हिंदी साहित्य में मूल्यों की अभिव्यक्ति Show जीवन के साथ जुडा शब्द है ’मूल्य’ । चिंतन के क्षेत्र में तो इस शब्द का प्रयोग हमेषा होता है। व्यावहारिक रुप में भी इस शब्द का प्रयोग होता है । आदर्ष और मूल्य में भी सूक्ष्मतम फरक है। व्यावहारिक मूल्य शब्द ’मापन की कसौटी’ के तौर पर प्रयोग किया जाता है, पर यहाॅ ’मूल्य’ यानी संपूर्ण मानवी व्यवहार से अभिप्रेत है। ’मूल्य’ शब्द गौरवता को दर्षाता है। इसे ही अंग्रेजी में अंसनम कहां जाता है। संस्कृत के आधारपर ’मूलेन
समोमूल्य’ कह सकते है। अर्थपरिवर्तन के कारण इस शब्द में बडि व्यापकता पाई जाती है। संक्षेप में गुणों को मूल्य कह सकते है। 1. अर्बन – ’’ऐसी कोई भी वस्तू मूल्य हो सकती है जो जीवन को आगे बढाती है और ऽ कहानी विधा में अभिव्यक्त मूल्य:- ऽ उपन्यास विधा में अभिव्यक्त मूल्य:- ऽ कविता में अभिव्यक्त मूल्य – इस प्रकार एक ही कविता में उन्होंने जीवन के आदर्ष और यथार्थ मूल्यों को दिखाया है। निष्कर्ष:- संदर्भ – ———————————————– प्रा. कामिनी अषोक बल्लाळ हिंदी साहित्य में भारतीय मूल्यों से क्या अभिप्राय है?चिंतन के क्षेत्र में मूल्य शब्द का प्रयोग हमेशा ही होते हैं । अर्थ परिवर्तन के कारण मूल्यों में व्यापकता पाईं जाती हैं । साहित्य और मूल्यों के अटूट रिश्ते हैं । , जो जीवन को आगे बढ़ाने में सहायक होते हैं । मूल्य केवल मानवीय व्यवहार की दिशा निर्धारण ही नहीं करते बल्कि अपने आप में आदर्श और उद्देश्य भी होते हैं ।
साहित्य में मूल्य का क्या अर्थ है?आधुनिक साहित्य में 'मूल्य' शब्द का प्रयोग वैयक्तिक, सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक तथा सांस्कृतिक स्तर का संपूर्ण मानव व्यवहार के मानदंड के रूप में किया जाता है। 'मूल्य' शब्द का आवश्यकता, प्रेरणा, आदर्श, अनुशासन, प्रतिमान आदि अनेक अर्थों में प्रयोग होता है।
भारतीय साहित्य का स्वरूप क्या है?भारतीय साहित्य सामाजिक 11 Page 12 12 भारतीय साहित्य है-'एग्ल्यूनेटिंग' है, जिस तरह 'मिसरी' के डले आपस में एक-दूसरे से जुड़े हुए एक व हत्तर खंड को बना देते है और उस बड़े डले का हिस्सा होते हुए भी अपनी-अपनी अलग 'क्राइस्टेलाईज्ड' चमक बिखेरते रहते हैं - भारतीय साहित्य का स्वरूप भी बहुत कुछ ऐसा ही है, जिसमें विभिन्न भाषाओं ...
भारतीय साहित्य के अध्ययन की मूल समस्या क्या है?साहित्य के क्षेत्र में एक समस्या है उच्चस्तरीय पाठक की। प्राय: यह सुनने को मिलता है कि नये साहित्य का रसबोध औसत पाठक के लिए सुलभ नहीं है। इसका मुख्य कारण है नये लेखक की अग्रणी संवेदना। वस्तुत: द्वितीय महायुद्ध एवं स्वतंत्रता संग्राम के बाद भारतीय समाज में अनेक क्रांतिकारी परिवर्तन हुए।
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