शेरपा कुली की मृत्यु का कारण क्या था? - sherapa kulee kee mrtyu ka kaaran kya tha?

एवरेस्ट : मेरी शिखर यात्रा

लेखक परिचय :

बचेंद्री पाल

लेखिका का नाम : बचेंद्री पाल

जन्म : 24 मई 1954 , उत्तराखंड के चमोली जिले के बंपा गाँव में।

माता का नाम : हंसादेई नेगी पिता का नाम: किशन सिंह पाल

बचेंद्री पाल अपने माता-पिता की पाँच संतानों में से तीसरी संतान हैं । आर्थिक समस्याओं के कारण पिता पढ़ाई का खर्च उठा पाने में असमर्थ थे। अत: आठवी कक्षा के बाद से बचेंद्री ने अपनी शिक्षा का खर्च सिलाई कढ़ाई कर स्वयं उठाया था। उस समय ग्रामीण क्षेत्रों के लोग अपनी बेटियों को उच्च शिक्षा नहीं देते थे। बचेंद्री के दसवीं पास कर लेने पर उनके माता-पिता भी उनके विवाह के बारे में सोचने लगे । किंतु उनके प्रधानाध्यापक के द्वारा समझाने पर बचेंद्री को उच्च शिक्षा प्राप्त करने की अनुमति मिल गई । बचेंद्री पाल ने अवसर का लाभ उठाते हुए संस्कृत में एम.ए. किया और बी.एद. कर प्रशिक्षित अध्यापिका बन गई ।

बचेंद्री को बचपन से ही पर्वतारोहण का शौक था । पर्वतीय क्षेत्र की होने के कारण उन्हें पर्वतारोहण का अनुभव भी था। अत: पढ़ाई पूरी करने के बाद बचेंद्री पाल ने अपने शौक पूरा करने के लिए अवसर ढूँढना प्रारंभ किया। इसी दौरान महिलाओं को प्रोत्साहन देने के लिए इंडियन माउंटेन फाउंडेशन ने एवरेस्ट अभियान पर जाने वाली महिलाओं की खोज शुरू की । अवसर का लाभ उठाते हुए बचेंद्री इस अभियान दल में शामिल हो गईं और ट्रेनिंग के दौरान 7500 मीटर ऊँची मान चोटी पर सफलता पूर्वक चढ़ीं। कई महीनों के अभ्यास और कठिन परिश्रम के बाद बचेंद्री पाल को 7 मार्च 1986 को एवरेस्ट अभियान में जाने का अवसर मिला । 22 मई 1984 को बचेंद्री पाल ने अपने अभियान दल के सदस्य अंग दोरजी के साथ एवरेट विजय करने में सफलता पाई । इसके साथ ही बचेंद्री पाल एवरेस्ट विजय करने वाली प्रथम भारतीय और विश्व की पाँचवी महिला पर्वतारोही बन गईं ।

एवरेस्ट विजय के बाद भी बचेंद्री पाल अनेक पर्व‍तारोही अभियानों से जुड़ी रहीं , जिसमें इंडो नेपालीज़ वोमेन माउंट एवेरेस्ट एक्स्पीडिशन प्रमुख है जिसमें 1993 में सात महिला पर्वतारोही शिखर पर पहुँची थी । बचेंद्री पाल अनेक सामाजिक कार्यों में भी हिस्सा लेती रहीं हैं ।वर्तमान में इस्पात कंपनी ‘टाटा स्टील’ में कार्यरत, जहाँ चुने हुए लोगो को रोमांचक अभियानों का प्रशिक्षण देती हैं।

पुरस्कार : बचेंद्री पाल को अनेक सम्मान और पुरस्कार प्राप्त होते रहे हैं जिनमें कुछ प्रमुख पुरस्कार नीचे दिए गए हैं ।

1.भारतीय पर्वतारोहण फाउंडेशन से पर्वतारोहण में उत्कृष्टता के लिए स्वर्ण पदक 1984

2.पद्मश्री पुरस्कार 1984

3.उत्तर प्रदेश शिक्षा विभाग द्वारा स्वर्ण पदक 1985 ।

4. नेशनल एडवेंचर पुरस्कार भारत सरकार 1994 ।

बचेंद्री पाल राष्ट्रपति रामनाथ कोबिंद द्वारा प्रदान भारत का तृतीय सर्वोच्च पुरस्कार पद्म भूषण ग्रहण करते हुए

5. अर्जुन पुरस्कार भारत सरकार 1986

6.इसके अतिरिक्त बचेंद्रीपाल को भारत का तृतीय सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म भूषण 16 मार्च 2019 को राष्ट्रपति रामनाथ कोबिंद द्वारा प्रदान किया गया ।

’एवरेस्ट : मेरी शिखर यात्रा ” लेखिका बचेंद्री पाल की रोमांचक पर्वतारोहण यात्रा का स्वयं लिखा हुआ विवरण है। उसी का अंश यह पाठ है जिसमें लेखिका ने एवरेस्ट विजय के लोमहर्षक क्षण को अंकित किया है।

एवरेस्ट : मेरी शिखर यात्रा’ पाठ की व्याख्या

एवरेस्ट अभियान दल 7 मार्च को दिल्ली से काठमांडू के लिए हवाई जहाज़ से चल दिया। एक मजबूत अग्रिम दल बहुत पहले ही चला गया था जिससे कि वह हमारे “बेस कैंप’ पहुंचने से पहले दुर्गम हिमपात के रास्ते को साफ़ कर सके।

दुर्गम= inaccessible हिमपात snowfall एवरेस्ट अभियान दल Everest expedition team अग्रिम दल front team /advance party

व्याख्या: बचेंद्री पाल अपने एवरेस्ट अभियान दल ( expedition team) बचेंद्री पाल के साथ 7 मार्च को दिल्ली से काठमांडू के लिए हवाई जहाज से रवाना हुई । उनसे पहले ही एक अन्य मजबूत दल एवरेस्ट के लिए निकल पड़ा था जिससे कि वह बचेंद्री के एवरेस्ट अभियान दल के बेस कैंप पहुँचने से पहले ही वहाँ के कठिन बर्फ़ भरे रास्ते को साफ़ कर सके।

नमचे बाजार, शेरपालैंड का एक सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण नगरीय क्षेत्र है। अधिकांश शेरपा इसी स्थान तथा यहीं के आसपास के गाँवों के होते हैं। यह नमचे बाजार ही जहाँ से मैंने सर्वप्रथम एवरेस्ट को निहारा, जो नेपालियों में ‘सागरमाथा’ के नाम से प्रसिद्ध है। मुझे यह नाम अच्छा लगा।

सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण नगरीय क्षेत्र most important urban area

व्याख्या: नमचे बाजार नेपाल के शेरपालैंड का एक सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण शहरी इलाका है ।शेरपा नेपाल में रहने वाली एक जनजाति (tribe) है और उसी जनजाति के नाम पर इस स्थान का नाम शेरपालैंड पड़ा है। वे लोग नमचे बाजार के आसपास के गाँवों में ही बसे हुए हैं । नमचे बाजार से ही लेखिका बचेंद्री पाल ने बार एवरेस्ट को देखा था । नेपाल में एवरेस्ट को सागरमाथा के नाम से जाना जाता है । लेखिका को सागरमाथा नाम पसंद आया।

एवरेस्ट की तरफ़ गौर से देखते हुए, मैंने एक भारी बर्फ़ का बड़ा फूल (प्लूम) देखा, जो पर्वत शिखर पर लहराता एक ध्वज-सा लग रहा था। मुझे बताया गया कि वह दृश्य शिखर की ऊपरी सतह के आसपास 150 किलोमीटर अथवा इससे भी अधिक की गति से हवा चलने के कारण बनता था, क्योंकि तेज़ हवा से सूखा बर्फ पर्वत पर उड़ता रहता था। बर्फ़ का यह ध्वज 10 किलोमीटर या इससे भी लंबा हो सकता था। शिखर पर जाने वाले प्रत्येक व्यक्ति को दक्षिण-पूर्वी पहाड़ी पर इन तूफ़ानों को झेलना पड़ता था, विशेषकर खराब मौसम में। यह मुझे डराने के लिए काफ़ी था, फिर भी मैं एवरेस्ट के प्रति विचित्र रूप से आकर्षित थी और इसकी कठिनतम चुनौतियों का सामना करना चाहती थी।

शिखर peak ध्वज flag

व्याख्या: लेखिका ने एवरेस्ट को ध्यानपूर्वक देखा । लेखिका ने एक बड़ा भारी बर्फ़ का प्लूम देखा जो कि एक लहराते हुए (waving )झंडे के समान दिख रहा था । यह दृश्य एवरेस्ट की चोटी के ऊपरी सतह के आस-पास 150 किलोमीटर या इससे भी अधिक तेज़ चाल से चलने वाली हवा के कारण बनता है । क्योंकि तेज़ हवा में सूखा हुआ बर्फ़ पर्वत पर उड़ता रहता है और एक स्थान से दूसरी जगह पर इकट्ठा होता रहता है ।इस घटना को आप रेगिस्तानी रेत के एक स्थान से दूसरे स्थान पर इकट्ठे होने की घटना से समझ सकते हैं । बर्फ़ का ध्वज दस किलोमीटर या इससे भी अधिक लंबा हो सकता था ।शिखर पर जाने वाले हर व्यक्ति को दक्षिण-पूर्वी पहाड़ी पर इन तूफ़ानों का सामना करना पड़ता है । मौसम जब खराब होता है तो ऐसी परिस्थितियाँ अधिक हो जाती हैं । ये परिस्थितियाँ किसी भी व्यक्ति को डराने के लिए काफ़ी थीं । लेखिका भी इन परिस्थितियों से डर सकतीं थीं । किंतु लेखिका एवरेस्ट पर चढ़ाई करने के लिए काफ़ी उत्सुक थीं । और इसकी कठिनतम चुनौतियों का सामना करना चाहतीं थीं।

जब हम 26 मार्च को पैरिच पहुँचे, हमें हिम-स्खलन के कारण हुई एक शेरपा कुली की मृत्यु का दुःखद समाचार मिला। खुंभु हिमपात पर जानेवाले अभियान-दल के रास्ते के बाईं तरफ़ सीधी पहाड़ी के धसकने से, ल्होत्से की ओर से एक बहुत बड़ी बर्फ़ की चट्टान
नीचे खिसक आई थी। सोलह शेरपा कुलियों के दल में से एक की मृत्यु हो गई और चार घायल हो गए थे।

