असद का एक दिन नाटक का भाव क्या है स्पष्ट कीजिए? - asad ka ek din naatak ka bhaav kya hai spasht keejie?

2.    " विलोम क्या है ? एक असफल कालिदास। और कालिदास ? एक सफल विलोम। हम कहीं एक-

           :- प्रस्तुत पंक्तियाँ 'आषाढ़ के एक दिन' नाटक के प्रथम अंक से ली गई है। इसके वक्ता विलोम हैं 

              :- प्रस्तुत पंक्तियाँ मोहन राकेश जी के नाटक ' आषाढ़ का एक दिन ' के प्रथम अंक से लिया गया 

                  है। यह पंक्तियाँ विलोम कालिदास से तब कहता है जब कालिदास, विलोम पर व्यंग्य कसते हुए

                  को भलि-भाँति पहचानता था और  उसे  दूसरों के मामले मे  हस्तेक्षेप करने की बुरी आदत थी।

              :- विलोम और कालिदास दोनों  छंद लिखते थे , परंतु राजकीय सम्मान कालिदास को प्राप्त हुआ। 

                  विलोम  मल्लिका से प्रेम करता था , परंतु मल्लिका कालिदास से प्रेम करती थी। विलोम के

              :- मुँहफट : वह बहुत ही स्पष्टवादी था जो बात मल्लिका की माँ अंबिका कालिदास से नहीं कह

                   " कालिदास यह स्पष्ट बता दे कि उसे उज्जयिनी अकेले जाना है या ............ "

                   ईर्ष्यालु : विलोम , कालिदास से बहुत ईर्ष्या करता था क्योंकि वह मल्लिका से प्रेम करता था 

असद का एक दिन नाटक का भाव क्या है स्पष्ट कीजिए? - asad ka ek din naatak ka bhaav kya hai spasht keejie?

अंबिका का चरित्र:

अंबिका हिंदी के सुप्रसिद्‌ध नाटककार मोहन राकेश द्‌वारा रचित

यथार्थवादी तथा ऐतिहासिक नाटक ’ आषाढ़ का एक दिन ’ की प्रमुख

पात्रा है।  इसके चरित्र में निम्‍नलिखित विशेषताएँ देखी जा सकती हैं-

१. ममतामयी : - नाटककार ने अंबिका को एक ममतामयी माता के

रूप में दिखाया है। वह अपनी पुत्री मल्लिका तथा उसके भविष्य को

लेकर चिंतित रहती है। उसे सबसे बड़ी चिंता इस बात को लेकर है

कि मल्लिका, कालिदास से प्रेम करती हैऔर वह एक अभावग्रस्त 

युवक कवि है, जिसका अपना कोई भविष्य दिखाई नहीं देता। वह

मल्लिका से कहती है -

" मैं जानती हूँ तुम पर आज अपना अधिकार भी नहीं है। किंतु ...

..................इतना बड़ा अपवाद मुझसे नहीं सहा जाता। "

स्पष्ट है कि वह अपनी बेटी के संबंध में ग्राम भर में फैले अपवाद 

(बदनामी) की ओर संकेत कर रही है।कालिदास के साथ इस प्रकार

खुलेआम घूमने की स्वछंदता किसी भी परंपरागत माँ को स्वीकार

न होगा।

२. परंपरा के प्रति मोह  :- अंबिका एक ऐसी नारी है जिसका भारतीय

 परंपराओं के प्रति विशेष मोह है। वह एक जागरूक सामाजिका है

और समाज की स्थिति को अच्छी तरह जानती है। वह समाज की चिंतन-दृष्टि को भी पहचानती है और उसी के अनुसार चलती आई है।

वह परंपराओं के विरुद्‌ध जाने वाली भावनाओं का विरोध करती है।

अंबिका परंपरा से चले आ रहे मूल्यों को अपना अपना धर्म मानती है।

वह समाज तथा सामाजिक लोक-व्यवहार को भी महत्त्व देती है। इसीलिए वह मल्लिका से कहती है -" यदि वास्तव में उसका तुमसे

भावना का संबंध है, तो वह क्यों तुमसे विवाह नहीं करना चाहता ? " 

३. दूरदृष्टि  :- अंबिका एक दूरदृष्टि वाली नारी है। उसकी दृष्टि सुलझी

हुई है।वह स्थितियों को जानती है। उसे घटनाओं के परिणाम की पहले से ही जानकारी रहती है। वह लोगों का व्यक्तित्व पहचानने में कोई भूल नहीं करती। वह मल्लिका से कहती भी है:-

" और अब जबकि उसका जीवन साधनहीन और अभावग्रस्त नहीं

रहेगा ? किसी संबंध से बचने के लिए अभाव जितना बड़ा कारण होता

है, अभाव की पूर्ति उससे बड़ा कारण बन जाती है। "

४. अनुभवी :- अंबिका एक निर्धन विधवा है।उसे जीवन का अनुभव प्राप्त है। वह हर हाल में मल्लिका को अशुभ से बचाना चाहती है।उसका अनुभव कालिदास जैसे कवियों को खूब पहचानता है। अंबिका

अपने घर की व्यवस्था अच्छी तरह से देखती है। वह अपनी बेटी का हर प्रकार से ध्यान रखती है। उसे अपने अनुभव पर पूरा भरोसा है।

५. वत्सल - भावना :-  अंबिका में वात्सल्य रस की कोई कमी नहीं है।

मल्लिका सयानी हो चुकी है। फिर भी वह उससे बच्चों की तरह स्‍नेह

करती है। सूखे कपड़े देना, दूध गर्म करके देना आदि इसी ओर संकेत

करता है।वह उसकी इच्छाओं को पूरा सम्मान देते हुए उससे स्‍नेह करती है।

६.व्यक्तित्व मनोविज्ञान की ज्ञाता :- अंबिका व्यक्तित्व मनोविज्ञान की

अच्छी जानकार है। वह व्यक्ति के मन की बात पढ़ लेती है। इसीलिए

वह समय-समय पर अपने सामने वाले व्यक्ति पर कटु व्यंग्य भी कर

देती है। उसे स्थिति का निर्धारण करना आता है।वह कालिदास की

मानसिकता पहचानती है। इसीलिए मातुल से कहती है - " मैं तुम्हें

विश्‍वास देलाती हूँ मातुल, कि वह उज्जयिनी अवश्‍य जाएगा। सम्मान

प्राप्त होने पर सम्मान के प्रति प्रकट की गई उदासीनता व्यक्ति के

महत्त्व को बढ़ा देती है।  "

प्रश्‍न : " उनके संबंध में कुछ मत कहो माँ, कुछ मत कहो....। " प्रस्तुत

           कथन का वक्ता कौन है ? इन शब्दों का संदर्भ क्या है ? वक्ता 

            की मन:स्‍थिति का क्या कारण है ?

