उनके पिताजी और चाचा जी शिक्षक थे, फिर भी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं रहने के कारण प्रारम्भिक शिक्षा में कठिनाई उत्पन्न हुई। आर्थिक तंगी से उबरने के लिए उन्होंने नर्सिंग शिक्षा पाने के लिए गांव से शहर की ओर आई।खेत में धान रोपाई का दृश्यप्रमुख रचनाएँ-- नगाड़े की तरह बजते शब्द, अपने घर की तलाश में।नर्सिंग की शिक्षा के समय उन्हें बाहर की दुनिया का भी परिचय हुआ। इस प्रकार गांव और शहर, दोनों समाजों की क्रियाशीलता का बोध हुआ। तब उन्हें अपनी स्थिति का असली बोध हुआ।निर्मला पुतुल ने आदिवासी समाज की विसंगतियों को नजदीक से देखा है। कड़ी मेहनत के बावजूद भी उनकी खराब दशा, कुरीतियों के कारण बिगड़ता भविष्य, स्त्रियों की दुर्दशा, पर्यावरण की हानि, सूदखोरों महाजनों का शोषण आदि विषय उनकी कविताओं का मूल विषय है। संथाली समाज में जहां एक ओर सादगी, भोलापन, प्रकृति से जुड़ाव और कठिन परिश्रम करने की क्षमता है, वही दूसरी ओर उनमें अशिक्षा, कुरीतियां और दारु- शराब की गलत आदतें हैं, जो उनके पतन का कारण बन गया है।आओ मिलकर बचाएंअपनी बस्तियों कोनगी होने से शहर की आबोहवा सेउसे डूबने से पूरी तरह से बस्ती कोहड़िया में।अपने चेहरे पर संथाल परगना की माटी का रंग, भाषा में झारखंडी पन।ठंडी होती दिनचर्या में जीवन की गर्माहट मन का हरापन, भोलापन दिल का। अक्खड़पन, जुझारूपन भीभीतर की आग, धनुष की डोरी। तीर का नुकीलापन कुल्हाड़ी की धार, जंगल की ताजी हवा, नदियों की निर्मलता। पहाड़ों का मौन, रचनाओं की धुन, मिट्टी का सोंधापन फसलों की लहलहाहट।नाचने के लिए खुला आंगन, गाने के लिए गीत। हंसने के लिए थोड़ी सी खिलखिलाहट। रोने के लिए मुट्ठी भर एकांत।बच्चों के लिए मैदान, जानवरों के लिए हरी हरी घास, बूढों के लिए पहाड़ों की शांति।और इस अविश्वास-भरे दौर में थोड़ा सा विश्वास, थोड़ी सी उम्मीद, थोड़े से सपने।आओ, साथ मिलकर करें कि इस दौर में भी बचाने के लिए बहुत कुछ बचा हैभावार्थहमारी बस्तियां शहरी वातावरण के प्रभाव में आने के कारण, यहां की पारंपरिक मर्यादाएं टूटती जा रही हैं। हमारे इलाके के लोग शर्म- हया छोड़कर नंगे होते जा रहे हैं। उनके तन के कपड़े छोटे होते जा रहे हैं। यहां के वृक्ष लगातार कट रहे हैं। इस तरह तो हमारी संस्कृति समाप्त हो जाएगी और वातावरण प्रदूषित होने के कारण यहां का का ढेर लग जाएगा, क्योंकि यहां शिक्षा का अभाव है। भोले-भाले लोग शराब के नशे में अपनी जिंदगी डूबाते जा रहे हैं।मीराबाई के पद" कविता भी पढ़ें) click hereशहरी संस्कृति के प्रभाव में आने से यहाँ के लोगों की दिनचर्या बदल गई है। उनके जीवन का उमंग और उत्साह समाप्त हो गया है। मैं चाहता हूं कि उनके जीवन में फिर से वही सरसता, मधुरता, उमंग और उत्साह आ जाए। दिलो के बीच का भेदभाव मिट जाए और उनके मन का भोलापन और संघर्ष का गुण फिर से वापस आ जाए। Show
कवयित्री निर्मला पुतुल कहती हैं, झारखंड के लोगों का उत्साह बना रहे हैं। उनके धनुष की डोरी और तीर का नुकीलापन हमेशा बना रहता है। कुल्हाड़ी की धार बनी रही। मतलब कि वे परंपरा गत जीवन शैली न छोड़ें। कवयित्री कहती है, मैं चाहती हूं कि हमारे जन जीवन में फिर से नाच गान का उल्लासमय वातावरण हो, नाचने गाने के लिए खुले- खुले आंगन हो, हमारे जीवन में हंसी और खिलखिलाहट हो, रोने के लिए थोड़ा अकेलेपन भी हो बच्चों के खेलने के लिए खुले मैदान हो, जानवरों को चराने के लिए हरी हरी घास हो और बड़े बूढ़ों को पहाड़ी प्रदेशों का शांत वातावरण भी मिले। वह आगे कहती हैं कि आओ! हम सब मिलकर आशा विश्वास और सपनों को बचाने के लिए, निराशा और अविश्वास के इस युग में भी भावनाएं पूरी तरह से मरी नहीं हैं। हमें अभी भी समय है, उन भावनाओं को सम्हाल लेना चाहिए।शब्दार्थ आबोहवा - वातावरण। नंगी होना - अमर्यादित होना। संथाल परगना -- झारखंड राज्य का एक आदिवासी क्षेत्र। ठंडी होती - धीमी पड़ती । झारखंडी पन -- झारखंड का स्वभाव । जुझारू पन -- संघर्ष करने की आदत । आग - गर्मी । निर्मलता -- पवित्रता ।