भारत विविधताओं का देश है उदाहरण सहित विवेचना कीजिए - bhaarat vividhataon ka desh hai udaaharan sahit vivechana keejie

Solution : भारत विविधताओं का देश है क्योंकि यहां के लोग विभिन्न भाषाएँ बोलते हैं। विभिन्न प्रकार का खाना खाते हैं, अलग-अलग त्यौहार मनाते हैं और भिन्न भिन्न धर्मों का पालन करते हैं तथा अलग-अलग पहनावा पहनते हैं। ये विभिन्नताएँ विविधता के पहलू हैं।

Facebook

邮箱或手机号 密码

忘记帐户?

注册

无法处理你的请求

此请求遇到了问题。我们会尽快将它修复。

  • 返回首页

  • 中文(简体)
  • English (US)
  • 日本語
  • 한국어
  • Français (France)
  • Bahasa Indonesia
  • Polski
  • Español
  • Português (Brasil)
  • Deutsch
  • Italiano

  • 注册
  • 登录
  • Messenger
  • Facebook Lite
  • Watch
  • 地点
  • 游戏
  • Marketplace
  • Meta Pay
  • Oculus
  • Portal
  • Instagram
  • Bulletin
  • 筹款活动
  • 服务
  • 选民信息中心
  • 小组
  • 关于
  • 创建广告
  • 创建公共主页
  • 开发者
  • 招聘信息
  • 隐私权政策
  • 隐私中心
  • Cookie
  • Ad Choices
  • 条款
  • 帮助中心
  • 联系人上传和非用户
  • 设置
  • 动态记录

Meta © 2022

  • भारत की विभिन्नता में एकता है व्याख्या कीजिए
    • (1)भौगोलिक विविधता और एकता –
  • (2)राजनीतिक विविधता और एकता –
    • (3)जातीय विविधता और एकता –
    • (4)धार्मिक विविधता में एकता –
    • (5)सांस्कतिक विविधता में एकता –
    • (6)आर्थिक विविधता में एकता –
    • (7)भाषायी विविधता में एकता –
  • ग्रामीण जीवन में परिवर्तन के कारण/कारक
    • (1)प्राकृतिक कारण –
    • (2) प्रौद्योगिकीय कारण –
    • (3)सांस्कृतिक कारण –
    • (4)औद्योगिक क्रान्ति –

भारत की विभिन्नता में एकता है व्याख्या कीजिए

विविधता में एकता की अवधारणा भारत एक विशाल और अत्यन्त प्राचीन देश है। यह इतना बड़ा देश है, जितना रूस को छोड़कर सम्पूर्ण यूरोप इस महान देश में अनेक भौगोलिक विभिन्नतायें पाई जाती हैं। यहाँ पहाड़, मैदान, मरूस्थल, घने वन, नदियां, समुद्र के सैकड़ों किलोमीटर लम्बे किनारे हैं। यहाँ हर तरह की ऋतु, विभिन्न प्रकार की जलवायु, रंग-बिरंगे फूल, सहस्रों प्रकार के फल, खाद्यान्न, आदि उत्पन्न होते है। विभिन्न प्रजातियों तथा धर्मों के लोग निवास करते हैं, जिनके रीति-रिवाज, त्यौहार, रहन-सहन के तरीके अलग-अलग हैं। स्पष्ट है कि भारत एक इन्द्र धनुष के समान अपने भीतर कई रंगों को समेटे हुये है। कुछ विद्वानों ने भारत को ‘विश्व का संक्षिप्त संग्रहालय’ तक कहा है। इन सभी विभिन्नताओं के बाद भी भारत में एक मूलभूत एकता के दर्शन होते हैं। एकता में विभिन्नता और विभिन्नता में एकता भारतीय संस्कृति का मूल-मंत्र है अर्थात् विविधता में एकता ही भारतीय संस्कृति की अनुपम विशेषता है। पं0 नेहरू के शब्दों में “यह मौलिक एकता बाहर से थोपी गई वस्तु नहीं है, अपितु यह आन्तरिक एकता है तथा यह भारत की एकता में व्याप्त है।”

