अजातशत्रु ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित हिन्दी नाटक है, जिसका प्रकाशन सन् १९२२ ई॰ में भारती भंडार, इलाहाबाद से हुआ था।[1] Show परिचय[संपादित करें]'अजातशत्रु' प्रसाद जी के नाट्य लेखन में कई दृष्टि से आगे बढ़ा हुआ कदम है। इससे पहले वे छोटे एकांकी नाटकों के अतिरिक्त 'राज्यश्री' एवं 'विशाख' जैसे नाटक भी लिख चुके थे। उनसे प्राप्त अनुभव के परिणामस्वरूप 'अजातशत्रु' भावात्मकता एवं अभिनय दोनों की दृष्टि से विशिष्ट बन पड़ा है। इस नाटक के सन्दर्भ में डॉ॰ सत्यप्रकाश मिश्र ने लिखा है :
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सन्दर्भ[संपादित करें]
बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]अजातशत्रु नाटक का प्रकाशन वर्ष क्या है?जयशंकर प्रसाद कृत नाटक 'अजातशत्रु' का प्रकाशन 1922 ई. में हुआ था।
अजातशत्रु नाटक के लेखक कौन है?अजातशत्रु जो जयशंकर प्रसाद का नाटक है।
अजातशत्रु का दूसरा नाम क्या था?उसके बचपन का नाम 'कुणिक' था। अजातशत्रु ने मगध की राजगद्दी अपने पिता की हत्या करके प्राप्त की थी। यद्यपि यह एक घृणित कृत्य था, तथापि एक वीर और प्रतापी राजा के रूप में उसने ख्याति प्राप्त की थी। अपने पिता के समान ही उसने भी साम्राज्य विस्तार की नीति को अपनाया और साम्राज्य की सीमाओं को चरमोत्कर्ष तक पहुँचा दिया।
अजातशत्रु नाटक की मूल संवेदना क्या है?अजातशत्रु का मूलाधार भी अंतर्द्वन्द्व ही है। मगध,कोशल और कौशांबी में प्रज्वलित विरोध की अग्नि इस पूरे नाटक में फैली हुई है। उत्साह और शौर्य से परिपूर्ण इस नाटक में चरित्रों का सजीव चित्रण किया गया है। इसके प्रमुख पात्र मानवीय गुणों से ओतप्रोत है।
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