हिमालय की चोटी पर सबसे पहले कौन चढ़ा था? - himaalay kee chotee par sabase pahale kaun chadha tha?

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सर एडमण्ड हिलेरी
हिमालय की चोटी पर सबसे पहले कौन चढ़ा था? - himaalay kee chotee par sabase pahale kaun chadha tha?

2006 में हिलेरी
जन्म २० जुलाई १९१९
ऑकलैंड, न्यूजीलैंड
मृत्यु 11 जनवरी 2008 (उम्र 88)
ऑकलैंड, न्यूजीलैंड
जीवनसाथी लुई मरी रोज़ (1953-1975)
जून मलग्रियु (1989-2008)
बच्चे पीटर (1954)
सारा (1955)
बेलिंडा (1959-1975)
माता-पिता पर्सिवल अगस्तस हिलेरी
जर्ट्र्यूड हिलेरी, नी क्लार्क

सर' एडमंड हिलेरी ने पहली बार एवरेस्ट फतह करके वहाँ जाने वालों के सपनों को उडा़न और हौसला दिया उनके बाद एवरेस्ट पर जाने वाले भी उसी सम्मान के पात्र हैं जिसके हकदार एडमंड हिलेरी रहे। 'सर' एंडमंड हिलेरी और नेपाल के पर्वतारोही शेरपा तेनजिंग नॉर्गे ने 29 मई 1953 में मांउट एवरेस्ट पर विजय प्राप्त की थी।

जीवन[संपादित करें]

'सर' एडमंड शर्मीले स्वभाव के थे। इतने कि सितंबर 1953 में अपनी होने वाली पत्नी लुसी मेरी रोस के समक्ष विवाह का प्रस्ताव उन्होंने अपनी सास के जरिए रखा। वे अपने सेलीब्रिटी स्तर को लेकर भी शर्मीले थे। वर्ष 2003 में अपनी सफलता की 50 वीं वर्षगांठ पर उन्होंने ब्रिटेन की महारानी के निमंत्रण को ठुकरा कर अपनी सफलता का जश्न गरीब नेपाली शेरपाओं के साथ मनाया। 1975 में काठमांडू में एक विमान दुर्घटना में अपनी पत्नी लुईस और 16 साल की बेटी का निधन हो जाने के बाद उन्होंने उनका अंतिम संस्कार नेपाल की बागमती नदी में नेपाली विधि से ही किया था। इस दुर्घटना के बाद वे पूरी तरह टूट गए लेकिन अपना दुःख भुलाने के लिए वे नेपाल के प्राकृतिक सौंदर्य और वहाँ के सीधे सादे लोगों के बीच पहुँच गए। 1989 में उन्होंने दूसरी शादी किया अपने एक दिवंगत पर्वतारोही पीटर मुलग्र्यू की विधवा जेन से। उनके दो बेटे है पीटर और साराह

भ्रमण[संपादित करें]

एडमंड हिलेरी ने जीवन में कई आयामों को छुआ और निश्चित ही वे एक बिरले, दुस्साहसी और प्रकृति की चुनौतियों को चुनौती देने वाले शख्स थे। 'सर' एडमंड हिलेरी 88 वर्ष के थे। दिवंगत हिलेरी वर्ष 1985-89 तक भारत में न्यूजीलैंड के राजदूत रहे थे। 19 जुलाई 1919 को जन्मे हिलेरी द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान पायलट भी रहे लेकिन बाद में उनकी पहचान पर्वतारोही के रूप में बनी। हिलेरी 1958 में राष्ट्रकुल के एक दल के साथ दक्षिणी ध्रुव भी गए थे और 1985 में उत्तरी ध्रुव पर पहुँचे थे। ऊत्तरी ध्रुव पर वे अमरीकी अंतरिक्ष यात्री नील आर्मस्ट्रांग के साथ एक छोटे स्की विमान में पहुँचे थे। वे पिछले कुछ समय से बीमार थे। न्यूज़ीलैंड के सर्वाधिक लोकप्रिय 'सर' हिलेरी का चित्र न्यूज़ीलैंड के 5 डॉलर के नोट पर भी अंकित किया जाता है। न्यूजीलैंड और विदेशों में कई स्कूलों और संगठनों के नाम उनपर रखे गए। शायद बहुत कम लोगों को पता है कि भारत में दार्जिलिंग के सेंट पाल्स स्कूल में एक प्राथमिक खंड हिलेरी के नाम पर है। उन्होंने 1977 में भारत में गंगा नदी के एक अभियान का भी नेतृत्व किया। हिलेरी ने अपना सारा जीवन कुंभू ग्लेशियर के पास रहने वाले नेपाली शेरपाओं की सेवा में समर्पित कर दिया था। उनके इस योगदान को देखते हुए वर्ष 2003 में उन्हें नेपाल की मानद् नागरिकता प्रदान की गई थी।

