Q4. Show
संदर्भ सहित आशय स्पष्ट करें- (क) उजरी उसके सिवा किसे कब पास दुहाने आने देती? (ख) घर में विधवा रही पतोहू लछमी थी , यद्यपि पति घातिन, (ग) पिछले सुख की स्मृति अखिों में क्षण भर एक चमक है लाती, तुरत शून्य में गड़ वह चितवन तीखी नोक सदृश बन जाती। Contents कवि परिचय सुमित्रानंदन पंत● जीवन परिचय-पंत जी का मूल नाम गोसाँई दत्त था। इनका जन्म 1900 ई. में उत्तरांचल के अल्मोड़ा जिले के कौसानी नामक स्थान पर हुआ। इनकी प्रारंभिक शिक्षा कौसानी के गाँव में तथा उच्च शिक्षा बनारस और इलाहाबाद में हुई। युवावस्था तक पहुँचते-पहुँचते महात्मा गाँधी के असहयोग आंदोलन से प्रभावित होकर इन्होंने पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी। उसके बाद वे स्वतंत्र लेखन करते रहे। साहित्य के प्रति उनके अविस्मरणीय योगदान के लिए इन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। इन्हें भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार, साहित्य अकादमी पुरस्कार, सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार मिले। भारत सरकार ने इन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया। इनकी मृत्यु 1977 ई. में हुई। ● रचनाएँ-पंत जी ने समय के अनुसार अनेक विधाओं में कलम चलाई। इनकी
रचनाएँ निम्नलिखित हैं- काव्यगत विशेषताएँ-छायावाद के महत्वपूर्ण स्तंभ सुमित्रानंदन पंत प्रकृति के चितेर कवि हैं। हिंदी कविता में प्रकृति को पहली बार प्रमुख विषय बनाने का काम पंत ने ही किया। इनकी कविता प्रकृति और मनुष्य के अंतरंग संबंधों का दस्तावेज है। प्रकृति के अद्भुत चित्रकार पंत का मिजाज कविता में बदलाव का पक्षधर रहा है। आरंभ में उन्होंने छायावाद की परिपाटी पर कविताएँ लिखीं। पल-पल परिवर्तित प्रकृति वेश इन्हें जादू की तरह आकृष्ट कर रहा था। बाद में चलकर प्रगतिशील दौर में ताज और वे अाँखें जैसी कविताएँ लिखीं। इसके साथ ही अरविंद के मानववाद से प्रभावित होकर मानव तुम सबसे सुंदरतम जैसी पंक्तियाँ भी लिखते रहे। उन्होंने नाटक, कहानी, आत्मकथा, उपन्यास और आलोचना के क्षेत्र में भी काम किया है। रूपाभ नामक पत्रिका का संपादन भी किया जिसमें प्रगतिवादी साहित्य पर विस्तार से विचार-विमर्श होता था। पंत जी भाषा के प्रति बहुत सचेत थे। इनकी रचनाओं में प्रकृति की जादूगरी जिस भाषा में अभिव्यक्त हुई है, उसे स्वयं पंत चित्र भाषा की संज्ञा देते हैं। कविता का सारांशयह कविता पंत जी के प्रगतिशील दौर की कविता है। इसमें विकास की विरोधाभासी अवधारणाओं पर करारा प्रहार किया गया है। युग-युग से शोषण के शिकार किसान का जीवन कवि को आहत करता है। दुखद बात यह है कि स्वाधीन भारत में भी किसानों को केंद्र में रखकर व्यवस्था ने निर्णायक हस्तक्षेप नहीं किया। यह कविता दुश्चक्र में फैसे किसानों के व्यक्तिगत एवं पारिवारिक दुखों की परतों को खोलती है और स्पष्ट रूप से विभाजित समाज की वर्गीय चेतना का खाका प्रस्तुत करती है। कवि कहता है कि किसान की अंधकार की गुफा के समान आँखों में दुख की पीड़ा भरी हुई है। इन आँखों को देखने से डर लगता है। वह किसान पहले स्वतंत्र था। उसकी आँखों में अभिमान झलकता था। आज सारे संसार ने उसे अकेला छोड़ दिया है। उसकी आँखों में लहलहाते खेत झलकते हैं जिनसे