इस देश की सांस्कृतिक विविधता एवं एकता अधोलिखित तथ्यों से स्पष्ट की जा सकती है –

(1)भौगोलिक विविधता और एकता –

भारत भौगोलिक विविधताओं वाला देश है। जलवायु, पैदावार, रहन-सहन, ऋतु एवं मौसम, आदि भारत की विभिन्नताओं को रखा। करते हैं। उत्तर में हिमालय सजग प्रहरी की भाँति मुस्तैदी से खड़ा हुआ है, तो दक्षिण में हिन्द महासागर इसका पद-प्रक्षालन करता है। मध्य भारत में समतल उपजाऊ मैदान है, तो दक्षिण भारत में विशाल पठारी भाग हैं। राजस्थान में मरूस्थल है, तो मेघालय में वर्षा का बाहुल्य है। विभिन्न नदियों और पर्वत श्रृंखलाओं ने भारत को विभिन्न भौगोलिक क्षेत्र में विभाजित कर दिया है। ऐसी भौगोलिक विविधता के कारण भिन्न-भिन्न क्षेत्रों के लोगों के खान-पान, रहन-सहन, वेश-भूषा, आदि में विविधता पाई जाती है। किन्तु इन सभी भौगोलिक विविधताओं के होते हुये भी भारत एक अखण्ड भौगोलिक इकाई बना हुआ है। इस देश की प्रकृति में ही एशिया के अन्य देशों से भारत को अलग कर दिया है।

(2)राजनीतिक विविधता और एकता –

भारत प्राचीन काल से ही एक महादेश है। यहाँ प्रारम्भ से ही राजनैतिक विभिन्नता विद्यमान रही है। मेगास्थनीज की ‘इण्डिका’ से पता चलता है कि चन्द्रगुप्त मौर्य के काल में ही भारत लगभग 18 राज्यों में बँटा हुआ था। योग्य राजाओं का चक्रवर्ती बनने का स्वप्न एवं राजसूय तथा अश्वमेध यज्ञ करने की प्रबल आकांक्षा को भारत की अखण्ड राष्ट्रीय एकता के सैद्धान्तिक एवं व्यावहारिक स्वरूप ही थे। मौर्य एवं गुप्त सम्राटों तथा उनके बाद सम्राट हर्षवद्धन ने भी सम्पूर्ण देश को एक राजनीतिक  इकाई में संगठित करने का प्रयास किया। ब्रिटिश शासन काल में अंग्रेजो ने भी यही कोशिश की।

स्पष्ट है कि भारत में राष्ट्रीय एकीकरण की भावना प्रारम्भ से ही विद्यमान रही है, जो कि राजनीतिक विविधताओं के बाद भी सम्पूर्ण देश की एकता को बन्धन में बांधे रखती है। स्वतत्रता प्राप्ति के बाद चीनी और पाकिस्तानी आक्रमणों के दौरान भारत की राजनतिक एकता। बार-बार स्पष्ट होती रही है। वर्तमान समय में भारत में आतकवाद का काला छाया मंडरा रही है, किन्तु भारत की राजनैतिक विविधता बिना किसी भयवश आज भी एकता की भावना को जीवित रखने में सफल है। वर्तमान समय में में भी भारत में बड़े, मध्यम और छोटे-छोटे राज्य विद्यमान हैं, किन्तु सभी राज्य संधीय शासन के अन्तर्गत ही कार्य करते हैं।

(3)जातीय विविधता और एकता –

भारतीय समाज में विभिन्न जातियाँ एवं उपजातियाँ पाई जाती हैं, अतः उसे ‘जातियों/प्रजातियों का द्रवण-पात्र और ‘अजायब घर’ कहा जाता है। किसी ने कहा है कि भारतीय जातियों के अध्ययन हेतु एक सेना की आवश्यकता है। प्राचीन काल में आर्य, द्रविड़, शबर, पुलिन्द, मंगोल, यवन, हूण, शक, पह्नव, आदि भारत में आये। मध्यकाल में तुर्क, मुगल, पठान तथा पन्द्रहवीं सदी में पुर्तगीज, फ्रेन्च, डच तथा अंग्रेज, आदि जातियों ने भारत में प्रवेश किया। लम्बी अवधि तक साथ-साथ रहने के कारण उनके मध्य सांस्कृतिक संघर्ष भी हुआ, फिर भी शान्ति स्थापित हुई। इससे एक मिली-जली संस्कृति विकसित हई, जो कालान्तर में अत्यधिक सुदृढ़ हो गयी। आज भी भारत में विभिन्न प्रजातियों/जातियों के लोग विभिन्न मतभेदों के बाद भी मिल-जुलकर रहते हैं। अतः जाति और प्रजातिगंत विविधता में भी मौलिक एकता पाई जाती है।

