जनसंपर्क के प्रमुख साधन क्या है? - janasampark ke pramukh saadhan kya hai?

जनसम्पर्क या पब्लिक रिलेशन को बड़े समय से प्रेस रिलेशन्स माना जाता रहा है। अर्थात् जनमाध्यमों में अधिक मात्रा में अच्छी खबरों के साथ-साथ नकारात्मक खबरों को रोकना जनसम्पर्क का प्रमुख कार्य माना गया है। लेकिन यह एक अति संकुचित व नकारात्मक अवधारणा है। ठोस कार्य या उपलब्धियों पर आधारित सकारात्मक संचार से दीर्घकालीन व द्वीपक्षीय सम्बन्ध बनाना ही जनसम्पर्क का आधार होता है। वैसे जनसम्पर्क को छवि निर्माण, छवि प्रबन्धन, सदभाव निर्माण या प्रचार-प्रसार भी माना जाता है।

जनसंपर्क के प्रमुख साधन क्या है? - janasampark ke pramukh saadhan kya hai?

जनसम्पर्क इन सभी चीजों का समाहार है। साथ-साथ यह कई अन्य कार्य भी करता है। इन सभी कार्यों के बारे में इस अध्याय में विस्तार से चर्चा की जाएगी।

व्यक्ति विशेषों, समूहों, संस्थाओं, संगठनों, सरकारों व देशों की बात की जाए तो सभी किसी एक निश्चित परिवेश में काम करते हैं। कोई भी परिवेश अनेक व्यक्ति व संस्थाएं का समाहार होता है। किसी निश्चित परिस्थिति में सुचारू रूप से काम करने के लिए सम्बन्धित व्यक्ति और संस्थाओं के साथ अच्छे सम्बन्ध बनाना व बरकरार रखना अति आवश्यक है। यही जनसम्पर्क का कार्य है, और आधार भी है।

किसी भी परिवेश में व्यक्ति, समूह, संस्थान व संगठनों में आपसी सम्बन्धों में जटिलता व द्विपक्षीय निर्भरशीलता में दिन-प्रतिदिन बढोतरी हो रही है। साथ ही सामाजिक, आर्थिक, व्यवसायिक तथा राजनैतिक क्षेत्रों में आने वाले बदलाव इस जटिलता को बढावा देते हैं। ऐसे में व्यवक्ति विशेषों, संस्थाओं व संगठनों में मानवीय सम्बन्ध अहम हो उठा है। किसी भी संस्था, समूह या संगठन की सफलता के पीछे संस्था से जुड़े व्यक्ति व संगठनों के साथ-साथ कई बाहरी व्यक्ति, समूह व संगठनों का हाथ होता है। इसी कारण किसी भी संस्था का उससे प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जुड़े व्यक्ति संस्था व संगठनों के साथ सम्बन्ध बनाना जरूरी है। यह सम्बन्ध अन्तरंग होना चाहिए। सम्बन्ध में दीर्घकालीन निरन्तरता की आवश्यकता होती है। साथ ही यह सम्बन्ध द्विपक्षीय फायदों पर आधारित होता है।


जनसम्पर्क- एक परिचय

किसी भी संस्था, समूह या संगठन के साथ प्रत्यक्ष रूप से कई समूह जुड़े हुए होते हैं। यह समूह व्यक्तियों का या संस्थाओं का समाहार होते हैं। चाहे ये समूह संस्था से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जुड़े हों। संस्था की सफलता के पीछे इन समूहों का बडा हाथ होता है। जाहिर-सी बात है कि इन समूहों के साथ द्विपक्षीय फायदों और सद्भावों के आधार पर निरन्तर तथा परस्पर लाभकारी सम्बन्ध हों। इस प्रकार के सम्बन्ध बनाना और बरकरार रखना ही जनसम्पर्क है। जनसम्पर्क ठोस कार्य पर आधारित सकारात्मक संचार के जरिए किया जाता है।

जनसम्पर्क प्रबन्धन का एक प्रमुख साधन है। जनसम्पर्क को कुछ लोग सम्बन्ध प्रबन्धन या रिलेशनशिप मैनेजमेंट के रूप में भी देखते हैं। जनसम्पर्क संस्था से परोक्ष रूप से जुड़े सभी समूहों के साथ निरन्तर अच्छा सम्बन्ध बनाते हुए संस्था का प्रबन्धन कार्य सरल करता है। जनसम्पर्क को कुछ विशेषज्ञ एक प्रबन्धकीय विज्ञान मानते हैं।

जनसम्पर्क को एक व्यवहारिक विज्ञान भी माना जाता है। सम्बन्धित समूहों के प्रति अच्छे व्यवहार का निरन्तर निर्दशन करते हुए उन समूहों के समक्ष संस्था की अच्छी छवि तथा संस्था के प्रति अच्छे व्यवहार की उम्मीद बढाई जाती है। इस हिसाब से व्यवहार में सकारात्मकता पर आधारित होने के नाते जनसम्पर्क को व्यवहारिक विज्ञान भी माना जाता है।

जनसम्पर्क प्रमुख रूप से संचार ही है। जनसम्पर्क का प्रमुख साधन भी संचार है। निश्चित रूप से देखा जाए तो जनसम्पर्क अनुनयनकारी संचार है। जनसम्पर्क के तहत संस्था की सफलता में उपलब्धियों व अन्य सभी सकारात्मक छवियों के संदर्भ में संचार के जरिए सम्बन्धित समूहों के साथ अच्छा सम्बन्ध बनाने व बरकरार रखने का कार्य किया जाता है। जनसम्पर्क हेतू अक्सर जनमाध्यमों का प्रयोग किया जाता है। इसलिए इसे अनुनयनकारी जनसंचार भी कहा जाता है।

