झारखंड में आदिवासियों के फूलों के त्योहार का नाम क्या है? - jhaarakhand mein aadivaasiyon ke phoolon ke tyohaar ka naam kya hai?

झारखंड में आदिवासियों के फूलों के त्योहार का नाम क्या है? - jhaarakhand mein aadivaasiyon ke phoolon ke tyohaar ka naam kya hai?
Festivals of Jharkhand

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  • Festivals of Jharkhand
    • सरहुल (Sarhul) 
    • सोहराई (Sohrai)
    • करमा  (Karma)
      • जावा
    • नवाखानी (Navakhani)
    • मंडा पर्व (Manda Festival)
    • धानबुनी (Dhanbuni)
    • चांडी पर्व (Chandi Festival)
    • बौरा बौलोंजी (Boura Bolongi)
    • हेरो-अंगा (Hero Anga )
    • रोग खेदना (Rog Khedna)
    • कदलेटा (Kadleta)
    • मागे /माघे पर्व
    • बहुरा (Bahura)
    • फगुआ (Fagua)
    • टुसू पर्व (Tusu Festival)
    • सावनी पुजा (Savani Puja)
    • सूर्याही पुजा (Suryahi Festival)
    • भेलवा फारेक
    • जनी शिकार त्यौहार
    • देव उठान
    • शीतला अष्टमी
    • संताल समुदाय के पर्व-त्यौहार
    • उरांव समुदाय द्वारा मनाया जाने वाला विशेष पर्व
    • मुंडा समुदाय द्वारा मनाया जाने वाला विशेष पर्व
    • माल पहाड़िया समुदाय द्वारा मनाया जाने वाला विशेष पर्व
    • सौरिया पहाड़िया समुदाय द्वारा मनाया जाने वाला पर्व
    • खड़िया समुदाय द्वारा मनाया जाने वाला  पर्व
      • 6. बन्दई उत्सव
    • पर्व त्यौहार से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य
    • 15. महाशिवरात्रि

सरहुल (Sarhul) 

Sarhul is one of the most popular Festivals Of Jharkhand. यह त्यौहार मुंडा समुदाय का बसंतोत्सव है जो चैत महीने के शुक्ल पक्ष के तृतीया को मनाया जाता है। यह त्यौहार प्रकृति से सम्बन्धित है। इस पर्व में साल वृक्ष की पूजा होती है। साल वृक्ष में ही बोंगा (देवता) का निवास स्थान माना जाता है। यह पर्व चार दिन का होता है:-

पहला दिन – मछली से अभिषक्त जल का घर-आँगन में छिड़काव किया जाता है।

दूसरा दिन –दूसरा दिन उपवास का होता है। पाहन साल के नव-पल्लव को एक सूप में रखकर गांव के हर घर के दरवाजे पर रखता है।

तीसरा दिन – सरई फुल (साल का फूल) को सरना स्थल(पूजा स्थल) में रखा जाता है और देवी देवताओं की पूजा की जाती है जिसमे मुर्गे की बलि भी शामिल है। चावल और बलि दी गई मुर्गे के मांस से खिचड़ी बनाई जाती है जिसे सुडी कहा जाता है। सुडी को प्रसाद के रूप में सबको वितरित किया जाता है। रात को अखड़ा (नृत्य स्थल) में नृत्य किया जाता है।

चौथा दिन – चौथे दिन सरई फुल का विसर्जन किया जाता है। इस विसर्जन स्थल को गिडिवा कहा जाता है।

सोहराई (Sohrai)

यह पशुओं के प्रति श्रद्धा अर्पण का त्यौहार है। यह त्यौहार कार्तिक अमावस्या को मनाया जाता है। यह पाँच दिन का त्यौहार है। इस पर्व में ग्राम देवता जाहेर एरा की पूजा की जाती है

a). गोट टांडी – सोहराय के पहले दिन को गोट टांडी कहा जाता है। इस दिन युवक -युवतियाँ समूह बनाकर गांव के प्रत्येक घर में जातें है और पशुओं की सेवा करते है। समूह द्वारा जाहेर एरा का आह्वान किया जाता है।

b) गोहाल पूजा- सोहराय के दूसरे दिन को गोहाल पूजा कहते है। इस दिन गौशाला को साफ सुथरा किया जाता है। गोशाला के दीवारों में अल्पना बनाया जाता है। गाय और अन्य पशुओं को नहलाया जाता है। जानवरों के शरीर को रंगा जाता है। सिंगो में तेल सिन्दूर लगाया जाता है,गले में फूलों की माला पहनाई जाती है।

c) संटाऊ – सोहराय का तीसरा दिन संटाऊ कहलाता है। इस दिन पशुओं को धान की बाली और मालाओं से सजाकर खूंटे में बांधते है।

d) जाले – सोहराय के चौथे दिन को जाले कहा जाता है। इस दिन युवक युवतियाँ घर घर जाकर चावल,नमक, मसाले इत्यादि जमा करती है।

e) सहभोज –पांचवां दिन सहभोज का दिन होता है। जाले के दिन जमा किए गए सामग्रियों से खिचड़ी बनाई जाती है और सारे लोग मिलकर खाना खाते है।