(4)धार्मिक विविधता में एकता –

भारत विभिन्न धर्मों का संग्रहालय कहा जाता है। भारत में हिन्दू, जैन, इस्लाम, पारसी, आदि धर्म विद्यमान हैं। प्रत्येक धर्म की अनेक शाखायें और सम्प्रदाय भी हैं, लेकिन इसके बाद भी भारत में धार्मिक एवं मौलिक एकता विद्यमान रही है। इसके प्रमुख कारण हैं –

1. समस्त धर्मों के मूल सिद्धान्त लगभग एक-समान हैं। देश के समस्त धर्म पवित्र आचरण पर विशेष बल देते हैं।

2. विभिन्न धर्मों की प्रचलित प्रथाओं में भी काफी समानता पाई जाती है।

3. समस्त धर्मों में आन्तरिक समन्वय की भावना पाई जाती है।

4. समस्त धर्म मानव-कल्याण को महत्व देते हये मनुष्यों को समान समझने का उपदेश भी देते है।

(5)सांस्कतिक विविधता में एकता –

भारत में अनेक सांस्कृतिक विभिन्नतायें दिखाई देती हैं। भारत में कुल 179 भाषायें प्रचलित हैं, जिनमें केवल 18 भाषाओं को साहित्यिक दृष्टिकोण से मान्यता प्राप्त है। उत्तर भारत की हिन्दी, मराठी, सिन्धी, पंजाबी, बंगाली, असमिया, आदि सभी भाषाओं का उद्गम आर्यों की संस्कृत भाषा से हुआ है। दक्षिण भारत में प्रयुक्त भाषायें – तेलुगु, तमिल, मलयालम तथा कन्नड़, द्रविड़ भाषा का ही अंग है। इन सब भाषाओं की लिपियाँ भी भिन्न-भिन्न हैं।

इसी प्रकार भारत में विभिन्न कालों में भिन्न-भिन्न प्रकार की कलायें विकसित होती रही हैं, जिनमें बौद्ध कला, राजपूत कला, गान्धार कला, माथुर कला तथा मुगल कला, आदि प्रमुख हैं। यही नहीं, भारतीयों की वेशभूषा तथा खान-पान में भी बहुत अधिक भिन्नता है। यहाँ विभिन्न जातियों के लोग रहते हैं, जिनके सामाजिक रीति-रिवाज एवं परम्परायें भी भिन्न-भिन्न हैं। इन विभिन्नताओं के होते हुये भी भारत में एक अटूट सांस्कृतिक एकता पाई जाती है. क्योंकि –

1. इस देश की सभी भाषायें संस्कृत, द्रविड आदि प्राचीन भाषाओं से बनी हैं।

2. भारत की सभी कलाओं पर आध्यात्मिकता की छाप है।

3. यहाँ की वेश-भूषा एवं खान-पान में भी एक विचित्र प्रकार की एकता दृष्टिगोचर होती है।

4. भारतीय समाज की रचना इतने उच्चादर्शों से हुई है कि समाज में पारस्परिक सम्बन्ध परिवार के सदस्यों की भाँति सहयोग, त्याग और स्नेह की भावना पर आधारित है। भारतीय समाज की यही विविधता में एकता संसार के लिये एक अनोखा उदाहरण है।

(6)आर्थिक विविधता में एकता –

भारत में कई प्रकार की आर्थिक विषमताये दृष्टिगोचर होती हैं। यहाँ कुछ व्यक्ति अत्यधिक धनी हैं, तो कुछ व्यक्ति अत्यन्त निधन भी है। व्यवसाय, व्यापार, वाणिज्य उद्योग, आदि की दृष्टि से भी कई प्रकार की विविधताये दष्टिगोचर होती हैं। फिर भी सूक्ष्म दृष्टि से देखने पर पता चलता है कि इस आर्थिक विभिन्नता में भी एकता है। भारत एक कृषि प्रधान देश है। यहाँ की 70% जनता कृषि करती है। अतः भी पर्याप्त समानता है। अधिकांश जनता की आर्थिक समस्यायें एक समान हैं और उनके आर्थिक जीवन स्तर में भी पर्याप्त समानता है।

