बंध कितने प्रकार के होते हैं - bandh kitane prakaar ke hote hain

बंध कितने प्रकार के होते हैं - bandh kitane prakaar ke hote hain

बंध का अर्थ है रोकना या बंद करना। बंध लगाने तथा मुद्राओं का अभ्यास करने से विशेष लाभ होता है। मुद्राओं का जिक्र हम अपने पहले के आर्टिकल में कर चुके हैं ।आज हम प्राणायाम के दौरान बंध लगाने का विस्तार से वर्णन कर रहे हैं।

प्राणायाम के दौरान एक विशेष प्रकार से बंध लगाया जाता है जिसका सीधा संबंध हमारे स्वास्थय से होता है। प्राणायाम करते समय अपनी श्वासों के प्रवाह को कुछ क्षणों के लिए रोक दिया जाना ही बंध लगाने को दर्शाता है। बंध लगाने के लिए हमें विशेष अभ्यास की ज़रूरत होती है। हमारे शरीर में बहने वाली ऊर्जा को बंध लगाकर किसी विशेष क्षेत्र में कुछ क्षणों के लिए रोक दिया जाता है तथा जब बंध खोला जाता है तो वही ऊर्जा अधिक वेग से हमारे शरीर में प्रवाहित होने लगती है। इसका सीधा प्रभाव हमारे शरीर पर पड़ता है। इससे शरीर के किसी भी क्षेत्र में जमीं गंदगी को वहाँ से बहाकर ले जाना बंध के द्वारा ही संभव है। यह वही प्रक्रिया है जिससे हमारे रक्त संचार में विशेष सुधार होता है और जो हमारे स्वास्थय को सुधारने में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। इसे हम एक उदाहरण से कुछ इस प्रकार समझ सकते हैं कि जिस प्रकार किसी पाइप लाइन में अगर गंदगी या कचरा हो जाए तो उस पाइप लाइन को साफ करने के लिए प्रेशर से पानी डाला जाता है जिससे कि वह नाली या पाइपलाइन आसानी से खुल जाती है। उसी प्रकार हमारे शरीर में भी नसों का जाल बना हुआ है तथा एक जगह से दूसरी जगह तक रक्त का प्रवाह लगातार होता रहता है । हमारे गलत खान पान के कारण और हवा में फैल रहे प्रदूषण के कारण से हमारे शरीर में भी टॉक्सिन्स जमा हो जाते हैं जो कि हमारे शरीर में विभिन्न तरह की समस्याओं को जन्म देते है। प्राणायाम के दौरान लगाने जाने वाले बंध के अभ्यास से हम अपने शरीर से टॉक्सिन्स को आसानी से बाहर निकाल सकते हैं। प्राणायाम के दौरान बंध लगाने से तथा कुछ क्षणों के बाद बंध खोलने से जहाँ हमारे शरीर से टॉक्सिन्स दूर होकर हमारा शरीर साफ होता है वहीं दूसरी ओर हमारे शरीर के रक्त संचार की प्रक्रिया में भी सुधार होता है। पुराने मृत कण बहकर दूर चले जाते हैं। इस प्रकार सभी अंग मजबूत बनते हैं। बंध लगाने से हमारे मस्तिष्क , नसों और नाड़ियों को मजबूती मिलती है।

यह तो आप समझ ही चुके होंगे कि प्राणायाम करने से  हमारे स्वास्थय पर काफी अच्छा प्रभाव पड़ता है । अब समझने की बात यह है कि प्राणायाम करते समय तीन कौन सी क्रियाऐं की जाती हैं जिन्हें समझकर हम बंध लगाने की प्रकिया को आसानी से समझ सकते हैं—–

1.पूरक—– नियंत्रित गति से श्वास अंदर लेने की प्रक्रिया को पूरक कहते हैं। श्वास को अंदर लेते समय एक लय और सही अनुपात का होना बहुत ही आवश्यक है। इसे हठयोग में अभ्यांतर वृत्ति भी कहा जाता है।

2.कुम्भक—–हर व्यक्ति में श्वास रोकने की अलग क्षमता होती है। अत: कोई व्यक्ति कम समय तक और कोई अधिक समय तक श्वास रोक सकता है । इसी अंदर ली हुई श्वास को रोकने की क्रिया को कुम्भक कहते हैं। इसे हठयोग में स्तम्भ वृत्ति भी कहते हैं ।

3.रेचक——-यह प्राणायाम की तीसरी तथा आखिरी क्रिया है अर्थात इस क्रिया में अंदर ली हुई तथा रोकी गई श्वास को विधिपूर्वक बाहर निकाला जाता है । श्वास बाहर निकालने की इसी प्रक्रिया को ही रेचक कहा जाता है तथा हठयोग में इसे बाह्य वृत्ति भी कहते हैं।

