2 दिन खाना न खाने से क्या होता है? - 2 din khaana na khaane se kya hota hai?

दिन में आख़िर आपको कितनी बार खाना खाना चाहिए

  • जेसिका ब्रेडल
  • बीबीसी फ़्यूचर

25 अप्रैल 2022

2 दिन खाना न खाने से क्या होता है? - 2 din khaana na khaane se kya hota hai?

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आमतौर पर हम एक दिन में तीन वक़्त खाना खाते हैं- जीवन जीने का नया तरीका खाना खाने के इस पैटर्न पर काम करता है. हमें कहा जाता है कि सुबह का नाश्ता दिन का सबसे अहम खाना होता है. दफ़्तरों में हमें खाने के लिए काम से ब्रेक दिया जाता है. इसके बाद हमारी पारिवारिक और समाजिक ज़िंदगी रात के खाने के इर्द-गिर्द घूमती है. लेकिन क्या ये खाना खाने का सबसे स्वस्थ और उचित तरीका है.

हमें कितनी बार खाना खाना चाहिए इस पर बात किए बिना वैज्ञानिक इस बात पर ज़ोर देते हैं कि कब खाना नहीं खाना चाहिए.

इंटरमिटेंट फास्टिंग, जहां आप दो खाने के बीच में कई-ई घंटों तक का अंतर रखते हैं, यह रिसर्च का एक बड़ा केंद्र बनता जा रहा है.

कैलिफोर्निया में साल्क इंस्टीट्यूट फॉर बायोलॉजिकल स्टडीज़ में क्लिनिकल रिसर्चर और रिसर्च पेपर "व्हेन टू ईट" की लेखक कहती हैं- शरीर को 12 घंटे तक खाना ना देना हमारे पाचन तंत्र को आराम देता है.

इंटरमिटेंट फास्टिंग और इसका असर

विस्कॉन्सिन स्कूल ऑफ मेडिसिन एंड पब्लिक हेल्थ विश्वविद्यालय के एक सहयोगी प्रोफेसर रोज़लिन एंडरसन ने 'कैलोरी रिस्ट्रिकशन' के फ़ायदे का अध्ययन किया है. ख़ासकर वो कैलोरी जो शरीर के निचले हिस्से का वज़न ज़्यादा बढ़ाती हैं.

"हर दिन कुछ देर उपवास करने से कुछ लाभ मिल सकते हैं, दरअसल, उपवास शरीर को एक अलग स्थिति में रखता है, जो इसे मरम्मत के लिए बेहतर तैयार करता है. मिसफॉल्डेड प्रोटीन को साफ़ करता है."

मिसफॉल्डेड प्रोटीन सामान्य प्रोटीन का एक बिगड़ा हुआ स्वरूप है. ये अणु होते हैं जो शरीर में कई-कई बीमारियों का कारण बनते हैं.

एंडरसन का तर्क है कि इंटरमिटेंट फास्टिंग शरीर को फंक्शन करने में बेहतर बनाती है. शरीर को ब्रेक मिलता है तो इससे वह खाने को स्टोर करने और शरीर के जिस हिस्से को ऊर्जा की ज़रूरत है वह देने का काम करती है.

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इटली में पडोवा विश्वविद्यालय में व्यायाम और खेल विज्ञान के प्रोफेसर एंटोनियो पाओली कहते हैं, "फास्टिंग से ग्लाइसेमिक प्रतिक्रिया में भी सुधार होता है, दरअसल खाना खाने के बाद हमारे ख़ून में ग्लूकोज बढ़ता है और इस ग्लूकोज़ को ज़्यादा बढ़ने से रोकने में फास्टिंग सहायक होती है. खून में ग्लूकोज़ की मात्रा कम बढ़ने से शरीन में मोटापा नहीं बढ़ता.''

"हमारा डेटा बताता है कि जल्दी रात का खाना खाने और अपने उपवास का समय बढ़ाने से शरीर पर कुछ सकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं, जैसे बेहतर ग्लाइसेमिक कंट्रोल."