(7)भाषायी विविधता में एकता –

एक महादेश होने के कारण भारत के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग भाषायें फलती-फूलती रहीं। बंगाली, गुजराती, उड़िया, छत्तीसगढ़ी, मराठी, गुजराती, काश्मीरी, पंजाबी, हरियाणवी, राजस्थानी, तेलुग, तमिल, आदि भाषायें वस्तुतः संस्कृत भाषा से उत्पन्न हुई हैं। अतः संस्कृत भाषा के माध्यम से भारत प्राचीनकाल से ही एकता के बन्धन में आबद्ध रहा है। वर्तमान समय में हिन्दी भाषा राष्ट्रभाषा घोषित हो गयी है, जिसके कारण एक विशिष्ट भाषायी एकता दिखाई पड़ने लगी है। भारतीय संदर्भ में विविधता में एकता की अवधारणा से सम्बन्धित उपरोक्त विवरण के आधार पर हम कह सकते हैं कि भारत की विविधताओं में एक आधारभूत मौलिक एकता के दर्शन होते हैं। भारत की मौलिक एकता उसकी विविधताओं का ही परिणाम है अर्थात् भारत की विविधताओं, में ही उसकी मौलिक विशेषता निहित है। भारत की विविधताओं में एकता निहित है, जो कई विविधताओं के बाद भी कभी समाप्त नहीं हुई है। प्राचीनकाल से ही भारत में इस प्रकार की ‘अनेकता में एकता‘ विद्यमान रही है। अतः यह कहना कि भारतवर्ष में वंश, वर्ण, भाषा, वेशभूषा, व रीति-रिवाज सम्बन्धी अनेक विभिन्नताओं में भी एक अखण्ड आधारभूत एकता है। भारत इन्द्रधनुष की भाँति अपने भीतर कई रंगों को समेटे हुये एक संस्कृति वाला राष्ट्र है –

“अनेकता में यह एकता ही भारतीय संस्कृति की प्रमुख विशेषता है।” भारतीय संस्कृति की इस प्रमुख विशेषता के महत्व को ध्यान में रखते हुये कहा जाता है कि “अनेकता में एकता भारतीय संस्कृति का मूलमंत्र है।” इन कथनों में कोई शाब्दिक या भावात्मक अतिशयोक्ति नहीं है। निश्चय ही भारत सदैव से एकता के सूत्र में बँधा रहा है। प्राचीनकाल से आधनिक काल तक मौलिक एकता की अखण्ड ज्योति को जाग्रत रखने में वैदिक दार्शनिक, महात्मा बुद्ध, महावीर स्वामी, चाणक्य, चन्द्रगुप्त मौर्य, अशोक, समुद्रगुप्त, चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य, अकबर, महात्मा गाँधी तथा पं0 नेहरू आदि का महान् योगदान रहा है।

टैगोर का यह कथन नितान्त सत्य है, भारत की मौसिक एकता भारतीय आत्मा का अन्तर्निहित गुण है।

ग्रामीण जीवन में परिवर्तन के कारण/कारक

भारतीय ग्रामीण जीवन में परिवर्तन लाने वाले प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं –

(1)प्राकृतिक कारण –

ग्रामीण जीवन में परिवर्तन करने में प्राकृतिक कारणों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। प्राकृतिक कारणों को भौतिक पर्यावरण के नाम से भी जाना जाता है। प्राकृतिक कारणों में विभिन्न प्रकार की प्राकृतिक आपदायें जैसे- बाढ़, भूकम्प, तूफान, आंधी, अकाल इत्यादि आते हैं, जो ग्रामीण जीवन में मुख्य परिवर्तन के कारण है। इन आपदाओं से मानव जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है उनके घर, खेत, फसलें पशु-पक्षी सब कुछ नष्ट हो जाते है। कभी-कभी इन आपदाओं से उनको अपनी जान भी गंवानी पड़ जाती है, गाँवों का आकार बदल जाता है, उनकी रोजमर्रा की जिन्दगी में परिवर्तन आ जाता है। उनके आपसी सम्बन्धों में भी परिवर्तन आ जाते हैं।

