अमेरिका में कृषि क्रांति के क्या कारण थे इसके क्या प्रभाव पड़े? - amerika mein krshi kraanti ke kya kaaran the isake kya prabhaav pade?

अमेरिका उपनिवेशों की क्रांति विश्व इतिहास की प्रमुख घटनाओं में से एक है और इतिहास में इसका अपना ही स्थान है। तेरह उपनिवेशों में आबाद लोगों में काफी भिन्नता थी और उनमें से बहुतों को इंग्लैण्ड से कोई विशेष शिकायत भी न थी, फिर भी परिस्थितियों ने उन्हें एकता के सूत्र में बांध दिया था और वे शक्तिशाली इंग्लैण्ड के विरुद्ध उठ खङे हुए और अंत में इंग्लैण्ड के निरंकुश शासन से मुक्त होने में सफलता मिली। उपनिवेशों के इस असंतोष का मुख्य कारण सामान्यतया इंग्लैण्ड की सरकार द्वारा उपनिवेशों पर लगाए गए विभिन्न करों को बताया जाता है, परंतु इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि उनके असंतोष एवं विद्रोह के मूल में अन्य बहुत से कारण विद्यमान थे। उनमें से कुछ निम्नलिखित हैं-

उपनिवेशों में इंग्लैण्ड के प्रति प्रेम का अभाव –

इंग्लैण्ड को छोङकर अमेरिका के तेरह उपनिवेशों में बसने वाले अधिकांश लोगों में इंग्लैण्ड के प्रति कोई प्रेम नहीं था। बहुत से लोग धार्मिक अत्याचारों से परेशान होकर उपनिवेशों में आकर बस गये थे। ऐसे लोगों को इंग्लैण्ड के चर्च तथा वहाँ की सरकार से कोई विशेष सहानुभूति नहीं थी। अंग्रेजों के अलावा अन्य यूरोपीय देशों के बहुत से लोग भी उपनिवेशों में आकर बस गये थे। उन लोगों से इंग्लैण्ड के लिये कोई विशेष सहानुभूति की आशा नहीं की जा सकती थी। 17 वीं शताब्दी में इंग्लैण्ड में सजा देकर भी अपराधी लोगों को इन बस्तियों में भेज दिया जाता था। जेल के अधिकारियों तथा जजों को प्रोत्साहित किया जाता था, कि अपराधियों को दंड भोगने की बजाय अमेरिका जाकर बसने का अवसर दें। ऐसे लोगों की संतानों से इंग्लैण्ड के लिये प्रेम की आशा करना निरर्थक था। इंग्लैण्ड की सरकार ने जार्जिया के अलावा और किसी उपनिवेश को स्थापित करने में कोई प्रत्यक्ष भाग नहीं लिया और उनके राजनीतिक निर्देशन में क्रमशः ही हस्तक्षेप किया। अतः उपनिवेशों पर शुरू से ही इंग्लैण्ड सरकार के प्रभाव और नियंत्रण का अभाव था। इसके अलावा उस समय यातायात के साधन इतने खराब थे, कि इंग्लैण्ड और ये उपनिवेश एक-दूसरे के संपर्क में अधिक न आ सके।

चारित्रिक भिन्नता

उपनिवेश में रहने वाले लोगों और इंग्लैण्ड में रहने वाले लोगों में काफी चारित्रिक भिन्नता था। यह ठीक है, कि उपनिवेशियों की 90 प्रतिशत जनसंख्या अंग्रेजों की थी, परंतु ये अंग्रेज इंग्लैण्ड के अंग्रेजों से भिन्न थे। ट्रेवेलियन ने लिखा है, कि जहां अंग्रेज समाज पुराना था और उसमें पेचीदापन और कृत्रिमता आ चुकी थी, वहां अमेरिकन लोग अभी नए-नए और सरल थे। उन्होंने अपनी पूर्व धारणाओं और रीति-रिवाजों को त्यागर एक नया जीवन अपनाया था और अब वे अमेरिकी बन गए। अंग्रेजों और अमेरिकी लोगों में धार्मिक मतभेद भी थे। उपनिवेशों के ज्यादातर निवासी प्यूरिटन थे, जबकि इंग्लैण्ड के लोग इंग्लैण्ड के चर्च के अनुयायी थे। उपनिवेशियों में समानता की भावना अधिक प्रबल थी, जबकि इंग्लैण्ड में अभी भी वर्ग भेद बना हुआ था और समाज में कुलीन वर्ग के लोगों की प्रधानता थी। इस प्रकार दोनों के दृष्टिकोण भिन्न थे।