हिमपात snowfall धसकने subside

व्याख्या: 26 मार्च को लेखिका अपने दल के साथ पैरिच पहुँची , उसी दिन उन्हें हिम-स्खलन के कारण हुई एक शेरपा कुली की मृत्यु का समाचार मिला । बचेंद्री पाल कहती हैं कि खुंभु हिमपात पर जानेवाले अभियान-दल के रास्ते के बाईं तरफ़ सीधी पहाड़ी के धसकने से, ल्होत्से की ओर से एक बहुत बड़ी बर्फ की चट्टान नीचे खिसक आई थी। सोलह शेरपा कुलियों के दल में से एक की मृत्यु हो गई और चार घायल हो गए थे।

इस समाचार के कारण अभियान दल के सदस्यों के चेहरों पर छाए अवसाद को देखकर हमारे नेता कर्नल खुल्लर ने स्पष्ट किया कि एवरेस्ट जैसे महान अभियान में खतरों को और कभी-कभी तो मृत्यु भी आदमी को सहज भाव से स्वीकार करनी चाहिए।

अवसाद Depression सहज भाव taking with ease

व्याख्या: इस समाचार के कारण बचेंद्री पाल के अभियान दल के सदस्यों के चेहरों पर छाई उदासी को देखकर उनके दल के नेता कर्नल खुल्लर ने सभी सदस्यों को स्पष्ट शब्दों में बताया कि एवरेस्ट जैसे महान अभियान में खतरों को और कभी-कभी तो मृत्यु को भी आदमी को सहज भाव से स्वीकार करनी चाहिए। उनके कहने का अभिप्राय था कि एवरेस्ट पर चढ़ाई करना कोई आसान काम नहीं है, वहाँ पर जाना मौत के मुँह में कदम रखने के बराबर है।

उपनेता प्रेमचंद, जो अग्रिम दल का नेतृत्व कर रहे थे, 26 मार्च को पैरिच लौट आए। उन्होंने हमारी पहली बड़ी बाधा खुंभु हिमपात की स्थिति से हमें अवगत कराया। उन्होंने कहा कि उनके दल ने कैंप-एक (6000 मी.), जो हिमपात के ठीक ऊपर है, वहाँ तक का रास्ता साफ़ कर दिया है। उन्होंने यह भी बताया कि पुल बनाकर, रस्सियाँ बाँधकर तथा झंडियों से रास्ता चिह्नित कर, सभी बड़ी कठिनाइयों का जायजा ले लिया गया है। उन्होंने इस पर भी ध्यान दिलाया कि ग्लेशियर बर्फ़ की नदी है और बर्फ़ का गिरना अभी जारी है। हिमपात में अनियमित और अनिश्चित बदलाव के कारण अभी तक के किए गए सभी काम व्यर्थ हो सकते हैं और हमें रास्ता खोलने का काम दोबारा करना पड़ सकता है।

अनियमित irregular अनिश्चित uncertain

व्याख्या: लेखिका के दिल्ली से रवाना होने से पहले ही एक अन्य दल लेखिका के दल की सहायता करने के लिए रवाना हुआ था । यह अग्रिम दल (आगे चलने वाला दल) जिसका नेतृत्व उपनेता प्रेमचंद कर रहे थे 26 मार्च को पैरिच लौट आया और उन्होंने खुंभु हिमपात की स्थिति के बारे में लेखिका के दल को बताया। खुंभु एवरेस्ट के मार्ग पर पड़ने वाला एक ग्लेशियर है जहाँ अकसर बर्फ़बारी होती रहती है । यह स्थान पर्वतारोहियों के लिए एक बड़ी बाधा के रूप में देखा जाता है । प्रेमचंद ने बताया कि अग्रिम दल ने खुंभु हिमपात के ठीक ऊपर कैंप -1 लगाया है और यह स्थान 6000 मी. की ऊँचाई पर है । यहाँ तक रास्ता बना दिया गया है । अस्थाई पुल बना दिये गए हैं और रस्सियाँ बाँधकर और झंडियाँ लगाकर मार्ग चिह्नित कर दिया गया है । साथ ही सभी कठिनायों के बारे में जाँच कर ली गई है । प्रेमचंद ने यह भी बताया कि ग्लेशियर एक बर्फ़ की नदी होती है और बर्फ़ का गिरना अभी तक जारी है जिसके कारण संभव है कि कुछ अनियमित और अनिश्चित बदलाव करने पड़ सकते हैं अथवा सभी अब तक के कार्य जैसे – रस्सी बाँधना , झंडियों से रास्ते का निशान लगाना या रास्ता खोलने का काम दोबारा करना पड़ सकता है।

‘बेस कैंप’ में पहुँचने से पहले हमें एक और मृत्यु की खबर मिली। जलवायु -अनुकूल न होने के कारण एक रसोई सहायक की मृत्यु हो गई थी। निश्चित रूप से हम आशाजनक स्थिति में नहीं चल रहे थे।

एवरेस्ट शिखर को मैंने पहले दो बार देखा था, लेकिन एक दूरी से। बेस कैंप पहुँचने पर दूसरे दिन मैंने एवरेस्ट पर्वत तथा इसकी अन्य श्रेणियों को देखा। मैं भौंचक्की होकर खड़ी रह गई और एवरेस्ट, ल्होत्से और नुत्से की ऊँचाइयों से घिरी, बर्फीली टेढ़ी-मेढ़ी नदी को निहारती रही।

जलवायु -अनुकूल न होना unfavourable climate श्रेणियों series भौंचक्की surprised

व्याख्या: बचेंद्री पाल कहती हैं कि ‘बेस कैंप’ में पहुँचने से पहले उन्हें और उनके साथियों को एक और मृत्यु की खबर मिली। जलवायु के सही न होने के कारण एक रसोई सहायक की मृत्यु हो गई थी। निश्चित रूप से अब बचेंद्री पाल और उनके साथी कोई अच्छी उम्मीद वाली स्थिति में न थे । सभी घबराए हुए थे। एवरेस्ट शिखर को बचेंद्री पाल ने पहले दो बार देखा था, लेकिन दूरी से ही देखा था इस बार लेखिका को एवरेस्ट निकट से देखने का अवसर मिला। बेस कैंप पहुँचने पर दूसरे दिन बचेंद्री पाल ने एवरेस्ट पर्वत तथा इसकी दूसरी श्रेणियों को देखा। बचेंद्री पाल हैरान होकर खड़ी रह गई और एवरेस्ट, ल्होत्से और नुत्से की ऊँचाइयों से घिरी, बर्फीली टेढ़ी-मेढ़ी नदी को देखती रह गईं ।(एवरेस्ट, ल्होत्से और नुत्से पर्वत श्रंखलाओं के नाम हैं)

हिमपात अपने आपमें एक तरह से बर्फ के खंडों का अव्यवस्थित ढंग से गिरना ही था। हमें बताया गया कि ग्लेशियर के बहने से अकसर बर्फ़ में हलचल हो जाती थी, जिससे बड़ी-बड़ी बर्फ़ की चट्टानें तत्काल गिर जाया करती थीं और अन्य कारणों से भी अचानक प्राय: खतरनाक स्थिति धारण कर लेती थीं। सीधे धरातल पर दरार पड़ने का विचार और इस दरार का गहरे-चौड़े हिम-विदर में बदल जाने का मात्र खयाल ही बहुत डरावना था। इससे भी ज्यादा भयानक इस बात की जानकारी थी कि हमारे संपूर्ण प्रवास के दौरान हिमपात लगभग एक दर्जन आरोहियों और कुलियों को प्रतिदिन छूता रहेगा।

बर्फ के खंड ice blocks चट्टान rocks तत्काल quickly हिम-विदर snow fissure

आरोहियों climbers/ mountaineers

व्याख्या:हिमपात में बर्फ़ के टुकड़े बेतरतीब तरीके से गिरते रहते हैं । पर्वतारोहियों को बताया गया कि कई बार ग्लेशियर के बहने से बर्फ़ में कुछ हलचल भी हो जाती है जिससे बड़ी बड़ी चट्टानें भी गिर जाती हैं । यह स्थिति अकसर काफ़ी खतरनाक हो जाती है क्योंकि ऐसे समय में एक धारातल सा दिखने वाला क्षेत्र अचानक से एक बड़ी सी दरार में बदल जाता है । लेखिका लिखतीं हैं कि यह स्थिति सोच कर ही डर सा लगता है और इससे भीअधिक भयानक बात यह थी कि पर्वतारोहियों की टोली को जानकारी दी गई कि एवरेस्ट प्रवास stay के दौरान हिमपात एक दर्ज़न पर्वतारोहियों mountaineers और कुलियों ( helpers who carry luggage ) को लगातार छूता रहेगा अर्थात लगातार हिमपात होने की संभावना थी ।

दूसरे दिन नए आनेवाले अपने अधिकांश सामान को हम हिमपात के आधे रास्ते
तक ले गए। डॉ. मीनू मेहता ने हमें अल्यूमिनियम की सीढ़ियों से अस्थायी पुलों का
बनाना, लट्ठों और रस्सियों का उपयोग, बर्फ़ की आड़ी-तिरछी दीवारों पर रस्सियों को
बाँधना और हमारे अग्रिम दल के अभियांत्रिकी कार्यों के बारे में हमें विस्तृत जानकारी दी।

तीसरा दिन हिमपात से कैंप-एक तक सामान ढोकर चढ़ाई का अभ्यास करने के
लिए निश्चित था। रीता गोंबू तथा मैं साथ-साथ चढ़ रहे थे। हमारे पास एक
वॉकी-टॉकी था, जिससे हम अपने हर कदम की जानकारी बेस कैंप पर दे रहे थे।
कर्नल खुल्लर उस समय खुश हुए, जब हमने उन्हें अपने पहुँचने की सूचना दी
क्योंकि कैंप-एक पर पहुँचनेवाली केवल हम दो ही महिलाएँ थीं।

अंगदोरजी, लोपसांग और गगन बिस्सा अंततः साउथ कोल पहुँच गए और 29
अप्रैल को 7900 मीटर पर उन्होंने कैंप-चार लगाया। यह संतोषजनक प्रगति थी।

संतोषजनक प्रगति satisfactory progress सामान ढोना carry luggage अभियांत्रिकी technical