उत्तर : ’आषाढ़ का एक दिन’ त्रिखंडीय नाटक है जिसमें महाकवि कालिदास के अल्पित जीवन को आधार बनाया गया है।प्रस्तुत नाटक

के नाटककार मोहन राकेश जी हैं। इन्हें अपने नाटक ’आषाढ़ का एक दिन ’ और ’ आधे अधूरे’ के लिए ’ संगीत नाटक अकादमी’ द्‍वारा पुरुस्कृत और सम्मानित किया गया।उन्होंने अपने साहित्य में समाज की मानसिकता को उजागर किया है। उनके प्रमुख नाटक हैं - लहरों के राजहंस, आधे अधूरे , पैर तले ज़मीन इत्यादि । 

प्रस्तुत कथन की वक्ता नाटक की प्रमुख नायिका मल्लिका है जो नाटक के नायक कालिदास की प्रेमिका है और जिसके अनुरोध पर ही उसने उज्जयिनी के सम्राट द्‍वारा दिए गए सम्मान और राजकवि के आसन को स्वीकार किया था।कालिदास के ग्राम-प्रांतर से चले जाने के बाद मल्लिका की आर्थिक स्थिति बहुत बिगड़ गई थी। अंबिका ने बिस्तर पकड़ लिया था वह अस्वस्थ रहती थी। 

इन वर्षों में मल्लिका ने कालिदास की सभी नई रचनाओं को पढ़ी थीं।

निक्षेप से ही मल्लिका को कालिदास से जुड़ी सभी खबरें मिलती थीं।

उसी से मल्लिका को यह ज्ञात होता है कि, कालिदास ने गुप्त वंश की राजदुहिता से विवाह कर लिया था।

कुछ वर्ष उपरांत ग्राम-प्रांतर में राजकर्मियों का आवागमन हुआ। मल्लिका के घर पर भी कई राजकर्मी आते हैं। सर्वप्रथम  संगिनी व रंगिणी आती हैं जो उज्जयिनी के नाट्‍य-केंद्र में नृत्य का अभ्यास और नाटक लिखती हैं। वे मल्लिका से कालिदास के जीवन की पृष्ठ्भूमि का अध्ययन करने के लिए कुछ जानकारी लेती हैं।उनके पश्‍चात अनुस्वार व अनुनासिक , दो राजपुरुष आते हैं। वे मल्लिका को सूचना देते हैं कि देव मातृगुप्त की राजमहिषी देवी प्रियंगुमंजरी उससे मिलना चाहती हैं।वे मल्लिका के घर को व्यवस्थित करने के लिए ही आए हैं। उन्हीं राजपुरुषों से मल्लिका को पता चलता है कि कालिदास का ही नया नाम मातृगुप्त है और वे गुप्त राज्य की ओर से काश्मीर का शासन सँभालने जा रहे हैं।  

 मातुल के जाने के बाद प्रियंगु  मल्लिका से उसका घर दिखाने का अनुरोध करती है। कालिदास की उदासीनता दूर करने के लिए वह उस ग्राम प्रदेश के वातावरण को अपने साथ ले जाना चाहती है। वह मल्लिका को अपने साथ चलने का भी प्रस्‍ताव देती है।प्रियंगु मल्लिका के घर की जर्जर अवस्था देखकर उसका परिसंस्कार करना चाहती है। मल्लिका को अपनी संगिनी बनाकर उज्‍जयिनी ले जाना चाहती है और अनुस्‍वार तथा अनुनासिका में से किसी से भी या किसी अन्य अधिकारी से मल्लिका को विवाह करने को कहती है।मल्लिका जब इस विषय पर अपनी अस्वीकृति व्यक्त करती है तो मल्लिका की माँ अंबिका क्रोधित होकर मल्लिका पर व्यंग्य कसती है- 

" इसके मन में यह कल्पना नहीं है क्योंकि यह भावना के स्तर पर जीती है ? "

अंबिका प्रियंगु से आर्थिक मदद चाहती है पर मल्लिका कोई भी सहायता लेने से इन्कार कर देती है । अंबिका कहती है कि कालिदास अगर उनके घर की भित्तियों का परिसंस्कार करवाकर अपने शासन तथा संपत्ति का परिचय देना चाहता है तो, आज जब वह भावना का मूल्य देना चाह रहा है तो ले लेना चाहिए।इस बीच विलोम भी आ जाता है और कालिदास के संबंध में अपने विचार प्रस्तुत कर आग में घी डालने का काम करता है।मल्लिका , विलोम से इस तरह की बातें करने से मना करती हैं जो माँ को दुख पहुँचाती हों।अंबिका का भाव आवेश में हताशा और हताशा से करुणा में बदल जाता है। वह मल्लिका को सहारा देती है और वक्ष से लगा लेती है। कहती है -

"  अब भी रोती हो ? उसके लिए ? उस व्यक्ति के लिए जिसने........?  "

मल्लिका कालिदास के संबंध में अपशब्द कुछ नहीं सुनना चाहती थी इसलिए उसने अंबिका को रोकने के लिए ही उपर्युक्त कथन कहे थे।

