इसे सुनेंरोकेंरियान (Ryans) के अनुसार, “शिक्षक व्यवहार उन व्यक्तियों के व्यवहार या क्रियाओं के रूप में परिभाषित किया जा सकता जो वे करते हैं, जिन क्रियाओं की आशा शिक्षकों से की जाती है, विशेषकर ऐसी क्रियाएँ जो क्रियाओं को सीखने के लिए निर्देशन या मार्गदर्शन से सम्बन्धित हों।”
शिक्षण बिन्दु क्या है?
इसे सुनेंरोकेंरायबर्न के अनुसार, “शिक्षण के तीन बिन्दु हैं – शिक्षक, शिक्षार्थी एवं पाठ्यवस्तु। इन तीनों के बीच संबंध स्थापित करना ही शिक्षण है। यह सम्बंध बालक की शक्तियों के विकास मे सहायता प्रदान करता है।”
कक्षा कक्ष अंतःक्रिया क्या है?
इसे सुनेंरोकेंशिक्षण एक संवादात्मक गतिविधि है। कक्षा की अन्तः क्रिया शिक्षक और छात्रों के बीच संचार है जो कक्षा की प्रतिक्रियाशील गतिविधि के रूप में लगातार चलती रहती है। एक नियमित अभ्यास के रूप में, यह शिक्षार्थियों के बीच भाषा कौशल के विकास को बढ़ाती है। यह कक्षा के अंदर प्रभावी संचार को बढ़ाने में भी मदद करती है।
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अध्यापक क्षमता क्या है?
इसे सुनेंरोकेंनेतृत्व की क्षमता- एक आदर्श अध्यापक में लोकतन्त्रीय नेतृत्व की क्षमता होना भी आवश्यक है। नेतृत्व का अर्थ केवल राजनीतिक क्षेत्र तक ही सीमित नहीं है। उसका तात्पर्य है कि शिक्षक में वह क्षमता होनी चाहिए जिससे कि वह विभिन्न शैक्षिक तथा पाठ्य सहगामी क्रियाओं का ठीक सेसंचालन कर सकें।
शिक्षण सूत्र क्या है?
इसे सुनेंरोकेंशिक्षकों के अनुभवों और विभिन्न शिक्षाशास्त्रियों की अपनी समझ और दार्शनिक परिपेक्ष्य पर आधारित वो सुझाव जो शिक्षण अधिगम की प्रक्रिया को एक खास संकेत तथा दिशा प्रदान करते हैं, शिक्षण सूत्र कहलाते हैं।
एक विद्यालय के लिए अंतः क्रिया से क्या लाभ है?
इसे सुनेंरोकेंइस कार्यक्रम का उद्देश्य छात्रों की स्वतंत्र व रचनात्मक अभिव्यक्ति की क्षमताओं को विकसित करने और स्कूल के प्रति स्वामित्व बढ़ाने के लिए शिक्षकों का क्षमता संवर्धन करना है ताकि बच्चे स्कूल में ‘ठहरें, जुड़े और सीखें’।
शिक्षण व्यवहार क्या है?
इसे सुनेंरोकेंशिक्षण व्यवहार कक्षा के नियमों को स्थापित करने, परिणामों को संप्रेषित करने और छात्रों को भाग लेने और संबंधों के निर्माण के सामान्य सुझाव प्रदान करता है। यह सबसे वर्तमान साक्ष्य-आधारित प्रथाओं में से एक है और प्रभावी शिक्षण के बारे में जानने के लिए समृद्ध, वास्तविक दुनिया के उदाहरण हैं।
यूं तो हम सभी की पहली शिक्षिका हमारी माता जी होती हैं, जो बचपन से ही हर बात बहुत बारीकियों से सिखाती हैं कि कैसे बोलना है?, कैसे चलना है?, कैसे खाना है?, कैसे पीना है?, और कैसे दूसरों के साथ व्यवहार करना है? बच्चे को सिखाना कि परिवार में किसे क्या बोलना है, यह हमें हमारी माता ही सिखाती हैं, और भी बहुत कुछ हम सभी ने अपनी माताओं से सीखा है, और अभी भी सीख ही रहे हैं।
अगले गुरु हमारे परिवार में हमारे पिताजी और परिवार के बाकी सदस्य होते हैं जो सिखाते हैं कि, परिवार में सब से जुड़कर कैसे रहना है?, समाज में सबके साथ कैसे उठना बैठना है, कैसे रहना है। अपनापन क्या होता है, इसकी सीख परिवार के सदस्य ही देते हैं।