उपनिवेशियों का स्वतंत्रता प्रेम

उपनिवेशों में आबाद लोग इंग्लैण्ड के लोगों की अपेक्षा अधिक उत्साही और स्वतंत्रताप्रिय थे। उनमें जनतंत्र शासन-पद्धति और स्वतंत्रता का इंग्लैण्ड के लोगों से अधिक प्रचार था। इसकी स्पष्ट झलक वर्जीनिया के प्रथम अधिकार – पत्र में देखने को मिलती है, जिसमें जोर देकर कहा गया था कि, बसने वालों को सभी स्वाधीनताएँ, मताधिकार एवं रियासतें प्राप्त होंगी, ठीक उसी तरह जैसी वे इंग्लैण्ड में जन्म लेने पर प्राप्त करते। यह एक अत्यन्त ही महत्त्वपूर्ण बुनियादी सिद्धांत था, परंतु जब इंग्लैण्ड की संसद ने अमेरिकी उपनिवेशों को साम्राज्यवादी नीति के अनुरूप ढालने की ओर ध्यान दिया तो काफी देर हो चुकी थी। इस समय तक बस्तियाँ स्वयं शक्तिशाली और संपन्न हो चुकी थी। इस समय तक बस्तियाँ स्वयं शक्तिशाली और संपन्न हो चुकी थी। ऐसी स्थिति में उपनिवेशी लोग भला यह कैसे गवारा कर सकते थे, कि दूसरे लोग उनको यह सिखाएँ कि वे किस तरह अपना शासन भार संभालें। वे किसी भी कीमत पर अपनी स्वतंत्रता को त्यागने के लिये तैयार न थे। वे चाहते थे, कि अपनी परिस्थितियों के अनुकूल कानून वे स्वयं बनाएँ। अतः इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि वे रूढिवादी और पुरानी लकीरों पर चलने वाले इंग्लैण्ड से स्वतंत्र होना चाहते थे।

दोषपूर्ण शासन व्यवस्था

उपनिवेशों की शासन व्यवस्था भी संतोषजनक थी और उसमें कई प्रकार के दोष विद्यमान थे। शासन व्यवस्था के तीन प्रमुख अंग थे – गवर्नर, गवर्नर की कार्यकारिणी समिति और विधायक सदन अथवा असेम्बली। गवर्नर और उसकी कार्यकारिणी समिति सम्राट के अंतर्गत थी और वे विधायक सदन के प्रति उत्तरदायी नहीं होते थे। विधायक सदन में जनता द्वारा निर्वाचित सदनों के हाथ में था। ऐसी स्थिति में गवर्नरों के लिये जनता के प्रतिनिधियों का विरोध करना बहुत ही कठिन काम था। इसका एक अन्य कारण भी था, कि शासन कार्य चलाने वालों – गवर्नर सहित सभी लोगों का वेतन तय करने का अधिकार विधायक सदनों के पास था। और कभी – कभी वे अपनी इच्छानुसार किसी भी गवर्नर अथवा जज के वेतन की धनराशि की माँग को अस्वीकृत कर देते थे। उपनिवेशों के विधायक सदनों का यह रवैया इंग्लैण्ड की सरकार को बहुत बुरा लगता था। क्योंकि इससे गवर्नरों और जजों की महान हानि तो होती ही थी, अपितु उनके अधिकार प्रयोग पर भी बंधन लग जाता था, और ये अधिकारी अपने आपको स्वतंत्रतापूर्वक काम करने में असमर्थ पाते थे।