Note:-सोहराय पर्व को ही बंदना पर्व कहा जाता है।

करमा  (Karma)

यह पर्व भादो महीना के शुक्ल पक्ष के एकादशी को होता है। इस त्यौहार का मुख्य संदेश है “कर्म की जीवन में प्रधानता” को दर्शाना। पाहन द्वारा दो भाई कर्मा और धर्मा की कहानी सुनाई जाती है।यह त्यौहार आदिवासी और सदान दोनों मनाते है लेकिन मनाने की विधि में थोड़ा सा फर्क होता है। इस त्यौहार में करम वृक्ष की डाली की पूजा की जाती है। इस त्यौहार में “जवा उगाना” नाम की एक खूबसूरत परंपरा है।

जावा

इसमें कुंवारी लड़कियो द्वारा 7 किस्म के अनाजो को एक बालू भरी टोकरी में उगाया जाता है। टोकरी के बीच में करम वृक्ष की डाली को गाड़ा जाता है। इस टोकरी के चारो और लड़कियों द्वारा नृत्य किया जाता है। जवा को प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है। इस करम डाली को अगले दिन सूर्यास्त से पहले पास के नदी या तालाब में विसर्जित किया जाता है।

मुंडा समुदाय में करमा पर्व के दो प्रकार होते है राज करमा और देश करमा। राज करमा पारिवारिक पूजा है जो आंगन में किया जाता। देश करमा गांव की पूजा है जो अखरा में होता है। इस त्यौहार में मुंडा लोग करम गुसाई की उपासना करते है।

उरांव जनजाति में यह त्यौहार 7 दिनो तक मनाया जाता है।

Note:-कुंवारी लड़कियो द्वारा जवा संतान प्राप्ति और अच्छी गृहस्थी के लिए मनाया जाता है। जवा में जो 7 तरह के अनाज अंकुरित किया जाता है वो है जौ, गेंहू, मकई, उड़द, कुल्थी, चना और मटर।

नवाखानी (Navakhani)

यह झारखंड में बहुप्रचलित त्यौहार है। यह करमा त्यौहार के बाद भादो महिने में मनाया जाता है। यह आदिवासी और सदान दोनों मनाते है। जब खेत में फसल पक जाता है उस समय नए अन्न को देवी -देवता को अर्पित किया जाता है। इस त्यौहार में दही चूड़ा खाने की परंपरा है। इस त्यौहार को अलग अलग समुदाय अलग अलग नाम से जानते है जैसे की:-

a) सदान – नवान्न

b) बैगा /खोंड- नवानंद

c) खड़िया – जेवोडेम

d) हो – जोमनामा

e) मुंडा – जोमनवा

f) बिरहोर – नवाजोम

h) नुआ खिया – भूमिज

मंडा पर्व (Manda Festival)

यह पर्व अक्षय तृतीया से मनाया जाता है मतलब बैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया को आरंभ होता है। यह दो दिन तक चलने वाला पर्व है। यह आदिवासी और सदान दोनों में प्रचलित हैं। यह पर्व भगवान शिव को समर्पित है। इस पर्व में पुरुष व्रती को ‘भोगता ‘और महिला व्रती को ‘सोखताईन’ कहा जाता है। इस त्यौहार के पहले दिन के रात को ‘जागरण’ कहा जाता है। जागरण की रात में भगताओं को धूप -धुवान की अग्निशिखा के ऊपर उल्टा झुलाया जाता है जिसे ‘धुंआसी’ कहा जाता है। फिर ‘फुलखुंदी’ होती है जिसने जलते अंगारों पर चलना होता है। दूसरे दिन भागता लोग चड़क डांग (पूजा स्थल) में झूमते है। जब तक वह झूमता रहता है तब तक उसकी माँ या बहन (सोखताईन) शिव की आराधना करती रहती है।

धानबुनी (Dhanbuni)

यह पर्व धान बुआई के शुभारंभ के रूप में मनाया जाता है।यह पर्व मंडा पर्व के दिन ही मनाया जाता है। इस दिन किसान नया वस्त्र पहनकर खेत जोतते है और बांस की टोकरी में धान लेकर जूते हुए खेत में बोते है। यह पर्व आदिवासी और सदान दोनों में समान रूप से पाया जाता है।

चांडी पर्व (Chandi Festival)

यह पर्व माघ पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस पर्व में महिलाएं भाग नहीं लेते। पुरुष ही चांडी स्थल में चांडी देवी की पूजा करते हैं। इस पर्व में वो पुरुष भी भाग नहीं लेते जिसके घर में कोई महिला गर्भवती होती है। यह त्यौहार उरांव समुदाय में मनाया जाता है। इस त्यौहार में एक लाल मुर्गा और एक सफेद बकरा को बलि के रूप में चढ़ाया जाता है।

