मध्यकाल में कृषि में किस नई तकनीक का इस्तेमाल किया जाने लगा - madhyakaal mein krshi mein kis naee takaneek ka istemaal kiya jaane laga

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कृषि में आधुनिक तकनीक को अपनाना

  • 04 Apr 2022
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये:

इंडिया डिजिटल इकोसिस्टम ऑफ एग्रीकल्चर (IDEA), जेनेटिक इंजीनियरिंग, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, ब्लॉकचेन, रिमोट सेंसिंग, जीआईएस टेक्नोलॉजी, ड्रोन का इस्तेमाल, एसएमएएम, किसान कॉल सेंटर, किसान सुविधा एप, एग्री मार्केट एप।

मेन्स के लिये:

किसानों की सहायता में ई-प्रौद्योगिकी।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्री ने राज्यसभामें एक लिखित उत्तर में कृषि में प्रौद्योगिकी को अपनाने के लिये सरकार द्वारा की गई विभिन्न पहलों के बारे में जानकारी दी।

  • वर्ष 2021 में कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय (MoA&FW) द्वारा इंडिया डिजिटल इकोसिस्टम ऑफ एग्रीकल्चर (IDEA) पर एक परामर्श पत्र जारी किया गया गया, जो कृषि क्षेत्र में डिजिटल क्रांति की बात करता है।
  • आधुनिक तकनीक को अपनाना विभिन्न कारकों जैसे- सामाजिक-आर्थिक स्थिति, भौगोलिक स्थिति, उगाई गई फसल, सिंचाई सुविधाएँ आदि पर निर्भर करता है।

कृषि में प्रौद्योगिकी का महत्त्व:

  • कृषि में प्रौद्योगिकी का उपयोग शाकनाशी, कीटनाशक, उर्वरक और उन्नत बीज का उपयोग जैसे कृषि संबंधी विभिन्न पहलुओं में किया जा सकता है ।
  • वर्षों से कृषि क्षेत्र में प्रौद्योगिकी अत्यंत उपयोगी साबित हुई है।
    • वर्तमान में किसान उन क्षेत्रों में फसल उगाने में सक्षम हैं, जिन क्षेत्रों में पहले वे फसल उगाने में अक्षम थे, लेकिन यह कृषि जैव प्रौद्योगिकी के माध्यम से ही संभव हुआ है।
  • उदाहरण के लिये जेनेटिक इंजीनियरिंग ने एक पौधे या जीव को दूसरे पौधे या जीव या इसके विपरीत स्थानांतरित करने में सक्षम बना दिया है।
    • इस तरह की इंजीनियरिंग फसलों में कीटों (जैसे बीटी कॉटन) और सूखे के प्रतिरोध को बढ़ाती है। प्रौद्योगिकी के माध्यम से किसान दक्षता और बेहतर उत्पादन के लिये प्रत्येक प्रक्रिया का विद्युतीकरण करने की स्थिति में हैं।

मध्यकाल में कृषि में किस नई तकनीक का इस्तेमाल किया जाने लगा - madhyakaal mein krshi mein kis naee takaneek ka istemaal kiya jaane laga

प्रौद्योगिकी का उपयोग कृषि में कैसे लाभकारी हो सकता है?

  • यह कृषि उत्पादकता को बढ़ाती है।
  • मृदा के क्षरण को रोकती है।
  • फसल उत्पादन में रासायनिकों के अनुप्रयोग को कम करती है।
  • जल संसाधनों का कुशल उपयोग।
  • गुणवत्ता, मात्रा और उत्पादन की कम लागत के लिये आधुनिक कृषि पद्धतियों का प्रसार करती है।
  • किसानों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में बदलाव लाती है।

चुनौतियाँ:

  • शिक्षा और प्रशिक्षण से संबंधित:
    • ज्ञान की कमी
    • अपर्याप्त कौशल
    • बेहतर कौशल प्रशिक्षण का अभाव
  • प्रौद्योगिकी और बुनियादी ढाँचा:
    • खराब बुनियादी ढाँचा
    • भंडारण की कमी
    • परिवहन की कमी
  • आर्थिक और नीतिगत मुद्दे:
    • धन की कमी
    • ऋण तक पहुँच की कमी
    • बैंक ऋणों तक पहुँच का अभाव
  • जलवायु और पर्यावरणीय मुद्दे:
    • खराब मिट्टी
    • मिट्टी की उर्वरता में कमी
    • वर्षा की अनियमितता
    • प्राकृतिक आपदाएँ जैसे- बाढ़, पाला, ओलावृष्टि
  • मनो-सामाजिक मुद्दे:
    • श्रमिकों की कृषि में दिलचस्पी न होना, क्योकि वे आत्मनिर्भरता के लिये परियोजनाओं (आईपेलेगेंग प्रोजेक्ट) की तुलना में कृषि कार्यों को कम प्राथमिकता देते हैं, साथ ही कृषि कार्य करने के लिये अधिक समय की आवश्यकता होती है।

