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Kabir ke dohe is an important chapter in CBSE Class 10. Students are looking for class 10 Hindi Sakhi question answers. Here we provide you Class 10 Solutions Sakhi. (कबीर के दोहे साखी का अर्थ class 10) साखी (Kabir ki sakhiyan class 10) ऐसी बाँणी बोलिये, मन का आपा खोइ। NCERT Hindi Class 10 Solutions SPARSH Chapter 1 – KABIR – SAKHI Class 10 solutions Kabir ke dohe Class 10 solutions SAKHI Question 1: निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर दीजिए −1 मीठी वाणी बोलने से औरों को सुख और अपने तन को शीतलता कैसे प्राप्त होती है? (class 10 Kabir ke dohe) Answer: जब भी हम मीठी वाणी बोलते हैं, तो उसका प्रभाव चमत्कारिक होता है। इससे सुनने वाले की आत्मा तृप्त होती है और मन प्रसन्न होता है। उसके मन से क्रोध और घृणा के भाव नष्ट हो जाते हैं। इसके साथ ही हमारा अंत:करण भी प्रसन्न हो जाता है। प्रभाव स्वरुप औरों को सुख और शीतलता प्राप्त होती है। 2 दीपक दिखाई देने पर अँधियारा कैसे मिट जाता है? साखी के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।(class 10 Kabir ke dohe) Answer: गहरे अंधकार में जब दीपक जलाया जाता है तो अँधेरा मिट जाता है और उजाला फैल जाता है। कबीरदास जी कहते हैं उसी प्रकार ज्ञान रुपी दीपक जब हृदय में जलता है तो अज्ञान रुपी अंधकार मिट जाता है मन के विकार अर्थात संशय, भ्रम आदि नष्ट हो जाते हैं। तभी उसे सर्वव्यापी ईश्वर की प्राप्ति भी होती है। 3 ईश्वर कण–कण में व्याप्त है, पर हम उसे क्यों नहीं देख पाते?(sakhi poem by kabir meaning in hindi) Answer: ईश्वर सब ओर व्याप्त है। वह निराकार है। हमारा मन अज्ञानता, अहंकार, विलासिताओं में डूबा है। इसलिए हम उसे नहीं देख पाते हैं। हम उसे मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा सब जगह ढूँढने की कोशिश करते हैं लेकिन जब हमारी अज्ञानता समाप्त होती है हम अंतरात्मा का दीपक जलाते हैं तो अपने ही अंदर समाया ईश्वर हम देख पाते हैं। 4 संसार में सुखी व्यक्ति कौन है और दुखी कौन? यहाँ ‘सोना‘ और ‘जागना‘ किसके प्रतीक हैं? इसका प्रयोग यहाँ क्यों किया गया है? स्पष्ट कीजिए।(class 10 Kabir ke dohe) Answer: कवि के अनुसार संसार में वो लोग सुखी हैं, जो संसार में व्याप्त सुख-सुविधाओं का भोग करते हैं और दुखी वे हैं, जिन्हें ज्ञान की प्राप्ति हो गई है। ‘सोना’ अज्ञानता का प्रतीक है और ‘जागना’ ज्ञान का प्रतीक है। जो लोग सांसारिक सुखों में खोए रहते हैं, जीवन के भौतिक सुखों में लिप्त रहते हैं वे सोए हुए हैं और जो सांसारिक सुखों को व्यर्थ समझते हैं, अपने को ईश्वर के प्रति समर्पित करते हैं वे ही जागते हैं। वे संसार की दुर्दशा को दूर करने के लिए चिंतित रहते हैं, सोते नहीं है अर्थात जाग्रत अवस्था में रहते हैं। 