पहली से पांचवी तक की कक्षाओं में भाषा शिक्षण पाठ्यचर्या में एक केंद्रीय स्थान प्राप्त करता है। भाषा के द्वारा प्राप्त आधारभूत कौशल दूसरे क्षेत्रों के संप्रत्ययों को समझने में सहायक होता है। Show किसी बच्चे के व्यक्तित्व निर्माण में और लोगों के साथ संवाद में भाषा के नौ आधारभूत कौशल महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। जो क्रमशः सुनना, बोलना, पढ़ना, लिखना, विचारों को समझना (सुन करके और पढ़ करके),जरूरी व्याकरण की जानकारी, खुद से सीखना, भाषा का उपयोग और शब्दकोश पर पकड़ इत्यादि हैं । भाषा को सुनने का आनंदभाषा का सबसे महत्वपूर्ण कौशल सुनना है। अगर किसी भाषा को हम सीखना चाहते हैं तो उसे सुनने और बोलने का मौका मिलने पर हम आसानी से उस भाषा को सीख सकते हैं। उदाहरण के तौर पर अगर राजस्थान के किसी आदिवासी अंचल में गरासिया या बागड़ी बोली बच्चे के घर की भाषा है। जबकि स्कूल में बच्चे की पढ़ाई हिंदी माध्यम में होती है तो बच्चे को पहली क्लास से ही हिंदी भाषा सुनने का ज्यादा से मौका देना चाहिए ताकि बच्चे इस भाषा में सहज हो सके। इसके लिए बच्चे को कहानी सुनने और बालगीत सुनने और बोलने का मौका दिया जा सकता है। इससे बच्चे के मन में हिंदी भाषा का व्याकरण अपने आप बनता जाएगा। एक समय के बाद बच्चा बहुत आसानी से हिंदी भाषा के छोटे-छोटे वाक्यों का इस्तेमाल कर पाएगा। मगर इसके लिए क्लासरूम में बच्चे के घर की भाषा को भी जगह देनी होगी ताकि बच्चे अपने अनुभवों को क्लासरूम में व्यक्त करने में किसी तरह की झिझक या संकोच का अनुभव न करें। बच्चे के घर की भाषा (होम लैंग्वेज) नई भाषा सीखने में बाधक नहीं बल्कि सहायक है। संदर्भ के माध्यम से किसी भाषा को सीखने में काफी आसानी होती है। चित्रों पर चर्चा है जरूरीकिताबों में छपे चित्रों पर होने वाली चर्चा बच्चों के भाषा का इस्तेमाल करने का एक सुंदर मौका देती है। अपने दोस्तों के साथ वे चित्रों के ऊपर बच्चे खुद आपस में बात करते हैं। इस प्रक्रिया में वे ढेर सारी नई बातें सीखते जाते हैं। मसलन किताब सीधी कैसे पकड़नी है? किसी दिशा से किस दिशा में पढ़ना है? किताब में छपे चित्रों का लिखी हुई सामग्री से क्या रिश्ता है? कौन से चित्र हैं जो अपने आसपास के परिवेश से मेल खाते हैं। जैसे लायब्रेरी में एक किताब में छपे चित्र को दिखाने के लिए बच्चा भाषा शिक्षक के पास लेकर गया और बोला ये देखिए ऑटो। मगर प्राथमिक कक्षाओं को किताबें देने में शिक्षक संकोच करते हैं। वास्तव में शिक्षकों को इस बात को पूरी तरह समझने में नाकाम होते हैं कि छोटे बच्चों के लिए किताबें कितनी उपयोगी है? पढ़ने का कौशल जो बच्चे सीख रहे हैं या सीख चुके हैं उसे इस्तेमाल करने का मौका लायब्रेरी की किताबों के माध्यम से बच्चों को मिलता है। इससे बच्चे ज्यादा रुचि के साथ अपने भाषाई कौशलों को इस्तेमाल करने के लिए प्रेरित होते हैं। आदिवासी इलाकों में जहाँ बच्चों के लिए हिंदी एक अज़नबी भाषा है। मारवाड़ी से उनका सामना अपनी आदिवासी भाषा के साथ होता है। भाषा शिक्षण का उद्देश्यपहली क्लास में अगर बच्चे सहजता के साथ बच्चे बातचीत करने के लिए तैयार हैं तो इसका श्रेय शिक्षक द्वारा हिंदी में संवाद करने की कोशिश, बच्चों को हिंदी में निर्देश देने