सरकार द्वारा उठाए गए कदम

  • एग्रीस्टैक: कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने 'एग्रीस्टैक' के निर्माण की योजना बनाई है, जो कि कृषि में प्रौद्योगिकी आधारित हस्तक्षेपों का संग्रह है। यह किसानों को कृषि खाद्य मूल्य शृंखला में एंड टू एंड सेवाएँ प्रदान करने हेतु एक एकीकृत मंच का निर्माण करेगा।
  • डिजिटल कृषि मिशन: कृषि क्षेत्र में कृत्रिम बुद्धिमत्ता, ब्लॉकचेन, रिमोट सेंसिंग और GIS तकनीक, ड्रोन व रोबोट के उपयोग जैसी नई तकनीकों पर आधारित परियोजनाओं को बढ़ावा देने हेतु सरकार द्वारा वर्ष 2021 से वर्ष 2025 तक के लिये यह पहल शुरू की गई है।
  • एकीकृत किसान सेवा मंच (UFSP): यह कोर इंफ्रास्ट्रक्चर, डेटा, एप्लीकेशन और टूल्स का एक संयोजन है जो देश भर में कृषि पारिस्थितिकी तंत्र में विभिन्न सार्वजनिक व निजी आईटी प्रणालियों की निर्बाध अंतःक्रियाशीलता को सक्षम बनाता है। UFSP निम्नलिखित भूमिका निभाता है:
  • कृषि में राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस योजना (NeGP-A): यह एक केंद्र प्रायोजित योजना है, इस योजना को वर्ष 2010-11 में 7 राज्यों में प्रायोगिक तौर पर शुरू किया गया था। इसका उद्देश्य किसानों तक समय पर कृषि संबंधी जानकारी पहुँचाने के लिये सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (ICT) का उपयोग कर भारत में तेज़ी से विकास को बढ़ावा देना है।
    • वर्ष 2014-15 में इस योजना का विस्तार शेष सभी राज्यों और 2 केंद्रशासित प्रदेशों में किया गया था।
  • कृषि मशीनीकरण पर उप-मिशन (SMAM):
    • इस योजना के तहत विभिन्न प्रकार के कृषि उपकरण और मशीनरी की खरीद के लिये सब्सिडी प्रदान की जाती है।
  • अन्य डिजिटल पहलें: किसान कॉल सेंटर, किसान सुविधा एप, कृषि बाज़ार एप, मृदा स्वास्थ्य कार्ड (SHC) पोर्टल आदि।

आगे की राह

  • प्रौद्योगिकी के उपयोग ने 21वीं सदी को परिभाषित किया है। जैसे-जैसे दुनिया क्वांटम कंप्यूटिंग, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, बिग डेटा और अन्य नई तकनीकों की ओर बढ़ रही है, भारत के पास आईटी दिग्गज होने का लाभ उठाने और कृषि क्षेत्र में क्रांति लाने का एक ज़बरदस्त अवसर है। जैसे हरित क्रांति ने कृषि उत्पादन में वृद्धि की है, वैसे ही भारतीय खेती में आईटी क्रांति अगला बड़ा कदम हो सकता है।
  • भारत में किसानों की क्षमता में सुधार हेतु अत्यधिक प्रयास किया जाने की आवश्यकता है, कम-से-कम जब तक शिक्षित युवा किसान मौजूदा अल्पशिक्षित छोटे एवं मध्यम किसानों को प्रतिस्थापित नहीं कर देते हैं।
  • कृषि क्षेत्र में भारत को सभी तरह से ‘आत्मनिर्भर’ बनाने की क्षमता है और इससे बाहरी कारकों पर निर्भरता भी कम होगी।

विगत वर्षों के प्रश्न:

प्रश्न: निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)

राष्ट्रव्यापी 'मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना' का उद्देश्य है:

1. सिंचाई के तहत कृषि योग्य क्षेत्र का विस्तार करना।

2. बैंकों को मिट्टी की गुणवत्ता के आधार पर किसानों को दिये जाने वाले ऋणों की मात्रा का आकलन करने में सक्षम बनाना।

3. खेत में उर्वरकों के अतिप्रयोग को रोकना।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)

  • मृदा स्वास्थ्य कार्ड (SHC) कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के तहत कृषि एवं सहकारिता विभाग द्वारा प्रवर्तित भारत सरकार की एक योजना है। इसे सभी राज्य एवं केंद्रशासित प्रदेश सरकारों के कृषि विभाग के माध्यम से लागू किया जा रहा है।
  • मृदा स्वास्थ्य कार्ड के माध्यम से प्रत्येक किसान को जोत की मिट्टी के पोषक तत्त्व की स्थिति और उर्वरकों की खुराक तथा आवश्यक मृदा संशोधन पर सलाह प्रदान की जाती है, जिससे लंबे समय तक मिट्टी के स्वास्थ्य को बनाए रखने में मदद मिलती है।
  • इस योजना का मुख्य उद्देश्य किसी विशेष मिट्टी के प्रकार का पता लगाना और फिर ऐसे तरीके प्रदान करना है ताकि किसान इसमें सुधार कर सकें।

स्रोत: पी.आई.बी.

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