इस समय कितने देशों ने परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर किए हैं? - is samay kitane deshon ne paramaanu aprasaar sandhi par hastaakshar kie hain?

व्हाइट हाउस

सितंबर 21, 2022

संयुक्तराष्ट्र मुख्यालय

न्यूयॉर्क सिटी, न्यूयॉर्क

पूर्वाह्न 11:08 ईडीटी

राष्ट्रपति:  धन्यवाद।

अध्यक्ष महोदय, महासचिव महोदय, मेरे साथी नेताओं, पिछले साल भर में, हमारी दुनिया ने बड़ी उथल-पुथल देखी है: खाद्य असुरक्षा का बढ़ता संकट; रिकॉर्ड गर्मी, बाढ़ और सूखा; कोविड-19; महंगाई; और एक क्रूर, अनावश्यक युद्ध – दोटूक शब्दों में कहें तो एक व्यक्ति की मर्ज़ी का युद्ध।

आइए दोटूक बात करें। संयुक्तराष्ट्र सुरक्षा परिषद के एक स्थायी सदस्य ने अपने पड़ोसी पर हमला किया है, एक संप्रभु राज्य को मानचित्र से मिटाने का प्रयास किया है।

रूस ने संयुक्तराष्ट्र चार्टर के मूल सिद्धांतों का बेशर्मी से उल्लंघन किया है – सबसे अहम सिद्धांत का जिसमें किसी देश द्वारा अपने पड़ोसी की ज़मीन पर बलपूर्वक क़ब्ज़ा करने की स्पष्ट मनाही है।

फिर, आज ही राष्ट्रपति पुतिन ने यूरोप के खिलाफ परमाणु हमले की खुली धमकी दी है, परमाणु अप्रसार संधि के उत्तरदायित्वों की बेपरवाह अवहेलना करते हुए।

अब रूस लड़ाई में शामिल होने के लिए अतिरिक्त सैनिक जुटा रहा है। और क्रेमलिन यूक्रेन के कुछ हिस्सों के विलय की कोशिश के तहत दिखावटी जनमत संग्रहों का आयोजन कर रहा है, जो संयुक्तराष्ट्र चार्टर का बहुत गंभीर उल्लंघन है।

पूरी दुनिया को इन भड़काऊ कृत्यों को खुली आंखों से देखना चाहिए। पुतिन का दावा है कि उन्हें इसलिए कार्रवाई करनी पड़ी क्योंकि रूस के लिए ख़तरा खड़ा किया गया था। लेकिन किसी ने रूस को धमकी नहीं दी, और रूस के अलावा किसी ने भी संघर्ष की पहल नहीं की।

वास्तव में, हमने आगाह किया था कि ये सब होने वाला है। और आप में से कई लोगों के साथ मिलकर, हमने इसे टालने का प्रयास किया था।

पुतिन के अपने शब्द ही उनके असली उद्देश्य पर संदेह की कोई गुंजाइश नहीं रहने देते हैं। आक्रमण करने से ठीक पहले, पुतिन ने ज़ोर देकर कहा – उन्हीं के शब्दों में – यूक्रेन “रूस द्वारा बनाया गया था” और उसे कभी भी, “वास्तविक राष्ट्र का दर्जा” प्राप्त नहीं था।

और अब हम यूक्रेन के स्कूलों, रेलवे स्टेशनों, अस्पतालों, और ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक केंद्रों पर हमले होते देख रहे हैं।

पिछले दिनों, रूस के अत्याचार और युद्धापराधों के और भी भयानक सबूत मिले हैं: इज़ियम में बड़ी संख्या में कब्रें मिली हैं; शवों पर, जिन्होंने शवों को ज़मीन से निकाला उनके अनुसार, शवों पर यातना के लक्षण दिख रहे हैं।

साफ़ तौर पर कहें तो यह युद्ध यूक्रेन के एक राष्ट्र के रूप में अस्तित्व के अधिकार को, और एक राष्ट्र के रूप रूप में यूक्रेनी जनता के अस्तित्व के अधिकार को ख़त्म करने का प्रयास है। आप जो भी हैं, जहां भी रहते हैं, जिसमें भी आस्था रखते हैं, आपको ये सब भयावह लगना चाहिए।

यही कारण है कि महासभा में 141 राष्ट्रों ने एकजुट होकर यूक्रेन के खिलाफ़ रूस के युद्ध की स्पष्ट रूप से निंदा की। अमेरिका बड़े स्तर पर यूक्रेन को सुरक्षा सहायता और मानवीय सहायता और प्रत्यक्ष आर्थिक सहायता दे रहा है – अब तक 25 बिलियन डॉलर से अधिक दे चुका है।

दुनिया भर में हमारे सहयोगी और साझेदार भी मदद देने के लिए आगे आए हैं। और आज, यहां उपस्थित 40 से अधिक देशों ने यूक्रेन को अपनी रक्षा करने के लिए आर्थिक सहायता और हथियारों के रूप में अरबों डॉलर दिए हैं।

अमेरिका भी रूस पर लागत थोपने, नैटो क्षेत्रों पर हमले नहीं होने देने, तथा अत्याचारों और युद्धापराधों के लिए रूस को जवाबदेह ठहराने के लिए अपने सहयोगियों और साझेदारों के साथ मिलकर काम कर रहा है।

