एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय। Show एक बार में कोई एक कार्य ही करना चाहिए। एक काम के पूरा होने से कई काम अपने आप हो जाते हैं। यदि एक ही साथ आप कई लक्ष्य को प्राप्त करने की कोशिश करेंगे तो कुछ भी हाथ नहीं आता। यह वैसे ही है जैसे जड़ में पानी डालने से ही किसी पौधे में फूल और फल आते हैं। चित्रकूट में रमि रहे, रहिमन अवध-नरेस। जब राम को बनवास मिला था तो वे चित्रकूट में रहने गये थे। चित्रकूट घनघोर वन में होने के कारण रहने लायक जगह नहीं थी। ऐसी जगह पर वही रहने जाता है जिस पर कोई भारी विपत्ति आती है। दीरघ दोहा अरथ के, आखर थोरे आहिं। किसी भी दोहे में कम शब्दों में ही बहुत बड़ा अर्थ छिपा होता है। यह वैसे ही होता है जैसे नट की कुंडली होती है। नट अपनी कुंडली में सिमट कर तरह तरह के विस्मयकारी करतब दिखा देता है। YouTube Video Lesson 11 (रहीम के दोहे) 1. रहीम का प्रकृत नाम क्या है? उत्तर: रहीम का प्रकृत नाम अब्दुलर्रहीम खान खाना है। 2. रहीम किस काल के कवि है? उत्तर: रहीम भक्ति काल के कवि है। 3. सुदामा कौन है? कृष्ण ने उनकी दुर्गति को कैसे खत्म किया? उत्तर: सुदामा एक गरीब ब्राह्मण था। वह दरिद्रता में अपना जीवन बिता रहा था। सुदामा की सहजता को देख कृष्ण ने उनकी सारी दरिद्रता दूर कर दी और उनके साथ मित्रता भी कर ली। 4. रहीम के अनुसार क्षमा किसको करनी चाहिए? उत्तर: रहीम के अनुसार बड़े लोगों को छोटे लोगों के द्वारा किए गए भूल पर ध्यान न देते हुए उन्हें क्षमा कर देना चाहिए। 5. मन की व्यथा मन ही रखने को रहीम क्यों कह रहे हैं? उत्तर:मन की व्यथा मन में ही रखने को रहीम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि अगर हम अपने दुःख दर्द को दूसरों के सामने प्रकट करेंगे तो उल्टा वे हमारा मजाक उड़ाएंगे तथा हम पर व्यंग करेंगे। तथा वे हमारे दुखों का भागीदार नहीं बनेंगे बल्कि और हमारे दुःख दर्द पर और नमक छिड़कने आएंँगे। इसीलिए रहीम ने मन की बात मन में ही रखने की सलाह दी है। 6. रहीम के 'दोहे' से कौन-सी शिक्षा मिलती है? उत्तर: रहीम के नीतिपरक दोहे ने मनुष्य जीवन के वास्तविक परिस्थितियों को प्रभावित किया है। उनके द्वारा दिए गए उपदेश तथा शिक्षा से हमें काफी कुछ सीखने को मिलता है। उनके दोहे से हमें निस्वार्थ भाव से दूसरों की सेवा करने की शिक्षा मिलती है, दूसरों को क्षमा करने की शिक्षा मिलती है, तथा आत्मनिर्भर होने की शिक्षा मिलती है। 7.व्याख्या कीजिए- (क) रहिमन निज सम्पति बिना, कोउ ना बिपति सहाय। बिनु पानी ज्यों जलज को, नहिं रवि सकै बचाय।। उत्तर: संदर्भ- प्रस्तुत पंक्तियांँ हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक हिंदी साहित्य संकलन के अंतर्गत रहीम के 'दोहे' से लिया गया है। प्रसंग- विपत्ति के समय क्यों खुद का संपत्ति काम आता है इसका वर्णन किया गया है। व्याख्या- कवि का कहना है कि अगर खुद का संचय किया हुआ धन नहीं है तो विपत्ति के समय कोई अन्य सहायता करने नहीं आएंँगा। तथा उस समय खुद के द्वारा संचय क्या हुआ धन ही काम आता है। उस समय दूसरों की संपत्ति कोई काम नहीं आती। जिस तरह जल के अभाव होने से सूर्य जलीय जीव जैसे (कमल) को बचा नहीं सकता, उसी प्रकार विपत्ति के समय अन्य की संपत्ति काम नहीं आती है। (ख) रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखहु गोय। सुनि अठिलैंहैं लोग सब, बाँटि न लैहैं कोय।। उत्तर: संदर्भ- प्रस्तुत पंक्तियांँ हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक हिंदी साहित्य संकलन के अंतर्गत रहीम के 'दोहे' से लिया गया है। प्रसंग- प्रस्तुत पंक्ति में कवि ने मन की बात मन में ही रखने की बात कही है। व्याख्या- कवि रहीम का कहना है कि हमें अपने दुख भरे बातों को मन में ही दबाकर रखना चाहिए। उसे दूसरों के सामने प्रकट नहीं करना चाहिए। अगर हम ऐसा करते हैं, तो दूसरे हमारी दुख भरी बातों का मजाक उड़ाएंगे तथा हम पर व्यंग करेंगे। हमारे दुख में शामिल होने के बजाय हमें