5 अपने स्वभाव को निर्मल रखने के लिए कबीर ने क्या उपाय सुझाया है? (Kabir ke dohe class 10 explanation) Answer: कबीर का कहना है कि हम अपने स्वभाव को निर्मल, निष्कपट और सरल बनाए रखना चाहते हैं तो हमें अपने आसपास निंदक रखने चाहिए ताकि वे हमारी त्रुटियों को बता सके। निंदक हमारे सबसे अच्छे हितैषी होते हैं। उनके द्वारा बताए गए त्रुटियों को दूर करके हम अपने स्वभाव को निर्मल बना सकते हैं। 6 ‘ऐकै अषिर पीव का, पढ़ै सु पंडित होई‘ −इस पंक्ति द्वारा कवि क्या कहना चाहता है?(Kabir ke dohe class 10 explanation) Answer: इन पंक्तियों द्वारा कवि ने प्रेम की महत्ता को बताया है। ईश्वर को पाने के लिए एक अक्षर प्रेम का अर्थात ईश्वर को पढ़ लेना ही पर्याप्त है। बड़े-बड़े पोथे या ग्रन्थ पढ़ कर भी हर कोई पंडित नहीं बन जाता। केवल परमात्मा का नाम स्मरण करने से ही सच्चा ज्ञानी बना जा सकता है। अर्थात ईश्वर को पाने के लिए सांसारिक लोभ माया को छोड़ना पड़ता है। 7 कबीर की उद्धृत साखियों की भाषा की विशेषता स्पष्ट कीजिए। (कबीर के दोहे साखी का अर्थ class 10) Answer: कबीर ने अपनी साखियाँ सधुक्कड़ी भाषा में लिखी है। इनकी भाषा मिलीजुली है। इनकी साखियाँ संदेश देने वाली होती हैं। वे जैसा बोलते थे वैसा ही लिखा है। लोकभाषा का भी प्रयोग हुआ है;जैसे– खायै, नेग, मुवा, जाल्या, आँगणि आदि भाषा में लयबद्धता, उपदेशात्मकता, प्रवाह, सहजता, सरलता शैली है। Kabir sakhi class 10 explanation NCERT Hindi Class 10 Solutions Chapter 1 – कबीर – साखी
Class 10 solutions SAKHI Question 2: निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए−Looking for Kabir ki sakhiyan class 10 solutions? 1. भाव स्पष्ट कीजिए− बिरह भुवंगम तन बसै, मंत्र न लागै कोइ। Answer: इस कविता का भाव है कि जिस व्यक्ति के हृदय में ईश्वर के प्रति प्रेम रुपी विरह का सर्प बस जाता है, उस पर कोई मंत्र असर नहीं करता है। अर्थात भगवान के विरह में कोई भी जीव सामान्य नहीं रहता है। उस पर किसी बात का कोई असर नहीं होता है। 2. भाव स्पष्ट कीजिए− कस्तूरी कुंडलि बसै, मृग ढूँढै बन माँहि।(Kabir ke dohe class 10 explanation) Answer: इस पंक्ति में कवि कहता है कि जिस प्रकार हिरण अपनी नाभि से आती सुगंध पर मोहित रहता है परन्तु वह यह नहीं जानता कि यह सुगंध उसकी नाभि में से आ रही है। वह उसे इधर-उधर ढूँढता रहता है। उसी प्रकार मनुष्य भी अज्ञानतावश वास्तविकता को नहीं जानता कि ईश्वर उसी में निवास करता है और उसे प्राप्त करने के लिए धार्मिक स्थलों, अनुष्ठानों में ढूँढता रहता है। 