वक्ता की इस मन:स्थिति का कारण है परिस्थिति और समाज के निर्धारित नियम। आज मल्लिका की आर्थिक स्थिति बहुत बुरी है क्योंकि वह अविवाहित स्त्री है। कालिदास ने भी उज्जयिनी जाने के बाद उसकी कोई सुध नहीं ली थी। ग्राम प्रदेश में आने के बाद भी वह मल्लिका से मिलने नहीं आता है वरन् उसकी पत्‍नी आती है। प्रियंगु से दया की भीख अस्वीकार करने पर अंबिका और विलोम दोनों ही उस पर व्यंग्य कसते हैं। मल्लिका पूरी तरह से टूट जाती है। वह निराश और हतोत्साहित हो जाती है। परंतु इस स्थिति में भी वह कालिदास के विरुद्‍ध कुछ नहीं सुनना चाहती है क्योंकि उसे विश्‍वास है कि कालिदास के ऐसा करने के पीछे अवश्‍य उनकी कोई विवशता रही होगी। सच्चा प्रेम अपने प्रेय के दोष नहीं देखता। 

प्रश्‍न : " मेरे भीगे होने की चिन्ता मत करो। ....जानती हो, इस तरह भीगना भी जीवन की एक महत्त्वाकांक्षा हो सकती है ? वर्षों के बाद भीगा हूँ।अभी सूखना नहीं चाहता। " उक्त वाक्य किस प्रसंग में कहा गया है? इसमें अंतर्निहित भावना को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : प्रस्तुत पंक्तियाँ मोहन राकेश द्‌वारा लिखित नाटक ' आषाढ़ का एक दिन 'के तृतीय  खंड से ली गई है। आषाढ़ का एक दिन’ त्रिखंडीय नाटक है जिसमें महाकवि कालिदास के अल्पित जीवन को आधार बनाया गया है।प्रस्तुत नाटक के नाटककार मोहन राकेश जी हैं। इन्हें अपने नाटक ’आषाढ़ का एक दिन ’ और ’ आधे अधूरे’ के लिए ’ संगीत नाटक अकादमी’ द्‍वारा पुरुस्कृत और सम्मानित किया गया।उन्होंने अपने साहित्य में समाज की मानसिकता को उजागर किया है। उनके प्रमुख नाटक हैं - लहरों के राजहंस, आधे अधूरे , पैर तले ज़मीन इत्यादि । 

मल्लिका अपने कमरे में बैठी है। बाहर वर्षा हो रही है तथा मेघ गरज रहे हैं । मातुल मल्लिका को आकर सूचना देता है _ " कालिदास ने काश्मीर छोड़ दिया है। .... वहाँ के लोगों का तो कहना है कि उसने संन्‍यास ले लिया है और काशी चला गया है। " मल्लिका का हृदय इस बात को स्वीकार नहीं करता। मातुल के जाने के बाद वह गुमसुम-सी आसन पर बैठ जाती है और स्वयं से ही बातें करती हुई कहती है कि वह कालिदास से दूर रहते हुए भी कभी अपने से दूर न कर सकी। कालिदास की रचनाओं को पढ़कर वह अपना जीवन सार्थक समझती है लेकिन संन्‍यास लेने की सूचना को सुनकर वह कहती है- 

" .......आज तुम मेरे जीवन को इस तरह  निरर्थक कर दोगे ? " 

वह अपने जीवन की दुर्दशा का बखान करती है- इतने वर्ष उसने कैसे व्यतीत किए और क्या से क्या हो गई ? उसने अपना असली नाम खोकर एक विशेषण उपार्जित कर लिया है ऐसा कहकर वह यह संकेत करती है कि वह वेश्या बन गई है। अपने दारिद्रय को कोसती हुई कहती है दारिद्र्‌य के कारण उसके सभी गुण नष्ट हो गए।

मल्लिका कहती है कि उसने यह सब कष्ट सह लिए केवल इसलिए कि कालिदास एक दिन महान कवि बनेंगे,लेकिन उसके संन्‍यास लेने की बात सुनकर वह कहती है -

 " ...... तुम सब छोड़कर संन्‍यास ले रहे हो ? तटस्थ हो रहे हो ? उदासीन ? मुझे मेरी सत्ता से इस तरह वंचित कर दोगे ?"

मल्लिका दुखी होकर अपने से बातें करती है,तभी बिजली चमकती है तथा बादलों की गर्जन सुनाई देती है। वही आषाढ़ का दिन है,वर्षा हो रही है, तभी क्षत-विक्षत अवस्था में कालिदास द्‍वार खोलकर दहलीज़ पर खड़ा दिखाई देता है। मल्लिका उसे देखती रह जाती है। वह मल्लिका से कहता है -

" संभवतः पहचानती नहीं हो। और न पहचानना ही स्वाभाविक है,क्योंकि मैं वह व्यक्ति नहीं हूँ जिसे तुम पहले पहचानती रही हो। दूसरा व्यक्ति हूँ । " 

मल्लिका को लगता है, जैसे वह स्वप्‍न देख रही हो। वह कालिदास के भीगे वस्त्रों को देखकर कहती है - 

" बहुत भीग गए हो। मेरे यहाँ सूखे वस्त्र तो नहीण हैं, पर मैं......... "

प्रस्तुत प्रसंग में कालिदास मल्लिका को उत्तर देते हुए कहता है कि वह उसके भीगे होने की चिन्‍ता न करे। आज वह पूर्ण रूप से भीग जाना चाहता है। यह प्रेम की वर्षा है, सुख की बरसात है। कई वर्षों से इसी की तलाश में था। उसका जीवन नीरस हो चुका था,जीवन में कोई तरी नहीं थी,अत: आज वह अपने को इस सुख से वंचित नहीं करना चाहता, वह सूखना नहीं चाहता। 

इस कथन का तात्पर्य यही है कि कालिदास वर्षों बाद अपनी प्रेमिका मल्लिका के दर्शन करता है, अपनी इच्छा के विपरीत , न चाहते हुए भी वह अनमनेपन से उज्जयिनी चला गया था। वह मल्लिका के साथ पहले भी वर्षा में भीगा था, उसे ज्वर भी आता रहा पर आज वर्षा में भीगकर उसकी सारी थकान दूर हो गई। अतः वह अभी सूखना नहीं चाहता। वह मल्लिका के साथ बिताए अपने पुराने दिनों को पुनः महसूस करना चाहता था।