उल्टा और दुखी करेंगे। इसलिए कवि का मानना है कि चाहे हम जितने भी दुखी क्यों न हो उन दुखों को अपने ही अंदर दबाकर रखना चाहिए। तथा खुद से उन दुखों का सामना करना चाहिए। (ग) तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहिं न पान। कहि रहीम पर काज हित, संपत्ति-संचहि सुजान।। उत्तर: संदर्भ-प्रस्तुत पंक्तियांँ हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक हिंदी साहित्य संकलन के अंतर्गत रहीम के 'दोहे' से लिया गया है। प्रसंग- यहांँ कवि का उपदेश है कि हमें दूसरों की भलाई के लिए धन संपत्ति का संचय करना चाहिए। व्याख्या- प्रस्तुत पंक्तियों के जरिए कवि रहीम कह रहे हैं कि जिस प्रकार पेड़ अपना फल खुद नहीं खाता, तालाब अपना पानी स्वयं नहीं पीता, ठीक उसी प्रकार सज्जन व्यक्ति अपने लिए संपत्ति का संग्रह नहीं करता। वह दूसरों के कल्याणार्थ संपत्ति का संग्रह करता है। अर्थात कवि का कहने का अर्थ यह है कि पेड़ के फलों और तालाब के पानी को दूसरे खाते हैं, जिससे लोग अपनी भूख और प्यास बुझाते हैं। ठीक सज्जन व्यक्ति भी दूसरों के लिए संपत्ति कमाता है और उसका कल्याण करता है। वह अपने निजी स्वार्थ के लिए नहीं कमाता। 8. भावार्थ स्पष्ट कीजिए- (क) रहिमन बिपदा हू भली, जो थोरे दिन होय। हित अनहित या जगत में, जानि परत सब कोई।। उत्तर: प्रस्तुत पंक्तियों के जरिए कवि रहीम जी हमें यह समझाना चाहते हैं कि हमारे जीवन में अगर थोड़े दिनों के लिए ही सही विपत्ति आती भी है, तो वह विपत्ति हमारे लिए अच्छा ही है। क्योंकि उस विपत्ति के दौरान हम यह जान पाते हैं कि कौन हमारे साथ है और कौन नहीं। अर्थात कौन हमारा भला चाहता है और कौन हमारा बुरा इस बात की पुष्टि हो जाती है। (ख) जे गरीब पर हित करैं, ते रहीम बड़ लोग। कहा सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताई जोग।। उत्तर: यहांँ कवि रहीम का कहना है कि जो गरीब लोगों की भलाई या सहायता करता है वह व्यक्ति धन्य है। उसका मन पवित्र है जो सच्चे मन से दूसरों की सहायता करता है। चाहे वह व्यक्ति स्वयं ही क्यों न गरीब हो वह हमेशा दूसरों का कल्याण करेगा। ऐसे लोगों के साथ भगवान भी मित्रता करते हैं। जिस प्रकार सुदामा से भगवान कृष्ण ने मित्रता की थी। भला दोनों क्या मित्रता के योग्य थे। फिर भी भगवान कृष्ण ने सुदामा जैसे कंगाल ब्राह्मण के साथ मित्रता की थी। 9. लघु प्रश्न उत्तर: (क) अकबर ने रहीम को किस उपाधि से सम्मानित किया था? उत्तर: अकबर ने रहीम को 'मिर्जा खाँ' की उपाधि से सम्मानित किया था। (ख) रहीम किसके भक्त थे? उत्तर: रहीम कृष्ण के भक्त थे। (ग) रहीम जी की किसी दो प्रसिद्ध रचनाओं के नाम लिखो। उत्तर: दोहावली, नगर-शोभा, बरवै नायिका भेद, रहीम काव्य आदि। Reetesh Das (M.A in Hindi) अपने मन की व्यथा को अपने मन में क्यों रखना चाहिए?कविवर रहीम कहते हैं कि मन की व्यथा अपने मन में ही रखें उतना ही अच्छा क्योंकि लोग दूसरे का कष्ट सुनकर उसका उपहास उड़ाते हैं। यहां कोई किसी की सहायता करने वाला कोई नहीं है-न ही कोई मार्ग बताने वाला है।
रहीम दास के अनुसार अपनी व्यथा अपने तक क्यों रखनी चाहिए?(ख) कवि अपने मन की व्यथा छिपाकर रखने को कहता है क्योंकि इसके कहने या प्रकट करने का कोई लाभ नहीं है। इसे सुनकर वे प्रसन्न होते हैं पर बाँटने कोई नहीं आता। लोग दूसरे के दुख में मज़ा लेते हैं। वे किसी की सहायता नहीं करते।
रहीम मन की व्यथा को छिपाने के लिए क्यों कह रहे हैं?Explanation: Answer. Answer: रहीम मन की व्यथा को छिपाने के लिए इसलिए कहते हैं क्योंकि अगर हम दूसरो से ये बात दूसरों को कहेगें तो वो हमारी मदद नहिं ब्लकि हमारी हंसी उडाएगा।
मन में क्या छिपा कर रखना चाहिए?हमें अपना दु ख दूसरों पर प्रकट नहीं करना चाहिए, क्योंकि संसार उसका मजाक उड़ाता है। हमें अपना दुःख अपने मन में ही रखना चाहिए। अपने मन की व्यथा दूसरों से कहने पर उनका व्यवहार परिहास पूर्ण हो जाता है।
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