फल पकने क्या है पकने को प्रभावित करने वाले कारक की व्याख्या करें? - phal pakane kya hai pakane ko prabhaavit karane vaale kaarak kee vyaakhya karen?

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भौतिक कारक


  1. जलवायु– जलवायु कृषि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। पौधों को उनके विकास के लिए पर्याप्त गर्म तथा नम जलवायु की आवश्यकता होती है। पौधे के अानुवंशिक गुण भी जलवायु से प्रभावित होकर प्रदर्शित होते हैं |
  2. तापमान – फसल उत्पादन के लिय अनुकूल  तापमान की आवश्यकता होती है अनुकूल तापमान पर इन्जाइम की सक्रियता बनी रहती है जिससे रासायनिक क्रियाएँ सुगमता से उत्पन्न होती हैं  ग्रीष्मकालीन फसलों की वृध्दि के लिये 25° – 40° सेण्टीग्रेट के मध्य तथा शीतकालीन फसलों की वृध्दि के लिये 6°- 25° सेण्टीग्रेट तापमान उपयुक्त रहता है | तथा उत्पादन अच्छा होता है इसके अतिरिक्त तापमान प्रतिकूल होने पर पौधों की क्रियाएँ सुचारु रूप से नही हो पाती जिससे उपज पर दुष्प्रभाव पड़ता है |
  3. प्रकाश – पौधों की वृध्दि एवं विकास में सूर्य प्रकाश का महत्वपूर्ण स्थान है क्योंकि प्रकाश संश्लेषण का प्रत्यक्ष सम्बन्ध सूर्य प्रकाश से है| जो पौधों की अभिवर्द्धि में सहायक है | पौधों एवं पत्तियों में क्लोरोफिल की मात्रा सूर्य प्रकाश के अनुरूप ही होती है |सूर्य प्रकाश द्वारा पौधों को भोजन की प्राप्ति होती है तथा उनका विकास होता है जिन प्रदेशों में सूर्य प्रकाश की उपलब्धता कम होती है, वहाँ फसलें अपेक्षाकृत कम मात्रा में ही उत्पन्न हो पाती है | प्रकाश के अभाव में पौधों एवं उनकी पत्तियों का रंग प्रभावित होता है तथा तिलहन का उत्पादन सम्भव नहीं है |  प्रकाश के अभाव में पौधों को अनेको रोग लग जाते हैं जिससे उनका विकास अवरुद्ध हो जाता है, फलस्वरूप उत्पादन भी कम प्राप्त होता है |
  4. प्रदीप्तकाल– पौधों की प्रकाश संश्लेषण की क्रिया के लिये व उनमें फल फूल निकलने के लिये आवश्यक है अर्थात प्रकाशकाल पौधों की वृध्दि एवं विकास दोनों को प्रभावित करता है
