अंग्रेजों ने भारतीय किसानों पर क्या थोपा? - angrejon ne bhaarateey kisaanon par kya thopa?

अगर हम नरेन्द्र मोदी सरकार और नवउदारवादी टिप्पणीकारों पर यकीन करें तो सरकार के विरोध में प्रदर्शन करने वाले एक लाख से अधिक किसान, जिनमें से अधिकांश ने अपने खेतों पर काम करके, फसल पैदा कर और स्थानीय मंडियों में उसे बेचकर जिंदगी गुजारी है, खेती किसानी के बारे में कुछ नहीं जानते और उन्हें शरारती तत्वों द्वारा गुमराह किया जा रहा है. वे यह नहीं महसूस कर रहे हैं कि जो कुछ सरकार कर रही है, उनकी भलाई के लिए कर रही है.

2020 में सरकार द्वारा जिन तीन कृषि कानूनों को इन पर थोपा गया और जिन्हें अभी रोक रखा गया है, उनका मकसद भारत की कृषि अर्थव्यवस्था को नया रूप देना है. नए कानूनों के अनुसार कृषि उत्पादों की खरीद और बिक्री का काम सरकार द्वारा संचालित मंडियों के अलावा ऐसे किसी भी स्थान से किया जा सकता है जहां "उत्पादन, संचयन और संग्रहण’’ हो रहा हो; अब निजी क्षेत्र के लोग पहले से किए गए किसी करारनामे के जरिए किसानों के साथ समझौता कर सकते हैं और आपस में मिलकर कृषि उत्पादों का मूल्य तय कर सकते हैं; और अब सरकार उत्पादों को जमा करने की कोई सीमा व्यापारियों पर नहीं थोप सकती.

मोदी ने इसे ‘‘भारतीय कृषि के इतिहास में ऐतिहासिक क्षण’’ कहा है और उनके इस कदम का अधिकांश अर्थशास्त्रियों ने यह कहते हुए स्वागत किया है कि यह सही दिशा में उठाया गया कदम है. इन अर्थशास्त्रियों में शामिल हैं नीति आयोग के तहत प्रधानमंत्री द्वारा कृषि क्षेत्र के लिए गठित टॉस्क फोर्स के सदस्य अशोक गुलाटी; अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष की मुख्य अर्थशास्त्री गीता गोपीनाथ; और अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष में भारत के लिए कार्यकारी निदेशक सुरजीत भल्ला. विशेषज्ञता और ज्ञान की आड़ में इन कानूनों के पक्ष में जो टिप्पणियां आ रही हैं उनमें एक सवर्ण भद्रता है जिसकी कोशिश इस वर्ग के निहित स्वार्थों पर पर्दा डालना है. एक ऐसे देश में, जहां विभिन्न व्यवसाय मोटे तौर पर पुश्तैनी होते हैं, इसका भी सरोकार पीढ़ी दर पीढ़ी चले आ रहे ज्ञान से है. मोदी सरकार और उनके समर्थकों को ब्राम्हणों को पूजा-पाठ करने या बनियों को पैसे के लेन-देन की कला सिखाने की हिमाकत नहीं करनी चाहिए. (इसी महीने इस पत्रिका ने कांचा इलैया शेफर्ड का एक लेख छापा है जिसमें बताया गया है कि किस तरह कृषि संबंधी ये कानून राजनीतिक सत्ता में सवर्णों की ताकत को और मजबूती दिलाने की सत्ताधारी पार्टी की लंबे समय चली आ रही परियोजना को आगे बढ़ाते हैं.)

कृषि कानूनों को फौरी समाधान बताते हुए ये लोग जो सब्जबाग दिखा रहे हैं उसके उलट हकीकत में ये कानून किसानों को उन सुरक्षा उपायों से वंचित कर देते हैं जिनसे उन्हें पिछली व्यवस्थाओं में न्यूनतम संरक्षण और मदद मिलती रही है. किसानों के सरोकारों से संबंधित एक प्रमुख मुद्दा न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) का है जिसके जरिए चुनी हुई फसलों पर बाजार में आने वाले उतार चढ़ाव से उन्हें सुरक्षा मिलती है. कृषि कानूनों को समाप्त करने की मांग के साथ ही किसानों की एक मांग यह भी है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य को कानूनी अधिकार का रूप दिया जाए.