मुख्यत:बंध चार प्रकार के होते हैं ——-

1.मूल बंध (गुदा संबंधी रोक या बंध लगाना)

2.उड्डियान बंध (आँतों व पेट को दबाकर पीठ तक चिपकाकर बंध लगाना)

3.जालंधर बंध (ठोड्डी को छाती से लगाकर बंध लगाना)

4.महाबंध (एक ही साथ तीनों बंधों का अभ्यास करना)

बंध कितने प्रकार के होते हैं - bandh kitane prakaar ke hote hain

1.मूल बंध——– इस बंध का अभ्यास सिद्धासन में बैठकर करना सबसे उचित रहता है। पहला तरीका है इसे करने के लिए सर्वप्रथम हम सिद्धासन में बैठ जाऐं तथा फिर मलमूत्र के छिद्रभाग के मध्य स्थान पर एक एड़ी से हल्का दबाव बनाऐं। इसके साथ ही अपनी गुदा को सिकोड़ते हुए अपनी मूत्रेन्द्रिय की नाड़ियों को ऊपर की ओर खींचें।

इस बंध को लगाने का दूसरा तरीका है कि सबसे पहले कपड़ा बिछाकर धरती पर बैठ जाऐं तथा अब एक पैर को आगे की ओर लंबा कर दें । अब दूसरे पैर को मोड़कर उसकी एड़ी का हल्का दबाव अपने मलमूत्र मार्ग के छिद्र के मध्य भाग पर  बनाऐं । ध्यान रहे कि दबाव हल्का ही हो अन्यथा उस स्थान की नसों को नुकसान पहुँच सकता है। अब दबाव डालने के साथ-साथ गुदा को ऊपर की ओर खींचना चाहिए।अब इसके साथ-साथ श्वास को भी ऊपर खींचना चाहिए। प्रारम्भ में यह प्रक्रिया 5 से 10 बार तथा धीरे-धीरे इसे बढ़ाकर 20 बार तक भी किया जा सकता है।

लाभ——- 1.इस बंध का नियमित अभ्यास करने से वीर्य संबंधी रोग नहीं होते।

  1. भयानक से भयानक कब्ज से भी छुटकारा मिलता है।

3.इसके निरन्तर अभ्यास से बवासीर की समस्या भी जल्द ही ठीक हो जाती है।

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2.उड्डियान बंध———- इस बंध को लगाने के लिए सुखासन में या पद्मासन में बैठ जाऐं । अब दोनों हाथों की हथेलियों को घुटनों पर रखें तथा अब थोड़ा आगे की ओर झुकें । अब साँस को पूरी तरह बाहर की ओर निकाल कर पेट को अंदर की ओर जितना हो सके खींचें तथा पीठ के साथ चिपका दें । जब तक संभव हो अर्थात यथा शक्ति इस स्थिति में बने रहें ।फिर पेट को ढीला छोड़ते हुए साँस भर लें ।पहले यह प्रक्रिया 5 से 8 बार तक करें तथा बाद में अभ्यास को नियमित करते हुए से बढ़ाकर 15 से 20 बार तक कर सकते हैं।

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सावधानियाँ——1.यदि पेट में कोई घाव हो या पेट का कोई ऑपरेशन हुआ हो तो इस बंध का अभ्यास कदापि ना करें ।

2.हर्निया ,हाइपर एसिडिटी, हृदय रोग तथा उच्चरक्त चाप व कमर दर्द की समस्या होने पर भी इस बंध का अभ्यास ना करें।

लाभ——1. यह शारीरिक शक्ति को बढ़ाता है तथा आयु में वृद्धि करता है।

  1. शरीर को हृष्ट-पुष्ट भी बनाता है तथा स्फुर्ति प्रदान करता है।

3.आँतों व पेट को बल देता है ।

4.इस बंध के प्रयोग से पेट की अतिरिक्त चर्बी घटती है ।

5.यह बंद कब्ज़ ,एसिडिटी की समस्या तथा पेट के अन्य रोगों में विशेष लाभ पहुंचाता है ।

  1. इसके अभ्यास से गैस की समस्या समाप्त होती है।

7.यह किडनी की समस्याओं  में भी विशेष लाभ पहुँचाता है।

8.इसके निरन्तर अभ्यास मे मूत्रदोषों का निपटारा होता है तथा बार-बार पेशाब आने की समस्या से छुटकारा मिलता है।