  5. आर्द्रता – वातावरण में नमी की मात्रा पौधों की जलोत्सर्जन क्रिया, मृदा से वाष्पीकरण की क्रिया व वातावरण के तापमान को प्रभावित करती है | जिसका अन्तिम प्रभाव फसलों की वृध्दि पर होता है | आपेक्षिक आर्द्रता फसल के रोग एवं कीट पतंगों के फसल पर आक्रमण को भी प्रभावित करती है | आपेक्षिक आर्द्रता किसी निश्चित तापमान पर वायु को पूर्ण संतृप्त करने के लिये आवश्यक जलवाष्प की मात्रा की तुलना में वर्तमान जलवाष्प को आपेक्षिक आर्द्रता कहते हैं |
  6. वायु –  वायु की तीव्र गति फसल को नष्ट कर सकती है इसके अतिरिक्त तीव्र गति जलोत्सर्जन दर बढ़ाकर तथा मृदा से वाष्पीकरण की दर बढ़ाकर वायु फसलों की वृध्दि पर कुप्रभाव छोड़ती हैं वायु की गति वातावरण के तापमान को भी प्रभावित करती है| तीव्र गति के कारण तापमान गिरकर पौधों की वृध्दि को प्रभावित करता है |
  7. वर्षा – फसलों के वर्धन एवं विकास के लिये जल एक आवश्यक अवयव है क्योंकि इससे मृदा में नमी बनी रहती है | यही कारण है कि विश्व के उन भागों में कृषि कार्य अधिक विकासित हुए हैं जहाँ उनकी वृध्दि के लिये आवश्यक मात्रा में जल की उपलब्धता सुनिश्चित हुई है | कृषि क्षेत्रों में भिन्नता भी जल का उपलब्धि से प्रभावित होती है |वर्षा की विभिन्नता के अनुरूप ही फसलों एवं पशुओं के वितरण में भिन्नता पाई जाती है | जिन प्रदेशों में कृषि कार्य के लिये पर्याप्त मात्रा में जल उपलब्ध नहीं है, वहाँ कृत्रिम विधि द्वारा सिंचाई साधनों के माध्यम से जल की कमी को दूर कर कृषि कार्य सम्पन्न किये जाते हैं | प्रत्येक पौधे के विकास के लिये एक निश्चित मात्रा में जल की आवश्यकता होती है | पौधों को जल की प्राप्ति मृदा तथा वायुमण्डल आर्द्रता से प्राप्त होती है |फसलों के वितरण प्रारूप को वर्षा की मात्रा प्रभावित एवं निर्धारित करती है |वर्षा के द्वारा मृदा में जल की मात्रा बढ़ाई जाती है | वर्षा जल के साथ माइट्रेट, नाइट्रोजन व गन्धक आदि तत्वों का भी भूमि में उपयोग होता है | इस प्रकार पौधों की वृध्दि पर वर्षा का सीधा प्रभाव होता है |
  8. मृदा – मृदा अभिक्रियाएँ पौधों की वृध्दि के लिये अनुकूल पारिस्थितियाँ प्रदान करती हैं| उथली एवं बारीक जड़ों वाली फसलों के लिये दोमट मक्का व ज्वार के लिये हल्की दोमट तथा धान की फसल के लिये मटियार भूमियों की आवाश्कता होती है |मृदा अम्लता का भी फसलों की बढ़वार पर प्रभाव पड़ता है | लवणीय भूमियों मे कुछ फसलें अच्छी बढ़वार करती है जैसे- धान, बरसीम, आदि तथा कुछ अम्लीय मृदाओं में वृध्दि करती हैं -जैसे राई,आदि |

