उत्तर - यथार्थवाद के निम्नलिखित चार रूप हैं- Show (1) मानवतावादी यथार्थवाद (Humanistic Realism)-मानवतावादी यथार्थवादियों के अनुसार, शिक्षा यथार्थवादी होनी चाहिए जिससे मनुष्य को जीवन में सुख व सफलता प्राप्त हो सके। (2) सामाजिक यथार्थवाद (Social Realism)-सामाजिक यथार्थवादी शिक्षा का उद्देश्य जीवन को सुखी व सफल बनाना तथा सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति करना मानते थे। वे पुस्तकीय शिक्षा के घोर विरोधी थे। वे सामाजिक क्रियाओं तथा सामाजिक वातावरण पर बल देते थे क्योंकि उनके अनुसार, सामाजिक क्रियाओं में भाग लेने तथा सामाजिक वातावरण में रहने से ही व्यक्ति में सामाजिक गुणों का विकास हो सकता है। वे विद्यालय को शिक्षा प्राप्त करने का उचित स्थान नहीं मानते थे क्योंकि इनमें पुस्तकीय शिक्षा ही प्रदान की जाती है। (3) ज्ञानेन्द्रिय यथार्थवाद (Sense Realism)- यह वाद ज्ञानेन्द्रियों को समस्त ज्ञान का आधार मानता है। शिक्षा के क्षेत्र में मानवतावादी यथार्थवाद तथा सामाजिक यथार्थवाद दोनों के मिश्रण तथा विज्ञान के प्रभाव के परिणामस्वरूप ज्ञानेन्द्रिय यथार्थवाद विकसित हुआ तथा इसने शिक्षा पर अत्यधिक प्रभाव डाला। (4) नव-यथार्थवाद (Neo-Realism)-वास्तव में नव-यथार्थवाद की विचारधारा का महत्त्व शिक्षा से अधिक दर्शन तथा विज्ञान के क्षेत्र में है। इस वाद के अनुसार, अन्य नियमों की भाँति विज्ञान के नियम भी परिवर्तनशील हैं तथा ये किन्हीं विशेष परिस्थितियों में ही प्रमाणिक होते हैं। उन परिस्थितियों में परिवर्तन होने के साथ ही इन नियमों में भी परिवर्तन हो जाता है। नव-यथार्थवादी विज्ञान और कला दोनों की शिक्षा को महत्त्वपूर्ण मानते हैं। यथार्थवादी शिक्षा की प्रमुख
विशेषतायें यथार्थवादी शिक्षा की मुख्य विशेषतायें निम्नलिखित हैं- (1) ज्ञानेन्द्रियों के प्रशिक्षण पर बल (Emphasis on Training of Senses)यथार्थवादियों ने ज्ञान देने के लिये बालकों की ज्ञानेन्द्रियों के प्रशिक्षण पर बल दिया, क्योंकि उनके अनुसार, जब तक बालक अपनी ज्ञानेन्द्रियों के माध्यम से ज्ञान प्राप्त नहीं करेगा, जब तक उसे वास्तविक ज्ञान की अनुभूति नहीं होगी। (2) पुस्तकीय ज्ञान का विरोध (Opposition of Bookish Knowledge)-यथार्थवादियों ने प्रचलित पुस्तकीय शिक्षा का विरोध किया क्योंकि उनके अनुसार, इससे 'वस्तु' का ज्ञान नहीं होता। वे चाहते हैं कि बालक को वस्तु और वातावरण दोनों का ज्ञान हो, इसीलिये उन्होंने 'शब्द' की अपेक्षा 'वस्तु' पर बल दिया। (3) आदर्शवाद का विरोध (Opposition on Idealism)-यथार्थवाद ने आदर्शवादी विचारधारा का विरोध किया तथा शिक्षा के माध्यम से जीवन को सुखी बनाने के उद्देश्य पर बल दिया। उनका मत था कि कोरे आध्यात्मिक सिद्धान्त और आदर्श बालक के लिये महत्त्वहीन हैं। (4) व्यावहारिक ज्ञान पर बल (Emphasis on Practical Knowledge)-यथार्थवादी शिक्षा को एक प्रक्रिया मानते थे। उनका मानना था कि शिक्षा के द्वारा बालक को व्यावहारिक जीवन का ज्ञान मिलना चाहिए। अर्थात् शिक्षा ऐसी हो जिससे बालक को अपने जीवन का ज्ञान मिलना चाहिए। (5) वैज्ञानिक विषयों का महत्त्व (Importance of Scientific Subjects)-यथार्थवादियों ने बालकों को