जनसम्पर्क के जरिए संस्था की सकारात्मक व सुस्पष्ट छवि निर्माण का कार्य किया जाता है। इस छवि निर्माण का आधार संस्था द्वारा किए गए ठोस कार्य ही होते हैं। अर्थात् जनसम्पर्क के जरिए पहले आवश्यक कार्य व गतिविधियों का निर्धारण किया जाता है। फिर प्रबन्धन द्वारा यह सब कार्य सम्पादित किए जाते हैं। इन कार्यों के सम्पादन होते समय व सम्पादित होने के बाद इन कार्यों व उपलब्धियों के संदर्भ में संदेश का सम्बन्धित समूहों के साथ संचार किया जाता है। इससे संस्था की अच्छी व दीर्घकालीन छवि बनती है। समय-समय पर उचित कार्य व गतिविधियां सम्पादित करते हुए कार्यों का सम्पादन व संचार करते हुए संस्था की अच्छी व सकारात्मक छवि को बरकरार रखा जाता है।

जनसम्पर्क में द्विपक्षीय समझ के साथ द्विपक्षीय फायदे हेतू विभिन्न कार्यों व गतिविधियों का निर्धारण व सम्पादन किया जाता है। इसी के आधार पर सकारात्मक संचार के जरिए सद्भाव बनाते हुए संस्थाओं की। अच्छी छवि का निर्माण किया जाता है।


जनसम्पर्क की परिभाषा

जनसम्पर्क की एक बहु प्रचलित परिभाषा है,

जनसम्पर्क किसी संस्था व इससे सम्बन्धित विभिन्न समूहों या जन के बीच में सद्भाव व सौहार्दपूर्ण सम्बन्ध बनाने हेतू जानबूझ कर किया गया सुनियोजित व निरन्तरता के साथ किया जाने वाला प्रयास है। अब इस परिभाषा को विस्तार से समझते हैं।


जानबूझ कर किया गया

जनसम्पर्क में कोई भी कार्य यूँ ही नहीं होता। जनसम्पर्क से सम्बन्धित सभी कार्यों के पीछे निश्चित लक्ष्य, योजना तथा सुचारू क्रियान्वयन का बडा हाथ होता है। पूर्वापर संगति को समझते हुए, सम्बन्धित सभी समूहों या जन की आवश्यकताओं को ध्यान में लेते हुए तथा संस्था के लक्ष्यों को सामने रखते हुए जनसम्पर्क सम्बन्धित सभी गतिविधियों का निर्धारण व सम्पादन किया जाता है। दैवी दुर्घटनाओं जैसी स्थितियों को छोडकर किसी भी कार्य के अकस्मात् होने की गुंजाइश नहीं होती।


सुनियोजित

जनसम्पर्क में कोई कार्य करने हेतू संयोग या अवसरों की प्रतिक्षा नहीं की जाती। अपितु किसी कार्य हेतू आवश्यक स्थिति बनाई जाती है तथा सभी कार्यों के लिए सुचारू नियोजन किया जाता है। किसी भी कार्य के क्रियान्वयन से पहले क्या करना है, कैसे करना है, कहाँ करना है, कब करना है तथा काम को कौन करेगा आदि सभी प्रश्नों का उत्तर पूर्व निश्चित होता है।


निरन्तरता

जनसम्पर्क में प्रमुख लक्ष्य होता है, सम्बन्धित समूह या जनों में सकारात्मक व व्यवहारिक बदलाव लाना। यह कार्य रातों-रात हो पाना सम्भव नहीं है। जनसम्पर्क सम्बन्धित सभी कार्य, जैसे छवि निर्माण, सद्भाव बनाना आदि समय सापेक्ष होते हैं। इसी कारण जनसम्पर्क सम्बन्धित सभी गतिविधियों में निरन्तरता की आवश्यकता है। निरन्तरता के कारण अच्छे सम्बन्ध बनाए जाने के साथ-साथ बरकरार रखे जा सकते हैं।


द्विपक्षीय समझ

सफल जनसम्पर्क हेतू एक निस्वार्थ मानसिकता की आवश्यकता होती है। 'बहुजन हिताए, बहुजन सुखाय' के भाव को सार्थक करते हुए जनसम्पर्क के जरिए संस्था सम्बन्धित सभी समूहों की आशा व अपेक्षाओं का पता लगाती है। इसके उपरान्त द्विपक्षीय फायदों को समझते हुए ही जनसम्पर्क सम्बन्धित गतिविधियों का निर्धारण किया जाता है। इस प्रकार की द्विपक्षीय समझ के कारण सद्भाव और सौहार्द का माहौल बनता है और बरकरार रहता है।


'पिटमैन' ने अपनी पुस्तक प्रैक्टिकल पी.आर.' में जनसम्पर्क की निम्नलिखित परिभाषा दी है-

'जनसम्पर्क द्विपक्षीय संचार स्थापित करते हुए संस्था और सम्बन्धित समूहों में आकांक्षाओं के संदर्भ में द्वन्द्व व द्वेष को दूर कर आपसी समझ व सद्भाव बनाता है। यह संचार सत्य तथा सम्पूर्ण सूचना के आधार पर किया जाता है।'


