राजस्थान में सबसे ज्यादा जाति किसकी है - raajasthaan mein sabase jyaada jaati kisakee hai

जयपुर [नरेन्द्र शर्मा]। आजादी के छह दशक बाद भी राजस्थान की अन्य पिछड़ा वर्ग की 81 जातियों में से 23 जातियों का एक भी व्यक्ति सरकारी नौकरी में नहीं है, जबकि आठ जातियों में से एक फीसदी से भी कम परिवारों में कोई नौकरी हैं। यह चौंकाने वाले तथ्य राज्य सरकार की ओर से ओबीसी में शैक्षिक एवं सामाजिक पिछड़ेपन के बारे में कराए गए सर्वे में सामने आए है।

विकास अध्ययन संस्थान द्वारा तैयार इस रिपोर्ट के आधार पर राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग ओबीसी में शामिल जातियों की आरक्षण व्यवस्था पर सरकार को सिफारिश देगा। इस रिपोर्ट में ओबीसी आबादी 46 प्रतिशत बताते हुए कई चौंकाने वाले तथ्य उजागर किए हैं।

सर्वे में ओबीसी की 81 जातियों के 91 हजार से अधिक परिवारों को शामिल किया गया। सामने आया है कि अन्य पिछड़ा वर्ग के 3.55 प्रतिशत परिवारों के सदस्य सरकारी नौकरी में है, छह जातियों की 15 प्रतिशत से अधिक आय सरकारी नौकरियों से है।

इसके विपरीत 62 जातियों की 10 प्रतिशत से अधिक आई प्राइवेट नौकरियों से है, जबकि गाडिया, लोहार, मोची और स्वर्णकार जातियों का जीवनयापन उनके परम्परागत काम धंधों से हो रहा है। इसके बाद कमाई का एक बड़ा जरिया मजदूरी, खेतीबाड़ी या पशुपालन है।

देश में अन्य पिछड़ा वर्ग के 56.6 प्रतिशत लोग मजदूरी या खेती करते हैं, जबकि प्रदेश में 65.83 प्रतिशत है। राष्ट्रीय स्तर पर उच्च दर्जे के पेशेवर और प्रशासनिक प्रबंधकों की संख्या 0.39 प्रतिशत है, जबकि प्रदेश में 0.30 प्रतिशत हैं।

ओबीसी की 81 में से 75 जातियों के 68.13 प्रतिशत लोगों के पास जमीन है, जबकि सिकलीगर, ठठेरा, कंसारा, सपेरा, खेलदार और मोची परिवारों के पास कोई जमीन नहीं है। वहीं राईका,रेबारी,गाडिया लोहार,गाडोलिया, गुर्जर, गडरिया,गायरी,घोसी, बंजारा,बालदिया,लबाना जाति धुमन्तु वर्ग में सबसे ऊपर हैं, जबकि 15 जातियों में घुमन्तु लक्षण नहीं हैं।

सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक जो जातियां सरकारी नौकरी से दूर है उनमें गाडिया लोहार, बागरिया, हेला, मोगिया, न्यारिया, पटवा, सतिया-सिंधी, सिकलीगर, बंदूकसाज, सिरकीवाल, तमोली, जागरी, लोढ़े-तंवर, खेरवा, कूंजड़ा, सपेरा, मदारी, बाजीगर, नट, खेलदार, चूनगर, राठ, मुल्तानीज, मोची, कोतवाल, कोटवाल शामिल है। लम्बे समय से पांच फीसदी विशेष ओबीसी में आरक्षण की मांग कर रहे गुर्जर समाज के 3.38 प्रतिशत परिवारों में ही नौकरी पेशा सदस्य हैं, लेकिन 65 जातियां गुर्जरों से भी पिछड़ी हैं।

भारत में चुनाव किसी भी राज्य मे हों जातियों की भूमिका अहम रहती है. राजस्थान भी इससे अछूता नहीं है. साल 2003 और 2013 के विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने जाति कार्ड खेलते हुए कहा था कि वो जाटों की बहू हैं, राजपूतों की बेटी हैं और गुर्जरों की समधिन हैं. इन तीनों जातियों की राज्य की राजनीति की दिशा तय करने में बड़ी भूमिका रहती है, जबकि राजपूत और जाट परस्पर विरोधी माने जाते हैं.

मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के पुत्र और झालावाड़ से सांसद दुष्यंत सिंह ने भी सोशल इंजीनियरिंग के गुर अपनी मां से सीख लिए हैं. यही वजह है कि दुष्यंत अपनी पत्नी निहारिका को गुर्जर बहुल सीटों पर प्रचार के लिए भेज रहे हैं, क्योंकि वो इसी जाति से आती हैं. राज्य ने पिछले कुछ समय से जाटों की ओबीसी कैटेगरी में शामिल करने की मांग और गुर्जरों की 5 फीसदी आरक्षण की मांग को लेकर हिंसक प्रदर्शन देखे हैं.