Note;-यह पर्व उरांव समुदाय में सबसे ज्यादा प्रचलित है।

बौरा बौलोंजी (Boura Bolongi)

यह पर्व चैत महीने के अंत में मनाया जाता है। इस पर्व में पूरे गांव की सफाई होती है। प्रत्येक घर से टूटे बर्तन, झाड़ू, हल, समान को गांव से बाहर ले जाकर किसी जगह पे फेंक दिया जाता है। इस त्यौहार में लोग चावल, दाल वगैरह लाने के लिए गांव से बाहर जाते है। दिन भर बाहर रहते है और रात को गांव के बाहर खाना बनाते है। अगले दिन खेत में गोंदली और बैरा धान के बीज खेत में बोते है।

हेरो-अंगा (Hero Anga )

यह पर्व बौरा बौलोंजी पर्व के एक महीने बाद मनाई जाती है। इस पर्व में ग्राम देवता की पूजा की जाती है और बकरे की बलि दी जाती है। फसल को बर्बाद होने से बचाने के लिए यह पर्व मनाया जाता है। इस पर्व में यह आवश्यक है की गांव के सभी लोग एकत्र होकर ग्राम देवता को धन्यवाद दें और आशीर्वाद प्राप्त करें।

रोग खेदना (Rog Khedna)

यह पर्व गांव को रोग से बचाने के लिए किया जाता है। इस पर्व में गांव के प्रत्येक परिवार घर की सफाई करके लिपाई पुताई करते है और लुढ़ा और तावा (वो सामग्री जिससे लिपाई पुताई की गई है) को अखरा में जमा करते है। पाहन की पत्नी के नेतृत्व में गांव के महिला सामूहिक रूप से इसे गांव के बाहर फेंक आती है।

कदलेटा (Kadleta)

यह पर्व करमा पर्व से पहले भादो महिने में मनाया जाता है। इस पर्व का उद्देश्य गांव को मेढ़की भूत के प्रकोप से बचाना और फसल को रोगमुक्त बनाए रखना। इस त्यौहार में अखरा में भेलवा, केंदू और साल की डालियां रखकर पूजा की जाती है। पाहन गांव के हर घर में जाता है और चावल इकट्ठा करता है और अखरा में मुर्गे की बलि दी जाती है। खिचड़ी बनाई जाती है जो बाद में प्रसाद के रूप में सबको वितरित की जाती है। पूजा के बाद लोग डाली को लेकर अपने अपने खेत में गाड़ देते हैं जिसकी मान्यता है की इससे फसल रोगमुक्त रहते है।

मागे /माघे पर्व

Maage /Maghe Festival

यह पर्व माघ महीने में मनाया जाता है। यह पर्व धांगरों के विदाई का पर्व है। कृषक मजदूर को धांगर कहा जाता है जो मेहनताना लेकर अपने कृषक मालिक के यहां काम करते है। माघ महीने में जब कृषि के सारे कार्य खत्म हो जाते है तब धांगर को रोटी-पीठा खिलाकर तयशुदा रकम देकर विदा किया जाता है। इस दिन को पुराना कृषि वर्ष का अंत तथा नए कृषि वर्ष का आरंभ माना जाता है।

बहुरा (Bahura)

यह पर्व भादो महीन के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। यह पर्व खेती के लिए अच्छी बारिश और संतान प्राप्ति के लिए मनाया जाता है।इस त्यौहार को “राइज बहरलक” के नाम से भी जाना जाता है।

फगुआ (Fagua)

यह त्यौहार होली या फाग के समतुल्य है। फगुआ फाल्गुन पूर्णिमा में मनाई जाती है। इस त्यौहार में क्षेत्रीय और सामुदायिक विविधता देखने को मिला है। कहीं यह रंग और गुलाल से खेला जाता कही शुद्ध जल से। आदिवासी समुदाय में मुर्गे की बलि और हड़िया का तपान चढ़ाने की परंपरा है वही सदनों में बलि की परंपरा नहीं है। मुंडा और उरांव समुदाय इसे फागू पर्व के रूप में मनाते है वही संताल समुदाय इसे बाहा पर्व के रूप में मनाते है।

टुसू पर्व (Tusu Festival)

यह त्यौहार पुस महीने में मकर संक्रांति के दिन मनाया जाता है। टुसु का शाब्दिक अर्थ ‘कुँवारी” होता है। टुसू पर्व सूर्य देव को समर्पित है। यह पर्व झारखंड के हर समुदाय के सदान और आदिवासी दोनो मनाते है मगर सबसे ज्यादा प्रचलित कुर्मी समुदाय में है। यह त्यौहार कोल्हान प्रमंडल, राँची के पूर्वी क्षेत्र और हजारीबाग के दक्षिणी क्षेत्र में काफी प्रचलित है,मगर पंचपरगना में सबसे ज्यादा उत्साह से मनाया जाता है और यहां टुसू मेला का भी आयोजन किया जाता है।