पर्वतारोहण का आरंभ[संपादित करें]

हिमालय की चोटी पर सबसे पहले कौन चढ़ा था? - himaalay kee chotee par sabase pahale kaun chadha tha?

हिलेरी जब 1935 में स्कूल के एक पर्वतारोहण दल में शामिल हुए तब कोई नहीं कह सकता था कि कमजोर-सा दिखने वाला एक छात्र ज़बर्दस्त इच्छाशक्ति का धनी है और मधुमक्खी पालन से जीविकापार्जन में लगा यह बालक जिंदगी में कुछ और ही करना चाहता है। हिलेरी ने अपने पर्वतारोहण के शौक की शुरुआत न्यूजीलैंड की चोटियां चढ़ने से की और इसके बाद उन्होंने हिमालय को चुनौती देने की ठानी। हिमालय पर्वत श्रृंखला की 20,000 फुट से अधिक ऊंचाई की 11 विभिन्न चोटियाँ फतह करने के बाद उनमें गजब का आत्मविश्वास पैदा हुआ। हिलेरी 1951 में एवरेस्ट फतह करने एवरेस्ट रिकनेसेन्स एक्सपीडीशन के सदस्य के रूप में शामिल थे, तब अभियान उस दल के नेता 'सर' जान हंट की नजर हिलेरी पर पड़ी। मई में जब अभियान साउथ पीक तक पहुँचा तो केवल दो सदस्यों को छोड़कर शेष सदस्य थकान के कारण वापस लौटने को मजबूर हो गए थे। ये दो थे हिलेरी और नेपाली पर्वतारोही तेंजिग नोर्वे। और इसके बाद 29 मई 1953 को समुद्र की सतह से 29,028 फुट ऊंची चोटी को चूमकर वे पर्वतारोहण के क्षेत्र के कालपुरुष हो गए।

हिलेरी और उऩके साथ एवरेस्ट पर पहुँचे नेपाली शेरपा तेनझिंग ने चोटी पर 15 मिनट बिताए। हिलेरी ने तेंजिग की फोटो ली। उन्होंने चोटी पर अपना क्रास उतारकर चढ़ाया। बाद में उन्होंने कहा था, हम नहीं जानते थे कि चोटी पर मानव का पहुँचना संभव है। 1986 में शेरपा तेनझिंग की मौत के बाद 'सर' एडमंड हिलेरी ने खुलासा किया कि वह अंतिम समय में वे तेनझिंग से 10 फीट आगे थे।

फतह का जश्न[संपादित करें]

एवरेस्ट फतह की खबर ब्रिटेन में महारानी के अभिषेक के दिन पहुँची थी। चूंकि हिलेरी न्यूजीलैंड के थे और इस तरह वे राष्ट्रमंडल के नागरिक हुए, लिहाजा ब्रिटेन में भी उनकी उपलब्धि पर जश्न मनाया गया। हिलेरी को उनकी सफलता के लिए नाइट की उपाधि दी गई। अपनी सफलता के अगले दो दशकों में हिलेरी ने हिमालय में दस अन्य चोटियाँ भी फतह की।