मौन - शांति । मुट्ठी भर - थोड़ा सा। दौर -- समय प्रश्नोत्तरप्रश्न 1 माटी का रंग प्रयोग करते हुए किस बात की ओर संकेत किया गया है?उत्तर - कवयित्री माटी का रंग के माध्यम से झारखंड के लोक जीवन की स्वरचित विशेषताओं को उजागर करना चाहती है। वहाँ की झारखंडी भाषा, जुझारूपन, प्रखरता, नाच- गान, हंसना- रोना, स्वच्छ सुंदर प्राकृतिक वातावरण, धनुष- बाण, कुल्हाड़ी आदि माटी के रंग को व्यक्त करने वाली चीजें हैं।प्रश्न २। भाषा में झारखंडीपन से क्या अभिप्राय है?उत्तर - झारखंडी का अभिप्राय है - झारखंड के लोगों की स्वजातीय बोली। उनका विशेष उच्चारण और स्वभाव।
प्रश्न ३। दिल के भोलेपन के साथ साथ अक्खड़पन और जुझारूपन को भी बचाने की आवश्यकता पर बल क्यों दिया गया है?उत्तर - कवयित्री को अपने परिवेश की स्वाभाविक विशेषताओं से लगाव है। वह भोलेपन के साथ-साथ अक्खड़पन और जुझारूंग को भी आवश्यक मानती है। कारण यह है कि भोले भाले आदमी जरा- जरा सी बात पर अकड़ कर तन जाते हैं और संघर्ष करने के लिए तैयार हो जाते हैं। यह तीनों गुण के साथ-साथ चलते हैं। इन तीनों का उपयोग है। बुरी बात पर तनाव कर उसके प्रति रोष प्रकट करना और लड़ना एक गुण है। इसलिए कवयित्री को यह प्रिय हैं।प्रश्न ४। इस दौर में भी बचाने के लिए बहुत कुछ बचा है-- से क्या आशय है?उत्तर - कवयित्री को अविश्वास भरे दौर में आपसी विश्वास, उम्मीदें और सपने बचाने की जरूरत महसूस होती है। वह कहती है कि यह सब अभी तक किया जा सकता है।प्रश्न ५। बस्तियों को शहर की किस-किस आबो-हवा से बचाने की आवश्यकता है?उत्तर - स्वभावगत नग्नता, वेशभूषा की नग्नता, वृक्षों से विहीन पृथ्वी। ठंडी होती है दिनचर्या भी शहरी बीमारी है। शहरी जीवन में उमंग का उत्साह नहीं है। लोग अभि सप्त भरे जीवन जीते हैं। ये सब बुराइयों से गांव को बचाना है।यह भी पढ़ें। Recent posts by Dr.Umesh kr. Singh मीराबाई के पद" कविता
घर की याद कविता भवानी प्रसाद मिश्रा क्लिक करें और पढ़ें। कृष्णा सोबती द्वारा मिया नसरुद्दीन की कहानी
डॉ उमेश कुमार सिंह हिन्दी में पी-एच.डी हैं और आजकल धनबाद , झारखण्ड में रहकर विभिन्न कक्षाओं के छात्र छात्राओं को मार्गदर्शन करते हैं। You tube channel educational dr Umesh 277, face book, Instagram, khabri app पर भी follow कर मार्गदर्शन ले सकते हैं। बूढ़ों के लिए कवियत्री क्या बचाने को कहती है?कवयित्री अपने परिवेश को नगरीय अपसंस्कृतिक से बचाने का आहवान करती है। व्याख्या-कवयित्री कहती है कि उन्हें संघर्ष करने की प्रवृत्ति, परिश्रम करने की आदत के साथ अपने पारंपरिक हथियार धनुष व उसकी डोरी, तीरों के नुकीलेपन तथा कुल्हाड़ी की धार को बचाना चाहिए।
आओ मिलकर बचाएं कविता में कवित्री ने बच्चों और बड़ों के लिए क्या बचाना चाहते हैं?इस कविता में प्रकृति और सामाजिक व्यवस्था को बचाने के लिए प्रयास करने का आह्वान किया गया है। कवयित्री को लगता है कि हम अपनी पारंपरिक भाषा, भावुकता, भोलापन, ग्रामीण संस्कृति को भूलते जा रहे हैं। प्राकृतिक नदियाँ, पहाड़, मैदान, मिट्टी, फ़सल, हवाएँ आधुनिकता का शिकार हो रही हैं। हमें इन सबको बचाना है।
आओ मिलकर बचाएँ कविता से क्या आशय है?आओ मिलकर बचाएँ कविता का भावार्थ - सामाजिक और प्राकृतिक रूप से हम आदिवासियों की बस्तियाँ नग्न होती जा रही हैं। शहरों की जलवायु का बस्तियों पर प्रभाव पड़नेलगा है। उस शहरी वातावरण से इन्हें बचाना होगा। कुरीतियों के पात्र में डूबने से पूरी बस्ती को बचाना होगा।
कवयित्री कहाँ की बस्ती को डूबने से बचाना चाहती है?कवयित्री आदिवासी संथाल बस्ती को शहरी अपसंस्कृति से बचाने का आहवान करती है। 2. संथाल परगना की समस्या है कि यहाँ कि भौतिक संपदा का बेदर्दी से शोषण किया गया है, बदले में यहाँ लोगों को कुछ नहीं मिलता। बाहरी जीवन के प्रभाव से संथाल की अपनी संस्कृति नष्ट होती जा रही है।
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