"पाओली कहते हैं कि ग्लाइकेशन नाम की प्रक्रिया के कारण सभी सेल्स में शुगर का स्तर कम होना बेहतर है. यहीं पर ग्लूकोज़ प्रोटीन से जुड़ता है और कंपाउंड बनाता है जिसे 'एडवांस ग्लाइकेशन एंड प्रोडक्ट' कहा जाता है." इससे शरीर में सूजन हो सकती है और डायबिटिज़ और दिल से जुड़ी बीमारियों का जोखिम भी बढ़ जाता है.

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क्या एक बार खाने से भूख नहीं लगेगी?

क्या दिन में बस एक ही बार खाना खाने से भूख नहीं लगेगी? ज़रूरी नहीं कि ऐसा हो.

लेकिन सवाल ये है कि अगर इंटरमिटेंट फास्टिंग खाना खाने का एक स्वस्थ्य तरीका है तो आखिर इस तरह कि फास्टिंग में खाना कब खाया जाए.

कुछ जानकारों का तर्क है कि दिन में एक बार खाना खाना सबसे अच्छा है.

ऐसा मानने वालों में न्यूयॉर्क स्थित कॉर्नेल यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ ह्यूमन इकोलॉजी के प्रोफ़ेसर डेविड लेवित्स्की भी शामिल हैं, जो खुद ऐसा करते हैं.

वह कहते हैं, "बहुत सारे डेटा हैं जिससे साफ़ होता है कि, अगर मैं किसी को खाने की फोटो या खाना दिखाऊंगा तो वह इसे खाना चाहेंगे. आपके सामने जितनी बार खाना आएगा, संभव है कि आप एक दिन में इसे खाएंगे."

खाद्य इतिहासकार सेरेन चारिंगटन-हॉलिन्स कहते हैं कि फ़्रीज और सुपर मार्केट से पहले लोग तभी खाना खाते थे जब खाना उपलब्ध होता था. हमारे इतिहास में देखेंगे तो जानेंगे कि हम दिनभर में एक बार ही खाना खाते थे. प्राचीन रोम के लोग भी केवल दोपहर के समय एक बार भोजन किया करते थे.

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क्या एक बार ही बार खाना खाने से हम भूखे नहीं रह जाएंगे? ये ज़रूरी नहीं है. लेवित्स्की का तर्क है कि भूख अक्सर एक मनोवैज्ञानिक एहसास होता है.

"जब दोपहर में 12 बजते हैं तो हमें खाने का मन होता है, या फिर हममें से बहुत लोगों को सुबह नाश्ता करने की आदत होती है और हमें बताया जाता है कि ऐसा करना चाहिए, लेकिन यह बकवास है. डेटा से पता चलता है कि यदि आप नाश्ता नहीं करते हैं, तो आप उस दिन शरीर को कम कैलोरी देते हैं."

वो कहते हैं कि "हमारा शरीर दावत और उपवास के लिए बनाया गया है." हालांकि, लेवित्स्की डायबिटीज़ वाले लोगों को इस तरह व्रत ना करने का सुझाव देते हैं.

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तीन बार खाना खाने की परंपरा

लेकिन मनोगन दिनभर में एक ही बार खाने की सलाह नहीं देतीं. क्योंकि अगर आप नहीं खाते हैं तो इससे भी आपके खून में ग्लूकोज़ बढ़ जाएगा जिसे फास्टिंग ग्लूकोज़ कहा जाता है.

लंबे समय तक फास्टिंग करने से ग्लूकोज़ का ऊंचा स्तर टाइप-2 डायबिटीज़ का ख़तरा बढ़ा देता है.

खून में ग्लूकोज़ के स्तर को कम रखने के लिए दिन में एक से अधिक बार नियमित रूप से खाने की आवश्यकता होती है, क्योंकि यह शरीर को यह सोचने से रोकता है कि उसे भूख लग रही है और जब आप खाते हैं तो अधिक ग्लूकोज़ रिलीज़ होता है.

इसके बजाय, वह कहती हैं, दिन में दो से तीन बार खाना खाना सबसे अच्छा है- आपके शरीर की अधिकांश कैलोरी दिन के शुरुआती वक्त में खर्च होती है, इसलिए दिन में खाना ज़्यादा खाना चाहिए. देर रात खाने से कार्डियो-मेटाबोलिक बीमारियां होने का ख़तरा होता है जैसे- डायबिटीज़ और दिल से जुड़ी बीमारी.

