मेरठ छावनी में सिपाहियों ने कब विद्रोह कर दिया था? - merath chhaavanee mein sipaahiyon ne kab vidroh kar diya tha?

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अंग्रेजों को देश से खदेड़ने के लिए प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की नींव सन 1857 में मेरठ में रखी गई, जो कि बाद में पूरे देश में आग की तरह फैल गई. इसी ने अंग्रेजों के पैर भारत से उखाड़ने की भूमिका तैयार की और आखिर में 1947 में भारत को आजादी मिली.

मेरठ छावनी में सिपाहियों ने कब विद्रोह कर दिया था? - merath chhaavanee mein sipaahiyon ne kab vidroh kar diya tha?

सन् 1857 के सैनिक विद्रोह की एक झलक: (विकिपीडिया से)

लखनऊ: अंग्रेजों को देश से खदेड़ने के लिए प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की नींव सन 1857 में मेरठ में रखी गई, जो कि बाद में पूरे देश में आग की तरह फैल गई. इसी ने अंग्रेजों के पैर भारत से उखाड़ने की भूमिका तैयार की और आखिर में 1947 में भारत को आजादी मिली. इस जंग में लाखों ज्ञात और अज्ञात स्वतंत्रता सेनानियों ने अपना बलिदान दिया. आइए जानते हैं कि मेरठ से आजादी की मशाल जलाने वाले मंगल पांडे के बारे में.

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मंगल पाण्डेय का जन्म भारत में उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के नगवा नामक गांव में 19 जुलाई 1827 को एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था. हांलाकि कुछ इतिहासकार इनका जन्म-स्थान फैज़ाबाद के गांव सुरहुरपुर को मानते हैं. इनके पिता का नाम दिवाकर पांडे था. मंगल पाण्डेय सन् 1849 में 22 साल की उम्र में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में शामिल हो गए. मंगल पाण्डेय एक ऐसे भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्होंने 1857 में भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. वो ईस्ट इंडिया कंपनी की 34वीं बंगाल इंफेन्ट्री के सिपाही थे. तत्कालीन अंगरेजी शासन ने उन्हें बागी करार दिया जबकि आम हिंदुस्तानी उन्हें आजादी की लड़ाई के नायक के रूप में सम्मान देता है. भारत के स्वाधीनता संग्राम में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका को लेकर भारत सरकार द्वारा उनके सम्मान में सन् 1984 में एक डाक टिकट जारी किया गया.

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आइए जानें कैसे हआ 1857 का विद्रोह

विद्रोह का प्रारम्भ एक बंदूक की वजह से हुआ. सिपाहियों को पैटऱ्न 1853 एनफ़ील्ड बंदूक दी गयीं जो कि 0.577 कैलीबर की बंदूक थी और पुरानी और कई दशकों से उपयोग में लायी जा रही ब्राउन बैस के मुकाबले में शक्तिशाली और अचूक थी. नयी बंदूक में गोली दागने की आधुनिक प्रणाली (प्रिकशन कैप) का प्रयोग किया गया था परन्तु बंदूक में गोली भरने की प्रक्रिया पुरानी थी. नयी एनफ़ील्ड बंदूक भरने के लिए कारतूस को दांतों से काट कर खोलना पड़ता था और उसमे भरे हुए बारुद को बंदूक की नली में भर कर कारतूस को डालना पड़ता था. कारतूस का बाहरी आवरण में चर्बी होती थी जो कि उसे पानी की सीलन से बचाती थी. सिपाहियों के बीच अफ़वाह फ़ैल चुकी थी कि कारतूस में लगी हुई चर्बी सुअर और गाय के मांस से बनायी जाती है.

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29 मार्च 1857 को बैरकपुर परेड मैदान कलकत्ता के निकट मंगल पाण्डेय जो दुगवा रहीमपुर (फैजाबाद) के रहने वाले थे, रेजीमेण्ट के अफ़सर लेफ़्टीनेण्ट बाग पर हमला कर के उसे घायल कर दिया. जनरल जान हेएरसेये के अनुसार मंगल पाण्डेय किसी प्रकार के धार्मिक पागलपन में थे, जनरल ने जमादार ईश्वरी प्रसाद को मंगल पांडेय को गिरफ़्तार करने का आदेश दिया पर ज़मीदार ने मना कर दिया. सिवाय एक सिपाही शेख पलटु को छोड़कर सारी रेजीमेण्ट ने मंगल पाण्डेय को गिरफ़्तार करने से मना कर दिया. मंगल पाण्डेय ने अपने साथियों को खुलेआम विद्रोह करने के लिए कहा पर किसी के न मानने पर उन्होंने अपनी बंदूक से अपनी जान देने की कोशिश की. परन्तु वे इस प्रयास में केवल घायल हुए. 6 अप्रैल 1857 को मंगल पाण्डेय का कोर्ट मार्शल कर दिया गया और 8 अप्रैल को फ़ांसी दे दी गई.