व्याख्या: बचेंद्री पाल कहती हैं कि दूसरे दिन नए आने वाले अपने ज़्यादातर सामान को वे हिमपात के आधे रास्ते तक ले गए। डॉ मीनू मेहता ने बचेंद्री पाल और उनके साथियों को अल्यूमिनियम की सीढ़ियों से अस्थायी पुलों का बनाना, लठ्ठों और रस्सियों का उपयोग, बर्फ की आड़ी-तिरछी दीवारों पर रस्सियों को बाँधना और उनके पहले दल के तकनीकी कार्यों के बारे में उन्हें विस्तार से सारी जानकारी दी। बचेंद्री पाल कहती हैं कि उनका तीसरा दिन हिमपात से कैंप-एक तक सामान ढोकर चढ़ाई का अभ्यास करने के लिए पहले से ही निश्चित था। रीता गोंबू तथा बचेंद्री पाल साथ-साथ चढ़ रहे थे। उनके पास एक वॉकी-टॉकी था, जिससे वे अपने हर कदम की जानकारी बेस कैंप पर दे रहे थे। कर्नल खुल्लर उस समय खुश हुए, जब रीता गोंबू तथा बचेंद्री पाल ने उन्हें अपने पहुँचने की सूचना दी क्योंकि कैंप-एक पर पँहुचने वाली केवल वे ही दो महिलाएँ थीं। अंग दोरजी , लोपसांग और गगन बिस्सा भी अंत में साउथ कोल कैंप में पहुँच गए। 29 अप्रैल को 7900 मीटर पर उन्होंने कैंप-चार लगाया। लेखिका ने इस प्रगति को संतोषजनक बताया ।।

जब अप्रैल में मैं बेस कैंप में थी, तेनजिंग अपनी सबसे छोटी सुपुत्री डेकी के साथ
हमारे पास आए थे। उन्होंने इस बात पर विशेष महत्त्व दिया कि दल के प्रत्येक सदस्य
और प्रत्येक शेरपा कुली से बातचीत की जाए। जब मेरी बारी आई, मैंने अपना परिचय
यह कहकर दिया कि मैं बिलकुल ही नौसिखिया हूँ और एवरेस्ट मेरा पहला अभियान
है। तेनजिंग हँसे और मुझसे कहा कि एवरेस्ट उनके लिए भी पहला अभियान है, लेकिन
यह भी स्पष्ट किया कि शिखर पर पहुँचने से पहले उन्हें सात बार एवरेस्ट पर जाना पड़ा
था। फिर अपना हाथ मेरे कंधे पर रखते हुए उन्होंने कहा, “तुम एक पक्की पर्वतीय
लड़की लगती हो। तुम्हें तो शिखर पर पहले ही प्रयास में पहुँच जाना चाहिए।”

नौसिखिया novice / beginner पर्वतीय लड़की mountain girl

व्याख्या: जब अप्रैल में लेखिका अपने बेस कैंप में थी उसी दौरान उनकी मुलाकात प्रथम एवरेस्ट विजेताओं में से एक तेनजिंग से हुई थी जो अपनी पुत्री डेकी के साथ अभियान दल के लोगों से मिलने आए थे। तेनजिंग की सहृदय का उल्लेख करते हुए वह लिखती हैं कि उन्होंने यह कोशिश की कि वे अभियान दल के हर सदस्य और हर शेरपा कुली से बात करें । लेखिका ने तेनजिंग को अपना परिचय एक नौसिखिया पर्वतारोही के रूप में दिया और बताया कि यह लेखिका का एवरेस्ट विजय का प्रथम प्रयास है । तेनजिंग हँसे और कहा कि एवरेस्ट उनके लिए भी पहला अभियान है लेकिन यह भी बताया कि तेनजिंग अपने सातवें प्रयास में एवरेस्ट की चोटी पर चढ़ सके थे। उन्होंने बचेंद्री का उत्साह बढ़ाने के लिए कहा कि तुम एक पक्की पहाड़ी लड़की लगती हो ,अतः तुम्हें तो एवरेस्ट की चोटी पर अपनी पहली कोशिश में ही पहुँच जाना चाहिए।

15-16 मई 1984 को बुद्ध पूर्णिमा के दिन मैं ल्होत्से की बर्फ़ीली सीधी ढलान पर लगाए गए सुंदर रंगीन नाइलॉन के बने तंबू के कैंप-तीन में थी। कैंप में 10 और व्यक्ति थे।लोपसांग, तशारिंग मेरे तंबू में थे, एन.डी. शेरपा तथा और आठ अन्य शरीर से मज़बूत और ऊँचाइयों में रहनेवाले शेरपा दूसरे तंबुओं में थे।मैं गहरी नींद में सोई हुई थी कि रात में 12.30 बजे के लगभग मेरे सिर के पिछले हिस्से में किसी एक सख्त चीज के टकराने से मेरी नींद अचानक खुल गई और साथ ही एक जोरदार धमाका भी हुआ। तभी मुझे महसूस हुआ कि एक ठंडी, बहुत भारी कोई चीज मेरे शरीर पर से मुझे कुचलती हुई चल रही है। मुझे साँस लेने में भी कठिनाई हो रही थी।

ढलान slope तंबू tent

व्याख्या: 15-16 मई 1984 को बुद्ध पूर्णिमा के दिन लेखिका ल्होत्से की बर्फ़ीली सीधी ढलान पर लगाए गए सुंदर रंगीन नाइलॉन के बने तंबू के कैंप-तीन में थी। कैंप में 10 और व्यक्ति थे।लोपसांग, तशारिंग लेखिका के तंबू में थे, एन.डी. शेरपा तथा और आठ अन्य शरीर से मज़बूत और ऊँचाइयों में रहनेवाले शेरपा दूसरे तंबुओं में थे।उस समय बचेंद्री पाल गहरी नींद में सोई हुई थी कि रात में 12.30 बजे के लगभग उनके सिर के पिछले हिस्से में किसी एक सख्त चीज के टकराने से नींद अचानक खुल गई और साथ ही एक जोरदार धमाका भी हुआ। तभी लेखिका ने महसूस किया कि एक ठंडी, बहुत भारी कोई चीज उनके शरीर पर से कुचलती हुई चल रही है। उन्हें साँस लेने में भी कठिनाई हो रही थी।

यह क्या हो गया था? एक लंबा बर्फ का पिंड हमारे कैंप के ठीक ऊपर ल्होत्से ग्लेशियर से टूटकर नीचे आ गिरा था और उसका विशाल हिमपुंज बना गया था। हिमखंडों, बर्फ के टुकड़ों तथा जमी हुई बर्फ के इस विशालकाय पुंज ने, एक एक्सप्रेस रेलगाड़ी की तेज गति और भीषण गर्जना के साथ, सीधी ढलान से नीचे आते हुए हमारे कैंप को तहस-नहस कर दिया। वास्तव में हर व्यक्ति को चोट लगी थी। यह एक आश्यर्च था कि किसी की मृत्यु नहीं हुई थी।

लोपसांग अपनी स्विस छुरी की मदद से हमारे तंबू का रास्ता साफ़ करने में सफल हो गए थे और तुरंत ही अत्यंत तेजी से मुझे बचाने की कोशिश में लग गए। थोड़ी-सी भी देर का सीधा अर्थ था मृत्यु। बड़े-बड़े हिमपिंडों को मुश्किल से हटाते हुए उन्होंने मेरे चारों तरफ़ की कड़े जमे बर्फ की खुदाई की और मुझे उस बर्फ की कब्र से निकाल बाहर खींच लाने में सफल हो गए।

कब्र Grave

व्याख्या: बचेंद्री पाल यह जान न सकी कि यह क्या हो रहा था । एक बड़ा लंबा बरफ़ का टुकड़ा ल्होत्से ग्लेशियर से टूटकर उनके कैंप के ठीक ऊपर आ गिरा था और एक विशाल बर्फ़ का ढेर सा बन गया था ।लेखिका ने इस हिमखंडों, बर्फ के टुकड़ों तथा जमी हुई बर्फ के इस विशालकाय पुंज के कैंप पर गिरने की तुलना एक एक्सप्रेस रेलगाड़ी की तेज गति और भीषण गर्जना के साथ की । इस बर्फ़ की चट्टान ने सीधी ढलान से नीचे आते हुए बचेंद्री पाल के कैंप को तहस-नहस कर दिया। इस घटना में भाग्यवश किसी की मृत्यु नहीं हुई । किंतु हरेक को चोट आई थी। लेखिका अपने टाईंट में दबी हुई थी उनके दल के सदस्य लोपसांग ने अपनी स्विस छुरी की मदद से लेखिका के टैंट का रास्ता साफ़ किया और अत्यंत तेज़ी से उन्हें बचाने की कोशिश में लग गए। क्योंकि थोड़ी सी देर होने पर मृत्यु का खतरा था । बड़े- बड़े बर्फ़ के टुकड़े हताते हुए उन्होंने बचेंद्री पाल के चारों ओर जमी कड़ी बर्फ़ की तेज़ी से खुदाई की और लेखिका को वहाँ से निकाल लेने में सफ़लता पाई । इस खतरनाक हादसे में लेखिका मौत के मुँह से बचकर बाहर आईं थीं ।

सुबह तक सारे सुरक्षा दल आ गए थे और 16 मई को प्रातः 8 बजे तक हम प्रायः सभी कैंप-दो पर पहुँच गए थे। जिस शेरपा की टाँग की हड्डी टूट गई थी, उसे एक खुद के बनाए स्ट्रेचर पर लिटाकर नीचे लाए। हमारे नेता कर्नल खुल्लर के शब्दों में, “यह इतनी ऊँचाई पर सुरक्षा कार्य का एक ज़बरदस्त साहसिक कार्य था।”सभी नौ पुरुष सदस्यों को चोटों अथवा टूटी हड्डियों आदि के कारण बेस कैंप में भेजना पड़ा। तभी कर्नल खुल्लर मेरी तरफ़ मुड़कर कहने लगे, “क्या तुम भयभीत थी?”

“जी हाँ। “

क्या तुम वापिस जाना चाहोगी?”