क्योंकि अगर राष्ट्रों को बिना कीमत चुकाए अपनी साम्राज्यवादी महत्वाकांक्षाओं का विस्तार करने दिया जाता है, तो हम उन तमाम सिद्धांतों को ख़तरे में डाल रहे होंगे जिनका यह संस्था प्रतिनिधित्व करती है। तमाम सिद्धांत।

युद्ध के मैदान में हासिल हर जीत साहसी यूक्रेनी सैनिकों की है। लेकिन इस पिछले साल, दुनिया की भी परीक्षा हुई, और हम पीछे नहीं हटे।

हमने स्वतंत्रता को चुना। हमने संप्रभुता को चुना। हमने उन सिद्धांतों को चुना जो संयुक्तराष्ट्र चार्टर के हरेक हितधारक को पसंद हैं। हम यूक्रेन के साथ खड़े हैं।

आपकी तरह, अमेरिका भी चाहता है कि यह युद्ध न्यायोचित शर्तों पर समाप्त हो, जिन शर्तों को हम सबने मान्यता दी है: कि आप किसी देश की ज़मीन को जबरन ज़ब्त नहीं कर सकते। इस सिद्धांत के खिलाफ़ एकमात्र देश रूस है।

इसलिए, इस संस्था में हममें से प्रत्येक को – जो उन सिद्धांतों और विश्वासों को बनाए रखने के लिए दृढ़ हैं, जिनकी हमने संयुक्तराष्ट्र के सदस्यों के रूप में रक्षा करने प्रतिबद्धता जताई है – अपने संकल्प को लेकर स्पष्ट, दृढ़ और अडिग होना चाहिए।

यूक्रेन के पास वही अधिकार हैं जो हर संप्रभु राष्ट्र के हैं। हम यूक्रेन के साथ एकजुट खड़े रहेंगे। हम रूस की आक्रामकता के खिलाफ़ एकजुट खड़े रहेंगे। बस।

अब, यह कोई रहस्य नहीं है कि लोकतंत्र और निरंकुशता के बीच मुक़ाबले में, अमेरिका की और उसके राष्ट्रपति के रूप में मेरी परिकल्पना एक  ऐसी दुनिया की है जो कि लोकतांत्रिक मूल्यों पर आधारित है।

अमेरिका स्वदेश में और दुनिया भर में लोकतंत्र की रक्षा करने और उसे मज़बूत बनाने के लिए प्रतिबद्ध है। क्योंकि मेरा मानना ​​है कि लोकतंत्र मौजूदा दौर की चुनौतियों से निपटने के लिए मानवता का सबसे प्रभावी साधन है।

हम जी7 और समान विचारधारा वाले देशों के साथ काम कर रहे हैं ताकि यह साबित किया जा सके कि लोकतंत्र अपने नागरिकों के हित में काम करने के साथ-साथ बाकी दुनिया के लिए भी प्रभावी साबित हो सकता है।

लेकिन आज जब हम यहां मिल रहे हैं, एक स्थिर और न्यायपूर्ण विधिसम्मत व्यवस्था की यूएन चार्टर की नींव पर उन लोगों का हमला हो रहा है जो अपने राजनीतिक लाभ के लिए इसे समाप्त या विकृत करना चाहते हैं।

और संयुक्तराष्ट्र चार्टर पर न केवल दुनिया के लोकतंत्रों ने हस्ताक्षर किए थे, बल्कि इस पर भिन्न इतिहास और विचारधाराओं वाले दर्जनों देशों के नागरिकों के बीच भी सहमति बनी थी, जो शांति की दिशा में काम करने की अपनी प्रतिबद्धता को लेकर एकजुट थे।

जैसा कि राष्ट्रपति ट्रूमैन ने 1945 में कहा था, संयुक्तराष्ट्र चार्टर – उन्हीं के शब्दों में – “इस बात का प्रमाण है कि राष्ट्र, इंसानों की तरह, अपने मतभेदों को जाहिर कर सकते हैं, उनका सामना कर सकते हैं, और फिर एकजुट खड़े होने के लिए साझा आधार ढूंढ सकते हैं।”

वह साझा आधार इतना स्पष्ट, इतना मौलिक था कि आज, आपमें से 193 सदस्य देशों ने स्वेच्छा से इसके सिद्धांतों को अपनाया है। और संयुक्तराष्ट्र चार्टर के उन सिद्धांतों के बचाव में खड़ा होना प्रत्येक ज़िम्मेदार सदस्य राष्ट्र का दायित्व है।

मैं राष्ट्रों पर जीत या सीमाओं के विस्तार के लिए हिंसा और युद्ध के ज़रिए रक्तपात को खारिज करता हूं।

भयादोहन और दबाव की वैश्विक राजनीति के खिलाफ़ खड़े होना; छोटे राष्ट्रों के बड़ों की बराबरी वाले संप्रभु अधिकारों की रक्षा करना; नौवहन की स्वतंत्रता, अंतरराष्ट्रीय क़ानून के प्रति सम्मान और हथियारों पर नियंत्रण जैसे बुनियादी सिद्धांतों को अपनाना – चाहे किसी और बात पर हम असहमत हों, यही वो साझा बुनियाद है जिस पर हमें खड़ा होना चाहिए।