 सामजिक कारक


  1. पूँजी -पूँजी की फसल उत्पादन में मुख्य भूमिका है अधिकतम उपज प्राप्त करने के लिये बड़े- बड़े भूखण्डों पर आधुनिक तकनीकी एवं साधनों का उपयोग कर फसलोत्पादन से अधिकतम आय  प्राप्त की जा सकती है |
  2. यातायात– यातायात का भी फसल उत्पादन पर प्रभाव पड़ता है | आवागमन के समुचित साधन उपलब्ध होने से फसल चक्र में सुविधा के अनुसार फसलों का समावेश करना चाहिए। यातायात के साधन उपलब्ध होने से बाजार में फसलों को ले जाकर  उचित मूल्य प्राप्त की जा सकती है |
  3. बाजार– बाजार का भी फसलों के उत्पादन तथा वितरण में प्रभाव पड़ता है | बाजर की मांग के अनुरूप फसलें ली जानी चाहिए जैसे शहर के नजदीक वाली भूमिओं में साग॰सब्जी वाली फसलों को प्राथमिकता देना चाहिए। फलों व सब्जियों की तुड़ाई बाजार की दूरी पर निर्भर करती है और साथ ही उनकी परिपक्वता पर निर्भर करती है यदि फलों व सब्जियों को दूर भेजना हो, तो पकने से पूर्व ही तोड़ना चाहिए और यदि समीप भेजना हो तो पकने पर ही तोड़ना चाहिए| ताकि उन्हें तोड़ने एवं उपभोक्ता तक पहुँचने के समय के बीच कोई खराबी न आये और उनका स्वाद एवं सुरक्षा का पूर्ण विकास हो | प्रक्षेत्र से बाजार की दूरी बाजार की मांग एवं व्यापारिक दृषिट से ली गयी फसलों के लिए यह आवश्यक है कि बाजार प्रक्षेत्र के पास होना चाहिए।
  4. श्रमिकों की उपलब्धता – कृषि में श्रमिकों का मुख्य कार्य होता है । यदि श्रमिक आसानी से व पर्याप्त संख्या में उपलब्ध हैं तो सघन फसल॰चक्र अपनाया जा सकता है तथा फसल चक्र में नगदी फसलों को समावेशित लाभ लिया जा सकता है । चावल चाय, कपास और रबर जैसी फसलों की खेती के लिये कुशल श्रम की उपलब्धता आवश्यक है|इस प्रकार, श्रम की उपलब्धता के कारक कृषि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है |
  5. तकनीकी – नवीन कृषि विधयों व यन्त्रों के उपयोग से अधिकतम पैदावार की जा सकती है, नये विकसित उन्नत बीज के बौने से  एक इकई क्षेत्र व एक इकई समय में अधिक उपज प्राप्त होती है |फसल उच्च गुण वाली होती है,तथा कम समय मे परिपक्व हो जाती है|
  6. सरकार –  सन् 1950 तक देश में हमारे पास सिंचाई के साधन सीमित थे इसके बाद प्रत्येक पंचवर्षीय योजना में सिंचाई के साधनों में वृध्दि हुई | आज देश के विभिन्न भागों में सिंचाई के पर्याप्त साधन हैं और भविष्य में बढ़ते जायेंगे | अतः किसान सघन फसल चक्र अपनाकर वर्ष में तीन – चार  अधिक फसलों का उत्पादन  कर सकता है |उन्नत किसमें– देश के विभिन्न कृषि विश्वविधालयों अनुसंधान केन्द्रों ने अधिक उपज देने ,कीट एवं रोगरोधी किस्मों का विकास किया है प्रसार सेवायें- देश में प्रसार सेवाओं को बढ़ावा दिया जा रहा है जिससे किसानों को नये उच्चकोटि के बीज उपलब्ध कराने में भण्डारणगृहों का निर्माण, आदि सरकार द्वारा महत्वपूर्ण कार्य किये गये हैं जिससे कृषक अधिक फसल उत्पादन कर सके |

फल पकने क्या है पकने को प्रभावित करने वाले कारक की व्याख्या करें? - phal pakane kya hai pakane ko prabhaavit karane vaale kaarak kee vyaakhya karen?

फल पकने क्या है पकने को प्रभावित करने वाले कारक की व्याख्या करें

फलों का पकना एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके कारण वे अधिक स्वादिष्ट बन जाते हैं । सामान्य तौर पर, फल पकने पर मीठा, कम हरा और नरम हो जाता है। भले ही फल पकने के साथ-साथ उसकी अम्लता बढ़ जाती है, लेकिन उच्च अम्लता का स्तर फल को तीखा नहीं लगता। यह प्रभाव ब्रिक्स-एसिड अनुपात के लिए जिम्मेदार है।

फल के पकने का क्या कारण है?

एथिलीन: पौधों द्वारा उत्पादित एक गैस (C2H4), और इसे "पकने वाला हार्मोन" के रूप में जाना जाता है, जो फलों के पकने को उत्तेजित करता है

फल पकना क्या है?

पक्वन या पकना (Ripening), फलों में होने वाली वह प्रक्रिया है जो उन्हें अधिक स्वादिष्ट बनाती है। सामान्यतः, जैसे-जैसे फल पकता है, वह अधिक मीठा, कम हरा, और अधिक मृदु होता जाता है। यद्यपि पकने पर फल की अम्लता बढ़ जाती है, किन्तु यह अम्लता इतनी अधिक नहीं होती कि फल खट्टा (tarter) लगने लगे।

पकने को क्या प्रभावित करता है?

एथिलीन एक महत्वपूर्ण हार्मोन है जो पकने से संबंधित है । एथिलीन की अनुपस्थिति में फल नहीं पकते। यह दिखाया गया है कि एथिलीन संभवतः चरमोत्कर्ष लाता है। इसी तरह, गैर-जलवायु फल एक बार एथिलीन से उपचारित करने पर भी श्वसन में वृद्धि दिखाई देती है।