आकृति बनाने में आपने कौन कौन से पौधों की पत्तियों का उपयोग किया है उन पौधों के नाम लिखिए? - aakrti banaane mein aapane kaun kaun se paudhon kee pattiyon ka upayog kiya hai un paudhon ke naam likhie?

फूल धारण करने वाले पेड़-पौधों की एक और विशेषता उनकी पत्तियों के आकार और प्रकार में विभिन्नता है। इस विभिन्नता के आनुवंशिक होने से पत्तियों का आकार पौधों के वर्गीकरण में एक महत्वपूर्ण आधार साबित हुआ है - वंश स्तर से कुल स्तर तक जैसे गुलमोहर, बबूल और इमली के पेड़ों का आकार-प्रकार अलग-अलग है परन्तु उनकी पत्तियों को देखकर कहा जा सकता है कि ये एक ही कुल के सदस्य होना चाहिए, जिसका एक लक्षण संयुक्त पत्तियां हैं।
पत्तियां पौधों का सर्वाधिक प्रमुख हिस्सा हैं। और यही वह भाग है जो पर्यावरणीय बदलावों को सबसे ज्यादा झेलता है, और इससे प्रभावित होता है। पेड़ों की पत्तियां ही सबसे पहले किसी स्थान विशेष की वायु खराब होने की सूचना देती हैं। विशेषज्ञ पत्तियों पर उभरी इन सूचनाओं को पढ़कर वायु प्रदूषण की स्थिति और प्रदूषकों के प्रकार का पता लगा पाते हैं।

हवा, पानी और धूप का असर भी इन्हीं पर सबसे ज्यादा देखा जाता है। यही कारण है कि सबसे ज्यादा विविधता हमें पत्तियों के आकार, प्रकार और रूप रंग में नज़र आती है। वैसे तो अधिकांश पत्तियां हरी होती हैं पर चितकबरी या अन्य रंगों की पत्तियां भी कम नहीं हैं। क्रोटन और कोलियस की पत्तियां सभी जानते हैं। खैर, पत्ती बाहर से कैसी भी दिखाई दे उसमें कुछ हरा पदार्थ (क्लोरोफिल) तो होता है, क्योंकि यही वह पदार्थ है जो पौधों की पत्तियों को भोजन बनाने में सक्षम बनाता है। यह नहीं, तो भोजन नहीं।
पत्तियों के माप में अंतर भी गजब का है - केजुराइना की अति सूक्ष्म पत्तियों से लेकर ताड़ और नारियल की विशालकाय पत्तियों तक। कटे किनारे बाली पत्तियां, या आरीदार पत्तियां, या फिर पूरी पत्ती ही छोटीछोटी उपपत्तियों में बंटी हुई। केजुराइना की केवल कुछ मिली मीटर छोटी, तो केले की तीन मीटर लंबी और 60 से.मी. चौड़ी। ट्रेवलर्स पाम की पत्तियां एक-दो नहीं पूरी 6 मीटर लंबी होती हैं, जिसे काटने पर एक स्वादिष्ट पेय पदार्थ मिलता है। तभी तो यह नाम मिला - ट्रेवलर्स पाम, यात्रियों की प्यास बुझाने वाला ताड़।