टुसू पर्व के पीछे एक कहानी है। टुसू एक कुर्मी समुदाय एक सुंदर कन्या थी और उसपर राज्य के राजा की नजर थी उसे पाने के लिए राजा षड्यंत्र रचता रहा। जब भीषण अकाल पड़ा तो राजा ने लगान दोगुनी कर दिया। लगान माफी के बदले में राजा ने टुसू को सौंपने का शर्त रख दिया।

टुसू नदी में कूदकर अपना जान दे देती है। इस टुसू कन्या के सम्मान में टुसू पर्व आयोजित होता है। टुसू एक कुंवारी कन्या थी इसलिए इस पर्व में कुंवारी कन्या का भागीदारी सबसे ज्यादा होती हैं। इस पर्व में टुसू की प्रतिमा बनाई जाती हैं और उसका विसर्जन किया जाता है।

टुसु पर्व में कृषि-वर्ष के समापन और कृषि-वर्ष के शुरुआत दोनो उत्सव को मनाया जाता है। बाउड़ी के रूप में (मकर संक्रांति के दिन) कृषि-वर्ष का समापन और ” आखाइन जातरा (मकर संक्रांति के बाद का दिन)” के दिन कृषि-वर्ष की शुभारंभ मनाया जाता है।

Note:-पंचपरगना क्षेत्र राँची के 5 क्षेत्र को मिलाकर कहा जाता है राहे, बुंडू, तमाड़, सोनेहातु और सिल्ली।

आषाढ़ी पुजा(Ashadi Puja)

यह पर्व आदिवासी तथा सदान दोनों में प्रचलित है। यह पर्व आषाढ़ महीने में चेचक से मुक्ति के लिए मनाया जाता है। इस पर्व में काली पाठी (बकरी) की बलि दी जाती है और हड़िया का तपान चढ़ाया जाता है।

सावनी पुजा (Savani Puja)

यह पर्व सावन महीने के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को मनाया जाता है। इसमें बकरे की बलि के साथ हड़िया का तपान चढ़ाया जाता है।

सूर्याही पुजा (Suryahi Festival)

यह पुजा अगहन महीने में मनाया जाता है। इस पुजा में सफेद बकरे की बलि दी जाती है।

रोहिणी पर्व (Rohini Parv)

यह बीज बोने का त्यौहार है। झारखंड कैलेंडर में यह सबसे पहला त्यौहार है।

भगता पर्व/Bhagta Festival

यह त्यौहार त्यौहार बसंत और ग्रीष्म के बीच में मनाई जाती है। इस त्यौहार में बूढ़ा देव की पूजा की जाती है।यह एक जनजातीय त्यौहार है। यह पर्व मुख्यतः तमाड़ क्षेत्र में मनाया जाता है। इस पर्व में पाहन नदी या तालाब में नहाने के बाद मानव शृंखला के ऊपर पैर रखकर पुजा स्थान में आता है। इस पर्व में दिन भर व्यायाम और खेल चलता है रात को छऊ नृत्य किया जाता है।

चाँद बारेक/Chand Barek 

इस त्यौहार में घर की बड़ी-बूढ़ी महिलाएं 2 दिन तक चाँद नही देखती है। यह त्यौहार भादो के कृष्ण पक्ष में मनाया जाता है।

भेलवा फारेक

Bhelva Farek

इस त्यौहार को “भाख काटेक” भी कहा जाता है। कदलेटा त्यौहार के दो-तीन दिन बाद ये पर्व मनाया जाता है। इसमें पाहन गांव में हर खलिहान या आंगन में जाकर भैलवा के टहनी के साथ पूजा करता है। यह खलिहान तैयार करने का पर्व है।

भाई भीख त्यौहार

Bhai Bhikh Festival

झारखंड में प्रचलित यह त्यौहार 12 वर्ष में एक बार मनाई जाती है।इस त्यौहार में बहन अपने भाई के घर में भिक्षा मांगने जाती है। भाई अपने बहन को सुहाग का सामान,चावल और पैसा देती है। फिर भाई को बहन अपने घर बुलाती है और खाना खिलाती है।यह त्यौहार सदान और आदिवासी दोनो मनाते है।

देशाउली त्यौहार

Desauli Festival

यह त्यौहार 12 वर्ष में मनाया जाता है। इस त्यौहार में बड़ पहाड़ी या मरांग बूरु की पुजा की जाती है। इस पर्व में काड़ा (भैंसा) की बलि दी जाती है और इस भैंसा को जमीन में गाड़ दिया जाता है।

