डुबकियाँ -पानी में थोड़ी देर के लिए डूबना (कूदना) Show
विशाल- बड़ा भाव-भंगी- विभिन्न स्वरूप बाल-लीला -बच्चों के मनभावन खेल उल्लास- खुशी कौतूहल- जिज्ञासा, जानने की इच्छा विस्मय- हैरानी निकेतन - घर ,रहने का स्थान विराट प्रेम- अत्यधिक प्यार अतृप्त- संतुष्ट न होना,असंतुष्ट बंधुर - गहरी, बंधी हुई अधित्यकाएँ - गुफाएँ सरसब्ज उपत्यकाएँ - हरी-भरी घाटियाँ सिर धुनना- पछताना मौन- चुपचाप प्रवाहित- बहना,बहती हुई श्रेय -अच्छा,क्रेडिट आकर्षक- अपनी ओर खींचने वाला लुभावना- मन को भाने वाला झिझक- शर्म प्रतिदान- लौटाना प्रेयसी -प्रेमिका ,प्यार करने वाली सचेतन- सजीव समतल- बराबर सतह का, एक जैसी सतह का लोकमाता- कल्याणकारी,जग का पालन करने वाली उचट - उदास अचरज- हैरानी में डाल देना मुदित-मोह लेना खुमारी-आलस्य नटी- नर्तकी पट- पर्दा अनुपम- जिसकी उपमा न दी जा सके अद्भुत- विचित्र himalaya ki betiyan पाठ का सार Himalay Ki Betiyan class 7इस पाठ में लेखक ने हिमालय से निकलने वाली नदियों के बारे में बताया है . हिमालय की चोटियों से निकलती हुई नदियाँ किस तरह अपने मनमोहक रूप परिवर्तित करती हैं और अंततः समंदर में जाकर मिल जाती हैं. इस पाठ में हिमालय को नदियों के पिता के रूप में प्रस्तुत किया गया है. वहीं नदियाँ हिमालय की बेटियों की भूमिका में हैं.हिमालय नदियों का पिता इसलिए है क्योंकि सभी नदियों का जन्म हिमालय पर जमी बर्फ के पिघलने से होता है. नदियाँ हिमालय की ऊँची-ऊँची चोटियों पर बलखाती हुई, चलती हुई, मैदानों में आकर समतल रूप से बहने लगती हैं. अतः यह कहा जा सकता है कि हिमालय की चोटियाँ नदियों के बचपन के लीला स्थल व अठखेलियाँ करने के निकेतन हैं . वहीँ मैदान नदियों का पालना है जहाँ नदियाँ शांत-सौम्य हो जाती हैं. इन्हीं मैदानों से नदियाँ बहती हुई धीरे-धीरे धीर, गंभीर होती हुईं समंदर में आकर मिल जाती है . समंदर को हिमालय का दामाद माना गया है क्योंकि वह नदियों का वरण करता है और नदियाँ भी हँसती खेलती हुईं समुद्र का आलिंगन करती हैं. हिमालय से लेकर समंदर तक की यात्रा में नदियाँ अपने कई रूप बदलती हैं . इन रूपों में कई स्थल आकृतियों का जन्म होता है जैसे- जलप्रपात झील आदि. हिमालय से निकलने वाली नदियों में सिंधु और ब्रह्मपुत्र दो ऐसी नदियाँ हैं जो समंदर में जाकर मिलती हैं. जब लेखक हिमालय की गोदी में अठखेलियाँ करती हुई नदियों को देखता है तो वे बहुत सुंदर प्रतीत होती हैं . ये नदियाँ एक सभ्य महिला की भांति दिखती हैं .लेखक के मन में उनके प्रति बहुत आदर और श्रद्धा का भाव है जब लेखक इन नदियों में डुबकियाँ लगाता है तो लेखक को माँ , दादी, मौसी या मामी की गोदी में खेलने के जैसा एहसास होता है और लेखक नदियों से आत्मीय रूप से जुड़ जाता है. एक बार लेखक हिमालय पर काफी ऊंचाई तक गया तो उसने नदियों का बदला हुआ आकर्षक रूप देखा उसे बहुत हैरानी हुई . उसने वहाँ जाकर देखा कि पर्वतों के मध्य में गंगा, यमुना, सतलज जैसी नदियाँ कितनी दुबली-पतली दिखती हैं लेकिन समतल धरातल पर पहुँच कर ये विशाल धारा में परिवर्तित हो जाती हैं . मैदानों में पहुंचकर नदियों का उछलना, कूदना, खिलखिलाना , और उल्लास सब समाप्त हो जाता है. नदियाँ पर्वतों से बिल्कुल अल्हड़ बाला की भांति निकलती हैं और मैदानों में पहुँचकर शांत, सौम्य व गंभीर रूप धारण कर लेती हैं .