इसके बाद ढाई तीन साल के होने पर स्कूल में दाखिला होता है, जहां पर हमें हमारे गुरु और हमारे मित्र मिलते हैं। मित्र सिखाते हैं कि कोई भी चीज बांटकर कैसे खानी है, अनजान दुनिया में किसी से बात कैसे करनी है, किसी अनजान व्यक्ति को अपना कैसे समझना है, कौन अच्छा है, कौन व्यक्ति बुरा, यह हमें स्कूल के विभिन्न विद्यार्थियों के व्यवहार को देखकर पता लगता है? जाने अनजाने में हम बहुत से लोगों से बहुत कुछ सीखते हैं।
हम सभी के जीवन में स्कूल और कॉलेज के शिक्षकों का महत्व बहुत बड़ा है। वह हमें किताबी ज्ञान तो देते ही हैं परंतु दुनिया का व्यवहारिक ज्ञान भी देते हैं।
मेरे जीवन को सवारने में भी बहुत से शिक्षकों का योगदान है। सभी से मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला है। कुछ शिक्षक मिले जो बिल्कुल आत्मीयता से और अपने परिवार का सदस्य मानकर पारिवारिक व्यवहार के जरिए शिक्षा देते थे। बचपन में मेरे शिक्षक मेरे घर भी आते थे, वे पापा से कहते थे कि, आपकी बिटिया हमारी बिटिया है। आज भी मुझे शिक्षक और उनका व्यवहार और उनकी दी गई शिक्षाएं मुझे याद है।
परंतु जैसे-जैसे हम बड़े हुए कक्षाएं बड़ी हुई वैसे वैसे शिक्षा तो मिली, लेकिन शिक्षा का रूप व्यवसायिक हो गया, बचपन वाले टीचर की तरह बच्चों को अपना समझ बहुत कम टीचर थे जो पढ़ाते थे।
कुछ शिक्षक प्रोत्साहित करते थे और हम बच्चों के साथ मेहनत भी करते थे। परंतु कुछ शिक्षक ऐसे लगते थे मानो कि कक्षा में सिर्फ बच्चों को डांटने के लिए और उन पर गुस्सा करने के लिए ही आते हैं, और किसी ने गलती से उनसे सवाल पूछ लिया कोई, तो ऐसे डांट कर बताएंगे कि वह अपना अगला सवाल पूछने की हिम्मत नहीं कर पाएगा। ऐसे शिक्षक इतने डरावने लगते थे कि वह सपने में भी आते थे तो उनका चेहरा गुस्से से लाल और वे चिल्लाते हुए नजर आते थे।
उनके ऐसे व्यवहार से उस विषय में पकड़ कमजोर हो गई और आज भी कमजोर है, जबकि उसी विषय में पहले कोई और शिक्षक पढ़ाते थे तो लगभग शत-प्रतिशत नंबर आते थे और कक्षा में हमेशा तारीफ होती थी।
अपने जीवन के अनुभव के द्वारा मैं बताना चाहती हूं कि शिक्षक को अपना व्यवहार सौम्य और वाणी मधुर रखना चाहिए। जिससे कक्षा का कमजोर से कमजोर छात्र भी शिक्षक से कुछ पूछने या सीखने में हिचकिचाहट महसूस ना करें और वह डरे ना शिक्षक से। शिक्षक का बच्चों के साथ दोस्ताना व्यवहार होना चाहिए। जीवन के हर पहलू के बारे में शिक्षा ग्रहण कर सकें और बच्चे उन्हें अपने जीवन में हमेशा याद रखें चाहे वे जीवन मे कितने भी बड़े इंसान क्यों ना बन जाए। मेरी नजर में आदर्श शिक्षक तो वही होगा।
कई बार बचपन में बच्चों को कोई सवाल समझ में नहीं आता तो शिक्षक या उन्हें घर में पढ़ाने वाला कोई ट्यूटर भी यदि पिटाई करके सिखाए तो सीखने की बात तो दूर, बिचारे छोटे बच्चों को यह भी पता नहीं होता कि उनकी पिटाई किस लिए हो रही है।
मेरे जीवन का अनुभव है कि मुझे किसी भी शिक्षक के द्वारा डांट फटकार से कुछ समझ नहीं आया, समझ तभी आया जब उन्होंने ठीक से पढ़ाया और किसी चीज को जितनी बार पूछा तो अच्छे से बताया।
यदि कोई बच्चा पढ़ाई में थोड़ा कमजोर है या लापरवाही करता है तो, मुझे लगता है कि थोड़ी बहुत सख्ती तो जरूरी है, लेकिन बच्चों को पिटाई से कुछ समझ नहीं आता, ज्यादा पिटाई से या तो वे ढीठ हो जाते हैं, और मार खाने के आदी हो जाते हैं।
मेरे जीवन के अनुभवों से मुझे लगता है कि, शिक्षक का व्यवहार दोस्ताना, सौम्य, और मधुर होना चाहिए। बच्चा यदि बहुत लापरवाही करें तो थोड़ी सख्ती भी जरूरी है।