फेफड़ों के डॉक्टर को क्या कहते हैं - phephadon ke doktar ko kya kahate hain

साकिब, पटना . आइसीयू में भर्ती कोविड के मरीजों में फेफड़े का फेल होना कॉमन शिकायत है. फेफड़े का फेल होना ही उनमें मौत का सबसे बड़ा कारण बन रहा है. ऐसे में डाॅक्टर बताते हैं कि कोविड होने पर अगर कुछ सावधानियां बरती जायें, तो फेफड़े को फेल होने से बचाया जा सकता है. ये सावधानियां आपको अस्पताल के आइसीयू में जाने की नौबत आने से रोक सकती हैं. ऐसे में हमने पटना के विशेषज्ञ डाॅक्टरों से बात की और जानी उनकी सलाह.

बिग अपोलो अस्पताल में छाती रोग विशेषज्ञ डाॅ वैभव शंकर बताते हैं कि कोरोना में सबसे ज्यादा हमारे फेफड़े प्रभावित होते हैं. कोरोना फेफड़े के काम में बाधा पहुंचाता है. वायरस के कारण शरीर के रोग प्रतिरोधक तंत्र का संतुलन बिगड़ जाता है. फेफड़े में निमोनिया हो जाता है. इसके बाद फेफड़ा धीरे-धीरे काम करना बंद कर देता है. जब फेफड़ा सही से काम नहीं करता है, तब ही हमें कई बार वेंटीलेटर के सपोर्ट पर मरीज को रखना पड़ता है.

इस कारण गिरता है ऑक्सीजन लेवल

आइजीआइएमएस के छाती रोग विशेषज्ञ डाॅ मनीष शंकर कहते हैं कि कोरोना वायरस हमारे श्वसन तंत्र को प्रभावित करता है. संक्रमण बढ़ने के कारण फेफड़े में निमोनिया होती है और इससे ही हमारे शरीर का आॅक्सीजन सेचुरेशन तेजी से घटता है. तुरंत आॅक्सीजन लेवल को मेंटेन नहीं किया गया, तो हमारा श्वसन तंत्र या फेफड़ा फेल हो जाता है. ऐसे में कोरोना के मरीज ध्यान दें कि उनका आॅक्सीजन लेवल 94 प्रतिशत से कम हो चुका हो या रेस्पिरेटरी रेट 24 से ज्यादा बढ़ गया हो, तो उन्हें तुरंत आॅक्सीजन की जरूरत पड़ती है.

वे कहते हैं कि कुछ मरीजों को सामान्य आॅक्सीजन से ही काम चल जाता है, लेकिन कुछ मरीजों के लिए हाइ फलो आॅक्सीजन देना पड़ता है और इससे भी बात नहीं बनी, तो वेंटीलेटर पर रखना पड़ सकता है. ऐसे में गंभीर स्थिति में जाने से बचना चाहते हैं, तो हर कुछ घंटे पर अपना आॅक्सीजन लेवल चेक करते रहें.

इस बार का कोविड अधिक खतरनाक

एशियन सिटी अस्पताल में मेडिसिन विभाग के डाॅ अमिताभ बंका कहते हैं कि इस बार का कोविड अधिक खतरनाक है. इसका संक्रमण तेजी से फैल रहा है और नुकसान भी अधिक हो रहा है. वे कहते हैं कि सांस लेने में तकलीफ हो और आॅक्सीजन की कमी होने लगे, तब अस्पताल में भर्ती हों. हल्का लक्षण रहने पर ही इलाज शुरू कर देंगे, तो बीमारी गंभीर नहीं होगी.

क्या कहते हैं आयुर्वेद के विशेषज्ञ

राजकीय आयुर्वेदिक काॅलेज एवं अस्पताल के प्राचार्य डाॅ प्रो दिनेश्वर प्रसाद कहते हैं कि आयुर्वेदिक उपायों को अपना कर कोरोना के मरीज गंभीर स्थिति में जाने से बच सकते है. मरीज रोजाना गर्म पानी का गरारा बार-बार करें. रोजाना भाप लेने से श्वसन तंत्र को काफी लाभ मिलता है. च्यवनप्राश, आंवला, गिलोय, अश्वगंधा, तुलसी, दूध हल्दी आदि का प्रयोग करने से रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होती है. संतुलित जीवनशैली अपनाएं. रोजाना प्राणायाम करें इससे काफी लाभ होगा.

कोविड-19 की दूसरी लहर में पूरक ऑक्सीजन की मांग में भारी वृद्धि देखने को मिली है। नीति आयोग के सदस्य (स्वास्थ्य) डॉ. वी. के. पॉल ने देखा है कि दूसरी लहर में श्वासहीनता सर्वाधिक सामान्य लक्षण है, जिससे ऑक्सीजन की अधिक आवश्यकता पड़ती है।

डॉ. अरविन्द कुमार चेस्ट सर्जरी इन्स्टीट्यूट के अध्यक्ष, मेदांता फाउंडर तथा मैनेजिंग ट्रस्टी लंग केयर फाउंडेशन ने बताया कि कोविड-19 के 90 प्रतिशत मरीज फेफड़े में तकलीफ का अनुभव करते हैं लेकिन क्लिनिकल रूप में यह महत्वपूर्ण नहीं है। 10-12 प्रतिशत लोगों में निमोनिया विकसित हो जाता है, यह फेफड़े का संक्रमण होता है जिसमें फेफड़े की छोटी-छोटी हवा की जगहें, जिन्हें एल्वियोली कहा जाता है, संक्रमित हो जाती हैं। कम अनुपात में कोविड-19 के मरीजों को ऑक्सीजन के सहारे की जरूरत तब पड़ती है जब सांस लेने में कठिनाई गंभीर रूप ले लेती है।  