एक महानायक होते हुए भी वे जीवनभर बहेहद सादगी से रहे। अपने जीवन को नेपाली शेरपाओं को समर्पित करने वाले हिलेरी ने नेपाल में 63 विद्यालयों के अतिरिक्त अनेक अस्पतालों, पुलों व हवाई पट्टी का भी निर्माण किया। उनके हिमालय ट्रस्ट ने नेपाल के लिए प्रति वर्ष ढाई लाख अमरीकन डॉलर जुटाए और हिलेरी ने निजी तौर पर नेपाल अभियान में मदद दी।

'सर' हिलेरी पर्यावरण को पहुँच रहे नुकसान के प्रति बेहद चिंतित रहते थे। उन्हें कुछ पर्वतारोहियों के इस दिशा में उदासीन रवैये से भी तकलीफ पहुँचती थी। उन्होंने न्यूजीलैंड के मार्क इंगलिस और विभिन्न समूहों के 40 सदस्यों की इसलिए आलोचना की उन्होंने मई 2006 में ब्रिटेन के पर्वतारोही डेविड शाफ को मरने के लिए छोड़ दिया था।

एवरेस्ट पर जाने वाले सबसे बुज़ुर्ग

70 वर्ष के एक जापानी दुनिया के सबसे ऊंचे पर्वत शिखर माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाले सबसे बुजुर्ग पर्वतारोही हैं। पेशेवर पर्वतारोही यूईचिरो म्यूरा ने 8,850 मीटर ऊंची इस चोटी पर पहुँचने में सफलता प्राप्त की। लेकिन खास बात यह है कि म्यूरा भी उसी रास्ते से इस चोटी पर पहुँचे, जिस रास्ते से लगभग 50 साल पहले 'सर' एडमंड हिलेरी ने पहली बार इस चोटी पर फतह हासिल की थी।

म्यूरा के पहले जापान के ही तोमीयासु इसिकावा इस चोटी पर पहुँचने वाले 65 वर्षीय सबसे बुजुर्ग पर्वतारोही बने थे। म्यूरा ने उनके रिकॉर्ड को उम्र के मामले में तोड़ दिया है। म्यूरा के साथ उनके पुत्र और शेरपा गाइडों की एक टीम थी। आज तक लगभग 1200 लोग इस चोटी पर पहुँच चुके हैं। इस चोटी पर चढ़ने के क्रम में 175 लोगों की मौत भी हो चुकी है।

आप्पा शेर्पा एक नेपाली शेर्पा हैं जो अब तक एवरेस्ट पर सबसे अधिक बार चढ़ चुके हैं। वे कुल १६ बार एवरेस्ट पर जा चुके हैं - अप्रैल 2007 में उन्होने १७वीं बार चढ़ाई आरंभ की। शेर्पा नेपाल के हिमाली क्षेत्रों तथा उसके आसपास के इलाकों में रहने वाले लोगों को कहते हैं। तिब्बती भाषा में शर का अर्थ होता है पूरब तथा पा प्रत्यय लोग के अर्थ को व्यक्त करता है; अतः शेर्पा का शाब्दिक अर्थ होता है पूरब के लोग। ये लोग पिछले ५०० वर्षों में पूर्वी तिब्बत से आकर नेपाल के इन इलाकों में बस गए। शेरपा स्त्रियों को शेर्पानी कहते हैं। पर्वतारोहण में सिद्धहस्त होने की इनकी प्रतिभा के कारण नेपाल में पर्वतारोहियों के गाईड तथा सामान ढोने के कार्यों में इन शेर्पाओं की सेवा ली जाती है। इस कारण, आजकल नेपाली पर्वतारोही गाईड को सामान्य रूप से शेरपा कहा जाता है भले ही वो शेरपा समुदाय के हों या ना हों। इन लोगों की भाषा शेर्पा भाषा है तथा ये लोग बौद्ध धर्म मानते हैं।

विवादों के घेरे में[संपादित करें]