यदि आप अभी भी दुनिया के प्रत्येक राष्ट्र की भलाई के वास्ते एक मज़बूत नींव के लिए प्रतिबद्ध हैं, तो अमेरिका आपके साथ काम करना चाहेगा।

मेरा यह भी मानना ​​है कि अब समय आ गया है कि इस संस्था को और अधिक समावेशी बनाया जाए ताकि यह आज की दुनिया की ज़रूरतों के अनुरूप बेहतर काम कर सके।

अमेरिका सहित संयुक्तराष्ट्र सुरक्षा परिषद के सदस्यों को संयुक्तराष्ट्र चार्टर का लगातार समर्थन और बचाव करना चाहिए और परिषद को विश्वसनीय एवं प्रभावी बनाए रखने के लिए दुर्लभ एवं असाधारण स्थितियों के अलावा वीटो के उपयोग से बचना चाहिए।

यही कारण है कि अमेरिका परिषद के स्थायी और अस्थायी दोनों ही वर्गों के प्रतिनिधियों की संख्या बढ़ाने का समर्थन करता है। इस प्रस्ताव में उन देशों के लिए स्थायी सीटें शामिल हैं जिनका हमने लंबे समय से समर्थन किया है, साथ ही अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और कैरिबियन देशों के लिए स्थायी सीटें भी शामिल हैं।

अमेरिका इस महत्वपूर्ण कार्य के लिए प्रतिबद्ध है। हर क्षेत्र में, हमने साझा हितों को आगे बढ़ाने के लिए साझेदारों के साथ काम करने के नए और रचनात्मक तरीके अपनाए हैं: हिंद-प्रशांत में क्वाड को बढ़ावा देने से लेकर अमेरिकी देशों के शिखर सम्मेलन में प्रवासन और संरक्षण की लॉस एंजिल्स घोषणा पर हस्ताक्षर करने; अधिक शांतिपूर्ण और एकीकृत मध्य पूर्व की दिशा में काम करने के लिए नौ अरब नेताओं की ऐतिहासिक बैठक में भागीदारी करने; और आगामी दिसंबर में अमेरिकी-अफ्रीकी नेताओं के शिखर सम्मेलन की मेज़बानी करने तक।

जैसा कि मैंने पिछले साल कहा था, अमेरिका उन चुनौतियों का समाधान करने के लिए अथक कूटनीति के युग की शुरुआत कर रहा है जो लोगों के जीवन के लिए सबसे अहम हैं – सभी लोगों के जीवन के लिए: जलवायु संकट से निपटना, जिसकी पिछले वक्ता ने चर्चा की थी; वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा को मज़बूत करना; दुनिया का पेट भरना।

हमने इन्हें प्राथमिकता दी थी। और एक साल बाद, हम उस वादे को निभा रहे हैं।

जिस दिन से मैंने पदभार संभाला है, हमने एक साहसिक जलवायु एजेंडे के साथ नेतृत्वकारी भूमिका निभाई है। हम पेरिस समझौते में फिर से शामिल हुए, महत्वपूर्ण जलवायु शिखर सम्मेलनों का आयोजन किया, कॉप26 में अहम समझौतों को संभव बनाने में सहयोग किया। और हमने वैश्विक जीडीपी के दो तिहाई हिस्से को ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के उद्देश्य पर केंद्रित करने में भूमिका निभाई है।

और अब मैंने यहां अमेरिका में एक ऐतिहासिक क़ानून पर हस्ताक्षर किए हैं जिसमें हमारे देश के इतिहास की अब तक की सबसे बड़ी, सबसे महत्वपूर्ण जलवायु प्रतिबद्धता शामिल है: जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए 369 बिलियन डॉलर की व्यवस्था। इसमें शामिल हैं अपतटीय पवन और सौर ऊर्जा के लिए दसियों अरब डॉलर का नया निवेश, शून्य उत्सर्जन वाले वाहन अपनाने के प्रयासों में तेज़ी, ऊर्जा दक्षता में वृद्धि, और स्वच्छ विनिर्माण का समर्थन।

हमारे ऊर्जा विभाग का अनुमान है कि यह नया क़ानून 2030 तक कार्बन उत्सर्जन में प्रतिवर्ष एक गीगाटन की कमी ला सकेगा, और स्वच्छ ऊर्जा संचालित आर्थिक विकास के एक नए युग की शुरुआत करेगा।

हमारा निवेश न केवल अमेरिका में, बल्कि दुनिया भर में स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियों के विकास की लागत को कम करने में भी सहायक होगा। यह एक वैश्विक गेमचेंजर है – और वो भी समय रहते। हमारे पास ज़्यादा समय नहीं है।

हम सभी जानते हैं कि हम पहले से ही जलवायु संकट का सामना कर रहे हैं। पिछले एक साल की आपदाओं के बाद इस बात पर किसी को संदेह नहीं है। आज जब हम यहां एकत्रित हुए हैं, पाकिस्तान का अधिकांश हिस्सा अभी भी बाढ़ की चपेट में है; उसे मदद की ज़रूरत है। इस बीच, हॉर्न ऑफ अफ्रीका क्षेत्र अभूतपूर्व सूखे का सामना कर रहा है।

परिवारों को असंभव विकल्पों पर विचार करना पड़ रहा है, यह चुनना कि किस बच्चे को खिलाएं और यह चिंता करना कि वे जीवित रहेंगे या नहीं।

