भाषा सीखने और सिखाने का क्या उद्देश्य है? - bhaasha seekhane aur sikhaane ka kya uddeshy hai?

भाषा शिक्षण का संबंध केवल भाषा के सीखने-सिखाने तक ही सीमित नहीं है बल्कि उसका राष्ट्र, समाज और शिक्षा से भी गहरा संबंध है। किसी भी देश में एक,दो या उससे अधिक भाषा बोली व समझी जा सकती है। ये सभी भाषाएं राष्ट्रीय, सामाजिक और शैक्षिक स्तर पर अपना भिन्न - भिन्न महत्व रखती है। और प्रत्येक संदर्भ में इसके शिक्षण के स्वरूप को प्रभावित करता है।

किसी भी राष्ट्र के एकीकरण में उसकी भाषा का महत्वपूर्ण योगदान होता है। भाषा न केवल संप्रेषण का महत्वपूर्ण माध्यम है बल्कि वह हमारी पहचान का भी एक अंग है। यह पहचान बड़े स्तर पर राष्ट्र की अस्मिता का हिस्सा हो जाती है। 

हमारे देश में कई जाति,लिंग,समुदाय और वर्ग के लोग रहते हैं। यह आवश्यक नहीं की इन सभी वर्गो के लोगो की भाषा एक जैसी हो। इस सम्बन्ध में डॉक्टर रवीन्द्रनाथ श्रीवास्तव का कहना है कि भाषा का व्यक्ति,समाज और राष्ट्र के जीवन में एक महत्वपूर्ण स्थान है। एक ओर वह व्यक्तित्व के विकास और अभिव्यक्ति का माध्यम है तो दूसरी ओर उसके स्माजीकरण का साधन,एक ओर वह समाज में संप्रेषण व्यवस्था का उपकरण बनती है तो दूसरी ओर व्यक्तियों को सामाजिक वर्गों में बांधने और उनसे विलगाव करने का हेतु; एक ओर वह राष्ट्रीय भावना का संवाहक बनती है तो दूसरी ओर एक ही राष्ट्र के विभिन्न भाषाई समुदायों में विषम भाव उत्पन्न करने वाली चेतना। अतः भाषा शिक्षण संबंधी निर्णय का राष्ट्र,समाज और व्यक्ति के जीवन पर व्यापक प्रभाव पड़ता है।

कनाडा, बेल्जियम, अफ्रीका, श्रीलंका, पाकिस्तान और हिंदुस्तान ऐसे देशों की भाषाई स्तिथि के संदर्भ में यह कहा जा सकता है की राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्धों एवम् संप्रेषण व्यवस्था का निर्वाह बिना भाषा और भाषा शिक्षण सम्बन्धी सुचिंतित नीति के संभव नहीं। अतः यह स्पष्ट है कि व्यक्ति का सम्प्रेषण के लिए भाषा की आवश्यकता और देश के विभिन्न मुद्दों को सुलझाने के लिए भाषा की आवश्यकता में अंतर है।जब कोई भाषा- भाषी संप्रेषण के लिए भाषा सीखता है तो उसके अपने अलग उद्देश्य होते हैं इसी प्रकार जब किसी राजनैतिक कारण से भाषा को सीखा-सिखाया जाता है तब उसके उद्देश्य बदल जाते हैं क्योंकि संप्रेषण के लिए भाषा सीखने का अर्थ है अपने विचारों से दूसरों को अवगत कराना और दूसरों के विचारों को जानना जबकि राजनैतिक कारणों से भाषा सीखने का अर्थ है अपने देश की संस्कृति और विचार को सीखना और समझना। शिक्षार्थी भाषा का शिक्षण अपनी अपेक्षाओं के अनुसार करता है क्योंकि प्रत्येक संदर्भ में उसकी अपेक्षाएं बदल जाती है।

    स्कूलों और कालेजों में लगने वाले पाठ्यक्रम का सम्बन्ध भी राष्ट्र की भाषा नीति से ही जुड़ा होता है। किस भाषा को राजभाषा और राष्ट्रभाषा का दर्जा दिया जाए। किस किस भाषा को अनुसूची में सामिल किया जाए आदि प्रश्न भी राष्ट्र के हित में अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। इन्हीं प्रश्नों को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने अपनी शिक्षा नीति में त्रिभाषा सूत्र को शामिल किया है।