इन कानूनों के बनाए जाने के समय की विडंबना को भी समझना मुश्किल नहीं है. इन्हें जून 2020 में, जब कोविड-19 महामारी अपने चरम पर थी, एक अध्यादेश के जरिए लाया गया और उसके बाद सितंबर में बेहद हड़बड़ी में संसद में इसे कानूनी जामा पहना दिया गया. जिस समय अध्यादेश लाया गया देश के अंदर विभाजन के बाद का सबसे बड़ा प्रवासन देखा जा रहा था. लाखों की संख्या में मजदूर शहरों से गांवों की ओर लौट रहे थे जहां उनकी आजीविका उसी कृषि क्षेत्र के भरोसे चलती रही है जिनमें ये कानून सुधार लाना चाहते हैं. वे भागने को मजबूर हुए थे क्योंकि कारपोरेट द्वारा संचालित अर्थव्यवस्था विफल साबित हुई थी और अब कृषि कानूनों के जरिए उसी अर्थव्यवस्था का कृषि क्षेत्र में प्रवेश कराया जा रहा है.

उत्तर - सन् 1793 में अंग्रेजों ने बंगाल प्रांत से राजस्व वसूलने के लिए नई भूमि व्यवस्था लागू की , जिसे स्थाई बन्दोबस्त के नाम से जाना जाता है । इसके सूत्रधार लार्ड कार्नवालिस थे । कार्नवालिस ने फैसला किया कि भू - राजस्व की वसूली जमींदारों के हाथ हो । यदि कोई जमींदार राजस्व वसूलने में सक्षम न हो तो उसे पद से मुक्त कर नये जमींदार की नियुक्ति कर दी जाए । बार - बार राजस्वउत्तर निर्धारण से मुक्ति पाने के लिए कार्नवालिस ने 1789-90 में देय भू - राजस्व के आधार पर जमींदारों को अगले दस सालों के लिए जमीन का मालिकाना हक दे दिया । अब वे जमीन की खरीदी बिक्री और लगान नहीं पटाने पर किसानों को बेदखल भी कर सकते थे । इस कानून की सबसे बड़ी कमी यह थी कि इसमें लगान को कृषि के विकास और उत्पादन में वृद्धि या घटने को अनदेखा कर दिया गया था । इससे जमींदारों को तो फायदा हुआ पर सरकार और किसानों को इससे अधिक लाभ न हो सका । 

( 2 ) अंग्रेजी शासन के समय भारत में संचार और परिवहन के साधन में क्या - क्या परिवर्तन आए ?  

उत्तर-अंग्रेजी शासन के समय भारत में संचार और परिवहन के क्षेत्र में कई नये अध्याय जुड़े । अंग्रेजों के लिए सम्पूर्ण भारत में अपने व्यापार के विस्तार व उसके कुशल संचालन के लिए विस्तृत परिवहन व्यवस्था की आवश्यकता थी इसलिए उन्होंने पूरे भारत में सड़क व रेल सेवाओं का विस्तार आरंभ किया । भारत में रेल सेवा की शुरुआत एक क्रांतिकारी परिवर्तन था । डलहौजी के प्रयासों से सन् 1853 में भारत में पहली रेलगाड़ी बम्बई से थाणे के बीच चली थी । भारत के प्रमुख महानगरों व व्यापारिक नगरों को बन्दरगाहों से जोड़ा गया । परिवहन और संचार के साधनों में हुए विकास के कारण लोग निकट आने लगे । सन् 1853 में भारत में टेलीग्राम सुविधा प्रारंभ हुई और डाक व्यवस्था में भी सुधार किया गया । 

( 3 ) अंग्रेजों की नई शिक्षा व्यवस्था का भारत पर क्या प्रभाव पड़ा ? 

उत्तर - भारत में शिक्षा के विकास के लिए सन् 1813 में मैकाले की सलाह पर नई शिक्षा नीति लागू की गई । इसमें मुख्य रूप से शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी को बनाना तथा मानसिकता को शासन के पक्ष में करना था । किन्तु नई शिक्षा नीति का भारतीय समाज पर गहरा प्रभाव पड़ा । जो निम्न है-

 ( 1 ) शिक्षा के प्रति लोगों की जागरुकता बढ़ी ।

 ( 2 ) भारतीय ज्ञान - विज्ञान के क्षेत्र में नये विचारों का जन्म हुआ 

( 3 ) लोग अंग्रेजी साहित्य व देश दुनिया की घटनाओं से परिचित होने लगे । 

( 4 ) राष्ट्रीयता की भावना प्रबल हुई । 

( 5 ) बेरोजगारी दूर होने लगी ।

( 6 ) समाज में व्याप्त अंधविश्वास व रूढ़ियों के विरोध में कई सामाजिक आन्दोलन और सुधार कार्य हुए ।

( 7 ) स्वतंत्रता , समानता और लोकतांत्रिक विचारों का जन्म हुआ । 

( 4 ) भारत के प्राचीन उद्योग - धंधे क्यों बन्द हो गए ? 

