आहार से आप क्या समझते हैं आहार के मुख्य कार्य का उल्लेख किजिये? - aahaar se aap kya samajhate hain aahaar ke mukhy kaary ka ullekh kijiye?

[[आहार जीवन का आधार है। प्रत्येक प्राणी के जीवन के लिए आहार आवश्यक है। अत्यंत सूक्ष्म जीवाणु से लेकर बृहत्काय जंतुओं, मनुष्यों, वृक्षों तथा अन्य वनस्पतियों को आहार ग्रहण करना पड़ता है। वनस्पतियाँ अपना आहार पृथ्वी और वायु से क्रमश: अकार्बनिक लवण और कार्बन डाईआक्साइड के रूप में ग्रहण करती हैं। सूर्य के प्रकाश में पौधे इन्हीं से अपने भीतर उपयुक्त कार्बोहाइड्रेड, वसा और अन्य पदार्थ तैयार कर लेते हैं।

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मनुष्य तथा जंतु अपना आहार वनस्पतियों तथा जांतव शरीरों से प्राप्त करते हैं। इस प्रकार उनको बना बनाया आहार मिल जाता है, जिसके अवयव उन्हीं अकार्बनिक मौलिक तत्वों से बने होते हें जिनको वनस्पतियाँ पृथ्वी तथा वायु से ग्रहण करती हैं। अतएव जांतव वर्ग के लिए वृक्ष ही भोजन तैयार करते हैं। कुछ वनस्पतियों का औषधियों के रूप में भी प्रयोग होता है।

आहार या भोजन के तीन उद्देश्य हैं : (1) शरीर को अथवा उसके प्रत्येक अंग को क्रिया करने की शक्ति देना, (2) दैनिक क्रियाओं में ऊतकों के टूटने फूटने से नष्ट होनेवाली कोशिकाओं का पुनर्निर्माण और (3) शरीर को रोगों से अपनी रक्षा करने की शक्ति देना। अतएव स्वास्थ्य के लिए वही आहार उपयुक्त है जो इन तीनों उद्देश्यों को पूरा करे।

आहार के घटक या अवयव[संपादित करें]

मनुष्य के आहार में छह विशिष्ट अवयव पाए जाते हैं :

(1) प्रोटीन, (2) काबोहाइड्रेड, (3) स्नेह या वसा, (4) खनिज पदार्थ, (5) विटामिन और (6) जल।

जंतुओं और मनुष्यों के शरीर भी इन्हीं पदार्थों से बने होते हैं। उनके रासायनिक विश्लेषण से ये ही अवयव उनमें उपस्थित मिलते हैं। अतएव आहार में इन अवयवों को यथोचित मात्रा में रहना चाहिए।

प्रोटीन[संपादित करें]

प्रोटीन विशेषकर अनाज, दुध में मिलते हैं। प्रोटीन पचने पर एमिनो-अम्ल में परिवर्तित हो जाते हैं। इन एमिनो-अम्लों का फिर से संश्लेषण करके शरीर अपने लिए अन्य उपयुक्त प्रोटीन तैयार करता है। मनुष्य का शरीर कुछ ऐमिनो-अम्ल तो आहार से बना लेता है, किंतु कतिपय अन्य ऐसे अम्लों को वह नहीं बना सकता। ये एमिनो-अम्ल मनुष्य वनस्पति और जंतुओं के शरीर से प्राप्त करता है। कुछ प्रोटीन शरीर के लिए अत्यावश्यक होते हैं। उनको श्रेष्ठ या प्रथम श्रेणी का प्रोटीन कहा जाता है। ये प्रोटीन विशेषकर जंतुओं से प्राप्त होते हैं। इनमें प्रथम स्थान दूध का है। इनका काम शरीर के अवयवों को बनाना है। इनका कुछ भाग शरीर को शक्ति और गर्मी भी प्रदान करता है।

कार्बोहाइड्रेट[संपादित करें]

