असमानता का आशय तथा असमानता के कारण
अनुक्रम (Contents)
- असमानता का आशय (Meaning of Inequality)
- प्राकृतिक असमानता (Natural Inequality)-
- सामाजिक असमानताएँ (Social Inequality)-
- असमानता के कारण (Causes of Inequality)
- 1. सामाजिक स्तरीकरण (Social stratification) –
- 2. व्यावसायिक विषमताएं (Occupational Differences)
- 3. जाति व्यवस्था (Caste system) –
- 4. लिंग भेद (Sex Differences) –
- 5. धार्मिक विषमताएँ (Religious Differences) –
- 6. आर्थिक विषमता ( Economic Inequalities) –
- Important Links
- Disclaimer
असमानता का आशय (Meaning of Inequality)
असमानता का आशय तथा असमानता के कारण – समाज में चारों ओर फैली हुई असमानताओं को समाजशास्त्रियों ने दो भागों में बाँटा है – पहली प्राकृतिक तथा दूसरी सामाजिक।
प्राकृतिक असमानता (Natural Inequality)-
वे असमानताएं होती है जो मानव निर्मित नही होती हैं। इन असमानताओं के उदाहरणों में उम्र, लिंग, व्यक्तित्व संबंधी शारीरिक गुण आदि आते हैं।
सामाजिक असमानताएँ (Social Inequality)-
सामाजिक असमानताओं से तात्पर्य ऐसी दशाओं से है जो मानव निर्मित होती है जैसे – जाति, व्यवसाय, धर्म, सम्प्रदाय तथा सामाजिक स्तर आदि।
असमानता के कारण (Causes of Inequality)
असमानता के निम्न कारण हैं
1. सामाजिक स्तरीकरण (Social stratification) –
ईश्वर ने सभी मनुष्यों को शारीरिक तथा मानसिक रूप से समान बनाया है, लेकिन मानव ने असमानताओं को जन्म दिया। व्यक्ति ने समाज का स्तरीकरण कर दिया और मनुष्य को अलग-अलग वर्गो जैसे अमीर-गरीब या उच्च, मध्यम व निम्न सामाजिक-आर्थिक स्तर आदि में विभाजित कर दिया।
2. व्यावसायिक विषमताएं (Occupational Differences)
हमारे दैनिक जीवन में विभिन्न प्रकार के व्यवसाय देखने को मिलते हैं। समाज ने इनमें भी विषमता उत्पन कर दी है। कुछ व्यवसाय उच्च स्तर के माने जाते हैं तथा कुछ निम्न स्तर के।
उच्च व्यवसाय – प्रशासनिक सेवाएं, इंजीनियरिंग, चिकित्सा प्रबन्धन आदि।
निम्न व्यवसाय – क्लर्क, कृषि, प्राथमिक विद्यालयों के शिक्षक आदि।
3. जाति व्यवस्था (Caste system) –
प्राचीन काल में भारत में समाज को सुचारु रूप से चलाने के लिए हमारे ऋषि-मुनियों ने वर्ण व्यवस्था की स्थापना की थी। इन्हें चार वर्गों में बाँटा गया था- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य व शूद्र। यह व्यवस्था कर्म के आधार पर की गई थी, लेकिन समाज ने इसे एक अलग ही रूप दे दिया और यह व्यवस्था कर्म के आधार पर नहीं अपितु जन्म के आधार पर विकसित हो गई। इस व्यवस्था ने अनेकों विषमतायें उत्पन्न कर दी तथा शूद्र और पिछड़ी जातियाँ सबसे अधिक प्रभावित हुई।
4. लिंग भेद (Sex Differences) –
प्राचीन काल में स्त्री व पुरुष दोनों को ही एक समान शिक्षा तथा सामाजिक अधिकार प्राप्त थे, लेकिन धीरे- धीरे ये अधिकार कहीं विस्मित हो, गये। मुस्लिम काल में स्त्रियों की रक्षा आदि उत्तरदायित्वों का वहन पुरुषों के द्वारा किये जाने से स्त्रियों के सम्मान में धीरे-धीरे कमी हो गयी। इस काल में बहुत सी सामाजिक बुराइयाँ जैसे पर्दा प्रथा, बाल-विवाह, दहेज प्रथा, सामाजिक कुप्रथाएँ, संकीर्ण विचारधाराएँ, अशिक्षा, पुरुष-प्रधान समाज उत्पन्न हुई तथा लैंगिक भेदभावों की जड़े अत्यन्त गहरी हो गयीं।
परन्तु आज असमानता के लिए सबसे ज्यादा दोषी हमारी मानसिकता है। अतः हमें बेटियों को अभिशाप न मानकर उनकी शिक्षा की व्यवस्था करनी चाहिए, जिससे वे स्वयं भी मजबूत हों और परिवार के साथ-साथ समाज को भी मजबूत बनायें।
5. धार्मिक विषमताएँ (Religious Differences) –
भारत में अनेक धर्म के लोग रहते हैं। मुख्य रूप से भारत में सात धर्म माने गये हैं – हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, बौद्ध, जैन व पारसी। सभी धर्मों के लोग अपने धर्म को सर्वोच्च मानते हैं। जिसके कारण समाज में धार्मिक विषमताएं देखने को मिलती हैं।
6. आर्थिक विषमता ( Economic Inequalities) –
समाज का आर्थिक दृष्टिकोण ही मुख्य रूप से समाज में आर्थिक विषमता उत्पन्न करता है। कार्लमार्क्स ने अपनी पुस्तक ‘कम्युनिस्ट मैनीफेस्टों में बताया कि समाज में दो ही वर्ग हैं – एक पूँजीपति वर्ग तथा दूसरा मजदूर वर्ग जिसे मार्क्स ने बुर्जुआ कहा। इन दोनो वर्गों में न समाप्त होने वाला द्वन्द्व चलता रहता है।
असमानताएँ जीवनपर्यन्त चलने वाली समस्याएँ हैं। ये ऐसी क्षतियाँ हैं जिनसे मानव जीवन का विकास हो पाना मुश्किल जान पड़ता है। प्राकृतिक असमानताओं की पूर्ति तो समाज कर सकता है परन् सामाजिक असमानताओं की समाप्ति मानव धीरे-धीरे अपने प्रयासों से कर सकता है तथा एक स्वस्थ समाज का सृजन कर सकता है।
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