उत्तर- भारत के प्राचीन उद्योग - धंधों के बन्द होने के कारण निम्न हैं -

1. कच्चे माल की कमी - अंग्रेज व्यापारी अत्यधिक मात्रा में भारत से कच्चे माल खरीद कर इंग्लैण्ड ले जाते थे , अतः भारतीय उद्योगों के लिए कच्चे माल की समस्या उत्पन्न हो जाती थी।

2. पूँजी की कमी - भारतीय उद्योगपतियों के पास धन की कमी थी । अंग्रेज आर्थिक रूप से अधिक सक्षम थे । 

3. अंग्रेजों से प्रतिस्पर्धा - अंग्रेजों द्वारा तैयार माल सस्ते व आकर्षक होते थे , अत : भारतीय उद्योगपति उनसे प्रतिस्पर्धा करने में विफल रहे ।

4. तकनीकी अभाव - इंग्लैण्ड में औद्योगिक क्रांति के फलस्वरूप तकनीकी ज्ञान का भण्डार था । जबकि भारतीय उद्योग परम्परागत ढंग से उत्पादन करते थे , जिसमें लागत अधिक पड़ता था । 

5. उचित प्रबंधन - परिवहन की समुचित व्यवस्था न होना जैसी समस्या भी प्राचीन भारतीय उद्योगों की थी । 

( 5 ) भारतीय किसानों की दशा क्यों दयनीय हो गई थी ? 

उत्तर - भारतीय किसानों पर अंग्रेजों द्वारा थोपा गया राजस्व कर बहुत भारी और अनिवार्य था । अंग्रेजों के कारिन्दें अन्यायपूर्वक किसानों से कर वसूल करते थे । यहाँ तक की अकाल जैसी प्र भीषण परिस्थिति में भी किसानों को कर चुकाना ही पड़ता था । इसके लिए वे साहूकारों और जमींदारों से ब्याज पर पैसा लेते थे । नियत तिथि तक कर्ज चुकता नहीं करने पर उनकी जमीन साहूकारों द्वारा हड़प ली जाती थी । परिणामस्वरूप भारतीय किसानों की आर्थिक दशा अति दयनीय हो गई । 

( 6 ) भारतीय दस्तकारी एवं शिल्पकलाओं के नाम लिखिए ।

उत्तर- कपड़े बूनना , जूते बनाना , मिट्टी के बर्तन बनाना , लोहे से औजार बनाना , बाँस से विभिन्न वस्तुएँ बनाना , दोना ,पत्तल , मिट्टी , लोहे और लकड़ियों पर विभिन्न प्रकार आकृतिबनाना , भवन व मंदिरों में विभिन्न आकृति बनाना , आदि प्रमुख दस्तकारी व शिल्प कला है। 

( 7 ) भारत में प्रकाशित होने वाले कोई चार समाचार पत्रों के नाम लिखिए । 

उत्तर- भारत में प्रकाशित होने वाले चार समाचार पत्रों के नाम- ( i ) द हिन्दू , ( ii ) अमृत बाजार पत्रिका , ( iii ) द इंडियन में मिरर , ( iv ) इन्दू ।

( 8 ) छत्तीसगढ़ से प्रकाशित होने वाले कोई चार समाचार म पत्रों के नाम लिखिए ।

उत्तर- छत्तीसगढ़ से प्रकाशित होने वाले समाचार पत्रों के नाम- ( i ) छत्तीसगढ़ - मित्र , ( ii ) प्रजा हितैषी , ( iii ) महाकौशल ,  ( iv ) आजकल ।

( 9 ) ब्रिटिश भारत के दो  प्रमुख बन्दरगाहों के नाम  लिखिए । 

उत्तर - ब्रिटिश भारत के दो प्रमुख बन्दरगाहों के नाम हैं –

( 1 ) मद्रास बन्दरगाह 

(2) कोलकाता बन्दरगाह । 

(10) अंग्रेजों की नीति का भारतीय दस्तकारी एवं शिल्पकला पर क्या प्रभाव पड़ा ?