जैसा पर्यावरण वैसा रूप
नम एवं ठंडे और छायादार आवासों के पेड़-पौधों की पत्तियां पतली, बड़ी और अधिकतर पंखनुमा होती हैं; जैसे फर्न और ट्रीफर्न। वहीं तेज़ धूप ब पर्याप्त वर्षा वाले स्थानों की पत्तियां चौड़ी, मोटी और कटी-फटी न होकर पूर्ण किनारे बाली होती हैं जैसे बरगद, पीपल, आम और साल या सागौन।
जहां धूप की तेज़ी तो बरकरार हो परन्तु पानी की कमी हो जाए तो पत्तियां अतिसूक्ष्म या सिर्फ कांटों के रूप में होती हैं। रेगिस्तानी इलाकों में ऐसी ही वनस्पतियां मिलती हैं। यानी जैसा पर्यावरण वैसी पत्तियां। पर यह सब कैसे तय होता है कि किस पौधे की पत्तियां कैसी होंगी?
हम जानते हैं कि ये दुनिया भौतिक और जैविक दोनों रूप से बड़ी जटिल है। यहां कई तरह के जीव-जंतु और वनस्पतियां विकसित हुई हैं। इन जीवों में निश्चित अनुवांशिक गुण होते हैं। उन्हीं गुणों के अनुसार उनका आकार-प्रकार व रूप-रंग तय होता है। परन्तु इस अनुवांशिक स्थिरता के अलावा इन जीवों में विकासीय प्रत्यास्थता (डिवेलपमेंटल इलास्टिसिटी) भी पाई जाती है। यह अनुवांशिक रूप से समान जीवों का एक ऐसा गुण है जिसके कारण अनुवांशिक रूप से समान होते हुए भी पर्यावरण के प्रभाव से वे भिन्न हो जाते हैं। ऐसी प्रत्यास्थता जंतुओं की तुलना में पौधों में ज्यादा होती है। आइए कुछ उदाहरण देखें।

आकृति बनाने में आपने कौन कौन से पौधों की पत्तियों का उपयोग किया है उन पौधों के नाम लिखिए? - aakrti banaane mein aapane kaun kaun se paudhon kee pattiyon ka upayog kiya hai un paudhon ke naam likhie?
विविध आकार की पत्तियां: ऊपर दी गई पत्तियों को ध्यान से देखिए। शायद इनमें से कई पौधों से आप अच्छी तरह से वाकिफ होंगे। वनस्पति विज्ञान में इन आकारों को दिए गए नामों पर न भी जाएं तो भी इन पत्तियों को मोटे तौर पर सुई जैसी नोकदार, लंबी, लैंस जैसी, गोल, अंडाकार, तिकोनी, दिल के आकार वाली, किडनी के आकार जैसी, इसिए जैसी आदि कई समूहों में बांटा जा सकता है। इन्हें अगर पहचानने की कोशिश करें तो शायद आपको ये पत्तियां - घास, यूकेलिप्ट्स, कनेर, जासोन, केला, पान, नीम, नींबू, बांस, गाजर घास, गेंदा जैसी कई पत्तियों से मेल खाती लग रही होंगी।

 

आकृति बनाने में आपने कौन कौन से पौधों की पत्तियों का उपयोग किया है उन पौधों के नाम लिखिए? - aakrti banaane mein aapane kaun kaun se paudhon kee pattiyon ka upayog kiya hai un paudhon ke naam likhie?
पत्तियों के आकार (शेप) संबंधी पैटर्न का अध्ययन करते समय पत्ती के मूल अक्ष पर कोशिकाओं की वृद्धि और कोशिकाओं के विभाजन पर विशेष रूप से ध्यान दिया जाता है। ऊपर दिए चित्रों में पत्ती के मूल अक्ष और उनसे बनने वाले आकारों को दिखाया गया है।

कई बार एक ही पौधे की निचली और ऊपरी पत्तियों में भी इतना अंतर होता है कि यदि उन्हें अलग से तोड़कर आपस में मिला दिया जाए तो यह पता लगाना मुश्किल हो जाता है कि वे एक ही पौधे की पत्तियां हैं, जैसे टिकोमा और लाल पत्ता में। टिकोमा पीले फूल वाली एक शोभादार झाड़ी है - इसमें निचली पत्तियां सरल एवं ऊपरी संयुक्त होती हैं। यह अनुभव हमें उदयपुर में विद्या भवन की एक ट्रेनिंग के दौरान हुआ। ऊपर की पत्तियों में तो 5 से ज्यादा पत्रक देखे जा सकते हैं। पत्तियों में यह अंतर पौधे की उम्र से जुड़ा है।