यह अवयव मुख्यत: वनस्पति से प्राप्त होता है। चीनी या शर्करा शुद्ध कार्बोहाइड्रेट है। ग्लूकोज़, लेब्युलाज़, मालटोज़ और लैटकोज़ शर्करा के ही प्रकार हैं, अतएव ये भी शुद्ध कार्बोहाइड्रेट हैं। ग्लाइकोजेन तथा श्वेतसार (स्टार्च) भी संपूर्ण कार्बोहाइड्रेट हैं। सब प्रकार के कार्बोहाइड्रेट पाचनक्रिया द्वारा अंत में ग्लूकोज़ में परिवर्तित हो जाते हैं। सेल्यूलोज़ पर पाचक रसों की क्रिया नहीं होती। ग्लूकोज़ शरीर में ईधंन का काम करता है। इसकी उसे प्रत्येक क्षण आवश्यकता रहती है, क्योंकि पेशियों में सदा ही संकोच तथा शिथिलता होती रहती है। जो ग्लूकोज़ बच जाता है, वह पेशियों और यकृत में ग्लाइकोजेन के रूप में संचित हो जाता है और पेशियों के काम करने के समय फिर से ग्लूकोज़ में परिवर्तित होकर, भिन्न-भिन्न प्रकिण्वों (एनज़ाइमों) और आक्सीजन की सहायता से ऊष्मा उत्पन्न करता है और ऊर्जा के रूप में पेशियों को काम करने के योग्य बनाता है।

वसा[संपादित करें]

तेल, घी, मक्खन इत्यादि शुद्ध वसा (Fat) हैं। तथा वानस्पतिक पदार्थों में भी वसा रहती है, विशेषकर शुष्क फलों में, जैसे बादाम, अखरोट, काजू और मूँगफली आदि में। वसा का काम भी शरीर में ऊष्मा और ऊर्जा पैदा करना है। कार्बोहाइड्रेट की अपेक्षा वसा में ढाई गुना आधिक शक्ति होती है। कुछ वसा-अम्ल शारीरिक पोषण के लिए महत्वपूर्ण हैं। वे 'नितांत आवश्यक वसा-अम्ल' कहलाते हैं।

खनिज पदार्थ[संपादित करें]

कुछ खनिज (minerals) तो शरीर में प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं और कुछ अल्प मात्रा में। कैल्सियम और फासफोरस शरीर में प्रचुर मात्रा में उपस्थित हैं। इन्हीं से अस्थियाँ बनती हैं। इसी श्रेणी में लोहे, सोडियम और पोटैशियम भी हैं। लोह रक्त का विशेष अंग है। सोडियम और पोटैशियम शरीर के ऊतकों की प्रक्रिया का नियंत्रण करते हैं जिनपर सारे शरीर का भरण-पोषण निर्भर है। इनके असंतुलित होने से रोग उत्पन्न हो जाते हैं।

दूसरी श्रेणी के खनिज, जो अल्प मात्रा में शरीर में पाए जाते हैं, तांबा, कोबल्ट, आयोडीन, फ्लोरीन, मैंगनीज़ और यशद हैं। ये भी शरीर के लिए आवश्यक हैं। ऐल्यूमिनियम, आर्सेनिक, क्रोमियम, सिलीनियम, लीथियम, मौलिब्डीनम, सिलिकन, रजत, स्ट्रौंशियम टेल्यूरयिम, टाइटेनियम और वैनेडियम भी जंतुओं के शरीर में पाए जाते हैं। किंतु शरीर में इनका कोई उपयोग है या नहीं, यह अभी तक निश्चित नहीं हो सका है।

विटामिन[संपादित करें]