अतः हम कह सकते हैं कि, कालिदास मन से एक कवि थे और यही कारण है कि शासन करना उन्हें रास नहीं आता है । वे पुनः अपने वन-प्रदेश में वापस आ जाते हैं। 

प्रश्‍न :" उनके प्रसंग में मेरी बात कहीं नहीं आती है। मैं अनेकानेक साधारण व्यक्तियों में से हूँ। वे असाधारण हैं। उन्हें जीवन में असाधारण का ही साथ चाहिए था।...... "प्रस्तुत कथन को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर :आषाढ़ का एक दिन’ त्रिखंडीय नाटक है जिसमें महाकवि कालिदास के अल्पित जीवन को आधार बनाया गया है।प्रस्तुत नाटक

के नाटककार मोहन राकेश जी हैं। इन्हें अपने नाटक ’आषाढ़ का एक दिन ’ और ’ आधे अधूरे’ के लिए ’ संगीत नाटक अकादमी’ द्‍वारा पुरुस्कृत और सम्मानित किया गया।उन्होंने अपने साहित्य में समाज की मानसिकता को उजागर किया है। उनके प्रमुख नाटक हैं - लहरों के राजहंस, आधे अधूरे , पैर तले ज़मीन इत्यादि ।

प्रस्तुत पंक्तियाँ बहुमुखी प्रतिभासम्पन्न नाट्‍य लेखक व उपन्यासकार

मोहन राकेश द्‍वारा लिखित ' आषाढ़ का एक दिन ' के दूसरे अंक से

लिया गया है। हिमालय की तलहटी में स्थित प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर एक गाँव है। उसी गाँव में कालिदास नामक युवक रहता है जो

साहित्य-साधना में रत है। उसके गाँव की ही एक युवती मल्लिका उससे प्रेम करती थी।

नाटक के पहले अंक में हम देखते हैं कि कलिदास को उज्जयिनी से आचार्य वरुचि सम्मान पूर्वक ले जाने आते हैं। कालिदास को उनकी रचना ऋतु संहार की प्रसिद्‍धी के लिए राजकवि का उत्तरदायित्व से सम्मानित किया जा रहा था। कालिदास ने इस सम्मान को अस्वीकार कर दिया था। निक्षेप के सूचित करने पर मल्लिका अंबिका के मंदिर में बैठे कालिदास को उज्जयिनी जाने के लिए बाध्य किया था।

उज्जयिनी में कालिदास की धाक जम चुकी है। परंतु ग्राम- प्रदेश में मल्लिका की आर्थिक स्थिति बिगड़ती जा रही थी। वह एकाकी जीवन

जी रही थी। निक्षेप मल्लिका से मिलता है और उसकी वर्तमान स्थिति के लिए स्वयं को ज़िम्मेदार बताते हुए दुख प्रकट करता है।उसे इस बात का आश्‍चर्य होता है कि कालिदास उज्जयिनी जाकर कैसे मल्लिका को तथा अपने गाँव को भूल गया था। इसी संदर्भ में अपनी बात रखते हुए वह मल्लिका को यह बताते हैं कि उज्जयिनी जाकर कालिदास ने गुप्त वंश की राजदुहता से विवाह कर लिया था , जबकि

ग्राम प्रदेश में रहते उन्होंने हमेशा विवाह न करने की बात की थी।

वे कहते भी हैं -  " उस आग्रह का क्या हुआ ? उन्होंने यह नहीं सोचा

कि उनके इसी आग्रह की रक्षा के लिए तुमने...........? " इसी वाक्य के

उत्तर में मल्लिका उपरोक्त कथन कहती है।इस प्रकार मल्लिका ने कालिदास के प्रसंग  में यह कथन कहा था।

उपरोक्त कथन से मल्लिका के चरित्र के संबंध में यह कहा जा सकता 

है कि वह बड़ी ही यथार्थवादी थी और प्रियांगुमंजरी से ईर्ष्या नहीं करती । इसीलिए उनके विवाह की बातें सुनकर वह कहती है -  " ....

..... सुना है राजदुहिता बहुत विदूषी हैं । कालिदास जैसे विद्‍वान को मेरे जैसे साधारण व्यक्ति की नहीं बल्कि विदूषी कन्या की आवश्‍यकता थी। यदि वह कालिदास को जाने के लिए प्रेरित न करती तो उसे अपने पर ग्‍लानि होती कि कालिदास की प्रगति में बाधक बन 

गई और वह इतने महान न बन पाते जितने आज हैं।   "

इस प्रकार हम देखते हैं कि मल्लिका कालिदास से निःस्वार्थ प्रेम करती है। वह कालिदास को महान बनाने हेतु अपना सर्वस्व बलिदान

कर देती है। कालिदास को जब प्रसिद्‍धि, यश, वैभव प्राप्त हो जाता है तो वह अपने आप को उसके योग्य नहीं मानती।

                                                          अंक - ३

पंक्तियों पर आधारित प्रश्‍न :-

" मातुल न देवी है न देवता,न पंडित है,न राजा है। तो फिर क्यों कोई सिर झुकाकर मातुल की वंदना करे ?  "

क) प्रस्तुत पंक्ति के वक्ता और श्रोता का नाम लिखते हुए बताएँ कि

      वक्ता का कालिदास से क्या संबंध था ?

-:  प्रस्तुत पंक्ति के वक्ता मातुल और श्रोता मल्लिका है। मातुल,

    कालिदास का मामा है।

ख) वक्ता की वंदना सिर झुकाकर कौन और क्यों करते थे ?