3. भाव स्पष्ट कीजिए− जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाँहि। (Kabir sakhi class 10 meaning) Answer: इस पंक्ति द्वारा कवि का कहना है कि जब तक मनुष्य में अज्ञान रुपी अंधकार छाया है वह ईश्वर को नहीं पा सकता। अर्थात अहंकार और ईश्वर का साथ–साथ रहना नामुमकिन है। यह भावना दूर होते ही वह ईश्वर को पा लेता है। 4. भाव स्पष्ट कीजिए− पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुवा, पंडित भया न कोइ।(sakhi poem by kabir meaning in hindi) Answer: कवि के अनुसार बड़े ग्रंथ, शास्त्र पढ़ने भर से कोई ज्ञानी नहीं होता। अर्थात ईश्वर की प्राप्ति नहीं कर पाता। प्रेम से इश्वर का स्मरण करने से ही उसे प्राप्त किया जा सकता है। प्रेम में बहुत शक्ति होती है। NCERT Hindi Class 10 Solutions Chapter 1 – कबीर – साखी(Kabir sakhi class 10 meaning)
भाषा अध्ययन kabir ki sakhiyan class 10Class 10 solutions SAKHI Question 1: पाठ में आए निम्नलिखित शब्दों के प्रचलित रुप उदाहरण के अनुसार लिखिए। उदाहरण − जिवै – जीना औरन, माँहि, देख्या, भुवंगम, नेड़ा, आँगणि, साबण, मुवा, पीव, जालौं, तास। Answer: जिवै – जीना औरन – औरों को माँहि – के अंदर (में) देख्या – देखा भुवंगम – साँप नेड़ा – निकट आँगणि – आँगन साबण – साबुन मुवा – मुआ पीव – प्रेम जालौं – जलना तास – उसका CLASS 10 SOLUTIONS SAKHI EXPLANATION in Hindi CLASS 10 HINDI NCERT Solutions – All Chaptersसाखी की व्याख्या Sakhi Explanation (kabir ki sakhi class 10 solutions) ऐसी बाँणी बोलिए मन का आपा खोई। बाँणी – बोली, आपा – अहम् (अहंकार ), खोइ – त्याग करना, सीतल – शीतल ( ठंडा ,अच्छा ), औरन – दूसरों को, होइ -होना Sakhi class 10 question answers साखी की व्याख्या Sakhi Explanation – बात करने की कला ऐसी होनी चाहिए जिससे सुनने वाला मोहित हो जाए। प्यार से बात करने से अपने मन को शांति तो मिलती ही है साथ में दूसरों को भी सुख का अनुभव होता है। आज के जमाने में भी कम्युनिकेशन का बहुत महत्व है। किसी भी क्षेत्र में तरक्की करने के लिए वाक्पटुता की अहम भूमिका होती है। कस्तूरी कुण्डली बसै मृग ढ़ूँढ़ै बन माहि। कुंडली – नाभि, मृग – हिरण, घटि घटि – कण कण साखी की व्याख्या Sakhi Explanation – हिरण की नाभि में कस्तूरी होता है, लेकिन हिरण उससे अनभिज्ञ होकर उसकी सुगंध के कारण कस्तूरी को पूरे जंगल में ढ़ूँढ़ता है। ऐसे ही भगवान हर किसी के अंदर वास करते हैं फिर भी हम उन्हें देख नहीं पाते हैं। कबीर का कहना है कि तीर्थ स्थानों में भटक कर भगवान को ढ़ूँढ़ने से अच्छा है कि हम उन्हें अपने भीतर तलाश करें। जब मैं था तब हरि नहीं अब हरि हैं मैं नाँहि। मैं – अहम् ( अहंकार ), हरि – परमेश्वर, अँधियारा – अंधकार Sakhi class 10 question answers साखी की व्याख्या Sakhi Explanation – जब मनुष्य का मैं यानि अहँ उसपर हावी होता है तो उसे ईश्वर नहीं मिलते हैं। जब ईश्वर मिल जाते हैं तो मनुष्य का अस्तित्व नगण्य हो जाता है क्योंकि वह ईश्वर में मिल जाता है। ये सब ऐसे ही होता है जैसे दीपक के जलने से सारा अंधेरा दूर हो जाता है। सुखिया सब संसार है खाए अरु