त्रिभाषा सूत्र[सम्पादन]

सन् १९६५ में भारत की केंद्रीय सरकार ने डॉ. दौलत सिंह कोठारी की अध्यक्षता में स्कूली शिक्षा प्रणाली को एक नई दिशा देने के लिए एक आयोग का गठन किया जिसे कोठारी आयोग के नाम से जाना जाता है। इस सूत्र का संबंध भारत में भाषा शिक्षण से संबंधित नीति है जो भारत सरकार द्वारा विभिन्न राज्यों से विचार विमर्श करने के पश्चात बनाई गई है त्रिभाषा सूत्र में निबंध की भाषा पढ़ने का प्रस्ताव है।

१. आधुनिक भारतीय भाषाएं

२. क्लासिक भाषाएं (भारतीय अथवा विदेशी)

३. आधुनिक विदेशी भाषाएं

इन्हीं तीनों श्रेणियों में किन्ही तीन भाषाओं को पढ़ने का प्रस्ताव है।

कोठारी आयोग ने प्राथमिक शिक्षा माध्यमिक शिक्षा और उच्च अर्थात विश्वविद्यालय शिक्षा के लिए महत्वपूर्ण सुझाव दिए यह आयोग पहला ऐसा आयोग था जिसने विस्तार से भारतीय शिक्षा पद्धति का अध्ययन किया इस आयोग के मूल में तीसरी पंचवर्षीय योजना रही जिसने शिक्षा पद्धति के पुनर्विचार की बात की पर बल दिया। हमारे देश में अनेक भाषाएं बोली जाती हैं और समझी जाती हैं जब इन भाषाओं को शिक्षण के संदर्भ में में देखा जाता है तब इन के रूप में अंतर देखा जाता है क्योंकि भाषा का प्रयोग संप्रेषण के लिए करना और भाषा का प्रयोग शिक्षण के लिए करना दोनों में पर्याप्त भेद है इसके अलावा जब राष्ट्रीय संदर्भ में हम भाषा को देखते हैं तब उसका संदर्भ और अधिक विस्तृत हो जाता है। भाषा शिक्षण राष्ट्रीय संदर्भ बहुत ही व्यापक स्तर पर देखा जा सकता है।

(i) प्रत्यक्ष विधि (सम्भाषण, प्राकृतिक):– इसके द्वारा बिना मातृभाषा का प्रयोग किए हुए सीधे, एक नई भाषा की शिक्षा दी जाती हैं। इस पद्यति में भाषा की पढायी वार्तालाप द्वारा आरंभ होती है।

(ii) व्याकरण अनुवाद(परोक्ष विधि): विद्यार्थियों को व्याकरण के नियम पहले ही सिखाया जाते हैं।  यह मान लिया जाता है कि सीखने वाले को अपनी मातृभाषा पर अधिकार है और वह उसी की सहायता से दूसरी भाषा सीख सकता है।

(iii) शब्द परिवर्तन विधि (आदेश विधि): एक वाक्य के एक या अधिक शब्दों का परिवर्तन करके उन सब वाक्यों के अभ्यास द्वारा भाषा की आदतें बनाने के क्रम को शब्द परिवर्तन कहा जाता है।

(iv) द्विभाषिक विधि:

(i) नई भाषा सीखते समय अध्ययन-अध्यापन पद्यति में दो भाषाओं को उपयोग किया जाता है।मातृभाषा और सीखने की दूसरी भाषा।

(ii) जब बालक अपनी मातृभाषा सीखता है, उस वक्त कई प्रसंगों को समझ लेता है और दूसरी भाषा सीखते समय उसी भाषा में उन प्रसंगों का आयोजन करना पड़ता है।

भाषा शिक्षण (Language Teaching) एक प्रक्रिया है या हम कह सकते हैं कि एक माध्यम है जिसकी सहायता से इस बात पर बल दिया जाता है कि बालक को किस प्रकार से पढ़ना-लिखना सिखाया जाए जिससे बालक भाषा का समझ के साथ प्रयोग करना सीख सके।

