सलीम अली के पास हर समय क्या रहता था और क्यों? - saleem alee ke paas har samay kya rahata tha aur kyon?

लोग हमेशा ही पशु-पक्षियों से श्रेष्ठ होने का दावा करते रहे हैं पर नजर के तेज होने में बाज की, सीधेपन में गाय की, तेज दौड़ने में बाघ की, सुंदरता में पक्षियों की और खुद के बलशाली होने के लिये शेर की उपमाएं देने से नहीं चूकते. ये भी कहा जाता रहा है कि पशु-पक्षियों से शारीरिक बल में कमजोर होने की भरपाई इंसान की परिष्कृत बुद्धि कर देती है. वैसे 'इंसानी बुद्धि कितनी परिकृत है' इसका अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि उसने लगातार प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कर अपने पर्यावास को प्रदूषित नहीं बल्कि एक हद तक तबाह कर डाला है.

ऐसे झुंड के झुंड इंसानों के बीच में सालिम अली जैसे इंसान आशा की किरण हैं, जिन्होंने अपनी सारी जिंदगी आराम-तलबी त्यागकर अपने पर्यावरण को समझने और उसे नष्ट होने से बचाने में लगा दी. भारत में हो या दुनिया भर में कहीं भी, इंसान ने अपने मनोरंजन के लिए चिड़ियाघर बना रखे हैं, जहां जंगल के तमाम अनोखे जानवरों को मनोरंजन के उद्देश्य से कैद कर प्रदर्शित किया जाता है.

यहां यह तर्क दिया जा सकता है कि इसका एक उपयोग उनके बारे में अध्ययन का भी होता है पर भारत में हर महीने ऐसे चिड़ियाघरों से कई पशु-पक्षियों की मौत के आने वाली खबरों के बीच ये तरीका कितना संवेदनशील है, पाठक खुद इस पर विचार कर सकते हैं.

वहीं सालिम अली जो खुद कभी बहुत बड़े शिकारी बनना चाहते थे, बाद में उनकी दिलचस्पी प्राकृतिक पर्यावरण में जीवित पक्षियों में हो गई थी. वो एक ऐसी व्यवस्था करना चाहते थे कि किसी पशु-पक्षी को कैद करके गुलाम बनाने के बजाए इंसान उन्हें खुद पर विश्वास करने दें और उनका संरक्षण करें. इसलिए उन्होंने पक्षियों के पर्यावास बचाने को तथा जहां पहले से पक्षी प्रवसन के लिए आते हैं, ऐसे क्षेत्रों को सुरक्षित रखने के लिए बर्ड सेंचुरी स्थापित करने का सुझाव दिया. फिर सरकारों के इस ओर ध्यान न देने पर संघर्ष भी किया.

प्रतीकात्मक तस्वीर (रायटर)

सालिम अली के इन प्रयासों से परिचित कोई भी आज भी भरतपुर राजस्थान स्थित केवलादेव बर्डसेंचुरी में घूमते हुए सालिम अली को वहां महसूस कर सकता है. जो ढेर सारे पक्षियों की चहचहाहट के बीच अपनी दूरबीन आंखों पर लगाये, वहीं घूमते रहते थे. सालिम अली का आज 121वां जन्मदिन है. आइये जानते हैं सालिम अली के बर्डमैन ऑफ इंडिया बनने की कहानी.

सोनकंठी गौरैया के शिकार ने दिया जीवन का लक्ष्य

सालिम अली अपने परिवार के नौंवे और सबसे छोटे बच्चे थे. बचपन में ही उनकी मां और पिता का इंतकाल हो गया था. उनका पालन-पोषण उनके मामा अमिरुद्दीन तैयबजी और मामी हमीदा बेगम की देख-रेख में मुंबई के खेतवाड़ी इलाके में हुआ था.