खुली धूप और छायादार स्थानों पर उगने वाले पेड़-पौधे क्रमशः उनके जैविक विकास के दौरान वहां मिलने वाले प्रकाश की मात्रा के अनुसार अनुकूलित हो जाते हैं।
जो पौधे छायादार स्थानों या घने जंगलों में पेड़ों की छाया तले उगते। हैं, उनकी पत्तियां पतली और अधिक क्षेत्रफल वाली होती हैं। इन पत्तियों में अपेक्षाकृत ज्यादा क्लोरोफिल होता है जिससे ये उपलब्ध प्रकाश का अधिकाधिक इस्तेमाल कर सकें। इन पत्तियों में प्रति इकाई वायु रंध्रों की संख्या कम होती है।
इनका क्षेत्रफल अधिक होता है। और क्लोरोफिल भी ज्यादा, अतः प्रकाश की कम मात्रा में भी इनका जीवन यापन चल जाता है। और तो और छाया में उगाए पौधे की पत्तियां ज्यादा पतली, चौड़ी, आंतरिक रूप से अधिक हवादार और कम वायुछिद्र बाली होती हैं; उसी जाति के उस पौधे की तुलना में जो सीधे प्रकाश में उगाया गया हो।

पत्तियों के आकार-प्रकार पर दिन की लंबाई का भी प्रभाव पड़ता है। खटूमरा (ब्रायोफिल्म) के पौधे जब छोटे दिन वाली अवस्था में होते हैं यानी उन्हें प्रतिदिन आठ घंटे प्रकाश मिलता है तो इस पौधे की पत्तियां छोटी, गूदेदार और चिकने किनारे वाली होती हैं। और जब इस पौधे को 16 घंटे प्रकाश मिलता है तो इसकी पत्तियां बड़ी, पतली और कटे-फटे किनारे वाली आती हैं। पत्तियों में यह अंतर आपके पास उगने वाले पत्थर-चट्टा के पौधे में भी देखा जा सकता है। पुरानी नीचे की पत्तियां सरल और गर्मियों के लंबे दिनों में आने वाली पत्तियां संयुक्त होती हैं। गर्मियों में ही इस पर सुंदर घंटी के आकार के फूल खिलते हैं।

एक ही पौधे में अलग-अलग तरह की पत्तियों का पाया जाना पर्ण-विभिन्नता (Heterophyll) कहलाता है। यानी आनुवंशिक रूप से समान होने पर भी इनमें पर्यावरणीय कारणों से भिन्नता आ जाती है। इस तरह के उदाहरण जलीय पौधों में ज्यादा देखने में आते हैं; जैसे सेजिटेरिया, लिम्नोफिला हिटरोफिला तथा रेननकुलस एक्वाटेलिस।
सेजिटेरिया यानी बाणपत्र की पानी में डूबी पत्तियां तो रिबननुमा होती हैं, परन्तु जैसे ही इसकी लंबाई बढ़ने पर या पानी का तल कम होने से इसकी नई पत्तियां पानी की सतह के ऊपर आती हैं, उनका फलक भाले की नोक जैसा हो जाता है।

पानी के अंदर और पानी के बाहर की पत्तियों को अलग-अलग देखने पर यह कहना नामुमकिन ही है कि ये दोनों पत्तियां एक ही पौधे की हैं। पहले ऐसा माना जाता था कि पत्तियों के कटे-फटे या रिबननुमा होने का कारण उनका पानी में डूबे रहना है। जबकि वास्तविकता यह है कि इसकी वजह तो प्रकाश की मात्रा में परिवर्तन है। पानी के नीचे प्रकाश कम पहुंच पाता है, इसीलिए पत्तियां रिबननुमा हो जाती हैं। देखा गया है कि बाणपत्र को मिट्टी में उगाकर उस पर छाया कर दें तो पानी के बाहर भी इसकी सारी पत्तियां रिबननुमा ही आती हैं।