मनोगन कहती हैं कि "यदि आप अधिकांश खाना दिन के पहले हिस्से में ही खा लेते हैं, तो आपका शरीर उस ऊर्जा का उपयोग कर सकता है, बजाय इसके कि यह आपके सिस्टम में वसा के रूप में जमा हो."

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लेकिन सुबह बहुत जल्दी खाने से भी बचना चाहिए.

वह कहती हैं, ''क्योंकि ऐसा करने से आपको फास्टिंग के लिए पर्याप्त समय नहीं मिलेगा. इसके अलावा, जागने के तुरंत बाद खाना हमारी सर्कैडियन रिदम के ख़िलाफ़ काम करता है- सर्कैडियन रिदम हमारे शरीर की घड़ी के रूप में जाना जाता है.''

शोधकर्ताओं का कहना है कि शरीर पूरे दिन भोजन को अलग तरह से कैसे संसाधित करता है.

हमारा शरीर हमें सोने में मदद करने के लिए रात भर मेलाटोनिन रिलीज़ करता है, लेकिन मेलाटोनिन इंसुलिन के निर्माण को भी रोकता है जो शरीर में ग्लूकोज़ को जमा करता है. ऐसे में सोते समय बहुत अधिक कैलोरी न लें और न खाएं.

अगर आपने कैलोरी का सेवन किया है तो मेलाटोनिन हाई हो जाएगा और ग्लूकोज़ का लेवल भी काफी ज़्यादा हो जाएगा. रात में बहुत अधिक कैलोरी का सेवन करना शरीर के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती बन जाता है क्योंकि इंसुलिन नहीं बनता है और आपका शरीर ग्लूकोज़ को ठीक से स्टोर नहीं कर पाता है.

और जैसा कि हम जानते हैं, लंबे समय तक ग्लूकोज़ का उच्च स्तर टाइप 2 डायबिटीज़ का जोखिम बढ़ा सकता है.

इसका मतलब यह नहीं है कि हमें नाश्ता पूरी तरह से छोड़ देना चाहिए, लेकिन कुछ साक्ष्य बताते हैं कि सुबह उठने के एक या दो घंटे के बाद ही नाश्ता करना चाहिए. यह भी याद रखने वाली बात है कि नाश्ता जिसे हम आज इसे पसंद करते हैं, यह अपेक्षाकृत एक नई अवधारणा है.

नाश्ते की अवधारणा कैसे आई

चैरिंगटन-हॉलिन्स कहती हैं, "प्राचीन यूनानी नाश्ते की अवधारणा को पेश करने वाले पहले लोग थे, वे शराब में भिगोकर रोटी खाते थे, फिर उसके बाद वे दोपहर में खाना खाते थे और फिर शाम को खाना खाया करते थे."

हॉलिन्स कहती हैं कि शुरुआत में, नाश्ता अभिजात वर्ग की चीज़ हुआ करती थी. यह पहली बार 17वीं शताब्दी में शुरू हुआ था, यह उन लोगों के लिए विलासिता बन गया जो लोग सुबह के समय आराम से खाने का आनंद ले सकते थे.

चैरिंगटन-हॉलिन्स कहती हैं, "आज जो नाश्ते की अवधारणा है वह 19वीं शताब्दी में औद्योगिक क्रांति के दौरान आई. काम शुरू करने से पहले ये खाना खाया जाता था. इस तरह की दिनचर्या में दिन में तीन खाने की अवधारणा भी आई. मज़दूर वर्गों के लिए पहला खाना जिसे नाश्ता कहा जाता है वह काफी सादा होता था- यह एक स्ट्रीट फूड या रोटी हुआ करता था.''

लेकिन युद्ध के बाद, जब भोजन की उपलब्धता कम हो गई, तो नाश्ता कर पाना लोगों के लिए संभव नहीं था और बहुत से लोगों ने इसे छोड़ दिया.

हॉलिन्स कहती हैं, "एक दिन में तीन बार भोजन का ख़याल भी लोगों के मन से निकल गया. 1950 के दशक में नाश्ता का मतलब था सीरियल्स और टोस्ट. पहले हम जैम के साथ ब्रेड खाकर खुश थे. अब हम सिरियल के साथ टोस्ट खाते हैं."

