लोकतंत्र में न्यायपालिका की क्या भूमिका है? - lokatantr mein nyaayapaalika kee kya bhoomika hai?

निबन्ध लिखिए -01

लोकतंत्र में न्यायपालिका की भूमिका / Role of Judiciary in Democracy

  • अब्राहम लिंकन ने लोकतंत्र को जनता के लिए, जनता द्वारा जनता का शासन कहा है। हेरोडोट्स का मत था कि लोकतंत्र बहुसंख्यकों का शासन है। अर्थात् लोकतांत्रिक व्यवस्था में जनता ही केन्द्रबिन्दु होती है। आधुनिक विश्व में प्रचलित शासन पद्धतियों में लोकतंत्र का महत्वपूर्ण स्थान है। लोकतंत्र वस्तुतः सरकार या शासन का स्वरूप ही नहीं है, अपितु राज्य का एक प्रकार और समाज की एक व्यवस्था भी है।
  • भारत में आजादी के बाद लोकतांत्रिक गणराज्य की अवधारणा को लागू किया गया और पूरे देश में व्यवस्था को विधायिका, न्यायपालिका एवं कार्यपालिका के रूप में तीन भागों में बांटा गया। इन तीनों अंगों का अपना-अपना कार्यक्षेत्र भी निर्धारित किया गया और यह तय किया गया कि कोई भी अंग किसी दूसरे के कार्यक्षेत्र और अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप नहीं करेगा।
  • विश्व के सबसे मजबूत लोकतंत्र का भारत का दावा इसी आधार पर है कि हमारे यहां तीनों अंगों ने अपनी-अपनी भूमिका का सक्रिय व उचित निर्वहन किया है। परंतु कभी-कभी यह देखने को मिलता है कि देश में संवैधानिक संकट की स्थिति हो जाती है जब एक अंग किसी दूसरे अंग के कार्यक्षेत्र व अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप करता है। कभी-कभी न्यायपालिका का बढ़ता वर्चस्व और न्यायपालिका की सक्रियता भी इन सबके बीच चर्चा का विषय रहती है।
  • न्यायिक सक्रियता सकारात्मक और नकारात्मक परिणाम देती है। कभी न्यायालयों की सक्रियता लोकतंत्र में नागरिक अधिकारों को स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है तो कभी यह किसी दूसरे अंग में हस्तक्षेप प्रतीत होते हुए संवैधानिक संकट की स्थिति भी पैदा करती है।
  • उल्लेखनीय है कि भारत में भारत सरकार अधिनियम 1935 के तहत संघीय न्यायालय की स्थापना अक्टूबर 1937 को की गई थी। भारत की स्वतंत्रता के पश्चात् उच्चतम न्यायालय का उद्घाटन 28 जनवरी, 1950 को किया गया। आमतौर पर समाज में एक व्यक्ति का दूसरे व्यक्ति से या व्यक्ति समूहों का आपस में अथवा व्यक्ति समूहों का सरकार के साथ निरन्तर कुछ कारणों से विवाद चलता रहता है।
  • इसी विवाद को निष्पक्ष रूप से सुलझाने के लिए न्यायपालिका की स्थापना की गई है जो इस प्रकार के विवादों की जांच कर दोषी को सजा देने का कार्य करती है और साथ ही साथ विधायिका द्वारा या संसद द्वारा बनाये नियमों की जांच एवं कार्यपालिका द्वारा किए गए कार्यों की जांच भी निष्पक्ष रूप से करती है और यह सुनिश्चित करती है कि लोकतंत्र की जगह, किसी एक व्यक्ति या समूह अथवा संस्था की तानाशाही न ले ले।
  • भारत की शासन व्यवस्था संघात्मक है अर्थात् शक्तियों का विभाजन संघ तथा राज्य सरकारों के मध्य हुआ है। भारत में न्यायपालिका एकीकृत है अर्थात् संघ और राज्यों के लिए अलग-अलग न्यायालय की व्यवस्था न होकर सम्पूर्ण देश के लिए एक ही सर्वोच्च न्यायालय की व्यवस्था की गई है और इसे व्यवस्थापिका तथा कार्यपालिका के साथ-साथ एक स्वतंत्र अंग के रूप में स्थापित किया गया है।
  • जब कार्यपालिका कानून के अनुसार कार्य करने में असक्षम हो जाती है तब लोकतांत्रिक व्यवस्था में लोक की नजर अदालतों पर पड़ती है और आम जन न्यायपालिका से न्याय की उम्मीद करता है तो ऐसी स्थिति में भी न्यायिक सक्रियता दिखाई देती है या यूं कहे कि जब शासन व्यवस्था लोक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा को स्थापित करने में असफल होती है तो एक शून्य उभरता है और इस शून्य को भरने का काम न्यायपालिका करती है। जब अधिकारी व नेता वर्ग अपनी-अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करने में कोताही बरतने लगते हैं तो लोगों की उम्मीद न्यायपालिका से हो जाती है जब देश में भ्रष्टाचार अपनी तमाम सीमाओं को लांघ देता है और विधायिका और कार्यपालिका भी इसको रोकने में नाकाम रहती है तब आमजन आशा भरी निगाह से न्यायपालिका की तरफ देखता है। ऐसी स्थिति में न्यायिक सक्रियता होती है।
  • न्यायपालिका की स्वतंत्रता का अर्थ है कि विधायिका और कार्यपालिका न्यायपालिका के कार्यों में हस्तक्षेप न करके उनके कार्यों में किसी प्रकार की बाधा न उत्पन्न करें ताकि वह अपना कार्य सुचारू रूप से करे और निष्पक्ष रूप से न्याय कर सके। स्वतंत्र न्यायपालिका ही नागरिकों की स्वतंत्रता और मौलिक अधिकारों की रक्षा कर सकती है।
  • भारतीय संविधान ने नागरिकों को 6 प्रकार के मौलिक अधिकार दिए हैं जिन पर यदि कोई प्रतिबंध लगाने का प्रयास करता है, तो न्यायपालिका उसे दण्डित करने का प्रावधान कर सकती है। लोकतंत्र के अनिवार्य तत्व स्वतंत्रता और समानता है। अतः नागरिकों को स्वतंत्रता और समानता के अवसर उसी समय प्राप्त हो सकेंगे जब न्यायपालिका निष्पक्षता के साथ अपने कार्यों का सम्पादन करेगी।
  • स्वतंत्र न्यायपालिका संविधान की रक्षक होती है, न्यायपालिका संविधान विरोधी – कानूनों को अवैध घोषित करके रद्द कर देती है। अतः संविधान के स्थायित्व एवं सुरक्षा के लिए स्वतंत्र न्यायपालिका का होना आवश्यक है। स्वतंत्र न्यायपालिका व्यवस्थापिका और कार्यपालिका पर नियंत्रण रखकर शासन की कार्यकुशलता में वृद्धि करती है।
  • उल्लेखनीय है कि राम जवाया बनाम पंजाब राज्य (1955) के मामले में न्यायालय ने कहा था कि “हमारा संविधान राज्य के एक अंग या हिस्से की धारणा पर विचार नहीं करता है, जो अनिवार्य रूप से एक-दूसरे से जुड़े हैं।” इसका तात्पर्य है कि संविधान में राज्य की तीनों अंगों के मध्य एक अंग को दूसरे अंग के क्षेत्र का अतिक्रमण नहीं करना चाहिए।
  • न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका के बीच समयसमय पर उठने वाले विवादों के बावजूद न्यायपालिका की साख बढ़ी है। किन्तु न्यायपालिका से कुछ और भी अपेक्षाएं हैं। आज आदमी को आश्चर्य होता है कि कितनी आसानी से अनेक दोषी लोग न्यायपालिका से बेदाग बरी हो जाते हैं और कैसे धनी और दबंगों के असर में गवाह अपने बयान से मुकर जाते हैं। ये कुछ ऐसे मुद्दे हैं, जिनके बारे में स्वयं न्यायपालिका भी चिंतित है।
  • भारत में न्यायपालिका बहुत शक्तिशाली संस्था है। इस शक्ति ने बड़े आश्चर्य और बहुत सी आशाओं को जन्म दिया है। भारतीय न्यायपालिका अपनी स्वतंत्रता के लिए भी जानी जाती है। अनेक निर्णयों के माध्यम से न्यायपालिका ने संविधान की नई व्याख्याएं दी हैं और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा की है। लोकतंत्र वास्तव में विधायिका और न्यायपालिका. के बीच एक अत्यंत संवेदनशील संतुलन की सीमाओं के अंदर ही रहकर कार्य करना है।