मतलब यह कि इन पौधों के जीनरूप (जीनोटाइप) में दोनों प्रकार की पत्तियों के संकेत मौजूद होते हैं, यह उनके पर्यावरण पर निर्भर करता है कि पत्ती में कब कौन-सा रूप (फिनोटाइप) प्रदर्शित होगा।
पत्तियों में विभिन्नता का एक उम्दा उदाहरण वंश सायेनिया में देखा जा सकता है। यह लोबेलिऐसी कुल का एक पौधा है जो केवल हवाइयन द्वीप पर मिलता है। इसकी लगभग 60 जातियां हैं जो आपस में एक-दूसरे से काफी भिन्न हैं, विशेषकर पत्तियों की रचना एवं आकार के संदर्भ में। ये अंतर इनके ग्रोथफॉर्म और पत्तियों की बाह्य आकृति से संबंधित हैं।

मसलन सायेनिया लाइनरीफोलिय। शुष्क तेज़ धूप वाले स्थानों पर उगता है। इसकी पत्तियां संकरी सुई जैसी होती हैं। जबकि फर्न (पंख) जैसी पत्तियों वाला सायेनिया नम और छायादार स्थानों पर मिलता है, जैसे सायेनिया एप्लेनीफोलिया। उल्लेखनीय है कि एस्पेलेनियम वस्तुतः एक फर्न है जो नम और छायादार स्थानों पर उगती है। ऐसी पर्यावरणीय स्थितियों में ये पतली और बड़ी-बड़ी पंखदार पत्तियां ज्यादा अच्छी तरह से प्रकाश अवशोषित कर सकती हैं। इस तरह पर्यावरण के प्रति यह इसका अनुकूलन है। इसका विकास संभवतः सायेनिया लोबेटा जैसी जातियों से हुआ है।

आकृति बनाने में आपने कौन कौन से पौधों की पत्तियों का उपयोग किया है उन पौधों के नाम लिखिए? - aakrti banaane mein aapane kaun kaun se paudhon kee pattiyon ka upayog kiya hai un paudhon ke naam likhie?
सायेनिया प्रजाति जो सिर्फ हवाई द्वीप समूह पर पाई जाती है। उसकी पत्तियों के आकार और आकृति में बहुत ज्यादा भिन्नता पाई जाती है। यह भिन्नता पौधे के रूप (वर्घीरूप) यानी पेड़, झाड़ी या शाखाएं और पत्तियों की बाय आकृति से जुड़ी हुई है। उदाहरण के लिए सायेनिया लाइनेरिफोलिया उन जगहों पर पाया जाता है जहां चमकदार धूप और सूखापन हो। पौधे में फर्न जैसी पत्तियां छायादार जगहों पर देखी गई हैं (चित्र के दाहिने हिस्से में)। चौड़ी बलेडनुमा पत्तियां प्रकाश को प्राप्त कर पाने में खासी दक्ष होती हैं।

 सायेनिया जैसे अवलोकनों से 1930 तक कई वैज्ञानिक यही मानते थे कि जो भी विभिन्नता पेड़ पौधों के रूप-रंग और आकार में दिखाई देती है, उसके लिए मुख्य रूप से पर्यावरण ही ज़िम्मेदार है, और इसमें आनुवंशिक कारणों का कोई खास लेना देना नहीं है।

विभिन्न आवासों में पौधों की वेराइटी में जो अंतर नज़र आते हैं वे आनुवंशिक रूप से नियंत्रित हैं या पर्यावरणीय स्थितियों द्वारा - इसका ठीक उत्तर पहली बार एक स्वीडिश वनस्पति शास्त्री गोटे टेरेसा ने दिया। उन्होंने अपने बगीचे में 31 जातियों की विभिन्न रेसेस (वेराइटी) को उगाया और पाया कि उनमें अंतर का कारण आनुवंशिक है, न कि पर्यावरणीय - कुछ अपवादों को छोड़कर। टेरेसा ने ऐसे पौधों को, जो विभिन्न आवासीय स्थितियों में उगते हैं, पहली बार इकोटाइप नाम दिया।

