हिंदी साहित्य में भारतीय मूल्यों की अभिव्यक्ति को स्पष्ट कीजिए - hindee saahity mein bhaarateey moolyon kee abhivyakti ko spasht keejie

हिंदी साहित्य में मूल्यों की अभिव्यक्ति

जीवन के साथ जुडा शब्द है ’मूल्य’ । चिंतन के क्षेत्र में तो इस शब्द का प्रयोग हमेषा होता है। व्यावहारिक रुप में भी इस शब्द का प्रयोग होता है । आदर्ष और मूल्य में भी सूक्ष्मतम फरक है। व्यावहारिक मूल्य शब्द ’मापन की कसौटी’ के तौर पर प्रयोग किया जाता है, पर यहाॅ ’मूल्य’ यानी संपूर्ण मानवी व्यवहार से अभिप्रेत है। ’मूल्य’ शब्द गौरवता को दर्षाता है। इसे ही अंग्रेजी में अंसनम कहां जाता है। संस्कृत के आधारपर ’मूलेन समोमूल्य’ कह सकते है। अर्थपरिवर्तन के कारण इस शब्द में बडि व्यापकता पाई जाती है। संक्षेप में गुणों को मूल्य कह सकते है।
ऽ    मूल्य की परिभाषा:-

1.    अर्बन – ’’ऐसी कोई भी वस्तू मूल्य हो सकती है जो जीवन को आगे बढाती है और
सुरक्षित करती है। ’’1
2.    वुड्स:- ’’मूल्य दैनिक जीवन में व्यवहार को नियंत्रित करने के सामान्य सिद्धांत है।
मूल्य केवल मानव व्यवहार की दिषा निर्धारण ही नहीं करते, बल्कि अपने आप में आदर्ष और उद्देष्य भी होते है।’’2
हमारा साहित्य भले वो किसी भी भाषा में हो उसमें मूल्यों के दर्षन होते है। साहित्य और मूल्यों का अटूट रिष्ता है। साहित्य में प्राचीन काल से ही मूल्यों का विवरण हम देखते है। प्राचीन काल के साहित्य में हमें भगवान श्रीकृष्ण या आदर्षोन्मुखी राम का गुण वर्णन दिखाई देता है। इन रुपों द्वारा आदर्ष व्यक्तित्व में धैर्य, नीति, बुध्दि, वाक्चतुरता आदी ’षाष्वत’ मूल्य दर्षाये गये है।
मूल्यों का हमेषा आदर होना चाहिए, मूल्यों की रक्षा करणा ही मनूष्यता का मुख्य धर्म है। जीवन में सौदर्य की स्थापना करनी हो तो उसमें मूल्यों का होना अतिआवष्यक है। मनुष्य ने अपना भौतिक विकास तो बहोत कर लिया है साथ उसे जीवन मूल्यों की भी उतनी ही आवष्यकता होती है। मूल्य तो हमेषा परिवर्तित होते आए है। पुराने मुल्यों को छोड परिस्थितीनुरुप हमेषा नित नविन मूल्यों को स्वीकारा गया है। आज मूल्यों का निर्माण स्वयं आदमी खुद अपने लिए कर रहा है। पर ऐसे भी मूल्य है जो चिरंतन शाष्वत रहे है। मूल्यो को अगर हम देखते है उसमें दो प्रकार के मूल्यों के मुख्य भेद नजर आते है।
ऽ    मूल्यों के भेद:-
1.    शाष्वत मूल्य:- इन मूल्यों मेें किसी भी कारण या परिस्थितीनुरुप परिवर्तन नहीं
होता है जिसमें सौदर्यात्मक मूल्य जैसे सत्यम्, षिवम्, सुंदरम का स्थान है । तथा नैतिक मूल्य- त्याग, अहिंसा, सेवा,  न्याय आदि।
2.    बदलते मूल्य:- भौतिक समृध्दि के साथ-साथ इन मूल्यों में बदलाव आते गये है।
जैसे जैविक मूल्य जिनमें आर्थिक मूल्य, या फिर अतिजैविक मूल्य – सामाजिक, आध्यात्मिक आदी मूल्योंका समावेष हम कर सकते है।
साहित्य में तो हर विधा में अपनी-अपनी शैली के अनुसार मूल्यों को प्रतिष्ठित किया गया है। समय की माॅग के अनुसार इन मूल्यों में परिवर्तन दिखाई देता है। इस प्रकार हम संक्षेप में उपन्यास विधा और कहानी विधा या कविता में व्यक्त मूल्यों को देखेंगे।

