अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'| Show
हमें फॉलो करें 9. उत्तर दिशा : उत्तर दिशा के अधिपति हैं रावण के भाई कुबेर। कुबेर को धन का देवता भी कहा जाता है। बुध ग्रह उत्तर दिशा के स्वामी हैं। उत्तर दिशा को मातृ स्थान भी कहा गया है। वास्तु : उत्तर और ईशान दिशा में घर का मुख्य द्वार हो तो अति उत्तम होता है। इस दिशा में स्थान खाली रखना या कच्ची भूमि छोड़ना धन और समृद्धिकारक है। इस दिशा में शौचालय, रसोईघर बनवाने, कूड़ा-करकट डालने और इस दिशा को गंदा रखने से धन-संपत्ति का नाश होकर दुर्भाग्य का निर्माण होता है। अगले पन्ने पर दसवीं दिशा अधो का महत्व जानिए... वास्तु में घर के हर स्थान के चार कोण बताए गए हैं- ईशान कोण, नैऋत्य कोण, आग्नेय कोण और वायव्य कोण. इन सभी जगहों पर क्या निर्माण होना चाहिए और क्या रखना चाहिए इसे जानना बहुत जरूरी है.वास्तु में दिशाओं को बहुत महत्व दिया गया है. किस दिशा में कौन सी वस्तु रखी जानी चाहिए इसको लेकर वास्तु में कई नियम हैं. इन नियमों की अनदेखी भारी पड़ सकती है. वास्तु में घर के हर स्थान के चार कोण बताए गए हैं- ईशान कोण, नैऋत्य कोण, आग्नेय कोण और वायव्य कोण. आज हम आपको बता रहे हैं कि घर के चार कोनों में क्या सामान रखना चाहिए जिससे घर में धन की आवक बनी रहे.
यह भी पढ़ें: Astrology: इस साल राहु और केतु के बुरे प्रभाव से बचने के लिए आजमाएं ये अचूक उपाय वास्तु शास्त्र में दिशाओं का अत्यंत महत्व है क्योंकि प्रकृति का संबंध दिशाओं के साथ है। प्रकृति के वास्तु शास्त्र में दिशाओं का अत्यंत महत्व है क्योंकि प्रकृति का संबंध दिशाओं के साथ है। प्रकृति के विरुद्ध चलने पर तरह-तरह के कष्टों को झेलना पड़ता है, अत: दिशाओं के संबंध में ज्ञान होना अति आवश्यक है क्योंकि समस्याओं को तो मकान में रहने वाला ही झेलता है। यदि उसे दिशाओं के महत्व का ज्ञान होगा, तब वह बहुत आसानी से अपनी समस्याओं का समाधान कर सकता है।
पश्चिम दिशा और ये भी पढ़े
मध्यवर्ती दिशाएं कितनी होती है?दिशाएं 10 होती हैं जिनके नाम और क्रम इस प्रकार हैं- उर्ध्व, ईशान, पूर्व, आग्नेय, दक्षिण, नैऋत्य, पश्चिम, वायव्य, उत्तर और अधो। एक मध्य दिशा भी होती है। इस तरह कुल मिलाकर 11 दिशाएं हुईं। हिन्दू धमार्नुसार प्रत्येक दिशा का एक देवता नियुक्त किया गया है जिसे 'दिग्पाल' कहा गया है अर्थात दिशाओं के पालनहार।
पश्चिम और उत्तर दिशाओं के मध्य कोण को क्या कहते हैं?- पश्चिम और उत्तर के बीच के कोण को उत्तर-पश्चिम या वायव्य कोण कहते हैं। - बीच वाले हिस्से को ब्रह्रास्थान कहते हैं। पूर्व दिशा के प्रतिनिधि सूर्य और स्वामी इंद्र हैं।
नैऋत्य कोण का क्या मतलब हुआ?Naritya Kon वास्तु शास्त्र में दक्षिण-पश्चिम दिशा को नैऋत्य कोण के रूप में भी जाना जाता है। इस दिशा का स्वामी राहु है। राहु को एक छायाग्रह माना जाता है। यह अति प्रभावशाली एवं शक्तिशाली दिशा होती है।
चारो दिशा का क्या नाम है?हिन्दू धर्म के अनुसार मुख्यत: चार दिशाएँ होती हैं- पूरब, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण। इनके अतिरिक्त इन दिशाओं से 45 डिग्री कोण पर स्थित चार दिशाएँ तथा ऊर्ध्व (ऊपर) और अधो (नीचे) मिलाकर कुल दस दिशाएं हैं।
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