यह जलवायु परिवर्तन की मानवीय लागत है। और यह बढ़ रही है, कम नहीं हो रही।

इसलिए, जैसा कि मैंने पिछले साल घोषणा की थी, अपनी वैश्विक ज़िम्मेदारी को पूरा करने के लिए, मेरा प्रशासन हमारी कांग्रेस के साथ काम कर रहा है ताकि कम आय वाले देशों को अपने जलवायु लक्ष्यों को लागू करने और एक उचित ऊर्जा संक्रमण कार्यक्रम सुनिश्चित करने के लिए अंतरराष्ट्रीय जलवायु निधि में सालाना 11 अरब डॉलर से अधिक का योगदान किया जा सके।

इसका मुख्य भाग है हमारी प्रीपेयर [PREPARE] योजना, जो ख़ासकर कमज़ोर देशों में 50 करोड़ लोगों को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति अनुकूलन और सुदृढ़ता बढ़ाने में मदद करेगी।

यह एक विशाल लक्ष्य है। तो आइए इस क्षण को जलवायु परिवर्तन की तबाही के ज्वार को पलटने तथा धरती को संरक्षित करने के लिए एक मज़बूत, धारणीय एवं स्वच्छ ऊर्जा वाली अर्थव्यवस्था बनाने के संकल्प का अवसर बनाएं।

वैश्विक स्वास्थ्य की बात करें, तो हमने दुनिया भर के 116 देशों में कोविड-19 टीके की 620 मिलियन से अधिक खुराक वितरित की हैं, साथ ही विभिन्न देशों की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए अतिरिक्त खुराकें उपलब्ध हैं – और ये मुफ़्त बांटी जा रही हैं, बिना किसी शर्त के।

हम जी20 और अन्य देशों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं। और अमेरिका ने विश्व बैंक में महामारी की रोकथाम, तैयारी और जवाबी प्रयासों के लिए एक नया फंड स्थापित करने में नेतृत्वकारी भूमिका निभाई है।

साथ ही, हमने वैश्विक स्वास्थ्य चुनौतियों का सामना करने के लिए अपने प्रयासों को बढ़ाना जारी रखा है।

आज बाद में, मैं एड्स, तपेदिक और मलेरिया के खिलाफ़ वैश्विक कोष के लिए सातवें पुनर्पूर्ति सम्मेलन की मेज़बानी करूंगा। अमेरिकी कांग्रेस में द्विदलीय समर्थन के सहारे, मैंने इस प्रयास में 6 बिलियन डॉलर तक के योगदान करने का वचन दिया है।

इसलिए मैं सम्मेलन में निवेश के वायदों के एक ऐतिहासिक चक्र की उम्मीद करता हूं, ताकि इतिहास का अब तक का सबसे बड़ा वैश्विक स्वास्थ्य फ़ंड एकत्रित हो सके।

हम खाद्य संकट से भी डटकर मुकाबला कर रहे हैं। दुनिया भर में कम से कम 193 मिलियन लोगों को गंभीर खाद्य असुरक्षा का सामना करना पड़ रहा है, यानि एक वर्ष में 40 मिलियन की छलांग। आज मैं अकेले इस वर्ष के लिए जीवनरक्षक मानवीय और खाद्य सुरक्षा सहायता हेतु 2.9 बिलियन डॉलर के अतिरिक्त अमेरिकी योगदान की घोषणा कर रहा हूं।

रूस, इस बीच, यूक्रेन पर हमले की प्रतिक्रिया में दुनिया के अनेक देशों द्वारा उस पर लगाए गए प्रतिबंधों पर खाद्य संकट का दोष मढ़ने की कोशिश में झूठ फैला रहा है।

तो मुझे एक बात बिल्कुल साफ़ कर देनी चाहिए: हमारे प्रतिबंधों में रूस द्वारा खाद्य उत्पादों और उर्वरक के निर्यात की स्पष्ट अनुमति है। कोई सीमा नहीं लगाई गई है। यह रूस का युद्ध ही है जो खाद्य असुरक्षा को बढ़ा रहा है, और केवल रूस ही इसे समाप्त कर सकता है।

मैं यहां संयुक्तराष्ट्र में हुए काम – महासचिव महोदय, आपकी नेतृत्वकारी भूमिका समेत – के लिए आभारी हूं, जिसके तहत रूस द्वारा महीनों तक अवरुद्ध काला सागर के यूक्रेनी बंदरगाहों से अनाज निर्यात करने का एक तंत्र स्थापित किया गया है, और हमें यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि इस व्यवस्था को आगे जारी रखा जा सके।

हमारा दुनिया को भोजन उपलब्ध कराने की ज़िम्मेदारी में दृढ़ विश्वास है। यही कारण है कि अमेरिका विश्व खाद्य कार्यक्रम का दुनिया का सबसे बड़ा सहयोगी है, और उसके बजट में 40 प्रतिशत से अधिक का योगदान करता है।

हम दुनिया भर के बच्चों का पेट भरने के यूनिसेफ़ के प्रयासों के समर्थन में नेतृत्वकारी भूमिका निभा रहे हैं।