रात में हैवी कैलोरी से बचें

इसलिए, विज्ञान कहता है कि दिन भर में खाने का सबसे स्वास्थ्यप्रद तरीका है कि दो या तीन बार खाना खाया जाए, रात भर की एक लंबी फास्टिंग के साथ दिन में बहुत जल्दी या बहुत देर से खाना ना खाएं और पहले अधिक कैलोरी का सेवन करें.

मनोगन कहती हैं, "लोगों को शाम 7 बजे के बाद ना खाने के लिए कहना मददगार नहीं है क्योंकि लोगों के अलग-अलग शेड्यूल होते हैं. यदि आप अपने शरीर को नियमित रूप से राते में उपवास करवाते हैं तो कोशिश करें कि बहुत देर से या जल्दी न खाएं और आखिरी भोजन बहुत हैवी ना खाएं''

"आप अपने पहले मील में थोड़ी सी देरी करके और रात का आखिरी मील में थोड़ी बेहतरी लाकर ही बड़ा बदलाव महसूस कर सकते हैं. अगर आप ऐसा करते रहते हैं तो इसका बेहतरीन असर आप पर होगा."

जानकार मानते हैं कि आप अपने खाने की दिनचर्या में जो भी बदलाव ला रहे हैं उसमें एकरूपता और निरंतरता ज़रूर रखे.

एंडरसन कहती हैं कि "शरीर एक पैटर्न पर काम करता है. एक चीज़ जो इंटरमिटेंट फास्टिंग करती है कि वह है पैटर्न. पैटर्न के कारण हमारे जैविक तंत्र अच्छे से काम करते हैं." वह कहती हैं कि जब शरीर हमारे खाने की आदत के अनुसार ढल जाता है.

कितनी बार खाना चाहिए इस सवाल पर हॉलिन्स मानती हैं कि अब एक बड़ा बदलवा नज़र आ रहा है.

वह कहती हैं, ''एक शताब्दी तक हमें दिन में तीन बार खाने की आदत से लैस कर दिया गया लेकिन अब इस पूरी अवधारणा को चैलेंज किया जा रहा है. लोगों का अब खाने को लेकर नज़रिया बदल रहा है. हम ठहरी हुई लाइफ़स्टाइल जीते हैं, 19वीं शताब्दी जैसा काम हम अब नहीं करते तो हमारे शरीर को कम कैलोरी चाहिए.''

1 दिन खाना न खाने से क्या होता है?

रोजाना डिनर करने से शरीर में एनर्जी की कमी हो जाती है. इससे शरीर अंदर से कमजोर होने लगता है, जिसके कारण थकान और सिरदर्द जैसी समस्याएं हो सकती हैं. कुछ समय बाद इसके कारण काफी कमजोरी भी महसूस हो सकती है. ऐसे में आपकी मानसिक सेहत पर भी विपरीत असर पड़ सकता है.

1 दिन में कितनी बार भोजन करना चाहिए?

दिन में 2 से 3 बार भोजन करना सबसे अच्छा होता है. हालांकि, सुबह जल्दी खाने से भी बचना चाहिए. इससे शरीर को उपवास के लिए पर्याप्त समय नहीं मिलेगा.

एक आदमी कितने दिन तक भूखा रह सकता है?

चिकित्सकीय रूप कहें तो, अधिकांश डॉक्टर इस बात से सहमत हैं कि स्वस्थ मनुष्य बिना भोजन के आठ सप्ताह तक जा सकते हैं जब तक उनके पास पानी हो लेकिन उससे ज़्यादा नहीं. लोग लंबे समय तक भी बिना भोजन के रहे हैं और ठीक रहे हैं.

दिन भर भूखे रहने से क्या होता है?

1 हफ्ते में एक दिन भूखे रहने से शरीर का आंतरिक शुद्ध‍िकरण होता है। इससे शरीर में मौजूद विषैले तत्व बाहर निकल जाते हैं और शरीर स्वस्थ होता है। 2 हफ्ते में एक दिन भूखे रहने से अपच, गैस, कब्ज, डायरिया, एसिडिटी, जलन आदि में फायदेमंद है।