“नहीं” मैंने बिना किसी हिचकिचाहट के उत्तर दिया।

व्याख्या: बचेंद्री पाल कहती हैं कि अगली सुबह तक सारे सुरक्षा दल आ गए थे और 16 मई को प्रातः 8 बजे तक वे सभी कैम्प-दो पर पहुँच गए थे। बचेंद्री पाल कहती हैं कि जिस शेरपा की टाँग की हड्डी टूट गई थी, उसे खुद के बनाए हुए स्ट्रेचर पर लिटाकर बेस कैंप भेजा गया। बचेंद्री पाल और उनके दल के नेता कर्नल खुल्लर ने पिछली रात को हुए हादसे को उनके शब्दों में कुछ इस तरह कहा कि यह इतनी ऊँचाई पर सुरक्षा-कार्य का एक अत्यंत साहस से भरा कार्य था। बचेंद्री पाल कहती हैं कि सभी नौ पुरुष सदस्यों को जिन्हें चोटें आई थी और हड्डियां टूटी थी उन्हें बेस कैंप में भेजना पड़ा। तभी कर्नल खुल्लर बचेंद्री पाल की तरफ मुड़े और कहने लगे कि क्या वह डरी हुई है? बचेंद्री पाल ने हाँ में उत्तर दिया। कर्नल खुल्लर के फिर से पूछने पर कि क्या वह वापिस जाना चाहती है? बचेंद्री पाल ने बिना किसी हिचकिचाहट के उत्तर दिया कि वह वापिस नहीं जाना चाहती।

जैसे ही में साउथ कोल कैंप पहुँची, मैंने अगले दिन की अपनी महत्त्वपूर्ण चढ़ाई की तैयारी शुरू कर दी। मैंने खाना, कुकिंग गैस तथा कुछ ऑक्सीजन सिलिंडर इकट्ठे किए। जब दोपहर डेढ़ बजे बिस्सा आया, उसने मुझे चाय के लिए पानी गरम करते देखा की जय और मीनू अभी बहुत पीछे थे। मैं चिंतित थी क्योंकि मुझे अगले दिन उनके साथ ही चढ़ाई करनी थी। वे धीरे-धीरे आ रहे थे क्योंकि वे भारी बोझ लेकर और बिना ऑक्सीजन के चल रहे थे।

व्याख्या :जैसे ही बचेंद्री पाल साउथ कोल कैंप पहुँची, उन्होंने अगले दिन की अपनी महत्त्वपूर्ण चढ़ाई की तैयारी शुरू कर दी। बचेंद्री पाल ने खाना, कुकिंग गैस तथा कुछ ऑक्सीजन सिलिंडर इकट्ठे किए। जब दोपहर डेढ़ बजे बिस्सा आया, तो उसने बचेंद्री पाल को चाय के लिए पानी गरम करते देखा। की, जय और मीनू अभी बहुत पीछे थे। बचेंद्री पाल चिंतित थी क्योंकि उन्हें अगले दिन उनके साथ ही चढ़ाई करनी थी। वे धीरे-धीरे आ रहे थे क्योंकि वे भारी बोझ लेकर और बिना ऑक्सीजन के चल रहे थे।

दोपहर बाद मैंने अपने दल के दूसरे सदस्यों की मदद करने और अपने एक
थरमस को जूस से और दूसरे को गरम चाय से भरने के लिए नीचे जाने का निश्चय
किया। मैंने बर्फ़ीली हवा में ही तंबू से बाहर कदम रखा। जैसे ही मैं कैंप क्षेत्र से बाहर
आ रही थी मेरी मुलाकात मीनू से हुई। की और जय अभी कुछ पीछे थे। मुझे जय
जेनेवा स्पर की चोटी के ठीक नीचे मिला। उसने कृतज्ञतापूर्वक चाय वगैरह पी लेकिन
मुझे और आगे जाने से रोकने की कोशिश की। मगर मुझे की से भी मिलना था।
थोड़ा-सा और आगे नीचे उतरने पर मैंने की को देखा। वह मुझे देखकर हक्का-बक्का
रह गया।

“तुमने इतनी बड़ी जोखिम क्यों ली बचेंद्री?”

मैंने उसे दृढ़तापूर्वक कहा, “मैं भी औरों की तरह एक पर्वतारोही हूँ, इसीलिए इस
दल में आई हूँ। शारीरिक रूप से मैं ठीक हूँ। इसलिए मुझे अपने दल के सदस्यों को
मदद क्यों नहीं करनी चाहिए।” की हँसा और उसने पेय पदार्थ से प्यास बुझाई, लेकिन
उसने मुझे अपना किट ले जाने नहीं दिया।

हक्का-बक्का Astound

व्याख्या : दोपहर के बाद लेखिका नेअपने दल के उन सदस्यों की मदद करने की सोची जो भारी सामान लेकर आ रहे थे । लेखिका ने एक थरमस में जूस और दूसरे में गरम चाय लेकर नीचे जाने का निश्चय किया। जब उन्होंने अपने तंबू से बाहर पाँव रखा तब बर्फ़ीली हवा चल रही थी कैंप क्षेत्र से बाहर आते ही लेखिका की मुलाकात दल की सदस्या मीनू से हुई । की और जय अभी पीछे थे। जय लेखिका को जेनेवा स्पर की चोटी के नीचे प मिला और उन्होंने आभार व्यक्त करते हुए चाय आदि पीये किंतु लेखिका को और नीचे उतरने से रोका क्योंकि ऐसा खतरनाक और मेहनत का काम सिद्ध होता । लेकिन लेखिका की से भी मिलना चाहती थीं । थोड़ा नीचे उतरने पर बचेंद्री पाल को की भी मिला । लेखिका चुंकि पहले ही ऊपर पहुँच चुकी थी अत: की उन्हें देख कर आश्चर्य चकित हो गया और पूछा कि तुमने इतना खतरा क्यों लिया? बचेंद्रीपाल ने दृढ़तापूर्वक उत्तर दिया कि वे भी एक पर्वतारोही हैं और इसी दल की सदस्य हैं स्वास्थ्य भी ठीक है अतः उनका कर्तव्य है कि वे अपने दल के अन्य सदस्यों की मदद करें । इस उत्तर पर की हँसा। उसने बचेंद्रीपाल द्वारा लाए पेय को पीया ।बचेंद्रीपाल ने उनका सामान उठाने की पेशकश की जिसे की ने स्वीकार नहीं किया।

थोड़ी देर बाद साउथ कोल कैंप से ल्हाटू और बिस्सा हमें मिलने नीचे उतर आए और
हम सब साउथ कोल पर जैसी भी सुरक्षा और आराम की जगह उपलब्ध थी, उस पर लौट
आए साउथ कोल ‘पृथ्वी पर बहुत अधिक कठोर’ जगह के नाम से प्रसिद्ध है।

व्याख्या : बचेंद्री पाल कहती हैं कि थोड़ी देर बाद साउथ कोल कैंप से ल्हाटू और बिस्सा उनसे मिलने नीचे उतर आए। और वे सब साउथ कोल कैंप पर जैसी भी सुरक्षा और आराम की जगह उपलब्ध थी, उस पर लौट आए। बचेंद्री पाल कहती हैं कि साउथ कोल ‘पृथ्वी पर बहुत अधिक कठोर’ जगह के नाम से प्रसिद्ध है।

अगले दिन मैं सुबह चार बजे उठ गई बर्फ पिघलाया और चाय बनाई, कुछ बिस्कुट और आधी चॉकलेट का हलका नाश्ता करने के बाद मैं लगभग साढ़े पाँच बजे अपने तंबू से निकल पड़ी। अंगदोरजी बाहर खड़ा था और कोई आसपास नहीं था।

अंगदोरजी बिना ऑक्सीजन के ही चढ़ाई करनेवाला था। लेकिन इसके कारण उसके पैर ठंडे पड़ जाते थे। इसलिए वह ऊँचाई पर लंबे समय तक खुले में और रात्रि में शिखर कैंप पर नहीं जाना चाहता था। इसलिए उसे या तो उसी दिन चोटी तक चढ़कर साउथ कोल पर वापस आ जाना था अथवा अपने प्रयास को छोड़ देना था।

वह तुरंत ही चढ़ाई शुरू करना चाहता था… और उसने मुझसे पूछा, क्या मैं उसके साथ जाना चाहूँगी? एक ही दिन में साउथ कोल से चोटी तक जाना और वापस आना बहुत कठिन और श्रमसाध्य होगा! इसके अलावा यदि अंगदोरजी के पैर ठंडे पड़ गए तो उसके लौटकर आने का भी जोखिम था। मुझे फिर भी अंगदोरजी पर विश्वास था और साथ-साथ मैं आरोहण की क्षमता और कर्मठता के बारे में भी आश्वस्त थी। अन्य कोई भी व्यक्ति इस समय साथ चलने के लिए तैयार नहीं था।

आरोहण की क्षमता climbing ability आश्वस्त confident

व्याख्या : बचेंद्री पाल कहती हैं कि अगले दिन वह सुबह चार बजे उठी। उसने बर्फ को पिघलाया (क्योंकि वहाँ पानी अपने तरल रूप में उपलब्ध नहीं रहता ) और चाय बनाई, कुछ बिस्कुट और आधी चाॅकलेट का हल्का नाश्ता करने के बाद वह लगभग साढ़े पाँच बजे अपने तंबू से निकल पड़ी। बचेंद्री पाल ने देखा कि अंगदोरजी बाहर खड़ा था और कोई भी आसपास नहीं था। अंगदोरजी बिना ऑक्सीजन के ही चढ़ाई करनेवाला था। लेकिन इसके कारण उसके पैर ठंडे पड़ जाते थे। इसलिए वह ऊँचाई पर लंबे समय तक खुले में और रात्रि में शिखर कैंप पर नहीं जाना चाहता था। बचेंद्री पाल कहती हैं कि इसलिए उसे या तो उसी दिन चोटी तक चढ़कर साउथ कोल पर वापस आ जाना था अथवा बिना ऑक्सीजन के चढ़ाई करने की अपनी कोशिश को छोड़ देना था। बचेंद्री पाल कहती हैं कि वह तुरंत ही चढ़ाई शुरू करना चाहता था… और उसने बचेंद्री पाल से पूछा, क्या वह उसके साथ जाना चाहेगी? बचेंद्री पाल जानती थी कि एक ही दिन में साउथ कोल से चोटी तक जाना और वापस आना बहुत कठिन और बहुत मेहनत का काम होगा! इसके अलावा यदि अंगदोरजी के पैर ठंडे पड़ गए तो उसके बीच में से ही वापस लौटकर आने का भी डर था। बचेंद्री पाल को फिर भी अंगदारजी की योग्यता और पहाड़ में चढ़ने की क्षमता पर विश्वास था अत: वे अंगदोरजी के साथ चोटी पर चढ़ने के लिए तैयार हो गई। बचेंद्री पाल कहती हैं कि अन्य कोई भी व्यक्ति इस समय उसके साथ चलने के लिए तैयार नहीं था।