अब उसे बेदखल कर दिया गया है। उसे अपने बेटे की याद आती है जिसे जमींदार के कारिंदों ने लाठियों से पीटकर मार डाला। कर्ज के कारण उसका घर बिक गया। महाजन ने ब्याज की कौड़ी नहीं छोड़ी तथा उसके बैलों की जोड़ी भी नीलाम कर दी। उसकी उजरी गाय भी अब उसके पास नहीं है। किसान की पत्नी दवा के बिना मर गई और देखभाल के बिना दुधर्मुही बच्ची भी दो दिन बाद मर गई। उसके घर में बेटे की विधवा पत्नी थी, परंतु कोतवाल ने उसे बुला लिया। उसने कुएँ में कूदकर अपनी जान दे दी। किसान को पत्नी का नहीं, जवान लड़के की याद बहुत पीड़ा देती थी। जब वह पुराने सुखों को याद करता है तो आँखों में चमक आ जाती है, परंतु अगले ही क्षण सच्चाई के धरातल पर आकर पथरा जाती है। व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न1. अधिकार की गुहा सरीखी वह स्वाधीन किसान रहा, शब्दार्थ गुहा-गुफा। सरीखी-समान। दारुण-निर्दय, कठोर। दैन्य-दीनता। नीरव-शब्द रहित। रोदन-रोना। स्वाधीन-स्वतंत्र। अभिमान-गर्व। मैंझधार-समस्याओं के बीच। कगार-किनारा। सदृश-समान। प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित कविता ‘वे आँखें’ से लिया गया है। इसके रचयिता सुमित्रानंदन पंत हैं। इस कविता में, कवि ने भारतीय किसान के भयंकर शोषण व दयनीय दशा का वर्णन किया है। व्याख्या-कवि कहता है कि शोषित किसान की गड्ढों में धैसी हुई आँखें अँधेरी गुफा के समान दिखती हैं जिनसे मन में अज्ञात भय उत्पन्न होता है। ऐसा लगता है कि उनमें बहुत दूर तक कोई कष्टप्रद दयनीयता व दुख का मौन रुदन भरा हुआ है। उसकी आँखों में भयानक गरीबी का दुख व्याप्त है। किसान का अतीत अच्छा था। वह सदैव स्वाधीन था। उसके पास अपने खेत थे। उसकी आँखों में स्वाभिमान झलकता था, परंतु आज वह अकेला पड़ गया है। संसार ने उसे समस्याओं के बीच में छोड़कर किनारे की तरह बहकर उससे दूर चला गया है। विशेष- 1. किसान की उपेक्षा का मार्मिक चित्रण है। ● अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न 1. कवि किसके बारे में बात कर रहा है? उत्तर-
2. लहराते वे खेत द्वगों में आँखों ही में घूमा करता शब्दार्थ लहराते-लहलहाते, झूमते। दृग-ऑख। बेदखल-अधिकार से वचित। तृन-तिनका। आँखों का तारा-बहुत प्यारा। कारकुन-जमींदार के कारिंदे। प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित कविता ‘वे आँखें’ से लिया गया है इसके रचयिता सुमित्रानंदन पंत हैं। इस कविता में, कवि ने भारतीय किसान के भयंकर शोषण व दयनीय दशा का वर्णन किया है। व्याख्या-किसान अपने अतीत की याद करता है। उसकी आँखों के समक्ष खेत लहलहाते नजर आते हैं जबकि अब उन खेतों से उसे बेदखल कर दिया गया है अर्थात् जमींदारों ने उसकी जमीन हड़प ली है। कभी इन खेतों के तिनके-तिनके में कभी हरियाली लहराती थी तथा उसके जीवन को सुखमय बनाती थी। आज वह सब कुछ खत्म हो गया है। किसान की आँखों में उसके प्यारे पुत्र का चित्र घूमता रहता है। उसे वह दृश्य याद आता है। जब उसके जवान बेटे को जमींदार के कारिंदों ने लाठियों से पीट-पीटकर मार डाला था। यह बड़े दुख की बात थी। विशेष- 1. इन पंक्तियों में जमींदार के अत्याचारों का वर्णन है। ● अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न