ऽ    कहानी विधा में अभिव्यक्त मूल्य:-
कहानी साहित्य की एक सषक्त विधा मानी जाती है। कहानी विधा से  हमें जीवनपथ पर चलने के लिए आदर्ष एवं मूल्य मिलते है। नयी कहानी और मूल्यों के संदर्भ में डाॅ. इंद्रनाथ मदान ने लिखा है – ’’पहले कहानी अधिकांषतः कल्पना पर आधारित होती थी अब यथार्थ को लेकर चलती है। अतः पहले की कहानी पुरानी है और आज की कहानी नयी है। नयी कहानी में तलाष पात्रों की नहीं यथार्थ की है, पात्रों के माध्यम से यथार्थ की अभिव्यक्त् िकी। पहले कहानी कला मूल्यों को लेकर लिखी जाती थी, अब जीवन मूल्यों को लेकर। 3
अगर हम कहानी साहित्य विधा का विचार करते है तो आरंभिक कहानीयाॅ आदर्षपरक या कल्पनापरक होती थी पर धिरे धिरे इसमें जीवन मूल्यों की स्पष्ट अभिव्यक्ति होती गई। स्वतंत्रता पुर्व कहानी में त्याग, निस्वार्थता, बलिदान आदी भावनायें विकसित की गई थी। प्रेमचंद कालीन कहानी में यथार्थ को दर्षाने का प्रयास किया गया । यानी यथार्थता के माध्यम से जीवन की विसंगतीयाॅं, कुरुपता को दर्षाने का प्रयास किया गया। स्वातंत्र्योत्तर काल में भ्रष्टाचार, आर्थिक विषमता, लोभस प्रवृत्ती को दिखाया गया है। बनते बिगडते रिष्ते भी दिखाई देते है।
जयषंकर प्रसाद जी ने अपनी कहानीयों में ’आकाषदीप’, ’ममता’, ’पुकार’, रिष्तों की उलझनें ही दर्षायी है। चंद्रधर शर्मा गुलेरी की ’उसने कहा था’ कहानी में विषुध्द प्रेम और श्रध्दा भाव दर्षाया गया है। प्रेमचंदजी तो हमेषा से ही मूल्यों के आग्रही दिखाई देते है। उनकी ’परीक्षा’, ’नमक का दरोगा’, ’पाॅच परमेष्वर’, में आदर्ष का ही चित्रण है। विष्वंभर नाथ शर्मा की ’ताई’ में पारिवारिक मूल्यों को दिखाया गया है। यषपाल जी की ’महादान’ कहानी में मूल्यों का विघटन किस प्रकार हो रहा है उसे दर्षाया है। ’दुख का अधिकार’ इस कहानी में सामाजिक, आर्थिक विषमता को दिखाया है। अज्ञेय जी के ’इंदे की बेटी’ कहानी में दांपत्य संबंधों में छेद दिखाया है। मोहन राकेष की ’मलबे का आदमी’ में परिस्थितीनुरुप मूल्यों में हो रही गिरावट देख सकते है। कमलेष्वर जी के ’मांस का दरिया’, ’कस्बे का आदमी’, ’बयान’ आदी कहानीयों में आदर्ष का आग्रह दिखाई देता है। मंन्नू भंडारी की कहानीयों में पारिवारीक टूटते मूल्य, पुराने और नये मूल्यों में हो रहा संघर्ष दिखाई देता है।
स्वातंत्र्योत्तर काल में नैतिक मूल्यों में विघटन होता गया। मूल्यों का अधःपतन हो गया है। अनेक कहानीयों में यौन संबंधों को दर्षाया गया है। जो वर्णन यौन संबंधों का मिलता है वह अधिक मात्रा में और खुलकर किया गया है। साथ ही इस काल में हिणता, स्वार्थप्रवृत्ती अधिक दिखाई गई है। विष्णु प्रभाकर की कहानी ’लैम्प पोष्ट के नीचे लाष’ में युवती के लाष के प्रती पुलिस की क्रूरता को दर्षाया है। मन्नू जी की ’उंचाई’, यादवेंद्र शर्मा की ’नारी और पत्नी’, केषव दुबेजी की ’काॅंच का घर’, शैलेष मटियानी की ’भय’ इन कहाॅंनीयों में यौन संबंधों का उन्मुक्त विवरण पाया जाता है। नैतिक मूल्यों के साथ आर्थिक मूल्यों में भी विघटन होता गया। ’अर्थ’ को जादा महत्व दिया गया । इसीसे भ्रष्टाचार, गरिबी, महॅंगाई बढी है। मंजूल भगत की ’पाव रोटी और कटलेट्स’, दिप्ती खंडेवाल की ’बेहया’ जितेंद्र भाटिया की ’षहाजदनामा’ कहानीयों में आर्थिक विषमता को देख सकते है।
षिवानी की ’स्वयं सिद्धा’, मेहरुनिसा परवेज की ’गिरवी रखी धूप’ , चित्रा मुद्गल की अग्निरेखा आदि कहानियों में सामाजिक मूल्यों का विघटन देखा जा सकता है। इस प्रकार कहानी विधा के माध्यम से अभिव्यक्त मूल्यों को देख सकते है।