भ्रांत धारणा – उपनिवेशों की स्थापना तथा उनकी उपयोगिता के संबंध में इंग्लैण्ड की सरकार तथा आम जनता एक भ्रांत धारणा से ग्रस्त थी। उनका मानना था, कि उपनिवेश इंग्लैण्ड को लाभ पहुँचाने के लिये है। और इसी आधार पर वे उपनिवेशों का आर्थिक शोषण करना चाहते थे, परंतु उपनिवेशी इसको अधिक समय तक सहन करने को तैयार न थे। वे अपने व्यवसाय तथा उद्योग का स्वयं ही प्रसार करना चाहते थे। इंग्लैण्ड के हितों की वृद्धि करने में उनकी रुचि नहीं थी। उनका कहना था, कि क्या उन्होंने बाहुबल से उपनिवेशों की स्थापना नहीं की ? क्या उन्होंने अपने ही कठिन परिश्रम से घने जंगलों तथा बीहङों को साफ नहीं किया ? क्या उन्होंने स्वयं ही अपनी शासन-व्यवस्था का निर्माण नहीं किया था ? वे यह मानते थे, कि इंग्लैण्ड ने कई बार उनको खतरों से बचाया था, परंतु इसकी कीमत परतंत्रता नहीं थी। दूसरी तरफ, इंग्लैण्ड का शासन वर्ग यह चाहता था, कि उपनिवेश उसकी धन एवं सत्ता की वृद्धि में सहयोग देते रहें।बस्तियों के व्यापार और शिल्पोद्योग संबंधी कानून इंग्लैण्ड के लाभ की दृष्टि से ही पास किये जाते थे। इनको तीन समूहों में बाँटा जा सकता है। वे कानून जिनके द्वारा पोत-निर्माण तथा जलमार्ग से सामान ढोने पर प्रतिबंध लगाए लगाए गए। इनको नौ-संचालन नियम, आयात तथा जलमार्ग से सामान ढोने पर प्रतिबंध लगाए गये। इनको नौ-संचालन नियम, आयात, निर्यात उद्योग की आशातीत उन्नति हुई। दूसरे समूह में व्यापारिक अधिनियम थे। इन नियमों के अनुसार अमेरिकी उपनिवेशों में उत्पादित कुछ वस्तुओं का निर्यात केवल इंग्लैण्ड को ही किाय जाना था। ये वस्तुएँ थी – चावल, तंबाकू, लोहा, लकङी, चमङा एवं नौ-सैनिक सामान। इन नियमों से काफी असंतोष फैला, क्योंकि यदि डच और फ्रांसीसी उन्हें अंग्रेज व्यापारियों से अधिक दाम देने को तैयार भी होते थे, तो भी उपनिवेशी वस्तुओं का निर्यात अथवा यूरोप से उपनिवेशों में व्यापार अंग्रेजों द्वारा ही हो सकता था। अतः इस आदान-प्रदान का सारा मुनाफा अंग्रेज व्यापारी ही समेट लेते थे। तीसरे समूह में औद्योगिक अधिनियम सम्मिलित थे। इनके द्वारा उपनिवेशों के उद्योगों पर प्रतिबंध लगाया गया था। उदाहरण के लिये, 1689 ई. में अमेरिका से ऊनी माल के निर्यात को बिल्कुल बंद कर दिया गया। 1732ई. में तैयार अथवा आधे तैयार, दोनों के टोपों का निर्यात बंद कर दिये गये। 1750 ई. में उपनिवेशों में अब लोहे के कारखाने स्थापित करने की मनाही कर दी गयी। परिणामस्वरूप उपनिवेशी अब लोहे की छङें भी नहीं बना सकते थे। ये सभी नियम इंग्लैण्ड के उत्पादकों के हित में पारित किये गये थे।

