आप अपने शिक्षण को प्रभावी कैसे बना सकते हैं? - aap apane shikshan ko prabhaavee kaise bana sakate hain?

शैक्षिक मनोविज्ञान (Educational psychology), मनोविज्ञान की वह शाखा है जिसमें इस बात का अध्ययन किया जाता है कि मानव शैक्षिक वातावरण में सीखता कैसे है तथा शैक्षणिक क्रियाकलाप अधिक प्रभावी कैसे बनाये जा सकते हैं। 'शिक्षा मनोविज्ञान' दो शब्दों के योग से बना है - ‘शिक्षा’ और ‘मनोविज्ञान’। अतः इसका शाब्दिक अर्थ है - शिक्षा संबंधी मनोविज्ञान। दूसरे शब्दों में, यह मनोविज्ञान का व्यावहारिक रूप है और शिक्षा की प्रक्रिया में मानव व्यवहार का अध्ययन करने वाला विज्ञान है।मानव व्यवहार को बनाने की दृष्टि से जब व्यवहार का अध्ययन किया जाता है तो अध्ययन की इस शाखा को शिक्षा मनोविज्ञान Archived 2021-05-05 at the Wayback Machine के नाम से संबोधित किया जाता है। अतः कहा जा सकता है कि शिक्षा मनोविज्ञान Archived 2021-05-05 at the Wayback Machine शैक्षणिक स्थितियों में मानव व्यवहार का अध्ययन करता है। दूसरे शब्दों में शैक्षिक समस्याओं का वैज्ञानिक व संगठन से समाधान करने के लिए मनोविज्ञान के आधारभूत सिद्धांतों का उपयोग करना ही शिक्षा मनोविज्ञान की विषय वस्तु है। शिक्षा के सभी पहलुओं जैसे शिक्षा के उद्देश्यों, शिक्षण विधि, पाठ्यक्रम, मूल्यांकन, अनुशासन आदि को मनोविज्ञान ने प्रभावित किया है।[1] बिना मनोविज्ञान की सहायता के शिक्षा प्रक्रिया सुचारू रूप से नहीं चल सकती।

Show

शिक्षा मनोविज्ञान से तात्पर्य शिक्षण एवं सीखने की प्रक्रिया को सुधारने के लिए मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों का प्रयोग करने से ह शिक्षा मनोविज्ञान शैक्षिक परिस्थितियों में व्यक्ति के व्यवहार का अध्ययन करता है।

इस प्रकार शिक्षा मनोविज्ञान में व्यक्ति के व्यवहार, मानसिक प्रक्रियाओं एवं अनुभवों का अध्ययन शैक्षिक परिस्थितियों में किया जाता है। शिक्षा मनोविज्ञान मनोविज्ञान की वह शाखा है जिसका ध्येय शिक्षण की प्रभावशाली तकनीकों को विकसित करना तथा अधिगमकर्ता की योग्यताओं एवं अभिरूचियों का आंकलन करना है। यह व्यवहारिक मनोविज्ञान की शाखा है जो शिक्षण एवं सीखने की प्रक्रिया को सुधारने में प्रयासरत है।

शिक्षा मनोविज्ञान की परिभाषा[संपादित करें]

शिक्षा मनोविज्ञान वह विज्ञान है जो शिक्षा की समस्याओं का विवेचन, विश्लेषण एवं समाधान करता है। शिक्षा, मनोविज्ञान से कभी पृथक नहीं रही है। मनोविज्ञान चाहे दर्शन के रूप में रहा हो, उसने शिक्षा के माध्यम से व्यक्ति का विकास करने में सहायता की है।

स्किनर के अनुसार : शिक्षा मनोविज्ञान, शैक्षणिक परिस्थितियों में मानवीय व्यवहार का अध्ययन करता है। शिक्षा मनोविज्ञान अपना अर्थ शिक्षा से, जो सामाजिक प्रक्रिया है और मनोविज्ञान से, जो व्यवहार संबंधी विज्ञान है, ग्रहण करता है।

क्रो एवं क्रो के अनुसार : शिक्षा मनोविज्ञान, व्यक्ति के जन्म से लेकर वृद्धावस्था तक सीखने सम्बन्धी अनुभवों का वर्णन तथा व्याख्या करता है।

जेम्स ड्रेवर के अनुसार : शिक्षा मनोविज्ञान व्यावहारिक मनोविज्ञान की वह शाखा है जो शिक्षा में मनोवैज्ञानिक सिद्धांतो तथा खोजों के प्रयोग के साथ ही शिक्षा की समस्याओं के मनोवैज्ञानिक अध्यन से सम्बंधित है।

ऐलिस क्रो के अनुसार : शैक्षिक मनोविज्ञान मानव प्रतिक्रियाओं के शिक्षण और सीखने को प्रभावित वैज्ञानिक दृष्टि से व्युत्पन्न सिद्धांतों के अनुप्रयोग का प्रतिनिधित्व करता है।

भारत में में शिक्षा का अर्थ ज्ञान से लगाया जाता है। गाँधी जी के अनुसार शिक्षा का तात्पर्य व्यक्ति के शरीर, मन और आत्मा के समुचित विकास से है।

शिक्षा मनोविज्ञान के अर्थ का विश्लेषण करने के लिए स्किनर ने अधोलिखित तथ्यों की ओर संकेत किया हैः-

1. शिक्षा मनोविज्ञान का केन्द्र, मानव व्यवहार है।2. शिक्षा मनोविज्ञान खोज और निरीक्षण से प्राप्त किए गए तथ्यों का संग्रह है।3. शिक्षा मनोविज्ञान में संग्रहीत ज्ञान को सिद्धांतों का रूप प्रदान किया जा सकता है।4. शिक्षा मनोविज्ञान ने शिक्षा की समस्याओं का समाधान करने के लिए अपनी स्वयं की पद्धतियों का प्रतिपादन किया है।5. शिक्षा मनोविज्ञान के सिद्धांत और पद्धतियां शैक्षिक सिद्धांतों और प्रयोगों को आधार प्रदान करते है।