मामा अमिरुद्दीन को शिकार का शौक था तो बच्चे भी उनसे प्रभावित होकर पक्षियों का शिकार करने लगे. उन्हें कांच के छर्रे वाली हल्की बंदूकें दी गईं, जिनसे पक्षियों का शिकार किया जा सकता था. बच्चे आपस में ही शिकार की प्रतियोगिता किया करते थे. ऐसे ही एक रोज 10 साल के सालिम अली ने खेल-खेल में एक गौरैया को मार गिराया.

पर जब सालिम ने उसे पास से देखा तो सालिम ने पाया कि उसके गले पर एक पीले रंग का निशान था. सालिम अली तुरंत उस पक्षी को अपने चाचा अमिरुद्दीन के पास लेकर गये ताकि उनका शंका समाधान हो सके पर चाचा इसमें असमर्थ थे तो उन्होंने सालिम को पक्षी के साथ बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी के सचिव डब्ल्यू. एस. मिलार्ड के पास भेज दिया.

मिलार्ड छोटे सालिम की इस जिज्ञासा से खुश हुये. उन्होंने न केवल सालिम को उस पक्षी की पहचान सोनकंठी गौरैया के रूप में बताई, साथ ही सालिम अली को भारत के दूसरे विशिष्ट पक्षी भी दिखाए. बाद में उन्होंने सालिम अली को 'कॉमन बर्ड्स ऑफ मुंबई' नाम की एक किताब भी दी. सालिम अली ने अपनी आत्मकथा 'फॉल ऑफ ए स्पैरो' में इस घटना को अपने जीवन का टर्निंग प्वाइंट माना है. जहां से उन्होंने पक्षियों के अध्ययन को ही अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया. वैसे बताते चलें कि बंबई की उनकी बालटोली में शामिल एक और बच्चा इस्कंदर मिर्जा भी था, जो बड़े होकर पाकिस्तान का पहला राष्ट्रपति बना.

जीवन में कई मोड़ आये पर पक्षियों से प्रेम खत्म नहीं हुआ

सालिम अली की प्राथमिक शिक्षा बाइबिल मेडिकल मिशन गर्ल्स हाई स्कूल में हुई. जिसके बाद मुंबई के सेंट जे़विएर में उनका दाखिला हो गया. स्वास्थ्य की खराबी के चलते उन्हें कुछ दिन के लिए पढ़ाई छोड़नी पड़ी. फिर वापस लौट दसवीं पास कर वह भाई के साथ खानों की खुदाई का कारोबार करने बर्मा चले गए. पर वहां भी पक्षियों की खोज में खोये रहने और व्यापार में मन न लगने के चलते वह 1917 में वापस भारत लौट आए और डावर कॉमर्स कॉलेज में वाणिज्यिक कानून लेखा का अध्ययन किया. साथ ही साथ वह प्राणिशास्त्र का अध्ययन भी करते रहे. 1918 में उनका निकाह दूर की रिश्तेदार तहमीना से हो गया.

सालिम अली काम तो पक्षी विज्ञान के क्षेत्र में ही करना चाहते थे पर उनकी डिग्रियां इस क्षेत्र में उनकी गहरी जानकारी की गवाही नहीं देती थीं. ऐसे में वह जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया में पक्षी विज्ञानी के पद को हासिल कर पाने में असमर्थ रहे. बाद में 1926 में उनकी नौकरी मुंबई के प्रिंस ऑफ वेल्स संग्रहालय में 350 रुपए के प्रतिमाह वेतन पर गाइड लेक्चरर के रूप में हो गई. इस पद पर दो साल नौकरी करने के बाद सालिम अली अध्ययन अवकाश लेकर बर्लिन विश्वविद्यालय पढ़ने चले गए. वहां उन्होंने पक्षियों के नमूने लेने से जुड़ा अध्ययन किया.

ईश्वर एक दरवाजा बंद करता है तो दूसरा खोल देता है

बर्लिन से सालिम वापस लौटे तो उन्हें पता चला कि पैसों की कमी के चलते वह जिस पद पर काम कर रहे थे, उस पद को ही समाप्त कर दिया गया था. ऐसे में वह पत्नी तहमीना को लेकर मुंबई के पास किहिम नामक एक तटीय गांव में स्थानांतरित हो गए.