सोवै। सुखिया – सुखी, अरु – अज्ञान रूपी अंधकार, सोवै – सोये हुए, दुखिया – दुःखी, रोवै – रो रहे Kabir ki sakhi class 10 question answer साखी की व्याख्या Sakhi Explanation – पूरी दुनिया मौज मस्ती करने में मशगूल रहती है और सोचती है कि सब सुखी हैं। लेकिन सही मायने में सुखी तो वो है जो दिन रात प्रभु की आराधना करता है। बिरह भुवंगम तन बसै मन्त्र न लागै कोई। बिरह – बिछड़ने का गम, भुवंगम -भुजंग , सांप , बौरा – पागल साखी की व्याख्या Sakhi Explanation – जिस तरह से प्रेमी के बिरह के काटे हुए व्यक्ति पर किसी भी मंत्र या दवा का असर नहीं होता है, उसी तरह भगवान से बिछड़ जाने वाले जीने लायक नहीं रह जाते हैं; क्योंकि उनकी जिंदगी पागलों के जैसी हो जाती है। निंदक नेड़ा राखिये, आँगणि कुटी बँधाइ। निंदक – निंदा करने वाला, नेड़ा – निकट, आँगणि – आँगन, साबण – साबुन, निरमल – साफ़, सुभाइ – स्वभाव Kabir ki sakhi class 10 question answer साखी की व्याख्या Sakhi Explanation – जो आपका आलोचक हो उससे मुँह नहीं मोड़ना चाहिए। यदि संभव हो तो उसके लिए अपने पास ही रहने का समुचित प्रबंध कर देना चाहिए। क्योंकि जो आपकी आलोचना करता है वो बिना पानी और साबुने के आपके दुर्गुणों को दूर कर देता है। पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुवा, पंडित भया न कोइ। पोथी – पुस्तक, मुवा – मरना, भया – बनना, अषिर – अक्षर, पीव – प्रिय साखी की व्याख्या Sakhi Explanation मोटी मोटी किताबें पढ़ने से कोई ज्ञानी नहीं बन पाता है। इसके बदले में अगर किसी ने प्रेम का एक अक्षर भी पढ़ लिया तो वो बड़ा ज्ञानी बन जाता है। विद्या के साथ साथ व्यावहारिकता भी जरूरी होती है। हम घर जाल्या आपणाँ, लिया मुराड़ा हाथि। जाल्या – जलाया, आपणाँ – अपना, मुराड़ा – जलती हुई लकड़ी , ज्ञान, जालौं – जलाऊं, तास का – उसका साखी की व्याख्या Sakhi Explanation – लोगों में यदि प्रेम और भाईचारे का संदेश फूंकना हो तो उसके लिए आपको पहले अपने मोह माया और सांसारिक बंधन त्यागने होंगे। कबीर जैसे साधु के पथ पर चलने की योग्यता पाने के लिए यही सबसे बड़ी कसौटी है। कबीर साखी अभ्यास मीठी वाणी बोलने से औरों को सुख और अपने तन को शीतलता कैसे प्राप्त होती है? उत्तर: जब हम मीठी वाणी में बोलते हैं तो इससे सुनने वाले को अच्छा लगता है और वह हमारी बात अच्छे तरीके से सुनता है। सुनने वाला हमारे बारे में अपनी अच्छी राय बनाता है जिसके कारण हम आत्मसंतोष का अनुभव कर सकते हैं। सही तरीके से बातचीत होने के कारण सुनने वाले और बोलने वाले दोनों को सुख की अनुभूति होती है। दीपक दिखाई देने पर अँधियारा कैसे मिट जाता है? साखी