सुलह-ए-कुल का अर्थ क्या है?April 17, 2021 Show
(A) सभी धर्म समान हैं Question Asked : Delhi Forest Guard Exam 2021 Answer : सार्वभौमिक शांतिExplanation : सुलह-ए-कुल का अर्थ 'सार्वभौमिक शांति' है। अकबर की धार्मिक नीति का मूल उद्देश्य 'सार्वभौमिक सहिष्णुता' थी। इसे 'सुलह-ए-कुल' की नीति अर्थात् सभी के साथ शांतिपूर्ण व्यवहार का सिद्धांत भी कहा जाता था। अकबर ने इस्लामी सिद्धांत के स्थान पर सुलह-ए-कुल की नीति अपनाई। सुलह-ए-कुल की विचारधारा में उसके शिक्षक अब्दुल लतीफ की महत्वपूर्ण भूमिका थी।....अगला सवाल पढ़े Useful for : UPSC, State PSC, IBPS, SSC, Railway, NDA, Police Exams Latest QuestionsI’m a freelance professional with over 10 years' experience writing and editing, as well as graphic design for print and web. अकबर विषय सूची
अकबर अपने चाचा अस्करी के यहाँ कुछ दिनों कंधार में और फिर 1545 ई. से काबुल में रहा। हुमायूँ की अपने छोटे भाइयों से बराबर ठनी ही रही, इसलिये चाचा लोगों के यहाँ अकबर की स्थिति बंदी से कुछ ही अच्छी थी। यद्यपि सभी उसके साथ अच्छा व्यवहार करते थे और शायद दुलार प्यार कुछ ज़्यादा ही होता था। किंतु अकबर पढ़ लिख नहीं सका। वह केवल सैन्य शिक्षा ले सका। उसका काफ़ी समय आखेट, दौड़ व द्वंद्व, कुश्ती आदि में बीता तथा शिक्षा में उसकी रुचि नहीं रही। जब तक अकबर आठ वर्ष का हुआ, जन्म से लेकर अब तक उसके सभी वर्ष भारी अस्थिरता में निकले थे, जिसके कारण उसकी शिक्षा-दीक्षा का सही प्रबंध नहीं हो पाया था। अब हुमायूँ का ध्यान इस ओर भी गया। अक्षरारम्भप्रथा के अनुसार चार वर्ष, चार महीने, चार दिन पर अकबर का अक्षरारम्भ हुआ और मुल्ला असामुद्दीन इब्राहीम को शिक्षक बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। कुछ दिनों के बाद जब पाठ सुनने की बारी आई, तो वहाँ कुछ भी नहीं था। हुमायूँ ने सोचा, मुल्ला की बेपरवाही से लड़का पढ़ नहीं रहा है। लोगों ने भी जड़ दिया- "मुल्ला को कबूतरबाज़ी का बहुत शौक़ है। उसने शागिर्द को भी कबूतरों के मेले में लगा दिया है।" फिर मुल्ला बायजीद शिक्षक हुए, लेकिन कोई भी फल नहीं निकला। दोनों पुराने मुल्लाओं के साथ मौलाना अब्दुल कादिर के नाम को भी शामिल करके चिट्ठी डाली गई। संयोग से मौलाना का नाम निकल आया। कुछ दिनों तक वह भी पढ़ाते रहे। अकबर की मृत्यु से कुछ समय पहले का चित्र-1605 ई. काबुल में रहते अकबर को कबूतरबाज़ी और कुत्तों के साथ खेलने से फुर्सत नहीं थी। हिन्दुस्तान में आया, तब भी वहीं रफ्तार बेढंगी रही। मुल्ला पीर मुहम्मद बैरम ख़ाँ के वकील को यह काम सौंपा गया। लेकिन अकबर ने तो कसम खा ली थी कि "बाप पढ़े न हम"। कभी मन होता तो मुल्ला के सामने किताब लेकर बैठ जाता। हिजरी 863 (1555-56 ई.) में मीर अब्दुल लतीफ़ कजवीनी ने भी भाग्य परीक्षा की। फ़ारसी तो मातृभाषा ठहरी, इसलिए अच्छी साहित्यिक फ़ारसी अकबर को बोलने-चालने में ही आ गई थी। कजबीनी के सामने दीवान हाफ़िज शुरू किया, लेकिन