कैली ने शिक्षा मनोविज्ञान की आवश्यकता को निम्नानुसार बताया हैः-

  • 1. बालक के स्वभाव का ज्ञान प्रदान करने हेतु,
  • 2. बालक को अपने वातावरण से सामंजस्य स्थापित करने के लिए,
  • 3. शिक्षा के स्वरूप, उद्देश्यों और प्रयोजनों से परिचित करना,
  • 4. सीखने और सिखाने के सिद्धांतों और विधियों से अवगत कराना,
  • 5. संवेगों के नियंत्रण और शैक्षिक महत्व का अध्ययन,
  • 6. चरित्र निर्माण की विधियों और सिद्धांतों से अवगत कराना,
  • 7. विद्यालय में पढ़ाये जाने वाले विषयों में छात्र की योग्यताओं का माप करने की विधियों में प्रशिक्षण देना,
  • 8. शिक्षा मनोविज्ञान के तथ्यों और सिद्धांतों की जानकारी के लिए प्रयोग की जाने वाली वैज्ञानिक विधियों का ज्ञान प्रदान करना।

प्रमुख शिक्षा-मनोवैज्ञानिक[संपादित करें]

शिक्षा मनोविज्ञान का क्षेत्र[संपादित करें]

आप अपने शिक्षण को प्रभावी कैसे बना सकते हैं? - aap apane shikshan ko prabhaavee kaise bana sakate hain?

संज्ञानात्मक योग्यताओं की जाँच करने के लिए एक प्रशन का उदाहरण: प्रत्येक व्यक्ति भिन्न है। प्रत्येक व्यक्ति में कुछ व्यक्तिगत गुण, योग्यताएँ होतीं हैं जिनमें से कुछ पूर्वनिर्मित होतीं हैं और कुछ का विकास सीखकर किया जाता है।

शिक्षा मनोविज्ञान के क्षेत्र के बारे में स्किनर ने लिखा है कि शिक्षा मनोविज्ञान के क्षेत्र में वह सभी ज्ञान तथा प्रविधियाँ (तक्नीकें) से सम्बंधित है जो सीखने की प्रक्रिया को अच्छी प्रकार से समझाने तथा अधिक निपुणता से निर्धारित करने से सम्बंधित हैं। आधुनिक शिक्षा मनोविज्ञानिकों के अनुसार शिक्षा मनोविज्ञान के प्रमुख क्षेत्र निम्न प्रकार है-

1. वंशानुक्रम (Heredity)2. विकास (Development)3. व्यक्तिगत भिन्नता (Individual Differences)4. व्यक्तित्व (Personality)5. विशिष्ट बालक (Exceptional Child)6. अधिगम प्रक्रिया (Learning Process)7. पाठ्यक्रम निर्माण (Curriculum Development)8. मानसिक स्वास्थ्य (Mental Health)9. शिक्षण विधियाँ (Teaching Methods)10. निर्देशन एवं परामर्श (Guidance and Counseling)11. मापन एवं मूल्यांकन (Measurement and Evaluation)12. समूह गतिशीलता (Group Dynamics)13. अनुसन्धान (Research)14. किशोरावस्था (Adolescence)

शिक्षा की महत्वपूर्ण समस्याओं के समाधान में मनोविज्ञान सहायक होता है और यही सब समस्याएं व उनका समाधान शिक्षा मनोविज्ञान का कार्यक्षेत्र बनते हैं -