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3.जालंधर बंध——किसी भी सुखासन में बैठकर पूरक करके कुम्भक करें अर्थात् एक लय के साथ साँस को अंदर खींचकर बाहर छोड़ें तथा अब सिर और गर्दन को इतना झुकाऐं कि ठोड्डी की हड्डी छाती के भाग को स्पर्श करे।इस बंध के प्रभाव से हमारे सिर,दिल ,दिमाग,मेरूदंड तता गर्दन की माँसपेशियों पर काफी गहरा प्रभाव पड़ता है। हमारा दिमाग ही हमारे सभी अंगों को संदेश पहुँचाने का काम करता है अत: इस बंध के प्रभाव से हमारे मस्तिष्क में फैली हुई नाड़ियों के जाल में रक्त का संचार सुचारू रूप से होता है। जब हमारे मस्तिष्क में रक्त का प्रवाह सही गति से होता है तो वह हमारे शरीर को सही समय पर सही निर्देश देने लगता है जिसके फलस्वरूप हमारे अन्य अंग भी सही प्रकार से कार्य करने लगते हैं और हम स्वस्थ हो जाते हैं।

सावधानियाँ——– यदि गले में कोई तकलीफ हो या गले में दर्द हो तो इस बंध का अभ्यास नहीं करना चाहिए। सर्दी जुकाम होने पर भी इसे ना करें ।इस बंध का अभ्यास बलपूर्वक और जबरदस्ती ना करें ।

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4.महाबंध—–जैसेकि महाबंध के नाम से ही स्पष्ट हो जाता है कि यह एक महाबंध है यानि कि बड़ा बंध । अर्थात् जब मूल बंध, उड्डियान बंध और जालंधर बंध तीनो को एक साथ लगाया जाता है तो महाबंध बनता है। दूसरे तरीके से कहा जाए तो जब सिद्धासन में बैठकर बाऐं पैर की एड़ी को मलमूत्र के छिद्र के मध्य भाग में हल्का दबाव दिया जाए तथा साथ ही गुदा को ऊपर की ओर खींचा जाए इसे मूल बंध कहा जाता है और श्वास को भी धीरे-धीरे ऊपर की ओर खींचा जाए और इसके साथ पेट को अंदर की ओर खींचा जाए तथा पीठ से चिपका दिया जाए। इसे उड्डियान बंध कहा जाता है । इसको करने के साथ-साथ अपने सिर और गर्दन को इस प्रकार से झुकाया जाए ताकि  हमारी ठोड्डी हमारी छाती को छू सके इस अवस्था तो जालंधर बंध कहा जाता है । फिर इसी अवस्था में अपनी क्षमता के अनुसार कुछ क्षणों के लिए रुका जाए तो इस स्थिति को महाबंध कहा जाता है । फिर धीरे-धीरे एक सही लयबद्ध अनुपात में दोबारा सामान्य स्थिति में आया जाए। इस प्रक्रिया को हम अपने अभ्यास के माध्यम से धीरे-धीरे बढ़ा सकते हैं।

लाभ——महाबंध का अभ्यास करने से शरीर में फैली नाड़ियों में कहीं पर भी अवरोध होने पर या कोई टॉक्सिन इकट्ठा होने की स्थिति में विशेष लाभ होता है अर्थात् शरीर टॉक्सिन से मुक्त होकर स्वस्थ होता है। शरीर में रक्त का प्रवाह सुचारू रूप से होने लगता है। इसके नियमित अभ्यास से भूख बढ़ती है तथा शरीर की पाचन शक्ति में सुधार होता है। अत:  अच्छे स्वास्थय के लिए प्राणायाम करते समय बंध लगाने को लेकर लय और अनुपात का ध्यान रखना चाहिए।जिससे हम प्राणायाम करते समय लगाए हुए बंधों से पूर्ण लाभ उठा सकें।

बंध के मुख्यतः कितने प्रकार हैं?

बन्ध चार प्रकार के होते हैं। मूल बन्ध : गुदा संबंधी रोक। उड्डियान बन्ध : मध्य पेट को उठाना। जालन्धर बन्ध : ठोड्डी को बन्द करना।

बंद किसे कहते हैं यह कितने प्रकार का होता है?

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

बंध और मुद्रा क्या है?

किसी किसी अभ्यास में दो या तीन बंधों और मुद्राओं को सम्मिलित करना पड़ता है। यौगिक क्रियाओं का जब नित्य विधिपूर्वक अभ्यास किया जाता है निश्चय ही उनका इच्छित फल मिलता है। मुद्राओं एवं बंधों के प्रयोग करने से मंदाग्नि, कोष्ठबद्धता, बवासीर, खाँसी, दमा, तिल्ली का बढ़ना, योनिरोग, कोढ़ एवं अनेक असाध्य रोग अच्छे हो जाते हैं।

मूलबंध कैसे किया जाता है?

इसे करने की विधि- बाएं पांव की एड़ी से गुदाद्वार को दबाकर, फिर दाएं पांव को बाएं पांव की जांघ पर रखकर सिद्धासन में बैठें। इसके बाद गुदा को संकुचित करते हुए नीचे की वायु को ऊपर की ओर खींचने का अभ्यास करें। सिद्धासन में एड़ी के द्वारा ही यह काम लिया जाता है।