एवरेस्ट पर चढ़ाई करते पर्वतारोही

सुबह 6.20 पर जब अंगदोरजी और मैं साउथ कोल से बाहर आ निकले तो दिन
ऊपर चढ़ आया था। हलकी-हलकी हवा चल रही थी, लेकिन ठंड भी बहुत अधिक
थी। मैं अपने आरोही उपस्कर में काफ़ी सुरक्षित और गरम थी। हमने बगैर रस्सी के
ही चढ़ाई की। अंगदोरजी एक निश्चित गति से ऊपर चढ़ते गए और मुझे भी उनके
साथ चलने में कोई कठिनाई नहीं हुई।

आरोही उपस्कर mounting equipment/ suit

व्याख्या: सुबह 6:20 पर बचेंद्री पाल अंगदोरजी के साथ साउथ कोल कैंप से बाहर निकलीं तो सूरज ऊपर तक निकल आया था ।(पर्वतीय क्षेत्रों में चोटियों में सुर्योदय जल्दी‍ दिखाई देता है ) हलकी हवा चल रही थी किंतु बहुत अधिक ठंड थी किंतु अपने माउंटेनियरिंग सूट में लेखिका सुरक्षित और गर्म थीं । उन्होंने बिना रस्सी के चढ़ाई की । अंग दोरजी एक नियत गति से चढ़ रहे थे और बचेंद्री ने उनके साथ चढ़ने में कोई परेशानी या कठिनाई महसूस नहीं की ।

जमे हुए बर्फ़ की सीधी व ढलाऊ चट्टानें इतनी सख्त और भुरभुरी थीं, मानो शीशे की चादरें बिछी हों। हमें बर्फ़ काटने के फावड़े का इस्तेमाल करना ही पड़ा और मुझे इतनी सख्ती से फावड़ा चलाना पड़ा जिससे कि उस जमे हुए बर्फ़ की धरती को फावड़े के दाँते काट सकें। मैंने उन खतरनाक स्थलों पर हर कदम अच्छी तरह सोच-समझकर उठाया।

भुरभुरी crumbly फावड़ा Spade

व्याख्या: बर्फ़ जब गिरती है तो हलकी होती है किंतु पुरानी और जमी हुई बर्फ़ सख्त हो जाती है । एवरेस्ट में भी लेखिका को बर्फ़ की सीधी और ढलाऊ पर चढ़ाई की । चट्टानें सख्त और भुरभुरी थीं बर्फ़ काटने के लिए बर्फ़ काटने वाले फ़ावड़े (shovels) को इस्तेमाल करना पड़ा। जिससे कि उस जमे हुए बर्फ़ की धरती को फावड़े के दाँते काट सकें। उन्होंने खतरनाक स्थलों पर हर कदम अच्छी तरह सोच-समझकर उठाया।

दो घंटे से कम समय में ही हम शिखर कैंप पर पहुँच गए। अंगदोरजी ने पीछे
मुड़कर देखा और मुझसे कहा कि क्या मैं थक गई हूँ। मैंने जवाब दिया, “नहीं।”
जिसे सुनकर वे बहुत अधिक आश्चर्यचकित और आनंदित हुए। उन्होंने कहा कि
पहलेवाले दल ने शिखर कैंप पर पहुँचने में चार घंटे लगाए थे और यदि हम इसी
गति से चलते रहे तो हम शिखर पर दोपहर एक बजे एक पहुँच जाएँगे।

व्याख्या: दो घंटे से कम समय में ही शिखर कैंप पर पहुँच गए। अंगदोरजी ने पीछे
मुड़कर देखा और मुझसे कहा कि क्या मैं थक गई हूँ। मैंने जवाब दिया, “नहीं।”
जिसे सुनकर वे बहुत अधिक आश्चर्यचकित और आनंदित हुए। उन्होंने कहा कि
पहलेवाले दल ने शिखर कैंप पर पहुँचने में चार घंटे लगाए थे और यदि हम इसी
गति से चलते रहे तो हम शिखर पर दोपहर एक बजे एक पहुँच जाएँगे।

बचेंद्री पाल, अंगदोरजी और ल्हाटू एवरेस्ट की चोटी पर

ल्हाटू हमारे पीछे-पीछे आ रहा था और जब हम दक्षिणी शिखर के नीचे आराम कर रहे थे, वह हमारे पास पहुंच गया। थोड़ी-थोड़ी चाय पीने के बाद हमने फिर चढ़ाई शुरू की। ल्हाटू एक नायलॉन की रस्सी लाया था। इसलिए अंगदोरजी और मैं रस्सी के सहारे चढ़े, जबकि ल्हाटू एक हाथ से रस्सी पकड़े हुए बीच में चला। उसने रस्सी अपनी सुरक्षा की बजाय हमारे संतुलन के लिए पकड़ी हुई थी। ल्हाटू ने ध्यान दिया कि मैं इन ऊँचाइयों के लिए सामान्यत: आवश्यक, चार लीटर ऑक्सीजन की अपेक्षा, लगभग ढाई लीटर ऑक्सीजन प्रति मिनट की दर से लेकर चढ़ रही थी। मेरे रेगुलेटर पर जैसे ही उसने ऑक्सीजन की आपूर्ति बढ़ाई, मुझे महसूस हुआ कि सपाट और कठिन चढ़ाई भी अब आसान लग रही थी।

व्याख्या : ल्हाटू अंग दोरजी और बचेंद्री के पीछे -पीछे आ रहा था और जब वे दक्षिणी चोटी के नीचे आराम कर रहे थे तब वह उन तक पहुँच गया। थोड़ी थोड़ी चाय पीने के बाद उन लोगों ने फ़िर से चढ़ाई शुरु की । पहले वे लोग बिना रस्सी के चढ़ाई कर रहे थे किंतु ल्हाटू अपने साथ नायलॉन की रस्सी लेकर आया था अतः वे लोग रस्सी के सहारे चढ़े। ल्हाटू बीच में रस्सी पकड़े चल रहा था वह रस्सी अपनी सुरक्षा की बजाय अंग दोरजी और बचेंद्री के संतुलन के लिए पकड़े चल रहा था ।इसीबीच ल्हाटू ने देखा कि बचेंद्री कम ऑक्सीजन सुप्लाई के साथ चढ़ रही थी । उसने तुरंत ऑक्सीजन सप्लाई बढ़ाई जिससे लेखिका को ऊँचाई चढ़ने में आसानी हो गई । एवरेस्ट की ऊँचाइयों के लिए सामान्यत: चार लीटर ऑक्सीजन प्रति मिनट की आवश्यकता होती है जबकि लेखिका लगभग ढाई लीटर ऑक्सीजन प्रति मिनट की दर से लेकर चढ़ रही थी।

दक्षिणी शिखर के ऊपर हवा की गति बढ़ गई थी। उस ऊँचाई पर तेज़ हवा के झोंके भुरभुरे बर्फ के कणों को चारों तरफ़ उड़ा रहे थे, जिससे दृश्यता शून्य तक आ गई थी। अनेक बार देखा कि केवल थोड़ी दूर के बाद कोई ऊँची चढ़ाई नहीं है। ढलान एकदम सीधा नीचे चला गया है।

मेरी साँस मानो रुक गई थी। मुझे विचार कौंधा कि सफलता बहुत नजदीक है। 23 मई 1984 के दिन दोपहर के एक बजकर सात मिनट पर मैं एवरेस्ट की चोटी पर खड़ी थी। एवरेस्ट की चोटी पर पहुँचनेवाली में प्रथम भारतीय महिला थी।

दृश्यता visibility विचार कौंधा Thoughts flashed

व्याख्या : जब वे दक्षिणी शिखर पर पहुँचे तब वहाँ हवा की गति ज्यादा थी और चारों तरफ़ तेज हवा के साथ बर्फ के कण उड़ रअहे थे जिससे वहाँ न के बराबर दिखाई दे रहा था। कई बार इस प्रकार भ्रम होता कि मानो आगे कोई चढ़ाई नहीं है और सीधी ढलान नीचे की तरफ़ जा रही हो । अचानक बचेंद्री पाल ने महसूस किया कि वे चोटी के बहुत नजदीक है। 23 मई 1984 के दिन दोपहर के एक बजकर सात मिनट पर वे एवरेस्ट की चोटी पर खड़ी थी और एवरेस्ट की चोटी पर पहुँचनेवाली में प्रथम भारतीय महिला बन चुकी थीं।

एवरेस्ट शंकु की चोटी पर इतनी जगह नहीं थी कि दो व्यक्ति साथ-साथ खड़े हो सकें। चारों तरफ़ हजारों मीटर लंबी सीधी ढलान को देखते हुए हमारे सामने प्रश्न सुरक्षा का था। हमने पहले बर्फ के फावड़े से बर्फ की खुदाई कर अपने आपको सुरक्षित रूप से स्थिर किया। इसके बाद मैं अपने घुटनों के बल बैठी बर्फ़ पर अपने माथे को लगाकर मैंने ‘सागरमाथे’ के ताज का चुंबन लिया। बिना उठे ही मैंने अपने थैले से दुर्गा माँ का चित्र और हनुमान चालीसा निकाला। मैंने इनको अपने साथ लाए लाल कपड़े में लपेटा, छोटी-सी पूजा-अर्चना की और इनको बर्फ में दबा दिया। आनंद के इस क्षण में मुझे अपने माता-पिता का ध्यान आया।

व्याख्या : एवरेस्ट की चोटी शंकु के आकार की है और वहाँ इतनी जगह नहीं थी कि दो व्यक्ति एक साथ खड़े हो सकें। नीचे चारों तरफ़ हजारों मीटर लंबी सीधी ढलान थी अब प्रश्न उन लोगों की सुरक्षा का था। इसलिए उन्होंने पहले बर्फ के फावड़े से बर्फ की खुदाई कर अपने आपको सुरक्षित रूप से स्थिर किया। इसके बाद लेखिका ने अपने घुटनों के बल बैठ कर बर्फ़ पर अपने माथे को लगाया और सागरमाथे’ के ताज का चुंबन लिया। बिना उठे ही बचेंद्रीपाल ने अपने थैले से दुर्गा माँ का चित्र और हनुमान चालीसा निकाला और इनको अपने साथ लाए लाल कपड़े में लपेटा, छोटी-सी पूजा-अर्चना की और इनको बर्फ में दबा दिया। अपनी सफलता से भाव विभोर हो उठी लेखिका को इस अविस्मरणीय क्षण में अपने माता-पिता को याद करती हैं।

जैसे मैं उठी. मैंने अपने हाथ जोड़े और मैं अपने रज्जु नेता अंगदोरजी के प्रति आदर भाव से झुकी। अंगदोरजी जिन्होंने मुझे प्रोत्साहित किया और मुझे लक्ष्य तक पहुँचाया। मैंने उन्हें बिना ऑक्सीजन के एवरेस्ट की दूसरी चढ़ाई चढ़ने पर बधाई भी दी। उन्होंने मुझे गले से लगाया और मेरे कानों में फुसफुसाया, “दीदी, तुमने अच्छी चढ़ाई की। मैं बहुत प्रसन्न हूँ!”

