Download PDF of CBSE Class 12 Hindi Important Questions with Solutions for Aroh Chapter 14 Pahelwan Ki Dholak PDFMore Free Study Material for Pahelwan ki Dholak Show
312.3k views • 14k downloads Here we are providing Class 12 Hindi Important Extra Questions and Answers Aroh Chapter 14 पहलवान की ढोलक. Important Questions for Class 12 Hindi are the best resource for students which helps in class 12 board exams. पहलवान की ढोलक Class 12 Important Extra Questions Hindi Aroh Chapter 14प्रश्न 1. प्रश्न 2. (i) व्यक्तित्व-लद्दन सिंह पहलवान का वास्तविक नाम लट्टन सिंह था। ‘पहलवान’ उसके नाम में बाद में जड़ा। वह लंबा चोगा तथा अस्त-व्यस्त पगड़ी बाँधता था। लुट्टन सिंह अपने माता-पिता की इकलौती संतान था। उसके माता-पिता नौ वर्ष की अवस्था में उसे अकेला छोड़कर स्वर्ग सिधार गए थे। सौभाग्यवश उसकी बचपन में ही शादी हो गई थी। अतः उसका पालन-पोषण उसकी विधवा सास ने किया। लुट्टन पहलवान के दो बेटे थे। (ii) साहसालुटन सिंह पहलवान अत्यंत साहसी था। वह सुडौल और हट्टा-कट्टा था। वह प्रत्येक परिस्थिति का डटकर सामना करता था। वह कभी घबराता नहीं था। अपने साहस के बल पर उसने प्रसिद्ध पहलवान चाँद सिंह को हरा दिया था। महामारी फैलने के कारण जब रात्रि की विभीषिका से सारा गाँव शिशुओं की तरह थर-थर काँपता था, तब लुन सिंह अकेला सारी रात ढोलक बजाया करता था। यह उसके साहस का प्रत्यक्ष प्रमाण था। (iii) भाग्यहान-लुट्टन सिंह साहसी होने पर भी भाग्यहीन था। बचपन में नौ वर्ष की अवस्था में उसे छोड़कर उसके माता-पिता चल बसे; उसकी सास ने उसे पाला-पोसा। बाद में उसके दोनों बेटे भी काल का शिकार हो गए। जिस वीरता के बलबूते वह श्यामनगर का राज-पहलवान बना था, राजा की मृत्यु के बाद वह पद भी उसे छोड़ना पड़ा। (iv) निडर-लुट्टन सिंह एक निडर पुरुष था। जब सारा गाँव महामारी के कारण भयभीत होकर अपनी झोपड़ियों में गम हो जाता था, तब अकेला लुट्टन सिंह रात्रि के सन्नाटे में निडरता से अपना ढोल बजाया करता था। श्यामनगर के दंगल में भी वह चाँद सिंह जैसे प्रसिद्ध पहलवान के साथ लड़ते हुए नहीं डरा। राजा के मना करने पर भी उसने निडरता से चाँद सिंह के साथ कश्ती की तथा अंत में उसे हराया। पहलवान को दंगल में हराना ही उसका निडरता का उदाहरण है। सहयोगी-लुट्टन सिंह पहलवान होने के साथ-साथ एक संवेदनशील व्यक्ति भी था। वह दुख-सुख में सभी गाँववालों का साथ देता था। महामारी में जब गाँव में कहर मचा हुआ था, तब वह लोगों में जीने की उमंग पैदा करने के लिए रात में ढोल बजाया करता था। दिन में वह घर-घर जाकर अपने पड़ोसियों और गाँववालों का हाल-चाल पूछकर उन्हें धैर्य देता था। प्रश्न 3. लेकिन राजा की मृत्यु के पश्चात वहाँ एक नया विलायती राजा। उसने आते ही दंगल को घोड़ों की रेस में बदल दिया तथा लुट्टन सिंह को दिया जाने वाला सम्मान व खर्च बंद करवा दिया। उसे लोक-संस्कृति बिल्कुल भी पसंद नहीं थी, इसलिए उसने अपने राज्य में विलायती संस्कृति को फैलाने का प्रयास किया। इसके परिणामस्वरूप धीरे-धीरे राज व्यवस्था बदलकर नए स्वरूप में ढल गई और लोक-संस्कृति विलुप्त होने लगी। अंततः भारत पर इंडिया का