 उत्तर- अंग्रेजों की कुटिल नीति के कारण भारतीय दस्तकारी व शिल्पकला पूरी तरह चौपट होने लगी । अंग्रेजों ने इंग्लैण्ड से आने वाली वस्तुओं को तटकर और चुंगीकर से पूर्णतः मुक्त कर दिया , जिसके फलस्वरूप वस्तुएँ बहुत सस्ती हो गईं । भारतीय दस्तकारों व शिल्पियों द्वारा बनाई गई वस्तुएँ महँगी होती थीं , क्योंकि वे वस्तुओं का निर्माण कम तादाद और हाथों से बनाते थे , अत : उसका लागत मूल्य बढ़ जाता था । इसके बावजूद उन्हें अपनी वस्तु सस्ती बेचने पड़ती थी । इस प्रकार अंग्रेजों के सामने प्रतिस्पर्धा में ज्यादा समय तक टिक न सके और अपना व्यवसाय धीरे - धीरे छोड़ने लगे । इसके कारण उनकी बस्तियाँ उजड़ने लगी । ' ढाका ' जिसे उस समय वस्त्र उद्योग का प्रमुख केन्द्र होने के कारण मैनचेस्टर कहा जाता था , नष्ट हो गया । मुर्शिदाबाद और सूरत के उद्योग भी बंद हो गए । कारीगर बेरोजगार हो गए । इस प्रकार कहा जा सकता है कि अंग्रेजों का स्वार्थी नीति ने भारतीय दस्तकारी व शिल्पकला की कमर तोड़ने में कोई कसर न छोड़ी । 

( 11 ) ब्रिटिश कम्पनी की नीतियों का भारतीय वन - क्षेत्रों पर क्या प्रभाव पड़ा ? 

उत्तर - ब्रिटिश कम्पनी ने भारत में विद्यमान प्राकृतिक संसाधनों को अत्यधिक नुकसान पहुँचाया । वन क्षेत्रों में कई नई मिलों व कारखानों की स्थापना की गई । भारतीय वनों में उपलब्ध कीमती व महत्वपूर्ण लकड़ियों की अंधाधुंध कटाई की गई । उसे भारत से इंग्लैंण्ड भेजा जाने लगा । लकड़ियों का उपयोग अविवेकपूर्ण किया जाने लगा । धीरे - धीरे वन क्षेत्र कम होने लगे ।अंग्रेजों ने भारतीय संसाधनों का निर्ममतापूर्वक दोहन किया । उनका दिन उद्देश्य अधिकाधिक लाभ कमाना था । 

( 14 ) ब्रिटिश शासन का भारतीय संचार एवं परिवहन व्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ा ? 

उत्तर - यह सत्य है कि अंग्रेजों ने अपने स्वार्थों की पूर्ति के में लिए संचार व परिवहन व्यवस्था का विस्तार किया लेकिन इससे भारत में नये अध्याय का प्रारंभ हुआ । सभी बड़े महानगरों व औद्योगिक नगरों को सड़क मार्ग द्वारा बन्दरगाहों से जोड़ा गया । भारत में रेल सेवा का शुभारम्भ भी किया गया । मुम्बई से थाणे के बीच पहली बार रेल चली । सन् 1853 में भारत में टेलीग्राम सुविधाओं का श्रीगणेश हुआ । डाक सेवा में भी कई महत्वपूर्ण बदलाव किया गया । समाचार पत्रों ने भी शासन की नीतियों को समझने व एकता को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की ।

( 15 ) समाचार - पत्र जनता की अपेक्षाओं को शासन तक किस तरह पहुँचाते हैं ?

उत्तर - समाचार पत्रों ने जनता की अपेक्षाओं का शासन तक पहुँचाने का भरसक प्रत्यन्न किया । शासन की कुटिल नीतियों को लोगों तक पहुँचाने व जनमत तैयार करने में समाचार पत्रों की भूमिका महत्वपूर्ण थी । समाचार पत्रों को , लोकवाणी को मुखरित करने के कारण तात्कालिक वायसराय ने वर्नाक्युलर प्रेस एक्ट पारित कर समाचार पत्रों को नियंत्रित कर दिया । इस समय देश में द हिन्दू , द इण्डियन मिरर , अमृत बाजार पत्रिका , केसरी , मराठा , स्वदेश मिलन , प्रभाकर आदि समाचार पत्र प्रकाशित हो रहे थे । 

( 16 ) संचार और परिवहन के साधनों का विकास होने से लोगों में राष्ट्रीयता की भावना का विकास हुआ । इस बात के समर्थन में अपने तर्क दीजिए ।

उत्तर - वर्तमान युग संचार क्रांति का युग है । इस युग में सर्वत्र मीडिया ( संचार के साधनों ) का बोलबाला है । यदि मीडिया चाहे तो हवा का रुख बदल दे । राष्ट्रीय भावना के विकास में मीडिया की भूमिका सर्वोपरि है । इसके लिए मीडिया को उपभोक्तावाद को भूलकर राष्ट्रवाद की भावना से ओत - प्रोत होना पड़ेगा । उनके द्वारा ऐसे समाचारों का प्रकाशन व प्रसारण किया जाना चाहिए जो राष्ट्रीयता की भावना को बढ़ाए व मजबूत करे । सभी सम्प्रदायों के मध्य परस्पर बंधुत्व की भावना जागे । समाचार के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण हो केवल सनसनीखेज बनाने के लिए घटनाओं को मिर्च मसाला लगाकर न परोसे वरन् देश प्रेम राजस्व होगा । इस व्यवस्था में फसल और उसके मूल्य के घटने बढ़ने से राजस्व का कोई सम्बन्ध न था । प्रारंभिक चरण में इसे बम्बई व मद्रास राज्य में 30 साल के लिए लागू किया गया था । लेकिन किसानों से सीधे समझौते के बाद भी उनका शोषण कम न हुआ । 