के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए। उत्तर: इस साखी में कबीर ने दीपक की तुलना उस ज्ञान से की है जिसके कारण हमारे अंदर का अहं मिट जाता है। कबीर का कहना है कि जबतक हमारे अंदर अहं व्याप्त है तब तक हम परमात्मा को नहीं पा सकते हैं। लेकिन जैसे ही ज्ञान का प्रकाश जगता है वैसे ही हमारे अंदर से अहंरूपी अंधकार समाप्त हो जाता है। ईश्वर कण-कण में व्याप्त है, पर हम उसे क्यों नहीं देख पाते? उत्तर: ईश्वर कण-कण में व्याप्त है फिर भी हम उसे देख नहीं पाते क्योंकि हम उसे उचित जगह पर तलाशते ही नहीं हैं। ईश्वर तो हमारे भीतर है लेकिन हम उसे अपने भीतर ढ़ूँढ़ने की बजाय अन्य स्थानों; जैसे तीर्थ स्थल, मंदिर, मस्जिद आदि में ढ़ूँढ़ते हैं। संसार में सुखी व्यक्ति कौन है और दुखी कौन? यहाँ ‘सोना’ और ‘जागना’ किसके प्रतीक हैं? इसका प्रयोग यहाँ क्यों किया गया है? स्पष्ट कीजिए। उत्तर: कबीर के अनुसार वह व्यक्ति दुखी है जो हमेशा भोगविलास और दुनियादारी में उलझा रहता है। जो व्यक्ति सांसारिक झंझटों से परे होकर ईश्वर की आराधना करता है वही सुखी है। यहाँ पर ‘सोने’ का मतलब है ईश्वर के अस्तित्व से अनभिज्ञ रहना। ठीक इसके उलट, ‘जागने का मतलब है अपनी मन की आँखों को खोलकर ईश्वर की आराधना करना। अपने स्वभाव को निर्मल रखने के लिए कबीर ने क्या उपाय सुझाया है? उत्तर: अपने स्वभाव को निर्मल रखने के लिए बड़ा ही कारगर उपाय सुझाया है। कबीर ने कहा है कि हमें अपने आलोचक से मुँह नहीं फेरना चाहिए। कबीर ने कहा है कि हो सके तो आलोचक को अपने आस पास ही रहने का प्रबंध कर दें। ऐसा होने से आलोचक हमारी कमियो को बताता रहेगा ताकि हम उन्हें दूर कर सकें। इससे हमारा स्वभाव निर्मल हो जाएगा। ‘एकै अषिर पीव का, पढ़ै सु पँडित होइ’ इस पंक्ति द्वारा कवि क्या कहना चाहता है? उत्तर: इस पंक्ति के द्वारा कबीर ने कहा है कि यदि कोई व्यक्ति प्रेम का पाठ पढ़ ले तो वह ज्ञानी हो जाएगा। प्रेम और भाईचारे के पाठ से बढ़कर कोई ज्ञान नहीं है। मोटी-मोटी किताबें पढ़कर भी वह ज्ञान नहीं मिल पाता। कबीर की उद्धत साखियों की भाषा विशेषता स्पष्ट कीजिए। उत्तर: कबीर की साखियाँ अवधी भाषा की स्थानीय बोली में लिखी गई है। ऐसी बोली बनारस के आसपास के इलाकों में बोली जाती है। यह भाषा आम लोगों के बोलचाल की भाषा हुआ करती थी। कबीर ने अपनी साखियों में रोजमर्रा की वस्तुओं को उपमा के तौर पर इस्तेमाल किया है। अन्य शब्दों में कहा जाए तो कबीर की भाषा ठेठ है। इस तरह की भाषा किसी भी ज्ञान को जनमानस तक पहुँचाने के लिए अत्यंत कारगर हुआ करती थी। कबीर ने अपनी रचना को दोहों के रूप में लिखा है। एक दोहे में दो पंक्तियाँ होती हैं। इसलिए गूढ़ से गूढ़ बात को भी बड़ी सरलता से कम शब्दों में कहा जा सकता है। निम्नलिखित का भाव स्पष्ट किजिए: बिरह भुवंगम तन बसै, मंत्र न लागै