HomeGK (General Knowledge )भारत के प्रमुख पर्व-त्योंहार एवं मेले । GK । Important Festival and Fairs in India। DRDO/Railway/SSC/Bank/
September 23, 2022
पोंगल भारत के किस राज्य का एक प्रसिद्ध त्योंहार है।
उत्तर- तमिलनाडु
पोंगल त्योहार में किस भगवान की पूजन किया जाता है।
उत्तर- सूर्य
Chalo Loku त्योहार किस राज्य में मनाया जाता है।
उत्तर- अरुणाचल प्रदेश
नवरोज त्योहार किन के द्वारा मनाया जाता है।
उत्तर- पारसी लोगो के द्वारा
गणगौर भारत के किस राज्य का एक प्रसिद्ध त्योहार है।
उत्तर- राजस्थान
पूर्ण कुंभ मेला कितने वर्षों में एक बार आयोजित किया जाता है।
उत्तर- 12 वर्षो में
संगई महोत्सव कहा मनाया जाता है।
उत्तर- मणिपुर
कर्नाटक का कंबाला त्योहार किससे संबंधित है।
उत्तर- भैंसों की दौड़
ओणम किस राज्य का प्रमुख त्योहार है।
उत्तर- केरल
इनमें से कौन सा त्योहार डांडिया और गरबा जैसे नृत्यों के साथ मनाया जाता है।
उत्तर- नवरात्र
असम में मनाया जाने वाला पारंपरिक फसल कटाई उत्सव कौन-सा है।
उत्तर- बोहाग बिहू
ईस्टर का त्योहार निम्न में से किस दिन मनाया जाता है।
उत्तर- रविवार
किसे प्रकाश का त्यौहार कहा जाता है।
उत्तर- दीपावली
किस भारतीय राज्य में सामाजिक त्योहार छापर मेला आयोजित किया जाता है।
उत्तर- पंजाब
सामाजिक त्यौहार नुआखाई भारत के किस राज्य से सम्बन्धित है
उत्तर- ओडिसा
कौन सा देश प्रत्येक वर्ष विश्व का सबसे बड़ा बर्फ त्यौहार आयोजित करता है।
उत्तर-चीन
रण-उत्सव कहाँ मनाया जाता है।
उत्तर- गुजरात
कौन सा त्योहार हर वर्ष दिसम्बर के पहले हफ्ते में मनाया जाता है।
उत्तर- हार्नबिल त्योहार
लोसूंग कहाँ का लोकप्रिय त्योहार है।
उत्तर- सिक्किम
कुंभ का मेला किन शहरों में लगता है।
उत्तर- हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक
बैल को काबू करने वाला त्यौहार जल्लीकट्टू किस भारतीय राज्य मे लोकप्रिय रुप से मनाया जाता है।
उत्तर- तमिलनाडु
भारत को कौन सा राज्य स्नेक बोट रेस के लिए प्रसिद्ध है।
उत्तर- केरल
उगादी, बिहू, गुड़ी पड़वा, पुथांडू, विशु और बिसुआ संक्रान्ति ये भारत के सभी त्यौहार किस इवेंट का जश्न मनाते है।
उत्तर- नए साल की शुरुवात
उंटो का प्रसिद्ध व्यापार किस वार्षिक मेले का हिस्सा है
उत्तर- पुष्कर मेला
थाई पोंगल संक्रांति मुहूर्त...