( ब ) छत्तीसगढ़ में भू - राजस्व व्यवस्था - छत्तीसगढ़ में प्रचलित राजस्व व्यवस्था के दोषों को दूर करने तथा मितव्ययी बनाने का प्रयास किया गया । सम्पूर्ण छत्तीसगढ़ को कई परगनों में बाँटा गया और कमाविसदारों की नियुक्तियाँ की गईं हर परगना में राजस्व वसूल करने के लिए अमीर , पण्डया और राजस्व अधिकारियों की नियुक्ति हुई । अंग्रेज अधिकारियों ने मराठा काल में प्रचलित पटेल पद को समाप्त कर दिया और उसके स्थान पर ' गौटिया ' पद बनाया । उस समय गौरिया वर्ष में तीन किश्तों में लगान वसूल किया करते थे । लगान का निर्धारण किसान के कुल जमीन के आधार पर किया जाता था । गौटिया अपने गाँव से लगान वसूली कर सरकारी खजाने जमा करता था ।

( स ) महलवाड़ी व्यवस्था - इस व्यवस्था में महल का आशय पूरे गाँव ' से है । सन् 1833 से 43 के बीच अंग्रेजों ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में एक नई लगान नीति लागू की जिसमें पूरे गाँव से लगान वसूलने की व्यवस्था की गई थी । इस व्यवस्था को महलवाड़ी व्यवस्था के नाम से जाना जाता है । इस व्यवस्था के तहत लगान जमा करने की जिम्मेदारी संयुक्त रूप से पूरे गाँव की थी । इसमें रैय्यत बन्दोबस्त की तरह कृषि खर्च और किसानों के भरण - पोषण का खर्च निकालकर जो बचता था , उसका लगभग 50 % हिस्सा लगान के रूप में वसूल किया जाता था । बाद में इस व्यवस्था को पंजाब , मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ में भी लागू किया गया था ।

 परीक्षोपयोगी अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर 

प्रश्न 1.अंग्रेजों द्वारा लागू किये गए प्रमुख राजस्व नीतियों के नाम लिखिए । 

उत्तर - राजस्व की नीतियाँ लागू की गई थीं- ( 1 ) जमींदारी , ( 2 ) रैय्यतवाड़ी , ( 3 ) महलवाड़ी ।

 प्रश्न 2 सत्य / असत्य लिखिए

1.ब्रिटिश कम्पनी की भू - राजस्व व्यवस्था से भारतीय किसानों की हालत में सुधार हुआ(असत्य)

( 2 ) इंग्लैण्ड से आने वाली वस्तुएँ चुंगी कर एवं तटकर से मुक्त थी । (सत्य)

( 3 ) भारत में नई मिलों व कारखानों को स्थापना से वन क्षेत्रों का विकास हुआ है ।(असत्य)

( 4 ) अंग्रेजी शिक्षा के प्रभाव से भारतीय आधुनिक विचारों के सम्पर्क में आए ।(सत्य)

( 5 ) पं माधव राव सप्रे को छत्तीसगढ़ पत्रकारिता का जनक कहा जाता है । (सत्य) 

प्रश्न 3. स्थाई बन्दोबस्त कानून कब और कहाँ लागू किया गया ?

उत्तर - सन् 1789. बंगाल में ।

 प्रश्न 4.छत्तीसगढ़ के गांवों में लगान वसूलने के लिए किसकी नियुक्ति की गई थी ? 

उत्तर - गौटिया । 

प्रश्न 5. किसे भारत का मेन - चेस्टर कहा जाता था ? 

उत्तर- ढाका

प्रश्न 6.आदिवासी किस विधि से खेती करते हैं ? 

उत्तर - झूमिंग विधि ( झूम खेती ) । 

प्रश्न 7. भारत के प्रमुख वस्त्र उद्योग केन्द्रों के नाम लिखिए ।

उत्तर - ढाका , कृष्ण नगर , वाराणसी , लखनऊ , आगरा , मुल्तान , लाहौर , सूरत , भड़ौच , अहमदाबाद आदि भारत के प्रमुख वस्त्र उद्योग केन्द्र थे । 

प्रश्न 8 किन शहरों में जहाज निर्माण उद्योग स्थापित किया गया था ? 