ब्रिटेन के पर्वतारोहण के एक विशेषज्ञ ने दावा किया है कि माउंट एवरेस्ट की चोटी पर सबसे पहले 'सर' एडमंड हिलेरी नहीं पहुँचे थे। बल्कि उनसे तीन दशक पहले ही एक ब्रिटिश पर्वतारोही जार्ज मालौरी ने यह उपलब्धि हासिल कर ली थी।

ग्राहम होयलैंड ने बचपन में सुनी कहानी पर तीन दशक तक शोध किया। कहानी के अनुसार मालौरी ने सबसे पहले एवरेस्ट के लिए तीन पर्वतारोहण अभियानों में भाग लिया। माना जाता था कि वह शिखर तक पहुँचने से चूक गए थे। जबकि वास्तविकता यह है कि वे एवरेस्ट पर पहुँचने में सफल हो गए थे और उनका निधन चोटी से वापस लौटते समय हुआ था। मालौरी और उनके सह पर्वतारोही एंड्रयू इर्विन 1924 में दुनिया की सबसे ऊंची चोटी पर पहुँचने के अपने प्रयास के अंतिम चरण में उत्तर-पूर्व की पहाडि़यों में कहीं लापता हो गए थे। आखिरी बार दोनों पर्वतारोहियों को शिखर से आठ सौ फुट नीचे देखा गया था। मालौरी का शव 75 साल तक खोजा नहीं जा सका था। 12 साल की उम्र में होयलैंड को उनके चचेरे भाई होवार्ड समरवेल ने यह कहानी सुनाई थी। दरअसल, एक पर्वतारोही और मिशनरी डाक्टर होवार्ड उन आखिरी लोगों में एक थे जिन्होंने दोनों पर्वतारोहियों के देखा था। एवरेस्ट की आठ बार चढ़ाई कर चुके होयलैंड ने दशकों के शोध के बाद कहा है कि 1953 में एवरेस्ट पर पहुँचने वाले न्यूजीलैंड के 'सर' एडमंड हिलेरी वहां पहुँचने वाले पहले व्यक्ति नहीं थे

जीवन समापन[संपादित करें]

न्यूजीलैंड, जनवरी 13, 2008: 'सर' हिलेरी का अंतिम संस्कार पूरे राजकीय सम्मान के साथ ऑकलैंड के सेंट मैरिस चर्च में मंगलवार, 15 जनवरी को सम्पन्न होगा। 'सर' हिलेरी का पार्थिव शरीर जनता के अंतिम दर्शन हेतु होली ट्रीनिटी कैथड्रल में रखा गया है। 'सर' हिलेरी के घर पर शोक संदेशों व फूलों का अंबार लगा हुआ है। इसके अतिरिक्त जहाँ कहीं भी लोग 'सर' हिलेरी की मूर्ति देखते हैं वहीं पर श्रध्दा सुमन अर्पित कर अपनी श्रद्धांजलि दे रहे हैं।

प्रधानमंत्री हेलन क्लॉर्क ने आज सर हिलेरी की विधवा लेडी हिलेरी के साथ उनके निवास पर दो घंटे बिताए। बाद में प्रधानमंत्री ने मीडिया को संबोधित किया, “मेरे विचार से हिलेरी परिवार सर हिलेरी के प्रति जनता के स्नेह से पूर्णतया अभिभूत है। उन्हें हमेशा यह आभास था कि सर हिलेरी महान हस्ती हैं किंतु जब आप मीडिया में उनकी असाधारण कवरेज देखते हैं तो पता चलता है कि वह अति-विशेष किवी थे।

लेडी हिलेरी से हुई दो घंटे की भेंट में प्रधानमंत्री ने परिवार को सांत्वना देने के अतिरिक्त उनकी राजकीय अंत्येष्टि के प्रारूप पर भी चर्चा की। “हमें लेडी हिलेरी और हिलेरी परिवार की भावनाओं का सम्मान करते हुए विशेष राजकीय अंत्येष्टि के प्रारूप पर काम करना है।“ प्रधानमंत्री क्लॉर्क ने बताया।