लेखक को हिमालय की बेटियाँ बहुत आकर्षित करती हैं . लेखक बहुत सोच विचार कर भी यह समझ नहीं पाता कि आखिर नदियों का लक्ष्य क्या है ? वे किससे मिलने की चाह में आगे बढ़ रही हैं ? आखिर क्यों वे बहुत अधिक प्रेम करने वाले पिता 'हिमालय' को छोड़कर दूर जाना चाहती हैं ? आखिर वे किसका प्रेम पाना चाहती हैं. जिस प्रकार बेटियाँ ससुराल जाने के समय मायके की हर चीज , जिसे वे प्रेम करती हैं खुशी-खुशी छोड़ जाती हैं .उसी प्रकार हिमालय की ये बेटियाँ (Himalay Ki Betiyan ) भी बर्फ से ढकी पहाड़ियाँ , पौधों से भरी-पूरी घाटियाँ , गुफाएं, हरी-भरी घाटियाँ सब कुछ छोड़कर समुद्र की ओर बढ़ जाती है . लेखक ने हिमालय को बुढ़ा कह कर संबोधित किया है वह इसलिए क्योंकि हिमालय ऐसी नदियों का पिता है जो बिंदास रूप से बचपन में हिमालय रूपी अपने पिता की गोद में खेलीं और फिर बड़ी होकर चल पड़ी समंदर की ओर. लेखक ने यहाँ कालिदास ( संस्कृत के महाकवि) का जिक्र भी किया है .एक बार कालिदास के बिरही यक्ष ने मेघदूत से कहा था कि तुम वेत्रवती (बेतवा ) नदी को प्रेम का संदेश अवश्य देना . वह तुम्हें प्रेम करती है और तुम्हें पाकर अवश्य प्रसन्न होगी . लेखक को लगता है कि महाकवि कालिदास को भी नदियों का जीवंत और सजीव रूप पसंद था. वास्तव में पहाड़ों से निकलती हुई नदियों व समतल पर बैठी हुई नदियों को जो भी देखेगा वह दोनों में बहुत अंतर पाएगा क्योंकि पहाड़ों पर बहने वाली नदियां अल्हड़, बेधड़क, बिंदास, बाल-लीलाएँ करते हुए बच्चों के रूप में दिखाई देती हैं वहीं मैदानों में बहती हुई नदियाँ गंभीर ,स्थिर नव युवती के रूप में सभी को आकर्षित करती हैं. काका कालेलकर ने नदियों को माता का रूप दिया क्योंकि नदियाँ सभी का कल्याण करती हैं . पुराने समय में नदियों के किनारे ही सभ्यताएँ फली-फूलीं और आज भी नदियाँ मानव जीवन का पालना बनी हुई हैं . जहाँ नदियां होती हैं वहाँ खेत लहलहाते हैं वनस्पतियाँ खिलखिलातीं हैं और सभी प्राणी जगत जीवन यापन करते हैं. कुछ कवियों ने नदियों को प्रेयसी अर्थात प्रेमीका माना है जबकि कुछ कवि उन्हें बहन का स्थान भी देते हैं . एक बार लेखक स्वयं मन से बहुत उदास था तो तिब्बत में सतलुज के किनारे जाकर बैठ जाता है . वह अपने पैर पानी में लटका देता है थोड़ी देर में ही वह तन और मन से ताजगी महसूस करता है और तभी लेखक कह उठता है - ’सतलुज बहन तुम्हारी जय हो’! तुम्हारा स्वरूप बहुत प्रिय है तुमसे हृदय प्रसन्न हो गया .सारी खुमारी (आलस्य) दूर हो गया. मैं तुम पर निछावर होता हूँ तुम पुत्री हो . हिमालय तुम्हारा पिता है .पिता हिमालय चुपचाप रह कर भी तुम्हारे लिए चिंतित है . प्रकृति तो नर्तकी ( नृत्य करने वाली ) समान है इसी प्रकृति के प्रांगण ( आँगन ) में हिमालय अपनी अद्भुत और अनुपम छटा बिखेर रहा है. हे !