और खाद्य असुरक्षा की बड़ी चुनौती का सामना करने के लिए, अमेरिका ने एक कॉल टू एक्शन पेश किया गै: वैश्विक खाद्य असुरक्षा को ख़त्म करने के लिए एक रोडमैप – जिसे पहले ही 100 से अधिक सदस्य देशों का समर्थन मिल चुका है।

जून में, जी7 ने दुनिया भर में खाद्य सुरक्षा को मज़बूत करने के लिए 4.5 बिलियन डॉलर से अधिक के योगदान की घोषणा की थी।

यूएसएड की फ़ीड द फ़्यूचर पहल के ज़रिए, अमेरिका सूखे और गर्मी के खिलाफ़ सक्षम बीजों को ज़रूतमंद किसानों तक पहुंचाने के लिए अभिनव तरीकों को बढ़ावा दे रहा है, साथ ही उर्वरक उपलब्ध कराया जा रहा है और उर्वरक संबंधी दक्षता बढ़ाई जा रही है ताकि किसान कम उर्वरक का उपयोग कर अधिक फसल उगा सकें।

और जब इतने अधिक लोग मुश्किलों का सामना कर रहे हैं, हम सभी देशों से खाद्य निर्यात पर प्रतिबंध लगाने या अनाज की जमाखोरी से बचने का आह्वान करते हैं। क्योंकि दुनिया के हर देश में, भले ही किसी कारण से हमारी स्थिति भिन्न हो, अगर माता-पिता अपने बच्चों का पेट नहीं भर सकते – तो और कुछ भी मायने नहीं रखता।

भविष्य की बात करें, तो हम 21वीं सदी में हमारे सामने आने वाली नई चुनौतियों के अनुरूप नियम बनाने और नियमों को अद्यतन करने के लिए अपने साझेदारों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं।

हमने यूरोपीय संघ के साथ व्यापार और प्रौद्योगिकी परिषद की शुरुआत की है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि प्रमुख प्रौद्योगिकियां इस तरह से विकसित और शासित हों कि जिससे सभी लाभान्वित हो सकें।

अपने सहयोगी देशों के साथ और संयुक्तराष्ट्र के माध्यम से, हम ज़िम्मेदारी के मानदंडों की स्थापना और सुदृढ़ीकरण कर रहे हैं – साइबरस्पेस में ज़िम्मेदार राष्ट्रों वाला व्यवहार, साथ ही हम उन लोगों को जवाबदेह ठहराने की दिशा में काम कर रहे हैं जो अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को ख़तरे में डालने के लिए साइबर हमले का उपयोग करते हैं।

अमेरिका, अफ्रीका, यूरोप, मध्य पूर्व और हिंद-प्रशांत में साझेदारों के साथ, हम एक नया आर्थिक पारिस्थितिकी तंत्र बनाने के लिए काम कर रहे हैं, जहां हर देश को उचित अवसर मिले और आर्थिक विकास टिकाऊ, धारणीय, और सबके लिए हो।

यही कारण है कि अमेरिका ने वैश्विक न्यूनतम करों का समर्थन किया है। और हम इसे लागू करने की दिशा में काम करेंगे ताकि प्रमुख कंपनियां हर जगह उचित मात्रा में करों का भुगतान कर सकें।

इंडो-पैसिफ़िक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क के पीछे भी यही विचार रहा है, जिसे इसी साल अमेरिका ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र की 13 अन्य अर्थव्यवस्थाओं के साथ मिलकर शुरू किया है। हम आसियान और प्रशांत द्वीप समूह में अपने साझेदारों के साथ काम कर रहे हैं ताकि एक महत्वपूर्ण हिंद-प्रशांत क्षेत्र की परिकल्पना का समर्थन किया जा सके जो कि मुक्त और खुला, परस्पर संबद्ध और समृद्ध, सुरक्षित और सुदृढ़ हो।

हम दुनिया भर के साझेदारों के साथ मिलकर हम मज़बूत सप्लाई चेन सुनिश्चित करने की दिशा में काम कर रहे हैं – जो सभी को दबाव या या वर्चस्व की नीतियों से सुरक्षित रखे और यह सुनिश्चित करे कि कोई भी देश ऊर्जा को हथियार के रूप में उपयोग नहीं कर पाए।

और जब रूस का युद्ध वैश्विक अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर रहा है, हम पेरिस क्लब से बाहर के देशों सहित प्रमुख वैश्विक ऋणदाताओं से निम्न आय वाले देशों की क़र्ज़माफ़ी पर पारदर्शी रूप से विचार करने का आह्वान कर रहे हैं ताकि दुनिया भर में व्यापक आर्थिक और राजनीतिक संकटों से बचा जा सके।

प्रस्तावित फ़ायदों के बजाय भारी-भरकम क़र्ज़ लादने वाली बुनियादी ढांचा परियोजनाओं की जगह, आइए पारदर्शी निवेश के साथ दुनिया भर में बुनियादी ढांचे की विशाल ज़रूरतों को पूरा करें – उच्च मानकों वाली परियोजनाएं जो श्रमिकों और पर्यावरण के अधिकारों की रक्षा करती हैं – जो संबंधित समुदायों के हितों के अनुरूप हों, न कि निर्माणकर्ताओं के लिए।