विटामिन कार्बनिक द्रव्य हैं जो खाद्य वस्तुओं में उपस्थित रहते हैं। इनकी भी शारीरिक प्रक्रियाओं के लिए आवश्यकता है, यद्यपि इनकी अल्प मात्रा ही पर्याप्त होती है। ये न तो शक्तिप्रदायक तत्व हैं और न ह्रासपूरक ही। ये पोषक पदार्थों के उपयोग में सहायता देते हैं। इनकी कार्यविधि उत्प्रेरक, प्रकिण्व (एनज़ाइम) और सहायक प्रकिण्वों के समान है। प्राय: सभी विटामिन आजकल प्रयोगशालाओं में संश्लेषण से तैयार किए जाते हैं। इनके रासायनिक संघटन तथा सूत्र ज्ञात किए जा चुके हैं। इनके संबंध का ज्ञान हाल का ही है और बढ़ता जा रहा है। दो प्रकार के विटामिन पाए जाते हैं। एक प्रकार के जल में घुल जाते हैं और दूसरे वसा में घुलनेवाले होते हैं। वसा में घुलनेवाले विटामिन 'ए', 'डी', 'ई' और 'के' हैं। 'बी' समुदाय के विटामिन और 'सी' तथा 'पी' विटामिन जल में घुलते हैं। बी समुदाय में बी1, बी2, बी4 (नियासिन), बी6, पेंटाथोनिक अम्ल, फोलिक अम्ल और बी12 हैं।

जल[संपादित करें]

आहार के ठोस और अर्धठोस पदार्थों में पानी का अंश 70 प्रतिशत रहता है। शरीर में भी जल का अनुपात यही है। जल इन वस्तुओं में खनिजमिश्रित रूप में रहता है। मनुष्य प्रतिदिन एक से तीन सेर तक ऊपर से भी जल पीता है। भोजन के बिना मनुष्य सप्ताहों तक जीवित रह सकता है, किंतु जल के बिना कुछ दिन भी जीना कठिन है। शरीर के ऊतकों और कोशिकाओं में पोषक तत्वों को ले जाने और उन विश्लेषण प्रक्रियाओं द्वारा उत्पन्न, जो इन कोशिकाओं में होती रहती हैं, विषैले अवयवों को शरीर से बाहर निकालने में जल का बहुत महत्व है। ये दूषित पदार्थ मूत्र, मल और स्वेद द्वारा ही शरीर का परित्याग करते हैं।

इन छह खाद्यांशों के अतिरिक्त मनुष्य न पचनेवाले पदार्थ, जैसे सेलुलोज़ (अर्थात्‌ अनाज और तरकारियों का वह अक्रियाशील भाग जो लकड़ी की तरह होता है), मसाले और भिन्न-भिन्न प्रकार के पेयों का भी अपने भोजन के संग प्रयोग करता है। सेलुलोज़ से कोष्ठबद्धता दूर होती है, क्योंकि यह पचता नहीं, ज्यों का त्यों मल में निकल जाता है। मसाला भोजन को स्वादिष्ट बनाता है और इसलिए एक सीमा तक पाचन में भी सहायता देता है। जल के अतिरिक्त अन्य पेयों का तो मनुष्य अपने स्वभाव से, अपनी प्रसन्नता या रसना के लिए, आहार के साथ प्रयोग करता है। आदिकाल से वह इन पदार्थों का व्यवहार करता आया है। निस्संदेह इनका रूप बदलता रहा है। आजकल चाय और कॉफी का विशेष व्यवहार किया जाता है। कुछ देशों में कुछ मात्रा में मदिरा का भी व्यवहार किया जाता है। किसी समय भारत में सोमरस का व्यवहार होता था।

आहारविद्या[संपादित करें]