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लोकतंत्र में न्यायपालिका की भूमिका क्या है?

भूमिका भारत में लोकतंत्र और उदारवादी मूल्यों को मज़बूत करने में न्यायपालिका ने बेहद महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है: संविधान का रखवाला, ग़रीबों के अधिकार एवं सरकार की ज़्यादतियों के ख़िलाफ़ कमज़ोर समूहों का योग्य संरक्षक और करोड़ों नागरिकों के लिए आख़िरी उम्मीद वाला संस्थान.

न्यायपालिका का क्या महत्व है?

न्यायपालिका, संप्रभुतासम्पन्न राज्य की तरफ से कानून का सही अर्थ निकालती है एवं कानून के अनुसार न चलने वालों को दण्डित करती है। इस प्रकार न्यायपालिका विवादों को सुलझाने एवं अपराध कम करने का काम करती है जो अप्रत्यक्ष रूप से समाज के विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

लोकतंत्र में न्यायपालिका की स्वतंत्रता को क्या आवश्यक बनाता है?

लोकतंत्र का मतलब लोगों द्वारा अपने शासकों का चुनाव करना भर नहीं है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में शासकों को भी कुछ कायदे-कानूनों को मानना होता है।

लोकतंत्र में न्यायपालिका अनिवार्य क्यों होती है?

Solution. न्यायपालिका की स्वतंत्रता अदालतों को भारी ताकत देती है, क्योंकि स्वतंत्र न्यायपालिका ही | विधायिका और कार्यपालिका द्वारा शक्तियों के दुरुपयोग को रोक सकती है। स्वतंत्र न्यायपालिका ही नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा कर सकती है। यदि न्यायपालिका स्वतंत्र नहीं होगी तो नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन होगा।