ये सभी कानून अमेरिकी लोगों के लिये हानिकारक थे। फिर भी उस समय इनका जोरदार विरोध नहीं किया गया, क्योंकि इन कानूनों का कभी सख्ती से पालन नहीं किया गया और ऐसा किया जाना संभव भी नहीं था। ये सब नियम कागजी नियम बनकर रह गए और ऐसा किया जाना संभव भी नहीं था। ये सब नियम कागजी नियम बनकर रह गए और कानूनों के होते हुये भी उपनिवेसी अन्य देशों के साथ व्यापार करते रहे। उदाहरण के लिए,

सप्तवर्षीय युद्ध का प्रभाव

जिस समय अंग्रेज अमेरिका में अपने उपनिवेशों की स्थापना में व्यस्त थे, उस समय फ्रांसीसी भी उत्तरी अमेरिका में अपने साम्राज्य का विस्तार कर रहे थे। उन्होंने मिसिसिपी नदी पर अधिकार करके उत्तर-पूर्व में क्वेबेक से लेकर दक्षिण दक्षिण में न्यू आर्लियन्स तक एक विशाल साम्राज्य स्थापित करके अंग्रेजों को अपेलेशियन पहाङ के पूर्व की तंग पट्टी तक सीमित कर दिया था। अंग्रेजों और फ्रांसीसियों में एक सौ साल से अधिक समय तक अनिर्णायक युद्ध चलते रहे। 1757 ई. से 1763 ई. के मध्य दोनों में सप्तवर्षीय युद्ध छिङ गया। युद्ध की शुरुआत यूरोप से हुई थी, परंतु अमेरिका में भी यह उतनी ही भयंकरता से लङा गया। अमेरिका के अंग्रेजी उपनिवेशों ने सब मिलाकर युद्ध के लिये इंग्लैण्ड को कोई विशेष सहायता नहीं दी। फिर भी इंग्लैण्ड को निर्णायक सफलता मिली और उत्तरी अमेरिका का विस्तृत फ्रांसीसी साम्राज्य इंग्लैण्ड के अधिकार में आ गया।

सप्तवर्षीय युद्ध के दूरगामी परिणाम निकले। अब तक अमेरिका के उपनिवेश इंग्लैण्ड के साथ इसलिये लटके चले आ रहे थे, कि उन्हें कनाडा में रहने वाले फ्रांसीसियों से हमेशा आक्रमण का भय बना रहता था और उन्हें अपनी सुरक्षा के लिये इंग्लैण्ड पर आश्रित रहना पङता था, परंतु सप्तवर्षीय युद्ध में फ्रांसीसी शक्ति का अंत हो गया और उसके साथ ही फ्रांसीसियों के आक्रमण का भय भी जाता रहा। इसलिये अंग्रेज बस्तियों ने अनुभव किया कि अब इंग्लैण्ड के साथ चिपटे रहने में उन्हें कोई लाभ नहीं, अतः सप्तवर्षीय युद्ध के बाद बस्तियों के रुख में एकदम परिवर्तन आ गया और उन्होंने इंग्लैण्ड की शक्ति की अवहेलना करनी शुरू कर दी। इस संघर्ष में भाग लेकर अमेरिकी लोगों ने अंतरौपनिवेशिक सहयोग के संबंध में बहुत कुछ सीख लिया, कि किस प्रकार सेनाएँ और साधन संगठित करके एक सह-उद्देश्य के लिये युद्ध किया जा सकता है। पृथक-पृथक शासन वाले तेरह विभिन्न राज्यों में एकता पैदा करने में अभी कुछ वर्ष का समय चाहिये था, परंतु इस ओर एक बङा कदम इस प्रकार उठ गया। इस युद्ध का एक परिणाम यह भी हुआ, कि उपनिवेशों को अपनी शक्ति का अनुभव हुआ। अमेरिका के भद्दे सैनिकों पर ब्रिटिश कितना भी नाक-भौं क्यों न चढाए, यह एक सत्य है, कि औपनिवेशिक सेनाओं के प्रत्येक युद्ध में सुशिक्षित ब्रिटिश सैनिकों के साथ-साथ बङी योग्यता से काम किया था। अंत में इस युद्ध के परिणामस्वरूप इंग्लैण्ड की आर्थिक स्थिति डगमगा उठी और नवविजित क्षेत्र को लेकर भी समस्या उठ खङी हुई।