प्रोत्साहन encouragement फुसफुसाया whispered

व्याख्या : पूजा करने के बाद बचेंद्री पाल जैसे ही उठीं वे अपने रज्जू नेता अंगदोरजी के सामने सम्मान पूर्वक झुकीं। लेखिका की इस सफलता में अंग दोरजी का बड़ा योगदान है । क्योंकि उन्होंने बचेंद्री को प्रोत्साहित किया और उनके लक्ष्य तक पहुँचाया। । बचेंद्री पाल ने अंगदोरजी को बिना ऑक्सीजन के एवरेस्ट की चोटी में पहुँचने में सफलता पाने के लिए बधाई दी , वहीं अंग दोरजी ने भी बचेंद्री पाल को गले लगाते हुए इस सफलता के लिए बधाई देते हुए उनकीं तारीफ़ की कि उन्होंने अच्छी चढ़ाई की और वे बहुत खुश हैं ।

कुछ देर बाद सोनम पुलजर पहुँचे और उन्होंने फोटो लेने शुरू कर दिए। इस समय तक ल्हाटू ने हमारे नेता को एवरेस्ट पर हम चारों के होने की सूचना दे दी थी। तब मेरे हाथ में वॉकी-टॉकी दिया गया। कर्नल खुल्लर हमारी सफलता से बहुत प्रसन्न थे। मुझे बधाई देते हुए उन्होंने कहा, “मैं तुम्हारी इस अनूठी उपलब्धि के लिए तुम्हारे माता-पिता को बधाई देना चाहूँगा!” वे बोले कि देश को तुम पर गर्व है और अब तुम ऐसे संसार में वापस जाओगी, जो तुम्हारे अपने पीछे छोड़े हुए संसार से एकदम भिन्न होगा !

अनूठी उपलब्धि unique achievement

व्याख्या: बचेंद्री पाल कहती हैं कि कुछ देर बाद सोनम पुलजर वहाँ पहुँचे और उन्होंने फोटो लेने शुरू कर दिए। इस समय तक ल्हाटू ने उनके नेता को एवरेस्ट पर उन चारों के होने की सूचना दे दी थी। तब बचेंद्री पाल के हाथ में वॉकी-टॉकी दिया गया। कर्नल खुल्लर उनकी सफलता से बहुत प्रसन्न थे। बचेंद्री पाल को बधाई देते हुए उन्होंने कहा कि वे बचेंद्री पाल की इस अनूठी उपलब्धि के लिए बचेंद्री पाल के माता-पिता को बधाई देना चाहते हैं। वे बोले कि देश को बचेंद्री पाल पर गर्व है और अब वह एक ऐसे संसार में वापस जाएगी, जो उसके द्वारा अपने पीछे छोड़े हुए संसार से एकदम अलग होगा।

एवरेस्ट : मेरी शिखर यात्रा’ पाठ का सारांश

एवरेस्ट : मेरी शिखर यात्रा लेखिका बचेंद्री पाल की प्रथम एवरेस्ट विजय का और भारत की प्रथम महिला एवरेस्ट विजेता होने की लोमहर्षक यात्रा का वर्णन है । लेखिका 7 मार्च को दिल्ली से हवाई जहाज द्वारा नेपाल पहुँचती हैं और नमचे बाजार से सर्वप्रथम एवरेस्ट पर्वत के दर्शन करतीं हैं । लेखिका वहाँ से 26 मार्च को पैरिच पहुँचती हैं और वहाँ पहुचते ही उनके दल को एवरेस्ट अभियान दल के एक शेरपा कुली की मृत्यु और सोलह शेरपाओं के घायल होने की खबर मिलती है । इस घटना पर कर्नल खुल्लर स्पष्ट करते हैं कि एवरेस्ट अभियान पर इस तरह की घ्हटनाओं के लिए तैयार रहना चाहिए और इसे सहज भाव से स्वीकार करना चाहिए । उपनेता प्रेमचंद द्वारा उनके दल को खुंभू हिमपात की स्थिति का पता चलता है इसी बीच एक और रसोई सहायक की मृत्यु की खबर मिलती है जो अधिक ठंड के कारण जलवायु सहन न कर पाया था । तभी लेखिका एवरेस्ट को पास से देखती हैं और इसकी उँचाइयों और विशालता से चकित सी रह जाती हैं । डॉ. मीनू मेहता एवरेस्ट अभियान दल को प्रशिक्षण और तकनीकी जानकारी देतीं हैं । वहीं बेस कैंप पर बचेंद्री पाल और उनके दल के सद्स्यों की मुलाकात प्रथम एवरेस्ट विजेताओं में से एक तेनजिंग के साथ होती है । वे अभियान दल के सदस्यों को प्रोत्साहन देते हैं और बचेंद्री पाल को प्रोत्साहन देते हुए कहते हैं कि वे एक पर्वतीय लड़की हैं इसलिए उन्हें अपने पहले प्रयास में ही चोटी पर पँहुच जाना चाहिए ।

लेखिका बचेंद्री पाल अपने दल के साथ एवरेस्ट अभियान पर चलती हैं जहाँ ल्होत्से की ढलान पर बने कैंप पर लेखिका के तंबू के ऊपर बर्फ की शिला आ गिरती है । दल के नौ सदस्य घायल हो जाते हैं । लोपसांग अपनी स्विस छुरी की सहायता से बचेंद्री पाल की जीवन रक्षा करते हैं । इस घटना में बचेंद्री पाल मौत के मुँह से बच कर वापस आती हैं वे डर जाती हैं किंतु अपना प्रयास नहीं छोड़ना चाहती । इसी प्रकार अन्य घटनाओं का उल्लेख करते हुए और एवरेस्ट अभियान की तकलीफ़ों और रोमांच का वर्णन करती हुई बचेंद्री पाल अंगदोरजी के साथ शिखर पर सर्वप्रथम जा पहुँचती है और एवरेस्ट पर पहुँचने वाली प्रथम भारतीय महिला बन जाती हैं । अंग दोरजी उन्हें बधाई देते हैं तभी सोनम पुलजर भी वहाँ पहुँच जाते हैं और फोतो शूट करते हैं । ल्हाटू दल के नेता कर्नल खुल्लर को उनकी सफलता के बारे में सूचना देते है । कर्नल खुल्लर ने उन्हें बधाई देते बधाई देते हुए कहा कि वे बचेंद्री पाल की इस अनूठी उपलब्धि के लिए बचेंद्री पाल के माता-पिता को बधाई देना चाहते हैं। वे बोले कि देश को बचेंद्री पाल पर गर्व है और अब वह एक ऐसे संसार में वापस जाएगी, जो उसके द्वारा अपने पीछे छोड़े हुए संसार से एकदम अलग होगा। पूरा घटनाक्रम इस तरह से लिखा गया है कि पाठक खुद ही एवरेस्ट पर चढ़ने का रोमांच महसूस करता है ।

प्रश्‍न अभ्यास

मौखिक

निम्‍नलिखित प्रश्‍नों के उत्‍तर एक-दो पंक्‍तियों में दीजिए-

1.अग्रिम दल का नेतृत्‍व कौन कर रहा था ?

उत्‍तर : अग्रिम दल का नेतृत्व उपनेता प्रेमचंद कर रहे थे।

2. लेखिका को सागरमाथा नाम क्यों अच्छा लगा ?

उत्‍तर : लेखिका ने सर्वप्रथम नमचे बाजार से एवरेस्ट के दर्शन किए। नेपाल में यह पर्वत सागरमाथा के नाम से प्रसिद्ध है । एवरेस्ट की विराटता को देखते हुए लेखिका को एवरेस्ट का सागरमाथा नाम अच्छा लगा ।

3. लेखिका को ध्वज जैसा क्या लगा ?

उत्‍तर : लेखिका ने जव एवरेस्ट की ओर ध्यान से देखा तो उन्हें एक बर्फ़ का बड़ा और भारी फूल (प्लूम) दिखाई दिया जो उन्हें शिखर पर लहराते हुए ध्वज जैसा लगा।

4. हिमस्खलन से कितने लोगों की मृत्यु हुई और कितने घायल हुए?

उत्‍तर : हिमस्खलन से सोलह शेरपा कुलियों के दल में से एक की मृत्यु हो गई और चार घायल हो गए ।

5. मृत्यु‍ के अवसाद को देखकर कर्नल खुल्लर ने क्या कहा ?

उत्‍तर : शेरपा कुली की मृत्यु के बाद अभियान दल के सदस्यों के चेहरे पर छाए अवसाद को देखकर कर्नल खुल्लर ने कहा कि एवरेस्ट जैसे महान अभियान में खतरों को और कभी-कभी मृत्यु को भी सहज भाव से स्वीकार करना चाहिए।

6. रसोई सहायक की मृत्यु कैसे हुई ?

उत्‍तर : रसोई सहायक की मृत्यु जलवायु अनुकूल न होने के कारण हुई ।

7. कैंप -चार कहाँ और कब लगाया गया ?

उत्‍तर : कैंप -चार साउथ कोल पर 29अप्रैल 1984 को 7900 मीटर की ऊँचाई पर लगाया गया था।

8. लेखिका ने शेरपा कुली को अपना परिचय किस प्रकार दिया ?

उत्‍तर : लेखिका ने तेनजिंग को अपना परिचय एक नौसिखिया कह कर दिया ।

9. लेखिका की सफलता पर कर्नल खुल्लर ने उसे किन शब्दों में बधाई दी ?

लेखिका को बधाई देते हुए कर्नल खुल्लर ने कहा, “मैं तुम्हारी इस अनूठी उपलब्धि के लिए तुम्हारे माता-पिता को बधाई देना चाहूँगा!” वे बोले कि देश को तुम पर गर्व है और अब तुम ऐसे संसार में वापस जाओगी, जो तुम्हारे अपने पीछे छोड़े हुए संसार से एकदम भिन्न होगा !