ऽ    उपन्यास विधा में अभिव्यक्त मूल्य:-
अयोध्यासिंह उपाध्याय जी का उपन्यास ’अधखिला फूल’ में धार्मिक अंधविष्वास का दुष्परिणाम देख सकते है। प्रेमचंद और उनके बाद के उपन्यासों में चरित्रात्मकता और उद्देष्यता दिखाई देती है। प्रेमचंद तो युगप्रवर्तक उपन्यासकार माने जाते है। प्रेमचंदजी ने कृषकों की समस्याओं को उठाया है। प्रेमचंदजी के उपन्यासों द्वारा व्यक्त समस्याएॅ सामाजिक और विष्वव्यापी है। ’गोदान’ एक सर्वश्रेष्ठ कृती है। प्रेमचंदजी के बाद जैनेंद्र, अज्ञेय, और इलाचंद जोषी आदी लेखकों ने कुंठाओं, सेक्स आदि का चित्रण किया है। यषपाल , रांगेय राघव, आदी माक्र्सवाद के प्रभाव में होने के कारण समाजवादी विचारधारा का प्रचार एवं प्रसार अपने उपन्यासों द्वारा किया है। साठोत्तरीय काल में तो महिला लेखन ने उपन्यासों में अपनी अलग पहचान निर्माण की । उनके उपन्यासों द्वारा विभिन्न मूल्यों को दर्षाया है। इस काल में परिवार टूटते नजर आये है। देष की अनुषासनहीनता, बेरोजगारी, महॅंगाई अधिकतर नजर आती है। कृष्णा सोबती के ’डार से बिछुडी’, ’मित्रो मरजानी,’ ’सूरजमुखी अंधेरे के’, उपन्यासों में सेक्स का अधिकतर चित्रण, पुरातण मूल्यों को नकारती औरते दिखाई देती है। उषा प्रियंवदा जी ने ’रुकोगी नहीं राधिका’ में प्यार, और प्यार न मिलने के कारण राधिका को मिलने वाला तणाव दर्षाया है। शषिप्रभा शास्त्री के ’वीरान रास्ते और झरना’ , नावें, ’सीढियाॅ’, आदि उपन्यासों में नारी मन की दुःख, वेदना का वर्णन मिलता है। वीरान रास्ते और झरना में अवैध यौन संबंधों दिखाई देते है। मुन्नू भंडारी के ’आपका बंटी’, ’एक इच मुस्कार’, ’महाभोज’, ’स्वामी’ आदी उपन्यासों मे प्रेम, राजनैतिक परिवेष, अलगाव, विष्वास आदी मूल्यों को व्यक्त करते है। मालती जोषी जी के ’ज्वालामुखी के संदर्भ में’, ’पाषाण युग’, ’निष्कासन’, ’सहमें हुए प्रष्न’ आदी उपन्यासों में एकाकीपन, आधुनिकता का परिवेष और उसके दुष्परिणाम दिखाई देते है। दीप्ती खंडेलवाल के ’प्रिया’, ’वह तिसरा’, ’कोहरे’तो मृदुला गर्ग के ’चितकोबरा’ , ’उसके हिस्से की धूप’ , ’वंषज’ आदी में प्रेम की नई भावनाएॅं, स्नेह, कुछ उपन्यासों में क्रांतिकारी वृत्ती भी है। इस प्रकार उपन्यास साहित्य विधा के माध्यम से मूल्यों को अभिव्यक्ती मिली है।