आहारविद्या बताती है कि मनुष्य का आहार क्या होना चाहिए और आहार के भिन्न-भिन्न तत्वों को किस अवस्था में तथा किस मात्रा में खाया जाय, जिसमें शारीरिक और मानिसक पोषण उत्तम हो। बाल्यकाल से लेकर 18 वर्ष तक की अवस्था वृद्धि की है। युवावस्था और प्रौढ़ावस्था में शारीरिक वृद्धि नहीं होती। शरीर सुदृढ़ और परिपक्व होता है। वृद्धावस्था में ्ह्रास आरंभ होता है। इनमें से प्रत्येक अवस्था में शारीरिक और मानसिक क्रियाओं के लिए ईधंन की आवश्यकता होती है। ईधंन से केवल ताप और ऊर्जा उत्पन्न होती है। परंतु शारीरिक ऊतकों की टूट फूट भी होती रहती है। इसकी पूर्ति तथा शारीरिक वृद्धि के लिए प्रोटीन की आवश्यकता होती है। कार्य करने की ऊर्जा की उत्पत्ति कार्बोहाइड्रेट और वसा से होती है। श्रेष्ठ प्रोटीन पाचनक्रियाओं के पश्चात्‌ अंत में ऐमिनो-अम्लों में विभाजित हो जाते हैं, जो नितांत आवश्यक और सामान्य दो प्रकार के होते हैं। वृद्धि के लिए दोनों प्रकार के प्रोटीन आवश्यक हैं। अतएव भोजन में प्रत्येक अवस्था में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और वसा इन तीनों अवयवों की आवश्यकता रहती है। गर्भस्थ शिशु की वृद्धि के लिए गर्भवती को इनकी अत्यंत अपेक्षा रहती है। शिशु को माता के दूध से प्रोटीन मिलता है जो उसके लिए अत्यंत आवश्यक है। बाल्यकाल में भी उत्तम ऐमिनो-अम्लोंवाले प्रोटीन बालक को दूध से मिलते हैं। इनकी कमी से शारीरिक और मानसिक विकास नहीं होते। युवावस्था में मनुष्य को शक्तिदायक द्रव्यों की आवश्यकता होती है। वृद्धावस्था में इन क्रियाओं की कमी हो जाती है। इसलिए इस अवस्था में उपर्युक्त दोनों प्रकार के द्रव्यों की कम मात्रा में आवश्यकता पड़ती है। इनके कम होने से आवश्यक विटामिन की मात्रा में कमी हो जाती है। अतएव वृद्धावस्था में इस न्यूनता को कृत्रिम विटामिन से पूरा किया जाता है।

20वीं शताब्दी के गत वर्षों को आहारविद्या की दृष्टि से पाँच कालों में बांटा जा सकता है :

(1) कैलोरीकाल, (2) विटामिनकाल, (3) प्रोटीनकाल, (4) संतुलित भोजनकाल और (5) जल और लवण-संतुलन-काल

कैलोरीकाल[संपादित करें]

इस शताब्दी के प्रारंभ में उपयुक्त भोजन की माप कैलोरियों से की जाती थी और इसपर विशेष बल दिया जाता था कि प्रत्येक को आवश्यक कैलोरियाँ अवश्य मिलें। एक कैलोरी वह ऊष्मा है जो एक ग्राम जल के ताप को डिगरी सेंटीग्रेड बढ़ा देती है। शारीरिक कार्य के अनुसार एक प्रौढ़ व्यक्ति के भोजन में 2,000 से 3,000 कैलोरियोंवाली सामग्री प्रति दिन मिलनी चाहिए। प्रोटीन अथवा कार्बोहाइड्रेट के एक ग्राम से 4 कैलोरियाँ प्राप्त होती हैं और एक ग्राम वसा से 8 कैलोरी। किसी विशेष आहार से जितनी कैलोरियाँ प्राप्त हो सकती हैं उन्हीं पर आहार की गणना निर्भर है।

विटामिनकाल[संपादित करें]