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मंगल पाण्‍डेय की फांसी के बाद हुआ विद्रोह

मंगल पांडे द्वारा लगायी गयी विद्रोह की यह चिंगारी बुझी नहीं. एक महीने बाद ही 10 मई सन् 1857 को मेरठ की छावनी में बगावत हो गयी. जो कि देखते ही देखते पूरे उत्तर भारत में फैल गई, जिससे अंग्रेजों को स्पष्ट संदेश मिल गया कि अब भारत पर राज्य करना उतना आसान नहीं है जितना वे समझ रहे थे. मंगल पाण्‍डेय द्वारा अंग्रेजों के खिलाफ शुरू किया गया विद्रोह, समूचे देश में आग की तरह फैला था. इस आग को बुझाने के लिए अंग्रेजों ने बहुत कोशिश की, लेकिन देश के हर नागरिक के अंदर विद्रोह की आग भड़क चुकी थी. जिसकी बदौलत 1947 में हमें आजादी मिली.

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भारत के इतिहास (Indian History) में 1857 की क्रांति (Revolution) का बहुत महत्व है. इस क्रांति ने देश में दूरगामी बदलावों की नींव रखी थी. यूं तो इसे एक बिखरा हुआ आंदोलन कहा जा सकता है, लेकिन जिन हालात ने इसे पैदा किया उसके नतीजों ने भारत (India) पर गहरा प्रभाव डाला. अंग्रेजों ने हमेशा ही इसे क्रांतिकारी आंदोलन के तौर पर खारिज किया. ये क्रांति अचानक ही नहीं हुई ये धीरे-धीरे तपी और फैली. इस दौरान 10 मई 1857 का दिन इस क्रांति के लिए एक बड़ा दिन साबित हुआ.

10 मई को दिखी इसकी शुरुआत
1857 में 10 मई को ही मेरठ की छावनी में 85 जवानों ने मिल कर अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन शुरू किया था और इसे क्रांति का पहला कदम और आदाजी के लिए फूटी पहली चिंगारी माना जाता है. इतिहासकारों का मानना है कि यह कोई छोटी मोटी बगावत नहीं थी. इसकी तैयारी बहुत पहले से चल रही थी. इस आंदोलन का रूप लेने जा रही इस क्रांति की तैयारी में नाना साहेब, अजीमुल्ला, झांसी की रानी, तात्यां टोपे, जैसे बहुत से बड़े नाम जुड़े थे.

एक आग की तरह फैली
10 मई को मेरठ में फूटी इस चिंगारी ने जल्दी ही दूसरे इलाकों को अपनी चपेट में लेना शुरू कर दिया, हैरानी की बात थी कि इसमें केवल अंग्रेजों की फौज में काम कर रहे हिंदुस्तानी सिपाही नहीं थे, बल्कि उनकी अलग अलग जगहों पर हुई बगावतों को देश के मजदूरों, किसानों और आदिवासियों का भी समर्थन मिला और धीरे-धीरे इसकी जड़ें देश के बाकी हिस्सों में भी फैलती चली गईं.

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बताया जाता है कि 85 हिंदुस्तानी सैनिकों ने विद्रोह कर 50 अंग्रेजों (Britishers) को मार गिराया था. (फाइल फोटो)

सिपाहियों को मिला सभी का समर्थन
सभी इतिहासकार यहां तक कि अंग्रेज भी 10 मई को हुई मेरठ में सैन्य बगावत को 1857 की क्रांति की शुरुआत मानते हैं. मेरठ की चिंगारी मेरठ में ही आग बन गई और आसपास के गांवों में फौरन फैल गई. यह भी माना जाता है कि क्रांति का अंग्रेज फौज में सिपाहियों की बगावत तो संकेत भर था. अंग्रेजों के खिलाफ गुस्सा तो सभी में ही था. जो मौका मिलते ही मेरठ में 10 मई और उसके बाद दिखाई भी दिया.