बच्चों की भाषा को उसके समाज के व्यवस्था के अनुरूप ढालने के लिए भाषा शिक्षण जरूरी होता है।

लेव वाइगोत्सकी के अनुसार – बालकों के भाषा सीखने में समाज तथा परिवार एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। भाषा बाल विकास में सहायक होता है तथा शिक्षक द्वारा बालक की इसी प्रवृत्ति का ध्यान रखते हुए शिक्षण नीति अपनाई जानी चाहिए।

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भाषा शिक्षण के महत्व एवं भाषा शिक्षण के उद्देश्य

भाषा शिक्षण के प्रमुख महत्व एवं उद्देश्य निम्नलिखित है:-

  • वक्ता के कथन को समझने की योग्यता का विकास कराना भाषा शिक्षण का प्रथम उद्देश्य है।
  • समझ के साथ पठान की योग्यता का विकास कराना भी भाषा शिक्षण का उद्देश्य है।
  • सहज अभिव्यक्ति की क्षमता का विकास कराना।
  • सुसंगत लेखन का विकास कराना।
  • विभिन्न विषयों की भाषा को समझने की योग्यता का विकास कराना।
  • भाषा का वैज्ञानिक अध्ययन क्षमता का विकास कराना।
  • सृजनात्मकता का विकास करने में भी भाषा शिक्षण सहायक होता है।
  • सामाजिक व्यवस्था के अनुरूप बालक के भाषा को डालना अभी भाषा शिक्षण का उद्देश्य है।

उपरोक्त लिखित सभी बातें भाषा शिक्षण के महत्व एवं भाषा शिक्षण के उद्देश्य को बताता है।

इस लेख में हम लोगों ने जाना कि भाषा शिक्षण किसे कहते हैं? भाषा शिक्षण के महत्व क्या है एवं भाषा शिक्षण के उद्देश्य कौन-कौन से हैं?

भाषा सीखने और सिखाने के क्या उद्देश्य हैं?

भाषा शिक्षण का उद्देश्य भाषा की समझ और अभिव्यक्ति का विकास करना है। प्राथमिक स्तर पर भाषा शिक्षण का सर्वोपरि उद्देश्य बच्चों में विभिन्न स्थितियों में भाषा का प्रभावी प्रयोग करने के कौशल का विकास करना है क्योंकि प्राथमिक स्तर पर भाषा शिक्षण भाषा की समझ और सहज अभिव्यक्ति के विकास को सुनिश्चित करता है

भाषा शिक्षण का मुख्य उद्देश्य क्या है?

भाषा शिक्षण का मूल उद्देश्य ही व्याकरण के सभी पहलुओं को सही तरीके से समझना है। एक भाषा को सीखने से पहले और सीखने से पहले आपको इस बात का ज्ञान होना जरूरी है कि वक्त सरंचना कैसे होती है वाक्य के बाद, एक पैराग्राफ के क्या गुण होते हैं और साहित्य और व्याकरण का आपस में क्या सबंध है।

भाषा शिक्षण से क्या अभिप्राय है तथा उसके उद्देश्य पर प्रकाश डालिए?

भाषा शिक्षण (Language Teaching) एक प्रक्रिया है या हम कह सकते हैं कि एक माध्यम है जिसकी सहायता से इस बात पर बल दिया जाता है कि बालक को किस प्रकार से पढ़ना-लिखना सिखाया जाए जिससे बालक भाषा का समझ के साथ प्रयोग करना सीख सके। बच्चों की भाषा को उसके समाज के व्यवस्था के अनुरूप ढालने के लिए भाषा शिक्षण जरूरी होता है।

भाषा सीखने का क्या अर्थ है?

भाषा को सीखना भाषा अधिगम का अर्थ है। हम कह सकते हैं कि मनुष्य अपने विचारों को अभिव्यक्त करने एवं समाज एवं परिवेश के साथ सामंजस्य स्थापित करने के लिए जिस प्रक्रिया द्वारा अपनी भाषा क्षमता का विकास करता है, वह प्रक्रिया भाषा अधिगम कहलाती है।

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