अमेरिकी जनसम्पर्क विशेषज्ञ 'डेनी ग्रीस औल्ड' ने जनसम्पर्क के बारे मे कहा है:

'जनसम्पर्क प्रबन्धनीय कार्य है। इसके जरिए सम्बन्धित समूहों या जनों के दृष्टिकोण का पता लगाते हुए उन समूहों की समझ व ग्राह्यता बढाने हेतू निश्चित गतिविधी या कार्यक्रमों का क्रियान्वयन किया जाता है।


अन्तराष्ट्रीय जनसम्पर्क संघ या आई.पी.आर.ए. के अनुसार

'जनसम्पर्क वह प्रबन्धनीय कार्य है जिसके तहत विभिन्न निजी व सरकारी संस्थाएं सुनियोजित व निरन्तर गतिविधियों के साथ सम्बन्धित समूहों के साथ सद्भाव बनाने का प्रयास करते हैं। इस संदर्भ जरिए परस्पर लाभकारी सहभागिता की अपेक्षा रखी जाती है। इसी तरह संस्था और सम्बन्धित समूहों का सांझे लक्ष्य व आकांक्षाओं की सुचारू पूर्ति होती है।'


प्रसिद्ध जनसम्पर्क विशेषज्ञ 'एडवर्ड एल.बार्निस' के अनुसार

'जनसम्पर्क किसी कार्य, मुद्दा, आंदोलन या संस्था हेतू सूचना, अनुनयन व समन्वय के जरिए जनसमर्थन का जुगाड के सन्दर्भ में प्रयास मात्र है।'


अन्यतम विशिष्ट जनसम्पर्क विशेषज्ञ 'फिलिप लेस्ली' के अनुसार

'जनसम्पर्क किसी संस्था व उससे सम्बन्धित समूहों को आपसी समझ के साथ एक दूसरे को सकारात्मक तरीके से ग्रहण करने में मदद करता है।'


जनसम्पर्क के फायदे

जनसम्पर्क संस्था से सम्बन्धित सभी समूहों के साथ सद्भाव बनाता है। संस्था मे और संस्था के बाहर काम करने हेतू एक सौहार्दपूर्ण माहौल बनाता है। जनसम्पर्क से संस्था की दीर्घकालीन व सकारात्मक छवि बनती है। जनसम्पर्क से संस्था को बहुत से फायदे होते हैं। इनमें प्रमुख हैं


संस्था की छवि

किसी संस्था के लिए अच्छी व सकारात्मक छवि एक अति आवश्यक चीज मानी जाती है। यह संस्था की खुबी व शक्ति मानी जाती है। जनसम्पर्क के जरिए संस्था की सकारात्मक छवि बनाई जाती है तथा उसे लम्बे समय तक बरकरार रखा जाता है। सकारात्मक छवि के कारण संस्था से जुड़े सभी वर्ग संस्था सम्बन्धित सभी चीजों को आसानी से स्वीकार करते हैं।


संस्था की वस्तु व सेवाओं की ग्राह्यता में वृद्धि

जनसम्पर्क द्वारा संस्था से सम्बन्धित सभी समूहों, विशेषकर उपभोक्ताओं में ग्राह्यता का माहौल बनाते हुए विज्ञापन व बिक्री सम्बन्धित सभी प्रयासों आगे बढाने का काम किया जाता है। इससे संस्था की वस्तु व सेवाओं के संवर्धन के क्षेत्र में काफी वृद्धि होती है।


कर्मचारियों के साथ सद्भाव

जनसम्पर्क के जरिए विशेष कर्मचारी सम्बन्ध या एम्पलोयी रिलेशन्स बनाने का भरपूर प्रयास किया जाता है। कर्मचारियों को कार्य हेतू अच्छा माहौल प्रदान करना, उनकी कार्य सम्बन्धित उपयुक्त मुआवजे, कर्मचारियों के परिवार का परिवार कल्याण तथा कर्मचारियों हेत विकास के आयाम खोलते हुए यह कार्य किया जाता है। इन सभी कामों में जनसम्पर्क की अहम भूमिका होती है। कर्मचारियों के साथ अच्छे सम्बन्ध होने से वे आशा व जोश और पूर्ण कार्यक्षमता के साथ अपने काम में जुट जाते हैं। इससे संस्था का उत्तरोत्तर विकास सम्भव होता है।


गलत अवधारणाओं को दूर करना

कई बार सूचना में कमी या सूचना न होना तथा दुष्प्रचार आदि के कारण संस्था के सन्दर्भ मे गलत अवधारणाएं बन जाती हैं। ऐसे में जनसम्पर्क के जरिए सूचना अभियान चलाते हुए इस प्रकार की गलतफहमियों को दूर किया जाता है।


संस्था की नीति व दृष्टिकोण को आगे बढाना

आमतौर पर हम संस्थाओं की नीति व दृष्टिकोण से अपरिचित होते हैं। इस कारण अक्सर भ्रांतियां पनपती हैं और संस्था व सम्बन्धित समूहों में अच्छा नाता नहीं बन पाता। किन्तु जनसम्पर्क के जरिए संस्था अपनी नीति, सिद्धांत व दृष्टिकोण आदि को सम्बन्धित समूहों के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है।