यही कारण है कि अमेरिका ने साथी जी7 साझेदारों के साथ मिलकर पार्टनरशिप फ़ॉर ग्लोबल इंफ्रास्ट्रक्चर इंवेस्टमेंट शुरू की है। हमारा इस साझेदारी के माध्यम से 2027 तक निवेश के लिए सामूहिक रूप से 600 बिलियन डॉलर जुटाने का इरादा है।

दर्जनों परियोजनाएं पहले से ही चल रही हैं: सेनेगल में व्यापक स्तर पर टीकों का निर्माण, अंगोला में परिवर्तनकारी सौर परियोजनाएं, रोमानिया में अपनी तरह का पहला छोटा मॉड्यूलर परमाणु ऊर्जा संयंत्र।

ये ऐसे निवेश हैं जो न केवल उन देशों के लिए, बल्कि सभी के लिए लाभदायक साबित होने वाले हैं। जलवायु परिवर्तन जैसी वैश्विक समस्याओं को हल करने के लिए अमेरिका अपने प्रतिस्पर्धियों सहित हर देश के साथ काम करेगा। जलवायु कूटनीति अमेरिका या किसी अन्य देश के उपकार की बात नहीं है, और इससे हटना पूरी दुनिया के लिए नुक़सानदेह साबित होगा।

मैं अमेरिका और चीन के बीच प्रतिस्पर्धा के बारे में खुलकर बात करना चाहूंगा। बदलते भूराजनीतिक रुझानों के अनुरूप क़दम उठाते हुए, अमेरिका का व्यवहार एक निष्पक्ष नेता वाला होगा। हम संघर्ष नहीं चाहते। हम शीतयुद्ध नहीं चाहते। हम किसी भी राष्ट्र को अमेरिका या किसी अन्य साझेदार में से एक को चुनने के लिए नहीं कहते हैं।

लेकिन अमेरिका एक मुक्त, खुली, सुरक्षित और समृद्ध दुनिया की अपनी परिकल्पना को बढ़ावा देने और राष्ट्रों के लिए मदद की पेशकश करने में संकोच नहीं करेगा: ऐसे निवेश कार्यक्रम जो निर्भरता को बढ़ावा देने के लिए नहीं, बल्कि बोझ को कम करने और राष्ट्रों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए तैयार किए गए हैं; ऐसी साझेदारियां जो राजनीतिक दायित्व थोपने के लिए नहीं, बल्कि इसलिए की जाती हैं कि हम अपनी सफलताओं से प्रेरणा ले रहे होते हैं – हमारी प्रत्येक सफलता तब बड़ी हो जाती है जब अन्य राष्ट्र भी सफल होते हैं।

जब व्यक्तियों को सम्मान से जीने और अपनी प्रतिभा विकसित करने का मौका मिलता है, तो सभी लाभान्वित होते हैं। इसके लिए महत्वपूर्ण है इस संस्था के उच्चतम मानकों पर खरा उतरना: हर जगह, हरेक के लिए शांति और सुरक्षा बढ़ाना।

अमेरिका दुनिया के समक्ष आने वाले आतंकवादी ख़तरों का मुक़ाबला करने और उन्हें विफल करने के अपने अटूट संकल्प से नहीं डगमगाएगा। और हम संघर्षों के शांतिपूर्ण समाधान के प्रयास में अपनी कूटनीति के सहारे नेतृत्वकारी भूमिका निभाएंगे।

हम ताइवान जलडमरूमध्य में शांति और स्थिरता बनाए रखना चाहते हैं।

हम अपनी ‘वन चाइना नीति के लिए प्रतिबद्ध हैं, जिसने चार दशकों से संघर्ष को टाल रखा है। और हम किसी भी पक्ष द्वारा यथास्थिति में एकतरफा बदलाव का विरोध करना जारी रखेंगे।

हम इथियोपिया में लड़ाई को समाप्त करने और वहां सभी लोगों के लिए सुरक्षा की स्थिति बहाल करने हेतु अफ्रीकी संघ के नेतृत्व में जारी शांति प्रक्रिया का समर्थन करते हैं।

जहां तक वेनेज़ुएला की बात है, जहां कि वर्षों के राजनीतिक दमन ने 6 मिलियन लोगों को देश छोड़ने पर विवश किया है, हम वेनेज़ुएला की अगुआई में बातचीत की प्रक्रिया की शुरुआत और स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव कराए जाने का आह्वान करते हैं।

हम हैती के अपने पड़ोसियों के साथ खड़े हैं जब उनका देश राजनीति प्रेरित सामूहिक हिंसा और एक बड़े मानवीय संकट का सामना कर रहा है।

और हम दुनिया से भी ऐसा ही करने का आह्वान करते हैं। हमें बहुत काम करने हैं।

हम यमन में संयुक्तराष्ट्र की मध्यस्थता वाले संघर्ष विराम का समर्थन करना जारी रखेंगे, जिसने वर्षों से युद्ध झेल रहे लोगों को महीनों की अनमोल शांति दी है।