वस्तुतः विस्तृत रूप से विभिन्न पर्यावरणीय स्थितियों में फैले एक ही जाति के पौधों में कई सारे परिवर्तन होने से, समयानुसार विकास के चलते और पर्यावरण से एडजस्टमेंट के कारण कई विभिन्नताएं आनुवंशिक रूप से जाति में आ जाती हैं। ऐसी वेराइटी को जिसमें किसी पर्यावरणीय कारक के कारण परिवर्तन हुआ है और जो पर्यावरण बदलने पर भी परिवर्तित नहीं होता - अर्थात अनुवांशिक रूप से उससे जुड़ गया हो - इकोलोजिकल वेरीएन्टस या इकोटाइप कहा जाता है।

पर्यावरण के दबाव के चलते ऐसे अनुवांशिक परिवर्तन जो इन पौधों को उनके पर्यावरण से ज्यादा सही तालमेल बढ़ाने में सक्षम बनाते हैं, का ज्यादा प्राकृतिक वरण यानी चुनाव होने से, कालान्तर में नई जाति बन जाती है। वर्तमान में देखने में ऐसा लगता है कि इन पौधों ने अपने को अपने पर्यावरण के अनुसार (किसी विशेष घटक जैसे प्रकाश या पानी की कमी या अधिकता) ढाल लिया है। वस्तुतः जबकि असलियत तो यह है कि इस जाति का विकास हज़ारों लाखों सालों में हुए परिवर्तनों का नतीजा है, जिसमें प्राकृतिक चयन की महती भूमिका है।

खैर, कुछ भी हो आनुवंशिक परिवर्तन स्थिर हो या अस्थिर, पर्यावरण की उसमें भूमिका से इंकार नहीं किया जा सकता। पर्यावरण के महत्व और उसके प्रभावों की इस लेख में की गई चर्चा, इसका प्रमाण नहीं हैं क्या?
कुल मिलाकर पत्तियों का आकार-प्रकार उनके पर्यावरण, रचना और कार्य तथा आनुवंशिकता के आपसी तालमेल पर निर्भर होता है।


किशोर पंवार: इंदौर के होल्कर साइंस कॉलेज में वनस्पति विज्ञान पढ़ाते हैं।

इन आकृति बनाने में आपने कौन कौन से पौधों की पत्तियों का उपयोग किया है उन पौधों के नाम लिखिए?

रिसर्च में पाया गया है कि इन पेड़ों की पत्तियों में PM 2.5 के ज़हरीले तत्व सोखने की क्षमता सबसे ज़्यादा होती है. बीजिंग जैसे प्रदूषित शहरों में तो ऐसे ही पेड़ लगाने की सलाह दी जाती है. देवदार की एक ख़ासियत ये भी है कि ये सदाबहार पेड़ है. इसलिए ये हर समय हवा साफ़ करने का काम करता रहता है.

पत्तों से कौन कौन सी आकृति बना सकते हैं?

8 आकृति को पीले रंग में भरो ।

5 पौधों के नाम लिखिए तथा बताइए इनके कौन से भाग का उपयोग?

2. पाँच पौधों के नाम लिखिए तथा बताइए इनके कौन-से भाग का उपयोग खाद्य पदार्थ के रूप में होता है। 3. कॉलम 1 में दिए गए खाद्य पदार्थ का मिलान कॉलम 2 से कीजिए: कॉलम 1 कॉलम 2 दूध, दही, पनीर, घी दूसरे जंतुओं को खाते हैं।

एक पेड़ में कितनी पत्तियां होती हैं?

अब 'पौधों की परी' ने कहा - एक ऐसे पेड़ को छुओ जिसका तना या तो बहुत मोटा हो या फिर पतला हो ।