का प्रयास, कहानी के माध्यम से उन तक पहुंचने की कोशिश, इन सारे पहलुओं को इसका श्रेय दिया जा सकता है। इसमें उन बच्चों को किताबों के साथ एक रिश्ता बनाने का मौका देना भी शामिल है। प्राथमिक स्तर पर भाषा शिक्षण का प्रमुख उद्देश्य है कि बच्चे किसी बात को सुनकर समझ पाएं। औपचारिक और अनौपचारिक दोनों तरह के माहौल में प्रभावशाली ढंग से अपनी बात रख पाएं। किसी किताब को समझते हुए पढ़ सकें और उससे अपनी समझ का निर्माण कर सकें। सुनी हुई बातों को लिख सकें। लिखावट अच्छी हो ताकि जो लिखा गया है उसे समझते हुए पढ़ा जा सके। भाषा का विभिन्न संदर्भों में इस्तेमाल करते समय व्याकरण का उपयोग बच्चे आसानी से कर पाएं भाषा शिक्षण का एक उद्देश्य यह भी होता है। किताबों को पढ़ने में रुचि का विकास करना और अपने पसंद की किताबों का चुनाव खुद से करने की योग्यता का विकास करना भी भाषा शिक्षण के प्रमुख उद्देश्यों में से एक है। भाषा की क्षमताएं- भाषा की चार आधारभूत क्षमताएं हैं- सुनना, बोलना, पढ़ना और लिखना। सुनने, बोलने और पढ़ने में समझना शामिल है। लिखने में किसी भाषा के व्याकरण को समझते हुए अपनी बात को लिखित रूप में व्यक्त करना शामिल है। लिखने में डायरी लेखन, किसी सवाल का जवाब लिखना, नोट्स लिखना व अन्य किसी तरीके से लेखन कौशल का इस्तेमाल करना शामिल है। इसमें छोटी-छोटी कहानी, कविता या किसी सुनी हुई बात को लिखने का कौशल शामिल है। भाषा की यह सारी क्षमताएं एक दूसरे से जुड़ी हुई हैं। एक क्षमता के विकास के साथ अन्य क्षमताएं स्वतः विकसित होती रहती हैं। भाषा शिक्षण की रोचक गतिविधियां- किसी घटना का वर्णन,क्लास के दोस्तों के साथ बातचीत (चिट-चैट),कहानी कहना,नाटक आयोजित करना,बातचीत (संवाद), सवाल-जवाब सत्र, शब्दों का खेल, डिबेट प्रतिस्पर्धा,गीत व संगीत के कार्यक्रमों का आयोजन। खुद से सीखने की गतिविधि को बढ़ावा देने के लिए..बच्चों को उनकी रुचि की किताबें पढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है। चित्रों वाली किताबों का उपयोग किया जा सकता है। ऐसे खेल भी आयोजित किए जा सकते हैं…जो संवाद औऱ बातचीत पर आधारित हों। ऐसी गतिविधियां बच्चों के भाषाई कौशल विकास के लिए बहुत उपयोगी साबित हो सकती हैं….। भाषाई कौशल कितने होते हैं?भाषायी कुशलता का सम्बन्ध भाषा के चार कौशलों से हैं - श्रवण (सुनना), वाचन (बोलना), पठन (पढ़ना) और लेखन (लिखना)।
भाषा के 4 कौशल कौन कौन से हैं?भाषा कौशल का अर्थ-
अर्थात् अध्येता भाषा के चारों कौशलों सुनना, बोलना, पढ़ना और लिखना में पूर्ण रूप से दक्षता हासिल कर सके। अध्येता के भाषा सीखने पर यदि उसका भाषा के उपरोक्त चारों कौशल पर पूर्णता अधिकार ना हो तब भाषा कौशल अधूरा रह जाता है ।
कौशल कितने प्रकार के होते हैं?विभिन्न प्रकार के शिक्षण कौशल (Different Types of Teaching Skill). (1) प्रस्तावना कौशल. (2) प्रश्न रचना कौशल. (3) प्रश्न पूछने का कौशल. (4) उद्दीपन परिवर्तन कौशल. (5) पुनर्बलन कौशल. (6) उदाहरणों द्वारा स्पष्टीकरण कौशल. (7) श्यामपट्ट लेखन कौशल. भाषा के कौन से चार कौशल हैं उदाहरण देकर लिखिए?भाषा के चार कौशल हैं-. बोलना, सुनना, पढ़ना, समझना. पढ़ना, बोलना, रटना, समझना. सुनना, लिखना, बोलना, रटना. सुनना, बोलना, पढ़ना, लिखना. |