लेखक को नवाब साहब के भाव परिवर्तन क्यों अच्छा नहीं लगा? - lekhak ko navaab saahab ke bhaav parivartan kyon achchha nahin laga?

Solution : लेखक को अनायास डिब्बे में आया देख नवाब साहब ने अपना हँह फेर लिया। ऐसा आभास हुआ कि लेखक के आने से उन्हें कोई बाधा पड़ गयी हो। लेखक को देखकर नवाब साहब खिड़की के बाहर देखने लगे। लेखक को ऐसा महसूस हुआ कि वे लेखक से बातचीत करने के लिए तनिक भी उत्सुक नहीं हैं

नवाब साहब ने बहुत ही यत्न से खीरा काटा, नमक-मिर्च बुरका, अंतत: सूँघकर ही खिड़की से बाहर फेंक दिया। उन्होंने ऐसा क्यों किया होगा? उनका ऐसा करना उनके कैसे स्वभाव को इंगित करता है?


नवाब साहब ने बहुत नजाकत और सलीके से खीरा काटा, उन पर नमक-मिर्च लगाया। उन नमक-मिर्च लगी खीरे की फाँकों को खाया नहीं अपितु सूँघकर खिड़की से बाहर फेंक दिया था। उनकी इस हरकत का यह कारण होगा कि वे एक नवाब थे, जो दूसरों के सामने खीरे जैसी आम खाद्‌य वस्तु खाने में शर्म भव करते थे। लेखक को अपने डिब्बे में देखकर नवाब को अपनी रईसी याद आने लगी। इसीलिए उन्होंने खीरे को मात्र सूँघकर ही खिड़की से बाहर फेंक दिया।

नवाब साहब के ऐसा करने से ऐसा लगता है कि वे दिखावे की जिंदगी जी रहे हैं। वे दिखावा पसंद इंसान थे। उनके इसी प्रकार के स्वभाव ने लेखक को देखकर खीरा खाना अपमान समझा।

गुड -शक्कर, मूँगफली, तिल, चाय, कॉफी आदि का प्रयोग किया जाता है। बरसात में कई लोग कढ़ी खाना अच्छा नहीं समझते। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार एकादशी को चावल नहीं खाने चाहिए।

मेरा मन कभी-कभी बैठ जाता है। समाचार पत्रों में ठगी, डकैती, चोरी और भ्रष्टाचार के समाचार भरे रहते हैं। ऐसा लगता है देश में कोई ईमानदार आदमी रह ही नहीं गया है। हर व्यक्ति संदेह की दृष्टि से देखा जा रहा है। इस समय सुखी यही है, जो कुछ है। जो कुछ नहीं करता, जो भी कुछ करेगा, उसमें लोग दोष खोजने लगेंगे उसके सारे गुण भुला दिये जाने और दोषों को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया जाने लगेगा दोष किसमे नहीं होते? यही कारण है कि हर आदमी दोषी अधिक दिख रहा है, गुणी कम या बिलकुल ही नहीं यह चिंता का विषय है। तिलक और गांधी के सपनों का भारतवर्ष क्या यही है? विवेकानंद और रामतीर्थ का आध्यात्मिक ऊँचाई वाला भारतवर्ष कहाँ है? रवींद्रनाथ ठाकुर और मदनमोहन मालवीय का महान, सुसंस्कृत और सभ्य भारतवर्ष पतन के किस गहन गर्त में जा गिरा है? आर्य और द्रविड़, हिंदू और मुसलमान, यूरोपीय और भारतीय आदतों की मिलनभूमि महामानव समुद्र क्या सूख हो गया है? यह सही है कि इन दिना कुछ ऐसा माहौल बना है कि ईमानदारी से मेहनत करके जीविका चलाने वाले निरीह जीवी घिरा रहे है और झूठ और फरेब का रोजगार करने वाले फल-फूल रहे हैं। ईमानदारी को मूर्खता का पर्याय समझा जाने लगा है, सचाई केवल मीर और देवस लोगों के हिस्से पड़ी है। ऐसी स्थिति में जीवन के मूल्यों के बारे में लोगों की आस्था ही हिलने लगी है, किंतु ऐसी दशा से हमारा उद्धार जीवन मूल्यों में आस्था रखने से ही होगा। ऐसी स्थिति में हताश हो जाना ठीक नहीं है। 1. मेरा मन कभी-कभी बैठ जाता है का आशय क्या है? 2. लेखक के द्वारा मन को बिठाना b. लेखक का मन बैठ जाना देश की दुर्दशा को देखकर लेखक का चिलित होना d. लेखक को घबराहट होना 2. इस समय सुखी कौन है? 3. जो कुछ भी नहीं करता है b. जो काम करता है c. जो चिंतन करता है। d. जो कुछ भी करता है 3. लेखक ने चिंता का विषय किसे माना है? 3. लोगों का गुणी अधिक और दोषी कम होना b. लोगों का गुणी कम और दोषी अधिक होना ८. लोगों का गुणी होना d. लोगों का दोषी होना 4. मूर्खता का पर्याय किसे समझा जाने लगा है? 4 गुणों को b. सत्यता को दोषों को d. ईमानदारी को 5. आज समाज में जीवन-मूल्यों की स्थिति क्या है? उनके बारे में लोगों की आस्था हिलने लगी है b. उनके बारे में लोगों की आस्था मजबूत हो गई है c. इनमें से कोई नहीं d. उनके बारे में लोगों ने सोचना बंद कर दिया है