जहाँ तक अक्षरों का सम्बन्ध था, अकबर ने अपने को कोरा ही रखा। मीर सैयद अली और ख्वाजा अब्दुल समद चित्रकला के उस्ताद नियुक्त किये गए। अकबर ने कबूल किया और कुछ दिनों रेखाएँ खींची भी, लेकिन किताबों पर आँखें गड़ाने में उसकी रूह काँप जाती थी। स्मरण शक्ति का धनीअक्षर ज्ञान के अभाव से यह समझ लेना ग़लत होगा कि अकबर अशिक्षित था। आखिर पुराने समय में जब लिपि का आविष्कार नहीं हुआ था, हमारे ऋषि भी आँख से नहीं, कान से पढ़ते थे। इसीलिए ज्ञान का अर्थ संस्कृत में श्रुत है और महाज्ञानी को आज भी बहुश्रुत कहा जाता है। अकबर बहुश्रुत था। उसकी स्मृति की सभी दाद देते हैं। इसलिए सुनी बातें उसे बहुत जल्द याद आ जाती थीं। हाफ़िज, रूमी आदि की बहुत-सी कविताएँ उसे याद थीं। उस समय की प्रसिद्ध कविताओं में शायद ही कोई होगी, जो उसने सुनी नहीं थी। उसके साथ बाकायदा पुस्तक पाठी रहते थे। फ़ारसी की पुस्तकों के समझने में कोई दिक्कत नहीं थी, अरबी पुस्तकों के अनुवाद (फ़ारसी) सुनता था। ‘शाहनामा’ आदि पुस्तकों को सुनते वक़्त जब अकबर को पता लगा कि संस्कृत में भी ऐसी पुस्तकें हैं, तो वह उनको सुनने के लिए उत्सुक हो गया और महाभारत, रामायण आदि बहुत-सी पुस्तकें उसने अपने लिए फ़ारसी में अनुवाद करवाईं। ख़तरनाक शौक‘महाभारत’ को ‘शाहनामा’ के मुकाबले का समझकर वह अनुवाद करने के लिए इतना अधीर हो गया कि संस्कृत पंडित के अनुवाद को सुनकर स्वयं फ़ारसी में बोलने लगा और लिपिक उसे उतारने लगे। कम फुर्सत के कारण यह काम देर तक नहीं चला। अकबर अक्षर पढ़ने की जगह उसने अपनी जवानी खेल-तमाशों और शारीरिक-मानसिक साहस के कामों में लगाई। चीतों से हिरन का शिकार, कुत्तों का पालना, घोड़ों और हाथियों की दौड़ उसे बहुत पसन्द थी। किसी से काबू में न आने वाले हाथी को वह सर करता था और इसके लिए जान-बूझकर ख़तरा मोल लेता था।
टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख
अकबर ने सुलह ए कुल या _____ के सिद्धांत का पालन किया?अकबर ने इस्लामी सिद्धांत के स्थान पर सुलह-ए-कुल की नीति अपनाई। 1582 ई. में उसने सभी धर्मों में सामंजस्य स्थापित करने के लिए 'तौहीद-ए-इलाही' या 'दीन-ए-इलाही' नामक एक नया पंथ प्रवर्तित किया। अकबर ही सुलह-ए-कुल की नीति राजनीतिक उदारता एवं धार्मिक सहनशीलता के साथ-साथ उसके उदारवादी सांस्कृतिक दृष्टिकोण को प्रदर्शित करती है।
सुलह ए कुल का सिद्धांत क्या था?अकबर द्वारा अपनाई गई “सुलह-ए-कुल” (सार्वभौम शांति तथा भाईचारा) की अवधारणा राजनीतिक, उदारता, धार्मिक सहनशीलता, उदारवादी सांस्कृतिक दृष्टिकोण पर आधारित था।
सुलह ए कुल का शाब्दिक अर्थ क्या है?सुलह-ए-कुल का अर्थ सर्वधर्म मैत्री होता है. ... वहीं, यही सूफियों का पहला सिद्धांत भी रहा है. एक बार सूफी शायर रूमी के पास एक व्यक्ति आया और कहने लगा कि एक मुसलमान एक ईसाई से सहमत नहीं होता और ईसाई यहूदी से.
निम्न में कौन शासक ने सुलह ए कुल की नीति प्रतिपादित किया?सुलह-ए-कुल की नीति मुगल सम्राट अकबर द्वारा तैयार की गई थी।
|