 -: वक्ता की वंदना उज्जयिनी के राजप्रसाद में रहने वाले सभी लोग

     सिर झुकाकर करते थे। मातुल के अनुसार वे सभी लोग जिनको

    देखकर स्वयं मातुल का मन आदर से झुकाने का मन करता था,वे

    सभी उसके सामने सिर झुकाकर उसका सम्मान करते थे। वे लोग

    केवल मातुल की ही नहीं बल्कि मातुल के शरीर से उतारे गए वस्त्रों 

    की भी वंदना करने के लिए प्रस्तुत रहते थे। वक्ता की वंदना वे लोग

    इसीलिए करते थे क्योंकि, वक्ता कालिदास के मामा थे और

   कालिदास उज्जयिनी के राजसभा के राजकवि थे जो, अपनी रचनाओं

   के लिए पूरे नगरवासी और सम्राट के प्रिय कवि थे।

ग) प्रस्तुत पंक्तियों का संदर्भ लिखें।
   - : प्रस्तुत पंक्तियाँ आषाढ़ का एक दिन अंक-३ से ली गई है। इसमें

       मातुल भारी वर्षा में भीगकर  मल्लिका के घर में वर्षा से बचने

       के लिए शरण लेता है। वह मल्लिका से अपने कष्टों के बारे में चर्चा

       करता है।वह बताता है कि यह आषाढ़ की वर्षा उसके लिए काल

       बन गयी है। पहले जब दो पैरों पर चलता था तो भारी वर्षा में उसे

     कोई तक़्लीफ नहीं होती थी परंतु अब बैसाखी के कारण उसे भारी 

      वर्षा में काफ़ी परेशानी का सामना करना पड़ता है, वह पैर आगे 

      रखता है तो बैसाखी फिसल जाती है। मातुल जब अपनी टूटी टाँगों

    के बारे में मल्लिका को बताता है तो उसे उज्जयिनी के श्‍वेत

   संगमरमर की याद आ जाती है और राजप्रसाद का स्मरण आते ही

  वह उपर्युक्त पंक्तियाँ मल्लिका से कहता है।

घ) वक्ता का चरित्र-चित्रण करें।

   -: संरक्षक - मातुल कालिदास का मामा है जो उसके भविष्य को

      लेकर बहुत चिंतित था यही कारण है कि जब कालिदास ने राजकवि

      का सम्मान ठुकरा दिया तो मातुल मल्लिका को इस बात की

     जानकारी देता है।

     व्यवहारिक - मातुल बहुत ही व्यवहारिक था । वह कहता भी है कि

     "जो व्यक्ति कुछ देता है, धन हो या सम्मान हो, वह अपना मन बदल

     भी तो सकता है और बदल गया तो बदल गया ।" उसके अनुसार

    कालिदास का सम्राट के सम्मान को अस्वीकार करना लोकनीति

    नहीं मूर्खनीति है।

    वाचाल - मातुल अति वाचाल है, बोलने में निपुण है। जब

     प्रियंगुमंजरी, मल्लिका से मिलने उसके घर आती है तो मातुल

     ज़बरदस्ती मल्लिका और प्रियंगुमंजरी के बीच में माध्यम बन जाता

     है और प्रियंगुमंजरी के बार-बार कहने के बावजूद भी वहाँ से नहीं

    जाता है।

    चाटुकार: मातुल बहुत ही चाटुकार था, जब प्रियंगुमंजरी , मल्लिका

   से मिलने आती है तो बार-बार वह प्रियंगुमंजरी की खुशामद करता है और जब  प्रियंगुमंजरी उसे कहती है कि वे थक गए होंगे और उन्हें अपने घर चले जाना चाहिए, तब वह कहता भी है कि,

" आपके कारण मैं थकूँगा ? मुझे आप दिन-भर पर्वत-शिखर से खाई में

   और खाई से पर्वत-शिकर पर जाने को कहती रहें तो भी मैं नहीं

   थकूँगा। "

  कोमलहृदय - मातुल मल्लिका की दयनीय अवस्था देखकर दुखी होता

  है और शिकयती स्वर में कहता है कि उसने प्रियंगु द्‍वारा दी गई

 सहायता क्यों नहीं ली।

भ्रमित - नाटक के तीसरे अंक में मातुल जब आषाढ़ की वर्षा में भीगकर मल्लिका के घर में प्रवेश करता है, तब वहाँ आकर कश्‍मीर के संदर्भ में जब अपने विचार व्यक्‍त करता है। उस दौरान उसके द्‍वारा कहा गया कथन उसके भ्रम को प्रकट करता है।

" मैं समझता हूँ कि जो कुछ मैं समझ पाता हूँ, सत्य सदा उसके विपरीत होता है। और मैं जब उस विपरीत तक पहुँचने लगता हूँ तो सत्‍य उस विपरीत से विपरीत हो जाता है।"

प्रश्‍न : 'आषाढ़ का एक दिन ' नाटक के आधार पर कालिदास का

          चरित्र - चित्रण कीजिए।

उत्‍तर : ' आषाढ़ का एक दिन ' नाटक एक यथार्थवादी नाटक है जो पात्रों के आंतरिक व मानसिक अन्‍तर्द्‍वंद तथा संवेदनशीलता को प्रकट करता है। इस नाटक के नाटककार मोहन राकेश जी हैं जो आधुनिक काल के सशक्त नाटककार माने जाते हैं।रंगमंच की दृष्‍टि से इन्होंने कई सफल नाटकों की रचना की है, जिसमें - आषाढ़ का एक दिन , लहरों के राजहंस , और आधे-अधूरे प्रमुख हैं। इस नाटक की प्रत्यक्ष विषय-वस्तु कालिदास के जीवन से संबंधित है।

असाधारण व्यक्तित्‍व का स्वामी: कालिदास निर्धन थे, अभावों में जीते हुए भी विलक्षण व्यक्‍तित्‍व रखते थे। यही कारण है कि कुछ न होते हुए भी मल्लिका जैसी सुंदरी उससे प्रेम कर बैठती है। कालिदास के लिए वह अपनी माँ अंबिका से भी लड़ जाती है।कालिदास के विलक्षण व्यक्‍तित्‍व से उज्‍जयिनी की राजकुमारी प्रियंगुमंजरी भी प्रभावित हो जाती है। परम विदुषी , अप्रतिम सुन्‍दरी प्रियंगुमंजरी का विवाह कालिदास से हो जाता है।