(क) निम्‍नलिखित प्रश्‍नों के उत्तर 25-30 शब्दों में लिखिए 1

1.नज़दीक से एवरेस्ट को देखकर लेखिका को कैसा लगा ?

उत्‍तर : बेस कैंप पहुँचने पर दुसरे दिन लेखिका ने एवरेस्ट पर्वत को नज़दीक से देखा । इससे पहले दो बार उन्होंने एवरेस्ट को दूर से देखा था । बेस कैंप से लेखिका ने एवरेस्ट पर्वत और इसकी अन्य श्रेणियों को देखा और इसकी भव्यता को देख आश्‍चर्यचकित रह गईं । वे एवरेस्ट , ल्होत्से और नुत्से की ऊँचाइयों से घिरी , बर्फ़ीली टेढ़ी-मेढ़ी नदी को निहारती रहीं।

2. डॉ. मीनू मेहता ने क्या जानकारियाँ दी ?

उत्‍तर : डॉ. मीनू मेहता ने अल्यूमिनियम की सीढ़ीयों से अस्थाई पुल बनाना , लट्‍ठों और रस्सियों का उपयोग , बर्फ़ की आड़ी -तिरछी दीवारों पर रस्सियाँ बाँधना और अग्रिम दल के अभियांत्रिकी कार्यों के बारे में विस्तृत जानकारियाँ दीं।

3. तेनजिंग ने लेखिका की तारीफ़ में क्या कहा ?

उत्‍तर : तेनजिंग से लेखिका की मुलाकात बेस कैंप में हुई । लेखिका ने जब अपना परिचय एक नौसिखिए के रूप में दिया तो तेनजिंग ने उनका उत्साह बढ़ाते हुए उनके कंधे पर हाथ रख कर कहा कि तुम तो एक पक्की पर्वतीय लड़की लगती हो । तुम्हें तो शिखर पर पहले ही प्रयास में पहुँच जाना चाहिए

4. लेखिका को किन के साथ चढ़ाई करनी थीं ?

उत्‍तर : लेखिका को दल के अन्य सदस्यों लोपसांग , अंगदोरजी , तशारिंग ,गगन बिस्सा , की, जय , मीनू और रीता गोंबू के साथ चढ़ाई करनी थी । बचेंद्री पाल और रीता गोंबू कैंप एक पर पहुँचने वाली मात्र दो महिलाएँ थीं । इसके अलावा अभियान दल में सहायता के लिए कई शेरपा कुली और रसोई सहायक आदि अन्य अनेक सदस्य भी थे ।

5. लोपसांग ने तंबू का रास्ता कैसे साफ़ किया ?

उत्‍तर : लोपसांग ने स्विस छुरी की मदद से तंबू का रास्ता का रास्ता सफ़ किया । उन्होंने बड़ी
तेज़ी से लेखिका के चारों तरफ़ जमे हुए कड़े बर्फ़ की खुदाई की । और बड़े -बड़े हिम पिंडों को हटाते हुए लेखिका बर्फ़ की कब्र से नइकाअल लाने में सफ़ल हुए ।

6. साउथ कोल कैंप पहुँच कर लेखिका ने अगले दिन की महत्‍त्वपूर्ण चढ़ाई की तैयारी कैसे शुरु की ?

साउथ कोल कैंप पंहुचते ही लेखिका बचेंद्री पाल ने अगले दिन के महत्‍त्वपूर्ण चढ़ाई शुरु कर दी । उन्होंने खाना , कुकिंग गैस तथा कुछ ऑक्सीजन सिलिंडर इकट्‍ठे किए। उन्होंने चाय बनाने के लिए पानी को गरम किया । फ़िर एक थरमस में जूस और दूसरे में चाय लेकर अपने दल के अन्य सदस्यों की मदद के लिए चल पड़ीं ।

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए-

प्रश्न 1. उपनेता प्रेमचंद ने किन स्थितियों से अवगत कराया?
उत्तर-
उपनेता प्रेमचंद ने अभियान दल को खुंभु हिमपात की स्थिति की जानकारी देते हुए कहा कि उनके दल ने कैंप-एक जो खुंभु हिमपात के ठीक ऊपर है, वहाँ तक का रास्ता साफ़ कर दिया है और पुल बनाकर, रस्सियाँ बाँधकर तथा झंडियों  से रास्ता चिन्हित कर, सभी बड़ी कठिनाइयों का जायजा ले लिया गया है। उन्होंने इस पर भी ध्यान दिलाया कि ग्लेशियर बरफ़ की नदी है और बरफ़ का गिरना अभी जारी है। हिमपात में अनियमितता और अनिश्चित बदलाव के कारण अभी तक के किए गए सभी काम व्यर्थ हो सकते हैं और रास्ता खोलने का काम दोबारा करना पड़ सकता है।

प्रश्न 2 . हिमपात किस तरह होता है और उससे क्या-क्या परिवर्तन आते हैं?
उत्तर-
बर्फ़ के खंडों का अव्यवस्थित ढंग से गिरना ही हिमपात कहलाता है। ग्लेशियर के बहने से बर्फ में हलचल मच जाती है। जिससे बर्फ़ की बड़ी-बड़ी चट्टानें तत्काल गिर जाती हैं। ऐसा होने की स्थिति खतरनाक हो जाती है क्योंकि धरातल पर दरार पड़ने की संभावना बढ़ जाती है औरअकसर बर्फ़ में गहरी-चौड़ी दरारें बन जाती हैं। हिमपात से पर्वतारोहियों की कठिनाइयाँ बहुत अधिक बढ़ जाती हैं।

प्रश्न 3. लेखिका ने तंबू में गिरे बरफ़ पिंड का वर्णन किस तरह किया है?
उत्तर-
लेखिका ने तंबू में गिरे बरफ़ के पिंड का वर्णन करते हुए कहा है कि वह ल्होत्से की बर्फ़ीली सीधी ढलान पर लगाए गए नाइलॉन के तंबू के कैंप-तीन में थी। तंबू में लोपसांग और तशारिंग उनके साथ थे। अचानक रात साढ़े बारह बजे लेखिका के सिर में कोई सख्त चीज़ टकराई और उनकी नींद खुल गई। तभी एक जोरदार धमाका हुआ और उन्हें लगा कि एक ठंडी बहुत भारी चीज़ उनके शरीर को कुचलती चल रही थी। इससे उन्हें साँस लेने में कठिनाई होने लगी। लेखिका को समझ नहीं आ रहा था कि क्या हुआ है? उन्होंने बर्फ़ के विशल पिंड के तंबू पर गिरने की गति की तुलना एक्सप्रेस रेलगाड़ी की गति से की । इस बर्फ़ के पुंज ने कैंप को तहस -नहस कर दिया था।

प्रश्न 4. लेखिका को देखकर ‘की’ हक्का-बक्का क्यों रह गया?
उत्तर-
‘की’ बचेंद्री पाल का पर्वतारोही साथी था। उसे भी बचेंद्री के साथ पर्वत-शिखर पर जाना था। उसे साउथ कोल शिखर कैंप पर पहुँचने में देर हो गई थी। वह सामान ढोने के कारण पीछे रह गया था। अतः बचेंद्री उसके लिए चाय-जूस आदि लेकर उसे रास्ते में लिवाने के लिए पहुँची।इतनी बर्फ़ीली हवा में नीचे जाना जोखिम भरा काम था। की को यह कल्पना नहीं थी कि बचेंद्री उसकी चिंता करेंगी और उसे साथ लाने के लिए कैंप से वापस  आएँगी। इसलिए जब उसने बचेंद्री पाल को चाय-जूस लिए आया देखा तो वह हक्का-बक्का रह गया।

प्रश्न 5. एवरेस्ट पर चढ़ने के लिए कुल कितने कैंप बनाए गए? उनका वर्णन कीजिए।
उत्तर-
पाठ से ज्ञात होता है कि एवरेस्ट पर चढ़ाई के लिए कुल छ: कैंप बनाए गए

  1. पहला कैंप 6000 मीटर की ऊँचाई पर था यह खुंभु हिमपात से ठीक ऊपर था।इसमें सामान जमा किया हुआ था ।
  2.  दूसरा कैंप- यह चढ़ाई के रास्ते में था।
  3. कैंप-तीन  इसे ल्होत्से की सीधी बर्फ़ीली ढलान पर लगाया गया था । यह रंगीन नायलोन से बना था। यहीं पर ल्होत्से से ग्लेशियर से टूटकर बर्फ़ पिंड कैंप पर आ गिरा था
  4. कैंप – चार : यह 7900 मीटर की ऊँचाई पर बनाया गया था । यह कैंप साउथकोल पर बनाए जाने के कारण साउथकोल कैंप कहलाया गया था। यहीं से अभियान दल को एवरेस्ट पर चढ़ाई करनी थी।
  5. कैंप पाँच : साउथ कोल के बाद एक शिखर कैंप था जहाँ से लेखिका ने अंगदोरजी के साथ एवरेस्ट के शिखर की चढ़ाई  की ।
  6.  इसके अलावा एक बेस कैंप भी बनाया गया था। जो कि एवरेस्ट अभियान का मुख्य कैंप था।

प्रश्न 6.चढ़ाई के समय एवरेस्ट की चोटी की स्थिति कैसी थी?