  • (१) शिक्षा कौन दे, अर्थात् शिक्षक कैसा हो? मनोविज्ञान शिक्षक को अपने छात्रों को समझने में सहायता प्रदान करता है साथ ही यह भी बताता है कि शिक्षक को छात्रों के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए। शिक्षक का व्यवहार पक्षपात रहित हो। उसमें सहनशीलता, धैर्य व अर्जनात्मक शक्ति होनी चाहिए।
  • (२) विकास की विशेषताएं समझने में सहायता देता है। प्रत्येक छात्र विकास की कुछ निश्चित अवस्थाओं से गुजरता है जैसे शैशवास्था (0-2 वर्ष) बाल्यावस्था (3-12 वर्ष) किशोरावस्था (13-18 वर्ष) प्रौढ़ावस्था (18-21 वर्ष)। विकास की दृष्टि से इन अवस्थाओं की विशिष्ट विशेषताएं होती हैं। यदि शिक्षक इन विभिन्न अवस्थाओं की विशेषताओं से परिचित होता है वह अपने छात्रों को भली प्रकार समझ सकता है और छात्रों को उसी प्रकार निर्देशन देकर उनको लक्ष्य प्राप्ति में सहायता कर सकता है।
  • (३) शिक्षा मनोविज्ञान का ज्ञान शिक्षक को सीखने की प्रक्रिया से परिचित कराता है। ऐसा देखा जाता है कि कुछ शिक्षक कक्षा में पढ़ाते समय अधिक सफल साबित होते हैं तथा कुछ अपने विषय पर अच्छा ज्ञान होने पर भी कक्षा शिक्षण में असफल होते हैं। प्रभावपूर्ण ढंग से शिक्षण करने के लिए शिक्षक को सीखने के विभिन्न सिद्धान्तों का ज्ञान, सीखने की समस्याओं एवं सीखने को प्रभावित करने वाले कारणों और उनको दूर करने के उपायों की जानकारी होनी चाहिए। तभी वह छात्रों को सीखने के लिए प्रेरित कर सकता है।
  • (४) शिक्षा मनोविज्ञान, व्यक्तिगत भिन्नता का ज्ञान कराता है। संसार के कोई भी दो व्यक्ति बिल्कुल एक से नहीं होते। प्रत्येक व्यक्ति अपने में विशिष्ट व्यक्ति है। एक कक्षा में शिक्षक को 30 से लेकर 50 छात्रों को पढ़ाना होता है जिनमें अत्यधिक व्यक्तिगत भिन्नता होती है। यदि शिक्षक को इस बात का ज्ञान हो जाए तो वह अपना शिक्षण सम्पूर्ण छात्रों की आवश्यकताओं को पूर्ण करने वाला बना सकता है।
  • (५) व्यक्ति के विकास पर वंशानुक्रम एवं वातावरण का क्या प्रभाव पड़ता है, यह मनोविज्ञान बताता है। वंशानुक्रम किसी भी गुण की सीमा निर्धारित करता है और वातावरण उस गुण का विकास उसी सीमा तक करता है। अच्छा वातावरण भी गुण को उस सीमा के आगे विकसित नहीं कर सकता।
  • (६) पाठ्यक्रम निर्माण में सहायता - विभिन्न स्तरों के छात्रों के लिए पाठ्यक्रम बनाते समय मनोवैज्ञानिक सिद्धान्त सहायता पहुंचाते हैं। छात्रों की आवश्यकताओं, उनके विकास की विशेषताओं, सीखने के तरीके व समाज की आवश्यकताएं - यह सब पाठ्यक्रम में परिलक्षित होनी चाहिए। पाठ्यक्रम में व्यक्ति व समाज दोनों की आवश्यकताओं को सम्मिश्रित रूप में रखना चाहिए।
  • (७) मनोविज्ञान विशिष्ट बालकों की समस्याओं एवं आवश्यकताओं का ज्ञान शिक्षक को देता है जिससे शिक्षक इन बच्चों को अपनी कक्षा में पहचान सकें। उनको आवश्यकतानुसार मदद कर सकें। उनके लिए विशेष कक्षाओं का आयोजन कर सकें व परामर्श दे सकें।
  • (८) मानसिक स्वास्थ्य का ज्ञान भी शिक्षक के लिए लाभकारी होता है। मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति के लक्षणों को पहचानना तथा ऐसा प्रयास करना कि उनकी इस स्वस्थता को बनाए रखा जा सके।
  • (९) मापन व मूल्यांकन के मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों का ज्ञान भी मनोविज्ञान से मिलता है। वर्तमान परीक्षा प्रणाली से उत्पन्न छात्रों में डर, चिन्ता, नकारात्मक प्रवृत्ति जैसे आत्महत्या करने से छात्रों के व्यक्तित्व का विघटन साथ ही समाज का भी विघटन होता है। अतः सीखने के परिणामों का उचित मूल्यांकन करना तथा उपचारात्मक शिक्षण देना शिक्षक का ध्येय होना चाहिए।
  • (१०) शिक्षा मनोविज्ञान समूह गतिकी (ग्रुप डायनेमिक्स) का ज्ञान कराता है। वास्तव में शिक्षक एक अच्छा पथ-प्रदर्शक, निर्देशक व कुशल नेता होता है। समूह गतिकी के ज्ञान से वह कक्षा रूपी समूह को भली प्रकार संचालित कर सकता है और छात्रों के सर्वांगीण विकास में अपना बहुमूल्य योगदान दे सकता है।
  • (११) शिक्षा मनोविज्ञान बच्चों को शिक्षित करने सम्बन्धी विभिन्न विधियों के बारे में अध्ययन करता है और खोज करता है कि विभिन्न विषयों जैसे गणित, विज्ञान, सामाजिक विज्ञान, भाषा, साहित्य को सीखने से सम्बन्धित सामान्य सिद्धान्त क्या हैं।
  • (१२) शिक्षा मनोविज्ञान विभिन्न प्रकार के रूचिकर प्रश्नों - जैसे, बच्चे भाषा का प्रयोग करना कैसे सीखते हैं या बच्चों द्वारा बनायी गयी ड्राइंग का शैक्षिक महत्व क्या होता है- पर भी विचार करता है।

केली (Kelly) ने शिक्षा मनोविज्ञान के कार्यो का निम्न प्रकार विश्लेषण किया है -

  • (१) बच्चें की प्रकृति के बारे में ज्ञान प्रदान करता है।
  • (२) शिक्षा की प्रकृति एवं उद्देश्यों को समझने में सहायता प्रदान करता है।
  • (३) ऐसे वैज्ञानिक विधियों व प्रक्रियाओं को समझाता है जिनका शिक्षा मनोविज्ञान के तथ्यों एवं सिद्धान्तों को निकालने में उपयोग किया जाता है।
  • (४) शिक्षण एवं अधिगम के सिद्धान्तों एवं तकनीकों को प्रस्तुत करता है।
  • (५) विद्यालयी विषयों में उपलब्धि एवं छात्रों की योग्यताओं को मापने की विधियों में प्रशिक्षण देता है।
  • (६) बच्चों के वृद्धि एवं विकास के बारे में ज्ञान प्रदान करता है।
  • (७) बच्चों के अच्छे समायोजन में सहायता प्रदान करता है और कुसमायोजन से बचाता है।

शिक्षा और मनोविज्ञान का संबंध[संपादित करें]

शिक्षा मनोविज्ञान का सम्बन्ध सीखने एवं सीखाने की विधियों अर्थात पढ़ाने से है। शिक्षा तथा मनोविज्ञान ज्ञान की दो स्पष्ट शाखाएं है, परंतु इन दोनो का परस्पर घनिष्ठ संबंध हैं आधुनिक शिक्षा का आधार मनोविज्ञान है। बच्चे को उसकी रूचियों, रूझानों, सम्भावनाओं तथा व्यक्तित्व का ध्यानपूर्वक अध्ययन करके शिक्षा दी जाती है। आज शिक्षा तथा मनोविज्ञान एक दूसरे के पूरक है। स्किनर स्किनर का मत है कि ‘‘शिक्षा मनोविज्ञान शिक्षा का एक आवश्यकतत्व है। इसकी सहायता के बिना शिक्षा की गुत्थी सुलझाई नहीं जा सकती। शिक्षा तथा मनोविज्ञान दोनों का संबंध व्यवहार के साथ है। मनोविज्ञान की खोजों की शिक्षा के दूसरे पहलुओं पर गहरी छाप है।’’