साम्राज्य छाने लगा। प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. उपचाराधीन और पथविहीन लोगों में संजीवनी शक्ति भरती थी। बच्चे, जवान और बूढों की आँखों के आगे दंगल का दृश्य पैदा कर देती थी। ढोल की आवाज सुनकर शक्तिहीन शिराओं में बिजली-सी दौड़ पड़ती थी। मरते हुए प्राणियों को भी आँख मूंदते समय कोई तकलीफ़ नहीं होती थी तथा लोग मृत्यु से भी नहीं डरते थे। इसे सुनकर लोगों के मन में जीने की नई उमंग जागृत हो जाती थी। प्रश्न 7. प्रश्न 8. उसने लुट्टन सिंह पहलवान की वीरता को देखकर भी उसे राज परिवार का पहलवान नियुक्त कर दिया था तथा लुट्टन सिंह का सारा खर्च भी राजा के खजाने से चलता था लेकिन उसकी मृत्यु के पश्चात वहाँ एक नया विलायती राजा आया तो उसने आते ही दंगल को घोड़ों की रेस में बदल दिया तथा लुट्टन सिंह को भी दिया जाने वाला सम्मान और खर्च बंद करा दिया। उसे लोक संस्कृति बिल्कुल भी पसंद नहीं थी। इसलिए उसने अपने राज्य में विलायती संस्कृति को फैलाने का प्रयास किया। जिसके परिणामस्वरूप धीरे-धीरे राज व्यवस्था बदलकर नए स्वरूप में ढल गई और लोक संस्कृति विलुप्त होने लगी। इस प्रकार इस पाठ से हमें यह संदेश भी मिलता है कि लोककलाओं को भी संरक्षण दिया जाना चाहिए। प्रश्न 9. इस समय पूरा गाँव असहाय प्रतीत हो रहा था। रात्रि की विभीषिका से भयभीत होकर लोग घास-फूस की झोंपड़ियों में दुबक जाते थे। दिन में पक्षियों के कलख, हाहाकार से गाँव वालों के चेहरों पर थोड़ी-सी चमक दिखाई देती थी। किंतु रात होते ही वह फुर हो जाती थी। गाँव में प्रतिदिन दो-तीन लाशें निकलती थीं। महत्वपूर्ण गद्यांशों के अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर 1. जाड़े का दिन। अमावस्या की रात-ठंडी और काली। मलेरिया और हैजे से पीड़ित गाँव भयात शिशु की तरह थर-थर काँप रहा था। पुरानी और उजड़ी बाँस-फूस की झोंपड़ियों में अंधकार और सन्नाटे का सम्मिलित साम्राज्य! अँधेरा और निस्तब्धता! अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर प्रश्न 2. अंधेरी रात चुपचाप आँसू बहा रही थी। निस्तब्धता करुण सिसकियों और आहों को बलपूर्वक अपने हृदय में ही दबाने की चेष्टा कर रही थी। आकाश में तारे चमक रहे थे। पृथ्वी पर कहीं प्रकाश का नाम नहीं। आकाश से टूटकर यदि कोई भावुक तारा पृथ्वी पर जाना भी चाहता तो उसकी ज्योति और शक्ति रास्ते में ही शेष हो जाती थी। अन्य तारे उसकी भावुकता अथवा असफलता पर खिलखिलाकर हँस पड़ते थे। अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर प्रश्न 3. रात्रि अपनी भीषणताओं के साथ चलती रहती और उसकी सारी भीषणता को, ताल ठोककर, ललकारती रहती थी-सिर्फ पहलवान की ढोलक! संध्या से लेकर प्रातःकाल तक एक ही गति से बजती रहती-‘चट्-धा, गिड़-धा,…चट्-धा गिड़-धा!’ यानी आ जा भिड़ जा, आ जा, भिड़ जा!’- बीच-बीच में-‘चटाक्-चट्-धा, चटाक्-चट्-धा!’ यानी ‘उठाकर पटक दे! उठाकर पटक दे!!’ अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर प्रश्न 4. शांत दर्शकों की भीड़ में खलबली मच गई-‘पागल है पागल, मरा-ऐं! मरा-मरा!’