1912 से इस काल का आरंभ होता है। इस समय यह जानकारी होने लगी थी कि पूर्ण कैलोरियोंवाला आहार करने पर भी शारीरिक पोषण ठीक न होने की संभावना रहती है। पता चला कि साथ-साथ सब विटामिनों को आवश्यक मात्रा में विद्यामन रहना चाहिए। विटामिन की हीनता से बेरीबेरी, वल्कचर्म (पेलाग्रा), बालवक्रास्थि (रिकेट्स) आदि रोग उत्पन्न हो जाते हैं। अब यह निर्णय हो चुका है कि मनुष्य को कौन-कौन से विटामिनों का और प्रतिदिन कितनी-कितनी मात्राओं में मिलना आवश्यक है और यह भी किन-किन आहरों में कितनी-कितनी मात्राओं में उपस्थित रहते हैं। प्रतिदिन के संतुलित आहार से साधारणत: ये यथेष्ट परिमाण में मिलते रहते हैं। भोजन संतुलित न होने से शरीर में विटामिन की कमी के चिह्न प्रकट होने लगते हैं।

प्रोटीनकाल[संपादित करें]

द्वितीय विश्वयुद्ध की अवधि में भिन्न-भिन्न प्रकार के आहारों की कमी के साथ-साथ प्रोटीन की भी कमी हुई। इससे संसार के प्रत्येक देश में साधारण जनता को उत्तम प्रोटीनयुक्त भोजन मिलना दुर्लभ हो गया। इससे अनेक प्रकार के रोग होने लगे, क्योंकि शरीर की रक्षक शक्ति का ्ह्रास हो गया। इससे स्पष्ट हो गया कि भोजन में उत्तम प्रोटीनों का र्प्याप्त मात्रा में रहना परमावश्यक है। इस कारण वैज्ञानिकों ने उत्तम प्रोटीनों की खोज आरंभ की। देखा गया कि दूध, मांस, मछली और अंडा के अतिरिक्त यीस्ट और सोयाबीन के प्रोटीन भी अति उत्तम हैं। इन दोनों में नितांत आवश्यक ऐमिनो-अम्ल भी विद्यमान रहते हैं। मांस के प्रोटीन में जो गुणकारी ऐमिनो अम्ल होते हैं, वे सब इनमें भी हैं। इस काल में अनुसंधान से यह ज्ञात हुआ कि सब प्रकार के एमिनो-अम्ल की प्राप्ति के लिए मनुष्य के आहार में भिन्न-भिन्न प्रकार के प्रोटीनों का रहना आवश्यक है, जो भिन्न-भिन्न पदार्थों में मिलते हैं। इसका भी अन्वेषण किया गया कि यीस्ट और सोयाबीन को किस प्रकार बनाया जाय कि वे स्वादिष्ट हो जाएँ। आजकल एमिनो-अम्ल मनुष्य के अन्य आहारों में मिलाकर तैयार किया जाता है। ऐसे मिश्रण की गंध साधारणत: बहुत बुरी होती है। इस गंध को मारने और मिश्रत आहार को रुचिकर बनाने के लिए भी यथेष्ट प्रयत्न चल रहे हैं।

संतुलित भोजनकाल[संपादित करें]

इस काल में यह पाया गया कि स्वास्थ्य या शरीरवृद्धि के लिए भोजन सब अवयवों प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा, विटामिन, लवण आदि का उपयुक्त अनुपातों में आहार में वर्तमान रहना आवश्यक है। अनुपातों में थोड़ी बहुत विभिन्नता से हानि नहीं होती, परंतु अधिक कमी बेशी रहने पर स्वास्थय ठीक नहीं रहता। भारतीय आहारों में अच्छे प्रोटीन की विशेष कमी रहती है, क्योंकि बहुत से लोग मांस आदि नहीं खाते और महंगा होने के कारण दूध, दही का भी सेवन नहीं कर पाते। परंतु कई प्रकार के अच्छे प्रोटीनों का खाद्य होना में होना आवश्यक है। संभव हो तो इन्हें दूध, अंडा, मांसादि भिन्न-भिन्न पदार्थों से प्राप्त करना चाहिए।

जल और लवण-संतुलन-काल[संपादित करें]