जनसम्पर्क का इतिहास व विकास

कहा जाता है कि जनसम्पर्क का प्रचलन सभ्यता जितना पुराना है। ऐतिहासिक कालों में भी राजाओ और महाराजाओं ने जनसम्पर्क का बखूबी इस्तेमाल किया और फायदा उठाया। सम्राट अशोक, सम्राट अकबर तथा सम्राट अलेक्जेंडर से लेकर महात्मा गांधी, माओ-त्से-तुंग, मार्टिन लूथर किंग आदि अनेकों ने जनसम्पर्क का इस्तेमाल किया। किन्तु जनसम्पर्क आधुनिक समय में एक व्यवस्थित विधा के रूप में प्रथम विश्वयुद्ध के समय उभरा। इसका श्रेय हिटलर तथा उसके प्रचार-प्रसार विशेषज्ञों को जाता है। उस समय जनसम्पर्क का प्रचलन प्रोपेगेंडा के रूप में होता था। कहा जाता है कि 1807 में अमेरिकी राष्ट्रपति थोमस जेफरसन ने यू. एस. कांग्रेस मे भाषण देते हुए पब्लिक रिलेशन का जिक्र किया था।

जनसम्पर्क के संदर्भ में प्रारम्भिक विकास अमेरिका में हुआ। खुले व्यवसायिक माहौल में पनपने के लिए संस्थाएं जनसम्पर्क को एक सशक्त साधन के रूप में इस्तेमाल करने लगी। धीरे-धीरे जनसम्पर्क का विस्तार दूसरे देशों में भी होने लगा।


भारत में जनसम्पर्क का इतिहास

भारत में व्यवस्थित विधा के रूप में जनसम्पर्क विधा का इतिहास अधिक पुराना नहीं है। हमारे देश में आधुनिक जनसम्पर्क का प्रचलन केवल मात्र छः दशक पुराना है। किन्तु मौर्यो से लेकर मुगलों तक, यहाँ तक ब्रितानी ईस्ट इंडिया कम्पनी ने भी जनसम्पर्क का इस्तेमाल किया। सम्राट अशोक का यह कथन, 'राजा पिता जैसा होना चाहिए,' जनसम्पर्क का एक मूलमन्त्र-सा माना जाता है। इसका व्यवहारिक अर्थ यह है, 'हम दूसरों का ख्याल रखेंगे तो दूसरे हमारा ख्याल रखेंगे।' भारतवर्ष में प्रारम्भिक दौर में प्रायः प्रोपेगेंडा का प्रचलन था। इसके तहत राजा, महाराजा तथा धार्मिक नेता अपनी नीति व बातों के लिए सम्बन्धित समूहों में अंधा-समर्थन की अपेक्षा रखते थे। यह समय प्रोपेगेंडा का था।

ब्रितानी सरकार ने प्रोपेगेंडा से आगे बढ़ते हुए पब्लिसिटि या प्रचार-प्रसार का बखूबी इस्तेमाल किया। 1858 में एडिटरर्स रूम की स्थापना की गई। 1880 में प्रथम प्रैस कमिश्नर नियुक्त किया गया। प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान प्रचार-प्रसार समितियां तथा द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान सूचना प्रसारण निर्देशालय स्थापित किए गए। बाद में जाकर यह सूचना प्रसारण मन्त्रालय में परिवर्तित हो गया।

स्वतन्त्रता के बाद आधुनिक जनसम्पर्क का प्रचलन शुरू हो गया। तेजी से बदलता राजनितिक, सामाजिक, आर्थिक व औद्योगिक परिदृश्य में जनसम्पर्क एक सशक्त साधन साबिता हुआ। औद्योगिक क्षेत्र में ज्यादातर बडी संस्थाएं सरकारी नियन्त्रण में थीं। किन्तु कई नीजि औद्योगिक संस्थाएं भी पनपने लगी थीं। भारत में आधुनिक जनसम्पर्क प्रचलन का श्रेय इन बडी औद्योगिक संस्थाओं को जाता है। आरम्भ से ही ओ. एन.जी.सी., स्टील ऑथोरिटि ऑफ इंडिया, टाटा समूह आदि के पास सुव्यवस्थित जनसम्पर्क विभाग उपलब्ध हैं।


60 और 70 के दशकों में 'लाइसेंस राज' के दौरान जनसम्पर्क का ज्यादातर कार्य सरकारी स्तर पर लॉबिंग तक सीमित था। इस दौरान अक्सर सरकार से लाइसेंस, स्वीकृति व अनुमोदन आदि हेतू सरकारी बरामदों में जनसम्पर्क अधिकरियों को घूमते पाया जाता था।


किन्तु 80 के दशक में जनसम्पर्क के क्षेत्र में अनेक परिवर्तन आए। व्यवसाय व उद्योग के क्षेत्र में उन्नति, तकनीकी बहुलता व अनेक जटिलताओं की स्थिति में अन्य संसाधनों के साथ-साथ मानव संसाधनों की महत्ता सामने आई। इस संदर्भ में सकारात्मक व दीर्घकालीन मानवीय सम्बन्ध बनाने हेतू जनसम्पर्क का सहारा लिया जाने लगा। व्यवसायिक व औद्योगिक संस्थाओं के उत्तरदायित्त्वों के संदर्भ में सवाल उठाए जाने लगे थे। ऐसे में इन संस्थाओं को सकारात्मक छवि बनाने की जरूरत थी। इस दिशा में भी जनसम्पर्क ने बखूबी भूमिका निभाई।


