विषयसूची ईर्ष्या कैसे दूर करें?कैसे ईर्ष्या से छुटकारा पाएँ
हमें दूसरों से जलन क्यों होती है?इसे सुनेंरोकेंअधिकतर मामलों में जलन की भावना हम तभी महसूस करते हैं जब हमारा सेल्फ कॉन्फिडेंस कम होता है और हमारे अंदर या हमारे पास किसी चीज़ की कमी होती है। ऐसी स्थितियों में हम दूसरों से ज्यादा जेलस फील करते हैं। ऐसे लोग सोचते बहुत ज्यादा हैं, जैसे, ‘मैं अच्छी नहीं हूं, सभी मुझसे ज़्यादा अच्छा काम कर रहे हैं। ईर्ष्या करने वाला को क्या कहेंगे? इसे सुनेंरोकेंenvious {adj.} मन में ईर्ष्या का भाव उत्पन्न ना हो इसके लिए क्या करेंगे? इसे सुनेंरोकेंमन में ईर्ष्या का भाव उत्पन्न ही ना हो, इसके लिए हमारा मन किसी विशेष लक्ष्य से पूर्ण होना चाहिए। जिसमें, किसी और क्षेत्र के बारे में सोचने या चर्चा करने के लिए फिज़ूल समय ना हो। ऐसी, स्थिति में हमारा मन केवल हमारे लक्ष्य पर केंद्रित होना चाहिए। ईर्ष्या करना उचित है या अनुचित क्यों?इसे सुनेंरोकेंAnswer: ईर्ष्या करना अनुचित है। ईर्ष्या करना अच्छी बात नहीं है जो मनुष्य ईर्ष्या करता है वह जिंदगी में कभी भी आगे नहीं बढ़ पाता ईर्ष्या हमें दूसरों के प्रति नहीं बल्कि खुद के प्रति जलाती है। ईर्ष्या की बेटी किसे और क्यों कहा गया है?इसे सुनेंरोकेंईर्ष्या की बेटी निंदा को कहा गया है क्योंकि निंदा की उत्पत्ति ईर्ष्या के कारण ही होती है। Explanation: इसी ईर्ष्या की अग्नि में जलते हुए वो उस व्यक्ति की बुराई करने में लग जाता है अर्थात पहले ईर्ष्या उत्पन्न होती है और उस ईर्ष्या के कारण ही निंदा करने की प्रवृत्ति जन्म लेती है। ईर्ष्यालु लोगों से बचने का क्या उपाय है? इसे सुनेंरोकेंAnswer: आप उन लोगों की ईर्ष्या दूर करने की कोशिश भी करें जो टीम के दूसरों सदस्यों से जलन रखते हैं. किसी भी ऐसे सहकर्मी से बहस न करें जिसके बारे में आपको लगता है वह ईर्ष्या महसूस करता है. उसे यह कहना कि वह ईर्ष्या कर रहा है, उसका असंतोष बढ़ाएगा और आपकी लोकप्रियता कम करेगा. मन में ईर्ष्या का भाव उत्पन्न ही ना हो इसके लिए आप क्या क्या करेंगे कोई चार वाक्य लिखिए? द्वेष जलन आदि भावों से कैसे बचा जा सकता है?इसे सुनेंरोकेंजलन या ईर्ष्या भाव पर काबू पाना हो तो अपनी नकारात्मक और सकारात्मक भावनाओं को समझना होगा। अकसर जलन से भरे लोग अपनी नकारात्मक भावनाओं को समझना नहीं चाहते। नतीजतन समस्या विकराल रूप धारण कर लेती है। जैसे ही अपनी भावनाओं के प्रति सचेत होने लगेंगे, यह समस्या कम होने लगेगी। मन में ईर्ष्या का भाव उत्पन्न ही न हो इसके लिए आप क्या करेंगे?मन में ईर्ष्या का भाव उत्पन्न ही ना हो, इसके लिए हमारा मन किसी विशेष लक्ष्य से पूर्ण होना चाहिए। जिसमें, किसी और क्षेत्र के बारे में सोचने या चर्चा करने के लिए फिज़ूल समय ना हो। ऐसी, स्थिति में हमारा मन केवल हमारे लक्ष्य पर केंद्रित होना चाहिए।
अपने मन से इच्छा का भाव निकालने के लिए क्या करना चाहिए?अपने मन से ईर्ष्या का भाव निकालने के लिए हमें स्पर्धा का भाव लाकर अपने कर्त्तव्य में गति लाना चाहिए । मानसिक अनुशासन अपमे में लाकर . फालतु बातों पर ध्यान नहीं देना चाहिए तथा यह हमें पता लगाना चाहिए कि किस अभाव के कारण हममें ईर्ष्या का उदय हुआ । उसकी पूर्ति इस स्पर्धा से कर ईर्ष्या से दूर हो सकते हैं।
ईर्ष्या को लेखक ने दोष क्यों माना है?(ब) रेखांकित अंश की व्याख्या–लेखक का कहना है कि ईष्र्या मनुष्य का चारित्रिक दोष है; क्योंकि यह आनन्द में बाधा पहुँचाती है, किन्तु यह एक दृष्टि से लाभदायक भी हो सकती है; क्योंकि ईष्र्या के अन्दर प्रतिद्वन्द्विता का भाव निहित होता है।
ईर्ष्यालु व्यक्ति दुखी क्यों रहता है?इसे सुनेंरोकेंईर्ष्यालु व्यक्ति अपनी तुलना ऐसे व्यक्तियों से करता है जो उससे किन्हीं बातों में श्रेष्ठ हैं। ऐसा व्यक्ति उन चीज़ों का आनन्द नहीं उठा पाता जो उसके पास मौजूद होती हैं, बल्कि दूसरों की चीज़ों को देख कर दुखित होता है।
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