सांस रोक कर रखेने का अभ्यास एक ऐसी तकनीक है जो मरीज की ऑक्सीजन आवश्यकता को कम कर सकती है और उन्हें अपनी स्थिति की निगरानी करने में मदद दे सकती है।

कैसे सांस रोक कर रखने का अभ्यास सहायक है

डॉ. अरविन्द का कहना है कि यह अभ्यास उन मरीजों के लिए बहुत ही लाभकारी है जिनमें हल्का लक्ष्ण है। यदि ऐसे मरीज सांस रोक कर रखने का अभ्यास करते हैं तो उन्हें पूरक ऑक्सीजन की आवश्यकता की संभावना कम रह जाती है। इस अभ्यास को मरीज की स्थिति देखने के लिए जांच के रूप में किया जा सकता है। यदि सांस रोक कर रखने के समय में कमी होने लगती है तो यह पूर्व चेतावनी का संकतेहै और मरीज को अपने डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए। दूसरी ओर, यदि मरीज सांस रोक कर रखने के समय में धीरे-धीरे वृद्धि करने में सक्षम होता है तो यह सकारात्मक संकेत है।

अस्पताल में दाखिल मरीज और होम ऑक्सीजन पर डिस्चार्ज किए गए मरीज भी डॉक्टर की सलाह से इस अभ्यास को कर सकते हैं। इससे उनकी ऑक्सीजन आवश्यकता कम करने में मदद मिल सकती है।  

स्वस्थ व्यक्ति भी सांस रोक कर रखने का अभ्यास कर सकते हैं। यह अभ्यास उन्हें  अपने फेफड़ों को स्वस्थ रखने में मदद करेगा।

सांस रोक कर रखने का अभ्यास कैसे करें

  • सीधा बैठें और अपने हाथों को जांघों पर रखें।
  • अपना मुंह खोलें और सीने में जितना अधिक वायु भर सकते हैं भरें।
  • अपने होठों को कस कर बंद कर लें।
  • अपनी सांस को जितना अधिक समय तक रोक कर रख सकते हैं रोकें।
  • जांचें कि आप कितने समय तक अपनी सांस रोक कर रख सकते हैं।

मरीज एक घंटे में एक बार यह अभ्यास कर सकते हैं और धीरे-धीरे प्रयास करके सांस रोक कर रखने का समय बढ़ा सकते हैं। 25 सेकेंड और उससे अधिक समय तक सांस रोक कर रखने वाले व्यक्ति को सुरक्षित माना जाता है। इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि ज्यादा जोर न लगे और इस प्रक्रिया में थकान न हो जाए।

संक्रमण का शीघ्र पता लगाना महत्वपूर्ण

हम जानते हैं कि कोविड-19 का सबसे बड़ा असर हमारे फेफड़ों पर पड़ता है , इस कारण श्वासहीनता होती है और ऑक्सीजन के स्तर में कमी आ जाती है।

डॉ. अरविन्द बताते हैं कि पहली लहर में सबसे अधिक लक्षण बुखार और कफ था। दूसरी लहर में दूसरे किस्म के लक्षण दिख रहे हैं , जैसे गले में खराश , नाक बहना, आंखों में लाली, सिरदर्द,शरीर में दर्द, चकते, मतली, उल्टी, दस्त; और मरीज को बुखार का अनुभव तीन-चार दिनों के बाद होता है। तब मरीज जांच के लिए जाता है और इसकी पुष्टि में भी समय लगता है। इसलिए कोविड-19 की पुष्टि होने तक संक्रमण पांच से 6 दिन पुराना हो जाता है तथा कुछ विशेष मामलों में फेफड़े पहले ही प्रभावित हो जाते हैं।

डॉ. अरविन्द कहते हैं कि फेफड़ों के चपेट में आने वाले कारकों में आयु, वजन, फेफड़े की वर्तमान स्थिति , मधुमेह, उच्च रक्तचाप, हृदय रोग ,एचआईवी संक्रमण, कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली, धूम्रपान की आदत , कैंसर इलाज का इतिहास तथा स्टेरॉयड का इस्तेमाल हैं।

फेफड़े का इलाज करने वाले डॉक्टर को क्या कहते हैं?

पल्मोनोलॉजिस्ट, नोएडा, भारत वह एक विशेषज्ञ है उन्नत ब्रोन्कोस्कोपिक प्रक्रिया और श्वसन विफलता का प्रबंधन। डॉ।

फेफड़ों की जांच कैसे की जाती है?

फेफड़ों की जांच के लिए एक्स-रे, सीटी स्कैन, ब्रोंकोस्कोपी, फुफ्फुस बायोप्सी, और नींद की बीमारी वाले रोगियों के लिए पॉलीसोम्नोग्राफी किए जाते हैं।

फेफड़े की जांच को क्या कहते हैं?

ब्रॉन्कोस्कोपी होने में कम से कम 30 से 60 मिनट तक का समय लगता है। इसके बाद कम से कम एक से तीन घंटे तक व्यक्ति को रिकवरी रूम में ही रहना पड़ता है। फेफड़ों की जांच करने का एक आसान परीक्षण है।

फेफड़े कमजोर होने के क्या लक्षण है?

इससे आपकी सेहत पर बुरा असर भी पड़ सकता है, ये भी फेफड़े कमजोर होने का संकेत है. अगर आपके सीने में दर्द हो रहा है, खांसते-छींकते समय दर्द हो रहा है या फिर सांस लेते समय हल्का दर्द हो रहा है, ऐसे में ये सभी लक्षण इस बात की ओर इशारा करते हैं कि आपके फेफड़े कमजोर हैं और आप किसी बीमारी की चपेट में भी हो सकते हैं.

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