उत्तर- गोवा , सूरत , मछलीपट्टनम , चटगाँव , डाका आदि जहाज निर्माण के प्रमुख केन्द्र थे । 

प्रश्न 9. भारत में टेलीग्राम सुविधा कब प्रारंभ हुई ?

उत्तर- सन् 1853 में ।

प्रश्न 10 प्राचीन शिक्षा व्यवस्था में किन विषयों की पढ़ाई होती थी ?

उत्तर - प्राचीन शिक्षा व्यवस्था में साहित्य , धर्मशास्त्र , कानून , तर्कशास्त्र और ज्योतिष की पढ़ाई होती थी । 

प्रश्न 11.नई शिक्षा नीति का जनक किसे माना जाता है ?

उत्तर - लाई मैकाले । 

अंग्रेजों ने भारतीय किसानों पर क्या थोपा? - angrejon ne bhaarateey kisaanon par kya thopa?



प्रश्न 12. रायपुर के सबसे पुराने विद्यालय का नाम बताइये । 

उत्तर - प्रो . जयनारायण पाण्डेय शासकीय बहुउद्देशीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय , रायपुर । 

प्रश्न13 : छत्तीसगढ़ का सबसे पुराना महाविद्यालय कौन सा है . इसकी स्थापना कब की गई थी ?

 उत्तर - छत्तीसगढ़ महाविद्यालय , सन् 1938 

प्रश्न 14. प्राचीन भारत में प्रकाशित होने वाले पाँच समाचार पत्रों के नाम लिखिए । 

उत्तर- द हिन्दू द इण्डियन मिरर केसरी , मराठा और प्रभाकर ।

प्रश्न 15.छत्तीसगढ़ का पहला समाचार पत्र का नाम व प्रकाशन स्थल का नाम बताइये । 

उत्तर - छत्तीसगढ़ का पहला समाचार पत्र ' छत्तीसगढ़ मित्र ' पेन्ड्रा से प्रकाशित होता था । 

प्रश्न 16. छत्तीसगढ़ का पहला राजकीय समाचार पत्र का नाम बताइये , यह कब और कहाँ से प्रकाशित होता था ? 

उत्तर - छत्तीसगढ़ का पहला समाचार पत्र ‘ प्रजा हितैषी ' था । इसका प्रकाशन सन् 1889-90 में राजनांदगाँव से होता था । 

प्रश्न 17 छत्तीसगढ़ से प्रकाशित अन्य समाचार पत्रों के नाम लिखिए । 

उत्तर - हिन्द केसरी , छत्तीसगढ़ विकास , उत्थान , आलोक , महाकौशल कांग्रेस पत्रिका , आजकल , छत्तीसगढ़ केसरी आदि उस समय के प्रमुख समाचार पत्र हैं । 

प्रश्न 18. प्राचीन शिक्षा पद्धति का संक्षिप्त परिचय दीजिए । उत्तर भारत में नई शिक्षा नीति लागू होने के पूर्व प्राचीन शिक्षा पद्धति प्रचलित थी । इसमें संस्कृत , अरबी , फारसी , व्याकरण साहित्य , दर्शनशास्त्र , धर्मशास्त्र , तर्कशास्त्र , अर्थशास्त्र और ज्योतिष शास्त्र की शिक्षा दी जाती थी । नालंदा , और तक्षशिला उस समय के प्रसिद्ध गुरुकुल थे । जहाँ विदेशों से भी लोग अध्ययन करने आते थे । प्राचीन भारत की शिक्षा मूलतः धर्म , अध्यात्म और ज्योतिष शास्त्रों तक केन्द्रित हुआ करती थी । तब भारत अपने आध्यात्मिक ज्ञान के लिए विश्व विख्यात था और उसे विश्व गुरु का दर्जा प्राप्त था । तब शिक्षा का माध्यम क्रमश : संस्कृत , पालि , प्राकृत भाषा थी । 

प्रश्न 19.अंग्रेजों की वन नीति ने आदिवासी जीवन को किस प्रकार प्रभावित किया ?

उत्तर - अंग्रेजों ने नई नीति के तहत वन प्रदेशों में कई मिलों व कारखानों की स्थापना की और वृक्षों की अंधाधुंध कटाई प्रारंभ कर दी । वे आदिवासियों से बेगार करवाते थे और आदिवासियों में प्रचलित झूम खेती पर पूर्णतः प्रतिबंध लगा दिया । इस नीति ने आदिवासियों से उनकी आजीविका छीन ली । आदिवासी वनों पर अपना अधिकार मानते थे । उसकी पूजा करते थे , वनों में ही उनके देवी - देवता रहते थे । अंग्रेजों ने उनका भी सम्मान नहीं किया तो आदिवासियों के मन में अंग्रेजी व्यवस्था के प्रति घोर असंतोष का भाव पनपने लगा । 

प्रश्न 20. बन्दोबस्त कानून द्वारा जमींदारों को कौन कौन से अधिकार दिए गए ? 