… पर वाह रे बहादुर! लुट्टन बड़ी सफाई से आक्रमण को सँभालकर निकलकर उठ खड़ा हुआ और पैंतरा दिखाने लगा। राजा साहब ने कुश्ती बंद करवा कर लुट्टन को अपने पास बुलवाया और समझाया। अंत में, उसकी हिम्मत की प्रशंसा करते हुए, दस रुपए का नोट देकर कहने लगे-‘जाओ, मेला देखकर घर जाओ।’ अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर प्रश्न अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर प्रश्न 6. उसी दिन से लुट्टन सिंह पहलवान की कीर्ति दूर-दूर तक फैल गई। पौष्टिक भोजन और व्यायाम तथा राजा साहब की स्नेह-दृष्टि ने उसकी प्रसिद्धि में चार चाँद लगा दिए। कुछ वर्षों में ही उसने एक-एक कर सभी नामी पहलवानों को मिट्टी सुंघाकर आसमान दिखा दिया। अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर प्रश्न 7. मेलों में वह घुटने तक लंबा चोगा पहने, अस्त-व्यस्त पगड़ी बाँधकर मतवाले हाथी की तरह झूमता चलता। दुकानदारों को चुहल करने की सूझती। हलवाई अपनी दुकान पर बुलाता-“पहलवान काका! ताजा रसगुल्ला बना है, जरा नाश्ता कर लो!” अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर प्रश्न 8. अकस्मात गाँव पर यह वज्रपात हुआ। पहले अनावृष्टि, फिर अन्न की कमी, तब मलेरिया और हैजे ने मिलकर गाँव को भूनना शुरू कर दिया। गाँव प्रायः सूना हो चला था। घर के घर खाली पड़ गए थे। रोज दो-तीन लाशें उठने लगीं। लोगों में खलबली मची हुई थी। दिन में तो कलरव, हाहाकर तथा हृदय-विदारक रुदन के बावजूद भी लोगों के चेहरे पर कुछ प्रभा दृष्टिगोचर होती थी, शायद सूर्य के प्रकाश में सूर्योदय होते ही लोग काँखते-कूँखते-कराहते अपने-अपने घरों से बाहर निकलकर अपने पड़ोसियों और आत्मीयों को ढाढ़स देते थे। अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर प्रश्न 9. रात्रि की विभीषिका को सिर्फ पहलवान की ढोलक ही ललकारकर चुनौती देती रहती थी। पहलवान संध्या से सुबह तक, चाहे जिस ख्याल से ढोलक बजाता हो, किंतु गाँव के अर्धमृत, औषधि-उपचार-पथ्य-विहीन प्राणियों में वह संजीवनी शक्ति ही भरती थी। बूढ़े-बच्चे-जवानों की शक्तिहीन आँखों के आगे दंगल का दृश्य नाचने लगता था। स्पंदन-शक्ति-शून्य स्नायुओं में भी बिजली दौड़ जाती थी। (C.B.S.E. Model Q. Paper 2008) लुट्टन दंगल देखने कहाँ गया था?एक बार लुट्टन श्यामनगर मेला में 'दंगल' देखने गया। पहलवानों की कुश्ती व दाँव-पेंच देखकर उसने 'शेर के बच्चे' को चुनौती दे डाली।
लुट्टन पहलवान अपने पुत्रों को क्या शिक्षा दिया करता था?विधवा सास ने पाल-पोस कर बड़ा किया। बचपन में वह गाय चराता, धारोष्ण दूध पीता और कसरत किया करता था। गाँव के लोग उसकी सास को तरह-तरह की तकलीफ़ दिया करते थे; लुट्टन के सिर पर कसरत की धुन लोगों से बदला लेने के लिए ही सवार हुई थी । नियमित कसरत ने किशोरावस्था में ही उसके सीने और बाँहों को सुडौल तथा मांसल बना दिया था।
लुट्टन ने चाँद सिंह को कहाँ के दंगल में हराया था?लुट्टन पहलवान के चाँद सिंह को कहाँ के दंगल में हराया ? (घ) चाँद नगर।
लुट्टन के कितने बेटे थे?लुट्टन के दो पुत्र थे। लुट्टन पहलवान की स्त्री दो पहलवानों को पैदा करके स्वर्ग सिधार गई थी। दोनों लड़के पिता की तरह ही गठीले और तगड़े थे। दंगल में दोनों को देखकर लोगों के मुँह से अनायास ही निकल पड़ता-”वाह!
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