यहीं पर उन्होंने बया वीवर के प्रजनन के बारे में नजदीक से अध्ययन किया. जब ये अध्ययन प्रकाशित हुआ तो सालिम अली को बहुत ख्याति मिली. इसके बाद उन्होंने शाही राज्यों में वहां के शासकों के कहने पर व्यवस्थित रूप से पक्षी सर्वेक्षण किया. इन राज्यों में हैदराबाद, कोचीन, त्रावणकोर, ग्वालियर, इंदौर और भोपाल शामिल हैं. इसी दौर में वो मशहूर पक्षी विज्ञानी ह्यूग व्हिस्लर से भी मिले.

सालिम अली और विवाद

सिडना डिलन रिप्ले के साथ अपने साथ के चलते सालिम अली पर अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए. का एजेंट होने के आरोप लगे. वजह थी कि सिडना डिलन रिप्ले ओएसएस के एजेंट रह चुके थे. सालिम अली के एक मित्र लोके वान भी थे. जो पक्षी विज्ञानी होने के साथ ही अच्छे फोटोग्राफर भी थे. दोनों ने साथ मिलकर कुछ कई काम किए हैं.

इसके अलावा सालिम अली ने प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और इंदिरा गांधी को भी कई मुद्दों पर प्रभावित किया था. भरतपुर का केवलादेव पक्षी अभ्यारण्य सालिम अली के ही प्रयासों का नतीजा है. वहीं उन्होंने साइलेंट वैली नेशनल पार्क, केरल का भी बचाव किया. बाद में सालिम अली ने भरतपुर में अन्य पशुओं और चारागाह के विकल्प को भी नकारा ताकि पारिस्थितिकी तंत्र संतुलित रहे. कुछ लोगों ने इसके चलते उन पर अलोकतांत्रिक होने के आरोप भी लगाए थे.

भरतपुर केवलादेव पक्षी अभयारण्य का एक दृश्य


सालिम अली का इस्लामिक प्रार्थना में भी कोई विश्वास नहीं था और वह इसे बड़े-बूढ़ों का पाखंडी दिखावा कहा करते थे. सालिम अली अहिंसा के समर्थक नहीं थे. अपनी आत्मकथा में उन्होंने उत्साह के साथ अपनी बंदूकों का जिक्र किया है, जिनकी मदद से वह शिकार किया करते थे या पक्षियों के नमूने जुटाया करते थे.

सालिम अली कहा करते थे कि इस क्षेत्र में लोगों से व्यवहारिकता की आशा होनी चाहिए. एक बार तो उन्होंने अहिंसा को पक्षी अध्ययन के विकास में बाधा तक कहा था. हालांकि पहले बड़ा शिकारी बनने के ख्वाब पालने वाले सालिम अली ने बाद के दिनों में पक्षियों के आंकड़े जुटाने के लिए उन्हें मारने के बजाए एक विशेष प्रकार के जाल में फांसकर उनका अध्ययन करने का तरीका चुना था.

एक बात ये भी है कि 1960 के दशक के प्रारंभ में जब राष्ट्रीय पक्षी को लेकर बहस चल रही थी तब सालिम अली ने 'ग्रेट इंडियन बस्टर्ड' को राष्ट्रीय पक्षी बनाने का सुझाव दिया था पर बाद में मोर के सामने ये प्रस्ताव खारिज हो गया.

सालिम अली, सम्मान और किताबों में संकलित विरासत

सालिम अली को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (1958), दिल्ली विश्वविद्यालय (1973), आंध्र विश्वविद्यालय (1978) से मानद डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त हुई थी. वह पहले ब्रिटिश थे जिन्हें ब्रिटिश ऑर्निथोलॉजिस्ट यूनियन के स्वर्ण पदक(1967) से नवाजा गया.

1967 में ही उन्हें 1 लाख डॉलर की पुरस्कार राशि वाला जे. पॉल गेट्टी वाइल्डलाइफ कंजरवेशन अवॉर्ड भी दिया गया. भारत सरकार ने भी उन्हें 1958 में पद्म भूषण और 1976 में पद्म विभूषण पुरस्कारों से नवाजा. 1985 में उन्हें राज्यसभा में मनोनीत भी किया गया.