और हम यहूदी और लोकतांत्रिक राष्ट्र इज़रायल और फ़लस्तीनी लोगों के बीच बातचीत के ज़रिए स्थायी शांति के प्रयासों का समर्थन जारी रखेंगे। अमेरिका इज़रायल की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है, बस। और हमारे विचार में, भविष्य के लिए इज़रायल की सुरक्षा और समृद्धि सुनिश्चित करने और फ़लस्तीनियों को एक राष्ट्र देने, जिसके वे हक़दार हैं – का अभी भी सबसे अच्छा तरीका है बातचीत के ज़रिए द्विराष्ट्र समाधान जहां दोनों पक्षों द्वारा अपने नागरिकों के समान अधिकारों का पूर्ण सम्मान किया जाता हो; और दोनों ही समुदायों को समान रूप से स्वतंत्रता और गरिमा प्राप्त हो।

मैं प्रत्येक राष्ट्र से कूटनीति के सहारे परमाणु अप्रसार व्यवस्था को मज़बूत करने की प्रतिबद्धता दोहराने का भी आग्रह करना चाहूंगा। दुनिया में और जो कुछ भी हो रहा हो, अमेरिका अहम हथियार नियंत्रण उपायों को आगे बढ़ाने के लिए तैयार है। परमाणु युद्ध जीता नहीं जा सकता है और इसे कभी लड़ा नहीं जाना चाहिए।

सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्यों ने जनवरी में उस प्रतिबद्धता की पुनर्पुष्टि की थी। लेकिन आज हम परेशान करने वाले रुझान देख रहे हैं। रूस ने 10वें एनपीटी समीक्षा सम्मेलन में बाकी देशों द्वारा अपनाए गए परमाणु अप्रसार आदर्शों को त्याग दिया।

और फिर आज, जैसा कि मैंने कहा, वो परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की गैरज़िम्मेदाराना धमकी दे रहा है। चीन बिना किसी पारदर्शिता के परमाणु हथियारों से संबंधित अभूतपूर्व क़दम उठा रहा है।

गंभीर और सतत कूटनीति शुरू करने के हमारे प्रयासों के बावजूद, डेमोक्रेटिक पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ़ कोरिया ने संयुक्तराष्ट्र के प्रतिबंधों का खुला उल्लंघन करना जारी रखा है।

और जहां अमेरिका ईरान द्वारा अपने दायित्वों की पूर्ति में तेज़ी लाने पर संयुक्त व्यापक कार्य योजना समझौते में पारस्परिक वापसी के लिए तैयार है, हमने स्पष्ट कर दिया है: हम ईरान को परमाणु हथियार हासिल करने की अनुमति नहीं देंगे।

मेरा मानना ​​है कि इस परिणाम को प्राप्त करने के लिए कूटनीति सबसे अच्छा तरीका है। परमाणु अप्रसार व्यवस्था इस संस्था की सबसे बड़ी सफलताओं में से एक है। हम दुनिया को अब पीछे खिसकने नहीं दे सकते, और न ही हम मानवाधिकारों के क्षरण को नज़रअंदाज़ कर सकते हैं।

शायद इस संस्था की उपलब्धियों में सर्वोपरि है मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा, जो वह कसौटी है जिस पर हमारे पूर्वजों ने हमें खरा उतरने की चुनौती दी थी।

उन्होंने 1948 में स्पष्ट किया था: मानवाधिकार उन सभी चीज़ों का आधार हैं जिन्हें हम हासिल करना चाहते हैं। फिर भी आज, 2022 में, हमारी दुनिया के हर हिस्से में मौलिक स्वतंत्रता ख़तरे में है। शिनजियांग में उसका हनन हो रहा है जिसके बारे में संयुक्तराष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त के कार्यालय ने हाल में विस्तृत रिपोर्ट दी है, वहीं बर्मा में सैन्य शासन द्वारा लोकतंत्र समर्थक कार्यकर्ताओं और जातीय अल्पसंख्यकों के खिलाफ़ भयानक अत्याचार हो रहा है, जबकि अफ़ग़ानिस्तान में महिलाओं और बालिकाओं को तालिबान के बढ़ते दमन का सामना करना पड़ रहा है।

और आज, हम ईरान के बहादुर नागरिकों और निडर महिलाओं के साथ खड़े हैं जो इस समय अपने मूल अधिकारों को सुरक्षित रखने के लिए प्रदर्शन कर रहे हैं।

लेकिन मैं इस बात को जानता हूं: भविष्य उन देशों का होगा जो अपनी आबादी की पूर्ण क्षमताओं का उपयोग करते हैं, जहां महिलाओं और बालिकाओं को बुनियादी प्रजनन अधिकारों सहित समान अधिकार प्राप्त हैं, और वो एक मज़बूत अर्थव्यवस्था और अधिक सुदृढ़ समाज के निर्माण में पूर्ण योगदान दे सकती हैं; जहां धार्मिक और जातीय अल्पसंख्यक उत्पीड़न के बिना अपना जीवन जी सकते हैं और अपने समुदायों के ताने-बाने की मज़बूती में योगदान कर सकते हैं; जहां एलजीबीटीक्यू+ समुदाय के लोग हिंसा का निशाना बने बगैर आज़ादी से रहते और प्यार करते हैं; जहां आम नागरिक प्रतिशोध के डर के बिना अपने नेताओं पर सवाल उठा सकते हैं और उनकी आलोचना कर सकते हैं।

अमेरिका हमेशा स्वदेश में और दुनिया भर में संयुक्तराष्ट्र चार्टर में निहित मानवाधिकारों और मूल्यों को बढ़ावा देगा।