(2) प्रौद्योगिकीय कारण –

ग्रामीण जीवन में परिवर्तन लाने में प्रौद्योगिकीय कारणों की भी अहम् भूमिका होती है । जैसे-जैसे विज्ञान के आविष्कार होते गये यंत्रीकरण एव  औद्योगीकरण को बढ़ावा मिलता गया । नगरों में तो यंत्रीकरण का गहरा प्रभाव पड़ ही है, गाँवों में भी परिवर्तन सामने आये हैं । यंत्रीकरण से ग्रामवासियों के सामाजिक जीवन में, राजनैतिक और आर्थिक जीवन मे भी बहुत प्रभाव पड़ा है | यंत्रीकरण से उनके काया, खेती-बाडी और अन्य प्रकार के व्यावसायिक कार्यों में विकास हआ है । यद्यपि गांवो मे रुदिवादिता के कारण इन परिवर्तनों की विकास गति थोड़ी धीमी है परन्तु फिर भी धीरे-धीरे इनमें परिवर्तन सामने आ रहे हैं।

(3)सांस्कृतिक कारण –

ग्रामीण जीवन में परिवर्तन लाने में सांस्कृतिक कारण  प्रमख स्थान रखते है। जैसे-जैसे समय व परिस्थितियों बदलती जाती हैं वैसे-वैसे ही मानव मूल्य व धारणायें बदलता जाता है। इस परिवर्तन का प्रभाव ग्रामीण सामाजिक संस्था आर व्यवस्था पर भी पड़ता है। संस्कृति सामाजिक परिवर्तन को दिशा एवं गति प्रदान करता है। संस्कति ही यह निर्धारित करती है कि परिवर्तन की सीमायें क्या-क्या हैं। परिवर्तन इन सीमाओं के बाहर नहीं जाने चाहिए । अतः सांस्कृतिक कारण भी ग्रामीण जीवन में परिवर्तन लाने के महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है ।

(4)औद्योगिक क्रान्ति –

ग्रामीण जीवन में परिवर्तन का एक मुख्य कारक औद्योगिक क्रान्ति भी है। औद्योगीकरण के कारण और नये-नये आविष्कारों से कृषि के यंत्र का निर्माण हुआ। पहले गाँवों में जहाँ गाँववासी हाथों से कार्य करते थे, अब वही कार्य वह इन यंत्रों के माध्यम से हो रहा है।

आप को यह भी पसन्द आयेगा-

  • जल संसाधन क्या है जल संसाधन की आवश्यकता

Disclaimer -- Hindiguider.com does not own this book, PDF Materials, Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet or created by HindiGuider.com. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: [email protected]

भारत को विविधताओं का देश है कैसे?

भारत में विविधता भारत विविधताओं से भरा देश है। भारत में लगभग हर मुख्य धर्म को मानने वाले लोग रहते हैं। अलग अलग धर्म को मानने वाले कई मायनों में एक दूसरे से अलग होते हैं; जैसे रीति रिवाज, त्योहार, मान्यताएँ, खान-पान और पारंपरिक परिधान। इतनी अधिक विविधता के कारण हमारा देश सांस्कृतिक भिन्नताओं का धनी है।

भारत को विविधता वाले देश क्यों कहा जाता है?

भारत में विविधता व्याप्त है। इसके पीछे अनेक विद्वान् तर्क देते हैं कि ऐसा इसीलिए है, क्योंकि भारत एक राष्ट्र न होकर अफ़्रीका की तरह भौगोलिक इकाई है, जहाँ अनेक छोटे-बड़े राज्य हैं, जिनमें कई क्षेत्रों में परस्पर भिन्नता है।

भारत में कौन कौन सी विविधता है?

सामान्य जानकारी.

विविधता से आप क्या समझते हैं उदाहरण सहित स्पष्ट करें?

विविधता से तात्पर्य ऐसी स्थिति से है जिसमें समस्त भाषायी, क्षेत्रीय, भौगोलिक एवं सांस्कृतिक रुप से अलग-अलग रहने वाले मानव एक समुह/ समाज या एक स्थान विशेष में साथ-साथ निवास करते हैं। ऐसा माना जाता है कि सभी व्यक्ति शारीरिक रचना की दृष्टि से समान होती है।