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कोतवाल धनसिंह
10 मई की घटनाओं में एक नाम उबर कर सामने आता है वह है कोतवाल धनसिंह गुर्जर का. धनसिंह मेरठ की सदर कोतवाली के कोतवाल थे जहां सिपाहियों के विद्रोह की खबर फैलते ही आसपास के गांव के लोग जमा हो गए थे. धनसिंह इस समूह के नेता के रूप में उभरे और उनके नेतृत्व में मेरठ की जेल पर हमला हुए और कैदियों को आजाद कराकर जेल को आग लगा दी गई. इसके बाद सिपाहियों ने दिल्ली की ओर कूच किया.

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पहली बार हिंदुस्तान में अंग्रेजों के खिलाफ इतने बड़े पैमाने पर आंदोलन (1857 Revolution) हुआ. (फाइल फोटो)

आसपास के इलाकों में लोगों को मिला हौसला
मेरठ की घटना की ना केवल खबर आग की तरह फैली बल्कि इसने आसपास के इलाकों में भी सिपाहियों और लोगों को अंग्रेजों के खिलाफ खड़े होने का मौका और हौसला दिया. मेरठ के बाद बागी सिपाही दिल्ली की ओर गए जहां उन्होंने बहादुर शाह जफर को हिंदुस्तान का बादशाह बनाया. जल्दी ही क्रांतिकारियों ने उत्तर पश्चिम प्रांतों के बहुत से इलाकों पर कब्जा कर पूर्व में अवध तक पहुंच गए.

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अंग्रेजों की वापसी लेकिन
अंग्रेजों ने भी खूब किला लड़ाया और जल्दी ही वापसी दिखाते हुए जुलाई मध्य तक कानपुर वापस ले लिया और सितंबर अंत तक दिल्ली पर फिर से कब्जा कर लिया. लेकिन इसे पूरी तरह से दबाने में दो साल से भी ज्यादा का समय लगा और यहां तक कि ब्रिटेन की सरकार तक को हस्ताक्षेप करना पड़ा. और यह केवल एक कंपनी से सत्ता हाथ में लेने का मामला भर नहीं था बल्कि एक पूरी तरह से नए कानून वाली सरकार की स्थापना थी.

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Tags: History, Research

FIRST PUBLISHED : May 10, 2021, 07:49 IST

मेरठ छावनी में कब विद्रोह हुआ?

10 मई, 1857 को अंग्रेजी शासन के खिलाफ ब्रिटिश सेना के भारतीय जवानों द्वारा विद्रोह यहीं से आरंभ हुआ। उन्होंने मेरठ शहर पर एक दिन में ही नियंत्रण कर लिया तथा दिल्ली के लाल किंले की ओर वूᆬच कर दिया जो किं संपूर्ण भारत पर नियंत्रण का द्योतक था।

10 मई 1857 को मेरठ छावनी का अधिकारी कौन था?

बाबू कुंवर सिंह (Babu Kunwar Singh) सन 1857 की 10 मई को मेरठ के भारतीय सैनिकों की स्वतंत्रता का उद्घोष के दौरान बाबू कुंवर सिंह मेरठ में थे। क्रांति का समाचार मिलते ही इन्होंने मेरठ से पूरे देश में जासूसों का जाल बिछा दिया। छावनी के भारतीय सैनिक तो तैयार ही बैठे थे।

1857 में मेरठ में क्या हुआ?

वर्ष 1857 में वह ऐतिहासिक दिन 10 मई ही था, जब देश की आजादी के लिए पहली चिंगारी मेरठ से भड़की थी। अंग्रेजों को खदेड़ने के लिए प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की नींव साल 1857 में सबसे पहले मेरठ के सदर बाजार में भड़की, जो पूरे देश में फैल गई थी। यह मेरठ के साथ-साथ पूरे देश के लिए गौरव की बात है।

सिपाहियों का प्रसिद्ध विद्रोह कब हुआ था?

आज़ादी की पहली लड़ाई यानी साल 1857 का विद्रोह भारतीय इतिहास के लिए कई मायनों में महत्वपूर्ण है.