मैं अपना संबोधन इस बात से समाप्त करना चाहूंगा: संयुक्तराष्ट्र चार्टर और मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा द्वारा निर्देशित यह संस्था बुनियादी तौर पर एक निडर उम्मीद का तंत्र है।

मैं इस दोहराता हूं: यह एक निडर उम्मीद का तंत्र है।

उन आरंभिक प्रतिनिधियों की परिकल्पना के बारे में सोचें जिन्होंने एक असंभव प्रतीत होने वाले कार्य को अंजाम दिया था, जब दुनिया में अशांति की आग अभी सुलग ही रही थी।

इस बारे में सोचें कि लाखों लोगों के मारे जाने के दुख से जब दुनिया उबर भी नहीं पाई थी, जब होलोकॉस्ट के जातीय जनसंहार की भयावहता सामने आई थी, तो वैसे में लोग कितना विभाजित महसूस कर रहे होंगे।

उन्हें मानवता के सबसे काले पक्ष पर विश्वास करने का पूरा अधिकार था। इसके बजाय, उन्होंने हममें मौजूद सबसे अच्छे गुणों का सहारा लिया, और उन्होंने कुछ बेहतर बनाने का प्रयास किया: स्थायी शांति; राष्ट्रों के बीच सौहार्द; मानव परिवार के प्रत्येक सदस्य के लिए समान अधिकार; संपूर्ण मानव जाति की उन्नति के लिए सहयोग।

मेरे साथी नेताओं, आज हम जिन चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, वे वास्तव में बहुत गंभीर हैं, लेकिन हमारी क्षमता कहीं अधिक है। हमारी प्रतिबद्धता और भी अधिक होनी चाहिए।

तो आइए एक बार फिर साथ मिलकर इस अटूट संकल्प की घोषणा करें कि दुनिया के राष्ट्र अभी भी एकजुट हैं, कि हम संयुक्तराष्ट्र चार्टर के मूल्यों के समर्थन में खड़े हैं, कि हम अभी भी विश्वास करते हैं कि मिलकर काम करते हुए हम अपने बच्चों के लिए इतिहास की धारा को एक अधिक मुक्त और न्यायपूर्ण दिशा में मोड़ सकते हैं, भले ही हममें से किसी ने भी इसे पूरी तरह से हासिल नहीं किया है।

हम इतिहास के निष्क्रिय गवाह मात्र नहीं हैं; हम इतिहास के रचयिता हैं।

हम यह कर सकते हैं – हमें यह करना होगा – अपने लिए और अपने भविष्य के लिए, पूरी मानव जाति के लिए।

आपकी सहनशीलता के लिए, मेरी बात सुनने के लिए, आपका धन्यवाद। मैं इसके लिए बहुत आभारी हूं। भगवान आप सबका भला करे। (तालियां।)

पूर्वाह्न 11:37 ईडीटी


मूल स्रोत: https://www.whitehouse.gov/briefing-room/speeches-remarks/2022/09/21/remarks-by-president-biden-before-the-77th-session-of-the-united-nations-general-assembly/#:~:text=Mr.%20President%2C%20Mr.%20Secretary,Let%20us%20speak%20plainly

अस्वीकरण: यह अनुवाद शिष्टाचार के रूप में प्रदान किया गया है और केवल मूल अंग्रेज़ी स्रोत को ही आधिकारिक माना जाना चाहिए।

वर्तमान समय में परमाणु अप्रसार संधि में कितने देश शामिल है?

इस पर वर्ष 1968 में हस्ताक्षर किया गया था और यह वर्ष 1970 से प्रवर्तित हुआ। वर्तमान में 191 राष्ट्र-राज्य इसके सदस्य हैं।

परमाणु शक्ति कितने देशों के पास है?

इन 9 देशों के पास हैं सबसे ज्यादा परमाणु हथियार रूस के पास 5977, अमेरिका के पास 5428, चीन के पास 350, फ्रांस के पास 290, यूके के पास 225, पाकिस्तान के पास 165, भारत के पास 160, इजरायल के पास 90 और उत्तरी कोरिया के पास 20 परमाणु हथियार हैं।

भारत ने एनपीटी पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया है क्योंकि?

जैसा कि भारत हमेशा अप्रसार संधि (एनपीटी) को भारत के प्रति भेदभाव मानता था, इसलिए उसने इस पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दियाभारत ने हमेशा अंतरराष्ट्रीय संधियों का विरोध किया है जिसका उद्देश्य अप्रसार था क्योंकि वे गैर-परमाणु शक्तियों पर चुनिंदा रूप से लागू थे और पांच परमाणु हथियार शक्तियों के एकाधिकार को वैध बनाते थे।

परमाणु अप्रसार संधि एनपीटी पर हस्ताक्षर कब हुआ?

परमाणु अप्रसार संधि (अंग्रेज़ी:नॉन प्रॉलिफरेशन ट्रीटी) को एनपीटी के नाम से जाना जाता है। इसका उद्देश्य विश्व भर में परमाणु हथियारों के प्रसार को रोकने के साथ-साथ परमाणु परीक्षण पर अंकुश लगाना है। १ जुलाई १९६८ से इस समझौते पर हस्ताक्षर होना शुरू हुआ। अभी इस संधि पर हस्ताक्षर कर चुके देशों की संख्या १९0 है।