ऽ    कविता में अभिव्यक्त मूल्य –
कविता एक ऐसी विधा है जिसमें कम शब्दों में हम जादा बात कह सकते है। हर कविता में कोई न कोई मूल्य मिलता ही है। कविता में कवि शायद नहीं होते है पर सिर्फ समाज को एक निजता की संकीर्णता दे जाते है। जो जीवन जीने के लिए प्रेरित करती है। सुनीता जैन की एक कविता है ’बदल सको तो बदलो’ उसमें कुछ पंक्तियाॅ इस प्रकार है –
’’हम दोनों
एक दूसरे को
घायल करते रह सकते थे
नाखनों से
चकू पैंन से …………
…………..
जल से अधिक
आंसू में तैरानी है।’’ 4

इस प्रकार एक ही कविता में उन्होंने जीवन के आदर्ष और यथार्थ मूल्यों को दिखाया है।

निष्कर्ष:-
साहित्य को समाज का दर्पन माना जाता है। उसी कारण समाज में मूल्यों की जो स्थितियाॅ है वहीं हम साहित्य में देखते है। बस किसी ने कहानी के माध्यम से तो किसी ने कविता या उपन्यास के माध्यम से व्यक्त किया है। इस प्रकार मूल्यों में आदर्षता, यथार्थता, विघटन, मूल्यों में गिरावट आयी है। इस विघटन का मुख्य कारण है पाष्चात्य संस्कृती का अनुकरण, औद्योगिकीकरण, शहरीकरण, बढती आबादी।

संदर्भ –
1.    उषा प्रियंवदा की कहानियों में टूटते जीवन मूल्यों का यथार्थ चित्रण, अविनाष महाजन, शैलजा प्रकाषन , कानपुर, पृ. 34
2.    वही, पृ. 34
3.    हिंदी कहानी अपनी जुबानी, डाॅ. इंद्रनाथ मदान, पृ.31
4.    युग क्या होते और नहीं?, सुनीता जैन, पूर्वोदय प्रकाषन, नई दिल्ली, पृ. 39

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प्रा. कामिनी अषोक बल्लाळ
एल. बी.बी.टी. डी.टी. एड. काॅलेज,
नेवासा,
जिला – अहमदनगर (महाराष्ट्र)
सेल – 9975773345
ई मेल – ांउपदममइंससंस555/हउंपसण्बवउ

हिंदी साहित्य में भारतीय मूल्यों से क्या अभिप्राय है?

चिंतन के क्षेत्र में मूल्य शब्द का प्रयोग हमेशा ही होते हैं । अर्थ परिवर्तन के कारण मूल्यों में व्यापकता पाईं जाती हैं । साहित्य और मूल्यों के अटूट रिश्ते हैं । , जो जीवन को आगे बढ़ाने में सहायक होते हैं । मूल्य केवल मानवीय व्यवहार की दिशा निर्धारण ही नहीं करते बल्कि अपने आप में आदर्श और उद्देश्य भी होते हैं ।

साहित्य में मूल्य का क्या अर्थ है?

आधुनिक साहित्य में 'मूल्य' शब्द का प्रयोग वैयक्तिक, सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक तथा सांस्कृतिक स्तर का संपूर्ण मानव व्यवहार के मानदंड के रूप में किया जाता है। 'मूल्य' शब्द का आवश्यकता, प्रेरणा, आदर्श, अनुशासन, प्रतिमान आदि अनेक अर्थों में प्रयोग होता है।

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भारतीय साहित्य सामाजिक 11 Page 12 12 भारतीय साहित्य है-'एग्ल्यूनेटिंग' है, जिस तरह 'मिसरी' के डले आपस में एक-दूसरे से जुड़े हुए एक व हत्तर खंड को बना देते है और उस बड़े डले का हिस्सा होते हुए भी अपनी-अपनी अलग 'क्राइस्टेलाईज्ड' चमक बिखेरते रहते हैं - भारतीय साहित्य का स्वरूप भी बहुत कुछ ऐसा ही है, जिसमें विभिन्न भाषाओं ...

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साहित्य के क्षेत्र में एक समस्या है उच्चस्तरीय पाठक की। प्राय: यह सुनने को मिलता है कि नये साहित्य का रसबोध औसत पाठक के लिए सुलभ नहीं है। इसका मुख्य कारण है नये लेखक की अग्रणी संवेदना। वस्तुत: द्वितीय महायुद्ध एवं स्वतंत्रता संग्राम के बाद भारतीय समाज में अनेक क्रांतिकारी परिवर्तन हुए।