नवविजित क्षेत्र की समस्या

सप्तवर्षीय युद्ध में फ्रांस की पराजय के बाद उत्तरी अमेरिका का समूचा फ्रेंच क्षेत्र इंग्लैण्ड के अधिकार में आ गया। इस क्षेत्र में मुख्यतः कैथोलिक फ्रांसीसी और आदिवासी रेड इंडियनों में आत्मविश्वास पैदा किया जा सके और साथ ही उनकी सुरक्षा की व्यवस्था भी की जा सके। उत्तरी अमेरिका के रेड इण्डियनों को शुरू से ही अंग्रेजी से घृणा थी। वे फ्रांसीसियों को अधिक पसंद करते थे। दूसरी तरफ उपनिवेशी इस विशाल विजित क्षेत्र में अपनी तीव्र गति से बढती हुई जनसंख्या के साथ लाभ उठाने पर तुले हुए थे। इस प्रकार, यहाँ इंग्लैण्ड की सरकार का उपनिवेशों के स्वार्थ से संघर्ष हो गया। नभी भूमि की आवश्यकता के कारण विभिन्न उपनिवेशों ने यह दावा किया कि पश्चिम में मिसिसिपी नदी तक अपनी सीमा बढाने का उन्हें अधिकार है।

इंग्लैण्ड की सरकार को यह भय था, कि उपनिवेशियों के नए क्षेत्र में जाकर बसने से वहाँ के मूल निवासियों (रेड इंडियन) के साथ कहीं युद्धों का सिलसिला ने आरंभ हो जाये। अतः वह चाहती थी, कि रेड इंडियनों को शांत होने के लिये थोङा समय देना चाहिये। और उपनिवेशों के मध्य भूमि-वितरण का काम धीरे-धीरे होना चाहिये, इसलिये 1763 ई. में एक शाही घोषणा द्वारा एलेगनीज, फ्लोरिडा, मिसिसिपी और क्वेबेक के बीच का समूचा क्षेत्र रेड इंडियनों के लिये सुरक्षित कर दिया गया। इससे उपनिवेशियों का पश्चिम की ओर प्रसार रुक गया और वे अपनी सरकार को अपना शत्रु समझने लगे।

नयी आर्थिक नीति

सप्तवर्षीय युद्ध में इंग्लैण्ड ने अपने उपनिवेशों को बचाने के लिये बहुत धन खर्च किया था, जिससे उसकी आर्थिक स्थिति डगमगाने लग गई थी। अंग्रेज राजनीतिज्ञों का मानना था, चूँकि यह धन उपनिवेशों की रक्षा डगमगाने लग गई थी। अंग्रेज राजनीतिज्ञों का मानना था, कि चूँकि यह धन उपनिवेशों की रक्षा के लिये व्यय किया गया था, अतः उपनिवेशों को इंग्लैण्ड के आर्थिक संकट को दूर करने में हिस्सा बँटाना चाहिये, परंतु उपनिवेशियों ने इसे साम्राज्य-विस्तार के लिये लङ गया युद्ध मानकर सहयोग देने से इंकार कर दिया। इतना ही नहीं, उपनिवेशों ने भविष्य में भी बस्तियों की रक्षा के लिये खर्च होने वाले धन में भी अपना हिस्सा देने से इंकार कर दिया। इतना ही नहीं, उपनिवेशों ने भविष्य में भी बस्तियों की रक्षा के लिये खर्च होने वाले धन में भी अपना हिस्सा देने से इन्कार कर दिया।