उत्तर- 1. ‘वह’ भारतीय किसान है। उसकी जमीन को जमींदारों ने कानून का सहारा लेकर हड़प लिया था। 3. बिका दिया घर द्वार, उजरी उसके सिवा किसे कब शब्दार्थ महाजन-साहूकार, ऋणदाता। कौड़ी-एक पैसा। कुर्क-नीलाम। बरधों की जोड़ी-बैलों की जोड़ी। उजरी-उजली। सिवा-बिना। दुहाने-दूध दुहने के लिए। अह-आह। आँखों में नाचना-बार-बार सामने आना। प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित कविता ‘वे ऑखें’ से लिया गया है। इसके रचयिता सुमित्रानंदन पंत हैं। इस कविता में, कवि ने भारतीय किसान के भयंकर शोषण व दयनीय दशा का वर्णन किया है। व्याख्या-कवि किसान की दयनीय दशा का वर्णन करता है। किसान कर्ज में डूब गया। महाजन ने धन व ब्याज की वसूली के लिए किसान की स्थायी संपत्ति को नीलाम कर दिया। उसे घर से बेघर कर दिया, परंतु अपने ऋण के ब्याज की पाई-पाई चुका ली। किसान को सर्वाधिक पीड़ा तब हुई जब बैलों की जोड़ी को भी नीलाम कर दिया गया। यह बात उसकी आँखों में आज भी चुभती है। उसके रोजगार का साधन छीन लिया गया। किसान के पास दुधारू गाय उजली (जिसे वह प्यार से उजरी कहता था) थी वह उसके सिवाय
किसी और को अपने पास दूध दुहने नहीं आने देती थी। मजबूरी के कारण किसान को उसे बेचना पड़ा। इन सब बातों को याद करके किसान बहुत व्यथित होता है। ये सारे दृश्य उसकी आँखों के सामने नाचते हैं। उसकी सुखभरी खेती उजड़ चुकी है, अत: वह निराश व हताश है। 1. किसान पर महाजनों के अत्याचारों का सजीव वर्णन है। ● अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न 1. महाजन ने किसान पर क्या-क्या अत्याचार किए? उत्तर- 1. महाजन ने किसान से अपने ऋण की वसूली के लिए उसके खेत, घर तक नीलाम कर दिए। ब्याज की वसूली के लिए उसने किसान को बेघर कर दिया तथा कौड़ी-कौड़ी वसूल ली। 4. बिना दवा-दपन के घरनी घर में विधवा रही पताहू, शब्दार्थ दवा-दर्पन-दवा आदि। घरनी-पत्नी। स्वरग-स्वर्ग। दुधमुँही-नन्हीं। पतोहू-पुत्रवधू। लछमी-लक्ष्मी। घातिन-मारने वाली। प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित कविता ‘वे आँखें’ से लिया गया है इसके रचयिता सुमित्रानंदन पंत हैं। इस कविता में, कवि ने भारतीय किसान के भयंकर शोषण व दयनीय दशा का वर्णन किया है। व्याख्या-किसान की पारिवारिक स्थिति का वर्णन करते हुए कवि बताता है कि उसकी पत्नी दवा-दारू के अभाव में मर गई। उसके पास संसाधनों की इतनी कमी थी कि वह उसका इलाज भी नहीं करा सका। यह सोचकर उसकी आँखों में आँसू आ जाते हैं। पत्नी की मृत्यु के बाद उस पर आश्रित किसान की नन्हीं बच्ची भी दो दिन बाद मर गई। किसान के घर में उसकी विधवा पुत्रवधू बची हुई थी। उसका नाम लक्ष्मी था, परंतु उसे पति को मारने वाला समझा जाता था। समाज में पति की मृत्यु होने पर उसकी पत्नी को हत्या का जिम्मेदार मान लिया जाता है। एक दिन कोतवाल ने उसे बुलवाकर उसकी इज्जत लूटी। लाज के कारण उसने कुएँ में कूदकर आत्महत्या कर ली। इस प्रकार से किसान का पूरा परिवार ही बिखर गया था। विशेष-
● अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न
उत्तर-