उत्तर: जब बचेंद्री पाल एवरेस्ट की चोटी पर पहुँची तो वहाँ चारों ओर तेज़ हवा के कारण बर्फ़ उड़ रही थी। बर्फ़ के छोटे कणों के तेज़ हवा के उड़ने के कारण सामने कुछ नहीं दिखाई दे रहा था। पर्वत की शंकु चोटी इतनी तंग थी कि दो आदमी वहाँ एक साथ खड़े नहीं हो सकते थे। नीचे हजारों मीटर तक ढलान ही ढलान थी। अतः वहाँ अपने आपको स्थिर खड़ा करना बहुत कठिन था। उन्होंने बर्फ के फावड़े से बर्फ़ तोड़कर अपने सुरक्षित खड़े होने योग्य स्थान बनाया।

प्रश्न 7. सम्मिलित अभियान में सहयोग एवं सहायता की भावना का परिचय बचेंद्री के किस कार्य से मिलता है?
उत्तर-
एवरेस्ट पर विजय पाने के अभियान के दौरान लेखिका बचेंद्री पाल अपने साथियो ‘जय’, ‍‘की’ और ‘मीनू’ के साथ चढाई कर रही थी, परंतु वह इनसे पहले साउथ कोल कैंप पर जा पहुँची। लेखिका अपने साथियों के लिए चिंतित हुईं, क्योंकि वे भारी बोझ लादे बिना ऑक्सीजन के चढ़ाई कर रहे थे। लेखिका ने आराम करने की अपेक्षा दूसरे दिन की तैयारी शुरु कर दी। दोपहर बाद इन सदस्यों की मदद करने के लिए एक थरमस को जूस से और दूसरे को गरम चाय से भर लिया और बरफ़ीली हवा में जोखिम उठाकर कैंप से बाहर निकल कर उन सदस्यों की मदद के लिए नीचे उतरने लगी। बचेंद्रीपाल के इस कार्य से सहयोग एवं सहायता की भावना का परिचय मिलता है।

(ग) निम्‍नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए

1- एवरेस्ट जैसे महान अभियान में खतरों को और कभी-कभी तो मृत्यु भी आदमी को सहज भाव से स्वीकार करनी चाहिए।

स्पष्टीकरण: 1. इस कथन के माध्यम से कर्नल खुल्लर यह कहना चाहते हैं कि एवरेस्ट पर पहुँचना एक महान अभियान है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने में कदम-कदम पर खतरा बना रहता है। इस कथन के माध्यम से कर्नल खुल्लर अभियान में आने वाले खतरों से परिचित करा रहे हैं और मानसिक रूप से इन खतरों के लिए, यहाँ तक कि मृत्यु तक का सामना करने के लिए मानसिक रूप से तैयार कर रहे थे।

2- सीधे धरातल पर दरार पड़ने का विचार और इस दरार का गहरे-चौड़े हिम-विदर में बदल जाने का मात्र खयाल ही बहुत डरावना था। इससे भी ज़्यादा भयानक इस बात की जानकारी थी कि हमारे संपूर्ण प्रयास के दौरान हिमपात लगभग एक दर्जन आरोहियों और कुलियों को प्रतिदिन छूता रहेगा।

स्पष्टीकरण: 2. इन कथनों के माध्यम से लेखिका एवरेस्ट अभियान की भयावहता को सजीव कर रही हैं। बड़े-बड़े हिम खंडों का गिरना और उसके परिणाम बड़े ही खतरनाक हैं। लेखिका हिम विदर की कल्पना कर सिहर उठती है। इसके अतिरिक्त हिमपात का प्रकोप इस अभियान को और भी अधिक भयानक बना रहा था परंतु बिना हिम्मत खोए वो अपना लक्ष्य प्राप्त करती है। इन शब्दों के द्वारा लेखिका अभियान में लगातार आने वाले खतरों की सम्भावना के बारे में बता रही हैं

3- बिना उठे ही मैंने अपने थैले से दुर्गा माँ का चित्र और हनुमान चालीसा निकाला। मैंने इनको अपने साथ लाए लाल कपड़े में लपेटा, छोटी-सी पूजा-अर्चना की और इनको बर्फ में दबा दिया। आनंद के इस क्षण में मुझे अपने माता-पिता का ध्यान आया।

स्पष्टीकरण:3. लेखिका एवरेस्ट की शंकु पर पहुँचने वाली पहली भारतीय महिला है। एवरेस्ट विजय के क्षण लेखिका को अभिभूत करने वाले क्षण थे ।लेखिका ने अपने विजय का श्रेय माँ दुर्गा और हनुमानजी को दिया। एवरेस्ट की शंकु पर इनकी पूजा यह दर्शाता है कि ये धार्मिक स्वभाव की है। सफलता के क्षण हर व्यक्ति अपनों से बाँट कर मनाना चाहता है ।लेखिका के जीवन के यह पल भी उनके जीवन के सबसे आनंद के पल और अविस्मरणीय क्षण थे जिन्हें वह अपने माता-पिता के साथ बॉटना चाहती थी। इससे यह पता चलता है कि ये अपने माता-पिता का बहुत सम्मान करती थीं और उनके अत्यंत निकट थीं ।

भाषा अध्ययन

1.इस पाठ में प्रयुक्त निम्‍नलिखित शब्दों की व्याख्या पाठ के संदर्भ में कीजिए –

निहारा है, धसकना , खिसकना , सागरमाथा ज़ायजा लेना , नौसिखिया

उत्तर :

निहारा है – निहारा का अर्थ होता है प्यार से देखना या प्रसन्नतापूर्वक देखना-

एवरेस्ट पर चढ़ाई करना लेखिका का लक्ष्य था , इसलिए उन्होंने एवरेस्ट को सिर्फ़ देखा ही नही , उन्होंने एवरेस्ट को निहारा ।

धसकना – धसकना का अर्थ है बीच की खाली (पोली) जगह में मिट्टी या अन्य पदार्थ का भर जाना , कई बार रेत या मिट्टी या बर्फ़ के बीछ में खाली जगह रह जाती है अवसर आने पर ऊपर का पदार्थ ्बीच की खाली जगह में आ जाता है । इसी घटना को धसकना कहते हैं
खुंभु हिमपात पर सीधी पहाड़ी पर बर्फ़ के धसकने से एक शेरपा कुली की मौत हो गई थी ।

खिसकना – जब कोई वस्तु अपनी जगह से हट जाती है तो उसे खिसकना कहते हैं ग्लेशियरों के बहने से बरफ़ की बड़ी-बड़ी चट्टानें खिसकने लगती हैं।

सागरमाथा – एवरेस्ट शिखर दुनिया में समुद्रतल से सबसे अधिक ऊँचा स्थान है । इसलिए नेपाल में एवरेस्ट पर्वत सागरमाथा के नाम से प्रसिद्ध है । सागरमाथा एवरेस्ट का एक नाम है

ज़ायजा लेना – जाँच करना या पड़ताल करना अथवा जानकारी लेना – उपनेता प्रेमचंद ने सभी कठिनाइयों का जायजा ले लिया था ।

नौसिखिया – नया सीखने वाला – लेखिका एवरेस्ट के अभियान में पहली बार भाग ले रहीं थीं इस लिए उन्होंने स्वयं को नौसिखिया बताया ।

2. निम्‍नलिखित पंक्‍तियों में उचित विराम चिह्‍नों का प्रयोग कीजिए —

(क) उन्होंने कहा तुम एक पक्की पर्वतीय लड़की लगती हो तुम्हें तो शिखर पर पहले प्रयास में ही पहुँच जाना चाहिए ।

(ख) क्या तुम भयभीत थीं

(ग) तुमने इतनी बड़ी जोखिम क्यों ली बचेंद्री

उत्तर :

(क) उन्होंने कहा, “तुम एक पक्की पर्वतीय लड़की लगती हो ।तुम्हें तो शिखर पर पहले प्रयास में ही पहुँच जाना चाहिए । “

(ख) “क्या तुम भयभीत थीं ? “

(ग)” तुमने इतनी बड़ी जोखिम क्यों ली बचेंद्री ? “

3. नीचे दिए उदाहरण के अनुसार निम्‍नलिखित शब्द -युग्मों का वाक्य में प्रयोग कीजिए-

उदाहरण : हमारे पास एक वॉकी -टॉकी था ।

टेढ़ी- मेढ़ी हक्का- बक्का गहरे -चौड़े इधर-उधर आस-पास लंबे-चौड़े

उत्तर:

टेढ़ी- मेढ़ी – आगे चल कर सड़क बहुत टेढ़ी-मेढ़ी हो जाती है ।

हक्का- बक्का — अचानक खुद को पुलिस से घिरा पाकर हत्यारे हक्का- बक्का हो गए।

गहरे -चौड़े – बरसात के कारण रास्ता गहरे-चौड़े नाले में बदल गया।

इधर-उधर – पिता को चोट लगने के कारण घबराहट में वह लड़की सहायता के लिए इधर -उधर देख रही थी ।

आस-पास – हमारे घर के आस-पास अनेक सुँदर बगीचे हैं ।

लंबे-चौड़े -शाम को बच्चे अकसर इस लंबे -चौड़े मैदान में खेलते दिख जाते हैं ।

4. उदाहरण के अनुसार विलोम शब्द बनाइए-

उदाहरण : अनुकूल – प्रतिकूल

नियमित -…………. विख्यात – ……. आरोही – …… निश्चित – ….… सुंदर – …….

उत्तर:

नियमित – अनियमित विख्यात – कुख्यात आरोही – अवरोही निश्चित – अनिश्चित सुंदर – असुंदर

5. निम्‍नलिखित शब्दों में उपयुक्त उपसर्ग लगाइए- –

जैसे – पुत्र- सुपुत्र

वास व्यवस्थित कूल गति रोहण रक्षित

उत्तर:

वास — आवास , निवास , सुवास , दुर्वास , वनवास

व्यवस्थित — सुव्यवस्थित, अव्यवस्थित

कूल — अनुकूल , प्रतिकूल

गति-– प्रगति ,सुगति, दुर्गति

रोहण — आरोहण , अवरोहण

रक्षित –– आरक्षित , सुरक्षित , असुरक्षित

6. निम्‍नलिखित क्रिया विशेषणों का उचित प्रयोग करते हुए रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए —

अगले दिन, कम समय में, कुछ देर बाद , सुबह तक

(क) मैं …………………………यह कार्य कर लुँगा।

(ख) बादल घिरने के ………………. ही वर्षा हो गई ।

(ग) उसने बहुत ………………….. इतनी तरक्की कर ली ।

(घ) नाङकेसा को ………………. गाँव जाना था ।

उत्तर :

(क) मैं सुबह तक यह कार्य कर लुँगा।

(ख) बादल घिरने के कुछ देर बाद ही वर्षा हो गई ।

(ग) उसने बहुत कम समय में इतनी तरक्की कर ली ।

(घ) नाङकेसा को अगले दिन गाँव जाना था ।

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एक शेरपा कुली की मृत्यु का कारण क्या था?

मृत्यु का दु:खद समाचार मिला। खुंभु हिमपात पर जानेवाले अभियान - दल के रास्ते के बाईं तरफ़ सीधी पहाड़ी के धसकने से, ल्होत्से की ओर से एक बहुत बड़ी बर्फ की चट्टान की 2022-23 Page 4 एवरेस्ट : मेरी शिखर यात्रा / 17 नीचे खिसक आई थी। सोलह शेरपा कुलियों के दल में से एक की मृत्यु हो गई और चार घायल हो गए थे।

रसोई सहायक की मृत्यु कैसे हुई class 9?

6. रसोई सहायक की मृत्यु कैसे हुई? उत्तर:- प्रतिकूल जलवायु के कारण एक रसोई सहायक की मृत्यु हो गई है।

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