जनी शिकार त्यौहार

Jani Shikar Festival

यह त्यौहार उरांव समुदाय में सर्वाधिक प्रचलित है। यह त्यौहार 12 वर्ष में एक बार मनाई जाने वाला महिलाओं का एक सामूहिक त्यौहार है। इस त्यौहार में महिलाएं पुरुष का वेशभूषा बनाके आस पास के जंगल पहाड़ों में शिकार करने निकलती है और शिकार से प्राप्त जानवर और वनोत्पाद से रात को अखरा में भोजन पकाती है,नृत्य-गान करती है।

जनी शिकार के पीछे का इतिहास यह है की जब रोहतासगढ में मुगलों का आक्रमण होता है उस समय उत्सव के कारण पुरुषवर्ग हड़िया पी के सोए रहते है। तब दो उरांव वीरांगना सिनई दई और कइली दई नेतृत्व संभालती है और सारे स्त्रियां पुरुषो के भेष में आकर मुगल सेना को भगा देती है। उन महिलाओं के सम्मान में ये पर्व मनाया जाता है।

हल पुन्हा त्यौहार

Hal Punha Festival

झारखंड में माघ महिने के प्रथम दिन को हल पुन्हा त्यौहार मनाया जाता है। इस दिन जुताई की शुरुआत की जाती है खेत में हल को ढाई चक्कर घुमाया जाता है।

देव उठान

Dev Uthan

यह पर्व झारखंड में सदान समुदाय का पर्व है। यह कार्तिक चतुर्दशी को मनाया जाने वाला पर्व है। सनातन धर्म का विश्वास है की आषाढ़ मास केे नवमी को सारे देवतागण शयन करने चले जाते है और कार्तिक मास की चतुर्दशी तक सोए रहते है। इस बीच कोई नवीन कार्य करने की प्रथा नही है। देवो को जगाने के लिए कार्तिक चतुर्दशी को देव उठान मनाया जाता है। देव उठान संपन्न होने के बाद विवाह संबंधी कार्य आरंभ किया जाता है। इस दिन घर को पूरी तरह से साफ किया जाता है। एक चौकी की पूजा की जाती है। चौकी को 5 बार उठाकर देवता को जगाया जाता है।

कुटी दहन पुजा

Kuti Dahan Festival

यह पूजा बच्चों को बीमारी से और आकाशीय बिजली से बचाने के कामना से की जाती है। इसमें सभी लोग एक झोपड़ी बनाते है और इसके आगे सेमल और रेंड की टहनियां गाड़ देते है। उसके बाद पुजारी आकार यहां पूजा करते है।सफेद मुर्गे की बलि दी जाती है। अंत में पुजारी झोपड़ियों में आग लगा देते है। सभी लोगो को उस आग से गुजरना पढ़ता है। लोग सेमल और रेंड की टहनियों के छोटे छोटे टुकड़े काटकर अपने घर ले जाते है और अपने चौखट में लगाते है।

शीतला अष्टमी

Shitla Ashtami

यह पर्व चैत्र महिने के कृष्ण पक्ष के अष्टमी को शीतला माता के सम्मान में स्त्रियों के द्वारा मनाया जाता है। इस पर्व को चेचक की बीमारी से बचने के लिए मनाया जाता है।

Note:-आषाढ़ी पूजा भी चेचक के प्रकोप से बचने के लिए किया जाता है।

तीज पर्व

Tij Festival

यह त्यौहार सावन महीने में शुक्ल पक्ष की तृतीया को यह पर्व मनाया जाता है। इस पर्व में विवाहित स्त्रियों द्वारा अपने पति की सलामती के लिए भगवान शिव की पूजा की जाती है।

जितिया पर्व

Jitia Festival

यह पर्व आश्विन महीने में मनाया जाता है। इस पर्व में जीमूतवाहन की पूजा की जाती है। इस पर्व में पुत्रवती माताएं अपने पुत्र की सलामती के लिए उपवास रखती है।

संताल समुदाय के पर्व-त्यौहार

1. बा-पर्व –ये संताल समुदाय का बसंतोत्सव है। यह चैत महीना के शुक्ल पक्ष के तृतीया को मनाया जाता है।

Note :-यह मुंडा के सरहुल,उरांव के खद्दी और खड़िया के जोकोर के समतुल्य है। ये सारे चैत महीना के शुक्ल पक्ष के तृतीया को मनाया जाता है।

2. एरोक पर्व –ये संताल समुदाय द्वारा आषाढ महीने में बीज बोने के समय मनाया जाता है।

3. हरियाड पर्व – ये संताल समुदाय द्वारा सावन महीने में फसल की हरियाली और अच्छी उपज के लिए मनाया जाता है।

4. सोहराय पर्व –ये संताल समुदाय द्वारा कार्तिक अमावस्या में पशुओं को सम्मान देने के लिए मनाया जाता है।

5. साकरात पर्व –ये संताल समुदाय द्वारा पुस महीने में घर की कुशलता कुशलता के लिए मनाया जाता है।