प्रकृति प्रेमी :  कालिदास ग्राम प्रदेश का रहने वाला था। उसका गाँव हिमालय की तलहटी में है, जहाँ प्रकृति ने चारों ओर अपना सौंदर्य बिखेरा है। कालिदास की रचनाओं - ऋतुसंहार, कुमारसंभव, मेघदूत आदि में इसी ग्राम प्रदेश के दर्शन होते हैं। उज्‍जयनी जाकर भी वे इसे भूल नहीं पाए थे। प्रियंगुमंजरी भी मल्लिका से कहती है - " वे भी जब तब यहाँ के जीवन की चर्चा करते हुए आत्‍मविस्मृत हो जाते हैं। इसीलिए राजनीतिक कार्यों मे कई बार मन उखड़ने लगता है। "

पशु प्रेमी व उदार हृदय : कालिदास को पशुओं से बहुत प्रेम था। जब दंतुल ने एक हरिण शावक को घायल कर दिया था तो वह उसके उपचार के लिए मल्लिका के घर ले आया था। दंतुल किसी भी धमकी की उसने परवाह नहीं की थी और किसी भी कीमत पर उसने वह हरिण शावक उसे नहीं सौंपा था।

महात्‍वाकांक्षी : कालिदास का जीवन आभावों में बीता था। उन्हें हमेशा लोगों द्‍वारा प्रताड़ना और लांछना ही मिली। जब  उन्‍हें उज्‍जयनी जाने का अवसर मिला तो पहले उन्‍होंने अस्वीकार कर दिया, परंतु बाद में मल्लिका के समझाने से वे उज्‍जयनी चले जाते हैं। वहाँ जाकर मातॄगुप्‍त नाम से प्रसिद्‍ध होते हैं। गुप्‍त वंश की राजकुमारी प्रियंगुमंजरी से विवाह करके राजसी सुख भोगते हैं। वे अपनी महात्‍वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए काश्‍मीर का शासन भी सँभालने के लिए तैयार हो जाते हैं।

स्वार्थी : कालिदास बहुत ही स्वार्थी था। उसने मल्लिका का केवल अपनी रचना को ज़िंदा रखने के लिए ही साथ दिया था। कालिदास को एकमात्र मल्लिका ही प्रोत्‍साहित करती अन्‍य सभी उसे नकारा मानते थे। उज्‍जयनी जाने के बाद उसने एक बार भी मल्लिका की कोई खॊज खबर नहीं ली और काश्‍मीर जाते समय, ग्राम प्रदेश में आने के बाद भी मल्लिका से नहीं मिला। अंबिका हमेशा मल्लिका को कालिदास के स्वार्थी होने की बात कहती थी पर मल्लिका नहीं मानती थी। यही कारण है कि कालिदास जब मल्लिका से मिलने नहीं आता है तो, अंबिका कहती है - " मैं जानती थी। आज नहीं, तब से ही जानती थी। वह आता, तो मुझे आश्‍चर्य होता। अब मुझे आश्‍चर्य नहीं है।  "

निर्णय लेने में असमर्थ : कालिदास कोई भी निर्णय लेने में असमर्थ थे। जब आचार्य वरुचि उन्हें उज्‍जयनी ले जाने आए तो वे जगदम्‍बा के मंदिर में चले जाते हैं। निक्षेप के कहने पर मल्लिका वहाँ जाकर कालिदास को समझाती है कि उज्‍जयनी जाकर ही उनका सपना पूरा हो सकता है। सम्राट की मृत्‍यु के बाद जब राजनीति में भयंकर उथल-पुथल होती है तो कालिदास सब छोड़कर ग्राम प्रदेश आ जाते हैं और मल्लिका के साथ अथ से शुरू करने की इच्छा प्रकट करते हैं। मल्लिका की बच्ची को देखते ही कालिदास मल्लिका को एक बार फिर से अकेला वहाँ छोड़कर चला जाता है।

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि नाटक का प्रमुख पात्र होने के बावजूद भी उसमें कई नकारात्मक पहलू भी थे। कालिदास एक महान कवि थे, जो राजनीति के लिए पैदा नहीं हुए थे। वे  परिस्थितियों के गुलाम बन कर रहे। अतः वे न तो एक सफल प्रेमी ही बन सके और न हि एक सफल राजनीतिज्ञ।

प्रश्‍न : 'आषाढ़ का एक दिन ' नाटक के आधार पर मल्लिका का

          चरित्र - चित्रण कीजिए।

: ' आषाढ़ का एक दिन ' नाटक पात्रों की दृष्टि से भी एक सफल नाटक है क्योंकि पात्रों की योजना कथानक के अनुसार है। मोहन राकेश के इस नाटक में दो प्रमुख पात्र हैं, कालिदास और मल्लिका। जिसमें मल्लिका का चरित्र नाटक के संदेश को अपने में समेटे हुए हैं।नाटक का यह चरित्र नाटक का प्राण है जिसने कालिदास व अन्य पात्रों के सहयोग से नाटककार के उद्‍देश्‍य को पूरा करने में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाई है। मल्लिका के चरित्र की अनेक विशेषताएँ हैं जो नाटक को प्रभावशाली बनाने में सहायक हैं। मल्लिका ने अपने चरित्र का बड़ी सफलता से निर्वाह किया है।

प्रकृति प्रेमी : ' आषाढ़ का एक दिन ' नाटक के प्रारंभ में जब मल्लिका वर्षा में भीगकर आती है और अम्बिका से प्रकृति के सौंदर्य का वर्णन करती है तब प्रकृति से उसके प्रेम का आभास हो जाता है। मल्लिका प्रकृति के बहुत करीब है। मल्लिका का यह कथन उसके प्रकृति प्रेम को प्रदर्शित करता है।