सतलुज बहन तुम्हारी जय हो. class 7 Hindi chapter 3 question answer प्रश्नोत्तर प्रश्न- नदियों को माँ मानने की परंपरा हमारे यहाँ काफ़ी पुरानी है। लेकिन लेखक नागार्जुन उन्हें और किन रूपों में देखते हैं ? उत्तर- लेखक नदियों को माँ मानने की परपंरा से पहले इन नदियों को स्त्री के सभी रूपों में देखता है जिसमें वो उसे बेटी के समान प्रतीत होती है इसलिए लेखक नदियों को हिमालय की बेटी कहता है. कभी वह इन्हें प्रेयसी की भांति प्रेम करने वाली कहता है, जिस तरह से एक प्रेयसी अपने प्रियतम से मिलने के लिए आतुर ( व्याकुल ) रहती है उसी तरह ये नदियाँ सागर से मिलने को आतुर होती हैं. कभी लेखक को नदियाँ ममता से भरी हुई बहन के समान प्रतीत होती हैं जिसके सम्मान में वो हमेशा हाथ जोड़े शीश ( सिर ) झुकाए खड़ा रहता है। प्रश्न- सिंधु और ब्रह्मपुत्र की क्या विशेषताएँ बताई गई हैं ? उत्तर - इनकी विशेषताएँ इस प्रकार है:-
प्रश्न- काका कालेलकर ने नदियों को लोकमाता क्यों कहा है ? उत्तर- कवि नदियों के प्रति सम्मान के भाव प्रदर्शित करते हुए उन्हें लोकमाता (जगत जननी ) कहता है क्योंकि ये नदियाँ हमारा आरम्भिक काल से ही माँ की भांति भरण-पोषण करती आ रही है. ये हमें पीने के लिए पानी देती है तो दूसरी तरफ इसके द्वारा लाई गई ऊपजाऊ मिट्टी खेती के लिए बहुत उपयोगी होती है. ये मछली पालन में भी बहुत उपयोगी हैं अर्थात् ये नदियाँ सदियों से हमारी जीविका का साधन रही हैं . हिन्दू धर्म में ये नदियाँ पौराणिक आधार पर भी विशेष पूजनीय हैं इसलिए ये हमारे लिए माता के समान है जो सबका कल्याण करती हैं . प्रश्न- हिमालय की यात्रा में लेखक ने किन-किन की प्रशंसा की है ? उत्तर- लेखक ने हिमालय यात्रा में निम्नलिखित की प्रशंसा की है –
ncert solutions for class 7 Hindi भाषा की बात प्रश्न- निर्जीव वस्तुओं को मानव-संबंधी नाम देने से निर्जीव वस्तुएँ भी मानो जीवित हो उठती हैं। लेखक ने इस पाठ में कई स्थानों पर ऐसे प्रयोग किए हैं, जैसे- (क) परंतु इस बार जब मैं हिमालय के कंधे पर चढ़ा तो वे कुछ और रूप में सामने थीं। (ख) काका कालेलकर ने नदियों को लोकमाता कहा है। पाठ से इसी तरह के और उदाहरण ढूँढ़िए। उत्तर-
प्रश्न- द्वंद्व समास के दोनों पद प्रधान होते हैं। इस समास में ‘और’ शब्द का लोप हो जाता है, जैसे- राजा-रानी द्वंद्व समास है जिसका अर्थ है राजा और रानी। पाठ में कई स्थानों पर द्वंद्व समासों का प्रयोग किया गया है। इन्हें खोजकर वर्णमाला क्रम (शब्दकोश-शैली) में लिखिए। उत्तर - द्वन्द्व समास के उदाहरण:-
प्रश्न- नदी को उलटा लिखने से दीन होता है जिसका अर्थ होता है गरीब। आप भी पाँच ऐसे शब्द लिखिए जिसे उलटा लिखने पर सार्थक शब्द बन जाए। प्रत्येक शब्द के आगे संज्ञा का नाम भी लिखिए, जैसे-नदी-दीन (भाववाचक संज्ञा)। उत्तर-
himalaya ki betiyan MCQs जय हिन्द ------------------- लेखक तिब्बत में किस नदी के किनारे बैठा था और क्यों?Solution : तिब्बत की यात्रा के दौरान एक दिन लेखक का मन उचट गया था और तबियत कुछ ढीली हो गयी थी। इसलिए वह सतलुज के किनारे जाकर बैठ गया था।
लेखक ने सतलुज नदी को क्या माना है?लेखक ने सतलुज को क्या माना है? Solution : लेखक ने सतलुज को बहन माना है।
लेखक ने नदियों और हिमालय का क्या रिश्ता कहां है?लेखक ने नदियों को हिमालय की बेटियाँ कहा है, क्योंकि वह नदियों का उद्गम स्थल है। पर हम उन्हें माँ समान ही कहना चाहेंगे, क्योंकि वे हमें तथा धरती को जल प्रदान करती हैं। हमारी प्यास बुझाने के साथ-साथ खेतों की भी प्यास बुझाती हैं।
लेखक ने हिमालय को किसका ससुर कहा है?उत्तर- लेखक ने हिमालय को ससुर और समुद्र को उसका दामाद कहा है।
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