6. भागसीम पर्व – ये संताल समुदाय द्वारा माघ महीने में गांव के ओहदेदार को अगले साल के लिए ओहदे की स्वीकृति देने के लिए मनाया जाता है।

7. बाहा पर्व – यह संताल समुदाय का होली के समतुल्य त्यौहार है इसमें वो शुद्ध जल एक दूसरे के ऊपर छिड़कते है।

उरांव समुदाय द्वारा मनाया जाने वाला विशेष पर्व

Festivals Of Oranv Community

1. खद्दी पर्व –यह उरांव समुदाय का बसंतोत्सव है। यह चैत्र महिने के शुक्ल पक्ष के तृतीया को मनाया जाता है।

2. जतरा पर्व – इस पर्व में उरांव समुदाय अपने सर्वोच्च देवता धर्मेश (सूर्य) की पूजा करता है।

3. करमा पर्व – यह पर्व उरांव समुदाय भादो महीने के शुक्ल एकादशी को मनाता है।यह पर्व करम गोसाईं को समर्पित है।

4. सोहराय पर्व –यह कार्तिक अमावस्या में पाशुओ के सम्मान में मनाया जाने वाला पर्व है।

5. माघे पर्व-यह पर्व माघ महीने में उरांव समुदाय मनाते है।

6. फागू पर्व – यह होली के समतुल्य फाल्गुन में मनाया जाने वाला पर्व है।

7*. सेंदरा उत्सव – उरावों में इस उत्सव का विशेष महत्व है। सेंदरा का कुडुख भाषा में शाब्दिक अर्थ है शिकार। उरांव महिलाओ द्वारा किए जाने वाले शिकार उत्सव को मुक्का सेंदरा भी कहा जाता है। सेंदरा के विभिन्न प्रकार पाए जाते है। विशु सेंदरा बैशाख महीने मेंं। फग्गू सेंदरा फाल्गुन महीने में होती है। छछडा बेचना भी एक तरह का सेंदरा है। इस सेंदरा में शिकरा पक्षी की मदद से शिकार किया जाता है।

मुंडा समुदाय द्वारा मनाया जाने वाला विशेष पर्व

Festivals Of Munda Community

1. सरहुल पर्व –यह मुंडाओं का वसंतोत्सव है।

2. करमा पर्व –जीवन में कर्म की प्रधानता को दर्शाने के लिए यह पर्व मुंडाओं द्वारा मनाया जाता है।

3. सोहराय पर्व –यह पशु के सम्मान में किया जाता है।

4. बूरू पर्व –यह पर्व वन्य जीवों और मानव जाति के बीच तालमेल स्थापित करने के लिए तथा समाज को प्राकृतिक प्रकोप से बचाने के लिए मनाया जाता है।

5. फागू पर्व – मुंडा समुदाय में यह होली का समरूप है।

6. जोमनवा –यह मुंडा का नवाखानी त्यौहार है।

7. रोआ पुना –यह त्यौहार धान रोपनी के समय मुंडाओं द्वारा मनाया जाता है।

8. बतौली –खेत जुताई के समय मुंडा लोग यह त्यौहार मनाते है। इसे छोटी सरहुल भी कहते है।

माल पहाड़िया समुदाय द्वारा मनाया जाने वाला विशेष पर्व

Festivals Of Mal Pahadia Community

1.बीचे आडिया –यह त्यौहार कुरुआ(स्थांतरित कृषि) खेती में बीज बोने के उपलक्ष्य पर जेठ महीने में मनाया जाता।

2.पुनु आडिया –यह त्यौहार बाजरा फसल कटने के उपलक्ष्य पर पूस महीने में मनाया जाता।

3. ओसरो आडिया –यह त्यौहार घांघरा फसल कटने के उपलक्ष्य पर कार्तिक महीने में मनाया जाता।

4. गांगी आडिया –यह त्यौहार मक्के फसल कटने के उपलक्ष्य पर भादो महीने में मनाया जाता।

5. माघी पुजा –यह माघ महीने में की जाने वाली सामूहिक पूजा है जिसमे सारे गांव मिलकर ये पूजा करते है। माल पहाड़िया की सबसे महत्वपूर्ण पूजा माघी पूजा है। इस पूजा में बलि देने का प्रावधान है।

सौरिया पहाड़िया समुदाय द्वारा मनाया जाने वाला पर्व

Festivals Of Souria Pahadia Community

1.बीचे आडिया –यह त्यौहार कुरुआ(स्थांतरित कृषि) खेती में बीज बोने के उपलक्ष्य पर जेठ महीने में मनाया जाता।

2.पुनु आडिया –यह त्यौहार बाजरा फसल कटने के उपलक्ष्य पर पूस महीने में मनाया जाता।

3. ओसरो आडिया – यह त्यौहार घांघरा फसल कटने के उपलक्ष्य पर कार्तिक महीने में मनाया जाता।

4. गांगी आडिया –यह त्यौहार मक्के फसल कटने के उपलक्ष्य पर भादो महीने में मनाया जाता।