जातीय समीकरण और उनका महत्व

राजस्थान में 89 फीसदी आबादी हिंदू, 9 फीसदी मुस्लिम और 2 फीसदी अन्य धर्म के लोग हैं. अनुसूचित जाति की आबादी 18 फीसदी, अनुसूचित जनजाति की आबादी 13 फीसदी, जाटों की आबादी 12 फीसदी, गुर्जर और राजपूतों की आबादी 9-9 फीसदी, ब्राह्मण और मीणा की आबादी 7-7 फीसदी है. इस लिहाज से किसी भी दल को सत्ता में आने के लिए ओबीसी वोट को साधना बेहद जरूरी हो जाता है. यही वजह है कि भले ही राजनीतिक दल विकास, लोक कल्याण के नाम पर प्रचार करते हैं लेकिन टिकट का वितरण जाति के आधार पर ही होता है.

आप इसका अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि एक तरफ बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह कहते हैं कि बीजेपी जाति की राजनीति नहीं, बल्कि विकास की राजनीति करती है. तो दूसरी तरफ मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, राजपूत समाज के मंत्रियों की अलग से बैठक बुलाकर राजपूतों का विश्वास जीतने की रणनीति तैयार करती हैं. राजे ने राजपूत नेताओं को जमीन पर काम कर बेरोजगारी और आरक्षण के मुद्दे पर उनकी नाराजगी दूर करने की जिम्मेदारी दी है.

कहां-कहां कौन सी जातियां हावी

राजस्थान के उत्तरी हिस्से में मारवाड़ का कुछ हिस्सा और शेखावाटी क्षेत्र जाट बहुल है, दक्षिणी राजस्थान गुर्जर और मीणा बहुल है. हाड़ौती क्षेत्र जिसमें कोटा, बूंदी, बारां और झालावाड़ जिला शामिल है ब्राह्मण, वैश्य और जैन बहुल है. मत्स्य क्षेत्र में आबादी मिश्रित है, जबकि मध्य राजस्थान जिसमें जोधपुर, अजमेर, पाली, टोंक, नागौर जिले आते हैं, वहां मुस्लिम, मीणा, जाट और राजपूतों का प्रभाव है. मेवाड़-वागड़ क्षेत्र यानि उदयपुर संभाग आदिवासी बहुल क्षेत्र है. राजस्थान विधानसभा में इस समय 27 राजपूत, 31 जाट, और 15 गुर्जर विधायक हैं.   

राजस्थान में बीजेपी राजपूतों (स्वतंत्र पार्टी के जमाने से) और ओबीसी में ज्यादा लोकप्रिय रही है, जबकि कांग्रेस ब्राह्मण, जाट, मुस्लिम, गुर्जर, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों में ज्यादा लोकप्रिय मानी जाती रही है.  लेकिन बदलते राजनीतिक समीकरण और हर 5 साल में सरकार बदलने की परिपाटी के चलते धीरे-धीरे मतदाताओं के वोटिंग करने के तरीके में बदलाव आया है. जाट समुदाय जो पारंपरिक तौर पर कांग्रेस का समर्थक था, माली समुदाय से आने वाले अशोक गहलोत को 1998 और 2008 में मुख्यमंत्री बनाने के कारण कांग्रेस से दूर होता गया.  

2018 का विधानसभा चुनाव कई मायनों में गुर्जर बनाम मीणा और राजपूत बनाम जाट माना जा रहा है. इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इन जातियों ने एक साथ एक पार्टी को कभी वोट नहीं किया और पारंपरिक तौर पर यह दूसरे के विरोधी भी रहे हैं. इस साल की शुरुआत में जोधपुर के सोमारू गांव में जाटों ने कथित तौर पर राजपूतों के घरों को आग के हवाले कर दिया और लूटपाट की. सरकार की तरफ से संतोषजनक कार्रवाई नहीं करने के कारण बीजेपी को राजपूतों की नाराजगी का खामियाजा अजमेर और अलवर के लोकसभा उपचुनाव में भुगतना पड़ा.

छोटी आबादी वाली जातियों को एकजुट करने की राजनीति

हाल के चुनावों में देखा गया है कि छोटी आबादी वाले जाति समुदाय एकजुट होकर बड़ी और प्रभावी जातियों के असर को कम कर रहे हैं. ये मॉडल पूरे राज्य में परिलक्षित न होकर अलग-अलग इलाकों के हिसाब से तय होता है. मसलन किरोणी सिंह बैंसला गुर्जर, रैबारी और आरक्षण की मांग कर रहे राजपूतों को एकजुट करने में लगे हैं. ताकि प्रभावी जातियों के वर्चस्व को कम किया जा सके और राष्ट्रीय दलों को अपनी मांगों पर झुकने को मजबूर किया जा सके. जबकि बीजेपी से अलग होकर भारत वाहिनी पार्टी बनाने वाले कद्दावर नेता घनश्याम तिवाड़ी जाट नेता हनुमान बेनीवाल के साथ गठबंधन की इच्छा जाहिर कर चुके हैं.