" माँ, आज के वे क्षण मैं कभी नहीं भूल सकती । सौंदर्य का ऐसा साक्षात्कार मैंने कभी नहीं किया। जैसे वह सौंदर्य अदृश्‍य होते हुए भी माँसल हो।  "

त्याग की प्रतिमूर्ति : संपूर्ण नाटक में हम देखते हैं कि जब-जब आवश्‍यकता पड़ी है, मल्लिका ने त्याग किया है। प्रथम अंक में जब कालिदास को राजकवि के पद से सम्मानित करने के लिए उज्जयिनी बुलाया जाता है तो अंबिका के कहने पर भी वह अपने विवाह की बात कालिदास से न करके उसकी प्रतिभा को विकसित होने का पूरा अवसर प्रदान करती है। 

" जानती हूँ कि कोई भी रेखा तुम्हें घेर ले, तो तुम घिर जाओगे। मैं तुम्हें घेरना नहीं चाहती। इसीलिए कहती हूँ , जाओ।"

नाटक के अंतिम अंक में भी हम देखते हैं कि जब कालिदास सब छोड़कर मल्लिका के पास आता है और उसे अथ से आरंभ करने की बात करता है। कालिदास मल्लिका की बच्ची को देखकर वहाँ से चला जाता है । मल्लिका उसे रोकने जाती है परंतु बच्ची का ध्यान आते ही रुक जाती है।यहाँ भी मल्लिका का त्याग ही दिखाई देता है।

भावुक :  मल्लिका एक भावुक पात्र है जो हमेशा लोगों की भावनाओं को समझती है। मल्लिका भावनाओं को विशेष स्थान देती है। उसने पूरे नाटक के दौरान सभी की भावनाओं का पूरा ध्यान रखा है तथा अपने किसी भी कार्य व्यापार से किसी अन्य पात्र की भावनाओं को आहत नहीं होने दिया है। अंबिका ने मल्लिका से कहा भी था - " तुम जिसे भावना कहती हो वह केवल छलना और आत्‍म-प्रवंचना है।"

स्वाभिमानी: मल्लिका जिसका व्यक्‍तित्‍व एक तरफ भावुक और कोमल भावनाओं वाला है वहीं दूसरी ओर उसने कभी भी अपने आत्‍म-सम्‍मान को आहत नहीं होने दिया । मुश्‍किल से मुश्‍किल परिस्थिति में होते हुए कभी भी किसी से दया की अपेक्षा नहीं की। वह प्रियंगुमंजरी की तरफ से कई बार सहायता देने के बाद भी  उसे स्वीकार नहीं करती और अपने स्वाभिमान से समझौता नहीं करती है। मातुल का यह कथन उसके चरित्र के इस गुण को प्रमाणित करता है।

" प्रियंगुमंजरी ने तुम्‍हारे लिए कुछ वस्त्र और स्वर्ण मुद्राएँ भिजवायी थीं जो तुमने लौटा दीं।" 

सच्ची प्रेयसी : मल्लिका ने एक सच्ची प्रेयसी के धर्म का निर्वाह करते हुए बिना किसी अपेक्षा के कालिदास की प्रतिभा को विकसित होने के लिए कभी भी अपने प्रेम को बाधा नहीं बनने देती है। अंबिका के कहने पर कि, ' विवाह के लिए तुम क्यों नहीं कहती? ' इस प्रश्‍न के जवाब में मल्लिका का कथन उसके सच्चे प्रेम को प्रदर्शित करता है। 

" तुम उनके प्रति अनुदार रही हो, माँ! तुम जानती हो, उनका जीवन परिस्थितियों की कैसी विडम्‍बना में बीता है। मातुल के घर में उनकी क्या दशा रही है। उस साधन-हीन और अभाव-ग्रस्त जीवन में विवाह की कल्पना ही कैसे की जा सकती थी? 

संघर्षशील: मल्लिका का जीवन कालिदास के जाने के बाद तथा अंबिका की मृत्‍यु के बाद पूर्णतया संघर्ष में ही बीता। आर्थिक स्थिति इतनी खराब हो गयी कि मल्लिका को अपने निर्वाह के लिए वारंगना का जीवन व्यतीत करना पड़ा। इतनी कठिन परिस्थितियों के बावजूद उसने कभी जीवन से हार नहीं मानी। 

इस प्रकार मल्लिका नाटक की प्रमुख भूमिका का निर्वाह करती है जिनमें इनके अतिरिक्त  अनेक गुण विद्‍यमान हैं जो उसके चरित्र की सफलता में सहायक हैं।

 प्रश्‍न : 'आषाढ़ का एक दिन ' नाटक के आधार पर प्रियंगुमंजरी का

          चरित्र - चित्रण कीजिए।

: प्रियंगुमंजरी उज्जयिनी की विदूषी राजदुहिता थी। प्रियंगुमंजरी नाटक की एक गौण पात्र होते हुए भी मल्लिका और कालिदास जैसे प्रमुख पात्रों के चरित्र को विकसित करने में महत्‍वपूर्ण योगदान देती है।

विनम्रता : प्रियंगुमंजरी बड़े ही विनम्र स्वभाव की है। विनम्रता उसके चरित्र की एक महत्‍त्वपूर्ण विशेषता है। उसकी कुलीनता उसके स्वभाव से प्रदर्शित होती है। प्रियंगुमंजरी जब मल्लिका के घर आती है तो मल्लिका आतिथ्य करने का प्रयास करती है तो उसके जवाब में राजदुहिता द्‍वारा दिया गया जवाब उनकी विनम्रता की मिसाल है।

" आतिथ्य की बात मत सोचो। मैं तुम्हारे यहाँ अतिथि के रूप में नहीं आयी हूँ।  "

समझदार :  प्रियंगुमंजरी के चरित्र में समझदारी कूट-कूट कर भरी है। वह मल्लिका से मिलने के दौरान बड़ी समझदारी से मल्लिका और कालिदास के संबंधों  के बारे में बातें करती हैं। मल्लिका के घर में जब कालिदास की रचनाएँ देखती है तो उसका कथनचपन उसकी समझदारी को प्रमाणित करता है।