शिक्षा तथा मनोविज्ञान सिद्धांत तथा व्यवहार का समन्वय है, शिक्षा तथा मनोविज्ञान का पारस्परिक संबंध का ज्ञान मानव के समन्वित संतुलित विकास के लिये आवश्यक है। शिक्षा के समान कार्य, मनोविज्ञान क सिद्धांतों पर आधारित है। क्रो एण्ड क्रो के अनुसार ‘‘मनोविज्ञान, वातावरण के सम्पर्क में होने वाले मानव व्यवहारों का विज्ञान हैं’’ मनोविज्ञान सीखने से संबंधित मानव विकास की व्याख्या करता है। शिक्षा, सीखने की प्रक्रिया को करने की चेष्टा प्रदान करती है। शिक्षा मनोविज्ञान सीखने के क्यों और कब से संबंधित है।’’

शिक्षा और मनोविज्ञान को जोड़ने वाली कड़ी है ‘‘मानव व्यवहार’’। इस संबंध में दो विद्वानों के विचार दृष्टव्य है :-

ब्राउन- ‘‘शिक्षा वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति के व्यवहार में परिवर्तन किया जाता है।’’

पिल्सबरी- ‘‘मनोविज्ञान मानव व्यवहार का विज्ञान है।’’

इन परिभाषाओं से स्पष्ट है कि शिक्षा और मनोविज्ञान दोनों का संबंध मानव व्यवहार से है। शिक्षा मानव व्यवहार में परिवर्तन करके उसे उत्तम बनाती है। मनोविज्ञान मानव व्यवहार का अध्ययन करता है। इस प्रकार शिक्षा और मनोविज्ञान के संबंध होना स्वाभाविक है पर इस संबंध में मनोविज्ञान को आधार प्रदान करता है। शिक्षा को अपने प्रत्येक कार्य के लिए मनोविज्ञान की स्वीकृति प्राप्त करनी पड़ती है। बी.एन. झा ने ठीक ही लिखा है- ‘‘शिक्षा जो कुछ करती है और जिस प्रकार वह किया जाता है उसके लिये इसे मनोवैज्ञानिक खोजों पर निर्भर होना पड़ता है।’’

मनोविज्ञान को यह स्थान इसलिए प्राप्त हुआ है क्योंकि उसने शिक्षा के सब क्षेत्रों को प्रभावित करके उनमें क्रांतिकारी परिवर्तन कर दिया है। इस संदर्भ में रायन के ये सारगर्भित वाक्य उल्लेखनीय है-

आधुनिक समय के अनेक विद्यालयों में हम भिन्नता और संघर्ष का वातावरण पाते है। अब इनमें परम्परागत, औपचारिकता, मजबूर, मौन, तनाव और दण्ड की अधिकता दर्शित नहीं होती है।

यह सब शिक्षा मनोविज्ञान के उपयोग के कारण संभव हुआ है।

मनोविज्ञान का शिक्षा के साथ संबंध[संपादित करें]

  • 1. मनोविज्ञान तथा शिक्षा के उद्देश्य - मनोविज्ञान के द्वारा यह ज्ञात किया जा सकता है कि शिक्षा के उद्देश्यों को प्राप्त किया जा सकता है अथवा नहीं। शिक्षक ने अपने उद्देश्य में कितनी सफलता प्राप्त की है यह भी मनोविज्ञान के द्वारा जाना जा सकता है।
  • 2. मनोविज्ञान तथा पाठ्यक्रम - मनोविज्ञान ने बालक के सर्वागींण विकास में पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाओं को महत्वपूर्ण बनाया है। इसीलिये विद्यालयों में खेलकूद, सांस्कृतिक कार्यक्रम आदि की विषेष रूप से व्यवस्था की जाती है।
  • 3. मनोविज्ञान तथा पाठ्य पुस्तकें - पाठ्य पुस्तकों का निर्माण बालक की आयु, रूचियों और मानसिक योग्यताओं को ध्यान में रखकर करना चाहिये।
  • 4. मनोविज्ञान तथा समय सारणी - शिक्षा में मनोविज्ञान द्वारा दिया जाने वाला मुख्य सिद्धान्त है कि नवीन ज्ञान का विकास पूर्व ज्ञान के आधार पर किया जाना चाहिये।
  • 5. मनोविज्ञान तथा शिक्षा विधियां - मनोविज्ञान के द्वारा शिक्षण विधियों में बालक के स्वयं सीखने पर बल दिया गया। इस उद्देश्य से ‘करके सीखना’, खेल द्वारा सीखना, रेड़ियो पर्यटन, चलचित्र आदि को शिक्षण विधियों में स्थान दिया गया।
  • 6. मनोविज्ञान तथा अनुशासन - मनोविज्ञान द्वारा प्रेम, प्रशंसा और सहानुभूति को अनुशासन के लिये एक अच्छा आधार माना है।
  • 7. मनोविज्ञान तथा अनुसंधान - मनोविज्ञान ने सीखने की प्रक्रिया के सम्बन्ध में खोज करके अनेक अच्छे नियम बनायें हैं। इनका प्रयोग करने से बालक कम समय में और अधिक अच्छी प्रकार से सीख सकता है।
  • 8. मनोविज्ञान तथा परीक्षायें - मनोविज्ञान द्वारा बुद्धि परीक्षा, व्यक्तित्व परीक्षा तथा वस्तुनिष्ठ परीक्षा जैसी नई विधियों को मूल्यांकन के लिये चयनित किया गया है।
  • 9. मनोविज्ञान तथा अध्यापक - शिक्षा में तीन प्रकार के सम्बन्ध होते हैं - बालक तथा शिक्षक का सम्बन्ध, बालक और समाज का सम्बन्ध तथा बालक और विषय का सम्बन्ध। शिक्षा में सफलता तभी मिल सकती है जब इन तीनों का सम्बन्ध उचित हो।