इसे सुनेंरोकेंउत्तरः लेखक को डिब्बे में आया देखकर नवाब साहब ने असंतोष, संकोच तथा बेरुखी दिखाई, लेकिन थोड़ी देर बाद उन्हें अभिवादन कर खीरा खाने के लिए आमंत्रित किया। लेखक को उनका यही भाव परिवर्तन अच्छा न लगा, क्योकि अभिवादन सदा मिलते ही होता है। पहले अरुचि का प्रदर्शन और कुछ समय बाद अभिवादन, कोई औचित्य नहीं।

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लखनवी अंदाज़ पाठ के आधार पर बताइए कि क्या सनक का भी कोई साकारात्मक पहलू हो सकता है कैसे?

इसे सुनेंरोकेंखीरे के संबंध में नवाब साहब के व्यवहार को उनकी सनक कहा जा सकता है। आपने नवाबों की और भी सनकों और शौक के बारे में पढ़ा-सुना होगा। किसी एक के बारे में लिखिए। उत्तर- नवाबों की सनक और शौक यह रही है कि वे अपनी वस्तु, हैसियत आदि को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाते और बताते थे।

लेखक का डिब्बे में आना नवाब साहब को अच्छा नहीं लगा इस बात को लेखक ने कैसे महसूस किया?

इसे सुनेंरोकेंलेखक जब डिब्बे में आया तो उसका आना नवाब साहब को अच्छा न लगा। उन्होंने लेखक से मिलने और बात करने का उत्साह न दिखाया। पहले तो नवाब साहब खिड़की से बाहर कुछ देर तक देखते रहे और फिर डिब्बे की स्थिति पर निगाहें दौडाने लगे। उनका यह उपेक्षित व्यवहार लेखक को अच्छा न लगा।

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ट्रेन के डिब्बे में नवाब साहब ने लेखक की संगति के लिए उत्साह क्यों नहीं दिखाया?

इसे सुनेंरोकेंउत्तर:- लेखक के अचानक डिब्बे में कूद पड़ने से नवाब-साहब की आँखों में एकांत चिंतन में खलल पड़ जाने का असंतोष दिखाई दिया। ट्रेन में लेखक के साथ बात-चीत करने के लिए नवाब साहब ने कोई उत्साह नहीं प्रकट किया। लेखक से कोई बातचीत भी नहीं की और न ही उनकी तरफ देखा। इससे लेखक को स्वयं के प्रति नवाब साहब की उदासीनता का आभास हुआ।

लेखक नवाब साहब की ओर कैसे देख रहे थे?