शुगर एक्ट,करेन्सी एक्ट,स्टाम्प एक्ट,बॉस्टन हत्याकाण्ड

नए कानून

1767 ई. में इंग्लैण्ड के वित्त मंत्री चार्ल्स टाउनशेड ने जल्दबाजी में कुछ नए कानून पास करवाए,जो कि उपनिवेशियो को उतने ही अप्रिय और असहीन थे, जितने कि पहले वाले नियम। एक नियम के अनुसार, सीसे, काँच, रंग, चाय और अन्य कई वस्तुओं पर जिनका आयात उपनिवेशों में होता था, चुँगी लगाी गयी। इससे होने वाली आय का उपयोग उपनिवेशों में ब्रिटिश सरकारी की ओर से नियुक्त गवर्नरों तथा राजकीय कर्मचारियों के वेतन और अन्य खर्चों के भुगतान के लिये किया जाना था। इसका अर्थ था – गवर्नरों पर से औपनिवेशिक विधानसभाओं का नियंत्रण कम करना। इससे उपनिवेशियों को यह विश्वास हो गया कि ब्रिटिश संसद उपनिवेशों के मामलों में और अधिक नियंत्रण रखने की सोच रही है। दूसरे नियम के द्वारा यह तय किया गया कि उपनिवेशों में उत्पादित समस्त वस्तुओं पर चुँगी की वसूली सम्राट द्वारा नियुक्त कमिश्नर ही करेंगे।

देशभक्तों का आंदोलन

बॉस्टन टी-पार्टी की घटना

टाउनशेड शुल्कों के हटा लिये जाने के बाद उपनिवेशियों में आंतरिक मतभेद पैदा हो गया। अभी भी अमेरिका में इंग्लैण्ड के प्रति काफी सद्भावना थी, विशेषकर धनिक वर्गों में। स्वतंत्रता के समर्थकों की ओर से कराए गये दंगों तथा बहिष्कार के विरुद्ध थे, क्योंकि गङबङ से व्यापार को हानि पहुँचती थी। साधारण अमेरिकी को भी इंग्लैण्ड से पूर्ण स्वाधीन हो जाने की अधिक इच्छा न थी, वह तो केवल यह चाहता था, कि अपने खेत या दुकान पर आजादी से काम करे और शांति से अपना निर्वाह करे, परंतु देशभक्तों तथा अतिवादियों का एक छोटा-सा वर्ग विवाद को जीवित रखने के पक्ष में था…अधिक जानकारी

प्रथम महाद्वीपीय कांग्रेस

इन नवीन कानूनों से सारे अमेरिका में सनसनी पैदा हो गयी। लोगों ने इन्हें दमनकारी कानून की संज्ञा दी। इन कानूनों का उद्देश्य मेसाचूसेट्स को दबाना था, परंतु अन्य सभी उपनिवेश उसकी सहायता के लिये इकट्ठे हो गये, उन्होंने सहानुभूति प्रकट की और आवश्यक खाद्य पदार्थ भेजे जिनकी उपनिवेश में बङी आवश्यकता थी। वर्जीनिया के नागरिकों ने सभी उपनिवेशों के प्रतिनिधियों का फिलाडेल्फिया में एक सम्मेलन बुलाने का सुझाव रखा। परिणामस्वरूप 5 सितंबर, 1774 को महाद्वीप की इस प्रथम कांग्रेस का अधिवेशन शुरू हुआ, जिसमें जार्जिया के अलावा अन्य सभी उपनिवेशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। प्रतिनिधियों में मेसाचूसेट्स के जॉन एडम्स और सैमुअल एडम्स, वर्जीनिया के जार्ज वाशिंगटन और पेट्रिक हेनरी और दक्षिणी कैरोलाइना के जॉन रूटेलेज और क्रिस्टोफर गेडस्डेन प्रमुख थे।