संक्रांति पल :08:03:07
पोंगल दक्षिण भारत के राज्यों में मनाया जाने वाला एक अहम हिंदू पर्व है। उत्तर भारत में जब सूर्य देव उत्तरायण होते हैं तो मकर संक्रांति पर्व मनाया जाता है ठीक उसी प्रकार तमिलनाडु में पोंगल का त्यौहार धूमधाम से मनाया जाता है। पोंगल पर्व से ही तमिलनाडु में नव वर्ष का शुभारंभ होता है। पोंगल पर्व का इतिहास करीब एक हजार साल पुराना है। तमिलनाडु के अलावा श्रीलंका, कनाडा और अमेरिका समेत दुनिया के कई देशों में रहने वाले तमिल भाषी लोग इस पर्व को उत्साह के साथ मनाते हैं।
यह पर्व पूर्णतया प्रकृति को समर्पित है। पोंगल का सीधा संबंध खेती-बारी व ऋतुओं से है और ऋतुओं का संबंध भगवान सूर्य नारायण से है, इसलिए इस दिन सूर्य भगवान की विशेष विधि विधान से पूजा की जाती है। दक्षिण भारत में सूर्य के उत्तरायण होने वाले दिन यानी पोंगल से ही नववर्ष का आरंभ माना जाता है, ऐसी मान्यता है कि इस दिन तमिल के लोग बुरी आदतों का त्याग करते हैं, इस परंपरा को पोही कहा जाता है।
पोंगल क्यों
मनाया जाता है? ( Pongal Kyon Manaate Hein)
देश में मनाए जाने वाले अधिकांश त्यौहारों की तरह ही पोंगल भी कृषि और खेती से जुड़ा उत्सव है। दक्षिण भारत में धान की फसल कांटने के बाद लोग अपनी खुशी प्रकट करने के लिए पोंगल का त्योहार बड़े ही हर्ष और उल्लास के साथ मनाते हैं और वे भगवान से आगामी फसल के अच्छे होने की प्रार्थना करते हैं।
इस दिन वे समृद्धि लाने के लिए वर्षा, धूप, सूर्य, इन्द्रदेव और खेतिहर मवेशियों की पूजा-आराधना करते हैं। सूर्य देव के माध्यम से जो अन्न-जल जमीन से प्राप्त होता है लोग उसी का आभार व्यक्त करने के लिए पोंगल का त्यौहार मनाते हैं, इस दिन सूर्यदेव को विशेष भोग लगता है जिसे पोंगल कहा जाता है।
पोंगल का अर्थ/ पोंगल क्या है? (Pongal Festival Meaning in Hindi)
पोंगल का तमिल में अर्थ उफान या विप्लव होता है, यह तमिल हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है जो सम्पन्नता को समर्पित है। इस पर्व में समृद्धि लाने के लिए वर्षा, धूप तथा खेतिहर मवेशियों की आराधना की जाती है। इस दिन सूर्य देव को जो प्रसाद अर्पित किया जाता है उसे पगल कहते हैं, जिसके
कारण इस पर्व का नाम पोंगल कहलाता है।
पोंगल के पहले अमावस्या को लोग बुरी रीतियों का त्यागकर अच्छी चीजों को ग्रहण करने की प्रतिज्ञा करते हैं, यह कार्य ‘पोही’ कहलाता है, जिसका अर्थ है- ‘जाने वाली,’ पोही के अगले दिन अर्थात प्रतिपदा को दिवाली की तरह पोंगल की धूम मच जाती है।
पोंगल में भगवान सूर्यदेव को लगने वाला भोग/ पोंगल के पकवान
इस दिन विशेष तौर पर खीर बनाई जाती है। पोंगल त्यौहार वाले दिन सदियों से चली आ रही परंपरा और रिवाजों के अनुसार तमिलनाडु राज्य के लोग दूध से
भरे एक बर्तन को ईख, हल्दी और अदरक के पत्तों को धागे से सिलकर बांधते हैं और उसे प्रज्वलित अग्नि में गर्म करते हैं और उसमें चावल डालकर खीर बनाते हैं, जो पोंगल कहलाता है और फिर उसी का भोग सूर्यदेव को लगाया जाता है। इसके अलावा इस दिन मिठाई और मसालेदार पोंगल व्यंजन तैयार किये जाते हैं।
तमिलनाडु में पोंगल (Pongal Kaise Manaate Hein)
पोंगल पर्व में दक्षिण भारत के लोग फसल समेटने के बाद अपनी खुशी प्रकट करने के साथ ही आने वाली फसल के अच्छे होने की प्रार्थना करते हैं। इस दिन लोग