इसी दौरान अधिक से अधिक संस्थाएं जनसम्पर्क को अपनाने लगीं। साथ ही बहुत सी जनसम्पर्क संस्थाएं भी स्थापित की गई। इनमें प्रमुख थीं: ऑगिलवी माथर पी.आर., मेल कॉल पी.आर., हिन्दुस्तान थॉमसन की आई.पी.ए.एन. तथा ताज होटल समूह की गुड रिलेशन्स।

90 के दशक में वैश्वीकरण व उदारीकरण के दौर में जनसम्पर्क को अधिक बढोतरी मिली। यह सिलसिला 21वीं सदी के पहले दशक में भी बरकरार है।


प्रचार-प्रसार या पब्लिसिटि

जनसम्पर्क मूलरूप से एक संचारी विधा है। विज्ञापन की भांति यह अनुनयनकारी संचार है। विज्ञापन, बिक्री फौज द्वारा बिक्री या परसोनेल सेलिंग, बिक्री सम्वर्धन या सेल्स प्रमोशन की भांति जनसम्पर्क भी सम्वर्धनकारी संचार है। विपणन के प्रमुख लक्ष्य से किए जाने के कारण यह विपणन संचार भी है। किन्तु जनसम्पर्क प्रमुख रूप से प्रचार-प्रसार या पब्लिसिटि का एक साधन भी है।


वैसे पब्लिसिटि को हम प्रायः प्रवार-प्रसार के संदर्भ में समझते हैं। किन्तु पब्लिसिटि शब्द का आक्षरिक अर्थ है- 'लोकलोचन में लाना।' इस कार्य हेतू बहुत से साधन उपलब्ध हैं। चिल्लाकर लोगों को बताने से लेकर आग या धुएं से संकेत देने तक, मुनादी से लेजर के जरिए आसमान में संदेश लिखवाने तक, दुकान पर साइन बोर्ड लगाने से समाचार माध्यमों के जरिए सूचना देने तक सभी पब्लिसिटि के विभिन्न तरीके हैं।


वैसे विज्ञापन भी पब्लिसिटि का ही साधन है। किन्तु इसके लिए भुक्तान किया जाता है। इसलिए इसको भुगतान किया हुआ या 'पेड पब्लिसिटि' कहा जाता है। किन्तु जनसम्पर्क हेतू भुगतान करने की जरूरत नहीं होती। आज के दिन समाचार माध्यम पब्लिसिटि का प्रमुख माध्यम बन गया है। और यहाँ हम केवल मात्र विज्ञापनों की ही बात नहीं कर रहे हैं। विज्ञापनों के साथ-साथ इन समाचार माध्यमों में दी गई समग्र समाचार व अन्य सम्पादकीय सामग्री भी पब्लिसिटि के प्रमुख पहलू बन गए हैं।


इस संदर्भ में जनसम्पर्क प्रभावी भूमिका निभाता है। प्रेस विज्ञप्ति, प्रेस कॉन्फ्रेंस, प्रैस वार्ता, प्रैस टूर आदि के जरिए समाचार माध्यमों में समाचार व अन्य सम्पादकीय सामग्री प्रकाशित-प्रसारित करने का कार्य सम्पादित किया जाता है। विज्ञापन की तुलना में जनसम्पर्क के जरिए की जाने वाली पब्लिसिटि अधिक विश्वसनीय होती है। समाचार माध्यमों के जरिए इस प्रकार की पब्लिसिटि सामग्री की पहुंच केवल मात्र उपभोक्ता वर्ग के दायरे से बाहर संस्था से सम्बन्धित सभी समूहों व वर्गों तक बन जाती है। इसके अलावा भिन्न-भिन्न प्रकार की पब्लिसिटि सामग्री को नाटकीयता, गतिशीलता, दृश्यमानता आदि दी जा सकती है।


प्रोपेगेंडा

प्रोपेगेंडा भी पब्लिसिटि की एक अन्य प्रणाली है। किन्तु इसका अनुनयन से कोई सम्बन्ध नहीं है। प्रोपेगेंडा का प्रत्यक्ष सम्बन्ध प्रगाढ जनमत व अंधा समर्थन या ब्लाईंड स्पोर्ट से है। तर्क, तथ्य आदि से परे प्रोपेगेंडा भावात्मक स्तर पर काम करता है। ये किसी मुद्दे, नीति या दृष्टिकोण आदि के लिए जनसमूह में जनसमूह में ग्राह्यता बढाने और उसके लिए बिना तर्क, बिना शर्त समर्थन जुटाने का काम करता है।


प्रोपेगेंडा शब्द का पहली बार प्रयोग सन् 1662 में रोम में किया गया था। उस समय सम्राट व राजा, महाराजाओं में अपनी नीति आदि हेतू समर्थन जुटाने के लिए इसका प्रयोग करते थे। इसके बाद धार्मिक संस्थाएं सुनिश्चित मुद्दों को बढावा देने हेतू इसका इस्तेमाल करने लगे। प्रथम व द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान हिटलर तथा अमेरिका ने इसको एक सक्षम विधा के रूप में स्थापित किया। आज भी प्रोपेगेंडा का प्रयोग प्रायतः धार्मिक व राजनीतिक मुद्दों के संदर्भ में तथा युद्ध की स्थिति में किया जाता है।