इसे सुनेंरोकेंहम कनखियों से नवाब साहब की ओर देख रहे थे। नवाब साहब कुछ देर गाड़ी की खिड़की से बाहर देखकर स्थिति पर गौर करते रहे।

नवाब साहब खीरे को बाहर फेंककर क्यों लेट गए *?

इसे सुनेंरोकेंAnswer: नवाब साहब ने खीरे की फांकों को खिड़की से बाहर फेंक दिया क्योंकि वह अपने सहयात्री को अपनी नवाबी का उदाहरण दिखाना चाहते थे तथा खुद को एक शाही नवाब दिख लाना चाहते थे।

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सफ़ेदपोश सज्जन ने तौलिए पर कौन सी वस्तु रखी हुई थी 2 points?

इसे सुनेंरोकेंखीरे की पतली फाँकों को करीने से तौलिए पर सजाया। उसके बाद जीरा मिला नमक और मिर्च छिड़का। इसके बाद एक-एक करके उन फाँको को उठाते गए और उन्हें सूँघकर खिड़की से बाहर फेंकते गए। (क) एक सफ़ेदपोश सज्जन बहुत सुविधा से पालथी मारे बैठे थे।

लखनवी अंदाज़ पाठ के आधार पर बताइए कि मियाँ रईस बनते हैं कथन में कौन सा भाव निहित है?

इसे सुनेंरोकेंउनकी प्रत्येक भाव-भंगिमा और जबड़ों के स्फुरण से स्पष्ट था कि उस प्रक्रिया में उनका मुख खीरे के रसास्वादन की कल्पना से प्लावित हो रहा था। हम कनखियों से देखकर सोच रहे थे, मियाँ रईस बनते हैं, लेकिन लोगों की नजरों से बच सकने के खयाल में अपनी असलियत पर उतर आए हैं।

लेखक को नवाब साहब का क्या भाव परिवर्तन अच्छा नहीं लगा और क्यों?

उत्तरः लेखक को डिब्बे में आया देखकर नवाब साहब ने असंतोष, संकोच तथा बेरुखी दिखाई, लेकिन थोड़ी देर बाद उन्हें अभिवादन कर खीरा खाने के लिए आमंत्रित किया। लेखक को उनका यही भाव परिवर्तन अच्छालगा, क्योकि अभिवादन सदा मिलते ही होता है। पहले अरुचि का प्रदर्शन और कुछ समय बाद अभिवादन, कोई औचित्य नहीं

नवाब साहब की कौन सी बात लेखक को अच्छी नहीं लगी?

This is an Expert-Verified Answer. ➲ लेखक को नवाब साहब के उन हाव-भावों से महसूस हुआ कि वह उनसे बातचीत करने के लिए जरा भी उत्सुक नहीं हैं, जब लेखक ट्रेन में चढ़ा और नवाब पालथी मारे अपनी सीट पर बैठे थे। लेखक का आना उन्हें जरा भी अच्छा नही लगा। उन्हें लगा कि लेखक के आकर उनके एकांत में विघ्न डाल दिया हो।

लेखक ने नवाब साहब की तुलना किससे की है और क्यों?

लेखक ने नवाब साबब के खीरा खाने के अंदाज की तुलना नयी कहाने रचने से की है।

लेखक ने नवाब साहब के बारे में क्या कल्पना की?

लेखक को नबाब साहब के पेट से डकार का शब्द भी सुनाई दिया। यह सब देखकर लेखक सोचने लगा कि खीरे की सुगंध और स्वाद की कल्पना से आदमी का पेट भर सकता है तो बिना विचार ,घटना और पात्रों के नयी कहानी का लेखक मात्र अपनी इच्छा से कहानी क्यों नहीं लिख सकता है। लेखक ने नयी कहानी के लेखकों पर व्यंग किया है.