" मैं समझ सकती हूँ। उनसे जान चुकी हूँ कि तुम बचपन से उनकी संगिनी रही हो।उनकी रचनाओं के प्रति तुम्हारा मोह स्वाभाविक  है।  "

पतिपरायणता :  प्रियंगुमंजरी बड़ी ही पतिपरायणा है। वह अपने पति की उदासीनता को देखकर ग्रामप्रदेश की वस्तुओं को संग्रहित करती है और उज्जयनी में कालिदास के अनुरूप वातावरण का निर्माण करना चाहती है । वह कलिदास की उदासीनता को दूर करना चाहती है और उनकी रचनात्मक विकास के लिए प्रेरणा स्रोत भी प्रस्तुत करना चाहती है। " कुछ हरिण शावक जाएँगे, जिनका हम अपने उद्‍यान में पालन करेंगे। यहाँ की औषधियाँ उद्यान के क्रीड़ा-शैल पर तथा आस-पास के प्रदेशों में लगवा दी जाएगी। "

संवेदनशील : प्रियंगुमंजरी में बड़ी संवेदनशीलता है। वह दूसरों के दुख को समझ सकती है। उसने ग्राम प्रदेश में रहने वाले कालिदास के मामा, मातुल के घर का परिसंस्कार करवा दिया था। मल्लिका के घर की बुरी दशा को देखकर प्रियंगुमंजरी ने उसके घर के भी परिसंस्कार कराने का प्रस्ताव रखा।उसने मल्लिका का जीवन सुधारने के उद्‍देश्‍य से उसे किसी भी राजकर्मी से विवाह कर उसके साथ काश्‍मीर चलने का न्योता भी देती है। " मैं तुम्हारी सुविधा के लिए ही कह रही थी। तुम्हें इसमे असुविधा है, तो.............ठीक है। मैं ऐसा आदेश नहीं दूँगी।फिर भी चाहती हूँ कि तुम्हारे लिए कुछ न कुछ कर सकूँ।  "

गुणों की पारखी : प्रियंगुमंजरी का सबसे बड़ा गुण है कि वह दूसरे के गुणों की प्रशंसा करना जानती है। मल्लिका से मिलते ही वह कहती है-  " सचमुच वैसी ही हो जैसी मैंने कल्पना की थी। "  वह मल्लिका के सौंदर्य से ईर्ष्या नहीं करती बल्कि कहती है - " सचमुच बहुत सुंदर हो। जानती हो, अपरिचित होते हुए भी तुम मुझे अपरिचित नहीं लग रहीं ? "

असाधारण व्यक्‍तित्व : प्रियंगुमंजरी कुलीन वंश से संबंध रखती है। वह परम विदूषी स्त्री है। जब निक्षेप मल्लिका को प्रियंगु व कालिदास के विवाह की सूचना देता है तो मल्लिका उसे कालिदास के समान ही असाधारण मानते हुए कहती है कि - " मैं अनेकानेक साधारण व्यक्तियों में से हूँ। वे असाधारण हैं। उन्हें जीवन में असाधारण का ही साथ चाहिए था। सुना है राज दुहिता बहुत विदुषी हैं। " प्रियंगुमंजरी दर्शन-शास्त्र भी पढ़ी हुई हैं।

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि मल्लिका के बाद प्रियंगुमंजरी भी इस नाटक की एक अनिवार्य पात्र है जिसके बिना नाटक अधूरा-सा लगता। प्रियंगुमंजरी ने बहुत प्रयास किया कि वह गाँव का सा वातावरण राजधानी में पैदा कर सके और मल्लिका की याद को कालिदास के दिल से मिटा सके, लेकिन वह ऐसा नहीं कर पाई और न ही स्वयं कभी मल्लिका बन पाई। 

असद का एक दिन नाटक का भाव क्या है?

'आषाढ़ का एक दिन' में सफलता और प्रेम में एक को चुनने के द्वन्द से जूझते कालिदास एक रचनाकार और एक आधुनिक मनुष्य के मन की पहेलियों को सामने रखा है। वहीँ प्रेम में टूटकर भी प्रेम को नहीं टूटने देने वाली इस नाटक की नायिका के रूप में हिन्दी साहित्य को एक अविस्मरनीय पात्र मिला है।

असर का एक दिन नाटक का भावार्थ क्या है स्पष्ट कीजिए?

नाटक के एक समीक्षक (क्रिटिक) ने कहा है के नाटक के हर खंड का अंत में "कालिदास मल्लिका को अकेला छोड़ जाता है: पहले जब वह अकेला उज्जयिनी चला जाता है; दूसरा जब वह गाँव आकर भी मल्लिका से जानबूझ कर नहीं मिलता; और तीसरा जब वह मल्लिका के घर से अचानक मुड़़ के निकल जाता है।" यह नाटक दर्शाता है कि कालिदास के महानता पाने के प्रयास ...

आषाढ़ का एक दिन नाटक का क्या उद्देश्य है?

यह नाटक दर्शाता है कि कालिदास के महानता पाने के प्रयास की मल्लिका और कालिदास को कितनी बड़ी क़ीमत चुकानी पड़ती है। जब कालिदास मल्लिका को छोड़कर उज्जयिनी में बस जाता है तो उसकी ख्याति और उसका रुतबा तो बढ़ता है लेकिन उसकी सृजनशक्ति चली जाती है।

आधे अधूरे नाटक की प्रमुख समस्या क्या है?

मोहन राकेश का नाटक 'आधे-अधूरे' एक मध्यमवर्गीय परिवार की आंतरिक कलह और उलझते रिश्तों के साथ-साथ समाज में स्त्री-पुरुष के बीच बदलते परिवेश तथा एक-दूसरे से दोनों की अपेक्षाओं को चित्रित करता है। महेन्द्रनाथ बहुत समय से व्यापार में असफल होकर घर पर बेकार बैठा है और उसकी पत्नी सावित्री नौकरी करके घर चलाती है।