5. खेर, पैर की जूती, जोरू पिछले सुख की स्मृति आँखों में शब्दार्थ पैर की जूती-उपेक्षित। जोरू-पत्नी। सुधकर-याद करना। साँप लोटते-अत्यधिक व्याकुल होना। फटती छाती-बहुत दुख होना। स्मृति-याद। चमक लाना-खुशी लाना। चितवन-दृष्टि। शून्य-आकाश। सदृश-समान। प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित कविता ‘वे ऑखें’ से लिया गया है इसके रचयिता सुमित्रानंदन पंत हैं। इस कविता में कवि ने भारतीय किसान के भयंकर शोषण व दयनीय दशा का वर्णन किया है। व्याख्या-किसान को
अपनी पत्नी की मृत्यु पर विशेष शोक नहीं है। वह उसे पैर की जूती के समान समझता है। यदि एक नहीं रहती तो दूसरी से विवाह करके लाया जा सकता है, परंतु उसे अपने जवान बेटे की याद आने पर बहुत कष्ट होता है। उसकी छाती पर साँप लौट जाते हैं तथा छाती फटने लगती है। उसे बेटे की मृत्यु का असहनीय कष्ट है। विशेष-
● अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न
उत्तर-
● काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्न अंधकार की गुहा सरीखी वह स्वाधीन किसान रहा, प्रश्न
उत्तर-
2. लहराते वे खेत द्वगों में आँखों ही में घूमा करता प्रश्न
उत्तर-
3. बिका दिया घर द्वार, उजरी उसके सिवा किसे कब प्रश्न
उत्तर-
4. बिना दवा-दपन के घरनी घर में विधवा रही
पतोहू, प्रश्न
उत्तर-
पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्नकविता के साथ प्रश्न 1: अधकार की गुहा सरीखी (क) आमतौर पर हमें डर किन बातों से लगता है? उत्तर- प्रश्न 2: प्रश्न 3: प्रश्न 4: (क) उत्तर- (क) संदर्भ-प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित कविता ‘वे आँखें’ से लिया गया
है। इसके रचयिता सुमित्रानंदन पंत हैं। इन पंक्तियों में महाजनी अत्याचार से पीड़ित किसान की उजरी गाय की दुर्दशा का वर्णन किया गया है। कविता के आस-पास प्रश्न 1: अन्य हल प्रश्न● लघूत्तरात्मक प्रश्न प्रश्न 1: प्रश्न
2: प्रश्न 3: प्रश्न 4: प्रश्न 5: NCERT SolutionsHindiEnglishHumanitiesCommerceScience यदि कवि इन आंखों से नहीं डरता क्या तब भी वह कविता लिखता?यदि कवि इन आँखों से नहीं डरता क्या तब भी वह कविता लिखता? उत्तर:- यदि कवि को किसान की आँखों को देखकर भय न लगता, तो शायद उसे उसकी पीड़ा का बोध न होता और कविता न लिखी जाती क्योंकि कविता लिखने के लिए मन में भावों का होना आवश्यक है।
डरते हुए भी कवि ने उस किसान की आंखों की पीड़ा का वर्णन क्यों किया है?वह किसान के दुख तथा पीड़ा से दुखी है। वह डरता है क्योंकि वह उसके लिए कुछ नहीं कर पा रहा है। अतः कवि कविता में उसका उल्लेख करके अपने कर्तव्य का पालन करना चाहता है। डरना कवि की संवेदनशीलता को दर्शाता है कि वह दूसरों के दुख को समझने की क्षमता रखता है।
ख उन आँखों से किसकी ओर संकेत किया गया है?(ख) 'उन आँखों' से उजड़े हुए किसान की आँखों की ओर संकेत किया गया है। वह निराश, हताश व उदासीन है। उसका सब कुछ नष्ट हो चुका है। (ग) किसान की आँखों में करुणा, पीड़ा व दीनता का भाव भरा है।
वे आंखें कविता के अनुसार बताइये कि कवि किसान की आंखों में देखने से क्यों डरता है?कवि उस शोषित किसान के बारे में बात कर रहा है जिसकी आँखें गड्ढों में धंस चुकी हैं और वे अँधेरी गुफा के समान डरावनी प्रतीत हो रही हैं। कवि को किसान की आँखों से डर लगता है, क्योंकि उनमें गहरी निराशा, हताशा व उदासीनता भरी है। पहले किसान की दशा अच्छी थी। वह अपनी खेती का मालिक था।
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