भरत धुरिया बिवार जिला हमीरपुर

मनोविज्ञान का शिक्षा में योगदान[संपादित करें]

संक्षेप में मनोविज्ञान ने शिक्षा के क्षेत्र में निम्नलिखित योगदान किया है-

1. बालक का महत्व2. बालकों की विभिन्न अवस्थाओं का महत्व3. बालकों की रूचियों व मूल प्रवृत्तियों का महत्व4. बालकों की व्यक्तिगत विभिन्नताओं का महत्व5. पाठ्यक्रम में सुधार6. पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाओं पर बल7. सीखने की प्रक्रिया में उन्नति8. मूल्यांकन की नई विधियां9. शिक्षा के उद्देश्य की प्राप्ति व सफलता10. नये ज्ञान का आधारपूर्ण ज्ञान

शिक्षा की समस्याएं उसके उद्देश्यों, विषय वस्तु, साधनों एवं विधियों से सम्बन्धित है। मनोविज्ञान इन चारों क्षेत्रों में समस्याओं को सुलझाने में सहायता प्रदान करता है।

शिक्षा मनोविज्ञान का उद्देश्य Archived 2021-05-06 at the Wayback Machine शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायता करना है। शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति की अंतर्निहित शक्तियों का अधिकतम संभव, सहज, स्वभाविक तथा सर्वांगीण विकास करके उसे समाज का एक उपयोगी नागरिक बनाना है। मनोविज्ञान शिक्षा के उद्देश्यों को अच्छी तरह से समझने में निम्न प्रकार सहायता प्रदान करता है।

  • (१) उद्देश्यों को परिभाषित करके - उदाहरणार्थ जैसे कि शिक्षा का एक उद्देश्य है अच्छे नागरिक के गुणों का विकास करना। इसमें अच्छे नागरिक से क्या तात्पर्य है। अतः अच्छे नागरिक को व्यवहारिक रूप में परिभाषित करना चाहिए।
  • (२) उद्देश्यों को स्पष्ट करके - उपर्युक्त उदाहरण के अनुसार व्यक्ति के कौन से व्यवहार अथवा लक्षण अच्छे नागरिक में होने चाहिए। अर्थात् ऐसे कौन से व्यवहार हैं या लक्षण हैं जो अच्छे नागरिक में नहीं पाए जाते और इसके विपरीत जिनकों हम अच्छा नागरिक कहते हैं उनमें वे व्यवहार पाए जाते हैं।
  • (३) उद्देश्य प्राप्ति की सीमा निर्धारित करके - वर्तमान परिस्थिति में शिक्षा देते समय एक कक्षा के शत प्रतिशत विद्यार्थियों को शत प्रतिशत अच्छे नागरिक बनाना असंभव हो जाता है। अतः इसकी सीमा निर्धारित करना जैसे 80 प्रतिशत विद्यार्थियों के 80 प्रतिशत व्यवहार अच्छे नागरिक को परिलक्षित करेंगे।
  • (४) उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए क्या करना है अथवा क्या नही - प्राथमिक स्तर पर अच्छे नागरिक के गुणों को विकास करने के लिए शिक्षक को भिन्न व्यवहार करना होगा और उच्च स्तर पर इसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए भिन्न व्यवहार करना होगा।
  • (५) नए पेहलुओं पर सुझाव देना - उदाहरणार्थ, मनोवैज्ञानिक दृष्टि से मूल्यांकन में सभी छात्रों को एक समान परीक्षण क्यों दिया जाए जब एक ही कक्षा में भिन्न योग्यता और क्षमता वाले छात्रों को प्रवेश दिया जाता है।

शिक्षा की विषयवस्तु को समझने व उसका निर्धारण छात्र के विकास के अनुरूप करने में मनोविज्ञान का महत्वपूर्ण योगदान होता हैं। किस कक्षा के छात्रों के लिए विषयवस्तु क्या हो? अप्रत्यक्ष पाठ्यक्रम (विद्यालय का सामान्य वातावरण) किस प्रकार का हो जिससे छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव न पड़े आदि महत्वपूर्ण प्रश्नों का समाधान मनोविज्ञान करता है। मनोविज्ञान की सहायता से मानवजाति को विश्व के कल्याण हेतु प्रयुक्त कर सकते है।

मनोविज्ञान शिक्षा के साधनों को समझने में सहयोग प्रदान करता है, क्योंकि-

  • (अ) अभिभावको, शिक्षकों एवं मित्रों की बुद्धि एवं चरित्र उनको शिक्षित करने का महत्वपूर्ण साधन होती है।
  • (आ) शिक्षा के अन्य साधनों जैसे पुस्तक, मानचित्र, उपकरणों का प्रयोग तभी सफल होता है जब जिनके लिए इनका प्रयोग किया जाता है, उनकी प्रकृति समझ में आए।