उत्तर - लार्ड कार्नवालिस द्वारा सन् 1789 में लागू किये गए स्थाई बन्दोबस्त कानून के अनुसार जमींदारों को निम्नलिखित अधिकार दिए गए-

 ( 1 ) जमींदारों को राजस्व वसूलने का अधिकार दिया गया ।

 ( 2 ) राजस्व वसूलने का यह अधिकार उन्हें 10 वर्षों के लिए दिया गया । 

( 3 ) एक तरह से जमींदारों को 10 वर्षों के लिए जमीन का मालीकाना हक दे दिया गया ।

 ( 4 ) जमीन की खरीदी - विक्री का अधिकार भी जमींदारों के पास था । 

( 5 ) यदि कोई किसान निर्धारित अवधि में राजस्व नहीं जमा कर पाता या करता तो उसे जमीन से बेदखल करने का अधिकार भी जमींदारों को दे दिया गया था ।

( 6 ) लगान वसूलने के लिए इन्हें अंग्रेजों से सहायता मांगने का हक प्राप्त था । 

प्रश्न 21.  अंग्रेजों के शासनकाल में छत्तीसगढ़ में शिक्षा का प्रसार किस तरह हुआ ?

 उत्तर - ब्रिटिश शासनकाल में छत्तीसगढ़ में शिक्षा व्यवस्था पर विशेष ध्यान दिया गया । मैकाले की नई शिक्षा नीति के तहत सन् 1864 में रायपुर में एक मीडिल स्कूल प्रारंभ किया गया , जिसमें छात्र - छात्राएँ एक साथ पढ़ते थे । 20 वर्ष बाद उस विद्यालय को हाईस्कूल बना दिया गया । इस विद्यालय को वर्तमान में हम सब प्रो . जयनारायण पाण्डेय शा . बहुउद्देश्यीय उ . मा . विद्यालय के नाम से जानते हैं । देशी रियासतों के राजकुमारों को शिक्षित करने के उद्देश्य से सन् 1882 में राजकुमार कॉलेज की स्थापना की गई । वर्तमान में इस कॉलेज में सभी लोग पढ़ सकते हैं । इनकी परीक्षाएँ इण्डियन कौंसिल ऑफ एजुकेशन नई दिल्ली से संचालित होती थी । जन सामान्य में उच्च शिक्षा के विकास के लिए रायपुर में छत्तीसगढ़ के पहले महाविद्यालय की नींव रखी गई । इस महाविद्यालय की स्थापना सन् 1938 में की गई थी । इसका नाम छत्तीसगढ़ महाविद्यालय रखा गया । वर्तमान में यह स्वशासी छत्तीसगढ़ महाविद्यालय के नाम से जाना जाता है , और बैरन बाजार में स्थित है ।

प्रश्न 22 .ब्रिटिश काल में भारतीय पत्रकारिता का विकास किस प्रकार हुआ ?

उत्तर - भारत के गोवा में 1550 में प्रेस की स्थापना हुई थी । 29 जनवरी सन् 1780 वह स्वर्णिम दिवस था , जिस दिन एक गैर भारतीय द्वारा पत्र प्रकाशित हुआ । ' बंगाल गजट एण्ड कैलकटा एडवर्टाइजर ' नाम के सम्पादक व संस्थापक अगस्टस हिकी थे । इंडियन गजट , बंगाल जर्नल , इंडियन वर्ल्ड , बंगाल गजट , संवाद कौमदी तब के प्रमुख समाचार पत्र थे । अंग्रेजों के शासन काल में भी भारत में बंगला , हिन्दी व अंग्रेजी में समाचार प्रकाशित होने लगे थे । लेकिन इसकी व्यापक लोकप्रियता और प्रभाव से सचेत होकर तत्कालीन वायसराय लिटन ने वर्नाक्यूलर एक्ट पारित कर समाचार पत्रों के अधिकारों व स्वतंत्रता को सीमित कर दिया।

 ब्रिटिश भारत में प्रकाशित होने वाले प्रमुख समाचार पत्र - द हिन्दू , द इण्डियन मिरर , अमृत बाजार पत्रिका , केसरी , मराठा , स्वदेश मिलन , प्रभाकर , इन्दु प्रकाश आदि थे । 