5. सलयानी पुजा – यह पूजा प्रत्येक वर्ष माघ या चैत में होती है। इस पर्व में कोतवार द्वारा कांदे गोसाईं को एक बकरे,एक सुअर और एक मुर्गे की बलि दी जाती है। यह पूजा पूर्वजों को समर्पित होता है।

कर्रा पूजा – यह पूजा प्रत्येक 6 वर्ष बाद होती है। इस पूजा में कांदे गोसाईं को भैसा की बलि दी जाती है।

Note:-मांझी, कोतवार और चालवे सौरीया पहाड़िया समुदाय के धार्मिक कृत्यों का निर्वहन करती है।

खड़िया समुदाय द्वारा मनाया जाने वाला  पर्व

Festivals Of Kharia Community

1. पाटो सरना –यह खड़िया समाज का एक महत्वपूर्ण त्यौहार है। यह बैशाख महीने में मनाया जाता है।इसमें बलि की प्रथा है। और इस त्यौहार में दूध उबालने की प्रथा है, उबलता हुआ दूध जिस तरफ गिरता है उस तरफ से बारिश होने की भविष्यवाणी कालो (प्रधान पुजारी) द्वारा की जाती है।

2. जोओडेम त्यौहार –यह खड़िया समुदाय की नवाखानी त्यौहार है। खड़िया में दो नवाखानी मनाया जाता है एक गोंदली फसल पे और एक गौड़ा फसल पर गुडलू जोओडेम (गोंदली नवाखानी) और गोडअ जोओडेम (गोड़ा नवाखानी)

3. दिमतअ त्यौहार –यह खड़िया समुदाय का गौशाला पूजा है।

4. भदंडा पूजा – यह पुजा पहाड़ की पूजा है। इसे बड़ पहाड़ी पूजा भी कहा जाता है।

5. जोकोर त्यौहार –यह खड़िया समुदाय का वसंतोत्सव है।

6. बन्दई उत्सव

यह त्यौहार पशुओं के सम्मान में मनाया जाता है। यह उत्सव खड़िया समुदाय द्वारा कार्तिक पूर्णिमा को मनाया जाता है। वास्तव में यह पर्व जिस दिन से कार्तिक का चांद दिखाई देता उस दिन से ही शुरू हो जाता है। जिस दिन चांद दिखाई देता है,पशु के चर के आने के बाद पशुओं के पैर को “तपन गोलङ” से धोते है। तपन गोलङ का अर्थ होता है पूजा के लिए बनाई गई हड़िया।

गोबर से लीपे हुए जगह पे सूअर को अरवा चावल चराया जाता है। किस समय सुअर चावल चरता है, घर का स्वामी हाथ उठाकर “गौरेया डुबोओ” से निवेदन करता है की उसके पशुओं की हिफाजत करना। इसके बाद भैंस के शरीर में घी या कुजरी का तेल लगाया जाता है जिसे “भैंस” चूमान कहते है। भैंस चूमान तीन वर्ष में एक बार होता है। और जिस दिन पूर्णिमा होती है उस दिन गाय -बैल की पूजा होती है।

7. बिइना त्यौहार –इस त्यौहार को बाऊ बिडबिड भी कहा जाता है। यह बीज बोते समय मनाया जाने वाला उत्सव है।

8. सरना पुजा –यह खड़िया समाज की पुजा है। इसमें सरना स्थल में 5 मुर्गे की बलि दी जाती है। तीन घड़े को उलटकर रख दिए जाते है। फुल के साथ भात और मांस के एक टुकड़े को चढ़ाते है।

9. रोनोल पर्व – यह खड़िया समुदाय का फसल रोपनी पर्व है।

पर्व त्यौहार से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य

1. झारखंड में प्रचलित छठ पर्व वर्ष में दो बार मनाई जाती मार्च और नवंबर में। छठ पूजा सूर्य देव को समर्पित है।

2. झारखंड का रोहिणी उत्सव बीज बोने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है।

3. सवा लाख देवी देवताओं की पुजा कोरा समुदाय करता है।

4. कुटसी पर्व असुर समुदाय द्वारा लोहा गलाने के व्यवसाय की उन्नति के लिए मनाया जाता है।

5. खूँट पूजा कवर समुदाय की सर्वप्रमुख पूजा है।

6. रामनवमी चैत्र महिने के शुक्ल पक्ष के अष्टमी को भगवान राम के जन्म दिवस के उपलक्ष्य में मनाया जाता है।

7. हनुमान जयंतीचैत महीने के पूर्णिमा में हनुमानजी के जन्म दिवस पर मनाया जाता है।

8. नाग पंचमी –सावन महीने के शुक्ल पक्ष के पंचमी को यह पर्व नाग सांप से रक्षा के लिए मनाया जाता है।