धूप, सूर्य, इन्द्रदेव और पशुओं की पूजा कर उनका आभार प्रकट करते हैं। तमिलनाडू में पोंगल पर्व को पूरे चार दिनों तक मनाया जाता है। अलग अलग दिन को अलग अलग नामों से जाना जाता है। इस पर्व का पहला दिन भोगी पोंगल, दूसरा दिन सूर्य पोंगल, तीसरा दिन मट्टू पोंगल और चौथा दिन कन्या पोंगल कहलाता है, दिनों के हिसाब से ही पूजा की जाती है।
: पहले दिन भोगी पोंगल में घरों की साफ-सफाई की जाती है और सफाई से निकले पुराने सामानों से ‘भोगी’ जलाई जाती है और इस दिन इन्द्रदेव की पूजा होती है।
: दूसरे दिन यानी सूर्य पोंगल पर सूर्यदेव की पूजा होती है. लोग अपने-अपने घरों में मीठे पकवान चकरई पोंगल बनाते हैं और सूर्य देवता को भोग लगाते है।
: तीसरे दिन को मट्टू अर्थात नंदी या बैल की पूजा की जाती है। लोग जीविकोपार्जन में सहायक पशुओं के प्रति आभार व्यक्त करते हैं, गाय-बैलों को सजाते हैं, महिलाएं पक्षियों को रंगे चावल खिलाकर अपने भाई के कुशल-क्षेम और कल्याण की कामना करती हैं।
: चौथे दिन कन्या की पूजा होती है, यह पूजा काली मंदिर में बड़े धूमधाम से की जाती है। इसके अलावा इस दिन घर को फूलों से सजाया जाता है, इस मौके पर महिलाएं घर के आंगन में रंगोली बनाती हैं, ये इस पर्व का आखिरी दिन होता है इसलिए लोग अपने नाते-रिश्तेदारों और दोस्तों से मिलने उनके घर जाते हैं और एक-दूसरे को इस त्योहार की शुभकामना सन्देश देते हैं, और सामूहिक भोज, भूमि दान, बैलों की दौड़ (जल्लिकट्टू) आदि किए आयोजन भी करते हैं...
पोंगल की कथा (Pongal Ki Katha)
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार पोंगल की कथा मदुरै के पति-पत्नी कण्णगी और कोवलन से जुड़ी है, एक बार एक राज्य में कण्णगी के कहने पर
कोवलन पायल बेचने के लिए सुनार के पास जाता है। सुनार राजा को बताता है कि जो पायल कोवलन बेचने आया है वह रानी के चोरी हुए पायल से काफी मिलते जुलते हैं। सुनार की इस बात को सुनकर राजा बिना किसी जांच के कोवलन को अपराघी मानकर फांसी की सजा दे देता है। राजा के इस फैसले से क्रोधित होकर कण्णगी शिव जी की भारी तपस्या करती है और उनसे राजा के साथ-साथ उसके संपूर्ण राज्य को नष्ट करने का वरदान मांगती है। जब राज्य की जनता को यह बात पता चली तो वहां की महिलाओं ने एक साथ मिलकर अपने राजा के जीवन एवं राज्य की रक्षा के
लिए किलिल्यार नदी के किनारे काली माता की आराधना की और उनसे कण्णगी में दया जगाने की प्रार्थना की। माता काली ने महिलाओं के व्रत से प्रसन्न होकर कण्णगी में दया का भाव जाग्रत किया और राजा व राज्य की रक्षा की। तब से काली मंदिर में यह पर्व धूमधाम से मनाया जाता है, इस तरह चार दिनों के पोंगल का समापन होता है।
एक अन्य कथानुसार: एक बार शिव जी ने अपने बैल को स्वर्ग से पृथ्वी पर जाकर मनुष्यों को एक संदेश देने के लिए कहा, भगवान ने कहा कि जाओ बैल पृथ्वी पर जा के कहो कि उन्हें रोज़ तेल से स्नान करना चाहिए और महीने में एक बार खाना खाना चाहिए। लेकिन बैल ने इसके विपरीत संदेश पृथ्वी पर दिया उसने कहा कि आप सभी को एक दिन तेल से स्नान करना चाहिए और रोज़ खाना खाना चाहिए। बैल की इस गलती से शिव जी बहुत नाराज़ हुए और उन्होंने बैल को श्राप दिया कि तुम्हें पृथ्वी पर रहकर किसानों के साथ खेती करने में सहायता करनी होगी और ऐसा बोलकर बैल को कैलाश से निकाल दिया तब से ही बैलो का प्रयोग खेती करने में ओर अधिक अन्न उत्पन्न करने में उनकी सहायता ली जाती है।