कोइ। उत्तर: जब बिरह का साँप तन के अंदर बैठा हो तो कोई भी मंत्र काम नहीं आता है। यहाँ पर कवि ने प्रेमी के बिरह से पीड़ित व्यक्ति की तुलना ऐसे व्यक्ति से की जिससे ईश्वर दूर हो जाते हैं। ऐसा व्यक्ति हमेशा व्यथा में ही रहता है क्योंकि उसपर किसी भी दवा या उपचार का असर नहीं होता है। कस्तूरी कुंडलि बसै, मृग ढ़ूँढ़ै बन माँहि। उत्तर: हिरण की नाभि में कस्तूरी रहता है जिसकी सुगंध चारों ओर फैलती है। हिरण इससे अनभिज्ञ पूरे वन में कस्तूरी की खोज में मारा मारा फिरता है। इस दोहे में कबीर ने हिरण को उस मनुष्य के समान माना है जो ईश्वर की खोज में दर दर भटकता है। कबीर कहते हैं कि ईश्वर तो हम सबके अंदर वास करते हैं लेकिन हम उस बात से अनजान होकर ईश्वर को तीर्थ स्थानों के चक्कर लगाते रहते हैं। जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाँहि। उत्तर: जब मनुष्य का मैं यानि अहँ उसपर हावी होता है तो उसे ईश्वर नहीं मिलते हैं। जब ईश्वर मिल जाते हैं तो मनुष्य का अस्तित्व नगण्य हो जाता है क्योंकि वह ईश्वर में मिल जाता है। ये सब ऐसे ही होता है जैसे दीपक के जलने से सारा अंधेरा दूर हो जाता है। पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुवा, पंडित भया न कोइ। उत्तर: मोटी मोटी किताबें पढ़ने से कोई ज्ञानी नहीं बन पाता है। इसके बदले में अगर किसी ने प्रेम का एक अक्षर भी पढ़ लिया तो वो बड़ा ज्ञानी बन जाता है। विद्या के साथ साथ व्यावहारिकता भी जरूरी होती है। कबीर दास का जीवन परिचय – Kabir Das Ka Jivan Parichay:संत कबीर दास प्राचीन भारत के सबसे प्रसिद्ध कवियों की सूची में सबसे प्रथम स्थान पर आते हैं। उनका जन्म (kabir das ka janm) वाराणसी में हुआ। हालाँकि इस बात की पुष्टि नही की जा सकी, परन्तु ऐसा माना जाता है कि उनका जन्म सन् 1400 के आसपास हुआ। उनके माता-पिता
के बारे में भी यह प्रमाणित नहीं है कि उन्होनें कबीरदास को जन्म दिया या केवल उनका पालन-पोषण किया। कबीर ने खुद को अपनी कई रचनाओं में जुलाहा कहा है। उन्होने अपने अतिंम क्षण मगहर में व्यतीत किए और वहीं अपने प्राण त्यागे। कबीर दास की रचनाएँ (Kabir Das Ki Rachnayen) कबीर ग्रंथावली में संग्रहीत है। कबीर की कई रचनाएं गुरुग्रंथ साहिब में भी पढ़ी जा सकती हैं। NCERT Solutions for class 10 for all subjects
कबीर की 100 साखी और भावार्थ सतगुरु सवाँ न को सगा, सोधी सईं न दाति । बलिहारी गुरु आपकी, घरी घरी सौ बार । सतगुरु की महिमा अनँत, अनँत किया उपगार । राम नाम कै पटंतरे, देबे कौं कुछ नाहिं । सतगुरु कै सदकै करूँ, दिल अपनीं का साँच । सतगुरु शब्द कमान ले, बाहन लागे तीर । सतगुरु साँचा सूरिवाँ, सबद जु बाह्या एक । पीछैं लागा जाइ था, लोक वेद के साथि। दीपक दीया तेल भरि, बाती दई अघट्ट । ग्यान प्रकासा गुरु मिला, सों जिनि बीसरिं जाइ । कबीर