न्यूज़ीलैंड में पिछले बीस सालों में यह केवल तीसरी राजकीय अंत्येष्टि (स्टेट फ्यूनल) होगी, इससे पूर्व भूतपूर्व गवर्नर जनरल 'सर' डेविड बेट्टी की 2001 में राजकीय अंत्येष्टि हुई थी। राजकीय अंत्येष्टि का सम्मान केवल उन गवर्नर जनरल और प्रधानमंत्रियों जिनकी मृत्यु उनके कार्यकाल के दौरान हो जाए को मिलता है अन्यथा ऐसा राजकीय सम्मान अन्य लोगों के लिए असामान्य है। 'सर' हिलेरी का राजकीय सम्मान नियमावली का उलंघन न होकर उनके विलक्षण व्यक्तित्व को मुखर करता है।

जीवन-एक नज़र में[संपादित करें]

जन्म : 19 जुलाई 1919 मृत्यु : 11 जनवरी 2008 1980 : भारत में न्यूजीलैंड के राजदूत रहे। 1958 : राष्ट्रकुल के एक दल के साथ दक्षिणी ध्रुव गए। 1985 : उत्तरी ध्रुव पर पहुँचे थे। 29 मई 1953 : माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाले विश्व के पहले पर्वतारोही बने 1977 : ‘गंगासागर से गोमुख’ जेट नौका अभियान

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

  • बुलंद हिमालयी इरादों के प्रतीक थे 'सर' एडमंड हिलेरी

एवरेस्ट फतह करने वाले सर' एडमंड हिलेरी जब दो बार असफल हो गये और उन्हे वापस आना पड़ा तो वे अपने सामने खड़े विशाल पर्वत की चोटी को चेलेंज किया कि

*‘मैं फिर आऊंगा. तुम तब भी इतने ही ऊंचे रहोगे, क्योकि तुम तो पत्थर हो पर मेरा हौसला पहले से कुछ ज़्यादा ऊंचा हो जाएगा’ , क्योकि मैं इन्सान हूँ*

और फिर अपनी चुनौती को हर पल याद रख अपने सपनों को उडा़न और हौसला दिया एवं एवरेस्ट विजय पायी ,

सन्दर्भ[संपादित करें]

हिमालय पर्वत पर सबसे पहले कौन चढ़ा था?

29 मई 1953 को पहली बार माउंट एवरेस्ट पर न्यूजीलैंड के एडमंड हिलेरी और नेपाली मूल के भारतीय नागरिक तेनसिंह नोर्गे शेरपा चढ़े थे. उसके बाद से अब तकक 3,448 पर्वतारोही 5,585 बार एवरेस्ट पर चढ़ चुके हैं. नेपाल के अप्पा शेरपा ने 21 बार माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने का रिकॉर्ड कायम किया.

हिमालय पर चढ़ने वाला पहला व्यक्ति कौन था?

तेन्जिंग नॉरगे (29 मई 1914- 9 मई 1986) एक नेपाली पर्वतारोही थे जिन्होंने एवरेस्ट और केदारनाथ के प्रथम मानव चढ़ाई के लिए जाना जाता है। न्यूजीलैंड एडमंड हिलेरी के साथ वे पहले व्यक्ति हैं जिसने माउंट एवरेस्ट की चोटी पर पहला मानव कदम रखा।

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कौन ऑक्सीजन के बिना माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाला पहला व्यक्ति था?

ऑस्ट्रिया की पर्वतारोही गेरलिंडे काटेनब्रुनर इससे पहले 6 बार कोशिश कर चुकी हैं. ऑस्ट्रियाई महिला पर्वतारोही गेरलिंडे काटेनब्रुनर मंगलवार को विश्व की ऐसी पहली पर्वतारोही बन गईं, जिन्होंने बिना ऑक्सीजन मॉस्क लगाए काराकोरम पर्वत श्रृंखला की आठ हजार मीटर ऊंची चोटी की चढ़ाई की.