अभी न होगा मेरा अंत अभी अभी ही तो आया है मेरे वन में मृदुल वसंत अभी न होगा मेरा अंत - abhee na hoga mera ant abhee abhee hee to aaya hai mere van mein mrdul vasant abhee na hoga mera ant

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अभी न होगा मेरा अन्त
अभी-अभी ही तो आया है
मेरे वन में मृदुल वसन्त-
अभी न होगा मेरा अन्त

हरे-हरे ये पात,
डालियाँ, कलियाँ कोमल गात!

मैं ही अपना स्वप्न-मृदुल-कर
फेरूँगा निद्रित कलियों पर
जगा एक प्रत्यूष मनोहर

पुष्प-पुष्प से तन्द्रालस लालसा खींच लूँगा मैं,
अपने नवजीवन का अमृत सहर्ष सींच दूँगा मैं,

द्वार दिखा दूँगा फिर उनको
है मेरे वे जहाँ अनन्त-
अभी न होगा मेरा अन्त।

मेरे जीवन का यह है जब प्रथम चरण,
इसमें कहाँ मृत्यु?
है जीवन ही जीवन
अभी पड़ा है आगे सारा यौवन
स्वर्ण-किरण कल्लोलों पर बहता रे, बालक-मन,

मेरे ही अविकसित राग से
विकसित होगा बन्धु, दिगन्त;
अभी न होगा मेरा अन्त।

अभी न होगा मेरा अंत अभी अभी ही तो आया है मेरे वन में मृदुल वसंत काव्य पंक्ति कौनसे कवि की हैं?

कविता का नाम ध्वनि और लेखक का नाम सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' है।

अभी न होगा मेरा अन्त का क्या आशय है?

Answer: 'अभी न होगा मेरा अंत' कवि ने ऐसा इसलिए कहा है, क्योंकि वे बताना चाहते हैं कि अभी अंत नहीं होने वाला है। अभी अभी तो वसंत का आगमन हुआ है जिससे उसका जीवन खुशियों से भर गया है। वह उमंग से भरा हुआ है।

अभी न होगा मेरा अंत के रचयिता कौन है?

अभी न होगा मेरा अन्त / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"

वन में मृदुल वसंत के माध्यम से क्या कहा गया है?

जीवन में आशा से परिपूर्ण सुंदर समय वसंत में वन का खिल जाना। चारों ओर हरियाली छा जाना।