शारीरिक प्रक्रिया के लिए पानी और भिन्न-भिन्न लवणों का भी बहुत अधिक महत्व है। पाचन के पश्चात्‌ आहार के अवयव जल द्वारा ही शरीर के भिन्न-भिन्न भागों में पहुँचते हैं। लवण जल द्वारा ही कोशिकाओं तथा अंत:कोशीय स्थानों में पहुँचते हैं। रक्त की द्रवता भी जल के ही कारण बनी रहती है। भिन्न-भिन्न स्थानों में लवणों की भिन्न-भिन्न मात्रा उपस्थित रहती है। इस मात्रा की थोड़ी बहुत न्युनता या अधिकता से शारीरिक प्रक्रियाओं में कोई विकृति नहीं उत्पन्न होती, किंतु विशेष कमी होने से तरह-तरह के विकार उत्पन्न हो जाते हैं। ये लवण भी शरीर के लिए बहुत महत्व के हैं। शरीर से विशेष मात्रा में लवण निकल जाने से, जैसे पसीना द्वारा या पतले दस्तों द्वारा, हाथ पांव की पेशियों में शिथिलता और ऐंठन आने लगती है। यदि इन लवणों की पूर्ति कुछ काल तक न की जाय तो मृत्यु तक हो सकती है।

सन्दर्भ ग्रन्थ[संपादित करें]

  • चार्ल्स हर्बर्ट बेस्ट तथा नार्मन बर्क टेयलर : द फ़िज़िओलॉजिकल बेसिस ऑव मेडिकल प्रैक्टिस (नवीन संस्करण) (बलिअर टिंडाल ऐंड कॉक्स, लंदन);
  • सैमसन राइट : ऐप्लाएड फिज़िऑलोजी (ऑक्सफ़ोर्ड युनिवर्सिटी प्रेस, लंदन);
  • एम.जी. वोल : डाएटोथरापी, (डब्ल्यू.बी. सॉण्डर्स कंपनी, फिलाडेल्फिआ और लंदन)।

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

  • This outline displayed as a mindmap, at wikimindmap.com
  • Diet, Nutrition and the prevention of chronic diseases by a Joint WHO/FAO Expert consultation (2003)
  • United States Department of Agriculture (USDA) Frequently asked questions Archived 2007-10-31 at the Wayback Machine

आहार से आप क्या समझते हैं आहार के मुख्य कार्यों का उल्लेख कीजिए?

आहार या भोजन के तीन उद्देश्य हैं : (1) शरीर को अथवा उसके प्रत्येक अंग को क्रिया करने की शक्ति देना, (2) दैनिक क्रियाओं में ऊतकों के टूटने फूटने से नष्ट होनेवाली कोशिकाओं का पुनर्निर्माण और (3) शरीर को रोगों से अपनी रक्षा करने की शक्ति देना। अतएव स्वास्थ्य के लिए वही आहार उपयुक्त है जो इन तीनों उद्देश्यों को पूरा करे।

आहार से आप क्या समझते हैं?

आहार की परिभाषा मानव द्वारा ग्रहण किया गया खाद्य पदार्थ जो मानव शरीर का पोषण करता है, आहार कहलाता है।

आहार से आप क्या समझते हैं संतुलित आहार को प्रभावित करने वाले कारकों पर चर्चा कीजिए?

संतुलित आहार को प्रभावित करने वाले कारक.
स्वास्थ्य.
क्रियाशीलता.
जलवायु मौसम.
विशिष्ट शारीरिक अवस्था.

भोजन और आहार से आप क्या समझते हैं?

हमारे भोजन के मुख्य पोषक तत्त्वों के नाम कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा, विटामिन तथा खनिज - लवण हैं। इनके अतिरिक्त भोजन में आहारी रेशे तथा जल भी होता है। कार्बोहाइड्रेट तथा वसा हमारे शरीर को मुख्य रूप से ऊर्जा प्रदान करते हैं। प्रोटीन तथा खनिज लवण की आवश्यकता हमारे शरीर की वृद्धि तथा अनुरक्षण के लिए होती है।