कांग्रेस को बुलाने का मुख्य उद्देश्य था – उपनिवेशों की वर्तमान स्थिति पर विचार करना। उनके न्यायोचित अधिकारों और स्वतंत्रताओं की पुनः प्राप्ति और स्थापना के लिये उचित और ठीक विधियों पर विचार करना और ग्रेट ब्रिटेन तथा उपनिवेशों के साथ फिर से एकता और अच्छे संबंध बनाना। अधिवेशन के निर्णयतानुसार एक घोषणा-पत्र तैयार करके इंग्लैण्ड भेजा गया। यह एक प्रकार से अधिकारों और शिकायतों की एक घोषणा थी। कांग्रेस का महत्त्वपूर्ण कार्य एक संघ का संगठन था, जिसने व्यापार-बहिष्कार को पुनर्जीवित किया। गाँव-गाँव में सुरक्षा-समितियाँ स्थापित करने तथा ब्रिटिश माल का उपयोग करने वालों की सूचना कांग्रेस को भिजवाने का भी निश्चय किया गया। अंत में यदि गङबङ समाप्त न हो तो मई, 1775 ई. में एक और सम्मेलन बुलाने का निश्चय किया गया।

परंतु स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ। मेसाचूसेट्स में तनाव जोरों पर था और वहाँ के स्वयंसेवकों ने कनकार्ड में गोला बारूद का संग्रह किया। 19 अप्रैल, 1775 ई. को जनरल गेज ने इस युद्ध सामग्री के संग्रह करने पर जॉन हैनकाक और सैमुअल एडम्स को गिरफ्तार करने की आज्ञा दे दी। स्वयंसेवकों की एक छोटी सी टुकङी ने लेक्सिंगटन गाँव के पास ब्रिटिश सेना का मार्ग रोकने का विफल प्रयास किया। इस प्रयास में आठ स्वयंसेवक मारे गए। इसकी सूचना तत्काल सभी उपनिवेशों में फैल गई। कनकार्ड से वापस लौटती अंग्रेज सेना को हजारों स्वयंसेवकों से टक्कर लेनी पङी और उसके बहुत से सैनिक मारे गये।

द्वितीय महाद्वीपीय कांग्रेस

लेक्सिंगटन और कनकार्ड की घटनाओं ने स्वतंत्रता संघर्ष का बिगुल बजा दिया और ऐसी ही अनिश्चितता में 10 मई, 1775 ई. को फिलाडेल्फिया में द्वितीय महाद्वीपीय कांग्रेस की बैठक हुई। बॉस्टन के एक धनी व्यापारी जॉन हैनकाक ने कांग्रेस की अध्यक्षता की। टॉमन जैफरसन और बेंजामिन फ्रेंकलिन जैसे महान नेता भी उपस्थित थे। काफी वाद-विवाद के बाद यह घोषणा-पत्र तैयार किया गया – हमारा उद्देश्य न्यायसंगत है। हमारी एकता सम्पूर्ण है। हमारे आंतरिक साधन बहुत हैं और यदि आवश्यकता पङी तो विदेशी सहायता निःसंदेह लभ्य है… अपनी स्वतंत्रता की रक्षा के लिये विवश किए हैं, उन्हें हम… अपनी स्वतंत्रता की रक्षा के लिये प्रयुक्त करेंगे, हम दास होने की अपेक्षा स्वतंत्र होकर मरने का एकमत से संकल्प कर चुके हैं।

इस घोषणा के बाद कांग्रेस ने सेना खङी करने की योजनाओं पर अमल शुरू कर दिया और जार्ज वाशिंगटन को प्रधान सेनापति बना दिया। दूसरी तरफ जार्ज तृतीय तथा ब्रिटिश संसद ने औपनिवेशकों की ओर से की गयी प्रार्थनाओं पर कोई ध्यान नहीं दिया। 23 अगस्त, 1775 ई. को जार्ज तृतीय ने एक घोषणा जारी करके अमेरिकी उपनिवेशों को विद्रोही घोषित कर दिया। इस प्रकार संघर्ष का सूत्रपात हो गया।

अमेरिका में कृषि क्रांति के क्या कारण थे इसके क्या प्रभाव पड़े? - amerika mein krshi kraanti ke kya kaaran the isake kya prabhaav pade?
1. पुस्तक- आधुनिक विश्व का इतिहास (1500-1945ई.), लेखक - कालूराम शर्मा