9.रक्षा बंधन – यह सावन महीने के पूर्णिमा को भाई बहन का पवित्र त्यौहार है।

10. कृष्ण जन्माष्टमी –भादो महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को श्रीकृष्ण का जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है।

11. दुर्गा पूजा –आश्विन महीने के शुक्ल पक्ष के प्रथम 9 दिन माता दुर्गा की पूजा की जाती है।

12. विजयादशमी –आश्विन महीने के शुक्ल पक्ष के दशमी को भगवान राम के रावण के ऊपर जीत के उपलक्ष्य में यह त्यौहार मनाते है।

13. मकर संक्रान्ति –यह त्यौहार माघ महिने में सूर्य के धनु राशि से मकर राशि में जाने के उपलक्ष्य में मनाते है। यह 14 जनवरी को मनाया जाता।

14. वसंत पंचमी –माघ महिने के शुक्ल पक्ष के पंचमी को माता सरस्वती की आराधना की जाती है।

15. महाशिवरात्रि

 यह पर्व फाल्गुन महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को भगवान शिव और माता पार्वती के विवाहोत्सव के रूप में मनाया जाता है।

16. होली –फाल्गुन पूर्णिमा के दिन होलिका के ह के जलने और भक्त प्रह्लाद के बचने के उपलक्ष्य पर होली त्यौहार मनाया जाता है।

17. करमाली समुदाय टुसू पर्व को मीठा पर्व या बड़का पर्व कहते है।

18. उतूर पूजा माहली समुदाय द्वारा सिल्ली क्षेत्र में की जाती है।

19. माहली समुदाय अपने पूर्वजों को सम्मान देने के लिए “गोडाम साकी” त्यौहार मनाते है।

20. “मुआ पुजा” परहिया जनजाति अपने पूर्वजों को सम्मान देने के लिए करते है।

21. धान रोपनी के समय हो समुदाय दमुराई त्यौहार मनाते है।

22. बैगा जनजाति प्रत्येक 9 वर्ष में रस-नावा त्यौहार मनाते है।

23. चरेता पर्व को बैगा नव वर्ष के रूप में मनाते है।

Festivals of Jharkhand Part -1

https://youtu.be/7MqFjcvXV_0

Festivals of Jharkhand Part -2

https://youtu.be/H-5iu-v5Azc

Festivals of Jharkhand Part-3

https://youtu.be/pkP7BKucOOY

Festivals of Jharkhand Part-4

https://youtu.be/gYOu4epCkEg

Festivals of Jharkhand Part-5

https://youtu.be/PWUpTHykf-A

Festivals of Jharkhand Part-6

https://youtu.be/yMxDTwBi9Yo

Festivals of Jharkhand Part-7

https://youtu.be/BjfbOw5OW0g

Festivals of Jharkhand Part-8

https://youtu.be/1FNhYSGDDvE

Festivals of Jharkhand Part-9

https://youtu.be/ApQDxdXEReQ

Festivals of Jharkhand Part-10

https://youtu.be/vMHZvZG5fKw

Festivals of Jharkhand Part-11 (Objective)

https://youtu.be/lhyLZiP3xVE

झारखंड में फूलों का त्यौहार कौन सा है?

सही उत्तर सरहुल है। सरहुल त्योहार 'फूलों के त्योहार' के रूप में जाना जाता है। यह झारखंड क्षेत्र के उरांव, मुंडा और हो जनजातियों द्वारा मनाया जाता है।

आदिवासियों का सबसे बड़ा त्यौहार कौन सा है?

यह आदिवासियों का सबसे बड़ा पर्व है ।.
यह पर्व कृषि कार्य शुरू करने से पहले मनाया जाता है।.
सरहुल पर्व चैत्र शुक्ल की तृतीया को मनाया जाता है।.
इसमें पाहन ( पुरोहित ) सरना ( सखुआ का कुंज ) की पूजा करता है।.
सरहुल फूल का विसर्जन स्थल गीडिदा कहलाता है ।.

आदिवासियों का प्रमुख त्यौहार कौन सा है?

सरहुल आदिवासियों का प्रमुख पर्व है। पतझड़ के बाद, जब पेड़ पौधे हरे-हरे होने लगते हैं, फूल वाले पौधों की डालियों पर कलियां निकलने लगती हैं। यानी जब पूरी धरती रंग-बिरंगी होकर उल्लास से नाच उठती है, तब त्यौहार मनाया जाना शुरू होता है और कई दिनों तक चलता है। चैत की तृतीया से शुरू होकर यह पर्व महीने भर चलता है

झारखंड राज्य के प्रमुख त्यौहार कौन कौन से हैं?

यहां सरहुल, फगुआ, करमा पूजा और चांडी पर्व से लेकर कई त्योहार होते हैं. जानते हैं झारखंड में मनाए जाने वाले प्रमुख पर्व-त्योहारों के बारे में. करमा पूजा- इसे आदिवासियों का खास पर्व माना जाता है. भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन करमा पर्व झारखंड में बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है.