बीजेपी कांग्रेस के पारंपरिक वोटबैंक पर निगाहें लगाए हुए है और साथ ही अपने वोट बैंक को बचाए रखना चाहती है. राज्य में ताकतवर मुस्लिम चेहरा न होने की वजह से कांग्रेस का मुस्लिम वोटरों पर असर पहले की तुलना में कम हुआ जबकि बीजेपी में मुस्लिम नेता और मंत्री यूनुस खान का कद बढ़ा है. यूनुस खान ने जाटों के वर्चस्व वाले नागौर, चुरू और झुंझनू में राजपूत, मुस्लिम, वैश्य और ब्राह्मणों का गठजोड़ कर इन जिलों में भाजपा को स्थापित किया.

सचिन पायलट को आगे लाने से क्यों डरती है कांग्रेस?

राजस्थान में कांग्रेस के पास सचिन पायलट के रूप में एक लोकप्रिय युवा चेहरा है, लेकिन पार्टी पायलट के नेतृत्व में चुनाव लड़ने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भले ही अपने भाषणों में कहते आए हों कि इस बार राजस्थान में युवाओं की सरकार बनेगी, लेकिन वे सचिन पायलट को सीएम कैंडिडेट घोषित करने से कतरा रहे हैं. राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो कांग्रेस 1998 वाली गलती नहीं दोहराना चाहती, जिसमें पार्टी ने किसान नेता और लोकप्रिय जाट चेहरा परसराम मदेरणा की जगह अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री बना दिया था. माना जाता है कि जाटों ने कांग्रेस के इस फैसले को समुदाय के साथ धोखे के तौर पर लिया था क्योंकि जाट सालों से पार्टी से वफादारी के एवज में अपनी बिरादरी से मुख्यमंत्री बनाए जाने की आस लगाए बैठे थे.

युवा के कल्याण, रोजगार और विकास के मापदंड पर अशोक गहलोत के संतोषजनक कार्य के बावजूद जाटों की नाराजगी का खामियाजा कांग्रेस को 2003 के विधानसभा चुनाव में भुगतना पड़ा. शायद यही वजह है कि पार्टी गुर्जर समुदाय से आने वाले सचिन पायलट को मुख्यमंत्री का उम्मीदवार प्रोजेक्ट नहीं कर रही क्योंकि इससे जाट और मीणा नाराज हो सकते हैं.

विभिन्न जाति समूहों का बड़ा गठबंधन

कांग्रेस राजस्थान में विभिन्न जाति समूहों का बड़ा गठबंधन बनाते हुए अपने पारंपरिक वोटबैंक को फिर से जिंदा करने की कोशिश कर रही है. इस बार राहुल गांधी ने सचिन पायलट को युवाओं और गुर्जरों को साधने के लिए आगे किया है. वहीं पिछड़ों में सर्वमान्य पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को ओबीसी वोटरों को पार्टी की तरफ लाने की जिम्मेदारी दी गई है. राहुल स्वयं मंदिरों में जाकर यह साबित करने में लगे हैं कि वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से कम हिंदू नहीं हैं. उधर मारवाड़ क्षेत्र के सबसे बड़े जासोल राजपूत घराने और बीजेपी के संस्थापक सदस्य रहे जसवंत सिंह के बेटे मानवेंद्र सिंह कांग्रेस खेमे में शामिल हो गए हैं. देखना होगा कि आने वाले समय में कांग्रेस को इसका कितना लाभ मिलता है.

लिहाजा राजस्थान में यह साफ है कि राजपूत, गुर्जर, जाट, मीणा और ओबीसी समुदाय का समर्थन जिस दल को मिलेगा और जो दल इन समुदायों के आपसी मतभेदों का सही तरीके से प्रबंधन करते हुए एक इंद्रधनुषी गठबंधन बनाने में कामयाब होगा अंत में सरकार उसी की बनेगी.

राजस्थान की सबसे ऊंची जाति कौन सी है?

"चारण राजस्थान में बेहद आदरणीय और प्रभावशाली माने जाते हैं। इस जाति की विशेषता यह है कि यह अपने चरित्र में राजपूतों और ब्राह्मणों की विशेषताओं को पर्याप्त रूप से संयोजित करती है।"

राजस्थान में कौन सी जाति फेमस है?

राजस्थान में कौन सी जातियां हैं? राजस्थान में भील, मीना, सहरिया, कथौड़ी, सांसी, गुर्जर, डामोर,डिडेल, आदि जनजातिया निवास करती हैं । राजस्थान की 'गाड़िया लुहार' जाति के बारे में आप क्या जानते हैं?

सबसे ऊंची जाति कौन सी होती है?

भारतवर्ष में सबसे ऊँची जाति ब्राह्मण है। ब्राह्मणों में ऊँच-नीच के असंख्य भेद हैं।

भारत में सबसे ज्यादा कौन सी जाति के लोग हैं?

भारत में सबसे ज्यादा कौनसी जाति के लोग है ? भारत में ब्राह्मण जाति के लोग सबसे ज्यादा हैं, उसके बाद क्षत्रिय जाति के लोग आते है।

संबंधित पोस्ट

Toplist

नवीनतम लेख

टैग