प्रोपेगेंडा विज्ञापन व जनसम्पर्क की भांति एक सुव्यवस्थित विधा है। विज्ञापन व जनसम्पर्क की भांति प्रोपेगेंडा भी सुनियोजित व सुव्यवस्थित तरीके से अभियान के रूप में चलाया जाता है। एक विधा या पद्धति के रूप में प्रोपेगेंडा नकारात्मक नहीं है। किन्तु प्रचलन के सन्दर्भ में, विशेषकर सम्बन्धित मुद्दों व दृष्टिकोण तथा इच्छित लक्ष्य के संदर्भ में द्विपक्षीयता के ना होने के कारण प्रोपेगेंडा को अक्सर नकारात्मक माना जाता है।


जनमत या पब्लिक ओपिनियन

आमतौर पर जन शब्द का अर्थ जनसमूह या आम जनता होता है। समाज में, विशेषकर राजनीति के क्षेत्र में जनमत का काफी महत्त्व है। वैसे ही उद्योग और व्यवसाय के क्षेत्र में जनमत प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से अहम भूमिका निभाता है। मत शब्द का अर्थ विचार, निर्णय या प्रगाढ दृष्टिकोण से होता है। मत से यह भी मतलब निकलता है कि किसी मुददे या विषय के संदर्भ में कोई अंतिम निर्णय लिया जाता है। पब्लिक ओपिनियन एक निश्चित जनसमूह का सामूहिक मत है।


जनसम्पर्क व पब्लिक ओपिनियन में एक अति अन्तरंग अन्तर्सम्बन्ध है। जनसम्पर्क के सम्बन्ध में जनमत सम्बन्धित सभी समूहों व वर्गों के सामूहिक मत से है। जनसम्पर्क के जरिए सबसे पहले किसी भी मुद्दे या विषय को जनमत का आंकलन किया जाता है। इसके बाद इस मत का सही विश्लेषण किया जाता है। फिर इस जनमत को प्रभावित करते हुए निश्चित व सकारात्मक दिशा-निर्देश दिया जाता है। समय-समय पर जनमत का आंकलन करते हुए उसमें संस्था के संदर्भ में सकारात्मकता बरकरार रखने का प्रयास किया जाता है।


इसी संदर्भ में जनसम्पर्क अधिकारियों के सम्मुख प्रमुख साधन है- दृष्टिकोण। संस्था से सम्बन्धित सभी समूहों में शामिल सभी व्यवक्तियों में नीजि दृष्टिकोण व सकारात्मक बदलाव लाते हुए उन सभी में सकारात्मक जनमत लाया जाता है। इस संदर्भ में जनसंचार के साथ-साथ समूह संचार व व्यक्तिगत संचार का भी सहारा लिया जाता है। जनमत बनाने हेतू मल्टीस्टेप कम्युनिकेशन थियोरी या बहु चरणीय संचार सिद्धांत के तहत ओपिनियन लीडरों का भी इस्तेमाल किया जाता है।


मत आमतौर पर नीजि व सम्वेदनशील होता है। मतों का अक्सर मार्मिक आधार होता है। कोई घटना, कोई सूचना, किसी का मनाना या किसी का बहकाना या भडकाना आदि आसानी से मत को बदल सकते हैं। मनोवैज्ञानिक रूप से बताया जाता है कि मतों का निर्धारण व्यक्तियों के नीजि स्वार्थ से होता है।

मत अक्सर किसी घटना की प्रतिक्रिया होता है। प्रायतः मत व्यवस्थित नहीं होते हैं। किन्तु सम्बन्धित घटना, मुद्दा या नीति की सघनता व महत्त्व मतों की तीव्रता बढाते हैं। जनसम्पर्क अधिकारी इन बातों को समझते हुए सघन व महत्त्वपूर्ण उद्दीपकों का इस्तेमाल करते हुए सम्बन्धित समूहों के सामूहिक मतों को तीव्र बनाने के साथ-साथ उन्हें सुव्यवस्थित भी करते हैं।


जनसम्पर्क में 'जन'

विज्ञापन के जरिए एक निश्चित उपभोक्तावर्ग के साथ संचार किया जाता है। किन्तु जनसम्पर्क में एक ही साथ अनेक समूहों व वर्गों से सम्बन्ध बनाने का कार्य किया जाता है। जनसम्पर्क में इन समूहों को जन या पब्लिक कहा जाता है। जनसम्पर्क में जन का अर्थ जनता या आम जनसमूह नहीं है। जनसम्पर्क में जन का सम्बन्ध निश्चित संस्थाओं से सम्बन्धित विभिन्न समूहों से है।

उदाहरण के रूप में एक विश्वविद्यालय के जन है-

  • वर्तमान के छात्र
  • पूराने छात्र या अलूमिनाइ
  • भविष्य के छात्र
  • वर्तमान और आगामी छात्रों के अभिभावक
  • विश्वविद्यालय के कर्मचारी
  • यू.जी.सी., ए.आई.सी.टी.ई. जैसी अनुमोदनकारी संस्थाएं
  • शिक्षा मन्त्रालय, उच्च शिक्षा विभाग, तकनीकी शिक्षा विभाग, मानव संसाधन मन्त्रालय आदि
  • राज्य और केन्द्र सरकार
  • स्थानीय प्रशासन
  • अन्य विश्वविद्यालय
  • सम्बन्धित महाविद्यालय
  • स्थानीय बासिंदा
  • जनमाध्यम


सरकारी क्षेत्र में जनसम्पर्क

जनसम्पर्क विशेषज्ञ समर बसु का कहना है कि जनसम्पर्क के जरिए किसी कार्य, मुद्दे, आन्दोलन या तिशेषकर किसी संस्था के लिए सूचना, अनुनयन त समन्वय के जरिए सम्वलित समूहों का समर्थन प्राप्त किया जाता है।