वहीं एक और कथानुसार जब भगवान कृष्ण छोटे थे तब उन्होंने भगवान इंद्र को सबक सिखाने का सोचा क्योंकि वो देवताओं के राजा बन गए थे। इसलिए इंद्र देवता को अपने ऊपर बहुत अभिमान होने लगा था। भगवान श्री कृष्ण अपने गाँव के लोगो को भगवान इंद्र की पूजा न करने के लिए कहा इस बात से भगवान इंद्र बहुत क्रोधित हुए उन्होंने बादलो को तूफान लाने और तीन दिन तक लगातार बारिश करने के लिए भेजा इस तूफान से पूरा द्वारका तहस नहस हो गया । उस समय सभी की रक्षा करने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी छोटी सी उंगली में गोवर्धन पर्वत उठा लिया था। उस समय इंद्र को अपनी गलती का एहसास हुआ और तब उन्होंने भगवान श्री कृष्ण की सकती को समझा था। भगवान श्रीकृष्ण ने विशवकर्मा से द्वारका को दुबारा से बसाने के लिए कहा ओर ग्वाले फिर से अपनी गायों के साथ खेती करने लगे।
पोंगल का इतिहास (Pongal History In Hindi)
इस त्योहार की शुरुआत संगम युग से मानी जाती है, लेकिन कुछ इतिहासकारों का मानना है की यह त्यौहार कम से कम 2,000 साल पुराना है, जिसे ‘थाई निर्दल’ के रूप में मनाया जाता था।
तमिल मान्यताओं के अनुसार मट्टू शंकर भगवान का बैल है जिसे एक भूल के कारण भगवान शंकर ने पृथ्वी पर रहकर मानव के लिए अन्न पैदा करने के लिए कहा और तब से पृथ्वी पर रहकर कृषि कार्य में मानव की सहायता कर रहा है, इस दिन किसान अपने बैलों को स्नान कराते हैं उनके सिंगों में तेल लगाते हैं एवं अन्य प्रकार से बैलों को सजाते हैं, बैलों को सजाने के बाद उनकी पूजा की जाती है, बैल के साथ ही इस दिन गाय और बछड़ों की भी पूजा की जाती है, कही कहीं लोग इसे केनू पोंगल के नाम से भी जानते हैं जिसमें बहनें अपने भाईयों की खुशहाली के लिए पूजा करती है और भाई अपनी बहनों को उपहार देते हैं, उत्तर भारत के मकर संक्रांति त्योहार को ही दक्षिण भारत में ‘पोंगल’ के रूप में मनाया जाता है, यह त्योहार गोवर्धन पूजा, दिवाली और मकर संक्रांति का मिला-जुला रूप है, पोंगल विशेष रूप से किसानों का पर्व है।
पोंगल का महत्व (Pongal Ka Mahtva)
पोंगल को उत्तरायण पुण्यकलम के रूप में जाना जाता है जो हिंदू पौराणिक कथाओं में विशेष महत्व रखता है। इस त्योहार का मूल कृषि ही है, इसलिए पोंगल किसानो के लिए विशेष महत्व रखता है। जनवरी तक तमिलनाडु की मुख्य फ़सल गन्ना और धान पककर तैयार हो जाती है। किसान
अपने लहलहाते खेतों को देखकर खूब प्रसन्न होता है और खुशी से झूम उठता है। वह अपनी खेती के लिए प्रभु के प्रति आभार व्यक्त करता है, बैल की भी पूजा करता है, क्योंकि उसी ने ही हल चलाकर खेतों को ठीक किया था।
इस दिन गाय और बैलों को हला–धुलाकर उनके सींगों के बीच में फूलों की मालाएं पहनाई जाती हैं, उनके मस्तक पर रंगों से चित्रकारी भी की जाती है और उन्हें गन्ना व चावल खिलाकर उनके प्रति सम्मान प्रकट किया जाता है। कहीं–कहीं पर मेला भी लगता है, जिसमें बैलों की दौड़ व विभिन्न खेल–तमाशों का आयोजन होता है।
यह त्यौहार मुख्य रूप से तमिलनाडु में मनाया जाता है लेकिन इस पर्व का आध्यात्मिक और धार्मिक महत्व मानव समुदाय के लिए बेहद अहम है। इस त्योहार पर गाय के दूध में उफान या उबाल को महत्व दिया जाता है । मान्यता है कि जिस तरह दूध का उबलना शुभ है ठीक उसी तरह हर मनुष्य का मन भी शुद्ध संस्कारों से उज्ज्वल होना चाहिए।