सालिम अली लंबे वक्त से प्रोस्टेट कैंसर से जूझ रहे थे और जब 1987 में उनका निधन हुआ, उस वक्त 91 वर्ष के थे. सालिम अली के नाम से कई पक्षी विहारों और रिसर्च सेंटर के नाम रखे गये हैं. सालिम अली की लिखी सबसे प्रचलित किताब द बुक ऑफ इंडियन बर्ड्स है.

उनकी सर्वोत्तम कृति डिल्लन रिप्ले के साथ मिलकर लिखी गई उनकी पुस्तक हैंडबुक ऑफ द बर्ड्स ऑफ इंडिया एंड पाकिस्तान मानी जाती है. जिसके 10 खंड हैं. दोनों ने मिलकर इसे 10 सालों में लिखा. सालिम अली ने कई क्षेत्रीय गाइड भी तैयार की हैं. उनकी आत्मकथा का नाम द फॉल ऑफ स्पैरो है.

सालिम अली होने के मायने

भारत जैसे विकासशील देश में अगर विकास की तकनीकी और मशीनी दौड़ के बीच सालिम अली जैसा संवेदनशील व्यक्ति सरकारों और व्यवस्था को पक्षियों और उनके संरक्षण के लाभ वैज्ञानिक रूप से नहीं समझा पाया होता तो भारत ने अपने कई विशिष्ट पर्यावासों को खो दिया होता.

कई पक्षियों के बारे में परंपरा से चली आ रही मान्यताओं के बारे में भी सालिम अली के अध्ययन ने कई सुधार किये और नई बातें बताईं. इसके अलावा वह सालिम अली ही थे, जिन्होंने प्रवासी पक्षियों के बारे में विस्तृत अध्ययन कर भारत में कच्छ और कुछ अन्य स्थानों को साइबेरिया और मध्य एशियाई पक्षियों के प्रजनन काल का आवास होने की बात का खुलासा किया और देश की इस विशिष्टता पर गर्व करने का अवसर भी दिया.

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FIRST PUBLISHED : November 12, 2018, 12:27 IST

सालिम अली अपने साथ हर समय क्या लिए रहते थे और क्यों?

Answer: सलीम अली हर समय दूरबीन लिए रखते थे क्योंकि वे पक्षी प्रेमी थे. पक्षियों का अध्ययन करते थे, पक्षियों पर अनेक प्रकार के अनुसन्धान करते थे. अपना अधिकांश समय वे इन्हीं पक्षियों को निहारने, देखने और इनका अध्ययन करने में ही व्यतीत करते थे.

सालिम अली का जीवन काल कितना समय का था?

लम्बे समय से प्रोस्टेट कैंसर से जूझ रहे 91 वर्षीय सालिम अली का 1987 में निधन हुआ।

सलीम अली दूरबीन के बिना कब दिखाई देते थे?

एकांत क्षणों में सालिम अली बिना दूरबीन भी देखे गए हैं। दूर क्षितिज तक फैली ज़मीन और झुके आसमान को छूने वाली उनकी नज़रों में कुछ-कुछ वैसा ही जादू था, जो प्रकृति को अपने घेरे में बाँध लेता है। सालिम अली उन लोगों में थे जो प्रकृति के प्रभाव में आने की बजाए प्रकृति को अपने प्रभाव में लाने के कायल होते हैं।

सलीम अली कैसे व्यक्ति थे?

सालिम अनन्य प्रकृति-प्रेमी तथा विचारशील व्यक्ति थे। प्रकृति तथा पक्षियों के प्रति उनके मन में कभी न खत्म होने वाली जिज्ञासा थी। लेखक के शब्दों में - उन जैसा 'बर्ड-वाचर' शायद कोई हुआ है। उन्हें दूर आकाश में उड़ते पक्षियों की खोंज करने का तथा उनकी सुरक्षा के उपाय कोजने का असीम चाव था।

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