एक अन्य संचार विशेषज्ञ आर.के. बालान के अनुसार जनसम्पर्क के जरिए कोई संस्था व उससे सम्बन्धित समूहों के बीच गलतफहमियों को दूर करते हुए आपसी समझ व तालमेल बढाया जाता है। इससे दोनों पक्षों को फायदा होता है।


इस प्रकार की मानसिकता की अपेक्षा सरकार व सरकारी संस्थाओं से की जाती है। जाहिर सी बात है कि सरकार व सरकारी संस्थाएं आम जनता व निश्चित समूहों के लिए अनेक कार्यक्रम चलाते हैं। यह कार्यक्रम चलाने से पहले वे सम्बन्धित समूहों की आवश्यकताओं व अपेक्षाओं का पता लगाते हैं। कार्यक्रम सम्पादित होने के समय वे प्रचार-प्रसार अभियानों के जरिए सम्बन्धित समूहों को सकारात्मक रूप से सूचित करते हैं।


सरकारी जनसम्पर्क के प्रायः दो प्रमुख पहलू होते हैं। यह हैं प्रचार-प्रसार व छवि निर्माण। प्रचार-प्रसार या पब्लिसिटि के संदर्भ में जनमाध्यमों के साथ-साथ पारम्परिक लोकमाध्यमों तक का सहारा लिया जाता है। इनके जरिए सम्बन्धित समूहों तक उपयुक्त सूचना पहुंचाई जाती है। पब्लिसिटि में निरन्तरता व सकारात्मकता से सरकार या सरकारी संस्थाओं की सकारात्मक छवि बनती है।


सरकारी जनसम्पर्क का एक प्रमुख आधार 'विकास' है। सरकार के प्रायः सभी कार्यक्रम व योजनाएं विकासोन्मुखी होते हैं। इसी सन्दर्भ में सरकार सम्बन्धित समूहों से अग्रपुष्टि या फीड फॉरवर्ड शोध के जरिए इनकी आशाओं व आकांक्षाओं का पता लगाती है। नियोजित कार्यक्रमों को इन आशाओं के अनुरूप बनाया व क्रियान्वित किया जाता है। इसके उपरान्त आपसी समझ व समन्वय बढाने के लिए प्रचार-प्रसार अभियान चलाए जाते हैं।


केन्द्र सरकार हेतू जनसम्पर्क का कार्य सूचना और प्रसारण मन्त्रालय करता है। इस मन्त्रालय के अन्तर्गत सभी संस्थाएं जनसम्पर्क सम्बन्धित सभी पहलूओं को निष्पादित करती हैं। इनमें प्रमुख हैं: आकाशवाणी, दूरदर्शन, क्षेत्र प्रसार निर्देशालय, विज्ञापन व दृश्य प्रचार निर्देशालय, प्रैस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो, फिल्म्स डिविजन, पब्लिकेशन डिविजन व रिसर्च एवं रेफेन्श डिविजन। ये सभी संस्थाएं भारत सरकार हेतू जनसम्पर्क सम्बन्धित विभिन्न कार्यों को सम्पादित करती हैं।


सरकारी क्षेत्र में कार्यरत सभी संस्थाओं का अपना जनसम्पर्क विभाग भी होता है। साथ ही भिन्न-भिन्न मन्त्रालयों के पास भी अपना जनसम्पर्क विभाग होता है। ये सभी मन्त्रालय व संस्थाएं अपने जनसम्पर्क विभाग तथा सूचना प्रसारण मन्त्रालय के जरिए प्रचार-प्रसार अभियान चलाते हैं।


राज्य सरकारों के पास भी जनसम्पर्क हेतू विशेष संस्थाएं होती हैं। अलग-अलग राज्यों में इन संस्थाओं के नाम व व्यापकता में अन्तर पाए जाता है। कुछ राज्यों में सूचना मन्त्रालय हैं तो कुछ राज्यों में सूचना व जनसम्पर्क विभाग हैं। कुछ राज्यों में सूचना व जनसम्पर्क विभाग या निर्देशालय भी हैं। चाहे वह मन्त्रालय हो, विभाग या निर्देशालय, राज्य सरकारों की जनसम्पर्क संस्थाओं में सम्बन्धित विभिन्न कार्य सम्पादित करने हेतू विभाग या प्रभाग कार्यरत होते हैं।


निजी जनसम्पर्क व सरकारी जनसम्पर्क में विशेष अन्तर है, अधिक दायित्व व उत्तरदायित्व। सरकारी जनसम्पर्क संस्थाएं अपने-अपने दायित्व निभाने के साथ-साथ सरकार व जनसाधारण दोनों के सामने उत्तरदायी रहती हैं। 

सरकारी जनसम्पर्क के प्रमुख लक्ष्य हैं-

  • सरकार व जनसाधारण के बीच में आपसी विश्वास व भरोसा बनाए रखने हेतू निरन्तर प्रयास
  • सरकार या सम्बन्धित संस्था के नीति, नियम, कार्यक्रम आदि के संदर्भ में पारदर्शी रूप से निरन्तर सूचना प्रवाह
  • सरकारी कार्यक्रमों के क्रियान्वयन स्तर, उपलब्धियों आदि के संदर्भ में हो रहे विकास के बारे में सम्बन्धित समूहों को सूचित करना
  • ग्रामीण क्षेत्रों में सूचना-शिक्षा-संचार-अभियानों के जरिए जागरूकता फैलाना
  • ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों के बीच की खाई को दूर करने का प्रयास करना
  • सरकार द्वारा चलाई जाने वाली सामाजिक, आर्थिक व विकासमूलक गतिविधियों के संदर्भ मे जनसाधारण का विश्वास व समर्थन हासिल करना।

