आपको बता रहे हैं उनकी पत्नी एमिली और बेटी अनीता के बारे में। 1934 में सुभाष चन्द्र बोस ऑस्ट्रिया में अपना इलाज करा रहे थे। उस समय उन्होंने सोचा कि अपनी जीवनी लिखी जाए।

सुभाष चंद्र बोस की कितनी पत्नी थी?

सुभाष चन्द्र बोस
जीवनसाथी
एमिली शेंकल (1937 में विवाह किन्तु जनता को 1993 में पता चला)
बच्चे
अनिता बोस फाफ 29 नवंबर , 1942
संबंधी
शरतचन्द्र बोस भाई शिशिर कुमार बोस भतीजा
हस्ताक्षर
सुभाष चन्द्र बोस - विकिपीडियाhi.wikipedia.org › wiki › सुभाष_चन्द्र_बोसnull

अनिता बोस के कितने बच्चे हैं?

संक्षिप्त जीवनी अपनी शिक्षा पूर्ण करने के बाद अनिता ने प्रोफेसर मार्टिन फाफ के साथ विवाह कर लिया। उनके पति बुण्डेस्टैग जर्मनी की संसद के सदस्य थे और जर्मन सोशल डिमोक्रेटिक पार्टी से सम्बन्ध रखते थे। उन दोनों के एक बेटा व दो बेटियाँ कुल तीन बच्चे हैं

सुभाष चंद्र बोस के कितने परिवार थे?

नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को उड़ीसा में कटक के एक संपन्न बंगाली परिवार में हुआ था। बोस के पिता का नाम 'जानकीनाथ बोस' और मां का नाम 'प्रभावती' था। जानकीनाथ बोस कटक शहर के मशहूर वकील थे। प्रभावती और जानकीनाथ बोस की कुल मिलाकर 14 संतानें थी, जिसमें 6 बेटियां और 8 बेटे थे

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