गुर गरवा मिल्या, रलि गया आटैं लौंन । जाका गुरु भी अँधला, चेला खरा निरंध । नाँ गुर मिल्या न सिष भया, लालच खेल्याडाव । चौसठि दीवा जोइ करि, चौदह चंदा माँहि । भली भई जु गुर मिल्या, नातर होती हानि । माया दीपक नर पतंग, भ्रमि भ्रमि इवैं पडंत । संसै खाया सकल जग, संसा किनहुँ न खद्ध । सतगुर मिल्या त का भया, जे मनि पाड़ी भोल । बूड़ा था पै ऊबरा, गुरु की लहरि चमंकि । गुरु गोविंद तौ एक है, दूजा यहु आकार । कबीर सतगुर ना मिल्या, रही अधूरी सीख। सतगुर साँचा, सूरिवाँ, तातैं लोहि लुहार। निहचल निधि मिलाइ तत, सतगुर साहस धीर । सतगुर हम सूँ रीझि करि, कहा एक परसंग । कबीर बादल प्रेम का, हम परि बरस्या आइ । :: सुमिरन :: कबीर कहै मैं कथि गया, कथि गये ब्रह्म महेस । तत्त तिलक तिहुँ लोक मैं, रामनाम निज सार । मनसा वाचा कर्मना, कबीर सुमिरन सार ।।२९।। जे कछु चितवैं राम बिन, सोइ काल की पास ।।३०।। तूँ तूँ करता तू भया, मुझ मैं रही न हूँ । कबीर निरभै राम जपु, जब लगि दीवै बाति । कबीर सूता क्या करै, जागि न जपै मुरारि । कबीर सूता क्या करै, गुन गोविंद के गाई । केसौ कहि कहि कूकिए, नाँ सोइय असरार । जिहि घटि प्रीति न प्रेम रस, फुनि रसना नहिं राम । कबीर प्रेम न चाषिया, चषि न लीया साव । पहिलै बुरा कमाई करि, बाँधी विष की पोट । कोटि क्रम पेलै पलक मैं, जे रंचक आवै नाउँ। जिहि हरि जैसा जानियां, तिनकौ तैसा लाभ। राम पियारा छांडि करि, करै आन का जाप। कबीर आपन राम कहि, औरन राम कहाइ। जैसे
माया मन रमैं, यौं जे राम रमाइ। लूटि सकै तौ लूटि लै, राम नाम की लूटि । लूटि सकै तौ लूटियौ,
राम नाम भंडार । लंबा मारग दूरि घर, विकट पंथ बहु मार । गुन गाए, गुन ना कटै, रटै न, राम बियोग । कबीर कठिनाई खरी, सुमिरताँ हरि नाम। कबीर राम ध्याइ लै, जिभ्या सौं करि मंत। कबीर राम रिझाइ लै, मुखि अमृत गुण गाइ । कबीर चित्त चमंकिया, चहुँ दिस लागी लाइ । :: ग्यान बिरह :: दीपक पावक आँनिया,तेल भि आना
संग। मारा है जे मरैगा, बिन सर थोथी भालि । झल ऊठी झोली जली, खपरा फूटिम फूटि। आगि जु लागी नीर महिं, कांदौ जरिया झारि। पानी में आग लग गयी और उसका कीचड़ सम्पूर्णतया जल गया अर्थात अवचेतन में जो दूषित संस्कार और वासनाएँ हैं वे भस्म हो गईं। उत्तर-दक्षिण के पंडित (पोथी तक सीमित ज्ञान वाले पंडित) अर्थात् चारों ओर के शास्त्री विचार कर हार गये पर
इसका मर्म किसी की समझ में न आया। दौं लागी सायर जला पंखी बैठे आई। गुरु दाधा चेला जला, बिहरा लागी आगि। अहेड़ी दौ लाइया मिरग पुकारे रोइ। पांनीं मांहीं परजली, भई अपरबल आगि। :: परचा (परिचय) :: कबीर तेज अनंत का, मानो सूरज सेनि । पारब्रह्म के तेज का, कैसा है उनमान । हदे छाँड़ि बेहदि गया, हुआ निरन्तर वास । अन्तरि कँवल प्रकासिका, ब्रह्म वास तहँ होइ । सायर