इन लक्ष्यों की प्राप्ति हेतू सरकारी क्षेत्र में कार्यरत जनसम्पर्क अधिकारी प्रमुख रूप से प्रचार-प्रसार का सहारा लेते हैं। इस संदर्भ में प्रेस विज्ञप्ति व पृष्ठभूमि लेख तैयार करने के साथ-साथ नियमित रूप से प्रैस कॉन्फ्रेन्श का भी आयोजन करते हैं। साथ ही जनमाध्यमों में सरकारी उपलब्धियों आदि के संदर्भ में आई खबरों व अन्य सम्पादकीय सामग्री का निरीक्षण भी करते हैं। सरकारी जनसम्पर्क के क्षेत्र में, विशेषकर भारत में सरकारी जनसम्पर्क के संदर्भ में कहा जाता है कि यह प्रैस रिलेशन तक ही सीमित है। सरकारी क्षेत्र में जनसम्पर्क को एक कार्य मात्र ही माना जाता है। अनेक विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार व सरकारी संस्थाओं को जनसम्पर्क को एक सकारात्मक मानसिकता के रूप में ग्रहण करने की आवश्यकता है। साथ ही सरकारी जनसम्पर्क के क्षेत्र में प्रोफेशनलिज्म की कमी की भी अक्सर बात होती है। यह भी आरोप लगता है कि जनसम्पर्क के जरिए सत्ताधारी दल व शीर्षथ नेताओं का तुष्टिकरण मात्र किया जाता है।


निजी क्षेत्र में जनसम्पर्क

निजी क्षेत्र की अधिकतर संस्थाएं जनसम्पर्क को एक महत्त्वपूर्ण धुरी के रूप में मानती हैं। निजीकरण, उदारीकरण व वैश्वीकरण के आज के दौर में सम्बन्धों में जटिलता एक आम बात है। साथ ही सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक व अन्य कई क्षेत्रों में बढती जटिलता से यह स्थिति और भी पेचीदा हो जाती है। ऐसे में संस्थाओं को अपने सम्बन्धित समूहों से अच्छे सम्बन्ध बरकरार रखने हेतू जनसम्पर्क का अधिक से अधिक इस्तेमाल किया जाता है।


वैसे ही सरकारी जनसम्पर्क की तुलना में निजी क्षेत्र में जनसम्पर्क अधिक सुनियोजित व सुनिश्चित तरीके से किया जाता है। साथ ही निजी जनसम्पर्क के क्षेत्र में उपलब्ध सभी साधनों का बखूबी इस्तेमाल किया जाता है। निजी क्षेत्र में जनसम्पर्क एक कार्य मात्र नहीं है। यह एक मानसिकता है जहाँ जनसम्पर्क सम्बन्धित कार्य जनसम्पर्क विभाग करता है। वहीं सुचारू जनसम्पर्क हेतू आवश्यक माहौल बनाने में संस्था के सभी विभाग अपना भरपूर योगदान देते हैं।

जनसंपर्क के साधन क्या है?

सीधे सम्पर्क के दौरान कही हुई बातों, भाषणों के द्वारा रखे गए तथ्यों और प्रेस कांफ्रेस में कही हुई बातों के जरिए सीधा और प्रभावपूर्ण जनसंपर्क होता है प्रेस, टेलीविजन, रेडियो आदि भी जनसंपर्क के अत्यधिक प्रचलित और प्रभावशाली साधन हैं। अखबार और पत्र पत्रिकाओं, टेलीविजन और रेडियो का जनसंपर्क में काफी इस्तेमाल होता है।

जनसंपर्क कितने प्रकार के होते हैं?

'मास मीडिया' यानी जनसंपर्क के साधन अनेक प्रकार के होते हैं, जैसे- टेलीविज़न, समाचारपत्र, फ़िल्में, पत्रिकाएँ, रेडियो, विज्ञापन, विडियो खेल और सीडी आदि । उन्हें मास मीडिया इसलिए कहा जाता है क्योंकि वे एक साथ बहुत बड़ी संख्या में दर्शकों, श्रोताओं एवं पाठकों तक पहुँचते हैं

जनसंपर्क विकास क्या है?

जनसंपर्क जनता की भावनाओं और समस्याओं को समझने का एक साधन है। जनसंपर्क सरकारी नीतियों और कार्यक्रमों का जनता पर पड़ने वाले प्रभावों, लाभों अथवा हानियों को जानने वाला एक माध्यम है। जनसंपर्क के द्वारा यह जानने का प्रयास किया जाता है कि जनता किसी सरकारी अथवा गैर सरकारी संगठन से क्या-क्या अपेक्षाएं रखती है?

जनसंपर्क के लिए क्या आवश्यक है?

इसमें प्रबंधन, मीडिया,संचार और मनोविज्ञान जैसे विषयों के सिद्धांत और व्यवहार शामिल है। जनसंपर्क की प्रक्रिया एक सुनिश्चित लक्ष्य की प्राप्ति के लिए की जाती है, जो एक सही माध्यम के द्वारा जनता से संपर्क स्थापित कर अपने उद्देश्यों को पूरा करने के लिए सही दिशा में अग्रसर होने में सहायक होती है।