मनोविज्ञान शिक्षण की विधियों के बारे में ज्ञान तीन प्रकार से देता है -

  • (अ) मानव प्रकृति के नियमों के आधार पर शिक्षण विधि निर्धारित करना, जैसे
  • (आ) स्वयं के शिक्षण अनुभव के आधार पर विधि का चयन करना
  • शिक्षक-छात्र अनुपात 1 अनुपात 5 या 1 अनुपात 60 की तुलना में 1 अनुपात 25 ज्यादा उपयुक्त होता है।
  • छात्र के चरित्र निर्माण में विधयालय वातावरण से ज्यादा पारिवारिक जीवन का प्रभाव पड़ता है।
  • विदेशी भाषा को हू-ब-हू की तुलना में वार्तालाप से ज्यादा अच्छा सीखा जा सकता है।
  • (इ) छात्र के ज्ञान व कौशल को मापने के तरीके इस प्रकार बताता है -
  • किस विधि से किस विषयवस्तु के अर्जन को मूल्यांकित करना है जैसे गध (संज्ञानात्मक) एवं पध (भावात्मक)।
  • मूल्यांकन का उद्देश्य छात्र को सिर्फ सही अथवा गलत प्रतिक्रिया बताना नही है वरन् उसकी प्रतिक्रियाओं का निदान करना व उपचारात्मक शिक्षण प्रदान करना है।

डेविस (Davis) ने शिक्षा मनोविज्ञान के महत्व की इस प्रकार विवेचना की है - मनोविज्ञान ने छात्रों की अभिक्षमताओं एवं उनमें पाए जाने वाले विभिन्नताओं का विश्लेषण करके शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इसने विद्यालयी वर्षो में छात्र की वृद्धि एवं विकास के ढंग के बारे में ज्ञान प्रदान करके भी योगदान दिया है।

ब्लेयर (Blair) ने शिक्षा मनोविज्ञान के महत्व को निम्न शब्दों में बताया है -

वर्तमान समय में यदि शिक्षक को अपने कार्य में सफल होना है तो उसे बाल मनोविज्ञान का ज्ञान जैसे उनकी वृद्धि, विकास, सीखने की प्रक्रिया व समायोजन की योग्यता के बारे में समझ होनी चाहिए। वह छात्रों की शिक्षा सम्बन्धी विशिष्ट कठिनाईयों को पहचान सके तथा उपचारात्मक शिक्षण देने की कुशलता रखता हो। उसको आवश्यक शैक्षिक एवं व्यवसायिक निर्देशन देना आना चाहिए। इस प्रकार कोई भी व्यक्ति यदि मनोविज्ञान के सिद्धान्तों व विधियों के बारे में शिक्षित नही है तो वह शिक्षक के दायित्व को भली भांति नहीं निभा सकता।

शिक्षा मनोविज्ञान के क्षेत्र[संपादित करें]

विभिन्न लेखकों ने शिक्षा मनोविज्ञान की भिन्न-भिन्न परिभाषाएं दी है। इसलिए शिक्षा मनोविज्ञान के क्षेत्र के बारे में निश्चित तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता है। इसके अतिरिक्त शिक्षा मनोवैज्ञानिक एक नया तथा पनपता विज्ञान है। इसके क्षेत्र अनिश्चित है और धारणाएं गुप्त है। इसके क्षेत्रों में अभी बहुत सी खोज हो रही है और संभव है कि शिक्षा मनोविज्ञान की नई धारणाएं, नियम और सिद्धांत प्राप्त हो जाये। इसका भाव यह है कि शिक्षा मनोविज्ञान का क्षेत्र और समस्याएं अनिश्चित तथा परिवर्तनशील है। चाहे कुछ भी हो निम्नलिखित क्षेत्र या समस्याओं को शिक्षा मनोविज्ञान के कार्य क्षेत्र में शामिल किया जा सकता है। क्रो एण्ड क्रो- ‘‘शिक्षा मनोविज्ञान की विषय सामग्री का संबंध सीखने को प्रभावित करने वाली दशाओं से है।’’

1. व्यवहार की समस्या2. व्यक्तिगत विभिन्नताओं की समस्या3. विकास की अवस्थाएं4. बच्चों का अध्ययन5. सीखने की क्रियाओं का अध्ययन6. व्यक्तित्व तथा बुद्धि7. नाप तथा मूल्यांकन8. निर्देश तथा परामर्श

शिक्षा मनोविज्ञान की विधियाँ[संपादित करें]

शिक्षा मनोविज्ञान को व्यवहारिक विज्ञान की श्रेणी में रखा जाने लगा है। विज्ञान होने के कारण इसके अध्ययन में भी अनेक विधियों का विकास हुआ। ये विधियां वैज्ञानिक हैं। जार्ज ए लुण्डबर्ग के शब्दों में -

सामाजिक वैज्ञानिकों में यह विश्वास पूर्ण हो गया है कि उनके सामने जो समस्याऐं है उनको हल करने के लिए सामाजिक घटनाओं के निष्पक्ष एवं व्यवस्थित निरीक्षण, सत्यापन, वर्गीकरण तथा विश्लेषण का प्रयोग करना होगा। ठोस एवं सफल होने का कारण ऐसे दृष्टिकोण को वैज्ञानिक पद्धति कहा जाता है।

शिक्षा मनोविज्ञान में अध्ययन और अनुसंधान के लिए सामान्य रूप से जिन विधियों का प्रयोग किया जाता है उनको दो भागों में विभाजित किया जा सकता हैः-

  • (१) आत्मनिष्ठ विधियाँ (Subjective Methods)
  • आत्मनिरीक्षण विधि
  • गाथा वर्णन विधि
  • (२) वस्तुनिष्ठ विधियाँ (Objective Methods)
  • प्रयोगात्मक विधि
  • निरीक्षण विधि
  • जीवन इतिहास विधि
  • उपचारात्मक विधि
  • विकासात्मक विधि
  • मनोविश्लेषण विधि
  • तुलनात्मक विधि
  • सांख्यिकी विधि
  • परीक्षण विधि
  • साक्षात्कार विधि
  • प्रश्नावली विधि
  • विभेदात्मक विधि
  • मनोभौतिकी विधि

इनमें से कुछ प्रमुख विधियों का निम्नानुसार वर्णन किया गया है :-

आत्म निरीक्षण विधि (अर्न्तदर्शन विधि)[संपादित करें]