नाहीं सीप नहिं, स्वाति बूँद भी नाँहि । घट माँहैं औघट लह्या, औघट माँहैं घाट । सूर समाना चाँद मैं, दुहूँ किया घर एक । हद्द छाड़ि बेहद गया, किया सुन्नि असनान। देखौ करम कबीर का, कछु पूरब जनम का लेख । मन लागा उनमन्न सौ, गगन पहूँचा जाइ । मन लागा उनमन्न सो, उनमन मनहि विलग । पानी ही तै हिम भया, हिम ह्वै गया बिलाइ । भली भई जु भै पड्या, गई दसा सब भूलि। चौहटै चिंतामणि चढ़ी, हाड़ी मारत हाथि । पंखि उड़ानी गगन कौं, पिण्ड रहा परदेस । सुरति समानी निरति मैं, अजपा माँहै जाप । आया था संसार में, देखन कौ बहुत रूप ।
धरती गगन पवन नहिं होता, नहिं तोया नहिं तारा । जा दिन किरतम नां हता, नहीं हाट नहिं बाट । थिति पाई मन थिर भया, सतगुरु करी सहाइ । हरि संगति सीतल भया मिटी मोह की ताप । तन भीतरि मन मानियाँ, बाहरि कहा न जाइ । जिनि पाया तिनि सुगहगह्या, रसनाँ लागी स्वादि । कबीर दिल साबित भया, पापा फल समरत्थ । जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाँहि । जा कारणि मैं ढूँढ़ता, सनमुख मिलिया आइ। जा कारणि मैं जाइ था, सोई पाया ठौर। कबीर देखा इक अगम, महिमा कही न जाय
। मानसरोवर सुभर जल, हंसा केलि कराहिं । गगन गरजि अमृत चुवै, कदली कँवल प्रकास । नींव बिहूनां देहुरा, देह बिहूनां देव । देवल माँहे देहुरी, तिल जेता बिस्तार । कबीर कँवल प्रकासिया, ऊगा निर्मल सूर । आकासे मुखि औंधा कुआँ, पाताले पनिहारि । सिव सक्ति दिसि को जुवै, पछिम दिसा उठै धूरि । अमृत बरिसै हीरा
निपजै, घंटा पड़ै टकसाल । ममता मेरा क्या करै, प्रेम उघारी पौलि ।
ईश्वर को दुनिया क्यों नहीं देख पाती?ईश्वर सब ओर व्याप्त है। वह निराकार है। हमारा मन अज्ञानता, अहंकार, विलासिताओं में डूबा है। इसलिए हम उसे नहीं देख पाते हैं।
ईश्वर कण कण में व्याप्त है पर हम उसे क्यों नहीं देख पाते साखी के सन्दर्भ में सही उत्तर होगा?प्रश्न 3. ईश्वर कण-कण में व्याप्त है, पर हम उसे क्यों नहीं देख पाते? ईश्वर संसार के कण-कण में व्याप्त है परंतु हम उसे देख नहीं पाते, क्योंकि हमारा अस्थिर मन सांसारिक विषय-वासनाओं, अज्ञानता, अहंकार और अविश्वास से घिरा रहता है। अज्ञान के कारण हम ईश्वर से साक्षात्कार नहीं कर पाते।
कबीर ने ईश्वर को किसका दीपक मन है?उत्तर: इस साखी में कबीर ने दीपक की तुलना उस ज्ञान से की है जिसके कारण हमारे अंदर का अहं मिट जाता है। कबीर का कहना है कि जबतक हमारे अंदर अहं व्याप्त है तब तक हम परमात्मा को नहीं पा सकते हैं। लेकिन जैसे ही ज्ञान का प्रकाश जगता है वैसे ही हमारे अंदर से अहंरूपी अंधकार समाप्त हो जाता है।
दीपक और पंक्ति किसका प्रतीक है?मधुर मधुर मेरे दीपक जल! युग युग प्रतिदिन प्रतिक्षण प्रतिपल, प्रियतम का पथ आलोकित कर! सौरभ फैला विपुल धूप बन, मृदुल मोम सा घुल रे मृदु तन; दे प्रकाश का सिंधु अपरिमित, तेरे जीवन का अणु गल गल! पुलक पुलक मेरे दीपक जल!
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