प्रश्न 23.छत्तीसगढ़ में पत्रकारिता के विकास का वर्णन कीजिए ।

उत्तर - छत्तीसगढ़ में पत्रकारिता को जन्म देने वाले महान् पत्रकार पं . माधवराव सप्रे थे । उन्होंने 1900 में पत्रकारिता प्रारंभ की । छत्तीसगढ़ का प्रथम समाचार पत्र ' छत्तीसगढ़ मित्र ' था । इसका प्रकाशन पेन्ड्रा से होता था । राजकीय समाचार पत्र के रूप में ' प्रजा हितैषी ' का प्रकाशन सन् 1880-90 से प्रारंभ हुआ । तब यह पत्र राजनांदगाँव रियासत से प्रकाशित होता था । इसके अतिरिक्त हिन्दी केसरी , छत्तीसगढ़ विकास , उत्थान , आलोक , महाकौशल , कांग्रेस पत्रिका , आजकल , छत्तीसगढ़ केसरी , अग्रदूत आदि उस समय के प्रमुख समाचार पत्र थे । इन पत्र - पत्रिकाओं से जनता में पर्याप्त चेतना व जागरुकता आयी ।

प्रश्न 24. राष्ट्रीय जागृति लाने में समाचार पत्रों की भूमिका पर प्रकाश डालिए ।

उत्तर - समाचार पत्र अभिव्यक्ति और सूचनाओं का सर्वोत्तम माध्यम है । भारत में प्रकाशित समाचार पत्रों ने देश की जनता को जगाने का भरसक प्रयत्न किया । उन्होंने सरकारी नीतियों का जमकर विरोध किया । जनता की अपेक्षाओं का शासन तक पहुँचाने में कोई कसर न छोड़ी । तब तत्कालीन वायसराय लिटन ने वर्नाक्युलर प्रेस एक्ट पारित कर समाचार पत्रों के अधिकारों व स्वतंत्रता को सीमित कर दिया । लेकिन जंग फिर भी जारी रही । समाचार पत्रों ने देश - दुनिया की खबरों के माध्यम से सभी को एक - दूसरे के निकट ला दिया । धीरे - धीरे लोगों में अंग्रेजी शासन के प्रति आक्रोश की भावना भड़कने लगी । भारत को स्वतंत्र कराने के सपनों ने जन्म लिया । और यह बात निर्विवाद रूप से कहा जा सकता है कि देश की आजादी की पहली लड़ाई ( 1857 - स्वतंत्रता संग्राम ) की शंखनाद करने में समाचार पत्रों ने विशेष भूमिका निभाई ।

अंग्रेजों ने भारतीय किसानों पर क्या Thopa?

1857 से 50 साल पहले ही अंग्रेजों ने किसानों पर नील की खेती करना थोप दिया था. नील यानी ब्लू डाई की तब यूरोप में जबरदस्त मांग होती थी. सफेद कपड़ों और सफेद मकानों से भद्र लोगों की मुहब्बत के कसीदों से इतिहास भरा पड़ा है. हां, इस सफेद रंग को चमकदार बनाने के लिए नील की खेती में भारत के किसानों की पीढ़ियां बर्बाद हो गयीं.

जमींदारों ने अंग्रेजी सरकार का विरोध क्यों किया?

(i) जमींदार अंग्रेजी शासन का विरोध क्यों कर रहे थे? उत्तर-कई जमींदारों की जमींदारी अंग्रेजी शासन की वजह से छिन गई थी। उन्हें उम्मीद थी कि अंग्रेजों के भारत से चले जाने पर उनकी खोयी हुई जमींदारी वापस मिल जाएगी। इसलिए वे भी अंग्रेजी शासन का विरोध कर रहे थे।

1857 के विद्रोह का भारत पर क्या प्रभाव पड़ा?

1857 के विद्रोह का प्रभाव | Impact Of Revolt Of 1857 1858 के भारत सरकार अधिनियम के तहत, भारतीय मामलों के नियंत्रण में द्वैतवाद (क्राउन एंड कंपनी) समाप्त हो गया और भारत पर प्रशासनिक नियंत्रण ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी से क्राउन को स्थानांतरित कर दिया गया।

1857 के विद्रोह के बाद अंग्रेजों ने सेना में क्या बदलाव किया?

1857 की क्रांति के बाद ब्रिटिश अधिकारी पहले से ज्‍यादा सजग हो गए और उन्होंने आम भारतीयों के साथ संवाद बढ़ाने की कोशिशें शुरू कर दीं. इससे पहले उन्‍होंने विद्रोह करने वाली सेना को भंग कर दिया. प्रदर्शन की क्षमता के आधार पर सिखों और बलूचियों की सेना की नई पलटनें बनाई गईं. ये सेना भारत की स्वतंत्रता तक कायम रही.