उपयोगी व व्यावहारिक ज्ञान प्रदान करने हेतु वैज्ञानिक विषयों को महत्त्व दिया। इसके साथ ही उन्होंने विद्यालय की कृत्रिम शिक्षा के स्थान पर प्रकृति की शिक्षा को महत्त्व दिया। (6) नवीन शिक्षण-विधि एवं शिक्षण-सूत्र (New Method of Teaching and Maxims of Teaching)-एक प्रमुख यथार्थवादी विचारक बेकन ने 'आगमन पद्धति' के नाम से एक नवीन वैज्ञानिक शिक्षण-विधि का विकास किया। इससे बालक निरीक्षण, परीक्षण तथा नियमीकरण के आधार पर ज्ञान प्राप्त करते हैं। इसके साथ ही रटेक तथा कमेनियस ने अनेक शिक्षण-सूत्रों की रचना की। (7) विस्तृत व व्यावहारिक पाठ्यक्रम (Broad and Practical Curriculum)- यथार्थवादियों ने शिक्षा के पाठ्यक्रम को विस्तृत बनाया। कार्टन वी. गुड के शब्दों में, "विस्तृत पाठ्यक्रम, यथार्थवाद की एक प्रमुख विशेषता थी।" यथार्थवादियों ने पाठ्यक्रम में विभिन्न व्यावहारिक विषयों को स्थान प्रदान करके उसे व्यावहारिक बनाने का भी प्रयत्न किया। (8) वैयक्तिकता एवं सामाजिकता दोनों को बराबर महत्त्व (Equal Importance to Individuality and Sociability)-बेकन के अनुसार, शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति को समाज के लिये उपयोगी बनाना है। वस्तुत: यथार्थवादियों ने व्यक्ति और समाज दोनों की आवश्यकताओं को पूरा करना ही शिक्षा का उद्देश्य माना। आज इस आर्टिकल में हम आपको NTT शिक्षण की आधुनिक विधियाँ Question Paper के बारे में बताने जा रहे है. इसकी मदद से आप आगामी एग्जाम की तैयारी आसानी से कर सकते है. फ्रोबेल के अनुसार शिक्षा का उद्देश्य क्या है?शिक्षा का उद्देश्य
फ्रोबेल का यह भी विचार है कि बालक की शिक्षा में किसी प्रकार का हस्तक्षेप न करके उसके स्वाभाविक विकास हेतु पूर्ण अवसर देना चाहिए, ताकि अपने आपको, प्रकृति को तथा ईश्वरीय शक्ति को पहचान सके। बालक के व्यक्तित्व का पूर्ण विकास करना। बालक का वातावरण एवं प्रकृति से एकीकरण स्थापित करना।
फ्रोबेल की शिक्षण विधि की क्या विशेषता थी?फ्रोबेल को अपने बचपन में प्रेम और सहानुभूति के दर्शन नहीं हुए थे इसलिए वे प्रेम व सहानुभूति के महत्त्व को समझते थे। उन्होंने अपनी शिक्षण प्रणाली में प्रेम और सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार पर सबसे अधिक बल दिया है। प्रदान करने पर बल देते थे । फोबेल के अनुसार बालक की प्रमुख विशेषता आत्मक्रिया हो है ।
फ्रोबेल का शिक्षा में सबसे महत्वपूर्ण योगदान क्या था?फ्रेडरिक फ्रोबेल एक जर्मन शिक्षाविद् थे, जिन्हें सबसे पहले 'किंडरगार्टन सिस्टम' के प्रवर्तक के रूप में जाना जाता है, जो कि पहले से आयोजित बचपन शिक्षा पद्धति थी। किंडरगार्टन की गतिविधियों को इस विचार के आधार पर तैयार किया गया था कि बच्चे खेल के माध्यम से सबसे अच्छी तरह से सीखते हैं।
फ्रोबेल के शिक्षा दर्शन की सीमाएं क्या है?फ्रोबेल के शिक्षा-दर्शन की सीमाएं
इससे बाह्य विकास की उपेक्षा हुई। वस्तुत: आन्तरिक एवं बाह्य दोनों पक्षों का ही समन्वित विकास होना चाहिए। फ्रोबेल के द्वारा प्रस्तावित चित्र और गीत बहुत पूराने हो गये हैं। सभी स्थानों और संदर्भों में उनका उपयोग नहीं किया जा सकता है।
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