आत्म निरीक्षण विधि को अर्न्तदर्शन, अन्तर्निरीक्षण विधि (Introspection) भी कहते है। स्टाउट के अनुसार ‘‘अपना मानसिक क्रियाओं का क्रमबद्ध अध्ययन ही अन्तर्निरीक्षण कहलाता है।’’ वुडवर्थ ने इस विधि को आत्मनिरीक्षण कहा है। इस विधि में व्यक्ति की मानसिक क्रियाएं आत्मगत होती हे। आत्मगत होने के कारण आत्मनिरीक्षण या अन्तर्दर्शन विधि अधिक उपयोगी होती हे। लॉक के अनुसार - मस्तिष्क द्वारा अपनी स्वयं की क्रियाओं का निरीक्षण।

  • परिचय : पूर्वकाल के मनोवैज्ञानिक अपनी मस्तिष्क क्रियाओं और प्रतिक्रियाओं का ज्ञान प्राप्त करने के लिये इसी विधि पर निर्भर थे। वे इसका प्रयोग अपने अनुभवों का पुनः स्मरण और भावनाओं का मूल्यांकन करने के लिये करते थे। वे सुख, दुख, क्रोध और शान्ति, घृणा और प्रेम के समय अपनी भावनाओं और मानसिक दशाओं का निरीक्षण करके उनका वर्णन करते थे।
  • अर्थ : अन्तर्दर्शन का अर्थ है- ‘‘अपने आप में देखना।’’ इसकी व्याख्या करते हुए बी.एन. झा ने लिखा है ‘‘आत्मनिरीक्षण अपने स्वयं के मन का निरीक्षण करने की प्रक्रिया है। यह एक प्रकार का आत्मनिरीक्षण है जिसमें हम किसी मानसिक क्रिया के समय अपने मन में उत्पन्न होने वाली स्वयं की भावनाओं और सब प्रकार की प्रतिक्रियाओं का निरीक्षण, विश्लेषण और वर्णन करते हैं।’’
मनोविज्ञान के ज्ञान में वृद्धि : डगलस व हालैण्ड के अनुसार - ‘‘मनोविज्ञान ने इस विधि का प्रयोग करके हमारे मनोविज्ञान के ज्ञान में वृद्धि की है।’’अन्य विधियों में सहायक : डगलस व हालैण्ड के अनुसार ‘‘यह विधि अन्य विधियों द्वारा प्राप्त किये गये तथ्यों नियमों और सिद्धांन्तों की व्याख्या करने में सहायता देती है।’’यंत्र व सामग्री की आवश्यकता : रॉस के अनुसार ‘‘यह विधि खर्चीली नहीं है क्योंकि इसमें किसी विशेष यंत्र या सामग्री की आवश्यकता नहीं पड़ती है।’’प्रयोगशाला की आवश्यकता : यह विधि बहुत सरल है। क्योंकि इसमें किसी प्रयोगशाला की आवश्यकता नहीं है। रॉस के शब्दों में ‘‘मनोवैज्ञानिकों का स्वयं का मस्तिष्क प्रयोगशाला होता है और क्योंकि वह सदैव उसके साथ रहता है इसलिए वह अपनी इच्छानुसार कभी भी निरीक्षण कर सकता है।’’

जीवन इतिहास विधि या व्यक्ति अध्ययन विधि[संपादित करें]

व्यक्ति अध्ययन विधि (Case study or case history method) का प्रयोग मनोवैज्ञानिकों द्वारा मानसिक रोगियों, अपराधियों एवं समाज विरोधी कार्य करने वाले व्यक्तियों के लिये किया जाता है। बहुधा मनोवैज्ञानिक का अनेक प्रकार के व्यक्तियों से पाला पड़ता है। इनमें कोई अपराधी, कोई मानसिक रोगी, कोई झगडालू, कोई समाज विरोधी कार्य करने वाला और कोई समस्या बालक होता है। मनोवैज्ञानिक के विचार से व्यक्ति का भौतिक, पारिवारिक व सामाजिक वातावरण उसमें मानसिक असंतुलन उत्पन्न कर देता है। जिसके फलस्वरूप वह अवांछनीय व्यवहार करने लगता है। इसका वास्तविक कारण जानने के लिए वह व्यक्ति के पूर्व इतिहास की कड़ियों को जोड़ता है। इस उद्देश्य से वह व्यक्ति उसके माता पिता, शिक्षकों, संबंधियों, पड़ोसियों, मित्रों आदि से भेंट करके पूछताछ करता है। इस प्रकार वह व्यक्ति के वंशानुक्रम, पारिवारिक और सामाजिक वातावरण, रूचियों, क्रियाओं, शारीरिक स्वास्थ्य, शैक्षिक और संवेगात्मक विकास के संबंध में तथ्य एकत्र करता है जिनके फलस्वरूप व्यक्ति मनोविकारों का शिकार बनकर अनुचित आचरण करने लगता है। इस प्रकार इस विधि का उद्देश्य व्यक्ति के किसी विशिष्ट व्यवहार के कारण की खोज करना है। क्रो व क्रो ने लिखा है ‘‘जीवन इतिहास विधि का मुख्य उद्देश्य किसी कारण का निदान करना है।’’

बहिर्दर्शन या अवलोकन विधि[संपादित करें]

बहिर्दर्शन विधि (Extrospection) को अवलोकन या निरीक्षण विधि (observational method) भी कहा जाता है। अवलोकन या निरीक्षण का सामान्य अर्थ है- ध्यानपूर्वक देखना। हम किसी के व्यवहार,आचरण एवं क्रियाओं, प्रतिक्रियाओं आदि को बाहर से ध्यानपूर्वक देखकर उसकी आंतरिक मनःस्थिति का अनुमान लगा सकते है। उदाहरणार्थः- यदि कोई व्यक्ति जोर-जोर से बोल रहा है और उसके नेत्र लाल है तो हम जान सकते है कि वह क्रोध मे है। किसी व्यक्ति को हंसता हुआ देखकर उसके खुश होने का अनुमान लगा सकते हैं।

निरीक्षण विधि में निरीक्षणकर्ता, अध्ययन किये जाने वाले व्यवहार का निरीक्षण करता है और उसी के आधार पर वह विषय के बारे में अपनी धारणा बनाता है। व्यवहारवादियों ने इस विधि को विशेष महत्व दिया है।

कोलेसनिक के अनुसार निरीक्षण दो प्रकार का होता है-

  • (1) औपचारिक, और
  • (2) अनौपचारिक।

औपचारिक निरीक्षण नियंत्रित दशाओं में और अनौपचारिक निरीक्षण अनियंत्रित दशाओं में किया जाता है। इनमें से अनौपचारिक निरीक्षण, शिक्षक के लिये अधिक उपयोगी है। उसे कक्षा और कक्षा के बाहर अपने छात्रों के व्यवहार का निरीक्षण करने के लिए अनेक अवसर प्राप्त होते है। वह इस निरीक्षण के आधार पर उनके व्यवहार के प्रतिमानो का ज्ञान प्राप्त करके उनको उपयुक्त निर्देशन दे सकता है

गुड तथा हैट (Good & Hatt) के अनुसार - "सामान्यतः प्रश्नावली शाब्दिक प्रश्नों के उत्तर प्राप्त करने की विधि है, जिसमें व्यक्ति को स्वयं ही प्रारूप में भरकर देने होते हैं। इस विधि में प्रश्नों के उत्तर प्राप्त करके समस्या संबंधी तथ्य एकत्र करना मुख्य होता है। प्रश्नावली एक प्रकार से लिखित प्रश्नों की योजनाबद्ध सूची होती है। इसमें सम्भावित उत्तरों के लिए या तो स्थान रखा जाता है या सम्भावित उत्तर लिखे रहते हैं।"

इस विधि में व्यक्तियों से भेंट कर के समस्या संबंधी तथ्य एकत्रित करना मुख्य होता है। इस विधि के द्वारा व्यक्ति की समस्याओं तथा गुणों का ज्ञान प्राप्त किया जाता है। इसमें दो व्यक्तियों में आमने-सामने मौखिक वार्तालाप होता है, जिसके द्वारा व्यक्ति की समस्याओं का समाधान खोजने तथा शारीरिक और मानसिक दशाओं का ज्ञान प्राप्त करने का प्रयास किया जाता है।

गुड एवं हैट के शब्दों में - किसी उद्देश्य से किया गया गम्भीर वार्तालाप ही साक्षात्कार है।

‘‘पूर्व निर्धारित दशाओं में मानव व्यवहार का अध्ययन।’’ विधि में प्रयोगकर्ता स्वयं अपने द्वारा निर्धारित की हुई परिस्थितियों या वातावरण में किसी व्यक्ति के व्यवहार का अध्ययन करता है या किसी समस्या के संबंध में तथ्य एकत्र करता है।

‘‘व्यक्ति के अचेतन मन का अध्ययन करके उपचार करना।’’ इस विधि के द्वारा व्यक्ति के अचेतन मन का अध्ययन करके, उसकी अतृप्त इच्छाओं की जानकारी प्राप्त की जाती है। तदुपरांत उन इच्छाओं का परिष्कार या मार्गान्तीकरण करके व्यक्ति का उपचार किया जाता है और इस प्रकार इसके व्यवहार को उत्तम बनाने का प्रयास किया जाता है

अपने कक्षा शिक्षण को प्रभावी बनाने के लिए आप क्या करेंगे?

पढ़ाने से पहले करें पूर्व-तैयारी यानि संवाद की पूर्व-तैयारी कक्षा में आपके शिक्षण को जीवंत बना देगी। ... .
हर बच्चे के जवाब को दें महत्व कक्षा-कक्ष में चर्चा के दौरान हर बच्चे को भागीदारी देने का प्रयास करें। ... .
अपनी कक्षा में मौजूद बच्चों को समझें ... .
हर बच्चा है ख़ास ... .
बच्चों के सीखने की स्वायत्तता को महत्व दें.

आप अपने शिक्षण को रोचक कैसे बना सकते हैं?

मैनपुरी, भोगांव: विज्ञान विषय के अध्ययन को सुविधाजनक एवं रोचक बनाने के लिए शिक्षण अधिगम सामग्री का उपयोग करना बेहतर माध्यम साबित हो सकता है। बच्चों की स्कूल में गतिविधियों पर निगरानी कर शिक्षक विशेष तौर पर उन्हें पारंगत बना सकते हैं

प्रभावी शिक्षण के लिए क्या आवश्यक है?

अनुक्रम में प्रभावी शिक्षण के लिए आवश्यक पूर्व आवश्यक विशेषताएं हैं:.
शिक्षण जुनून का एक पेशा है: शिक्षण एक पेशा नहीं है; यह एक जुनून है। ... .
बच्चों के साथ काम करना पसंद: ... .
सामग्री क्षमता: ... .
शिक्षण के तरीकों में विशेषज्ञता: शिक्षण प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष हो सकता है। ... .
संचार कौशल:.

प्रभावी शिक्षण से आप क्या समझते हैं?

उत्तर— प्रभावकारी शिक्षण – शिक्षक जिस सीमा तक शिक्षार्थी पर प्रभाव डालने में सफल होता है, वह उसी सीमा तक प्रभावी शिक्षक कहलाता है और शिक्षण उद्देश्य भी उसी सीमा तक पूरा हो जाता है। प्रभावकारी शिक्षण का अर्थ शिक्षक की कार्यक्षमता से है जिस सीमा तक वह अपने कार्य में कुशल हो पाता है उस हद तक उसे प्रभावी माना जाता है।